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आप सुन रहे हैं कुक वैकेशन आरजेएम आया के साथ सुनी जम्मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बालिस्टर सी गुर जाएगा शिक्षा के साथ में शैक्षणिक व्यापार के बढते कदम एक सही मायने में जो व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझता है उसके लिए उसका सबसे बडा धर्म तो देश होता है और बाकी सब तो उसके लिए बाद में आता है । यही हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम सबसे ज्यादा महत्व अपने देश धर्म को दी । यही वह धर्म होता है जो कि मानव धर्म कहलाता है । यही हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हम अपने धर्म का निर्वाह उस तरीके से करें जिसमें कि देश धर्म को कोई क्षति न पहुंचे । यही हमारा पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि अगर हम देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाएंगे तो असहिष्णुता का तो नाम और निशान पलभर में मिल जाएगा । शिक्षा मानव वर्तमान में अपने अस्तित्व से न्यूज रही हो, ऐसा ही कुछ आज हमें प्रतीत हो रहा है । जो इमारत एक साल में किसी कंपनी विशेष के लिए हुआ करती थी, आज उन्हें इमारतों में शिक्षा दी जा रही है । गुरुकुल का तो आज के इतिहास में कोई स्थान ही नहीं रहा । हर तरफ कांच की इमारतें हैं, जिनमें महंगी से महंगी कुर्सियां, स्कूल, कॉलेज के बच्चों को लाने ले जाने के लिए वातानुकूलित बस सेवाएं । इन सभी को देखते हुए यही कहा जा सकता है की जो शिक्षा मानव लिहाज से सर्वसुविधायुक्त है वो शिक्षा महंगी तो होगी तो फिर ये सब आम आदमी के बस की तो बात है ही नहीं । ये तो हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलता है कि कई गरीब लोग पैसों के अभाव में उचित शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हो । लेकिन हमें ये भी तो साथ ही साथ देखने को मिलता है कि कई महंगे से महंगे शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के पैमाने पर खरे उतरने में जीतना कम होते हैं । प्राचीन इतिहास आज भी यही दोहराता है कि शिक्षा को हमेशा शिक्षा के तौर तरीको के साथ ही देना चाहिए । अपने स्वार्थ हित से दी जाने वाले शिक्षा से आज तक किसी का भी कोई भी वाला नहीं हुआ । न तो शिक्षा देने वाले गुरु का करना ही शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों का वास्तव में हकीकत कोई नहीं टुकडा सकता । शिक्षा का स्तर मानव की नैतिकता पर ही निर्भर होता है । जहाँ मानव के नैतिक मूल्यों का झाड होने लगता हो, वहाँ शिक्षा का कोई महत्व रहता ही नहीं है । आधुनिक शिक्षा आज जिन तौर तरीके से दी जा रही है वह नैतिक शिक्षा तो किसी भी हाल में नहीं हो सकती । आज जिस तरह का व्यवहार शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य हमें देखने को मिलता है और नैतिक व्यवहार न होकर आधुनिक शिक्षा का व्यवहार है । अधिकांश मामलों में हम ये पाते हैं कि कई शैक्षणिक संस्थाओं में इतनी हर हो जाती है कि शिक्षक विद्यार्थी के मध्य मार पेट तक की नौबत आ जाती है । इससे यही कहा जा सकता है की जो शिक्षा वास्तव में दी जानी चाहिए अब वो अपना अस्तित्व खो चुकी है । भारत सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भी आज सरकारी स्कूलों कॉलेजों का शैक्षणिक स्तर और भी ज्यादा नीचे गिरता जा रहा है । इसकी वजह क्या हो सकती है और क्या नहीं, किसी को कुछ भी पता नहीं रहता । हमारी सोच आज सिर्फ निजी स्कूल और कॉलेज की तरफ ही जाती हैं क्योंकि हमने अपनी मानसिकता को उस सांचे में ढालकर रखा है जहाँ हमें लगता है कि प्राइवेट संस्था है, अच्छी शिक्षा देती हैं जबकि एक सही राय से तो यही कहना उचित होगा कि शिक्षा का पैमाना चाहे निजी रूप में अच्छा हो, चाहे सरकारी रूप में हमारा उद्देश्य हमेशा उचित शिक्षा के और ही होना चाहिए । आज शिक्षा का व्यवसायीकरण इतने जोरों पर नजर आता है कि शिक्षा का नाम सुनते ही आम आदमी के तो मानो रोंगटे खडे हो जाते हैं । असल में आज के समय में उच्च शिक्षा सस्ती तो कहीं भी नजर नहीं आती । जहाँ भी देखो उच्च शिक्षा पाने के लिए विद्यार्थियों को बडे बडे विज्ञापनों के सहारे गुमराह किया जाता है, फिर उच्च शिक्षा का महंगी होगी । आज इन्हीं विज्ञापनों के कारण गरीब घर में पैदा होने वाले कई कुशल विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं । इसके ठीक विपरीत अमीर घर में पैदा होने वाले कई विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो शिक्षा ग्रहण करने में नाकाम होने के कारण अपनी जान तक दे रहे हैं । ऐसी स्थिति में इस महंगी शिक्षा से किसी को फायदा भी नहीं होता । न तो अमीर वर्ग के विद्यार्थियों को और न ही गरीब वर्ग के विद्यार्थियों को इसके साथ ही चाहते । कुछ हमारी कमियों के कारण भी शिक्षा का पैमाना गिर चुका है और हमने कुशल विद्यार्थीवर्ग को खो भी दिया है । कई मामलों में हमें देखने में ये आता है कि मामा अपने बच्चों को जबरदस्ती शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर कर देते हैं । अगर किसी बच्चे की इच्छा प्रशासनिक अधिकारी या फिर कुछ और बनने की होती है तो माँ बाप उन्हें जबरदस्ती अपने अनुसार शिक्षा ग्रहण करने पर मजबूर कर देते हैं । इसका परिणाम यही होता है कि बच्चा अपने माँ बाप तथा पारिवारिक सलाह के अनुसार शिक्षा ग्रहण करता है और कई परिस्थितियों में तो बच्चे को अपनी जान तक देनी पडती हैं । ये कोई नई बात नहीं है कि पूरे विश्व भर में हमें ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती है कि कई बच्चे महंगी शिक्षा और पारिवारिक दबाव के चलते अपनी जान पर खेल जाते हैं । इससे हम अपना एक कुशल विद्यार्थी तो खो ही देते हैं साथ ही साथ अपने परिवार के सदस्य को भी गंवा बैठते हैं । गरीब वर्ग के विद्यार्थियों पर अगर हम एक नजर डाले तो हम पाएंगे कि भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा परचम लहराने का श्रेय उन्हीं को जाता है क्योंकि वो लोग वही करते हैं जो उन्हें करना होता है । वो लोग किसी महंगी शिक्षा या पारिवारिक दबाव में शिक्षा ग्रहण नहीं करते हैं । गरीब वर्ग के विद्यार्थी एक और जहां अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में हाथ बांधते हैं वहीं दूसरी ओर किसी छोटे से सस्ते स्कूल कॉलेज में पढ कर भी अपने कुशल नेतृत्व का उचित परिचय देते हैं । शिक्षा का सही मायने ये कहता है कि हम शिक्षा के लायक हैं, हमें वही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । किसी की सलाह पाकर या आपने बिना मन की शिक्षा हमें हमेशा नुकसान पहुंचाने वाली ही हो सकती है । वर्तमान में ऐसे कई शैक्षणिक संस्थान है जो कि विद्यार्थी वर्ग को लगातार अपनी और लुभाते हुए नजर आ रहे हैं और मोटी मोटी फीस के लालच में शिक्षा को अपना व्यावसायिक ढांचा बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं । आज अगर हम शैक्षणिक संस्थाओं पर नजर डालें तो कई संस्थाएं ऐसी है जहां सारे सुख सुविधाएं तो मौजूद हैं परन्तु शिक्षा का स्तर बहुत ही घर दिया है । ऐसे शैक्षणिक संस्थाएं सिर्फ विज्ञापनों के दम पर ही चलते रहती हैं और शिक्षा के पैमाने पर खरा उतरने में वह असमर्थ हो जाती हैं । इसलिए वर्तमान स्थिति को देखते हुए उचित शिक्षा का निर्णय कर पाना और भी ज्यादा जटिल होता जा रहा है । इसका परिणाम यही है कि आज शिक्षा व्यापार रूपी जेल में कैद हो चुकी हैं तथा शिक्षा के सौदागर अब शिक्षा को अपने व्यवसाय के रूप में उपयोग कर रहे हैं । आज के वर्तमान परिस्थिति में विद्यार्थी वर्ग कुछ क्षति पहुंच रही है । वास्तव में ही चिंता का विषय है । वजह है कि आठ चाहे अमीर वर्ग का विद्यार्थी हो, चाहे गरीब वर्ग का विद्यार्थी हो, हर कोई शिक्षा पाने के बोर्ड से लगातार दबता ही जा रहा है । कहीं विद्यार्थी वर्ग को जबरदस्ती की शिक्षा पाने के लिए मजबूर किया जा रहा है तो कहीं फीस के अभाव में कई विद्यार्थी वंचित हो रहे हैं । ऐसी स्थिति में यही कहा जा सकता है कि विद्यार्थी वर्ग के साथ होने वाला इस तरह का व्यवहार कभी भी देश को आगे नहीं बढा सकता । इसलिए हमें अपने विद्यार्थी वर्ग को ठीक तरह से पहचान न होगा और एक उचित शिक्षा का बंदोबस्त भी उनके लिए करना होगा, ताकि हमारा विद्यार्थीवर्ग बिना किसी दबाव के शिक्षा ग्रहण कर सके और देश की प्रगति में अपना योगदान दे सकें ।
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