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भाग - 09 in Hindi

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4 K Listens
AuthorOmjee Publication
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गणतंत्र द्वारा दलों को महंगी लोग से लाना । जो गोल्ड का नेतृत्व उम्मादवार बंद हुआ, प्रमुख चुके श्रद्धानुसार सभी सीधे वह मेरूदंड भूमि के लंबा वक्त करते बैठ गए । सभी के नेत्र बंद थे । कुमार गणतंत्र के मन वस्तुनिष्ट में क्या चल रहा था सम्भवता वहीं जान सकते थे । शेष तीनों तो मात्र कुमार नरेन्द्र का अनुकरण करने वाले थे बल्कि अनुकरण करना भी उचित ना होगा क्योंकि वे शांत बैठे हुए थे और पूरी तरह से कुमार कंटेंट ऊपर निर्भर थी । एकाएक क्या हुआ इसका तो किसी को भी ज्ञान नहीं । एक पल से भी कम समय के लिए सभी को कुछ इस प्रकार का अनुभव हुआ कि वे और उनका शरीर दो भिन्न भिन्न प्रारूप हैं । आप ऐसा भी समझ सकते हैं कि आप अलग है और आपका शरीर नहीं है । अच्छा आपको उसकी अनुभूति नहीं है । कुछ भी याद नहीं हुआ कि क्या हुआ है । जी का एक एक झटके के साथ सभी ने अपने आपको पुराना अनुभव किया । अपने शरीर के साथ अपने शस्त्रों जो उनके साथ नियत स्थानों पर रखे थे, सभी की आंखे बंद थी । सर्वप्रथम कुमार गणतंत्र नहीं तो उसके पश्चात सभी ने अपनी आंखों को खोला । आप खोल कर ही सभी नहीं सर्वप्रथम एक दूसरे को देखा और अपनों को साथ देखकर मन ही मन शांति व प्रसन्नता का अनुभव किया । इसके उपरांत उन्होंने अपने चारों तरफ देखता वर्ष व्यवस्था प्रारम्भ किया । सभी के साथ एक समान ही अनुभव था की सभी ऊर्जा बहुत साल से परिपूर्ण तथा फॅमिली के साथ चकित थे । वो कहाँ गए सर, शरीर किस प्रकार पहुंच गए? बहुत से विज्ञान के प्रयोग आप प्रतिदिन करते रहते हैं परन्तु वो किस प्रकार हो रहे हैं यह मात्र वही जानते हैं जो वैज्ञानिक है अथवा उस प्रयोग में होने वाले यंत्रों के यांत्रिकी को समझते हैं । इसी प्रकार के किस प्रकार संभव हुआ ये मात्र प्रमुख ही जानते थे । उन्होंने अपने आप को एक वन नुमा स्थान में पाया । सभी उठ खडे हुए । सभी ने अपने अपने अस्त्रों को सुनियोजित तरीके से रख लिया । उनके पास ही चल के कितने कि धोनी का आभास हो रहा था । वातावरण सुखद प्रतीत हो रहा था । वे सभी कुमार गणतंत्र का अनुसरण करते हुए जल की धोनी की दिशा की ओर बढ चले । वातावरण वृद्धि लोग जैसा ही प्रतीत हो रहा था परंतु वृक्षों की ऊंचाई का अखबार कुछ काम था जबकि वृक्षों का फैलाओ अपेक्षाकृत अधिक था । ये दृश्य सभी को अस्पष्टता भिन्न दिखाई दिया । जैसे जैसे वे आगे बढ रहे थे, धीरे धीरे जल्द होने की तिव्रता बना रही थी । उन्होंने सावधानीपूर्वक आगे पडने का क्रम जारी रखा । एकाएक उन्होंने देखा कि एक गुफा के द्वार के सम्मुख पहुंचनेवाले तब उनके पैर रुक गए । उन्होंने अपने आप को और अधिक सावधान किया । क्योंकि गुफा के भीतर क्या है? इधर से ही ध्वनि आ रही है अथवा गुफा के बाहर से तो नहीं आ रही है । किसी को कुछ अनुमान नहीं था । तब कुमार कंटेंट करने का मेरे विचार से हमें रात्रि की प्रतीक्षा करनी चाहिए । इससे अपना कार्य आसान हो जाएगा । मेरे अनुसार यही सही है । आपका क्या मत है । सभी ने लोग सजाते दे दी । तब गुफा के मुख्यद्वार से हटकर वृक्षों की ओट में आकर छिप गए । उन्होंने अनुमान लगाया कि इससे एक लाख हो सकता है । यदि कोई यहाँ से आने अथवा जाने वाला होगा तो अवश्य ही दिखाई देगा । उनके अनुसार अपनी आगे की रणनीति बनाने में मदद मिलेगी । यहाँ पर समय का अनुमान लगाना कुछ कठिन प्रतीत हो रहा था । यहाँ पर आए हुए दोपहर हो चुके थे परंतु समय कुछ थी देती दे व्यतीत हो रहा था । सभी को इस प्रकार का सवाल अनुभव हुआ तब टंडन हाथ नहीं कहा मुझे कुछ इस प्रकार का अनुभव हो रहा है । इस समय की गति यहाँ काम है अथवा ये भी हो सकता है कि यहाँ पर दिन भर रात का समय ज्यादा पूर्ण अथवा ये भी हो सकता है कि तीन बार रात में कोई अधिक वह कोई काम हो परन्तु कुछ है तो आवश्यक क्योंकि हम लोगों को यहाँ पर आये हुए कितना समय हुआ है उसके अनुसार परिवर्तन नहीं दिख रहा है । इस पर सभी सहमत थे । इस पर भोजन केश्वर ने कहा मेरा अपना ध्यान कहता है कि इस जगत में जहाँ जहाँ जीवन है वहाँ पर सभी स्थानों पर दिन सामान समय का नहीं होता है । अच्छा यहाँ पर किसी कारण से ऐसा हो रहा होगा इस बात से सभी सहमत नहीं । अब सभी शांत किसी के देखने की प्रतीक्षा कर रहे थे । इसके अतिरिक्त अब कोई अन्य विकल्प दिन के प्रकाश में संभावना था । काफी समय के उपरांत रात्रि के अंधकार ने यह स्पष्ट किया कि यहाँ रात्रि भी आती है । अब स्पष्ट था कि दिन रात्रि यहाँ पर भी है परंतु उन का समय पृथ्वी के समय से बिन वहाँ अधिक है । जब रात्रि का अंधकार पूरी तरह से व्याप्तो हो गया । तब सभी ने संयुक्त रूप से विचार किया कि अब खोखा में प्रवेश किया जाए । तब कुमार कंद्र कहना प्रारम्भ किया, अब रात्रि के अंधकार में कुछ भी स्पष्ट प्रतीत नहीं हो रहा है । साथ ही गुफा के अंदर या उसके पार किया है । आपको समझ में आएगा । मेरा विचार है कि हमें शालो पहले गुफा के द्वार पर चलकर देखते हैं । कुमार युद्धनीति कहती है कि हम चारों को एक साथ नहीं चलना चाहिए । पहले मैं जाता हूँ और देखता हूँ कि गुफा के पास किस प्रकार की संभावना है । इस पर कुमार ने और सभी ने स्वीकृति में अब का से लाया । तब तंगधार अपने मन मस्तिष्क में प्रभु को स्मरण करके आगे सावधानीपूर्वक पडे । धीरे धीरे वे गुफा के द्वार पर पहुंचे और अपने कानो को अपनी अन्य इंद्रियों की भी क्षमता प्रदान करने का प्रयास का सुनने का प्रयास करते लगे । जैसे ही और आगे पढे उन्हें बहुत ही मंदिर प्रकाश प्रतीत हुआ । अब उन्होंने अंदर प्रवेश करने का मन नहीं बताया था कि पीछे से किसी की आहट सुनाई पडी । दंड, आधार, विद्युत की गति के साथ कुमार और उसने देखा के भोजन देश था । तब भोजन देश बनने का डंडधार चीज कुमार गजेंद्र का मत है आप अब अकेले प्रवेश न करें । इतनी बात हो ही रही थी कि गणतंत्र इंदुर भी वहाँ पहुंच गए । तब घनेन्द्र नहीं कहना प्रारम्भ किया । अब मेरे मन में विचार आया है कि यदि हम सभी साथ रहते हैं तो उत्तम रहेगा । अलग होने से समस्या बढ सकती है । इस पर सभी एक साथ होकर कुम्भ में प्रवेश करते हैं । जैसे जैसे आगे बढते हैं प्रकाश धीरे धीरे पडने लगता है । जब एक गुफा के अंत में पहुंचते हैं तो वहाँ से स्पष्ट रूप से एक नगर दिखाई पडता है । सभी धीरे धीरे उस स्विंग बढना प्रारंभ करते हैं । धीरे धीरे सभी ये आभास करते हैं कि उनको घेरा चाहता है । आपस में एक दूसरे के इस सूचना से बिना बोले ही अवगत कराते हैं । साथ विषम परिस्थितियों के लिए मान वतन से तैयार हो जाते हैं । कुमार गजेंद्र ने संकेत ही समझा दिया के प्रथम आक्रमण हम नहीं करेंगे । धीरे धीरे सभी नगर के द्वार तक पहुँच गए । नगर द्वार पर द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने से नहीं होगा । सभी ने नगर में प्रवेश किया । नगर में प्रवेश करते ही सभी आश्चर्यचकित थी । यहाँ पर लोगों की संख्या कम थी । लोगों की शारीरिक बनावट बहुत अप्राकृतिक थी । सामान्य का किसी भी स्थान पर रहने वाले चीज एक प्रकार के ही होते हैं । उनकी शारीरिक बनावट समान होती है परन्तु कट में भिन्नता हो सकती है । यहाँ पर शारीरिक बनावट ही भिन्न थी । कुछ तो कद में बहुत ही विशाल थे और कुछ कट में बहुत ही छोटे । कुछ शरीर में एकमुख था । किसी के मुख पर दो मुक्ति किसी के एक आई थी और किसी की दो और कुछ भी तो तीन बच्चा रखी थी । तब इस प्रकार के रूप अप्राकृतिक बराबर देखने के उपरांत कुमार कंटेंट ने कहा आप सभी ने कुछ ध्यान दिया । प्रभु मैंने को अपने जीवन काल में इतना शरीर चडक । यहाँ तो हाॅल उसको इस प्रकार विचित्र है कि यदि किसी ने न देखा हो तो वो कभी मणिका ही गई सकते हैं । इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं प्रभु परन्तु यही इतना मन उद्वेलित करने वाला है कि इसके आगे ब्लॅक सी हो गई है । तब आपने मुझ पर हाथ रहते हुए वो चंदेश्वर ने कहा कुमार मुझे प्रतीत हो रहा है यहाँ के घरों का आकार बहुत विशाल है और साथ ही व्यक्तियों की संख्या बहुत कम प्रतीत होती है । इतना कहने के उपरांत वो चंदेश्वर शांत हो गए । तब उन सभी के शांत रहने पर कुमार कंटेंट ने कहा यहाँ सबसे मुख्य विषय हैं । यहाँ पर केवल पडोसी पुरुष दिखाई दे रहे हैं । इतने समय में एक भी महिला नहीं दिखाई थी । इतना सुनने के पश्चात सभी आवाज थी ये तो ध्यान ही नहीं दिया । स्त्रीपुरुष तो प्रकृति में एक दूसरे के पूरक है । कोई किसी से कम नहीं है । दोनों अपने अपने स्थान पर सेट है । समस्या तब प्रारंभ होती है जब हमें एक दूसरे का स्थान लेना चाहते हैं । शक्कर व मिर्ची दोनों का ही अपना अपना स्थान है । दोनों ही भोजन के महत्वपूर्ण भाग है परन्तु भोजन बनाते समय यदि मिर्ची को शक्कर के स्थान पर प्रयोग करें तो भोजन खाने योग के न रहेगा । इसी प्रकार सबका प्राप्ता स्थान है और सभी अपने अपने में श्रेष्ठ है हैं । जब कोई वस्तु अथवा व्यक्ति आवश्यकता से अधिक उपलब्ध हो जाता है तो उसका महत्व काम मत हुआ । लगभग सब आपका ही हो जाता है । सभी विचार करते हुए संदेह ये किस प्रकार संभव है कि केवल पुरुष ही हूँ । तब दंडधारी ने अपना विचार रखा । मुझे लगता है कि यहाँ पर महिलाएं भी होंगी सम्भवता उन्हें बाहर नहीं आने दिया जाता हूँ । मेरा महिला के सृष्टी में संतुलन किस प्रकार संभव है । इतनी चर्चा चल रही थी । एक बहुत अजीब सी आकृति वाला व्यक्ति पास आता दिखाई पडा । उसके पास आकर बिना किसी औपचारिक अभिवादन के कहा हमारे साथ आपको चलना होगा । बिना प्रतीक्षा किए वह वापस घूम गया और उसके घूमने से अस्पष्ट था कि वो जान रहा था की उस की आज्ञा का पालन होगा । सभी ने एक दूसरे की तरफ देखा और सभी नहीं आंखों ही आंखों के संकेत से ये निश्चित किया की हमें इसके साथ चलना चाहिए । सभी उसके साथ सावधानीपूर्वक चलने लगे । अपने स्वभाव के अनुसार दंड आधार की दृष्टि चारों ओर थी और उनका एक हाथ अपनी तलवार पर था । पूजन देशभर के भी लगभग वही प्रतिक्रिया थी । ऍम कुमार गजेंद्र के ठीक पीछे था । चलते समय इंदौर इस बात का विशेष ध्यान दे रहा था की यहाँ के विशेषताओं को वो ध्यान रख सके । सभी पत्थर से निर्मित मार्ग से होते हुए चारों तरफ देखते हुए चले जा रहे थे । कुछ समय के भीतर उनको एक विशाल भवन के भीतर ले जाया गया । वो भवन विशाल पत्थरों को फंसाकर नेटवर्क किया गया था । वो विशाल भवन बाहर भी पुराना प्रतीत हो रहा था । चार । उस भवन के भीतर जब पहुंचे तब उन्होंने विशाल कक्ष में लगभग सौ लोगों को देखा । उनमें से कुछ खडे थे और कुछ बैठे हुए थे । विशाल कक्ष में एक विशाल सिंहासन जो पत्थर वन लकडी से निर्मित प्रतीत हो रहा था, पर एक व्यक्ति बैठा था । उसका नाम था लोचन पडेंगी । इसके अतिरिक्त वहाँ पर अन्य कुछ बडों के नाम प्रभाषा वर्तुल पडेंगी डन तब रहेंगी न, तब ऋंगी आती था । सर्वप्रथम लोचन भृंगी ने बहुत ही तीव्र स्वर में प्रश्न किया कौन हो तुम सब गांव हो तब यहाँ कैसे आए? इसके पहले कोई भी था कुमार घनेन्द्र नहीं आगे बढकर उत्तर क्या हम कौन हैं? कहाँ से आए हैं, कैसे आए हैं यह पूछने का तुम को क्या अधिकार है उसने का अधिकार राजा अथवा युक्त में विजय प्राप्त करने वाले कोई होता है यहाँ की व्यवस्था के अनुरूप नहीं तो आप राजा प्रतीत होते हैं और रही आप हम से विजयी हुए हैं । इतना सुनने के उपरांत वहाँ पर वस्थित सभी क्रोध से भर के तब पूरा लोचन भिंडी ने कहा तो भारी अवस्था देखकर तो को मैंने अपने काबू में रखा था । इतना पहले को प्रांत वो शांत हो गया । तब बुलाना डंडधार ने अपने स्वभाव के प्रतिकूल होकर का क्या कुमार नया सकते कहा है? आपका तो राजा प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि यहाँ कोई है ही नहीं । कुछ ही लोग हैं वो भी देखने में इस प्रकार के बने हैं कि अधूरे प्रतीक होते हैं । साथ ही युद्ध में विजय भी नहीं हुए हैं । मध्य की बहुत अभिलाषा प्रतीत हो रही है । आप सभी को चलो ऐसा ही सही । इसके पश्चात रोजन भृंगी ने संकेत किया तो वर्तुल भेंगी आगे बढा और होना हम सभी में जो चाहे मेरे साथ युद्ध कर सकता है । इतना कहना था की डंडधार आगे बढे । तब कुमार गणतंत्र नहीं संकेत संकेत देखकर ठंड आधार रुक गए । एक्शन के लिए कुमार ने अपने नेत्र बंद की और पुनः दंड आधार को सम्भवता । प्रथम बार आदेश क्या प्रभु को माल में धारण करके समझाऊँ कि हम कौन हैं और कहाँ से आए हैं? एकता सुनने के उपरांत डंडधार नियतन जोरदार आवास में कहा राॅकी जय हो । इतना कहने के उपरांत दंड था आप अपने स्थान से विद्युत की भारती गुप्ता और वर्तुल बढेंगे के सामने था । डंडधार के दोनों हाथों में तलवार थी और वर्तुल भंगी के हाथ में भी विक्षित प्रशस्त्र था । जो तलवार वह भाले का संयोजित प्रतीत होता था परन्तु का वर्तुल भरेंगे अपने स्थान पर जल के समान खडा ही रहा । अंडर बाहर के दोनों हाथ हवा में बनी हुई थी परन्तु वर्तुल भिंडी उन्हें प्रत्युत्तर देने की बत्रा में गई था । उसने अपना आस करंट लग दिया । इधर उसने अपना अस्थि रखा और उधर लोचन पडेंगे भी अपना स्थान छोडकर सभी पा गया कांदा बाहर अचंभित था कि क्या हुआ उसके जब कुमार गजेंद्र की तरफ देखा तो कुमार मुस्कुरा रहे थे । मुस्कुराते हुए कुमार नरेन्द्र ने कहा डंडधार जी मैंने कहा था इन को समझाओ की हम कौन हैं और कहाँ से आए हैं आपने तो हाँ आक्रमण ही कर दिया आपका बात प्रभु आशुतोष केंद्र कहना ही पर्याप्त था । मैं समझा नहीं । इतना मात्र कहना हुआ ही था कि लोचन सिंह जी ने कहा मैं चाहता हूँ कि आप ये बताएँ आपने प्रभु आशुतोष केंद्र का नाम क्यों लिया? आपके कौन हैं? मेरे हिर्दय में बहुत ही आनंद की अनुभूति हो रही है । हम सभी भाव राहीन जर्व पशुवत है । यदि इस प्रकार होते तो आपको पहले ही पहचान लेते फिर आपका परिचय दे और हमारे बनके उत्कंठा को शान्त करें । इतना कहने के उपरांत उसके आशोक लानी के कारण पहने के लिए डंडधार भोजन देवेश्वर वरिंदर भी अधिक कुछ नहीं समझ पा रहे थे कि एक आई क्या हो गया । कुमार कंद्र को पहले ही कुछ आभास हो गया था परंतु हुआ उन्होंने अपना परिचय प्रारंभ में छिपाना उचित समझा । इसके दो कारण हो सकते हैं । पहला कारण जो उनका क्या कह रहा था । ये कोई प्रभु लगते हैं । यदि ये जान जाएगा कि मैं प्रभु आशुतोष इंद्र का पुत्र हूँ तो संभव है कि एक का एक उसे विश्वास ही ना हो । दूसरा कारण जो उनकी बुद्धि कह रही थी, कीबोर्ड पडताल के उपरांत ही अपना परिचय खोलना चाहिए । अजय कुमार गजेंद्र ने कहना प्रारम्भ किया हम सभी प्रभु आशुतोष केन्द्र के सेवक है । इतना सुनना ही था । किलो जान भृंगी कुमार का केन्द्र के पैरों पर गिर गया । उसने कुमार कंद्र को बार पार्टन डबल प्रणाम किया । कुमार उसे बार बार उठाने का प्रयास करते हैं परन्तु कुमार के चरणों को पकडे हुए था और उसके शुरू बह रहे थे । बेस्ट दृश्य को देखकर सभी उपस् थित लोग भूमि पर दंडवत हो गए । कुमार और साथ में गए भोजन देशभर दंड था । वह हिंदुस् रिश्ते से भाव भूत हो गए । अब इस सृष्टि के उपरांत डंडधार वो चंदेश्वर वह इंदुर के मन में कुमार कर केंद्र का स्थान और ऊपर उठ गया था ।

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