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रिफ्यूजी कैंप - Part 28 in Hindi

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AuthorMixing Emotions
‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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दूसरे दिन अभिमन्यु को और अभय प्रताप जाकर उसकी माँ का अंतिम संस्कार कराएंगे । अभिमन्यु के दो दिन सारिका को समझाने में निकलते हैं और रात पेड के चबूतरे पर नींद की राह में तारे गिनते गिनते नहीं । वहाँ के बिना सारी का थोडा सा ही समझ ली थी । लेकिन अभिमन्यु की माँ की तबियत थोडी खराब होने लगी । उस रात भी अभिमन्यु जाता रहा और रात भर आसमान के तारों से पूछता रहा कि तुम्हें कश्मीरी पंडितों से क्या दुश्मनी की? उनकी कुंडली में आकर ऐसे बैठे हूँ कि एक पूरी की पूरी पीढी ध्वस्त करती है । अभिमन्यु मन की अजीब व्यवस्था में तारों से बडबडा रहा । कोई अगर उसकी बातें सुनता तो उसे पागल करार देते । रात भर अभिमन्यु तारों से ही बातें करता रहा । दुख में डूबता रहा और जसप्रीत को याद करके बताना । फिर कश्मीर में मुख्तार के साथ भटकता रहा हूँ और अपने घर को याद करते फिर होंगे । सुबह सुबह जब हल कासा नहीं रहा था । अभिमन्यु ने देखा कि अभय प्रताप चलकर उस के पेड के पास आ रहे थे क्योंकि उसका घर बन गया, सोई नहीं । रात भर अपने बेटे को करोना से देखते हैं । उसके पास बैठे हुए अभी प्रताप ने पूछा अभी अभी चाहता हूँ । अभिमन्यु ने उन्हें शांति से जवाब दिया । अभयप्रताप उसे देख रहे हैं । शायद जो बात करने आए थे, कर नहीं पा रहे हैं । अभिमन्यु को बढता जो हुआ कि अपनी बात बेबात तरीके से रखने वाले अभय प्रताप के मूड में से शब्द क्यों नहीं निकल रहे हैं । पर अब अभिमन्यु कितना से आना हो चुका था कि मन की बात समझने लगा था । माँ चाहती है कि मैं आ नहीं रहा हूँ । यही कह रहे थे ना आप? अभिमन्यु ने पूछा हूँ अब है । प्रताप ने कुछ जवाब नहीं दिया । वो दो पल शांति से अपनी आंखें मूंदकर बैठे रहे । उन दोनों में कुछ पल गुजर गए । अभिमन्यु ने आगे बढकर उनका हाथ अपने हाथों में लेकर का पापा आप चिंता मत करो, मैं ठीक हूँ । अभिमन्यु के हाथ पर अपना हाथ बडे प्रेम से रखते हुए अभय प्रताप ने आपकी आवाज में कहा तुम ठीक हो पर तुम्हारी माँ ठीक नहीं है । जब से तुम आये हो तो चैन से सो नहीं पाई । रात में हर घंटे के बाद जाना चाहती है । बाहर आकर दूर से ही देखती है कि तुम चाह रहे हैं तो मैं नींद नहीं आ रही तो परेशान हो जाती है, अंदर आकर होती है । फिर थोडी देर बाद इस उम्मीद से बाहर आती है कि शायद अब तुम हो चुकी हूँ । पर फिर उसकी पर फिर उस की दवाई हुई जिसकी मैं सुन लेता हूँ और जान जाता हूँ बाहर हूँ अभी भी जाग रहे हैं । इतना कहकर अभय प्रताप चुप हो भोर की वो ठंडी ठंडी हवा अब दोनों को जम्मू की गर्मी के ऐसा से दूर ले जा रही है । इस ठंडी हवा को पूरी तरह से अपने सीने में भरते हुए अभिमन्यु ने गहरी सांस और अपने पापा के हाथ हो चुकी से दबाते हुए था । हम दोनों की इस प्रेम में आप भी रात भर जाते रहते हैं ना मुझे आदत हो गई है पर तुम्हारी माँ की तबियत बिगडने लगी । उससे कुछ हो गया तो इतना कहकर अगर प्रसाद फिर अभिमन्यु ने उनका हाथ मजबूती से था और उन्हें लेकर वो अपने टेंट की तरफ बढ गया । रोशनी सारी का रोशनी की माँ और उसके पिता शांति से सोये हुए अभिमन्यु ने महसूस किया की आरती आंखे बंद करके लेती हूँ । अभिमन्यु सीधे अपनी माँ के पास जा कर लेंगे और उसका हाथ अपने माथे पर रहते हैं । उसने आहिस्ता से कहा बहुत दिन हुए हूँ, उन्हें मुझे तब क्या देकर सुनाया नहीं इसलिए मुझे नींद नहीं आती । आरती उठकर बैठी है । उसने अपने बेटे का सिर्फ अपनी गोदी में रखा और एक बार उसका माथा चूम लिया । उनका गला रूंध गया, आंखों से आंसू टपकने लगे और प्रेम से हाथ अभिमन्यु को धमकियां देते रहेंगे । अभयप्रताप चुप चाप लेट गए । बहुत देर तक वो दोनों वैसे ही रहे । फिर आहिस्ता से आरती ने कहा मैं चाहती हूँ तो पढ लिख कर अपना नसीब बना । अब मेरी एक छोटी बहन भी है । बाकी की चीजों में उलझेगा तो खुद को परेशान करेगा और तुझे हम ऐसा नहीं देख सकते हैं तो नहीं चाहता । मैं काम करूँ नहीं करती तो भी इस वक्त कमाने का ख्याल छोड दे । तेरे पापा जितना कमाते हैं हम गुजारा कर लेंगे और तू आने वाले दिनों में सिर्फ पढाई पर ध्यान दें । बस कुछ ही तो दिनों की बात है । कब परीक्षाएं फॉर्म भराया नहीं हूँ । इस वक्त अभिमन्यु अपनी माँ का दिल नहीं दुखा सकता हूँ हूँ । कहीं पढ चुका था की बीमारी शरीर में आने से पहले मन्या फिर शरीर उसके आने के सिर्फ लक्षण ही बताया था । असल में तो मन ही बीमार रहते हैं अभिमन्यु अपनी माँ को हो नहीं सकता । ये आप अपने से ले नहीं सकता । हाँ, फॉर्म भराया हुआ और आने वाले दिनों में सिर्फ पढाई करूंगा । थोडी ही देर में सुबह आरती का पूरा ध्यान आज सुबह से सिर्फ सारिका पडता है । सुबह से वो दस बार हो चुकी थी । मेरी माँ का मुझे उसके पास जाना है । आरतियों से समझा रही थी कि उसकी माँ भगवान के पास है । अब उसे वापस आने में थोडी देर लगे । अभिमन्यु ने सारिका को गोद में उठाया हूँ और उसका मन बहलाने बाहर रहते हैं । इस बीमार से कैंप ने उसका मन बहलाने निकला । अभिमन्यु हूँ उसे और कहाँ ले जा सकता था । छोटी सी बच्ची एक चॉकलेट खाकर खुश हो सकती थी । पर इस कैंप में चॉकलेट कहाँ मिल सकती थी? नहीं नहीं, फिर भी अभिमन्यु उसे दुकान पर ले गया । राशन की दुकान पर तौबा भीड लगी थी । लोग राशन के लिए अपना गुस्सा राशन वाले पर उतार रहे थे । अरे राशन चाहिए हमको इस महीने का राशन अभी तक नहीं मिला । में एक आदमी ने चिल्लाकर कहा कहाँ से लाऊँ में राशन मेरे पास सप्लाई नहीं अभी तक दुकानदार ने जवाब दिया । अभिमन्यु ने सारिका को गोदी से उतारा और उसे कहा कि वह आरती के पास जाए । मैं चॉकलेट लेकर आना हूँ । सारिका चली गई । महीने की दस तारीख हो गयी और तुम कह रहे हो की सप्लाई नहीं आई । भीड में से और एक आदमी ने चिल्लाकर जवाब होगा अरे नहीं आईसप्लाई तो मैं क्या करूँ? इतने परेशान हो तो जाकर पूछ लो अपने सरकार से । सरकार मेरी नहीं सुनती क्या? बता तो भारी सुन ले । हाँ तीसरा आदमी अब अपना आपा खोकर बोला पिछले महीने भी तुम ने यही किया था । अगर वाकई सप्लाई नहीं आई थी तो तुमने सामान बाहर वालों को कैसे भी च ब्लैक में कौन ब्लैक कर रहा है? भाई हमें भी तो चुनाव इंस्पेक्टर राशिद बट वहां आपने कांस्टेबल के साथ आकर पूछ नहीं छह फीट का गोरा चिट्टा पठान अपने पेट पर पांच किलो कि चल भी चलाएंगे । मैं पांच दवाई अपनी वर्दी की धौंस जताते वहाँ पहुंच गए उसे । वहाँ देख कर लोग थोडा सा इसकी जा गई । आई एआईआईए बट साहब दुकानदार चमचागिरी करते हुए हो । इंस्पेक्टर बट का नाम सुनते ही अभिमन्यु के माथे पर त्यौरियां चढ । ये वही नाम था जिसका मन ही मन अभिमन्यु पीछा कर रहा हूँ । बट के बोल चाल से ही लग रहा था कि वो इस कैंप को अपनी जागीर समझता है । वो वहाँ जमीन भीड को कीडे मकौडों की तरह देख रहा हूँ तो ये इतनी भीड का लगा रखी है । क्यों लाना चाह रहा हूँ? बट ने पूछा हूँ भीड में दो चार लोग साथ ही बोल पडे कि ये दुकानदार हमें राशन नहीं दे रहा है । हम हमारा राशन लिए बगैर यहाँ से नहीं जाएंगे । लोग चिल्ला चिल्लाकर अपना राशन मांगने लगे । घबराई रोशनी दौडते दौडते वहाँ पहुंच गए । उसे अभिमन्यु की गुस्से के बारे में पता था । उसके साथ सारी का भी नहीं । रोशनी अभिमन्यु को भीड में ढूंढने की कोशिश कर रही थी और भीड इतनी थी कि उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और जब उसने बट को वहाँ देखा तो समझ गई कि आज जरूर यहाँ कुछ न कुछ होगा । उसने तुरंत सारिका कोटेंट की तरफ भेज दिया और कहा कि जब तक मैं नहीं हूँ घर से कहीं बाहर मचाना सारी कर चलेगी । राशिद बट उस कैंप के लिए एक तरह का शैतानी था । हफ्ते भर में एक चक्कर यहाँ लगा जाता हूँ और कैंप के लोगों में हजार कमियाँ निकाल कर उन्हें जेल में बंद करने का डर दिखाकर उनसे पैसे ऍम जो उसके खिलाफ बोलते हैं उनके साथ मारपीट कुछ नहीं मिलेगा । तुम लोग होगा जो करना है करो । सबको मुफ्त में खाने की आदत पड गई है चलानी । ऐसे बट ने अपनी तेज और नफरत भरी आवाज में कहा जिस बात से अभिमन्यु भाग रहा था, बार बार वही सारी चीजें अभिमन्यु के सामने आकर उसे युद्ध के लिए ललकार रही । लाउडस्पीकर की आवाज अभिमन्यु को सब एक बार फिर याद आने लगा । लाउडस्पीकर की आवाजें, धमकी भरे कागज, हिन्दुओं को गाली देते मुसलमानी जुलूस, जलते घर गिरती लाशें, हर्बल पीछा करती मौत और उसके खाते हो इन कैंपों में रहकर अपना वजूद खोती अपना मान सम्मान कोई हुई पुरुष बार बार भगोडे होने का तमगा सहते लोग बीस तीस रुपए के लिए अपनी आबरू बेच दी और थी और वो भी कम पड रहा था । इसलिए चांदी थी आता है अभिमानियों के कानों में फिर एक बार वही नारे जोर जोर से खून जाने लगी कि पंडितों कश्मीर को छोड दो और अपनी औरतें हमारे लिए छोडना । अभिमन्यु आपने कश्मीर में पहुंच गया । उसे लगा कि अपना मानसिक संतुलन हो रहा है । आजू बाजू के लोग अपने राशन के लिए चला रहे थे । दुकानदार से झगडा कर रहे थे । दुकानदारों ने चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि चुप चाप चले जाओ और अभिमन्यु को सुनाई दे रहा था कि कश्मीर छोड कर चले जाओ । अभिमन्यु कभी कश्मीर में था । अभी राशन की दुकान पर वो चलाना चाह रहा था कि कश्मीर हमारा भी है । इस पर हमारा भी हक है और उसकी आवाज निकल ही नहीं नहीं । उसे दिख रहा था कि इंस्पेक्टर पठान ने लोगों पर लाठीचार्ज शुरू किया । वो लाठी कभी अभिमन्यु को राइफल मालूम पड रही थी तो कभी लाठी शोर से बचने के लिए उसने दोनों कानों पर अपने हाथ रखती है । वो अनमनी व्यवस्था में वैसे ही खडा रहा । रोशनी की नजर अभिमन्यु पर पडी और उसे देखते ही रोशनी को तुरंत मालूम हुआ कि अभिमन्यु की तबियत बिगड रही है । अभिमन्यु के पास पहुंचने के लिए वो भीड से जूझती रही । पठान भी चिल्ला चिल्ला कर के रात यहाँ आकर दंगा करते हो और हम करुँ । आज सबको ठीक कर के ही दम लूंगा और वो बेरहमी से लोगों को मारता है । फिर भी लोग चिल्लाते रहे कि हमें हमारा राशन देंगे । हमारे बच्चे भूखे मर रहे हैं । दे दो राशन वरना पढना हो वरना क्या करोगे तो पठान ने लोगों को ललकारते हुए कुछ वरना वरना हम हमारा छीन लेंगे । इतने शोर में भी अभिमन्यु की आवाज अपनी बुलंदी पर उसकी वो आवाज सुनकर वहां अचानक सब शांत हो । सब लोग अभी मन को देखते हैं जो इतने दिन से कहना चाह रहे थे । अभिमन्यु ने कह दिया था पठान ने वो आवाज भी सुन ली थी और आवाज लगाने वाले को भी तय उसने देखा कि जिसकी अभी ठीक से मुझे तक नहीं निकली थी, वो लडका उसे ललकार रहा था । पठान भीड को चीरते हुए अभिमन्यु के पास पहुंच गया । उसने अभिमानियों का कॉलर पकडकर अभिमन्यु का मजाक उडाते लेगा अच्छा दो हाथ छिनेगा । चिलगोजे और बढ्ने अभिमन्यु को मारने के लिए अपनी लाठी उठाई । वो अभिमन्यु को मारने ही वाला था कि अभिमन्यु ने उसकी लाठी को अपने हाथ से रोक दिया और नफरत से पठान की आंखों में देखा । उसके ये तेवर देख पठान ने पूछा इतनी गर्मी किसका पिलायेंगे तो जबान संभाल कर बात करो । अभिमन्यु ने जवाब दिया रोशनी अभिमन्यु की तरफ आगे बढी कि पठान को रोका जाए और अभिमन्यु ने नजर से ही उसे वही रोक दिया । अभिमन्यु की नजर इतनी पहनी थी की रोशनी की हिम्मत ही नहीं पडी की वो आगे बढकर कुछ कह सकते हैं हूँ साला हमें सिखाएगा बात कैसे करनी है बहुत नेतागिरी चढी है तुझे चल पुलिसथाने सारी हेकडी वही निकालता हूँ । पठान ने अभिमन्यु को कॉलर से ही घसीटा और जीत की तरफ ले जाने लगा । जाते जाते चिल्लाकर कहने लगा हूँ खाने को अनाज नहीं करने को काम नहीं अपनी जमीन नहीं, अपना आसमान नहीं और हक चाहिए तो मैं अपना चलता नहीं देता हूँ । तुझे तेरा हक मेरे सामने नेता बनता है । पठान ने अभिमन्यु को खींचकर जीतने धकेलेंगे अभिमानियों के पीछे हवलदार बैठ गया और जीत थाने की ओर चली है । रोशनी तुरंत अभयप्रताप के पास भाई हूँ । पुलिस अभिमन्यु को पकडकर लेगी । रोशनी नहीं का क्यों कहते हुए आरती अपने बिस्तर से हूँ । राशन की दुकान पर वो इंस्पेक्टर बट से बढ गया । अभयप्रताप तुरंत चौकी के लिए निकले और बार बार मना करने के बाद भी आरती उनके साथ जल्दी तरीका को अपनी माँ के पास छोडकर रोशनी भी चलते । रास्ते में रोशनी मन ही मन सोच रही थी । इंस्पेक्टर राशिद बट तो गलत है ही पर क्या असमान्य सही कर रहा है? अधिकार छीनने कैसे जा सकते हैं? वो तो बहाल होते हैं । राशन वाला राशन नहीं दे रहा है तो उसे बर्खास्त कर देना चाहिए ना कि उसकी दुकान लूटकर उसके साथ हिंसा करनी चाहिए । रोशनी बेचैन सी हो चली दो महीने पहले भी वैसी ही बेचैन हुई थी जब वो और अभयप्रताप प्रिंसिपल ऑफिस करेंगे । फरवरी के महीने से ही अभय प्रताप और वह हर दो दिन बाद ऍफ इसके चक्कर लगाया करते हैं ये जानने के लिए कि वादी के हालात कैसे सरकार हम कैंप वालों को वापस अपने घर पहुंचाने के लिए क्या कर रही है । हम सब कब अपने घरों को वापस लौट सकते हैं । पहले पहले वो ऐसी सवाल करने वालों के साथ हमदर्दी से पेश आ देंगे । और जैसे जैसे वक्त गुजरता गया नहीं उनके पास जवाब बचा था और न ही हमदर्दी । अभय प्रताप कई बार कैंप की स्वच्छता की समस्या भी उनके पास ले जाते हैं । कभी सफाई होती कभी नहीं होगी । दो महीने पहले एक ऑफिसर ने बहुत ही बदतमीजी के साथ अभय प्रताप से बात की । अपनी परेशानी खुद सुलझा हूँ, हमें परेशान करने बताया । तब अभयप्रताप ने उनसे प्रार्थना की थी की हालत किसी के हाथ में नहीं । पर आप एक मानवीय संवेदना के साथ तो बातचीत कीजिए जहाँ पूरे हिंदुस्तान को हम लोगों के साथ खडा होना चाहिए । वहीं पर आप लोगों को ऐसे दुत्कारते रहेंगे तो उनका रहा साहब मनोबल फीट ऊंचाई । ऑफिसर ने बहुत ही हीनता पर उतरते हुए जवाब दिया हम लोग आपके साथ खडे नहीं । तीन लाख भागे हुए लोगों का बोझ सरकार पर पडा है । कहाँ से आता है पैसा ये जो आप मुफ्त का राशन तोड रहे हो ना? ये पूरे हिंदुस्तान की जनता टैक्स अदा करती है । उन पैसों में से आता है सोच लो अगर कोई नैसर्गिक विपदा में आपका सब कुछ लुट जाता तो आप कहाँ जाते? खुशनसीब हो तुम लोग जो सरकार तुम्हारा इतने महीनों से ध्यान रख रही है । राशन के साथ साथ तुम्हारी झोली में हर महीने कुछ पैसे डाल रही है । इस घटना के बाद ही अभयप्रताप सरकार से ये पूछने नहीं गई जो हुआ उसका जिम्मेदार कौन है? उस दिन कैंप लौटते वक्त रोशनी बडी बेचैन थी । चलते चलते रो पडी थी पर कोशिश कर रही थी कि अब प्रताप उसके आंसू न देगी । पर अभय प्रताप समझ गए थे कि वह हो रही है । उन्होंने चलते चलते हल्के से उसके सर पर हाथ है । उसकी बेचैनी समझकर अभयप्रताप ने उसे बेहद ही अच्छे तरीके से कुछ समझाया था । उन्होंने कहा था कि सच्चा धर्म क्या है ये अगर समझना है तो वो हमें हमारे धार्मिक किताबों में बहुत ही सटीक और सहज तरीके से देखने को मिलता है । महाभारत की एक धार्मिक कथा के अनुसार समंदर के अंदर एक सबसे पुरातन कछुए आपको पार की पीठ पर शेषनाग अपना संतुलन बनाकर रहता है । उस शेषनाग के माथे के ऊपर पृथ्वी को रखा गया है । ये कछुआ और शेषनाथ लाखों सालों से पृथ्वी को सागर के पानी में डूबने से बचा रहे हैं । पृथ्वी को बचाने का अपना काम निरंतर बिना थके बिना रुके करके आ रही सोचूँ अगर दोनों में से एक ने भी अपना काम ठीक तरह से नहीं किया या छोड दिया तो पूरी सृष्टि डूब जाएगी । पर वो वैसा नहीं चाहते हैं, अपने काम को पहचानते हैं और इस वसुंधरा को बचाने का अपना धर्म निभाते हैं । लोगों को यहाँ क्या बचाना है, क्या नहीं । यही मालूम नहीं तो हमारी उम्मीद ही बेकार है कि वो अपना काम सही ढंग से करेंगे । सरहद के उस बार क्या इस बार बहुत लोग भी मारे और मजे की बात यह है कि वह बीमार हैं, ये उन्हें मालूम नहीं तो बीमार लोगों के लिए क्या मन में लाकर हम जितना बचा सकते हैं । हमें बचाना चाहिए । इस वक्त कैंप के लोगों का मनोज है तो हमें बनाए रखना चाहिए । सबसे पहले तो उनके शरीर और मन बीमार हो चले । हमें उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए । उस दिन के बाद अब प्रताप ने अपना पूरा ध्यान कैंप की सेहत पर लगाया था और रोशनी ने भी उनके साथ अपने आप को पूरी तरह से इसमें झोंक दिया था । अभय प्रताप की संगत में कुछ सही और गलत का फर्क समझ गई नहीं और इस वक्त उसका अभिमन्यु गलत था । बीमार था । दुनिया को बचाने से पहले रोशनी को अभिमन्यु को बचाना था । कल रात उसने अपनी माँ से भी झूठ बोला ना । ये बात भी रोशनी ने सुनी थी । उसकी बीमारी का वो पहला लक्षण था और अभिमन्यु को बचाने का पहला कदम था । इंस्पेक्टर राशिद बट से । अभिमन्यु को छोडा

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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