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परीक्षा कब है? अभय प्रताप ने पूछा अगले हफ्ते अभिमन्यु ने जवाब दिया । इस पर आरती और अभयप्रताप एक दूसरे को देखने लगे । दोनों को लगा कि कुछ गडबड है । हफ्ते बर्बाद परीक्षा है और ये अचानक से यहाँ चलाया ये कैसे हो सकता है । पर इस वक्त दोनों ने इस पर बात करना ठीक नहीं समझा । मुख्तार यहाँ आया था ना कैसा है वो अभी उन्होंने पूछा । मुख्तार का नाम सुनते ही आरती का चेहरा उतर गया । वो तो उसका दूसरा बेटा ही था । पानीपत जाने से पहले जिस मानसिक अवस्था में अभिमन्यु को ढूंढते वो यहाँ आया था । वो अवस्था तो अभिमन्यु से भी बुरी थी । उसके मन पर शायद दोहरा बोझ होगा कि वो अपने दोस्त की रक्षा नहीं कर पाया और दोस्त के बिना उसे रहना नहीं आया था । आरती ने बस इतना ही का कैसा है वो वहाँ आकर मुझसे मिला भी नहीं । अभिमन्यु ने अपना मन हल्का अभयप्रताप पर आरती को इस बात का आश्चर्य हुआ । अब प्रताप अभिमन्यु के मन की अवस्था समझ रहे हैं । जानबूझ कर नहीं मिला होगा । यहाँ का हाल देखकर उसका रोना नहीं हूँ । हमने जैसे तैसे उसे समझाकर हमारे पास भेजा था । आरती ने बताया थोडा ज्यादा इमोशनल है । मुख्तार जो हुआ उसके लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है । शायद इसी के कारण तुम्हारा सामना नहीं कर पाया होगा और चला गया होगा वापस अभय प्रताप ने अभिमन्यु को अपने तरीके से समझाने की कोशिश की । मुख्तार के साथ मन से ही अभिमन्यु कश्मीर पहुंचने वाला था । पर एक प्याली चाय ने उसे वहाँ जाने से रोक दिया । चाहिए । कहते हुए रोशनी ने उसके सामने स्टील के एक में चाहे रखती है और बाकी लोगों को भी दे दी । चाय की हल्की हल्की चुस्की लेते हुए अभय प्रताप फिर अखबार में गुम हो गए । मैं स्नान करके आती हूँ ये कहकर रोशनी की माँ अपने कपडे लेकर बाहर निकलेंगे । आज तो आप अपने बेटे से अलग नहीं रहना चाहोगे ना अंतिम जी तो आप अपने बेटे से गप्पे लडाइए । आज मैं आपका स्कूल संभाल लेते हैं । बच्चे आते ही होंगे ये कहते रोशनी ने वहाँ पडी एक किताब चौक और स्लेट उठाई और निकल पडे । आकर बात करती हूँ । तुमसे जाते जाते उसने अभी मैंने उसे कहा । रोशनी के पिता थोडी देर बाहर की हवा में बैठना चाह रहे थे तो उन्होंने उनके पास बडी एक स्टील की प्लेट पर चार बार चम्मच से आवाज शायद उन में ये समझ थी की इतने दिन बाद बेटा आया है तो माँ बाप को उसके साथ अकेला छोड देना चाहिए । अभयप्रताप खडे हो गए और उन्होंने रोशनी के पापा को अपने दोनों हाथों में उठाए अभिमन्यु को समझने की कोशिश में था की हो जा रहा है । आरती ने उनका बिस्तर उठाकर बाहर जाकर अच्छे से बिछा दिए । अभय प्रताप ने उन्हें वहाँ बडे आराम से लेगा दिया तो फिर अंदर आकर अपने माँ बाप को परिस्थिति के साथ ऐसे घुलता मिलता देख अभिमन्यु को अच्छा भी लगा और बुरा नहीं है । अच्छा इसलिए कि आपने बर्ताव से अभय प्रताप ने हमेशा से ही एक मिसाल कायम की जो आज भी उनके अंदर दिख रही है । और दुख इसलिए कि एक आदमी जो कश्मीर की नीतियों में अपनी भूमिका रखने के काबिल था आज उसे ये सब करते हुए देख अभिमन्यु का मन व्यथित था । अब उसके मन में नए सवाल पैदा हो गए की वो कौन लोग हैं जिन्होंने मेरे पापा को अखबार में लिखने से या नौकरी देने से इंकार कर दिया । अभिमन्यु जब उनसे दूर पानीपत में रहा था तब भी सवाल से आया था पर उसकी तीव्रता आज जितनी तेज और घायल नहीं वो अपने पापा के अस्तित्व को ऐसे भी करते देख नहीं पा रहा था नफरत वो पीछे छोड आया था । पर नफरत की जगह वो अपने अंदर आक्रोश को महसूस कर रहा था जो उसे उस टेंट में बैठने नहीं दे रहा था । अब उस टेंट में अभयप्रताप आरती अभिमन्यु और उसके अंदर छुपा आक्रोश था । वहाँ सब में एक अजीब तरह की खामोशी मन में चल रही बात हो कोई कहना नहीं चाहता था या फिर सही मौके की तलाश कर रहा था । तेरी परीक्षा की पढाई पूरी हो गई लगती है । आरती ने एक झिझक के साथ कुछ किया नहीं चालू है । अभिमन्यु ने जवाब दिया आरती के मन में थोडी आशा जी की शायद सब ठीक है । पर अवैध प्रताप बलदेव भाटिया का बर्ताव देख चुके थे । उन्हें अभिमानियों के इस उत्तर पर विश्वास नहीं था फिर भी वो चुकी रहे । इतने दिनों बाद अपने बेटे को सामने पाकर आरती, बेहद कुश्ती अभय प्रताप वो खुशी काम नहीं करना चाहते हैं । सब की चाय खत्म हो गए । अभिमन्यु के हाथ से खाली पहला लेते हुए आरती ने कहा जहाँ तो नहीं लेंगे बाकी की बातें बाद में करते हैं कहते हुए एक पुरानी से चादर निकालकर आरती ने अभिमन्यु के हाथ में रहा हूँ । तेरे नहाने के लिए पानी लेकर आओ । ये कहते हुए आर्थिक टेंट से बाहर आ गई और बाहर रखी पुरानी लोहे की बाल्टी उठाने लगेंगे । अभिमन्यु ने उनके पीछे आकर उनके हाथ से बाल्टी ले ली और कहा कि मैं ले आता हूँ । आरती ने कहा नहीं मैं ही ले आती हूँ, मुझे समझ नहीं आएगा । ले आने दो से आती है अवैध । प्रताप ने आरती से कहा आरती ने ना चाहते हुए बाल्टी अभिमन्यु के हाथ में दे दी । अभय प्रताप ने एक रुपया निकालकर अभिमन्यु के हाथ में रख कर कहा कि पानी का टैंकर आने के लिए अभी थोडा वक्त है । अभी पानी चाहिए होगा तो खरीदना पडेगा । इतना कहकर वह शांति से अपना कागज पहन उठाकर अपना काम करने लगे । पानी खरीदना पडता है । ये बात अभिमन्यु को कुछ हजम नहीं हुई । असल में सरकार ने कैंप वालों के लिए टैंकर से पानी की व्यवस्था की थी । हर एक के हिस्से का पानी ते था जो उन्हें मिल जाता था लेकिन उसमें भी भ्रष्टाचार था । टैंकर वाले और कैंप मैनेजर की मिली भगत से कुछ टैंकर का पानी चोरी करके एक बडे से टंकी में जमा किया जाता था और वहीं पानी बेचा जाता था । इंडस वॉटर टीटी अभिमन्यु के मन में पहला ख्याल इस ट्रीटी के बारे में आया था । इस ट्रीटी के जरिए भारत पिछले तिरालीस साल से अपनी नदियों का पानी मुफ्त में पाकिस्तान को दे रहा है और मैं नहाने के लिए पानी खरीदने जा रहा हूँ । अपनी साइकिल के ऊपर झेलम किनारे सैर करते अभिमन्यु के दिमाग में कभी आया भी नहीं होगा कि उसे पानी खरीदना पडेगा । दूसरा क्या लाया कि पानी बेच कौन रहा है? फिर से वही होटल कुछ अभिमन्यु ने गुस्से से बाल्टी उठाई और पानी खरीदने चलता है । पानी बेचने वाले कैंप मैनेजर ने बेशर्मी से अभिमन्यु के हाथ से पैसे ले लिए और एक लडकी को आवाज देते हुए कहा एक बाल्टी पानी से आतंकी के बाजू में चौदह पंद्रह साल के लडकों का जैसे आता था । शराब की कुछ बोतलें, सिगरेट के टुकडे, जुआ खेलने के पत्ते । इन सबके बीच को सोई बडे उनमें से एक अपनी आंखें मिलता हुआ था । उसने अभिमन्यु से बाल्टी लेकर उसमें पानी भर दिया और शर्ट के पॉकेट से सिगरेट निकालकर उसे जलाते हुए कहा, साला सुबह सुबह आ गया । दो घंटे बाद टैंकर आने वाला था ना मेरी नींद खराब और कर दी और उस तरह की के बाजू में बैठकर आराम से सिगरेट फूंकने लगा । अभिमन्यु को लगा कि उसका बदन तब रहा है एक पहलू से पानी बेचने वाले मैनेजर और उस लडके को मारने का मन भी हुआ और फिर उसने सोचा कि भले ही वो उस लडकी को झापड जड भी देता पर इस वृत्ति का वह क्या कर सकता था जो किसी की भी मजबूरी का फायदा उठाते हैं । अभिमन्यु को उसका इस तरह बेपरवाही से सिगरेट रोकना अच्छा नहीं लग रहा था और सिगरेट देखकर उसे नहीं मुख्तार की याद आ रही है । अभिमन्यु ने गौर से उस लडकी को देखा हूँ कि वो लडका कुछ जाना पहचाना चाहेंगे । श्री राम अभिमन्यु के मन ही मन में शब्द मुझे वो लडका अभिमन्यु की स्कूल में उसे तीन साल जूनियर था । अच्छे बडे घर का संस्कारी लडका था । अब बिलकुल मवाली से अधिक रात जिस लडके पर अभिमन्यु को अभी तक इतना गुस्सा आ रहा था उसके लिए उसका मन अब करुणा से भर गया । कैंप के हालत में उसकी क्या हालत कर दी थी? ये देखकर अभिमन्यु को अब एक पल भी वहाँ रुकने का मन नहीं । अभिमन्यु पानी उठाकर तेजी से चलने लगा । आजू बाजू के दृश्य ना चाहते हुए भी उसे देखने पढ रहे थे । चार महीने पहले जब ऍम में पहली बार आया था तब हालात इतने बुरे नहीं । लोगों को पता था कि बस दो चार दिन या ज्यादा से ज्यादा हफ्ते की बात है । फिर हम अपने घर लौट चाहिए । राज चार महीने बाद सबकी आशा निराशा में बदल चुकी थी । जो लोग यहाँ से निकलकर जा पाए थे वो सब जा चुके हैं । उन्होंने जम्मू के आस पास ही एक कमरे के मकान किराए पर ले लिए थे । पर जिनके पास जाने के लिए कोई ठिकाना नहीं था और न ही जेब में पैसे थे वो यहीं रह गए । वापस घर लौटने की उम्मीद में अब उनका ये हाल था कि उनके अच्छे बच्चे अब जीने के लिए चोरी चकारी करने लगे । छोटे छोटे बच्चे जिनके बाल कभी सुंदर से सजे समय रहते थे, उनके बालों में मिट्टी पड गई थी । दो तेल उन्हें नसीब नहीं था । दो जोडी कपडे अपने बच्चों को खरीदने की ताकत किसी में नहीं थी । सब के कपडे फटे पुराने मैले से थे । कई घरों में तो छोटे छोटे बच्चे अकेले नजर आ रहे थे क्योंकि कश्मीर के आतंक ने किसी की माँ अच्छी नहीं थी तो किसी का बाप और जो बच्चा था वो कमाने के लिए बच्चों को अकेला छोड जाता । क्योंकि वो भी समझ गया था कि सरकार से मिलने वाले राशन से उनका पेट तो भर सकता है पर उनकी जिंदगी समझ नहीं । यहाँ पर रहने वाले हर इंसान का सब कुछ उजड गया था । उस जुडी हुई बस्ती में थी तो सिर्फ बधावा सी अवसाद से भरे चेहरे जो चार महीने में शायद ही मुस्कुराए हूँ । और दूर तक फैली पूरा कचरा मेल को अपने अंदर भी और बाहर भी होते हुए वो चलते फिरते इंसानी ढांचे किस लिए जिंदा थे । यही सवाल बार बार अभिमन्यु के मन में पूछता रहा । अभिमन्यु को लगा कि वो भी अंदर से कहीं मर गया है । अपने कदम तेजी से उठाता । अभिमन्यु अपने टैलेंट के सामने खडा था । टेंथ के सामने नाले के बाजू में दो बातों का सहारा लेकर एक रस्सी बनी । उस पर वो पुरानी चंद्र डालकर आसरा बनाते । अभिमन्यु ने खुद को झूठा यकीन दिलाया कि अब उसे नहाते वक्त कोई नहीं देख पाएगा । पर वो चादर इतनी छोटी थी कि उसकी आत्मा पर लगी गंद होते हुए उसे अभय प्रताप ने देखी लिया । अभयप्रताप देख रहे थे कि ये वही अभिमन्यु नहीं । उसके दिमाग में गुस्सा भरा पडा है । यहाँ के हालातों से नफरत करता है । वहाँ नहाता हुआ अभिमन्यु हूँ । नाले से उठ रही बदबू से इतना भर गया था कि पूरा एक रूपया देकर खरीदा गया पानी भी उसे स्वच्छता का एहसास नहीं दिला रहा था । होकर वो टेंट में चला गया । जब वो कश्मीर में अपने घर में था तो नीचे किचन से जोरदार आवाज लगाकर आरती सुबह सुबह हमेशा तीसरे माले पर अपनी दो सौ फीट बडे बातों में नहा रहे अभिमन्यु को पूछा करती थी चिंटू नाश्ते में क्या बनाऊँ? पर आज वो गुंजाइश नहीं थी । आरती अपने बेटे को उसके मनपसंद नाश्ते गांव पर नहीं दे सकती थी । उसके पास सिर्फ दो ही पर्याय थे या तो दाल चावल या तो डाल दूँ । आजकल उनका नाश्ता, लंच, डिनर सब कुछ इन तीन पदार्थों के इर्द गिर्द ही था । अभिमन्यु की नजर से देखा जाएगा तो आज वो दुनिया का सबसे गूंदा खाना था क्योंकि चार महीने बाद वो अपनी माँ के हाथ का खाना खा रहा है । शाम को बात करते हैं ये कहकर अगर प्रताप अपनी जॉब के लिए नहीं जाने से पहले उन्होंने रोशनी के पिता को अंदर उनकी जगह पर बैठा दिया था । रोशनी की माँ भी किसी दुकान में झाडू पोचे का काम क्या करते हैं वो भी अपने काम पर चली । अभिमन्यु की माँ कुछ दुविधा में नजर आएगा । उन्होंने अपने बेटे को नहीं बताना था की वो भी दूसरे के घर में जाकर खाना बनाने का काम करते हैं और जाना तो जरूरी था और वो दो दिन के लिए आई बेटे के मन को अपनी नौकरी की बात बताकर दुखी नहीं करना चाहते हैं । जम्मू के उन हालत में एक दिन भी काम पर है । ना जाओ तो नौकरी खतरे में आ सकती है जिसकी उन्हें बेहद जरूरत अभिमन्यु की पढाई और कैंप में जिनका भविष्य खतरे में है उन बच्चों के लिए जो अभी भी बिगडे नहीं । आरती अभिमन्यु से पानीपत की बातें करने लगे पर अभिमन्यु समझ रहा था कि वह सिर्फ सवाल कर रही है । जवाब में उनका ध्यान नहीं । आरती की परेशानी रोशनी की आते ही हाल हो गई । रोशनी बच्चों को पढाकर आ चुकी थी । उसके आते ही आरती ने कहा आरती तो बैठ । अभिमन्यु से बातें कर मैं जरा बाहर होकर आती हैं । वो आंखों ही आंखों में रोशनी से इशारा करती गई कि अभिमन्यु को इसके बारे में मत बताना पर रोशनी के खतरों के जरिए अभिमन्यु पहले ही जानता था कि उसकी माँ भी अब नौकरी करती है । एक तो डॉक्टर के यहाँ खाना बनाना चाहती है, दूसरे जम्मू के एक वकील की घर उनकी बेटी को पढाने जाती है । अभी तो क्या करेगा । अब दिनभर जाने से पहले चिंता से आरती ने अभी को पूछा जम्मू घूम कराऊंगा । अभिमन्यु ने जवाब दिया आरती ने अपने बट वैसे पांच रुपये निकालकर अभी के हाथ में रहेंगे और कहा कि फलानी जगह पर अच्छे कश्मीरी कुल छे और छोले मिलते हैं । रोक लगे तो वहाँ खा लेना । और अंधेरा होने से पहले लौटा वो बात । शंकर एक पल के लिए अभिमन्यु की आंखें नम हो ये कहकर कि अंधेरा होने से पहले लौटाएगा आरती जैसे उसे दिनभर जम्मू शहर में रहने का ही इशारा कर रही है क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसका बेटा दिनभर इस गंदगी में रहे और दूसरी बात थी थोडी ही देर में तो तेज होने वाली है और टेंट के अंदर गर्मी के कारण रहना मुश्किल होने वाला था । ना वहाँ कोई पंखा था और न ही दिलों में ठंडा । अभिमन्यु ने सोचा कि ममता की ये क्या मजबूरी है । वह सुकून से अपने बेटे के पास बैठ भी नहीं सकती ताकि उसका बेटा परेशान ना हो । इससे पहले कई बार पाने हाथ में पांच रूपये रखेंगे । लेकिन आज की वो पांच रुपये अभिमन्यु के लिए सबसे अनमोल दी । अभिमन्यु ने अपनी मुट्ठी बंद करिए । रात में उसने सोचा था कि अपनी कमाई वह सुबह आरती को दे देगा । पर इन पांच रुपयों के सामने उस की कमाई बहुत ही छोटी पड गई । क्योंकि हालात अच्छे थे । तब भी मा पांच रुपये ही देती थी और आज हालत खस्ता थे । तब भी उसके बट वैसे पांच रुपए ही निकले थे । वहाँ के दिल को कोई समझ नहीं सकता और समझने की जरूरत भी नहीं होती । बस महसूस करने की जरूरत होती है । अभिमन्यु के सिर पर प्यार से हाथ फेरकर आरती अपने काम पर चली गई । टेंट में अब रोशनी के पापा थे तो रोशनी और अभिमान । रोशनी अपने पापा को अपने हाथ से खाना खिलाने लगे । अभिमन्यु कुम संसार वहीं बैठा रहा तो अगर अन्य अचानक से कैसे आना हुआ, अपने पापा की देखभाल करते? दोस्ती ने पूछा रस्टिकेट कर दिया गया हूँ । ये जवाब सुनते ही रोशनी ने आश्चर्य से अभिमन्यु को देखा क्योंकि क्या हुआ रोशनी ने हडबडाहट में पूछे तुम अपना काम निपटा हूँ । बाहर बैठ कर बात करते हैं । रोशनी के पापा की मौजूदगी को ध्यान में रखते हुए अभी उन्होंने कहा और वो बाहर चला गया । रोशनी अभी भी सदमे में थी । उसने अपने पापा को ठीक तरह से खाना खिलाया । उनके कपडे बदले और जल्दी जल्दी वो बाहर हूँ । अभिमन्यु बाहर नहीं । वो उसे ढूंढते ढूंढते उस बडे पेड के पास पहुंच गई जहां अभिमन्यु उदास सा बैठा हुआ था । वहीं पर पडी एक सूखी लकडी उठाकर मिट्टी में रेखाएं खींच रहा हूँ । रोशनी आकर उसके पास फिर उसे लगा अभिमन्यु खुद बताना शुरू करेंगे । पर वो तो चुप चाप सा मिट्टी में रेखाएं खींचता रहा । रोशनी से रहा नहीं गया और उसने पूछा क्या हुआ कॉलेज? अभिमन्यु ने ऐसे जो हुआ तो साफ साफ बता दिया । वो सब संकट रोशनी बडी दुखी सी हो गई । आंटी जी को बहुत दुःख होगा । अभिमन्यु तो मैं वापस जाकर प्रिंसिपल से माफी मांग कर अपनी पढाई पर ध्यान देना चाहिए । तुम कल ही वापस चले जाऊँ । रोशनी नहीं कहा । कल रात जब मैं यहां पहुंचा था, मुझे भी यही लगा था कि मुझे वापस जाना चाहिए । पर मम्मी और पापा को इस हालत में देखकर अब मुझे नहीं लगता कि मैं लौट पाऊंगा, लौटना भी नहीं चाहिए । आज सबसे ज्यादा उन्हें किसी चीज की जरूरत है तो मैं मैं समझो ना की मैं एक साल फेल हो गया पर मेरे यहाँ रहने से मेरी पढाई का उन पर जो बोझ पड रहा है वो कम हो जाएगा । मैं भी जाकर नौकरी करूंगा और उन्हें यहाँ से बाहर अच्छी जगह ले जाऊंगा । रोशनी अभिमन्यु को समझ पा रही थी पर ये भी नहीं चाहती थी कि अभिमन्यु अपनी पढाई छोड दे । आरती जी को ये बात पसंद नहीं आएगी । अभी बन जाऊँ उन्हें तुम से बहुत आशाएं । मैं उनकी हर आशा पर खरा उतरूंगा । रोशनी और जिंदगी भर मेरे दिल पर ये बोझ रहेगा कि मेरे कारण उन्हें किस तरह की जिंदगी गुजारनी पडी । बस थोडे ही दिनों की बात है फिर हूँ एक बार तुम पढ लिख लो । सब ठीक होना है । रोशनी ने उसकी उम्मीद बढाते हुए कहा पीछे पढ लिख कर काबिल होने में और दो साल लगेंगे । ये बहुत बुरा वक्त है । मैं इतने लंबे अरसे तक उन्हें ऐसे नहीं रख सकता हूँ । अभिमन्यु नहीं चलाते हैं । रोशनी ने और कुछ कहना ठीक नहीं समझा । वो भी अगर अभिमन्यु की जगह होती तो शायद नहीं दोनों चुपचाप वहीं बैठे थे । फिर रोशनी ने पूछा क्या बता हो गया हूँ सिर्फ लडकी उन्होंने जवाब दिया कब आज कर पाओगे, रहना पडेगा मुझे । हाँ डाटेंगे नाराज हो जाएंगे । बात नहीं करेंगे मुझ से और मेरे सामने तो रहेंगी । मेरे होते हुए उन्हें नौकरी नहीं करनी पडेगी । उनकी नाराजगी मंजूर है पर अब मैं उन्हें छोड कर नहीं जाऊंगा । अभिमन्यु ने बहुत मजबूत इरादों के साथ कहा तो अब करोगे क्या? रोशनी ने पूछा यहाँ भी तो कॉलेज है ना सरकार को हम लोगों की स्थिति तो मालूम है । यहीं पर एडमिशन ले लूँ इस बात पर रोशनी का चेहरा एकदम से उतर गया । उतरे चेहरे से उसने कहा सब इतना आसान नहीं रहा । अभिमन्यु पिछले चार महीनों में कम से कम तीन लाख हिंदू यहाँ जम्मू में आकर बस गए हैं । बाकी के पूरे हिंदुस्तान में । जहाँ भी उनके लिए सही जगह लगी चले गए । कैंप के बच्चों की शिक्षा के लिए आरती जी और खुद अभय प्रताप गए थे । यहाँ के सारे स्कूल और कॉलेज यहाँ के किसी भी स्कूल या कॉलेज ने उन्हें अपने छात्रों के साथ बढाने से इनकार चोंक अभी उन्होंने आश्चर्य से पहुँचा । उनका मानना है कि इन सारे शर्णार्थियों को अचानक से ऐसे प्रवेश देकर हम अपने बच्चों की शिक्षा के साथ खिलवाड नहीं कर सकते । इतने सारे विद्यार्थियों को दाखिल करना उन की नहीं । रोशनी ने जवाब रोशनी के इस जवाब से अभिमन्यु अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगा और अंदर ही अंदर उसे गुस्सा भी आने लगा । गुस्से में उसके मुंह से निकल गया कमाल का देश है यार वहाँ सुरक्षा कर नहीं सकता हूँ । यहाँ शिक्षा देनी है । हम सबको लाइन में खडा करके गोली क्यों नहीं मार देते हैं । लोग अभिमन्यु कि गुस्साए चेहरे को देख रोशनी कहने लगी शांत हो जाओ ऍम यहाँ हर कोई एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा है । उनकी भी तो मजबूरी समझो । सारे पेरेंट्स डरते हैं कि शरणार्थी बच्चों की मनोस्थिति का असर उनके बच्चों पर पडेगा । उन्हें सिखाने के प्रयास में हमारे बच्चों पर टीचर का लक्ष्य कम केंद्रित होगा । हमारे बच्चों का हक शर्णार्थियों को न चला जाए, ऐसा लगता है । सब गंभीर बात तो ये है कि उन्हें शरणार्थी, गरीब, चोर और झुग्गी झोपडियों में रहने वाले लोग लगते हैं । यहाँ के लोग शर्णार्थियों से डरे हुए हैं । इस बात को समझो
Producer
Sound Engineer