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भाग - 5.1 in Hindi

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7 K Listens
AuthorOmjee Publication
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इतना ही मात्र सुनने के उपरांत लाट भरेंगे के भाव हम यह बात स्पष्ट थी क्यों उसे सभी तथ्य अभी समझ नहीं आए थे । अब कार्तिक केंद्र नहीं रोकना ही उचित समझा । कुमार के रुकते ही लड भरेंगे ने अपने प्रश्न रखना उच्च समझा को बार कुछ तथ्य में अपनी छतरपुर थी, बस विज्ञान के कारण समझ नहीं सका या दिया आप उसे फोडा तैयार अस्पष्ट करें तो आपके महान अनुकंपा आपके सेवक पर होगी । आप जोर समझ सके हूँ से स्पष्ट करें । इतना सुनना क्या था कि लटकेंगे ने द्रुतगति से छोटे बालक के समान प्रश्नों के हम बाद लगना प्रारम्भ कर दिया हूँ । इतना सुनते ही कुमार ने अपनी भौं सिकोडी तो तुरंत ही लड करेंगे नहीं । उन्होंने कहा क्षमा कुमार आप मेरी स्वामी के पुत्र है । आप से मैं ज्ञान अर्जित कर रहा हूँ । दोनों ही प्रकार से आप मेरे प्रभु ही हुए । गुरु को प्रभु वह माता पिता से भी अधिक श्रेष्ठ माना गया है । आप मुझे प्रभु ही कहने दे । कार्य केंद्र अपनी आंखों को गोल गोल घुमाते हुए जैसे ये विचार कर रहे हो की बात तो सही है । मेरे एक प्रश्न का उत्तर तो अच्छा रहने दो तो मैं जो उचित लगे वही करो अपने प्रश्न पूछो हो भाग के कुमार हूँ । इतना सुनते ही कुमार पूरा मुस्कुराने लगे । मुस्कुराते हुए कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराते रहे । कुमार प्रभु शरीर के प्रकार को यदि आप उचित जाने तो ठीक से स्पष्ट करेंगे फॅार प्रतिक्षण परिवर्तनशीलता अस्पष्ट नहीं है । जो अपने स्कूल शरीर के लक्षण बताए लेटर भरेंगे । जी जड को समझना तो अत्यंत ही सरल है । ज्यादा अठारह जिसमें आपने कारण गति हो । आपने कारण परिवर्तन हो, स्कूल शरीर से यदि चेतना निकल जाए जैसे हम जीवात्मा कहते हैं तो स्कूल शरीर की गति अथवा उसकी क्रियाशीलता था । सब आप तो हो जाएगी । इस पर उन्होंने देखा के भरेंगे जी के बुक पर अस्पष्ट प्रश्न रेखाएं तो भर रही हैं । तब कुमार ने बिना प्रश्न सुने ही चार लिया कि वे क्या कृष्ण करना चाहते हैं और आगे कहना प्रारम्भ किया । कुमार ने कहा सम्भवता आप विचार कर रहे होंगे कि बिना चेतना के भी शरीक अक्षय होता रहता है । ये भी तो क्रिया ही है । ये सुनकर लड फ्रेंकी नहीं स्वीकृति में मुख्य लाया । तब कुमार ने बहुत ही उत्तम विधि से स्पष्ट किया शरीर का बडों प्रांत अक्षय होना एक प्राकृतिक क्रिया है । डोकरिया शरीर द्वारा ना होकर प्रकृति द्वारा हो रही है । शरीर जिन पंच तत्वों से मिलकर बना होता है उन सभी में पुनर्विनियोग चित हो जाता है । अब प्रतिक्षण परिवर्तनशीलता को ध्यान से समझो । इस स्कूल खरीद के मुख्यतः छह परिवर्तन होते हैं बहुत पन्ना होना, अस्पष्टता, दृश्य होना, बदलना बढना, घटना और अन् तथा नष्ट हो ना शिक्षुता के साथ जिससे क्रम पंगा हो गए । लटकेंगे ने तुरंत कहा कुमार प्रभु ये छा परिवर्तन में बदलना तो बढ ने वह घटने का भी भाग प्रतीत होता है यदि इसे आप कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा जरा विचार कीजिए कि जब एक युवा व्यक्ति की कुछ वर्षों तक युवावस्था ही रहती है, परन्तु उसकी आकृति में चेहरे में परिवर्तन, अस्पष्टता प्रतिफल आता है । ये अतिरिक्त विषय है कि हमारी आंखें और स्पष्ट परिवर्तन को प्रतिदिन परिलक्षित नहीं कर पाती है । धीरे धीरे कुछ वर्षों के उपरांत ये परिवर्तन स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होने लगता है हूँ । मैं समझ गया अब पांच प्राणों के विषय में ठीक है, सूक्ष्म शरीर का भाग है । पांच प्राण कांड समस्त जीवन स्थल शरीर का आधार है और सूक्ष्म शरीर का भाग है । प्राण ऊर्जा है, शक्ति है, तेज है गति इन सभी से अधिक कांड तीनों शरीर स्कूल स्वच्छ व करन का जीवात्मा से संपर्क सूत्र है वो डोर है जिसके बाद धर्म से शरीर जीवात्मा के साथ संशोधित रहता है । प्राणों के नियंत्रण वार समन्वय से हम अपने स्कूल शरीर के जीवनकाल को बढा सकते हैं । साथ ही स्कूल शरीर के अनियंत्रित क्रियाकलाप से प्राणों का नियंत्रन वक्त समन्वय कम हो सकता है । जैसे जैसे ज्ञान चर्चा आगे बढ रही थी, भिंडी को इस वार्ता से यह स्पष्ट होने लगा कि ये प्रभु आशुतोष केंद्र की ही कृपा है अथवा इतना ज्ञान एक किशोर कुमार नहीं, एक ही क्षण के उपरांत बन के विचार परिवर्तित हो गए । हो सकता है कि प्रभु पुत्र को ज्ञान प्राम्भ के द्वारा ही प्राप्त हुआ हूँ अथवा प्रभु आशुतोष केंद्र की ही कृपा हूँ अथवा सोचने से किसी विशेष निष्कर्ष पर लगभग रिंकी न बहुत सकता परन्तु उसे तो मात्र अपने ज्ञान प्राप्ति से अर्थ था वो एक एक विषय वहाँ ओप्पो विषय को अत्यंत ध्यानपूर्वक ग्रहण कर रहा था । कुमार ने कहा कुछ विचार कर रहे हो, क्या नहीं आप बहुत ही स्पष्ट कह रहे हैं प्रभु आप कहना जारी रखे ये पांच प्राण स्कूल शरीर को किस प्रकार प्रभावित करते हैं । गेम के प्रकार जानने के साथ साथ आप स्वता जान पाएंगे । इनके प्रकार है प्राण, अपान, व्यान, उदान और सामान । पांच अन्य उपग्रहण भी हैं परन्तु अभी मैं मुख्य पांच विषय में चर्चा कर रहा हूँ । सभी प्राणवायु के रूप में जीवात्मा के साथ ही प्रवेश करते हैं । जब जीवात्मा शरीर का त्याग करती है तो साथ साथ प्राण भी शरीर का त्याग करते हैं । ध्यान रहे प्राण सुक्ष्म शरीर का भाग है और जीवात्मा आत्मा का भाग है । आत्मा परमात्मा का अंश है । एक विचार से देखें तो प्रतीत होगा की सभी कुछ परमात्मा का अंश है । कार्ड निर्वास में नहीं होता क्योंकि वहाँ वायु नहीं है । आत्मा और परमात्मा तो निर्वात में भी हैं की बात मैं वहीं पर सक्रिय हो सकेगी जहाँ प्राण ऊर्जा हो । प्रथम प्राण कार्ड है जो नासिका से है तब तक निवास करते हैं । इसकी ऊर्जा नासिका से हृदय तक प्रवाहित होती है । मात्र शुद्ध वायु ही इस कारण का पोषन नहीं करती है बल्कि प्रतिरोधक क्षमता, अनुशासित जीवन, आत्मबल, व्यायाम, प्राणायाम भी प्राणों को शक्ति प्रदान करते हैं । ऐसा प्रवाइड अनेको बार उपस् थित हुआ कि स्वस्थ वायु और शुद्ध भोजन करने पर व्यक्ति की प्राणशक्ति कमजोर थी और इसके विपरीत व्यवस्था पर प्राणशक्ति मजबूत थी । द्विती प्राण हाँ, जो लाभ भी से पैरों के तलवों तक को प्रभावित करता है । याफान प्राण निष्कासन प्रक्रिया को वे नियमित करता है । कृति प्राण व्यान जो संपूर्ण शरीर में नाडियों के माध्यम से फैला हुआ है । नाडियों की मुख्य ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के कारण ये प्राण अत्यधिक महत्वपूर्ण उसके लिए होता है । जो योगी पुरुष हैं जिनको सभी नाडिया स्वच्छ चाहिए । चतुर प्राण होता जो उच्च आरोही ऊर्जा क्रमशा बढने वाली है । ये है वैसे मस्तिष्क तक प्रवाहित होती है । इसके नियंत्रन से शरीर अत्यंत भारहीन हो जाता है । आप जल अथवा वायु में चलने की संभावना प्राप्त कर लेते हैं ये मृत्यु को अर्थात प्राण बच्ची वह आत्मा को नंबर अंदर से निष्कासित करने में संपूर्ण सहायता करता है । इस प्रकार प्राण त्यागने में तीनों शरीर को कष्ट नहीं होता है और और क्या हूँ अपूर्ण अस्पष्ट कर रही थी अब आप मेरे को वो भी हैं । बिना कुछ प्रत्युत्तर दिए हुए कुमार ने कहा और जब पुनर्चलन होता है तो पूर्व संस्कृतियों के रहने की संभावना रहती है । आश्चर्य से लड करेंगी ने पूछा पूर्वजन्म की इस प्रतियां था क्या पूर्वजन्म की स्मृतियां शेष रह जाते हैं? इस पे रेतिया शेष रह जाती हैं परन्तु संभावना लगभग नगर नहीं है । कुछ देर शांत रहने के उपरांत लग फेंघे ने पुनर्विचार किया के अभी कुमार कह रहे थे कि पूर्वजन्म की इस बेटियाँ संभव है और अभी कह रहे हैं की संभावना नगर नहीं है । वास्तव में जब विषय गंभीर ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक होता है तब आप मात्र ज्ञान से ही नहीं सीख सकते हैं । ज्ञान से आप लिख सकते हैं, प्रवचन कर सकते हैं, विवेचना कर सकते हैं परंतु सब निरर्थक है क्योंकि ये ज्ञान बात उस प्रकार ही है जैसे स्वयं प्रयोगशाला में प्रयोग न करने पर परीक्षण का वास्तविक ज्ञान नहीं आता है । समय आने पर पर एक्शन ज्ञान न होने से आपका सफल हो जाते हैं । ये आध्यात् प्रदर्शन नहीं है कि आप अपनी बौद्धिक क्षमता से इसको अस्पष्ट करें । अध्याय आपकी शारीरिक तीनों शरीर क्षमता से परे हैं । फिर प्रश्न हुआ थी जब शारीरिक क्षमता से परे हैं तो किस प्रकार उसको प्राप्त किया जा सकता है । उसको सुनकर ज्ञान वृद्धि से नहीं प्राप्त किया जा सकता है । प्रत्युत सुनकर उपासना से जान सकते हैं । उपासना से आपकी आध्यात्मिक ऊर्जा बढने लगती है । आध्यात्मिक ओरछा पडने से प्राणों को बाल प्राप्त होने लगता है । बढता हुआ अध्याप्ति पाल पांचवें कार्ड अर्थात सामान प्राण को जो हिरदय से लाभ ही तक प्रस्तुत थे को उचित करता है । छमाहण प्राण का प्रभाव मणिपुर चक्र पर होता है । मणिपुर चक्र के ऊर्जावान बच्चा कृत होते ही शरीर के भीतर शुद्ध ज्योति प्रज्वलित होने लगती है । ये सक्रिय ऊर्जा फिरते तक पहुंचकर राहत चक्र को ओरछा प्रदान कर उसे जागृत करती है । यहीं पर चार कर कार्तिक केंद्र रुक गए और उन्होंने लटक भेंगी को अस्पष्ट । क्या इसके आगे विषय अत्यंत गंभीर है अथवा मुझे भी स्पष्ट नहीं है? तब लाट भृंगी ने कहा प्रभु कुमार इसका अर्थ हुआ कि अब पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रभु का ही सहारा है और सहारा हो भी क्यों ना, वही तो हैं इस प्राम्भ हांड के रहस्यों के रहस्य । अच्छा कुमार अब मैं स्कूल शरीर, वह सुक्ष्म शरीर के विषय में जान गया । शेष रहस्य वह ज्ञान महाप्रभु ही बताएंगे । तो अब आप कारण शरीर के विषय में बताइए । कुमार ने कहा ठीक है । अब आप कारण शरीर के विषय में समझे । सशक्ति अवस्था को कारण शरीर माना गया है जो बुद्धि का विषय नहीं है । इस पर प्रकृति स्वभाव उपस् थित रहता है । जिस प्रकार एक गाय जिसको आप प्यार से सहलाते हैं तो वह भी आपसे दुलारती हैं । वहीं पर दूसरी का है । जब आप उस पर हाथ लेते हैं तो वो आप पर आक्रामक हो जाती है । दोनों कायों का ये भिन्न स्वभाव सभी को स्पष्ट है । इसी प्रकार सभी का कारण शरीर होता है । अब तीनों प्रकार के शरीरों का मैंने वर्णन कर दिया है, जो मैं जानता था । कुमार कब हूँ आपकी दयादृष्टि सादा ही मेरे ऊपर किसी प्रकार बनी रहे आपका ज्ञान निश्चित ही मनुष्य तो क्या चलिए छोडिए प्रभु आपके ज्ञान से बैठ कृतार्थ हो गया । अब आपका प्रश्न शरीर का काल के साथ संबंध इसको समझो । स्कूल शरीर का परिवर्तन प्रतिक्षण होता है और इसमें परिवर्तन प्रतीत भी होता है । अस्पष्ट परिवर्तन प्रतिक्षण होने पर भी वह प्रतीत नहीं होता है । एक कालखंड के उपरांत अस्पष्ट परिवर्तन प्रतीत होता है । इसी प्रकार सुक्ष्म व कारण शरीर में भी परिवर्तन होता है । सुक्ष्म शरीर, इंद्रिया, मन, बुद्धि, प्राण सभी एक समय के बाद परिवर्तित हो हो जाते हैं । लटकाएंगे नहीं कहा कुमार प्रभु मैं प्रश्न यहाँ अवश्य मुझे ऐसा भ्रम था कि स्कूल शरीर शिथिल होने पर इंद्रिया मन बहुत थी । वह प्राण शिथिल हो जाते हैं । क्या यह सत्य नहीं है? कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा लगभग करेंगे जी । आप के अनुसार यदि शरीर शिथिल हु तो सूक्ष्म शरीर परिवर्ती थी ना हो झील प्रभु ऐसा नहीं है । बाल्यवस्था युवावस्था अथवा वृद्धावस्था में भोजन की रुचि, सामान अथवा अलग अलग बाल्यावस्था में रुचियां अलग बोझ मुझे पदार्थों में होती है । युवावस्था में अलग अर्थात स्वास्थ्य केंद्र में परिवर्तन अस्पष्ट है । किसी प्रकार शब्द, अस्पष्ट डब्बे, वगंधा की ज्ञानेन्द्रियां वह कर्मेन्द्रियां भी परिवर्तित हो जाती हैं । ये शरीर की शीतलता पर निर्भर नहीं करती है । इसी प्रकार बचपन की बना अवस्था, युवाकाल की मनाई स्थिति वन तकाल की मनाई स्थिति में अंतर अस्पष्ट दृश्य होता है । हम कह सकते हैं कि कालका स्कूल शरीर के साथ स्कूल शरीर पर पूर्णतया प्रभाव प्रदर्शित होता है । अब कारण शरीर के विषय में विचार करते हैं । करन शरीर का संबंध है आपकी सोनू शक्ति अवस्था से । आप की प्रकृति आपके स्वभाव से जवाब युवावस्था में स्वस्थ देखते हैं तो अपने आपको युवा देखते हैं । जब बाल्यावस्था में स्वच्छ देखते हैं तो अपने आप को बालक और जब वृद्धावस्था में इस वक्त देखते हैं तो अपने आप को वृद्ध देखते हैं । स्वथ्य में आपने तीन रूप अलग अलग कालखंडों में अलग अलग दिखाई देते हैं । बाल्यवस्था की आदत है जो व्यवस्था में और युवावस्था की प्रकृति वृद्धावस्था में परिवर्तित हो जाती है तथा इस प्रकार तीनों शरीर समय से प्रभावित होते हैं । लेकिन भिंडी ने कहा कुमार प्रभु ऐसे अस्पष्ट हुआ कि तीनों प्रकार के शरीर काल से प्रभावित रहते हैं । निसंदेह अब लट्ठ देंगी । मन ही मन विचार करता हुआ कुछ संकोच करता है । संकोच का कारण उसकी अपनी अज्ञानता हो सकती है अथवा उसकी ये अज्ञानता भी हो सकती है कि अब जो उसके मन मस्तिष्क में प्रश्न है, क्या उसका उत्तर कुमार दे पाएंगे? भ्रष्ट पूछने वाले व्यक्ति को निश्चित ही ये मर्यादा रखनी चाहिए कि उसका प्रश्न किया है क्या उसका उत्तर संभव है? इन्हें विचारों के बस थे, लटक रहेंगी । ये भूल गया कि वह प्रभु की कृपा से ही कुमार के साथ है और उन ज्ञान रहस्यों को जान रहा है जिसको जानना लगभग असंभव सा है । फिर अपने मन को दृढ करते हुए उसने अगला प्रश्न पूछ ही लिया । को बार कब हूँ? देहान् तार के उपरांत शरीर समाप्त हो गया । तब पुण्य और पाप कर्मों का भूख कौन करता है? सुख और दुःख का भोग तो शरीर ही करता है और अब वो समाप्त हो चुका है । कुमार मंद मंद मुस्कुराते हुए कहते हैं, अभी आपके प्रथम प्रश्न का उत्तर शेष है और आपने? दूसरा प्रश्न अब आप हूँ । मुझे प्रतीत हुआ की प्रश्न का संपूर्ण उत्तर हो गया है । अभी प्रथम प्रश्न में मात्र शरीर पर ही चर्चा हुई थी । जीवात्मा के साठ साल का संबंध शेष था । अब मैं तुम्हारे दूसरे प्रश्न के उत्तर के साथ ही जीवात्मा के विषय में चर्चा करता हूँ । लटकेंगे ने बात तो छोटे बाला कि भारतीय संस्कृति में अपना शीर्ष हिलाया । तब कुमार ने पुनः कहना प्रारम्भ किया यहाँ विषय तनिक गंभीर है । जब देहांत और होता है तब एक तेज त्याग वह दूसरा दे । प्राप्ति के बीच का समय भी अत्यंत महत्व होता है । स्कूल शरीर के समाप्त होने से सूक्ष्म शरीर कारण शरीर समाप्त नहीं होते हैं । सूक्ष्मा व कारण शरीर जिनमें कोनो बदोश आ चुके हैं वे अपने कर्मों के अनुसार अलग अलग लोगों में जाकर सब वादुक को बोलते हैं । वे की बात माँ के साथ रहते हैं । जीवात्मा भी इसका अर्थवर्क जिम आत्मा भी सुख दुख रोकती है । जो चेतना है, निर्गुण, निराकार, अविनाशी निर्विकार है वो सुख दुख से बहुत दूर है बल्कि गुणदोष, पुणे वहाँ आपसे भी उसका कोई संबंध नहीं है । वो आत्मा का अंश है और आत्मा पर बात । आकांशा जब पर बात नही निर्विकार है तो आपका फिर ने स्वीकार हुई और जब आत्मा निर्विकार है तो विवाद भी ने विकास भी वो काल से परे हैं । लड करेंगे ने कहा जीवात्मा काल से परे किस भांति बीस में बोलना प्रारंभ कर दिया । कुमार का समय एक खंड है । जब काल अथवा समय भी प्रारंभ नहीं हुआ था तो पाँच अपना था । इतना प्रकाशनाथ जीवन अपमृत्यु तब एक ऊर्जा उत्पन्न हुई और उस ऊर्जा से ओमकार नाथ उत्पन्न हुआ जो पर बात पर है । वो काल से पूर्व था और काल के पश्चात भी होगा । परमात्मा वही है जिसने उस ऊर्जा को उत्पन्न किया और उनका नाथ की गूंज संपूर्ण जगत के प्राप्त हुई । जब परमात्मा काल से परे है तो आत्मा बच्ची बातें कभी काल से परे हैं था । अखबार अकाल से कोई भी संबंध नहीं है । ये था आपके प्रथम प्रश्न का उत्तर अब तो इतने प्रश्न पर मैं वापस आता हूँ । सुखों का कारण शरीर जीवात्मा के साथ रहते हुए अपने आंशिक पडे वहाँ आपका भोक करने उपरांत होना देख प्राप्ति करते हैं । इस नहीं देर में उसे अपने पिछले सूक्ष्म शरीर से इंद्रियों की चंचलता, मन की चंचलता, स्थिरता वह पत्ति प्राप्त होते हैं । कारण शरीर से उसे अपनी आदत है, प्राप्त होती हैं । इतना सुनने के उपरांत लाॅन्ड्रिंग ही अत्यंत आश्चर्यचकित थे कि किशोर को इतना क्या हम असंभव परन्तु सबकुछ उसकी अपनी आंखों के सामने ही घटित हो रहा था । इस तरह की चर्चा करते हैं । समय न जाने किस गति से व्यतीत हुआ कि रात्रि का दूसरा बहस समाप्त होने को था । लाॅन्ड्रिंग ही नहीं वार्ता को रोकने की प्रार्थना की और अपने दृष्टि चारों ओर घुमाकर कुछ कदम घूम कर पुनः आकर बैठ गया । जिज्ञासु बालक की भांति पूरा और ज्ञान के इच्छा से प्रमुख आर्थिक केंद्र को देखने लगा । साथ ही उसके मन में नया प्रश्न जागृत हो गया । कुमार प्रभु जब हमें सुक्ष्म शरीर प्राप्त हुआ वह कारण शरीर प्राप्त हुआ तो हमें पूर्वजन्म की स्मृतियों क्यों नहीं रहती हैं? पूर्वजन्म की प्रकृति अथवा आदतें था आपका तर्क सकते हैं । सूक्ष्म शरीर ही बुद्धि का क्षेत्र हैं । यदि सूक्ष्म शरीर का पूरा भोकने के उपरांत आगमन हुआ है तो बुद्धि को कुछ याद क्यों नहीं है । ठीक प्रभु जब जीवात्मा को शरीर से बाहर निकलना पडता है तब साथ ही पांचों प्राण भी शरीर का त्याग करते हैं । पांच उपकरण भी प्राणों के बाहर निकलते समय स्थूल शरीर को अत्यंत पीडा की अनुभूति होती है । शरीर वापस थी, बिना प्राणवायु के लकवाग्रस्त होने लगते हैं । स्कूल शरीर तो सब आ तो हो जाता है परंतु बुद्धि पर इसका इतना गंभीर प्रभाव होता है कि उसकी पूर्व इस प्रति नष्ट हो जाती है । ऐसा भी होता है कि कभी उल्टा हो जाता है । पहले प्राणवायु निकल जाती है और उसके तुरंत बाद ही जीवात्मा जब शरीर बुद्धि को उतनी पीया नहीं होती है अर्थात इस प्रकार की घटना प्राया अकालमृत्यु से होती है तब पूर्व स्मृति नष्ट नहीं होती है । अब ये नहीं सोचना की अकाल मृत्यु ही उचित है क्योंकि इससे पूर्व जन्म की संस्कृति तो रहेगी ही । अकालमृत्यु यदि दुर्घटना के कारण है तो उस पर आपका वर्ष नहीं है अन्यथा आत्महत्या तो आप है ।

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