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सभी की प्रसन्नता था । करन भी नाम नहीं था । दोनों कुमार इसलिए प्रसन्न थे कि बहुत समय से वे अपने माता पिता से इस बात का आग्रह कर रहे थे कि वे अपने पिता के साथ अपनी राजधानी जाना चाहते हैं । इससे उनकी यात्रा भी हो जाएगी और जो उन्होंने राजधानी के विषय में बहुत से कहानियाँ सुनी है । उनको समेत से देख नहीं वह समझने का अवसर प्राप्त होगा । भोजन केश्वर वतन रखा था इसलिए प्रसन्न थी कि चल रही शत्रु का पता चल सकेगा । जिस शत्रु के दिशा में एकता सुना है और अभी तक पूर्ण रूप से उस के विषय में जानकारी नहीं प्राप्त है, उस के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी । उससे जो युद्ध होगा तब को भी इस बात का पता चलेगा कि हमारे प्रभु पर आक्रमण करने का परिणाम क्या होता है? प्रमुख कि शव परीक्षण वह अपने परिणामों के विषय में सोच रहे हैं । बहुत समय से वे गोसलिंग पूरा नहीं गए थे और वहीं पर मुख्य प्रयोगशाला है । उन्हें याद आया कि बहुत से प्रयोगों पर उन्होंने अपने सहायको को कार्य करने का निर्देश दिया था सम्भवता अब तक उसमें से भी कुछ एक परिणाम आ चुका होगा । इस सभी के विषय में सोचते हुए वे प्रसन्न थे । माँ और प्रभु मात्र इसलिए प्रसन्न थी कि उन्होंने देखा कि सभी प्रसन्न नहीं । राजा वक्त पिता कभी अपनी प्रसन्नता से प्रसन्ना नहीं होता । वो सदैव प्रचार वसंता की प्रसन्नता को देखकर प्रसन्न होता है । यहाँ भी वही बात थी । यात्रा सबूत धीरे धीरे आगे बढ रहा था । अभी अशोक की गति बहुत ही कम थी । अब धीरे धीरे समूह योग महल से दूर होने लगा था । लगभग दो कोस की दूरी तय हो गई थी । अब समूह ऐसे बार का पर आ चुका था जहाँ एक तरफ पर्वत श्रृंखला थी और एक तरफ बहुत ही गति से पैदा हुई सत्ता नहीं राजनाति । धीरे धीरे अशोक की गति बढ रही थी और जो विशेष पांच रत थे अब उन के पहले भूमि सही उठ चुके थे । इन पांचों रथों पर सवार को यात्रा में कुछ भी समस्या नहीं हो रही थी जबकि मार्ग पूर्ण रूप से समतल नहीं था । अब साइन होने वाली थी । सभी ने ये सुरक्षित स्थान देखकर रात से विश्राम का निर्णय लिया । सभी सैनिक सेवक शिविरों की व्यवस्था में लग गए और देखते ही देखते हैं कुछ समय में शिविरों की समुचित व्यवस्था हो गई । प्रमुख भी अपने शिविर से निकलकर प्रभु के शिविर में पहुंचे तो प्रभु ने उनसे कहा, प्रमुख सी आपके विशेष रथ तो बहुत ही विशेष है । ये पहले तो हमारे पास नहीं थे भी । प्रभु पहले इस पर शोध चल रहा था । बहुत वर्षों के शोध के उपरांत ये बन सके हैं । इन का महत्व तब विशेष हो जाता है प्रभु जब मार्ग समतल ना हो इसमें अशोक को अतिरिक्त बल नहीं लगाना पडता माने का प्रमुख जी ये किस प्रकार कमी को छोडकर ऊपर हो जाते हैं । प्रमुख जी ने कहा जीमा ये सब चुंबकत्व वहाँ प्रति चुंबकत्व का सामंजस्य हैं । इस पर विज्ञान है वहाँ इस ब्रम्हांड में विज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । सबसे उत्तम ज्ञान ही है और ज्ञान में भी विज्ञान है प्रभु निसंदेह ज्ञान सर्वोपरि है परन्तु मेरे विचार से ज्ञान होना चाहिए जो आपको भ्रमण के समीप ले जाए ना कि प्राम्भ से । तो प्रमुख ने कहा आप सत्य कह रहे हैं प्रभु मैंने कहा प्रमुख थी मेरी बात तो वहीं शेष रह गई । किरत भूमि से किस प्रकार उठ जाता है प्रमुख जी ने कहा माँ क्षमा चाहता हूँ आपकी बात का उत्तर ना दे सका और विषय परिवर्तित हो गया । आप ध्यान से सुनी मैं से समझाने का प्रयास करता हूँ । प्रमुख चीज इसमें यदि कोई समस्या हो अथवा इसमें कोई इस प्रकार का रहस्य हो की बताना उचित न हो तो आप इसे रहने दीजिए । नहीं प्रभु अहसा कौनसा रहस्य है जो आप से अधिक है । एक समय ऐसा आएगा जब आप इस ब्रम्हांड में सर्वाधिक रहस्य में हो जाएंगे । मेरा विज्ञान कभी गलत नहीं होता । हर रहस्य आपके समकक्ष क्षुद्र होगा । प्रभु ने कहा नहीं प्रमुख चीज आप मुझे मनुष्य ही रहने दे । प्रमुख से ने कहा तब हो विशेष रथों के । अब हात में जहाँ स्वच्छ होते जाते हैं, उसके ठीक बीचोबीच जुमे के नीचे की तरफ एक मिश्रधातु का पहिया लगा है जो सदैव भूमि पर रहता है । वो पहिया जब घूमता है तो चुंबकीय प्रभाव पैदा होता है । पीछे के दोनों पहियों में भी चुंबकीय प्रभाव के गुना है । साथ ही दोनों पीछे के पहले के बीचोंबीच एक हाथों का संदूक मुलायम तो जुडा हुआ है । जब अगला पहिया घूमता है तो एक विशेष गति प्राप्त होने के बाद पीछे के पहियों में चुंबकीय प्रभाव बढ जाता है और पीछे पहियों के घूमने से मध्य में स्थित संदू जमा यंत्र प्रति चुंबकीय प्रभाव प्रदर्शित करता है जिससे रत पृथ्वी के आकर्षण प्रभाव के विपरीत ऊपर की तरफ कोर्स जाना है । एक दूरी तक उठने के बाद भारतीय प्रतिकर्षण के बीच साम्यावस्था स्थापित हो जाती है जिससे रत हवा में स्थिर हो जाता है । अब भी पिछले पहिए घूमते रहते हैं जबकि वो हवा में रहते हैं । अगला पहिया सतह भूमि पर रहता है और पूरा रात सतह हवा में स्थित रहता है । जब रात की गति कम हो जाती है अथवा रत रुक जाता है तब आग्रह पहिया भी इस फिर हो जाता है । अगर आप ये के स्थिर होने से चुंबकत्व का प्रभाव समाप्त हो जाता है, औरत भूमि पर वापस आ जाता है । रथ में रखा हुआ खोला माने का प्रमुख थी । यदि सारथी कभी चाहे कीरथ भूमि पर ही रहे, हवा में न जाए तो क्या इस की भी व्यवस्था है । जीमा इस की भी व्यवस्था है और ये तो अत्यंत आवश्यक था इस की आवश्यकता युद्ध में हो सकती है । जहाँ सारथी का स्थान होता है ठीक उसके आगे ही नीचे की दिशा में वो मिश्र धातु पहिया लगा है । जब साथ ही चाहे की रत को भूमि पर रखा तब वो अपने आगे लगे एक खातों क्षण को ऊपर की दिशा में उठाते जिससे वो पहिया भूमि से ऊपर उठ जाएगा और उसके उठते ही उसकी गति कम होने लगेगी और गति के रुकते ही उसका चुंबकीय प्रभाव समाप्त हो जाएगा और रत भूमि पर वापस आ जाएगा । आपने कहा युद्ध में इस की आवश्यकता हो सकती है । मैं समझ गया परन्तु इसके लिए सारथी बहुत ही योग के होना चाहिए । प्रभु ने कहा माने का हर साल थी उससे क्या अंतर पडेगा । प्रभु ने फिर कहा सारथी महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । रत को किस दिशा मिल ले जाना है, किस गति से चलाना है, गति कब फिर या कम करनी है ये सभी बातें सारथी को ही सोच नहीं । यदि युद्ध था इस विषय में विचार करेगा तो वह पूर्ण स्वतंत्र होकर युद्ध नहीं कर सकेगा । इससे उसकी विजय पर शंका हो सकती है । मारने का ये तो सब ठीक है परंतु रख भूमि पर रहने या ऊपर उठने से युद्ध पर क्या प्रभाव पड सकता है । प्रभु ने कहा ये युद्ध होने पर आपको स्वता दिखाई देगा । कुछ प्रतीक्षा करें । अभी चर्चा परिचर्चा समाप्त होने ही जा रही थी कि धंडा आधार ने प्रवेश की अनुमति मांगी । बाहर सुरक्षा में उपस्थित सैनिक प्रवेश की अनुमति मांगने आया तब प्रभु के अंतर मन में कौतूहल न जाने विशेष हूँ । आते ही दंडधारी प्रणाम किया और जो कहना प्रारम्भ क्या उससे सभी एक बार पुणा सतर्क हो गए और सुख की पुष्टि भी हो गई कि जब तक शत्रु का समूल नाश हो जाए, आप सतह जब स्थिति में बने रहे अथवा शत्रु कभी भी चोट खाये सर्व की भांति पुनः आपका बन कर सकता है । यहाँ तो विषय और भी गंभीर है कि अभी शत्रु के दिशा में कुछ भी नहीं पता । तब सावधानी बहुत अधिक वहाँ बहुत विवेकपूर्ण ढंग से रखनी होगी अथवा पराजय के साथ सत्य भी निश्चित है । दंडात् हाथ ने कहा प्रभु अभी इस प्रकार की सूचना प्राप्त हुई है । आपकी दादी के पास जंगलों में कोई है जो हमारी निगरानी कर रहा है । कितने व्यक्ति हैं और ऐसे व्यक्ति है ये तो पूर्ण रूप से नहीं किया है, परंतु मैंने अपना गुप्तचार विभाग तत्पर कर दिया है । अभी वे हम पर केंद्रित कर रहे हैं और पीछे से हमारे गुप्तचर उन पर ध्यान केंद्रित करेंगे । प्रमुख जी की ओर देखते हुए प्रभु ने का क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए? रात्रि में ही बंदी बना लिया जाए या रात तक प्रतीक्षा की जाएगी या मृत्यु की गोद में सुला दिया जाएगा । प्रमुख जी ने कहा, प्रभु रात तक प्रतीक्षा की जाएगी और ये देखा जाए कि रात्रि को हुई क्या जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं । ये भी संभव है कि वे मात्रा आप तक पहुंचना चाहते हो अथवा हमारा मार्ग ज्ञात करने आया हूँ कि हम कहाँ प्रस्थान कर रहे हैं । ये भी हो सकता है कि वे उसको लत के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं । कुछ भी हूँ मेरे मत के अनुसार जब वे हमारे परिक्षेत्र में आ गए हैं और हमें ज्ञात ही हो गया है तो प्रतीक्षा सर्वाधिक उचित रहेगी । दण्डक हारने का प्रभु मैंने अक्सर ऐसा यही निर्देश दिया है । मैंने मात्र आदेश प्राप्त करना उचित समझा कि कहीं कुछ अनुचित हो जाएगा । इसके बाद तुरंत ही दंड आधार शिविर के बाहर जाने को था कि प्रभु ने का दंडधारी थी । अभी केवल सैनिकों से सावधान रहने को कहीं और कुछ भी किसी से न कहीं नहीं तो अपरिचित स्थान पर भगदड मच सकती है । इस आदेश को प्राप्त करने के उपरांत दंड था शिविर के बाहर चला गया । प्रत्येक मुख्य शिविर में सावधानी का वातावरण था । सभी अपने अपने अस्त्र शस्त्रों के साथ चौकन्ने थे । अब सेना के प्रमुख व्यक्तियों के लिए रात्रिविश्राम असंभव था । सेना को कोई भी जानकारी नहीं दी गई । डंडधार अपने शिविर में ही थे । अब ये शिविर से बाहर नहीं जा सकते थे क्योंकि जो भी प्राप्त सूचना होगी वो उन तक तभी आसानी से आता है कि जब वही अपने शुरुआत में या अस्थायी स्थान पर ही रहेंगे । थोडी थोडी देर के अंतराल पर गुप्त सूचनाएं उन्हें प्राप्त हो रही थी । वो अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच गए । अब उन्होंने अपने सेवकों से कहा कि वे अब प्रभु के शिविर में जा रहे हैं । अच्छा आने वाले गुप्तचरों को वहीं भेज दिया जाए । इतना कहने के पश्चात वे प्रभु के शिविर में आप पहुंचे यहाँ पर प्रमुख से भी उपस्थित थे । उनके आते ही प्रभु ने उनसे पूछा, दण्डक हारसी, आप यहाँ आपको तो अपने शिविर क्या सुरक्षा व्यवस्था में होना चाहिए था? प्रभु सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चाक चौबंद हैं । आप उसकी चिंता न करें । उस व्यवस्था में जंगेश्वर दी स्वतः ही अग्रसर हैं । मैं आपके समक्ष इसके उपर स्थित क्योंकि अकेले मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा था । अब जब गुप्त सूचनाएं गुप्तचरों द्वारा आएगी तब आपके सहयोग से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन न होगा । इस पर प्रभु ने अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करना नहीं बल्कि मौन रहकर अपनी स्वीट देती प्रदर्शित करती । परन्तु जबसे दंडा था प्रभु के शिविर में आए तब से एक भी सूचना प्राप्त नहीं हुई । प्रतीक्षा का एक एक पल, एक एक युग समान प्रतीत होता है । इस पल की अवधि और भी लंबी हो जाती है जब प्रतीक्षा का समय बढता जाता है । यहां पर भी ऐसा ही हो रहा था । सभी बिना कुछ कहे एक दूसरे का मुख देख रहे थे और कर भी क्या सकते थे । अंततः एक गुप्त संदेश प्राप्त हुआ एक गुप्तचर प्रवेश की । आप क्या चाहता है? दंड आधार ने बिना विलंब के उसे आने की आप क्या थी? उसके प्रवेश करते ही और उसके मुख्य मंडल की भाव भंगिमा देखते ही ये खान हो गया कि कुछ अच्छी सूचना नहीं दंडधारी हूँ । अपना आधार होने वाले ही थे कि बीस में प्रमुख जी ने बोला प्रारम्भ किया गुप्तचार तात्कालिक सोचना क्या है? श्रीमान सूचना सुन नहीं है । गुप्तचर शत्रुओं पर लगातार दृष्टि रखे हुए थे और एक का एक शत्रु न जाने कहां ओझल हो गए । ठंडा था, ओझल हो गए असाद तुम सब वहाँ क्या कर रहे थे? गुप्तचर अपना मुख्य नीचे झुकाकर खडा हो गया । इधर प्रभु ने अपनी दोनों आंखों बंद किया हुआ हैं परन्तु चेहरे के भाव अस्पष्ट थी कि कुछ प्रश्न करने वाले हैं । गुप्तचार क्या तुमने स्वता उनको देखा है और उनकी संख्या क्या रही होगी? जब वो मैंने स्वता उनको देखा है । वे संख्या में दो थे, बहुत अच्छा है वो देखने में किस प्रकार की थी और उनकी वेशभूषा प्रभु वे रात्रि के समय स्पष्ट नहीं दिख रहे थे परन्तु जितना हमने देखा वे हमारे सामान ही वेशभूषा पहने हुए थे और कद काठी में भी हम लोगों के ही समान थे । हम लोग जब उसके पीछे या उनके चारों तरफ थे तब ये किस प्रकार तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो गए तब हूँ हम लोग लगातार उन पर दृष्टि गडाए हुए थे । एक स्थान पर नदी के बगल से जब वे उतरे तब से भी पुणे दिखाई नहीं पडेगी । हम लोग होता है या शरीर में हैं कि उन्हें जमीन खा गए अथवा आसमान निकल गया हूँ । मैं सोचा इसका कारण न जान सकता हूँ प्रभु मेरा संपूर्ण जीवन इसी प्रकार के कार्यों में व्यतीत हुआ है । वो गुप्तचर कुछ और कहना चाहता था परंतु दण्डक हार चीज नहीं । उसे बीच में ही रोक दिया और जाने को कहा । उसके जाने के उपरांत अभी आपस में विचार विमर्श करने लगे । तब प्रमुख जी ने कहना प्रारम्भ किया, गुप्तचरों के हाथ शत्रुओं का निकल जाना अच्छा संकेत नहीं है । हमें अब अत्यंत सावधानीपूर्वक रात्रि को पहला देना होगा । साथ ही यहाँ से प्रस्थान करने के लिए पूरे मार्ग पर अब पहले से अधिक चौकन्ना रहना होगा । डंडधार ने कहा, प्रमुख अपना गुप्तचर बहुत ही अनुभवी है । आज तक उसने कभी धोखा नहीं खाया । सदैव ये कार्यों को समय से पूर्व ही पूर्ण किया है । इसलिए इसे कोई दंडा नहीं दिया जाए अथवा इतना महत्वपूर्ण कार्य नहीं दंडधारी । इस कार्य के लिए दंड का प्रावधान सही नहीं है । संभव है आपके शत्रु वहाँ के गुप्त मार्गों से भलीभांति, परिचित और अपने गुप्तचरों के लिए या स्थान नवीन है । इस प्रकार उनका दोस्त उतना अधिक नहीं है । वे दंड के भागीदार । यदि वे शत्रु के गुप्तचार क्या अनुचर हैं तो वे अवश्य ही हम पर आक्रमण करेंगे अथवा हमारी सूचना एकत्रित करने का प्रयास करेंगे । अब हम पहले से अधिक सजग रहेंगे । इसी प्रकार चर्चा परिचर्चा करते हुए रात्रि व्यतीत हो गई । सभी अपने नित्यकर्म करने के बाद आगे की यात्रा की तैयारी कर रहे थे । प्रमुख प्रभुजी डंडधार भोजन गई स्वर वह कुछ मुख्य गुप्तचरों के बस सिस्टम में अभी रात्रि के चर्चा थी । अपने अपने मन में विचार हो रहा था कि यदि गुप्तचर शत्रु अपने हाथ आ जाते हैं तो संभावना कुछ रहस्य पता चलता हूँ । आगे की यात्रा अब पुणा प्रारंभ की जाती है । सभी अपने अपने क्रम के अनुसार सुरक्षा दृष्टि को अपनाते हुए आगे चलना प्रारंभ करने हैं । मार्गन लगभग उसी प्रकार का था । एक तरफ पर्वत श्रृंखला और दूसरी तरफ तेज गति से बहते हुए हैं । सादा नहीं रहा । पूरा समूह धीरे धीरे आगे की तरफ बढा रहा है । सभी आपस में मानसिक सामंजस्य स्थापित हुए । दृश्य अत्यंत ही मनोहारी है परन्तु रिश्ते की सुंदरता मन की शांति से होती है । उसी स्थान पर जब मन शांत हूँ तो उसकी सुंदरता का आप खास नहीं होता । एक का एक अंजली जो कोस भारतीय ऊंचाई पर पूछ रहा था, उसकी उडने की शैली में परिवर्तन आ गया उसके उन्हें की शैली प्रमुख कि वह प्रभु ने देख ली और समझ फॅमिली उसके शैली में परिवर्तन और उसका कारण दोनों ही मस्तिष्क का तो कल था । मार्ग संकरा होने के कारण एक साथ जरूरत नहीं निकल सकते थे परंतु बीच बीच में कुछ स्थान इस प्रकार के आ जाते थे जहाँ मारकर की चौडाई अधिक इस प्रकार के स्थान के दिखाई पडते ही प्रभु ने अपने रक्त की गति काम करने की आज्ञा थी और सारथी से ये भी कहा तो उस स्थान पर पहुंचकर रत को रोक नहीं । जैसे ही प्रभु ने अपना रात गुप्त स्थान पर रोका पीछे से प्रमुख जी का रात उनके रखते बराबर पर आकर का दोनों ऊपर की तरफ ही देख रहे थे और उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा ।
Sound Engineer
Writer