Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
भाग - 15 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

भाग - 15 in Hindi

Share Kukufm
3 K Listens
AuthorOmjee Publication
S
Read More
Transcript
View transcript

मालिक शो का युद्ध के लिए तत्पर होना मालिक के सम्मुख सबसे बडा प्रश्न था की भी एक ऐसा राज्य खोजे जहाँ की जनसंख्या पर्याप्त हो ताकि उसको अपनी आवश्यकता के अनुसार महिलाएं प्राप्त हो जाये । अभी समस्या समाप्त नहीं हुई है बल्कि यहाँ से प्रारंभ हो रही है । यदि राज्य मिल भी जाए तो उसके पुरूषों को कैसे दूर किया जाए । बाल एक उनको अपने भोजन के रूप में उसका प्रयोग करना चाहते थे । साथ ही साथ ये भी नहीं चाहते थे कि उन्हें युद्ध करना पडे । करन युद्ध करने से उन का समाचार को श्रृंगा पूरा तक जा सकता था । वो अपनी तरफ से कोई गलती नहीं करना चाहते थे । जब उन्हें महिलाएं मिल जाए तो शिशु प्राप्त हो जाएंगे । परंतु इसके लिए सुरक्षित स्थान चाहिए जहाँ शिशु बडे हो सकें । इस प्रकार समस्याओं का अंबार था । जैसे योजना बनाना तो बहुत ही आसान कार्य है परन्तु उस पर क्रियान्वयन अत्यंत मतलब । इसी प्रकार मालिक विचारमंथन में लगे थे कि क्या और कैसे अब अनुकूलता प्राप्त हो । पर्याप्त खोज में विचार के उपरांत कलेक्शन शुरू नहीं एक योजना बनाई और उसकी योजना से सभी मालिक अप्रसन्न दिख रहे थे । सभी को प्रसन्न देखकर उसने कहा, आप सभी हमारी योजना वयुद्ध नीति से सहमत हैं ही महाराज । इतना सुनने के पश्चात मालिक शुरू नहीं कुम्भ हापुर नामक नगर जो मैच ही नदी के तट पर बसा था, उस और कोच करने का निर्देश दिया । मैच ही नदी के एक ओर और कुंभ हापुर और दूसरी तरफ पर्वत श्रृंखलाएं थी । वहां पहुंचकर मालिक सुनाई । सर्वप्रथम पर्वत श्रृंखलाओं को काटकर गुफाओं में परिवर्तित किया और कुछ ही दिनों में रहने योग्य स्थान में परिवर्तित कर दिया । कार्य इतनी सावधानी से किया गया कि कुंभ हापुर को कुछ भी खबर ना थी । इसके उपरांत मालिक शो नहीं अपने बच्चों से कहा आप सावधानीपूर्वक अपना देश बताइए जिससे कोई आपको पहचान ना सके । उसी समय में हमारे गुप्तचार पंपापुर से लौट रहे होंगे । इतनी चर्चा होगी रही थी कि गुप्तचर के आने की सूचना प्राप्त हुई । गुप्तचरों ने वहाँ के वेशभूषा का वर्णन किया और सात लाख हुए वस्तुओं को पहन कर दिखाया भी । इस प्रकार कुछ ही समय में सौ से अधिक मालिक कुम्भ हापुर जाने के लिए तत्पर थे । मालिक को समझाकर मालिक सोन आपने अगले जाल्को बिछाने में तक पर हो गया । मालिक सोने ही मैच ही नदी पार कर नगर में प्रवेश । क्या वे सभी अलग अलग पूरे नगर में विभाजित हो गए । कुछ ही समय में उन्होंने कार्य प्रारम्भ किया । एक मालिक स्वर्णकार के पास पहुंचा और उसने अपना आभूषण वह स्वर्णमुद्राएं दिखाई तो स्वर्ण का बोला आप इस नगर के तो नहीं प्रतीत हो रहे हैं? मालिक ने भय का प्रदर्शन किया और बोला नहीं नहीं मैं दूसरे नगर का हूँ, किस नगर के हैं । आप आभूषण वाप उतरा का मूल्य लगाएगी । आपको मेरा परिचय जानने की क्या आवश्यकता है? इतना सुनते ही स्वर्णकार के मन में लालच आ गया और वह मालिक को राजदंड से भयभीत करने लगा । इस प्रकार मालिक अपने कार्य में सफल हो गया और उसने स्वर्णकार से कहा शाम करें ये आभूषण मेरे ही है । परंतु मैंने इन्हें जहाँ से प्राप्त किया है वहाँ पर बहुत से आभूषण मुद्राएं आप भी प्राप्त कर सकते हैं । मैं प्राप्त कर सकता हूँ था बहुत उसके कृष विक्रता करूँ । कहीं और कोई न प्राप्त कर ले आप पहले मुझे इसका मूल्य नहीं तब मैं आपको वहाँ लेकर चल सकता हूँ । पहले स्वर्णकार अपने राज्य के मुद्रा नहीं देना चाहता था परंतु जब मालिक ने कहा कि यदि वह पकडा गया तो स्वर्णकार को इतने से ही संतोष करना होगा । स्वर्णकार ने आभूषण उसकी स्वर्णमुद्राएं रखी और उसके मूल्य के सामान अपने राज्य की मुद्रा दे दी । अब दोनों में दिखावे की मित्रता हो गई । तब मालिक शून्य अपना मूल कार्य प्रारम्भ किया और कहा आपने ही मैच ही नदी देखी है । हाँ, इस राज्य का प्रत्येक व्यक्ति उसको जानता है । इस नदी से क्या संबंध है? उस नदी के पार पर्वत श्रृंखलाओं पर एक ऐसा स्थान है जहाँ पर प्रत्येक पूर्णिमा वह उसके एक दिन पूर्व रात्रि के दूसरे प्रहर के प्रारंभ में आभूषण वहुत ट्रायल न जाने कहाँ से आ जाती हैं सारे । तब तो अभी कई दिन से हाँ जाती । पर्वत पर कहीं से आ जाती है तो अभी भी वही होंगी । आप पहले हमारी पूरी चर्चा सुने, दम बोले । साथ ही आप अपनी आवाज को धीरे रखे क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं । आपको इतने तीव्र स्वर में बोल रहे हैं । इतना सुनकर स्वर्णकार न केवल शांत हो गया बल्कि सावधानीपूर्वक इधर उधर देखने लगा । अब उसके मन में लालच का बीच पड चुका था । लालच लोग का मित्र है । लोग वो काम प्रोत् । ये चारों मनुष्य की पुत्री पर पर्दा डाल देते हैं । उसका विवेक उस पर्दे से ढक चाहता है कि वो चाहकर भी नहीं देख पाता । इस प्रकार स्वर्णकार सावधानीपूर्वक ना केवल इधर उधर देख रहा था बल्कि उसे ये भरा था कि किसी ने उसकी चर्चा न सुन ली हूँ तो उसने मालिक को अपने घर में रुकने के लिए कहा । कुछ ही समय में वह मालिक को लेकर अपने घर के लिए चल पडा । उसको मार्ग में लगने वाला समय अत्यंत भारी लग रहा था । मालिक उसके घर पर नहीं जाना चाहता था क्योंकि उसे बहुत से व्यक्तियों को मुर्ख बनाकर अपने जाल में फंसाना था । पता मालिक सुने मार्ग में ही एक वृक्ष के नीचे रुककर होना चर्चा प्रारंभ कर दी । आप कह रहे थे कि यदि अभी वहाँ चले तो आप ठीक है । यहाँ शांति है । हाँ, तो अभी वहाँ चलने में क्या हानि हो सकती है? मैं स्वतः कई बार वहाँ गया परंतु वहाँ पर स्वर्णभूषण मुद्राएं केवल माह में दो ही दिन मिलते हैं । शेष तीनों में न जाने कहाँ हो जाते हैं । साथ ही एक विशेष बात भी मैंने देखी है । वो क्या वहाँ पर महिलाओं का प्रवेश न हो अन्यथा आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा । इसका कारण मुझे पता नहीं । ऐसा क्यों होता है? स्वर्णकार तो अपनी पत्नी को वैसे ही नहीं ले जाना चाहता था क्योंकि यदि वह स्वर्ण लेकर जायेगा तो उसका महत्व घर में बहुत बढ जाएगा । अभी उसकी पत्नी उसे कम बुद्धि का व्यक्ति कहती है । अधिकतर पत्नियां अपने अपने पति को काम भी आती हैं । कारण अत्यंत पास कहने के कारण व्यक्ति वस्तु का स्थान घट जाता है । तब उसके मन में लोग लालच । वह परिवार को ये दिखाना कि वो कितना बुद्धिमान है । दोनों एक साथ चल रहे थे । आता मालिक का कार्य पूर्ण हो गया था । मालिक शून्य उससे विदा ली और आपने अगले आखिर पर लग गया । अभी पूर्णिमा को पंद्रह दिन से अधिक शीर्ष थे सभी मालिक शो ने किसी प्रकार अलग अलग स्थानों पर अपनी जो रणनीति अपनाई उसके अनुसार बहुत तीव्र गति से कुंभ हापुर नगर में ये चर्चा फैल गई की मैच ही नदी के पार पर्वत श्रृंखलाओं पर स्वर्ण भंडार है जो पूरनमासी उसके एक दिन पूर्व ही मिल सकता है । कोई भी किसी को बताना नहीं चाहता था परंतु प्रत्येक व्यक्ति धीरे धीरे करके जान चुका था । हर व्यक्ति अपने अपने घर में उस दिन बाहर जाने का बहाना कर रहा था । किसी भी महिला को कुछ भी पता नहीं था । जैसे ही वो दिन आया उस राज्य के सभी व्यक्ति यहाँ तक कि सैनिक मंत्री आदि सभी मैच ही नदी की ओर चल पडे । कितने आश्चर्य का विषय की सभी जा रहे हैं और कोई किसी से कुछ बता नहीं रहा है । इसी को माया कहते हैं सब उसी में लिप्त हो पतन की ओर चाहते हैं और सब अपने आप में यह प्रदर्शित करते हैं कि उनका पतन नहीं होगा । इसी प्रकार जीव माया में लिप्त हो पतन की ओर चल पडता है और दूसरे के पतन को देखकर भी वो नहीं चेतता करन जीतना पर दो माया ने पर्दा डाल दिया है । इस माया से यदि मुक्ति चाहते हैं तो एक उपाय हैं वो है निष्काम नहीं स्वार्थ शिवभक्ति नदी पार करते ही सभी समझ चुके थे कि सभी स्वर्ण आभूषणों व स्वर्ण मुद्राओं के तुम यहाँ आए हैं । सभी एक दूसरे से पहले पहुंचना चाहते थे । इसी कारण धीरे धीरे उनकी गति बढती जा रही थी । पैरों में गति, मन में उत्सुकता वह लोग परम सीमा तक पहुंच चुका था । परम सीमा के उपरांत जैसे चीज को मुक्ति मिलती है अथवा नहीं ये उसके कर्मों पर निर्भर करता है । इसी प्रकार यहाँ तो माया मुंह लोग चलित करती थी तो इसका अंत मुक्ति कैसे हो सकता है । अंततः संपूर्ण राज्य के पुरुष मालिक शो के जाल में फंस गए । मालिक सपने प्रथम कार्य में सफल हुई मालिक है । उत्पन्न करने हेतु बहुत से व्यक्तियों को अपना आहार बना लिया । सामान्य व्यक्तियों ने जब उसका बे बहुत स्वरूप देखा तो वे भयाक्रांत हो गए । उस भय के प्रभाव से कुंभ हापुर निवासी कहती होने के साथ मृतप्रायः थे । उसी रात मालिक होने संपूर्ण कुम बाबू पर बिना रक्तपात की अपना अधिकार कर लिया । पूरे राज्य के सभी महिलाएं अब इलेक्शन के लिए प्रयोगशाला का उपकरण बन चुकी थी । अगले ही दिन से मालिक उन्होंने अपना प्रयोग महिलाओं पर प्रारंभ कर दिया । व्यक्ति को समय से पूर्व क्षमता से अधिक सफलता भी हानि पहुंचा सकती है । अधिक सफलता आपको अतिउत्साहित कर देती है, जिससे आपकी सतर्कता में कमी आ जाती है । यहाँ पर भी यही हुआ । मालिक शाम अपनी सफलता बहुत उत्साह में फूल गए कि वे भी किसी के शक्ति है और सत्यता उन्होंने ही प्रारंभ की है । जीवन में सत्यता अंतिम चुनाव है क्योंकि ये वो स्थान है जहां से लौटना प्राया संभव नहीं होता । यदि आप लौट से भी है तो लौटने का मार्ग अत्यंत कठिन होता है । साथ ही उस मार्ग पर लौटा आपको सामान्यता दुख और अपराधबोध देता है और बार बार आपको यह प्रदर्शित करता है कि आपको शत्रुता नहीं करनी चाहिए थी । अब शांति ही उत्तम है बल्कि सर्वोत्तम है । अब जब मालिक ने तीन तीन बार आक्रमण किया तो स्वाभाविक ही है कीगो सिंगपुरा को मालिक शो की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए । जब शांति के सारे मार्ग बंद रहे हैं तो मात्र एक ही मार्गशीर्ष है वो है युद्ध और युद्ध में विजय गोरसिंग पूरा महाराज आशुतोष केन्द्र के नेतृत्व में अब जो था ना चाहते हुए भी योद्धा चाहता था । यह युद्ध उसकी अपनी सीमाओं के वृद्धि अथवा प्रभुता की वृद्धि है तो नहीं था बल्कि पृथ्वी वजन कल्याण के हेतु था । कारण स्पष्ट था के मालिक पृथ्वी के लिए नहीं पढे थे और उनको पृथ्वी पर शासन भी नहीं करना था । उनको पृथ्वी सही उच्च लोगों तक पहुंचने का ध्यान चाहिए था और अब कालवश चाहिए । इसके उपरांत हो सकता है कि वे पृथ्वी को तहस नहस करते हैं तथा उन्हें समाप्त करना ही एक शेष उपाय था । गुप्तचरों द्वारा जब पूर्ण वह सटीक जानकारी गो श्रृंगा पूरा को हो चुकी थी तब उन्होंने भी उसके अनुरूप अपनी तैयारी प्रारंभ की । दो ही दिनों में प्रमुख जी ने अपनी प्रयोगशाला में कई प्रयोग किए और उन अनुसंधानों से संतुष्ट भी दिखाई दे रहे थे । इधर दंडधारी, नंदेश्वर, वो जंगेश्वर आदि प्रमुख सेनापति अपने शस्त्रों को व्यवस्थित कर रहे थे । तीसरे ही दिन ये निर्णय लिया गया कि अब संपूर्ण तैयारी हो चुकने के उपरांत मैं अच्छी नदी पर उनको खेल लिया जाए । मुख्य व्यक्तियों ने पारस्परिक संयोजन से युद्धनीति का निर्णय लिया और युद्ध को आखिरी प्रारूप प्रदान किया । सर्वप्रथम गडों के साथ कार्तिक केंद्र को कुंभ हापुर भेजा गया । ये करण अपना वेश बदलने में पूर्ण तैयार सक्षम थी । पंपापुर के एक एक घर पे वो पहुंचने लगे । वहाँ पहले से उपस् थित मालिक सावधान नहीं थी । इस तरह बडों ने दो दिनों में ही अपना कार्य सुना कर लिया और बहुत ही सावधानी से वापस लौट है । गन ओवर कुमार कार्तिक केन्द्र के आने के उपरांत पूरा सैन्यबल मैच ही नदी के दोनों किनारों पर व्यवस्थित होने के लिए तत्पर था । विशेष रत जो गति पकडते ही भूमि से ऊपर उठ जाते थे, उनको भी तत्पर किया गया । एक रख पर पोलक व्यवस्थित कर दिया गया और उसे नदी के तट पर पहुंचा दिया गया । संपूर्ण युद्ध संचालन प्रभु आशुतोष केंद्र स्वयं ही कर रहे थे । रात्रि का दूसरा पहना था । सभी प्रमुख व्यक्ति आशुतोष केन्द्र के शिविर में उपस्थित थे । तब आशुतोष केंद्र महाराज ने कहना प्रारम्भ किया, आज रात्रि को ही स्कूल आपको ही मैच ही नदी में स्थिर करना होगा । हमें अपनी सेना को दो भागों में विभक्त करना होगा । आधी सेना नदी के एक तरफ और शेष दूसरी तरह प्रमुख सुनेगा प्रभु संपूर्ण युद्ध तो गोलक प्राप्ति के लिए ही हो रहा है । हमने सत्र के सामने ही को लाख रख दिया सम्मत कहाँ तो वो तो चल में छिपा है । कब हूँ आप तो जानते ही है यहाँ उनके लिए कोला खोजना कितना आसान होगा । प्रमुख सी उन्होंने कुंभ हापुर निवासियों को लालच फसा लिया तो क्या हमें गोला कल आलस नहीं देना चाहिए? ये भी न भूली के जीवन में कुछ तो खतरा लेना ही चाहिए । एहतियात सदर सुरक्षा कोई प्राथमिकता देंगे तो उन्नति व विजय होने की संभावना सुनने ही रहेगी । यह युद्ध नहीं करेंगे तो विजय कहाँ से प्राप्त होगी तब हो तब तो कोई अलग उनके सम्मुखी रखा जाए । नहीं ऐसा करने से उनको संदेह हो सकता है । कितनी महत्वपूर्ण वस्तु सामने? क्या ये कोई सडयंत्र तो नहीं और ध्यान दें कि हमें कोलक कोई जब हमें प्रयोग करना है रात्रि के समय कोलक को नदी में व्यवस्थित कर दिया गया । सेना को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया । सेना को इस प्रकार छुपाया गया कि मालिक शो को इसकी जानकारी न हो पाए । अब मालिक सौ से दूरी दो को से अधिक न थी । गडों के आ जाने से गोश सिंह का पूरा की क्षमता बहुत बढ गई थी । कुछ करो को वेश बदलकर कुंभ हापुर में मालिक शो के बदले रहने का निर्देश दिया । बाल बाल का समाचार प्राप्त हो रहा था । मालिक युद्ध के लिए तैयार नहीं थे । कारण स्पष्ट था कि उन्हें अपनी सैन्य संख्या बढानी थी । प्रभु युद्ध की प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे, ये कोई नहीं समझ पा रहा था । रात्रि को शिविर में चर्चा चल रही थी । यद्ध अब अत्यंत ही निकट है परन्तु कुछ प्रतीक्षा करनी होगी । प्रभु युद्ध के प्रतीक्षा से हमें खतरा हो सकता है । यदि मालिक को हमारी सूचना प्राप्त हो गई तो वे हम पर आक्रमण कर सकते हैं । इससे हमें क्या हानि? हम तो पहले से ही तक पर हैं । आप सभी विचार कर रहे हैं कि हम युद्ध की आज्ञा क्यों नहीं दे रहें । आप सभी कुछ प्रतीक्षा करें । आपको सब की आप हो जाएगा । माॅस् प्रतीक्षा में था कि कब उसे सूचना प्राप्त हो कि मालिक शिशुओं ने जन्म लेना प्रारंभ कर दिया है । प्रभु आशुतोष ेंद्र इस प्रतीक्षा में थे कि कब मालिक सोंग को क्रोध हाय और वो अपना काम निकाल ले और मेरा काम प्रारंभ हो जाए हूँ । हाँ,

share-icon

00:00
00:00