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रिफ्यूजी कैंप - Part 8 in Hindi

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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पंद्रह जनवरी के बाद आने वाला हर दिन पंडितों पर भारी पड रहा था । वादी में हर जगह लाउडस्पीकरों की आवाजें अपना गला फाडकर कह रही थी कि कश्मीर में रहना है तो अल्लाहू अकबर कहना है । पंडितों अपने बीवी और बेटियाँ हमारे लिए छोडकर यहाँ से भाग जाऊँगा और आतंकी भागने का मौका भी नहीं दे रहे थे । वे समूहों में आते हैं । पंडितों के घरों को घेरकर कत्ल से पहले हिंदुओं के अंग भंग करते हैं । आंखें निकालते, नाखून खींचते, बाल नोचते और फिर जिंदा चलाते हैं । चमडी खींचना खासकर महिलाओं के स्तनों को गाडी से बांधकर घसीटते हुए तडपा तडपाकर मारना आम बात नहीं है । वहशियत भरे उन तीन दिनों के बाद वो काला दिन आया । पुलिस जनवरी उन्नीस सौ नब्बे सुबह से लाउड स्पीकर पर हिन्दुओं को वादी खाली करके जाने के लिए कहा जा रहा था । कर्फ्यू तो लगी रहे थे पर हवा में डर का जो माहौल था उस पर कोई करती हूँ । कैसे लग सकता है बंद घरों में सिसकियां लेते हिंदू परिवार और जो हो रहा था वो देखना पानी की वजह से अपने आप को घरों में बंद किए । कुछ मुस्लिम परिवार दोनों ही वक्त के सामने लाचार थे । इस लाचारी की परवाह किए बगैर उन दिनों अब है । प्रताप अपने ऑफिस जाने के लिए निकलते थे । एक दिन जब वो ऐसे ही ऑफिस जाने के लिए निकले तो फोन पर घंटे में उन्हें हो गया । उन्होंने फोन उठाया । दूसरी तरफ से आवाज आई अवैध प्रताप आज कयामत फैसला करेगी । कौन बोल रहा है अपने पिता आपने पूछा वही बोल रहे हैं जिनके साथ चाहू तो तुम अब भी चल सकते हो । हजार बार कह चुका हूँ कि आपकी आजादी मेरे समझ में नहीं आती । आप मेरा वक्त जाया कर रहे हैं । अभय प्रताप ने तीखे शब्दों में जवाब दिया, वक्त नहीं बचा है तुम्हारे पास । अभय प्रताप जल्दी सोचना होगा । हमारी आजादी की जंग में शामिल हो जाओ । यहां की आवाम तो भरी बात मानती है तुम्हारे इस जंग में शामिल होने से यहां की आवाम भी मान लेगी की हमारी जंग जायज है । सामने वाले नहीं । शान्ति से कहा । मतलब यहां की आवाम नहीं मानती कि तुम्हारी चंग चाहे जाए तो जनाब क्यों नहीं मानते हो आप । अभय प्रताप ने उल्टा सवाल किया । अब सामने वाला अपना आपा खोकर बोलने लगा । तुम्हारे जैसे लोगों ने यहाँ के मुसलमानों का दिमाग खराब कर रखा है । वो अपना अच्छा भला नहीं समझते हैं । आवाम अपना अच्छा भला समझती है, पर आपकी बंदूक से डरती है । लेकिन मैं इस बंदूक से डरने वाला नहीं । आपकी आजादी जायज होती तो आजादी का झंडा थामने वाला मैं पहला शख्स होता हूँ और हिन्दुओं को भगाकर नहीं । उनके होने का सम्मान करके आजादी की जंग लडका बिना बंदूकें हिन्दुस्तान से कहकर आप हमें आजादी दो, हम बंदूक छोड देंगे । सामने वाले नहीं कहा आप बंदूक छोड दो, अपने आप को आजाद महसूस करने लगे । बहुत ही ठहरी हुई आवाज में अब प्रताप ने कहा अब है प्रताप मानने वाले नहीं । ये समझकर सामने वाले ने कहा तो तो नहीं आएगा हमारे साथ नहीं । मैं अपने देश के साथ गद्दारी नहीं करूंगा और तुम्हारे जैसे गद्दारों को सबक सिखाऊंगा । अभय प्रताप ने कडक आवाज में कहा, सामने वाले ने अब तेज आवाज में अभय प्रताप को धमकाया । गद्दारी हिंदुस्तान ने की है । तुम हिंदू होने की है । हम पहले से आजाद रहना चाहते थे तो तुम्हारा हिंदू राजा हम को मारने के लिए हिंदुस्तान में लेकर आया जो हमें मंजूर नहीं और अब तुम्हारा सिंधु रहना भी हमें मंजूर नहीं । फोन कट गया । एक सुरक्षाकर्मी अभय प्रताप की बात सुन रहा था । उसे पूरी तरह से अंदाजा था कि ये जिहादियों का फोन था । अभय प्रताप शांति से अपने ऑफिस के लिए निकले । सुरक्षाकर्मी उन्हें रोकते हुए कहा, सर रिक्वेस्ट प्लीज आप बाहर मन चाहिए सर, मैं घर पर नहीं रोक सकता । सोल्जर ऐसे मैं उन्हें गलत मैसेज दूंगा कि मैं डर गया । उससे उनके हौसले और बुलंद हो जाएंगे जो मैं नहीं चाहता हूँ । ये बातचीत चल ही रही थी कि फिर एक बार फोन बजाए इस बार फोन पर अभय प्रताप की सहायक कृष्णा वो बहुत डरी हुई थी । उन्होंने उन्होंने अखबार के ऑफिस को आग लगा दी है । सर, पूरी बिल्डिंग चल रही है । सब कुछ खत्म हो रहा है सर, अब जल्दी आ जाइए आपने । प्रताप कुछ पल एकदम शांत हो गए । इतने सालों की मेहनत से बनाया हुआ मुकाम अब चलकर खास होने वाला था । पल दो पल तो उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करना है । परन्तु उन्होंने अपना होश संभाला और पूछा तो कहाँ हूँ बाकी स्टाफ ठीक है ना? मैं और पाकिस्तान वहाँ से निकल आए । सर बाजू की गली से आपको फोन कर रहा हूं । दमकल की गाडियों ने भी अब आने से मना कर दिया है । कुछ की जी सर सब खत्म हो जाएगा । तुम अपने घर पहुंच अवतार मैं कुछ करता हूँ । अब प्रताप ने उसका फोन रख कर तुरंत अग्निशामक दल को फोन किया । फोन की रिंग जाती रही, चाहती रही और हर एक सेकंड अभयप्रताप मन में कहते रहे बताओ जल्दी फोन उठाओ हेलो! किसी ने फोन उठाकर कहा हेलो, मैं अपने पिता बोल रहा हूँ । टूट के ऑफिस में आग लग गई है । आप जल्दी वहाँ गाडी भेज दीजिए । फौरन मैं अभी पहुंचता हूँ नहीं जा सकते हैं । सामने से डरी हुई आवाज में जवाब आया हूँ । अभय प्रताप ने चिल्लाकर पूछा ड्राइवर नहीं है जनाब ड्राइवर क्यों नहीं है? और ड्राइवर नहीं है तो तुम चले आओ । ड्राइवर है पर जाएंगे नहीं । उन्होंने यहाँ कागज चिपकाया है कि जो कोई भी डॉक्टर ऊट की वहाँ जाएगा अपनी जान से जाएगा । अवैध प्रताप ने फोन काट कर सीधा डीएसपी के ऑफिस में फोन लगाया हलो हाँ मैं अभी प्रताप बात कर रहा हूँ । जी बोलिए सर? आसिफ ने उधर से जवाब दिया ये क्या व्यवस्था हो रही है? शहर में सुरक्षा कोई भी आकर सरकारी मुलाजिमों को धमकाकर जाता है और डर के मारे वो अपना काम नहीं कर रहे हैं । हुआ क्या है? आसिफ ने अनजान बनते हुई हूँ । जी मेरे ऑफिस में आग लगी है । आप तुरंत उसे बुझाने का कोई इंतजाम कीजिए । मैं वहाँ पहुंच रहा हूँ । जब आप अब आपकी सिर पर बंदूक रखकर कोई कुछ करने से कहता है तो मजाल है किसी की क्योंकि खिलाफी करें उन विचारों को क्यों सोच रहे हैं आपके पास तो उस बंदूक का जवाब बंदूक से देने की ताकत है ना कुछ कीजिए अवैध प्रताप पर से आसिफ उस तरफ से बेफिक्री से बोले सौ बात की एक बात चुनाव सच कहूँ तो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता हूँ । ये मजहबी मामला हो चुका है । मेरा परिवार भी इसी शहर में रहता है । आप समझ सकते हैं और जनाब सिर्फ बिल्डिंग के जाली है ना । खैर मनाइए की बिल्डिंग के अंदर आप नहीं थे । क्यों आप अपने साथ दूसरों की जान खतरे में डाल रही हूँ । आप समझ रहे हो ना मैं क्या कह रहा हूँ जी जो समझना था मैं समझ चुका हूँ । अवैध प्रताप ने गुस्से से फोन रख दिया और उतने ही गुस्से से घर के बाहर चले आए और तेज रफ्तार के साथ अपनी गाडी की तरफ पडे हैं । उन्हें जल्द से जल्द अपने ऑफिस पहुंचना था । तभी सेना के गाडी उनके आंगन में रुकी कमांडोज ने उन्हें घेर लिया और उनमें से एक ने कहा, सर आप की जिम्मेदारी हम पर हैं । हम अभी आपके अखबार की तरफ से आ रहे हैं । वो कोई मुजाहिदी नहीं थे । जिहादियों की पूरी पलटन नहीं जिहाद कर रहे हैं । वो जुनून सवार है उन पर उनके रास्ते में जो भी आएगा मारा जाएगा । आप को कुछ हो गया तो सेना पर सवाल उठाए जाएंगे । आप हमारी सहायता कीजिए और पीस घर में ही रही है । वरना मुझे आपको आदेश देना पडेगा जो मैं करना नहीं चाहिए । हमारे भी मजबूरी समझेंगे । अभयप्रताप समझ गए थे कि मेरे अहम के लिए मैं सेना का नाम खराब नहीं कर सकते । वो अपने घर के अंदर लौट है पर उन का एक एक पल परेशानी में डूबा था और फिर फोन बजा सामने कोई लोग तेरी देशभक्ति हमने चलाकर रह कर दी है आपको । अब तो हमारे साथ हजार देशभक्ति कागज के चंद्रपुर जो में कैद नहीं हो सकती है तुम्हारी जहालत का नमूना पेश किया है तुम लोगों ने देशभक्ति उस चले हुए बिल्डिंग में नहीं, मेरे विचारों में है, हमारे जमीर में हैं । मेरे साथ जुडे ऐसे हजारों लोगों में हैं अभय प्रताप कर्ज कर बोले भाषण बंद कर आज शाम तक का वक्त देता हूँ तुमको हम अभी भी चाहते हैं कि तो हम में शामिल हो जाए और ना तेरे और तेरे लोगों के साथ जो करेंगे तो खुद देखी लेगा । बस शाम तक का वक्त है वरना ईशा की नमाज हम तेरे घर आकर पढेंगे । फोन फिर एक बार कट गया । अवैध प्रताप का दिमाग गुस्से से भरा हुआ था । घर में ही बैठकर वो अपना नया आर्टिकल लिखने बैठे जिसका शीर्षक था जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है आपके पीछे तेज हवा है । आगे मुकद्दर आपका है । अभयप्रताप । जब भी गुस्से में होते आरती और अभिमन्यु हूँ उन के आस पास भी नहीं पढ सकते । दोनों ने उन्हें अपने कमरे में अकेला छोड दिया । आरती सुरक्षाकर्मियों के खाने के प्रबंध में लग गई और खुली हवा आदि अभिमन्यु ऊपर छत पर चला गया । छत से वो अपने पूरे इलाके पर नजर को मारा था । कर्फ्यू के कारण हर गली, हर चौबारा सुनसान पडा था । एक खामोशी दूर दूर तक फैली हुई थी । तूफान आने से पहले जैसे सब कुछ खामोश हो जाता है । ऐसी वाली खामोशी आने वाले तूफान की दस्तक और तूफान आया मगरीब की नमाज के बाद लाउड स्पीकर पर पंडितों को आखिरी चेतावनी हूँ पंडितों भाग जाओ वरना मर जाऊं । हर गली मोहल्ले में हथियार था में लोग घूमने लगे थे । उस भीड की आवाज ने पूरी वादी में दहशत । वो लोग दो घंटे से लगातार चेतावनी दे रहे हैं । हर गली से जुलूस निकल रहे थे । हिंदू लोगों के दरवाजे खटखटाकर उन्हें बाहर निकलने के लिए कहा जा रहा । अजय प्रताप के घर का रुख किसी ने नहीं किया । दो घंटे तो शादी में आतंक भरे थे । फिर मस्जिदों में ईशा की नमाज की अजान हुई और अजान के बाद कुछ देर सब शांत रहा । इतना शांत की क्या होने जा रहा है कोई अंदाजा ही नहीं था । रात करीब आठ बजे ईशा की नमाज के बाद मुख्तार दौडता दौडता अभिमन्यु के घर में दाखिल हुआ । वो बहुत घबराया हुआ था । उससे ना बोला जा रहा था न सांस ली जा रही थी । ऐसी भी अवस्था में उसने कहा अगले आम का फरमान जारी हुआ है । कुछ कीजिए आपकी तो सरकार में पहचान है, कुछ तो कीजिए । मुख्तार ने लपक कर अभिमन्यु का हाथ पकडा और उसे अपने साथ खींचते हुए सब से कहा की और की आप सब लोग मेरे घर चलो यहाँ बहुत खतरा है उसके आने से । अभिमन्यु को भी लगा कि कुछ कश्मीरियत बाकी है । बहुत देर बाद अभिमन्यु थोडी खुलकर सांस अभय प्रताप मुख्तार के जस्ट बात समझ रहे थे पर ये भी जानते थे कि हमें पनाह देने के कारण जिहादी मुख्तार और उसके पूरे परिवार का पूरा हर्षद कर सकते हैं । इस वक्त मुख्तार का उनके घर में होना । मुख्तार की जान को खतरा अभय प्रताप ने मुख्तार को समझा दिया कि वह सेना की सुरक्षा में उन्हें कुछ नहीं हो सकता है । अपने दरवाजे पर तैनात एक जवान को अभय प्रताप ने कहा कि मुख्तार को सही सलामत छोडा है । मुख्तार मन से जाने के लिए जरा भी तैयार नहीं । ऐसी संकट की घडी में उसे अभिमन्यु के साथ रहना था और मुख्तार अभय प्रताप की बात मानने के लिए बात था । टेंशन का माहौल देख मुख्तार अभयप्रताप हूँ और परेशान नहीं करना चाहता था । मुख्तार उस घर से निकलकर चाहिए रहा था की एक ही क्षण में वो पडता पलट कर अभिमन्यु के पास जाकर उसका हाथ पकडकर कहा तो घर से बाहर जरा भी नहीं निकलता । डर लगे तो तुरंत मेरे घर आ जाना ठीक है वरना अभी चलते मेरे घर में तुझे कुछ नहीं होगा । अभिमन्यु ने अपने पापा की तरफ ऐसे देखा कि उनके होते हुए उन्हें कुछ नहीं होगा । मुख्तार का डर कम करने के लिए अभिमन्यु ने उसे कहा तो ज्यादा सोच मत । हमें कुछ नहीं होगा अपने घर से । बाहर नहीं नहीं तेरी कसम अपने लिए । मुख्तार के आंखों में जो चिंता थी, उसे देख अभिमन्यु को एक पल के लिए लगा कि मुख्तार के गले लग जाए । वो लगने भी वाला था कि लाउडस्पीकर फिर एक बार चिल्लाया, अल्लाह हुआ अकबर और उस लाउडस्पीकर के साथ बाहर रास्ते पर खडी भीड जोर जोर से नारे देने लगी अल्लाहु अकबर अल्लाहु हुआ हूँ मुख्तार के गले लगने की । अभिमन्यु की आप जो उस अल्लाहू अकबर की आवाज में दब गई । बेमन से ही सही, मुख्तार वहाँ से चला गया । फोन बज रहा था । बाहर शोर इतना था । फोन की आवाज भी कुछ शोर में ठीक सुनाई नहीं दे रहे । अब आपने अपने मन से कहा कि दरवाजे खिडकियां बंद कर लूँ और उन्होंने फोन है । दूसरी तरफ वही आवाज उनकी थी जिनके नाम नहीं होते हैं । क्या तय किया है? फॅमिली चले आइए, हमारे साथ नहीं और दोबारा कभी कॉल नहीं करना । अभय प्रताप ने बेहद गुस्से में था । दोबारा कॉल करने की नौबत नहीं आई । ऍम कितनी देर सुरक्षा मिला हो गई और आधा घंटा एक घंटा और जिनके पास सुरक्षा नहीं तुम्हारे खुल लोगों को कैसे बचाओगे । ये बात सुनते ही अभयप्रताप ने झटके से फोन कट किया और ऑफिस में जो उनकी सहायक थे कृष्णअवतार उनके घर फोन डायल करना शुरू किया । उन्हें ये कहने के लिए कि जल्दी से जल्दी घर खाली करके वहाँ से निकल जाऊँ । पहली दो दफा फोन इंडिया जा रहा था । अभय प्रताप को अवतार की चिंता खाए जा रही थी । फोन अभी भी एंगेज था । अभय प्रताप लगातार डायल कर दे रहे हैं । उनकी परेशानी देख आरती बहुत घबरा गई । अभय प्रताप को यकीन था कि उनके अखबार की हिंदुस्तान की जान अब खतरे में हैं । स्टाफ में सिर्फ कृष्णावतार के घर ही फोन था । उस वक्त अभयप्रताप के हाथ में सिर्फ फोन करके उन्हें आपका करने की सिवाय कोई और उपाय नहीं था । जब तक की कृष्णावतार का फोन लेंगे जा रहा था । बाकी लोगों की चिंता भी अभय प्रताप को सता रही थी । पुलिस को कॉल करके कोई फायदा नहीं था क्योंकि उनके हिसाब से अब यहाँ सभी मामला था । अवैध प्रताप ने सीधे राज्यपाल को फोन किया । सेक्रेटरी से जवाब मिला कि वो इस वक्त मसरूफ हैं, थोडी देर में आपको कॉल बैक करेंगे । अब पता आपने फिर कृष्णावतार को फोन लगाया । इस बार रफ्तार के घर के फोन की घंटी बजी और उसी वक्त अवतार के दरवाजे पर हिंदुस्तान मुर्दाबाद, जहर, कश्मीर जिंदाबाद के नारे के साथ दस तक कृष्णअवतार जान बचाने के लिए अपनी बेटी और बीवी को लेकर अंदर के कमरे में भागा । फोन की घंटी बजती रही, बचती रही पर उसे उठाने की हिम्मत कृष्णअवतार में नहीं क्योंकि तब तक जिहादी खिडकियां तोडकर घर में दाखिल हो गए थे । जिस कमरे में अवतार छुपा था उस कमरे का दरवाजा तोडकर जिहादियों ने पहली होली कृष्णअवतार की । बीवी कुमार उसके हाथ में छह साल की थी । बेटी को बचाने और मतलब का उठाएं थाएं करती पांच छह गोलियां उसके शरीर के आरपार निकल गया और खून में तटबंध अवतार की लाश उसकी बेटी के सामने फिर पडी उस नन्ही सी चंद रोना शुरू किया । उसके रोने का शोर बंद करने के लिए सिर्फ एक गोली काफी नहीं जो बंदूक से निकल भी गई । बाहर बढते अल्लाहू अकबर के शोर नहीं । अभी प्रताप को जैसे बता दिया था की मौत उनके घर कभी भी दस्तक दे सकती हैं । अब तो ये आलम था की घर के बाहर भी मौत थी और घर के अंदर भी बीतने वाला हर पल दहशत भरा था । की जाने कब कोई दरवाजे पर दस्तक थे और उनकी गोलियों से सीना छलनी हो जाए । शायद आरती ने अभय प्रताप की आंखों में मौत को देख लिया था । अब वहाँ से निकल जाना भी मुश्किल था । आरती ने ये स्वीकार भी कर लिया कि अब इस इंतजार का अंजाम सिर्फ मौत है । डरे हुए अभिमन्यु और आरती को अपनी बाहों में समेटे अभय प्रताप दरवाजे की तरफ देखते रहे हैं । आरती कभी अपने बेटे को देखती, कभी अपने पति हूँ । अभिमन्यु के सिर पर हाथ फेरते । कम से कम उसको जिंदा रखने की आशा में आरती नहीं झिझकते हुए अपने पिता आपसे पूछा कम से कम इसे तो कलमा पढने दीजिए । कहने दीजिए इसे लाइलाहा इल्लल्लाह ये जिंदा रहा तो मेरी आत्मा नहीं । बट की आरती के मुझसे वो अल्फाज सुनकर अभयप्रताप को लगा की मौत शायद इसे कहते हैं । अभिमन्यु ने आगे बढकर अपनी माँ को गले लगाया और आर्थिक की इतने दिन अंदर तभी आवाज झरझर करते हैं । आंसू बनकर आंखों से बहनें नहीं और उसी वक्त दरवाजे पर सोच सोच से घटकर हुए आर्थिक होते होते हैं । अभी उन को कसकर अपने सीने से लगा लिया । सोचा की अभी दरवाजा तोडकर वांदर आएंगे और फिर इस खौफ का हमेशा के लिए अंत हो जाएगा ।

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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