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रिफ्यूजी कैंप - Part 5 in Hindi

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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मीर कासिम ने इस बात को काटते हुए कहा रुकिए जनाब । फायदे की शर्त यही थी कि आवाम की मर्जी उसमें शामिल होना जरूरी था जो नहीं थी । राजा हरि सिंह हिंदुस्तान में शामिल हुआ । वहां की आवाम नहीं उन पर तो जबरदस्ती हुई आपने हैदराबाद जूनागढ की रियासतों को आवाम की खुशी के लिए ही उनके राजाओं से लोहा लेकर हिंदुस्तान में शामिल किया तो फिर कश्मीर की आवाम का किसी ने क्यों नहीं सोचा? एक पल का भी वक्त न लेते हुए अब प्रताप बोले थे इस बात का एहसास यहाँ के वजीरे आला को पूरी तरह से था । जवाब तभी तो उन्होंने पूरे हिंदुस्तान के खिलाफ जाकर अनुच्छेद तीन सौ सत्तर तुरंत लागू किया और हिंदुस्तान के अंदर ही कश्मीरी आवाम को पूरी तरह से आजाद रखा । मीर कासिम ने भी मौका नहीं छोडते हुए कहा, अगर आप मानते हैं कि आप कश्मीरी आवाम के दिल की बात जानते हैं तो अभी भी देर नहीं हुई है । कर दीजिए कश्मीर को आजाद आपको फर्क नहीं पडना चाहिए कि फिर पाकिस्तान के साथ चले जाएँ या कुछ और करें । अभय प्रताप ने मीर कासिम की आंखों में देखा हूँ और एक गहरी सांस लेते हुए कहा मैं यहाँ आपको थोडा करें, करना चाहूँगा । कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल होने से हिंदुस्तान को जरा भी ऐतराज नहीं था । फिर कश्मीर के राजा ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया । हिंदुस्तान ने उनकी उस बात को सराखों पर रखा । अगर पाकिस्तान को यकीन था कि आगे चलकर पाकिस्तान के साथ ही जाएंगे तो उन्हें कश्मीर पर आक्रमण करके उसे हथियाने की जरूरत क्या पढी? क्या ये नहीं गिरा देते हैं? जब भारत पाकिस्तान दो अलग अलग मुल्क नहीं थे, तब इस देश के पास स्वतंत्रता की सबसे बडी दिन थी । अहिंसा । जिन्ना साहब उसमें शामिल थे । अहिंसा आंदोलन करके कश्मीर को आसानी से अपने पाकिस्तान में शामिल कर सकते थे । पर उन्होंने ऐसा नहीं किया । उन्होंने सशस्त्र हमला किया । क्यों? ऐसा क्यों किया? उन्होंने चलो वो भी मान लिया । वे जब तक राजा हरि सिंह के सैनिकों से लड रहे थे, तब तक सब ठीक था । पर बात तब गंभीर हो गए जब बारामूला में कबालियों ने हिंदू और सिखों का नरसंहार क्या लूट पाट की, मंदिर तोडे, उनकी औरतों को बेआबरू किया । उतने पर भी उनका मन नहीं भरा तो उन्होंने मुसलमानों को भी लूटा । बारामूला के वे दो दिन जिन्ना को भारी पड गए । कश्मीरी आवाम जान गई कि पाकिस्तान में शामिल होना उसका मतलब क्या हो सकता है? जहाँ तक हिंदुस्तान का संबंध था उसने एक आजाद मुल्क के उस राजा की मदद की जिसकी स्वायत्तता पर आक्रमण हुआ था और वो खुद मदद के लिए हिंदुस्तान के पास आया था । हिंदुस्तान इतना कमजोर देश नहीं था कि काबिज किए गए कश्मीर को सेना के बलबूते पर फिर से आजाद न करा सकता था । और फिर एक बार उसने वहां की आवाम की ही सुनिए । यूनाइटेड नेशंस की देख रेख में वे वहां जनमतसंग्रह कराना चाह रहे थे ताकि कल कोई है ना कहे कि भारत ने कश्मीरी आवाम को जबरदस्ती भारत में शामिल किया । यूनाइटेड नेशंस की गाइडलाइंस के मुताबिक स्थिति को जस की तस रखा । ये भारत की बदकिस्मती थी कि इंटरनेशनल राजनीति के चलते हैं । अमेरिका और ब्रिटेन ने कश्मीर समस्या को दरकिनार कर दिया । मीर कासिम के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था क्योंकि हकीकत वही थी जो अजय प्रताप ने कही थी । मीर कासिम की अवस्था देखकर अभय प्रताप ने शांति से बोलना शुरू की । कश्मीर का असल मसला आजादी नहीं, सिर्फ उतना ही मसला होता तो तीन सौ सत्तर के साथ आजाद वादी में हर जगह खुशहाली मुझे पर ऐसा नहीं हो सकता । उसकी वजह है जहाँ कश्मीरी आवाम को तीन सौ सत्तर तो चाहिए पर कश्मीरी पंडितों के बिना क्योंकि ये पंडितों की भूमि नहीं है । आप किसी फले फूले वृक्षों को जड से उखाडकर दूसरी जमीन पर फेंक देने को आजादी कहते हैं । तो जनाब आपकी बुनियादी सोच में ही कुछ गडबड है । आठ सौ साल से हमें अपनी जमीन के बाहर करने की लाख कोशिशों के बाद भी हमने अपने बच्चों को कभी किसी मुस्लिम से नफरत करना नहीं सिखाया बल्कि साथ जीना सिखाया । आजाद हिंदुस्तान में करोडों मुसलमान है । हमने अपनी आजादी को उनके साथ स्वीकार किया है । हमेशा अपने समाज का हिस्सा मानकर चले हैं और आप ने क्या किया? आप रिकॉर्ड ये कह सकता हूँ कि शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर को अपनी जागीर मना । भारतीय संविधान के अनुच्छेद तीन सौ सत्तर के कारण यहाँ के हिंदू पुणा कौन हो गए थे और उनकी आबादी सिमट गई थी । आर्थिक सुधारों के नाम पर उनकी जागीरें छीन ली गई और मुसलमानों में बांट दी गई । शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर के सारस्वत ब्राह्मणों के प्रति दुष्टता की नीति चलाई । किसी ना किसी बात पर उनका मजाक उडाया जाता था । हिंदू मंदिरों को अपवित्र किया जाता था और लूटपाट की जाती थी । पंडितों की हाँ वैसे लडकियों से जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाकर उनकी शादी मुस्लिम युवकों से कर दी जाती है । हो रहा था मीर कासिम ने पूछा ऑन रिकॉर्ड ये बात कहने से डरते हैं आप? अभय प्रताप मन ही मन मुस्कुराए और बडे ही विश्वास से कहा डरता तो मैं उन नौजवानों के हाथ में पकडाई बंदूक से भी नहीं मैं जानता हूँ । शेख अब्दुल्लाह था वह बर्ताव एक परकशन था जो स्वतंत्रता से पहले उन्होंने राजा हरि सिंह की रियासत में भुगता था । राजा हिंदू होने के कारण सारे बडे औदे पर महत्वपूर्ण जगहों पर वर्षों से पंडितों का ही बोलबाला था । मुसलमानी आवाम का ख्याल नहीं किया गया । राजा के खिलाफ शेख अब्दुल्ला ने आवाज उठाई । उसके खिलाफ उन्होंने कई बार आंदोलन किया और वही वजह थी कि शेख अब्दुल्ला कश्मीरी आवाम की आंखों का तारा था और कश्मीरी जनता की भलाई के लिए ही नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया । ये सोचकर कि जिसने अपने अंदर चाकू के घाव झेले हूँ, उसे चाकू लगने का दर्द मालूम होता है तो एक संवेदनशील इंसान कभी भी दूसरों पर चाकू से वार नहीं कर सकता हूँ । शेख अब्दुल्ला उस दर्द से गुजरे हैं तो तीन सौ सत्तर के कारण गौन हुए पंडितों का दर्ज समझेंगे । उन्होंने अपने साथ लेकर चलेंगे और शेख अब्दुल्ला ने नेहरू के अरमानों का ही खून कर दिया । पंडितों को अपने साथ लेकर चलना तो दूर वे जहाँ थे वहाँ से भी उन्हें उखाडने की पूरी कोशिश की गई । अगर मैं अजय प्रताप इस बात को कौन रिकॉर्ड कहता हूँ तो उसका नतीजा सिर्फ दंगे वादी जिन हालातों से गुजर रही है ऐसे में इतिहास का हवाला देकर लोगों को एक दूसरे से दूर करने से अच्छा है कि मौन रहकर उनको एक साथ छोडेंगे । लेकिन मेरे मौन रहने से शेख अब्दुल्ला के गुनाह कम नहीं होते हैं । मीर कासिम ने कहा उसकी सजा तो उन्हें मिल ही गई थी । उन की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया है । उन्हें कैद में नजरबंद रखा गया । उन पर कश्मीर में जाने पर पाबंदी लगा दी गई । इंदिरा गांधी के साथ मिलकर अपनी नीतियां बदलनी पडी है । बडे दुखी मन से अभय प्रताप बोले थे । तब तक बहुत देर हो चुकी थी जनाब । पार्टी की नई पीढी के अंदर शेख अब्दुल्ला ने पंडितों के खिलाफ जो जहर बोया उसका नतीजा मेरा दो दिन पुराना आर्टिकल हैं । आजादी के नाम पर यहाँ के नौजवानों को बरगलाया जा रहा है । ये बात आप भी जानते हैं और हम भी जानते हैं कि ये लापता बच्चे कहाँ है । पर हम सबूतों के अभाव में कुछ नहीं कर सकते हैं । आप चाहे तो हमें सबूत दे सकते हैं । मीर कासिम साहब अभय प्रताप की उस बात पर एक पल के लिए मीर कासिम झेप गए और फिर गहरी सोच में चले गए । असल में किसी जमाने में मीर कासिम आजाद कश्मीर के एक सेनानी यानी मुजाहिदीन भी रह चुके हैं । कश्मीरी आजादी के नायक मकबूल बट से प्रेरित थे । कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी, जंग रहेगी ये नारा उनके जहन में घूमता हूँ । चिनार शोले चल रही है का तराना आज भी सुनकर उनके आंसू उतर जाते हैं । लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने वो सब छोड कर पत्रकारिता अपनाई थी । कारण वही था । आजाद कश्मीर के मुजाहिदीन की जगह आहिस्ता आहिस्ता जिहादियों ने ले ली थी । अपनी सोच से बाहर आकर मीर ने नम्रतापूर्वक अभयप्रताप से कहा, सच करवाया आपने यह सच्चाई मुझ से बेहतर कौन जान सकता है । मेरी तरफ के कश्मीर को भारत पर तो कभी भरोसा था ही नहीं, लेकिन पाकिस्तान पर से भरोसा उठ जाने की भी कई वजह है । मिसाल के तौर पर कश्मीरी किशोरों, आश्रम और अशरफ ने जब उन्नीस सौ में शुरू में गंगा प्लेन का अपहरण करके लाहौर में उतारा था तो पाकिस्तान और पाकिस्तानी कश्मीर में इन दोनों का हीरो की तरह स्वागत । साल के अंत में जब मश्रि कि पाकिस्तान बंगलादेश बन गया तो इन्हीं दोनों को भारतीय एजेंट करार देकर जेल में डाल दिया गया था । हाल ही मैं आजाद कश्मीर में जिहादियों का पुरजोर विरोध भी हुआ । नीलम घाटी में जिहादियों के खिलाफ नारे लगाते हुए लोग रास्ते पर आ गए पर उसका कुछ खास असर नहीं हुआ । लेकिन इस घटना ने ये दिखा दिया की आवाम असल में क्या चाहिए । वो जिहाद नहीं चाहिए, शांति से सहजीवन चाहती है । आवाम हिंदुस्तान की हो या आजाद कश्मीर उसे असली आजादी का मतलब मालूम है । पर इस जहर का क्या करें? संघर्ष अभय प्रताप ने तुरंत जवाब क्या सही वजहों के लिए इंसान को संघर्ष करना पडे तो करना चाहिए । मेरी लडाई कश्मीरी पंडितों के हक की लडाई है ही नहीं । सही वजह की लडाई अगर मैं दिल्ली में होता है और मुसलमानों के हक कोई छीन रहा होता तो मैं उसके लिए भी संघर्ष करता हूँ । इत्तेफाकन में कश्मीरी पंडित हूँ । तो मेरे संघर्ष को सांप्रदायिकता का रंग दिया जाता है पर मुझे उस की परवाह नहीं है । फिलहाल मुझे उन ना समझ नौजवानों की चिंता है जो सीमापार बंधु खामणा सीख रहे हैं और हम में से कोई कुछ नहीं कर रहा है हूँ । मेरी ताकत है कि मैं जमीन को जगह हूँ । मैं मरते दम तक करता रहूंगा । मेरा संघर्ष चलता रहेगा । कुर्सी से उठते हुए अभय प्रताप ने कहा नाॅक आपने मीटिंग का वक्त खत्म हुआ है । ऐसा लगा कि मीर कासिम उनसे और बात करना चाह रहा था । पर वक्त की पाबंदी के कारण मीर कासिम सलाम दुआ करके निकल गया । इस बातचीत की डिक्टेशन ले रहे अभिमन्यु को आज अपने पिता का पद समझ में आ गया था । उसके साथ खडा मुख्तार अभय प्रताप को देखकर सम्मोहित था । वो सीधा जाकर अभय प्रताप के सामने खडा हो गया और उनसे पूछा मैं इस लडाई में कैसे शामिल हो सकता हूँ । उस नादान लेकिन जोशीले बच्चे को गौर से देखकर अभय प्रताप ने सिर्फ इतना ही कहा कि अपने धर्म को सही तरह से समझो । अब मुख्तार इस्लाम को समझना चाहता था । वो मस्जिदों में भी जाने लगा । अब मुख्तार पांच वक्त का नमाजी हो चुका था । उसका पहला प्रमाण ये था कि उस दिन जमात में जाकर आने के बाद वो शाम को अभिमन्यु के पास एक थैली लेकर आ गया । थैली बिस्तर पर उडेल दी तो उसमें से सारी कैसेट बाहर आ गए जिनमें किशोर के गाने थे और अभिमन्यु का हुआ । मुख्तार ने कहा कि अब मुझे इस की जरूरत नहीं है । अभिमन्यु को बडा आश्चर्य हुआ । वो तुरंत समझ गया कि मौसिकी पर इस्लाम में पाबंदी है । शायद इस वजह से वह पूरा संगीत लौट आ रहा है । एक पल के लिए अभिमन्यु के दिमाग में अमीर खुसरो पर लिखा स्कूल का एक निबंध याद आ गया जिसकी पहली लाइन थी कि अमीर खुसरो चौदहवीं सदी के एक प्रमुख शायर, गायक और संगीतकार हैं । अभिमन्यु को तो ये भी याद आया है कि अनंतनाग में जब भी बशीर अहमद का भांड पाथेर का प्रोग्राम होता था तो मुख्तार और वो उसका कितना मजा उठाते हैं, जिसमें सामाजिक व्यंग्य पर संगीत की सहारे तंज कसा जाता था और अभिमन्यु कुछ बोला नहीं क्योंकि उसने मुख्तार को कभी भी किसी भी बात के लिए रोका नहीं था । अभिमानियों को आजादी का मतलब मालूम था मुख्तार एक एक कैसेट की याद खासकर दर्द भरे गीतों के कैसेट की याद ताजा करते हुए सारी कैसेट अभी को वापस दे रहा था । उन कैसेट में एक अंग्रेजी गाने के एल्बम की एक कैसेट देखकर अभिमन्यु को बडा आश्चर्य हुआ । वो कैसेट अपने हाथ में लेकर अभिमन्यु ने पूछा तो कब से अंग्रेजी गाने सुन रहा था । उस को गौर से देखते हुए मुख्तार ने कहा अरे ये कैसे तेरह जन्मदिन का तोहफा थी । इसे लेने तो मैं उसमें श्रीनगर गया था और फिर ब्लास्ट हुआ और ये मेरे पास ही रहेगी । ऍम भी कहते हुए मुख्तार ने वो कैसेट अभिमन्यु के हाथ में रखी । एल्बम का नाम था वन । बेटिकट तोहफा पाकर कोई भी खुश हो जाता है । पर वन वे टिकट का नाम पढकर अभिमन्यु को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था । उसने बेमन से वो क्या तोहफा हाथ में थमाकर मुख्तार ईशा की नमाज पढने चला गया और अभिमन्यु के जहन से वन वे टिकट बाहर जा नहीं रहा था ।

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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