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इस आर्टिकल का जो अंजाम होना था वहीं हुआ । उस दिन पुलिस के काला अवसर आसिफ के साथ नेशनल कांफ्रेंस के एक बडे नेता इफ्तखार अहमद खुद चलकर अभयप्रताप के घर पहुंच गए । शनिवार था कॉलेज की छुट्टी थी तो उस दिन अभिमन्यु भी घर पर ही था । जिस तरीके से वो घर में दाखिल हुए थे लग रहा था कि कुछ पूरा होने वाला है । आरती भले ही अंदर के कमरे में बैठी थी पर उनके कान हॉल में चल रही बातचीत पर लगे हुए थे । इफ्तखार अहमद का कहना था कि इस लेख के जरिए आप हिंदुत्व का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं । अवसर आसिफ थोडा झिझकते हुए कह रहे थे कि आपके इस लेख के कारण मुस्लिम आवाम में नाराजगी हो सकती है । आपको सुरक्षा की जरूरत पड सकती है । अभय प्रताप के हावभाव से लग रहा था की कोई भी डर उनके मन में नहीं है । वो बडे ही शांति से कमिश्नर आसिफ से बात करने लगे । वो कहने लगे की आवाम मेरे लिए क्या सोचेगी इसकी फिक्र अपना करेंगे । मुझे पर्सनली लगता है की आवाम सही सही सोच है । इस कारण ही मेरा अखबार चल रहा है । मेरे खुद के ऑफिस में ध्यान में प्रतिशत लोग मुस्लिम है । ऐसा नहीं है कि हिंदू इंटरव्यू के नहीं आए थे बल्कि इंटरव्यू के लिए हिंदू लडकी लडकियों की संख्या बहुत ज्यादा पर जितने भी आए थे उनमें जो बेस्ट थे वो मेरे ऑफिस में काम करते हैं । मैं लोगों को उन का धर्म देखकर नहीं उनकी काबिलियत देख कर काम देता हूँ और रही बात हिंदुत्व के ध्रुवीकरण की । तो आप एक बात समझ लीजिए कि जिस इन्फॉर्मेशन के बलबूते पर ये लेख मैंने लिखा है वो मुझे मैं इम्प्लॉई लाकर देते हैं । जो कि मैंने अभी बताया कि अच्छा ध्यान में प्रतिशत मुस्लिम है । मैं अपने सोर्सेज से उसकी सत्यता पर रखता हूँ । मतलब संदेश सीधा है की वो भी यही चाहते हैं कि सरकार के हर काम में पारदर्शिता हूँ और रही द्रवीकरण की बात तो द्रवीकरण किसका हो रहा है ये बात आप मुझसे बेहतर जानते हैं । इसलिए किसी रिसर्च की जरूरत भी नहीं । साफ दिख रहा है कि पिछले चार वर्षों से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्की, सुदान और सऊदी के बर्बर आतंकियों को घाटी में लाकर बसाया जा रहा है । जिस दिन मुझे उनके खिलाफ पुख्ता सबूत मिल जाएंगे वो खबर भी मैं बे झिझक छाप दूंगा । ये बोल कर अभय प्रताप खामोश हो गए । एक अजीब सा सन्नाटा कुछ दिनों हॉल में था । कमिश्नर और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता के पास कहने के लिए कुछ भी बचा नहीं था । तभी आरती का हवा लेकर अंदर आई । उन्हें देख आसिफ और इस्तखार बडे अदब से खडे हो गए । कश्मीर की तहजीब में मेहमान की सेवा करना अपना सौभाग्य मानते हैं । नौकरों से मेहमान की खाते नहीं करवाई जाती तो हारती खुद चली आई । आसिफ बोले अरे भावी अब मुझे आवाज दे दी थी तो मैं चाहे लिया था । भारती ने कहा नहीं आती भाई, ये तो मेरी खुशनसीबी है । वैसे भी काफी देर से कॉल साहब से कडी चाय पीकर बोर हो गए होंगे । लीजिए कहवे के साथ ये ताजे तेल भी और दिल लीजिए पार्टी की बात शंकर सभास् पडेंगे । आरती कहवा और तेल बिहार में तीनों को उलझाकर उस कमरे से बाहर आकर खडी हो गई । उस कहने की चुस्कियों के साथ उस कमरे के माहौल का कडवापन बह गया और फिर वहीं कश्मीरियत उस कमरे को ताजा कर गई । तीनों ने मिलकर थोडी देर कश्मीर के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर शांति से बात की । कमरे के बाहर खडी आरती ने बदलते शुरू को सुन कर राहत की सांस ली । कुछ देर में आसिफ और इस्तखार चले गए । अब प्रताप भी उतनी ही सहजता से अपने ऑफिस चले गए । ये बात और थी कि उस दिन जब तक कि वे घर नहीं लौटे, आरती ने उन्हें दिन में दस बार अलग अलग वाहनों से फोन किया था । पर असल में वो ये जानना चाह रही थी कि अब सही सलामत तो है ना । अभी प्रताप दिए जानते थे कि आज घर से बार बार फोन क्यों आ रहे हैं । तो उस दिन उन्होंने एक भी कॉल लेने से मना नहीं किया था । उस दिन अभिमन्यु को अपने पापा पर बहुत गर्व हुआ । बाद की गहराई पहले ही वो नहीं समझ पाया था । पर कुछ दिन वो पापा को देखकर रुतबा शब्द का मतलब वो सही समझ गया था । जैसे अभी प्रताप का अपना रुतबा था । वैसे ही दोस्तों में मोहल्ले में, स्कूल में अभिमन्यु का अपना रुतबा पूरी वादी में उसको कश्मीर का मेराडोना के नाम से पहचानते । काफी सारे क्लब अभिमन्यु को अपने क्लब की तरफ से खेलने के लिए काफी पैसे देने के लिए भी तैयार थे । पर अभिमानियों की निष्ठा उसके अपने क्लब के प्रति अभिमानियों की सबसे खास बात थी कि वो यारों का यार था यारी दोस्ती के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार हो जाता था और पिछले चौबीस घंटों में उसने अपने दोस्त की सूरत नहीं देखी थी । मुख्तार के घर जाकर जब उसने पूछा था तो उसकी मम्मी ने बताया था कि किसी रिश्तेदार के यहां गया है । बिना बोले गया इस बात का अभिमन्यु को थोडा आश्चर्य हुआ था । पर फिर वो ख्याल झटककर अभिमन्यु अपने क्लब पहुंच गया । क्लब में अभिमन्यु के और भी दोस्त थे जी आज मंसूर मसूद, सुखविंदर और राकेश राजधानी । राकेश अच्छा रेडर था । अभिमन्यु सेंटर फॉर खेलता था और मुख्तार गोल कीपर था । राकेश अनंतनाग के दूसरे छोड पर रहता था तो उसकी मुलाकात ज्यादातर ग्राउंड पर ही होती थी । पर कई बार मुख्तार, राकेश, रियाज, सोढी और अभिमन्यु हूँ । अपनी साइकल लेकर वादी में घूमने निकल जाते थे । कभी गौतम नाथ कभी अशमुकाम, कभी नागबल, कभी मार्तण्ड सूर्यमंदिर कभी क्या तो कभी क्या । घरवालों को भी उन दिनों बच्चों की कुछ खास चिंता नहीं लगी रहती थी क्योंकि उन्हें यकीन था कि खेल कूद कर बच्चे सही सलामत घर पहुंची जाएंगे । आज भी इतवार था राकेश, अभिमन्यु, सोढी, रियाज और मुख्तार का पहले से ही प्लान बना था । अशमुकाम जाने का, वो वाली जियाउद्दीन औलिया की दरगाह पर और मुख्तार की दो दिन से कोई खबर ही नहीं थी । बसंत पंचमी के दिन से जो गायब था अभी तक मिला नहीं था । अभिमन्यु फिर एक बार उसके घर आया । उसकी अम्मी ने कहा कि पांच छह किलोमीटर दूर बसे ब्रिज बिहारा में उसके रिश्तेदार कहाँ गया है? मुख्तार की अम्मी ने साथ में यह टिप्पणी भी की की अजीब लडका है । इतने सालों से मैं उसे कह रही थी कि उनके घर जाया कर और कभी मेरी बात नहीं मानी और परसों जब से आपके घर से आया है तब से उनके घर ही जाकर बसा है तुम अगर उस तरफ जाओ तो उसे लेते आना अभिमानियों को बडा या जीत लगा । राकेश और अभिमन्यु ने अपनी साइकल में हवा चक्की टीफिन चेक किया और तय किया कि जाते जाते मुख्तार को भी लेते जाएंगे । रास्ते में तो पडता है बिजबिहारा उन दिनों अभिमन्यु को जर्किन और अलग अलग टीशर्ट का बडा शौक चढा हुआ उसका अपना जाॅब ही बन गया था । सुन्दर सी टी शर्ट पहनकर उसके ऊपर उसने उस दिन ब्लू कलर की जर्किन पहनी थी । स्वाद तो थाई पर उस दिन कुछ ज्यादा सुन्दर लग रहा था । वो अंदर से बेहद खुश था क्योंकि अशमुकाम जाना उसे हमेशा से पसंद था । एक तो अशमुकाम में रखी मोजेज की पवित्र छडी देखते रहना उसे बेहद पसंद था । दूसरी वहाँ की विसाले यार की परंपरा अशमुकाम की उस दरगाह में अभिमन्यु ने बचपन से देखा था की एक शीशे बंद पेटी में यहूदियों के मसीहा मूसा यानी मुझे उसकी वो पवित्र छडी रखी थी । जब भी अभिमन्यु को छडी देखता हूँ तो उसकी आंखों के सामने उस जादुई छडी ने कैसे लोगों को बचाया । ये पूरा मंजर खडा हो जाता है । कहानी ये थी कि जब यह होती लोग अपने आप को बचाने के लिए मिस्र से भाग रहे थे तब फिर कौन और उसकी सेना उनके पीछे पडी थी । वहाँ से भागने का उनके पास कोई रास्ता नहीं था । आगे लालसागर था तो पीछे फिर उनकी सेना । लेकिन तभी यह हुआ यानी यहूदियों का भगवान । उन्होंने एक चमत्कार क्या उन्होंने अपने लोगों और मिस्त्रियों के बीच एक बादल खडा कर दिया । अब मिस्री इसराइलियों को देख नहीं पा रहे थे इसलिए फोन पर हमला नहीं कर सके । फिर यहोवा ने मूसा को लालसागर पर अपनी लाठी बढाने को कहा । जब उसने लाठी बढाई तो यहोवा ने पूरब से बहुत तेज हवा चलाई । इससे समुंदर का पानी दो हिस्सों में बंट गया और पानी दोनों तरफ दीवार की तरह खडा हो गया । सागर नहीं मूसा को रास्ता दिया था और मूसा ने उन्हें इजिप्ट के आतंक से बचा लिया था । हिंसा की ये वही छडी अभिमन्यु कई बार इसी कहानी को कृष्ण की कहानी से जोडकर भी देखता हूँ । जब घडी बरसात में तूफानी रात में यमुना जी अपने उफान पर थी । नवजात कृष्ण को सही सलामत नदीपार ननद के यहाँ पहुंचाने के लिए यमुना जी ने वासुदेव को रास्ता दे दिया था । वैसे अशमुकाम कि वह जगह इस्लामी और हिंदू विचारों का अनोखा संगम है जिसे कश्मीर में सूफी इस्लाम की परंपरा के नाम से जाना जाता था । सो फिल्म में रूसे रूके मिलन की बात हुआ करती है । खुदा को महबूब मानकर उसकी इबादत की जाती है । उस परंपरा में विसाल यानी किसी भी मुरीद की अगर मौत हो जाए तो उसे मौत नहीं मानते हैं । उसे अपने मुर्शिद से मिलन मानते हैं और उस दिन उस मनाया जाता है । अशमुकाम की पहाडी पर वाली के उसका नजारा सारे धर्मों के अंतर को मिटा देता है । इस दरगाह पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख सभी अपना मत्था टेकने जाते हैं । बर्फिली पहाडी पर सूरज ढलने के बाद परंपरा के अनुसार जब हर कोई अपने हाथ में मशाल थाम लेता है मुरीद और मुर्शीद के विसाल की खुशी में शरीक होता है तो उन हजारों जलती हुई मशालों की गर्मी में इंसान सिर्फ इंसान दिखाई देता है । हिंदू मुस्लिम ना कुछ और और इस वक्त अभिमन्यु मुख्तार के बारे में सोच कर परेशान था । अशमुकाम का ख्याल छोडकर दोनों मुख्तार के रिश्तेदारों की यहाँ पहुंचे तो ये बात सुनकर हैरान हुए कि मुख्तार तो दो दिन पहले आया है और सुबह तडके पढाई करने घर से निकल जाता है । रात को ही लौटा है । अभिमन्यु और राकेश के चेहरे पर बहुत बडा प्रश्नचिन्ह दिखाई बडा हूँ कि ये कौन सी पढाई कर रहा है । जो से इतनी दूर आकर पढना पड रहा है वो भी छुट्टी के दिन मुख्तार के रिश्तेदारों के सामने । अभिमन्यु ने ये बात जाहिर होने नहीं दी पर दिमाग परेशान था कि मुख्तार आखिर कर क्या रहा है । बाहर आते ही राकेश और अभिमन्यु हूँ । उस कस्बे में हर जगह मुख्तार को ढूँढने लगे । उस कस्बे में उनके स्कूल के कुछ दोस्त रहते थे तो अभिमन्यु उनसे जाकर मिला । अब्बास ने बताया कि हाँ मिला था । मुख्तार बाजू वाली गली में दिन भर घूमता रहता है । राकेश और राजधानी जल्दी जल्दी बाजू की गली में पहुंच गए । मुख्तार को ढूँढने लगे । एक जगह में मुख्तार दिखाई दिया बस अपने में खोया खोया सा । अभिमन्यु ने उसे आवाज दी और मुख्तार को सुनाई नहीं दी । अभिमन्यु बिल्कुल उसके सामने जाकर खडा हुआ था । चल क्या रहा है तुम्हारा अपने सामने अचानक से अभिमन्यु को देखकर मुख्तार हर बडा सा गया हूँ । जवाब देना तो दूर उल्टा इन्हीं लोगों से पूछने लगा कि तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो? हमारी छोड तो यहाँ कौन सी पढाई कर रहा है ये बता अभिमन्यु ने जरा गुस्से में ही मुख्तार से पूछे । मुख्तार कुछ बोल नहीं पा रहा है और सामने के घर से सुनंदा मट्टू बाहर आती अभिमन्यु को दिखाई उसे देखते ही मुख्तार के चेहरे के जो हावभाव बदले थे उसे देख अभिमन्यु एक पल में समझ गया कि यहाँ कौन सी पढाई चल रही है । उसने मुख्तार से कश्मीरी में पूछा अबे ये बिजली टाॅप गिरी? मुख्तार के पास कोई जवाब नहीं था । वो सुनंदा में इतना खोया था की आपने यार को इस मीठे कांड में शामिल करना फूल गया था । अभिमन्यु मुख्तार को वहीं छोडकर जाने लगा । ये कहकर की यादों से छुपाता है । एक पल में मुख्तार की आंखें अभिमन्यु के सामने झुक गई और उसकी वो सूरत देख अभिमन्यु का मोहन सा दिल तुरंत निकल गया । मुख्तार के कंधे पर अपना हाथ डालकर अभी उन्होंने बस इतना ही कहा चलो घर चल अम्मी राह देख रही है । अनुमान से ही सही मुख्तार अभिमन्यु के साथ चल पडा है । सिर्फ इसलिए कि अभिमन्यु ने कहा था उस दिन के बाद मुख्तार ने अभिमन्यु का जीना हराम कर दिया था । वो हर दूसरे दिन अभिमन्यु को लेकर सुनंदा की बस एक झलक देखने उसके कश्मीर पहुंच जाता था । अभिमन्यु को उसे अपनी साइकिल पर बैठाकर छह किलोमीटर दूर डबल सीट जाना पडता था । साइकिल चलाते चलाते अभिमन्यु की जान निकल जाती थी । ये काम नहीं था कि आगे डंडी पर आराम से बैठा मुख्तार सुनंदा की हर छोटी मोटी बाद बता बताकर अभिमन्यु को पकडा देता था । साइकिल चलाता अभिमन्यु कभी भी इस बात का बुरा नहीं मानता था क्योंकि वह जानता था कि उसका यार इसमें है और इस वक्त उसे सिर्फ अपनी महबूबा ही दिखाई दे रही है । उन दिनों का रोमांस कुछ ऐसा था की लडकी ने अगर अपनी बल्कि उठाकर देखा या मुस्कुराई या फिर बहाने से बात करने की कोशिश की । मतलब उसे भी इंट्रेस्ट है । पर उसके पहले लडका नजर में तो आना जरूरी है । अब मुख्तार सुनंदा को पटाने के तरीके ढूंढने लगा । अभिमन्यु की अलमारी के अलग अलग जर्किन मुख्तार के बदन पर दिख रहे हैं । दिल्ली से नया नया आया हेयर स्टाइलिस्ट जिसकी उन दिनों अनंतनाग कस्बों में बडी हवा थी । उसकी दुकान पर जाकर पूरे पांच रूपये खर्च करके हेयर कटिंग कराई गई । उन दिनों बस से कॉलेज जाना एक अमेरिका स्टेटस था । मुख्तार अब रोज बस से कॉलेज जाने लगा । मुख्तार के इन सब सोच लो में अभिमन्यु का अपना खेल का टाइम टेबल गडबडा गया । पर अभिमन्यु को उस की परवाह नहीं थी क्योंकि उसका दोस्त खुश था । सुनंदा भी अब आहिस्ता आहिस्ता मुख्तार को देखकर मुस्कुराने लगी थी । जब आप ने सोचा कि चलो अपनी मोहब्बत का इजहार करते हैं पर कैसे तो उन दिनों इस दिल की बात उस दिन तक पहुंचाने का सिर्फ एक ही जरिया था खत्म । उस रात अभिमन्यु के कमरे में फाडकर फेंके गए । कागजों की कालीन बिच गई थी । मुख्तार को समझ नहीं आ रहा था की ली थी तो क्या लिखूँ । पहला प्यार बडा खास होता है तो मुख्तार कोई भी रिस्क नहीं लेना चाह रहा था । अभिमन्यु ने उसे अपने तरीके से काफी मदद करने की कोशिश की । दोनों को खत लिखने का अनुभव नहीं था तो अभिमन्यु ने सोचा कि लव सांस की मदद ली जाए । अभिमन्यु ने अंग्रेजी लाॅस का पिटारा खोल दिया । हलो इस इतनी यू लुकिंग फॉर नहीं । वाना चेंज मॅन यू या फिर नो न्यूयाॅर्क फाॅर । कई कई गाने उनके अर्थ के साथ अभिमन्यु ने मुख्तार को समझा दिए । इन गानों की लाइन से कुछ मिलता है तो लिख देना खत्म । ये कहकर अभिमन्यु कुछ और गाने समझाने लगा पर मुख्तार इन गानो की प्रेम भावना से अपने आप को जोड नहीं पा रहा था । मुख्तार उठा अपने घर से एक कैसे लेकर आया और सुनने लगा ग्रेड किशोर कुमार साहब ने पहली बार अभिमन्यु की जिंदगी में कदम रखा हूँ । ऐसा नहीं था कि इससे पहले उसने किशोर को कभी नहीं सुना था पर गौर से कभी नहीं सुना हूँ । उस रात देर तक दोनों ने मिलकर किशोर के कम से कम सौ गाने सुने । उसमें से कई लाइनें खत में इस्तेमाल करने की नाकाम कोशिश भी की । जैसे की कोरा कागज था, ये मन मेरा पल पल दिल के पास एक अजनबी हसीना से मुलाकात हो गयी । फूलों के रंग से कितने सारे तगडे? रिसर्च के बाद जो खाद सुनंदा को देने के लिए पूरी तरह से तैयार हुआ, उस पर कौन शोर में? यानी कश्मीरी भाषा में लिखा था मेरी प्यारी सुनंदा । बस इतना ही पूरा पन्ना खाली था और नीचे कहीं कोने में एक हट बना था । दूसरे दिन बहुत सुनंदा तक पहुंचाया भी गया जब वह खर्च खोलकर पड रही थी । मुख्तार दूर से उसको देख रहा था । हद पढकर जब मुस्कुराई थी उस दिन मुख्तार की खुशी की इंतिहा हो गई थी । उसे इतना प्यार में देखकर अभिमन्यु को लगा था जैसे मुख्तार बिना पंखा आसमान में उड रहा है । वादी में बाहर का मौसम अपने चरम पर था । हर तरफ खुशहाली थी । विदेशी सैलानियों का तांता लगा हुआ था । खास कर हनीमून पर आए जोडो के कारण वादी में हर जगह बहुत बहुत ही मोहब्बत बिखरी हुई थी । बागों में फूल सुर्ख रंग धारण कर रहे थे । उनका रंग मुख्तार और सुनंदा पर भी चढा हुआ था । मुख्तार का काफी समय अब सुनंदा के साथ बीतने लगा था पर अभिमन्यु और मुख्तार की दोस्ती में जरा भी अंतर नहीं आया था । जब भी मुख्तार सुनंदा में व्यस्त होता, अभिमन्यु अपने खेल कूद में लगा रहता है । मंसूर राकेश सोढी रियाज इनके साथ उसका फुटबॉल का गेम और सुधर रहा था । रियाज और अभिमन्यु की काफी बनती थी । आजकल साइकिलिंग अभिमन्यु की नई मोहब्बत थी । वादी का चप्पा चप्पा उसे मालूम था तो वो अपना स्टैमिना बढाने के लिए साइक्लिंग क्या करता था । कई बार तो झेलम के किनारे घूमता रहता हूँ । भले ही दिन भर मुख्तार सुनंदा के पीछे पीछे रहता हूँ । शाम को एक बार तो वो अभिमन्यु को मिलने आता ही था । खाने के बाद दोनों छत पर बिछाना लगाकर लेटे लेटे, रात में तारे गिनते । किशोर के गाने सुनते सुनते मुख्तार सिगरेट पीता । उस पर अभिमन्यु गुस्सा करता है कि मतलब पर वो मुख्तार था वो कहाँ सुनने वाला था । अब किशोर कुमार उनकी दोस्ती का एक अभिन्न अंग बन गए थे । कभी दोनों सेब के बागान में मिलकर रेडियो पर हिन्दी गानों के फरमाइशी प्रोग्राम सुनते थे । अपने गानों की फरमाइश करते मुख्तार हमेशा सुनंदा को ध्यान में रखकर गानों की फरमाइश के खत रेडियो स्टेशन को भेजता । दोनों अच्छा बाल गार्डन जाकर अपने रेडियो और ऍम पर गाने सुनते थे । इस पूरी वादी में जो मन में आए वो दोनों साथ साथ करते हैं । बिल्कुल आजाद पंछियों की तरह । पर इसी आजादी के मायने कुछ ही दिनों में बदलने वाले थे । ये अंदाजा सिर्फ आने वाले मौसम को था । अब वादी में हवा बदल रही थी । मौसम बदल रहा हूँ । ग्रीष्मऋतु ने दस्तक दी थी । हल्की हल्की गर्मी बढने लगी । अभिमन्यु का जन्मदिन नजदीक आ रहा था । मुख्तार अभिमन्यु को कोई खास तोहफा देना चाह रहा था । जो गिफ्ट उसने सोचा था वो अनंतनाग के कस्बे में मिलना मुश्किल था । तो उस दिन सुबह सुबह मुख्तार श्रीनगर चला गया जो अनंतनाग से साठ किलोमीटर था । जब वह जा रहा था उस वक्त से अभिमन्यु का दिल बेचैन सा था । अभी उन को लग रहा था कि मुख्तार न जाए । हवा में गर्मी के साथ साथ कुछ और भी अभिमन्यु महसूस कर रहा था । वो क्या था ये वो खुद समझ नहीं पा रहा था । लाख मना करने पर भी मुख्तार चला गया । उन दिनों जन्मदिन धूमधाम से मनाने का चलन नहीं था । हाँ आरती उतारती थी, नए कपडे मिल जाते थे और मंदिर जाना एक अनकहा नियम सा बन गया था । मुख्तार चार बजे की गाडी से लौटने वाला है । ये मालूम होते हुए भी अभिमन्यु उसका एक वजह से ही इंतजार कर रहा था ।
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Sound Engineer