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शिव से शिवत्व तक - Part 22 in Hindi

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4 K Listens
AuthorOmjee Publication
शिव से शिवत्व तक | लेखक - आशुतोष Voiceover Artist : Shrikant Sinha Author : Ashutosh
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इधर महाराज शत्रु विजय के बहल के अंदर संकट के काले बादल छाए हैं और उधर नगर के बाहर भद्रा पर्वत की गुफाओं में मलेच्छों का विचार मंथन चल रहा है । विचारों के आदान प्रदान से बाल एक ये निष्कर्ष निकालने का प्रयास कर रहे हैं । शीघ्र अतिशीघ्र अपने उद्देश्य को इस प्रकार पूर्ण किया जा सकता है वाले हो बुलेट स्थविरो मालिक को संबोधित करते हुए महाराज मालिक शून्य का अब हम अपने उद्देश्य से अधिक दूर नहीं है । अतिशीघ्र हम लोग इस प्राम्भ बांड कि सर्वोच्च सत्ता पर आज सत्तारूढ हो में हमने जो विज्ञान के आविष्कार किए हैं, अभी उनका तोड पृथ्वी पर किसी के पास नहीं है । हम लोग संख्याबल में बहुत अधिक नहीं हैं । इसी कारण हमने शत्रु विजय को भयभीत करके उसके सैन्यबल पर आपका अधिकार कर लिया है । हम ने अपने पहले आक्रमण में सफलता प्राप्त कर ली होती तो वहाँ तो अपने बल एक्श सैनिक हताहत हुए हैं । वो भी अपने साथ ही होते हैं । अपना ट्रबल्ड सहायक करो वर्षों की मेहनत का परिणाम था । योग बहन से शत्रुओं का निकल जाना अपने लिए घातक सिद्ध हो गया । उसके उपरांत जो महल में चल पहले के कारण अपने बल एक छह सैनिक हताहत हो गए । बस इसी कारण मैं रोज से चल रहा हूँ । आप सभी अब देखेंगे कि हम किस प्रकार अपने उद्देश्य को पूर्ण करेंगे जाती । अब किसी को कुछ कहना है तो वो अपनी बात कह सकता है । मालिक शब्दम सेनापति ने कहा, बाहर आज हम सभी अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के अत्यंत निकट है । अब एक समस्या ये है । हम सभी शत्रु विजय के सैनिकों के कारण ही जीवित है । अभी तक शत्रु विजय, उसके सहयोगियों को अपने सैनिकों के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है । यदि हम लोगों ने अब अधिक विलंब किया तो हो सकता है कि सैनिकों के कहा होने की जानकारी शत्रु विजय या उसके सहयोगियों तक पहुंचाए । हमें अभिषेक अपना कार्य सिद्ध करना चाहिए । महाराज मालिक शून्य का ऍम सेनापति आप ही चिंतित हो रहे हैं । सर्वप्रथम तो मैंने इस प्रकार व्यवस्था की है तो विजय और उसके सहयोगियों को कुछ भी पता नहीं चलेगा । सैनिक तब गायब होते हैं जब वे अपने शिविरों से घर पहुंच चाहते हैं और घर से जब शिविर जा रहे होते हैं । इस प्रकार घर वालों को लगता है वे शिविर वापस जा चुके हैं और सात के साथ ही सैनिकों को ये भ्रम रहता है कि वह अभी घर से वापस नहीं लौटे । हमने तो विजय को इतना भयभीत कर दिया है की बहुत स्वास्थ भी लेता होगा तो ये विचार करता होगा कि अगली स्वास्थ्य बस पर उसका अधिकार है या नहीं । सेनापति बलिक शतम् ने मुस्कुराते हुए कहा आप सत्य कह रहे हैं महाराज अब अगली समस्या ये है कि हमने जो गुप्तचर भेजे थे उनकी कुछ भी सूचना नहीं है । इसे बीच सेनानायक मालिक, कुत्ता अपने स्थान पर खडा हुआ और बडी नम्रता के साथ अनुरोध किया महाराज प्रणाम जब याद किया हो तो मैं कुछ सुझाव दूं । हाँ हाँ, जब नहीं जल्दी हम पूरा नए गुप्तचर भेजें या शत्रु विजय के ही गुप्तचरों की सहायता से जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा करें । मालिक शोर नहीं कुछ विचार करने के उपरांत का क्यों मालिक शब्दम क्या कहते हो? मुझे तो ये विचार उत्तम लगता है । जब शत्रु विजय हमारे अधीन है और निश्चित ही उसको अपने शत्रु के विषय में जानकारी होगी, यही उचित रहेगा । आज रात से उस से भेंट करनी है । ये सूचना स्वाइन तो उसको अभिषेक घर तो सभा तुरंत ही विसर्जित हो जाते हैं । सेनापति महाराज शक तो विजय से मिलने के लिए निकल जाते हैं । शत्रु विजय जब ये सुनता है कि महाराज मालिक शिशु उससे आज रात से भेंट करने वाला है तब तो ये समझता है कि उस नहीं जो अत्यंत गोपनीय जानकारी प्राप्त की है, उसकी भनक मालिक शुकून को हो चुकी है । अब उसकी बहू, उसके राष्ट्रपति खैर नहीं वो अत्यंत भयभीत हो जाता है । जैसे ही माॅनसून उससे अपने शत्रु महाराज आशुतोष इंद्रा के विषय में पूछता है शत्रु विजय शीघ्रता से उसके विषय में सभी जानकारी दे देता है । इससे उसके सेनापति व महामंत्री पसंद नहीं है । परन्तु शक तो विजय प्रसन्न है कि उसने ये जानकारी देकर अपनी अपनी प्रजा की जीवन रक्षा कर ले । मालिक शो के जाने के उपरांत सेनापति अशवर धाम हुआ । महामंत्री कौशिक जी महाराष्ट्र को विजय से कहते हैं की आपको जानकारी नहीं देनी चाहिए थी । महाराजा सुतो शिंद्र नहीं कई युद्धों में आपकी सहायता की है और आपके उनके साथ इस प्रकार का व्यवहार किया महाराष्ट्र तो वहाँ मंत्री जी सेना पति चाहिए । आप लोग अपनी बुद्धि व विवेक का प्रयोग करें तब आपको सब प्रतिकूल वहाँ अनुकूल का ज्ञान होगा । अनुकूल प्रतिकूल का प्रश्न ही कहाँ रह गया है । सब प्रतिकूल ही हो गया है । अत्यंत दुखी मान के साथ उन्होंने कहा तब महाराज शत हुए जाने का आप दोनो पत्ते मान विवेकशील हैं । आपको इस प्रकार की अज्ञानता शोभा नहीं देती । आप दोनों बताएं तीस पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ योद्धा कौन है? कौन है इस पृथ्वी पर सबसे अधिक योगिक क्रियाओं का गया था दोनों एक साथ महाराज ये तो सभी जानते हैं कि उनका नाम आशुतोष इन रहे हैं महाराष्ट्र तो विजय ने कहा जब बाल एक शो के शत्रु महाराज आशुतोष इन रहे हैं तो इसका भी प्राइज हुआ या पूरा हमारे साथ ईश्वर आ गया है । सेनापति अश्वत हमने कहा महाराज, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ । आप क्या कहना चाहते हैं? बाल एक महाराज आशुतोष इंद्रा के शक्ति है । इससे इस्वर अपने साथ किस प्रकार आ गया? महामंत्री कौशिक चेन्नई का शबाब महाराज यदि आप आदेश दे तो मैं सेना पति जी को इस रहस्य के विषय में बताऊँ क्योंकि मैं इस विषय में समझ के आप अत्यंत ही उत्तम है । क्या आप समझ गए हैं तो महामंत्री कौशिक चीज का बाहर आज मेरा विचार किए हैं । यदि मालिक महाराज आशुतोष इंद्रा को अपना शत्रु बता रहे हैं तब मालिक शो का अंतर निश्चित है । उन के अंत से ही अपनी विजय मुक्ति दोनों का बार का प्रशस्त्र होगा सेनापति अश्वत्थ सामने कहा अति उत्तम महाराज मेरा एक व्यक्तिगत सुझाव है यदि आप आदेश करें जी से राप्ती कही क्या कहना चाहते हैं महाराज यदि हम अपना एक विशेष गुप्तचर महाराज आशुतोष इंद्रा की सेवा में भेजते और उन्हें यहाँ की वस्तु स्थिति से अवगत कराते हैं । इससे संभव है कि वे सब सेट हो जाएंगे । इसके उपरांत महाराज महामंत्री व सेनापति में कुछ गुप्त चर्चायें और इन चर्चाओं से तीनो महानुभाव प्रसन्न दिख रहे हैं । इधर शक्तों विजय से जानकारी प्राप्त करने के उपरांत धतरा पर्वत की गुफाओं में पुणा मालिक क्योंकि बैठक प्रारंभ हो गई । सर्वप्रथम मालिक शून्य सभा को संबोधित करना प्रारम्भ किया बाॅल अब वो समय आ गया है गैस की हमने बहुत शो तक प्रतीक्षा की है । अब हम सभी को विजय का तिलक अपने मस्तक पर लगाना है । साथ ही मैं ये भी सभी को अवगत कराना चाहता हूँ । किस विजय के उपरांत हम प्राम्भ भांडप विजय के पथ पर अग्रसर हो जाएंगे । अब हमारा विचार है कॅश क्षेत्र शत्रु विजय की । सेना के साथ युद्ध का पदार्पण करें कलेक्शन हमने कहा बाहर आज मेरे विचार से हम आशुतोष केंद्र से स्वतः ही बिना सत्यविजय महाराज की सेना की सहायता से युद्ध जीत सकते हैं । वाले छह शून्य का हाँ सेना पडती थी, निश्चित विजय प्राप्त कर सकते हैं । आप विचार कर रहे हैं । जब युद्धक बिना सहायता के ही विजय किया जा सकता है तब सत्रह विजय की सेना की क्या आवश्यकता है? जी महाराज आवश्यकता ही आवश्यकता है । सेनापति जी अब आप सब अभी इसका मूल कारण नहीं समझ पाए । यदि किसी को इसका मूल कारण समझ में आया हो तो बताए । कहीं से कुछ भी उत्तर ना पाकर बाॅधना प्रारम्भ किया । आप सभी जानते हैं युद्धमें हम निश्चित ही विजय श्री को प्राप्त करेंगे । क्या कारण हो सकता है की हमें युद्ध में पराजय कम वक्त देखना पडेगा । मालिक शुद्ध हमने कहा ऐसा नहीं हो सकता है । महाराज की हमें युद्ध में पराजय का मुंह देखना पडेगा । ये असंभव है । मालिक सोने का नहीं, सेनापति जी या संभव नहीं है था । यही निश्चित है कि उस की संभावना न कने । मैं उस न गन्ने संभावना को समाप्त करना चाहता हूँ । मालिक बहुत । मैंने कहा हाँ महाराज, इस प्रकार की संभावना मुझे भी प्रतीत नहीं हो रही है । मालिक सोने का नहीं, युद्ध में पराजय की संभावना आवश्यक है । हमें यह भी अवश्य ध्यान देना चाहिए वो आशुतोष केंद्र है शत्रु विजय सवाल कोई सामान्य राजा नहीं है इलेक्शन हमने कहा महाराज शमा जो महल पर, वही तो आशुतोष इंद्रा ही बीच में ही क्रोधित होते हुए माॅनसून ने कहा बहुत थे हीनता की चर्चा ना करो सेना पति जी वहाँ पर वो एकांतवास में था । योगध्यान की व्यवस्था व्यक्ति को शांत प्रवृति की ओर ले जाती है । साथ ही वहाँ पर उसका सैंड बाल भी नहीं था । अब हमें उसके संपूर्ण साइन ने बाल के साथ युद्ध करना है । उसके पास ऍम है, हम उससे युद्धमें तभी विजय हो सकते हैं जब यदि युद्ध एक ही दिवस में सब आप तो हो जाए अथवा अपने पास शत्रु विजय की सेना हूँ । मालिक शब्दम ने का शत्रु विजय की सेना वो क्या हम से अधिक शक्तिशाली है? इतना सुनते ही महाराज ऍम आपने लगा उसके हस्ते ही मालिक शरम के मस्तिष्क में बिजली कौन से आती है? वो समझ जाता है कि सेना का युद्ध में थोडा महत्व है । वो महाराष्ट्र से क्षमा मांगता है । महाराज आपकी जय हो । अब मैं समझ गया आपकी सोच सर्वश्रेष्ठ है । आप ही इस फ्राॅड के नायक बनने के लोग गए हैं । प्रभु द्वारा युद्ध की तैयारी एक तरफ मालिक प्रभु आशुतोष इंद्रा महाराज की खोज का प्रयास कर रहे थे और दूसरी तरफ प्रभु सेना प्रमुख मालिक शो के विषय में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे । दंडधारी नंदीश्वर के विशेष को पचास चारों दिशाओं में प्रयासरत है परन्तु सफलता तो उसी को प्राप्त होती है जिसको िश्वत चाहता है । सभी सभा कक्ष में उपस्थित थे । सभी का लक्ष्य अभी भी वही केंद्रित था कि मालिक कहाँ है, पृथ्वी पर अथवा पृथ्वी से परे । इस पर सभी अपना अपना दृष्टिकोण अपना रहे थे । कोई भी पूर्ण रूप से सत्य के निकट नहीं था अथवा वह स्वतः ही जान रहा था कि वह सत्य के निकट है अथवा दूर । एक परिणाम प्रयोगशाला से प्रमुख सी अवश्य लेकर आए थे जिसमें युद्ध नीति के निर्धारण में अत्यंत सहायता की । अब सभी युद्ध नीति के विषय में अपना अपना दृष्टिकोण रख रहे थे । सर्वप्रथम प्रमुख सी कहना प्रारम्भ किया अब पर एक्शन का विश्लेषण करने के उपरांत जो निष्कर्ष निकला है उससे युद्धनीति निर्धारित करने में अत्यंत सहायता मिलेगी । डंडधार सीने का किस प्रकार का निष्कर्ष निकला है प्रमुख जी प्रमुख चेने प्रभु की तरफ देखते हुए कहा, तब तो हमारा शत्रु निश्चित ही बहुत शक्तिशाली है । उस को पराजित करने के लिए हमें बहुत ही बुद्धिमानी वक्त है । जैसे कार्य करना होगा । हम उसको युद्ध में किस प्रकार पराजित करेंगे, ये विचार हम सभी को मिलकर करता होगा । मेरा विश्लेषण कहता है यदि उसको तीन राहत तक मानव भोजन के रूप में प्राप्त न हो तो उसकी कोशिकाएं अपने आप स्वता ही विखंडित होने लगती है । उनका जो असीमित बाल प्रभु ने देखा था, वो उन्हीं कोशिकाओं के कारण था । अब युद्धनीति आप सभी मिलकर निश्चित करें । दण्डक हारने का प्रभु शमा करें क्योंकि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ, उससे सभी को धक्का पहुंचेगा । इस प्रकार तो हम कभी भी युद्ध जीत नहीं पाएंगे क्योंकि युद्ध में तो वो हमारे सैनिकों को ग्रास बनाते जाएंगे और अधिक शक्तिशाली होते जाएंगे । इस बात पर एक तरह से तो सभी सहमत थे और किसी के मन में किसी प्रकार की युक्ति नहीं सूझ रही थी । अब सभी मार्गों पर अवरोध ही प्रतीत हो रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ईश्वर ने सभी मार्गों को बंद कर दिया है । कब प्रमुख चेंज कहना प्रारम्भ किया हूँ, ऐसा भ्रम हो रहा है । केश्वर ने सभी मार्ग बंद कर दिए हैं । तभी कुमार गजेंद्र नहीं कहा । यदि हमारे मार्ग बंद हैं तब हम उनके मार्ग बंद करते । ये कहकर कुमार नरेन्द्र शांत होगी । किसी को भी कुछ समझ में नहीं आया । तब प्रभु ने पूछा गवेन्द्र क्या कहना चाह रहे पिताश्री यदि हम उनका मार्ग बंद करते हैं, इतना कहना था कि प्रभु के मुख पर मुस्कान आ गई और उन्होंने धीरे से अपना मस्तक खिलाए । फिर प्रमुख जी दंड आधारभूत चंदेश्वर वन नंदीश्वर की ओर देख कर बोल रहे हैं । ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कुमार घनेन्द्र समस्या का समाधान निकाल लिया है । परन्तु अभी भी किसी भी महानुभाव को ये ध्यान नहीं हुआ । गगनेन्द्र का तात्पर्य क्या था? और प्रभु ने उसका क्या भावार्थ निकाला । दंड हारने का प्रभु संभाव्यता हम में से कोई भी ये समझ नहीं पाया कि कुमार गजेंद्र का क्या भाव था । प्रभु मुस्कुराकर बोले ढंड थी कुमार गणतंत्र नहीं मात्र इतना ही कहा था यदि इस्वर ने अपना मार्ग अवरोधित किया है तो आप शत्रु का मार्ग अवरोधित कर रहे हैं । अब कुछ भावार्थ शाह भी नहीं, सभी एक दूसरे का मुकाबला लो काम कर रहे थे । किसी को कुछ भी समझ नहीं आया । तब प्रभु ने मात्र एक शब्द को जैसे ही उच्चारित किया सब सात हो । साधु कहने लगे वो शब्द था गरुड गरुण क्यूकि तोड किसी के पास नहीं थी । गरुड व्यूह का प्रयोग तो सामान्य था । तब क्या जाता है जब शत्रुसेना को आगे बढने से हूँ अथवा शत्रुसेना में आपने भी हितैषी हूँ जिन्हें बचाना हूँ । यहाँ चर्चा चल रही थी कि सभाकक्ष के बाहर से एक चिरपरिचित तीव्रत वाली सुनाई पडेंगे । सभी के कान खडे हो गए । सभी के मुख से एक ही शब्द निकलता है आन चलेंगे । इस समय तुरंत सभी सभागार के परकोटे पर आए तो देखा आंचलिक हवा में सभागार के पास ही हो रहा है । आंध्र लिखने सभी को देखा । वो बहुत ही आसानी से परकोटे की छत पर आ गया । वो सभी की तरफ देख रहा था । धीरे धीरे चलकर वो प्रभु के सभी पाया । उसने चरणों में प्रणाम किया । प्रभु ने उसके मस्त मस्त से लेकर पीठ तक हाथ फेरा । हाथ फेरने से वो इतना दिक्कत हो गया कि उसकी आंखों से अश्रु बहने ले । तब प्रभु ने उससे कहा हाँ चलेगा क्या हुआ इतने भावविभोर? प्रभु समझ गए थे क्या आंचलिक आज को अच्छा देखी? हाँ विभोर हो गया था । संभव का कुछ कारण रहा होगा कि किसी ने मेरे प्रभु के विषय में अच्छा आचरन न प्रदर्शित किया हो या ये भी हो सकता है कि कोई मुझे क्षति पहुंचाने के विषय में विचार कर रहा हूँ और आंचलिक ने ये देख लिया हूँ कब एका एक प्रभु के मस्तिष्क में विद्युत पहुँच गई । उन्होंने संकेत से प्रमुख जी को आगे बुलाया । संकेत पाकर जैसे ही प्रमुख चीज प्रभु के पास आए आंचलिक समझ गया । अब बस ने भाव वह हेल्पिया भी व्यक्ति का समय समाप्त ही है । अब कार्य का समय प्रारम्भ हो चुका है । उसने प्रभु को पुणा प्रणाम किया और अपने मुख्य चौं वह पंजों की शब्दावली से वो प्रमुख जी को को प्रसन्न केते रहा था । कभी वो अपनी चोंच भूमि पर आघात करता, कभी अपनी रीवा को बायें केवल ऍम कभी अपने पंजों को भूमि पर पटकता मानव की वो सब कुछ कह देना चाहता है । इस घटना के प्रदर्शन से वो बहुत उत्साहित प्रतीत हो रहा है । आंचलिक की मुंगवानी उसके करूँ प्रमुख सीने लगभग पूर्ण रूप से समझ ली थी । उनके मुखमण्डल की आपका भी उत्साह प्रदर्शित कर रही थी । उन्होंने अब अंजलि को वापस जाने के लिए पुणा समय समय पर उपस् थित होने का आदेश दिया । आदेश प्राप्त होते हैं वो वापस आकाश में देखने लगा । उसके जाते ही पूरा सभी सभाकक्ष में उपस् थित थे । अब प्रमुख के के पास कुछ नहीं जानकारी का उपलब्ध थी । प्रमुख जी ने खडे होकर बोलना प्रारम्भ किया । तब सभी को प्रतीत हुआ कि अब युद्ध निकट है । प्रमुख जी ने कहा प्रभु आंचलिक जो गुप्त संदेश लेकर आया था, उससे स्पष्ट हो गया है कि बुलेट अपनी राजधानी से बहुत अधिक दूरी पर नहीं है । क्या गुप्त संदेश था सब विस्तारपूर्वक कहें जिससे अब युद्ध नीति निर्धारण करने का पर्याप्त समय मिले प्रमुख लेने का । आंचलिक के अनुसार उसने यहाँ से सौ को उस की दूरी पर मालिक को देखा है दण्डक हारने का परन्तु उसने मालिक को पहचाना कैसे? प्रमुख से बिना कुछ कहे जब कुछ क्षण तक डंडधार जी को देखते रहेंगे तब डंडधार जी को लगा कि उनको कुछ बोलना नहीं चाहिए । प्रमुख तो स्वतः ही सब बता ही रहे थे । डंडधार जीने प्रमुख जी से क्षमा मांगी । वह कहा की वो अपना कथन जाती रखे प्रमुख जीने का प्रभाव शत्रु की दूरी का यदि समय से आकलन करें तो वह पंद्रह दिन से अधिक दूर नहीं है । आंचलिक ने वन मार्ग से जाते हुए कुछ सैनिकों को जब मालिक द्वारा शिकार बनाते हुए देखा तब वो जान गया कि वे मालिक सही हैं । वो जंगेश्वर ने कहा था सैनिकों को स्वीकार बनाया और खात मालिक वहाँ के राजा से सीधे बगैर मूल ले रहे हैं । वे तो यहाँ के सामान्य नागरिकों को भी अपना शिकार बना सकते थे । प्रमुख जी ने कहा हाँ नागरिक आसान शिकार थे । अब ऐसा क्यों हो रहा है इसका कारण नंदेश्वर ने कहा सम्भवता इस कारण ऐसा हो रहा है की उन्होंने वहाँ के राजा को बंधक बना लिया । सामान्य नागरिकों के साथ कुछ होगा तो नगर में आशांति वहाँ अराजकता फैल सकती है । दण्डक हारने कहा । याद सैनिकों के साथ ही होगा तो सैनिक भी तो विद्रोह कर सकते हैं । नंदेश्वर ने कहा हाँ हो सकते हैं परंतु हाँ यदि राजा सैनिकों के गायब होने को शत्रु की चाल कहता रहे तब डंडधार ने कहा हाँ, तब कुछ समय तो सैनिक यही समझेंगे कि शत्रुओं का कार्य है हाँ ये हो सकता है चर्चा परिचर्चा चल ही रही थी की आवश्यक सूचना प्राप्त हुई कि राजा शतकों विजय का विशेष दूर अविलंब मिलने को आतुर है हूँ ।

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