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रिफ्यूजी कैंप - Part 15 in Hindi

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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मोहब्बत ने कब किसकी परवाह की है । वो तो अपनी मनमानी करती है और जसप्रीत ने भी वही किया । जसप्रीत और अभिमन्यु लाइब्रेरी पहुंचे । काफी लोग वहाँ शांति से पढ रहे थे । उन्हें पार करते करते एक दम लास्ट वाली टेबल की तरफ । जसप्रीत नहीं इशारा किया कि वहाँ बैठते हैं क्योंकि वो टेबल लाइब्रेरियन से काफी दूरी पर थी । ये दोनों जो डिस्कशन करते उसकी आवाज लाइब्रेरियन तक नहीं पहुंच सकती है और उसमें इन्हें डाटकर भागने की चांसिस कम थे । दोनों टेबल तक पहुंचे और अभिमन्यु ने अपनी परवरिश का परिचय दिया । उसने जसप्रीत के बैठने के लिए आहिस्ता से कुर्सी कीजिए और जब तक कि वह ठीक से वहाँ पर बैठ नहीं गई । अभिमन्यु वहीं खडा रहा कन्फर्म क्या कि वो ठीक तरह से है ना? और फिर एक एटीट्यूड के साथ खुद भी बडे आराम से दूसरी कुर्सी पर बैठ गया । जसप्रीत ने गौर किया कि बाकी के लडके जसवीन से मिलकर बडी उत्तेजित दिखाई देते थे । उसे इम्प्रेस करने की कोशिश में लगे रहते नहीं हैं । पर ये बंदा एकदम शांत है हूँ । मुझे इंप्रेस करने की कोई कोशिश इसमें नहीं और ये कुर्सी खींचना साफ साफ दिखा रहा है कि उसकी तहजीब का हिस्सा है । अब दोनों ने बिलकुल धीमी आवाज में बात करना शुरू ताकि दूसरे लोग डिस्टर्ब हो टॉपिक था । मंडल आयोग इस आयोग का कार्यक्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछडों की पहचान कराना था और उसके आधार पर आरक्षण के लिए भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी । उन दिनों ये मुद्दा खबरों में इसलिए छाया हुआ था क्योंकि इस मुद्दे को उस वक्त की कांग्रेसी कार्यकारिणी ने अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया था और विपक्ष ने उसका पुरजोर विरोध किया । मंडल आयोग का मुद्दा सुनते ही अभिमानियों के चेहरे पर उत्साह निकले । जसप्रीत आपने डिबेट में पिछडे वर्ग को आरक्षण मिलना चाहिए इस पक्ष में थी और अभिमन्यु ने इसका विरोध किया क्योंकि उसका मानना था कि जाति के आधार पर कोटा आवंटन नस्लीय भेदभाव का एक रूप है और समानता के अधिकार के विपरीत है । काफी देर तक दोनों अपने मुद्दे से हट नहीं रहे थे । उन दोनों में धीमी आवाज में ही सही पर एक जंग छिड गई थी । दोनों समाज को समझने की अपनी क्षमता के इस अखाडे में उतर आए थे । दोनों जोर लगा रहे थे । जसप्रीत जिस तरीके से अपने मुद्दे अभिमानियों के सामने रख रही थी, अभिमानियों से लड रही थी अभिमन्यु बडा ही प्रभावित हो रहा था । जसप्रीत उसे जरा भी आम लडकियों की तरह नजर नहीं आ रही थी । अभिमन्यु ने गौर किया कि इस विषय का हर पहलू उसने बारीकी से स्टडी किया था । जिस बात पर उसका विश्वास था उसके लिए लडने की उस की तैयारी थी । जसप्रीत एक तरह से खुल्ला चैलेंज ही अभिमन्यु को दे रही थी कि दम है तो मुझ से जीतकर बताऊँ क्योंकि इस डिबेट के लिए मैंने न सिर्फ पेपर पर तैयारी की है बल्कि खुद जाकर उन पिछडे लोगों के हालत देखकर आई है । कई मुद्दों पर तो अभिमन्यु पर आज भी हो गया एक पल के लिए उसे लगा भी की शायद जसप्रीत सही है । आखिरकार उसने जसप्रीत से एक सवाल किया जिस पिछडे वर्ग के गांव जाकर वो उन से मिलकर आई है, क्या उसी गांव के उन्हीं की तरह पाल रहे उन लोगों से मिली है क्या जो पिछडी जाति के नहीं है? वो भी उन्हीं परिस्थितियों में बाल कर अपनी काबिलियत पर नौकरी पाने की कोशिश करते हैं । उनका जन्म पिछडी जाति में नहीं हुआ । बस इसके लिए अगर उन्हें नौकरी नहीं मिलती तो क्या ये उन पर अन्याय नहीं है? एक फायदा जो एक न्यायाधीश और दूसरे पर अन्याय करें । यकीनन उस फायदे में कुछ कमी है । ये कहकर अभिमन्यु शांत हुआ । उसे एक पल के लिए लगा, शायद अभयप्रताप उसके अंदर कहीं मौजूद है । अब तो जसप्रीत भी इस बात पर सोचने लगे कि हाँ शायद जो लोग बिछडे जाती की नहीं है, उन्होंने हमेशा सरकार की नीतियों का साथ दिया । ये सोचकर कि वाकई हमसे ज्यादा उन लोगों को मदद की जरूरत है । पर एक तरह से अन्याय तो पर भी हो ही रहा है । अब जसप्रीत मुसीबत में थी । उसने जब डिबेट के लिए फॉर्म भरा था तो उसने आरक्षण के हाथ में डिबेट करना चाहता हूँ । अब वो पलट नहीं सकती । मैं अपना नाम वापस ले लूंगी । डिबेट से उसने ना समझे में कहा । उसका उतरता चेहरा देख अभिमन्यु को पता नहीं क्यों पूरा लग रहा है । अब मान लो से किस तरह हारते हुए नहीं देख सकता था । कुछ पल सोचकर अभिमन्यु ने कहा हैं, हम नाम वापिस नहीं लेंगे । उस हम शब्द ने फिर एक बार अभिमन्यु और जसप्रीत की बिक्री टीम को एक साथ बांध । हम आरक्षण के हक में ही डिबेट करेंगे, पर जाति के आधार पर नहीं । आर्थिक तौर पर पिछडे हुए लोगों के हक में आरक्षण पर डिबेट करेंगे । फिर चाहे वो लोग किसी भी जांच, धर्म या वर्ग क्या है । जसप्रीत का चेहरा खिल गया । इन दोनों की इस डिबेट में किसी ने जीत कर भी हार स्वीकार की थी तो कोई हारकर भी बहुत कुछ आ गया था । जसप्रीत ने खुद को खोकर अभिमन्यु को पाना शुरू किया था । अब अभिमन्यु उसे नोट्स डिक्टेट कर रहा था । वो आर्थिक आरक्षण पर बोले जा रहा था और अब जसप्रीत उसे सुने जा रही थी । जैसे जैसे वक्त बीतता गया जसप्रीत के सामने अभिमानियों की शख्सियत की परतें एक एक करके आहिस्ता आहिस्ता खुलती । जसप्रीत तो उसे नादान समझकर तैयारी करने लाई थी और वो जानती नहीं थी कि अभिमन्यु एक कश्मीरी पंडित है । शिक्षा उसकी नस नस में है । अभिमन्यु के घर में अखबार पढना जरूरी था तो उसका जनरल नॉलेज बहुत ही था । ऊपर से वो अभय प्रताप का लडका था तो अपनी बात को सटीकता से रखना उसकी परवरिश का हिस्सा था । जो डिबेट जीतने के लिए काफी था । सोने पर सुहागा कि वह कॉन्वेंट में पढा था तो उसकी इंग्लिश पर जबरदस्त पता है । जसप्रीत ने सोचा भी नहीं था । एक सहमे से लडके के अंदर एक बहुत ही परिपक् को लडका है । और इस वक्त उसका मुझ पर जादू चल रहा है । जसप्रीत का डिबेट का टेंशन बिल्कुल ही गायब हो । अब जसप्रीत बस अभिमन्यु को सुनते जा रही थी, सुनती जा रही है और सुन नहीं जा रही थी । अभिमन्यु के दिल की धडकन वो क्या बोल रहा है? इस पर अब जसप्रीत का जरा भी ध्यान नहीं था । ध्यान था तो अभिमन्यु के जंगल ऊपर कभी वो उसके घने बाल देखती, जिनमें अभिमन्यु बीच बीच में अपना हाथ घुमा रहा था और कभी उसके चेहरे का नूर देंगे । कोई बात समझाते वक्त हमेशा अभिमन्यु के चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान आती है जिसकी जसप्रीत कायल हो चुकी थी । बिल्कुल आंखों में आंखें डालकर बात करता हूँ । उन आंखों के पीछे से उसका दिल साफ साफ नजर आता हूँ और उस दिल में ना कोई बनावट थी, न सजावट थी तो वैसे खामोशी गहरी खामोश । वो खामोशी हैरान कर देने वाली थी और उस खामोशी ने जसप्रीत को भी बेचैन कर दिया । वो अब उस खामोशी के पीछे के शब्दों को सुनना चाहती थी । उस खामोश चेहरे के पीछे वाले अभिमन्यु को समझना चाहती थी पर ये कभी भी मुमकिन नहीं था । अपना दर्द जाहिर करना । अभिमन्यु ओके स्वभाव में नहीं था हूँ और उसका चेहरा एक आदमी पढ सकता था जो इस वक्त अभिमन्यु के सामने काफी देर से बैठा था । पर उसकी खबर दोनों को नहीं थी ना आपके मन को और न ही जसप्रीत हो सम्राट उनके सामने बैठा सम्राट बहुत देर से दोनों को देख रहा था और सस्ती से शर्त लगा रहा था । जब भी करेगी जसप्रीत ही प्रोपोज करेगी । लगी कौनसा केशर और सुस्ती इस बात पर शर्त लगा रहा था की अगर जसप्रीत जी से प्यार कर बैठे गी तो होएगी क्योंकि ये बंदा बडा देश जा रहा है । आते ही इसमें कॉलेज की वो लडकी पटाई जिस पर सबकी नजर की कॉलेज के बहुत दिन बाकी हैं और कॉलेज में ढेर सारी लडकियाँ भी बाकी है । रोएगी मेरी जसप्रीत अभी तेरी कब से होगी? जसप्रीत सम्राट नहीं चमक कर पूछा तो पहले दिन से ही थी सुस्ती ने तकरीबन रोते हुए का अब सुस्ती शर्त जीतने वाला था या सम्राट ये तो सिर्फ वक्त ही तय कर सकता हूँ और यही वक्त जम्मू में अभय प्रताप की कडी परीक्षा ले रहा हूँ । आरती से हिम्मत पाकर अभय प्रताप ने फिर एक बार जिंदगी को गले लगाने की हिम्मत दिखाएंगे । उन्होंने ठान लिया कि कश्मीर के हालातों के संदर्भ में पूरे हिंदुस्तान में आपने आर्टिकल्स के द्वारा ऐसा जनमत तैयार करेंगे कि यूनाइटेड नेशंस के मानवाधिकार संगठन को भी इसमें दखल देना ही पडेगा । उन्होंने जम्मू के उस कैंप में बैठकर एक जहाँ लेखिका अपने उस लेख को छापने की मंशा लेकर वो जम्मू के जाने माने अखबार के दफ्तर पहुंच गए । अखबार के एडिटर ने उनका गर्मजोशी से स्वागत बडे सम्मान से अभी प्रताप को बैठाया । तुरंत बॉल को कहकर चाय नाश्ते का प्रबंध किया । फॅार साहब प्रताप को अपने ऑफिस में पाकर खुश थे । अभय प्रताप को पूरा यकीन था कि वो अखबार उनका वहाँ आर्टिकल बेच इज्जत छाप देखता हूँ । रिटर साहब ने बडे आदर के साथ उनका लिखा ले पढना शुरू किया । वो उस लेख को बडी ही बारीकी से पढ ही रहे थे कि उनकी हावभाव बदलते गए । अवैध प्रताप ने कश्मीर में जो जो हो रहा था उसका पूरा ब्यौरा देते हुए अपने अग्रलेख का समापन करते हुए आखिर के पैर ड्राफ्ट में खेलेगा चली चौरासी करोड जनबल का राष्ट्र अपने नागरिकों के लिए उनके अपने मूल स्थानों पर शांतिपूर्वक रहने की व्यवस्था नहीं कर सकता तो उसे राष्ट्र कहलाने का कोई अधिकार नहीं । कश्मीर की समस्याओं का समाधान उसकी कमजोरियां दूर करके और वहाँ के असामाजिक तत्वों को समाप्त करके ही किया जा सकता है । ये कार्य केवल नवीन आदर्शों से प्रेरित भारत द्वारा ही हो सकता है । ऐसे भारत में नहीं, जो बहुत छोटे छोटे राजनीतिक स्वार्थों में लिप्त हो और न ही ऐसे नेताओं के साथ जो ज्वलंत समस्याओं की बजाय सहिष्णुता के गलत भ्रमों में ही फंसे हुए हैं । कश्मीर की वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण भारतीय राजनीति, सामाजिक और आध्यात्मिक व्यवस्था का नकारात्मक रवैया है । ये किसी एक व्यक्ति के कारण नहीं, ये हमारी व्यवस्था के दूषित होने के कारण हुआ है । भारतीय बुद्धिजीवी और विचारवान लोग वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते हैं । देश की समस्याओं को हल करने के लिए कोई भी क्रियात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है । कोई आदर्श, कोई नवीन भावना, जीवन का कोई नया दर्शन राष्ट्र के सामने नहीं रखा जा रहा हूँ । इस समय भारत के सामने प्रेरणा पूर्ण, महान आदर्श की कमी है । कश्मीर की समस्या पर देश के अधिकांश लोग निराश और उन्होंने अपने आपको भाग्य के भरोसे छोड दिया है । शेष जो कुछ लोग बचे हैं उनमें इतनी शक्ति नहीं है कि वे राष्ट्र के स्पोर्ट की कमान संभाल कर इसी संकटों से बारह की आलोचना उन नकारात्मक शक्तियों की है जिन्होंने इन समस्याओं को सुलझाने नहीं दिया की आलोचना व्यक्तिगत नहीं है परन्तु मेरे सामने इतिहास की सच्चाई प्रकट करने के अतिरिक्त कोई और दूसरा मार्ग नहीं था । एडिटर ने पूरा आर्टिकल पढा । उन्होंने कुछ देर के लिए अभय प्रताप को बाहर बैठने के लिए कहा । अभी प्रताप बाहर के सोफे पर बैठकर शीर्ष की उस पार बैठे एडिटर की हरकतों पर गौर करने लगे हैं । रिटर परेशान दिख रहा था । उसने फोन पर काफी देर किसी से बात की । फिर उन्होंने अभय प्रताप को अपने कैबिन के अंदर बुलाकर नम्रता से कहा, माफ करना प्रताप जी, हम आपका आॅप्टिकल नहीं छाप सकते । अब प्रताप को अंदाजा हो गया था कि उन्हें ऐसा ही कुछ सुनने को मिलेगा । उन्होंने अपना आर्टिकल उठाया और ये कहते हैं वहाँ से निकलने लगी की मैं दूसरी जगह कोशिश करता हूँ । एडिटर शायद अजय प्रताप जी की बहुत इज्जत करता था । उसने कहा जरा बैठी हूँ । अभी प्रताप उसकी विनती को मान देते हुए बैठ गए । एडिटर ने बडी झिझक के साथ कहा, क्या आर्टिकल शायद किसी भी प्रेस में छपेगा नहीं । अब तक तो हर प्रेस में फोन जा चुके होंगे कि आपको किसी भी तरह से इंटरटेन न किया जाए । इसमें आप ने कांग्रेस की सेक्युलर नीति परिवार क्या है? उनके नेताओं पर भाषण क्या है? इतना ही नहीं बल्कि बुद्धिजीवियों को भी आप ने नहीं बख्शा है । मेरी माननीय तो इस लेख के छपने का विचार मन से निकाल दीजिए । अभी प्रताप को समझने में वक्त नहीं लगा कि अब उन्हें नौकरी के लिए कोई भी अखबार खडा नहीं करेगा । उनकी सच्चाई ने फिर से उनका रोजगार उनसे छीन लिया था । फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी । पूरे दिन वो एक अखबार से लेकर दूसरे अखबार की दहलीज की धूल छानते हैं और उनके जैसे तीखे और तेज विचार वाले इंसान की किसी भी अखबार को जरूरत नहीं और अभय प्रताप भी अपने धर्म के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहते हैं । उनका धर्म था सच्चाई को लोगों तक पहुंचाना, जिससे उस वक्त की सरकार ने छिपाकर रखा था । उनका धर्म था सच्चाई को लोगों तक पहुंचाना । जिसे उस वक्त की सरकार ने छिपा कर रखा है । कश्मीर में क्या हो रहा है वो कश्मीर के बाहर आने ही नहीं दिया जा रहा है । वहाँ जिहादी अभय प्रताप के दुश्मन बने थे और यहाँ यहाँ की सरकार जो एक लोकतंत्र का दावा कर देंगे । दो दिन तक लगातार अभयप्रताप अपने लिए जो उसका खेलते रहे । जम्मू बडे बुरे हालातों से गुजर रहा था । इस छोटे से शहर पर कश्मीर से आए लाखों लोगों का भार पडा था । हर कोई अपने रोजगार के लिए कैंप से निकलकर जम्मू की गलियों की खाक छान रहा था । नौकरी मिलना बहुत ही मुश्किल काम था । जिसे जो मिले वो काम करने के लिए तैयार था । दो दिन भटक कर भी कोई काम ना मिला तो अभी प्रताप को अभिमन्यु के महीने के खर्चे की चिंता सताने लगी । बलदेव भाटिया बलदेव भाटिया जिस तरह से उन से पेश आया था उसकी आंच भी वो अभिमन्यु तक पहुंचने नहीं देना चाहते थे । तो अब उन्होंने तय किया कि जो भी काम मिले कर लेंगे । वो सुबह से जम्मू के बाजार में, हर दुकान, हर घर में जाकर पूछ रहे थे । शायद कहीं कोई करने लायक काम मिल जाए । पर उनके लिए किसी के पास कोई भी काम नहीं था । आखिरकार एक दवा के दुकानदार को उन पर ते आ गयी । वो एक उम्रदराज इंसान था । उसने अजय प्रताप को बिठाकर पूछताछ उनके बारे में जान लिया । उन्हें अभय प्रताप विश्वसनीय लेंगे । कुछ दुकान में पहले से ही एक वर्कर काम कर रहा था तो दुकान मालिक ने तो दुकान मालिक ने उन्हें महज दो हजार रुपये की तन्खा का ऑफर दिया । अब है प्रताप की मजबूरी ने वहाँ पर स्वीकार किया और फिर एक बार अभिमन्यु का भविष्य सुरक्षित हो गया और पानीपत में अभिमन्यु ने अभय प्रताप के विश्वास को साकार करने में कोई भी कसर बाकी नहीं रखी । अभिमन्यु ओं और जसप्रीत की जोडी ने सिर्फ डिवेट में ही नहीं बल्कि को इसमें भी अपने ज्ञान के झंडे गाड और आर्यन कॉलेज कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी वार्षिक उत्सव में जोरों शोरों से जीता । उस जीत के पीछे अभिमन्यु की अपनी मेहनत जसप्रीत और अभिमन्यु की जोडी जित होगी । अपनी इस जोडी पर जसप्रीत को बडा नहीं था आर्यन कॉलेज के आसमान पर अचानक से एक सितारा चमका ना । और जिसकी चांदनी कॉलेज की हर लडकी महसूस करना चाह रहे हैं पर जसप्रीत उन्हें वह मौका दे नहीं रही है । इस तारीख को दुनिया से छुपाकर वो उसे अपने आंचल में समेटना चाहती थी । अब वो रोज कॉलेज में अभिमन्यु का इंतजार करते हैं । जब आता है उसे छुप छुप कर देखते हैं । जब नहीं आता हूँ दीवानों की तरह से यहाँ वहाँ हूँ अभिमन्यु होगी उसकी हर हरकत समझ रहा । अगर कभी कभी जसप्रीत न देखती तो अभिमन्यु भी बेचैन हो जाता है तो अभिमन्यु की बेचैन हो जाता है । अब अपने नाम में अभिमन्यु का नाम मिलाकर नोटबुक में लिखना और मिटाना जसप्रीत का रोज का काम था । उसकी सहेलियों ने तो उसे अभिमन्यु के नाम से छेडना भी शुरू किया । जसप्रीत ये भी जानती थी कि अभिमन्यु भी उसे पसंद करता है पर जताता नहीं । जसप्रीत की एक स्त्री सुलभ सिर्फ कि वो उसे प्रपोज करें और अभिमन्यु को समझ में नहीं आ रहा था कि वह जो जसप्रीत के लिए महसूस कर रहा है उससे मोहब्बत कहते हैं और माशूक के सामने उसका इजहार करना मोहब्बत की रवायत होती है । पर ऐसा कुछ हो नहीं रहा था । दोनों बस्ती ही दिल में एक दूसरे को चाह रहे थे । जसप्रीत की पल पल की नजर अभिमन्यु पर दी और उसकी नजर से यह बात छिपी नहीं कि अभिमन्यु सबसे ज्यादा खुश स्पोर्ट्स ग्राउंड पर होता है और वो लगातार एक ही कपडे पहन रहा है । सम्राट से उसे पता चला कि अभिमन्यु का सामान हो गया है तो वही कपडे रोज होकर वो पहनता है । सम्राट ने आगे ये भी कहा कि मैंने उसे कपडे ऑफर किए थे । उसने हाथों कहा था पर कभी इस्तेमाल नहीं किया । सिवाय लूंगी । दूसरे दिन जसप्रीत एक सुंदर साॅफ्ट लेकर हवा महल पहुँच उसे । वहाँ देख फिर सम्राट और सुस्ती की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई । ये लडकी हमें इस घर से बाहर करके ही दम देगी और जसप्रीत थोडी मानने वाली थी । वो तो बस चली आई घर के अंदर बडे ही प्यार से । उसने अभिमन्यु के हाथ में वो गिफ्ट और कहा ये हमारी जीत का सेलिब्रेशन है । तुम नहीं होते तो वह डिवेट में जीत नहीं सकती । सामने पडे शर्ट पेंट को देखकर अभिमन्यु को एक पल के लिए जसप्रीत पर बहुत प्यार है । वो समझ गया कि जसप्रीत का उसे स्टेटमेंट देने के पीछे बडी ही विश्व धारणा है । पर वही पंडितों वाली तहजीब बीच में । शास्त्रों में किसी भी ब्राह्मण को केवल पांच घरों में जाकर भिक्षा मांगने का चलन होता है । वो भी केवल इसलिए कि उन्हें ज्ञान अर्जन करना होता है । अगर वह चली ताज के लिए काम काज करने लगे तो ज्ञान अर्जन नहीं हो पाएगा और अभिमन्यु हूँ । पांच दान मांग चुका था पहला माजिद से । दूसरा कैंप में सरकार से तीसरा रोशनी ने उन्हें सहारा दिया था । चौथा प्रिंसिपल ने दाखिला दिया था और पांचवां सम्राट ने छत के साथ साथ लुंगी भी दी थी । अभिमन्यु को आगे बढने के लिए कितना काफी था और वह जसप्रीत का दिल भी तोडना नहीं चाहता था । उसने भी बडे प्यार से कुछ गिफ्ट को जसप्रीत के हाथ में वापिस रखते हुए कहा जीत हमारी थी, तुम भी उसमें शामिल थी । मुझे भी फिर तुम्हें गिफ्ट देना बनता है । जिस दिन मैं तुम्हारे लिए गिफ्ट लिया होगा उस दिन तुम्हारा ये गिफ्ट मैं शान से पहनूंगा । जस जस्ट शब्द सुनते ही जसप्रीत को लगा की किस्त नकारकर एक ही पल में अभिमन्यु ने मुझे पराया कर दिया और प्यार से जस्ट पुकारकर दूसरे ही पल में अपना लिया । वो खुश भी हो रही थी और मायूस जसप्रीत को एक बाल के लिए लगा कि उसने अभिमन्यु को कहीं और तो नहीं कर दिया । जसप्रीत की आंखों ने अभिमन्यु को अपनी सफाई देना शुरू किया और अभिमन्यु भी शायद उसे आंखों से कह रहा था मुझे प्लीज माफ करते हुए मेरा दिल इसकी इजाजत नहीं दे रहा है । मैं स्वीकार करूँ दोनों एक दूसरे को देखते रहे हैं । उन दोनों के बीच वो ऑर्डनेंस महसूस करके सम्राट ने उधर से गाना गम बनाना शुरू किया । रफ्तार रफ्तार वो मेरी हस्ती का सामान हो गए । पहले दिल फिर जाने जा फिर जाने जाना हो अभिमन्यु और जसप्रीत ने अपने आप को संभालने सुस्ती के अपने ही ख्याल दौड रहे थे कि गिफ्ट नकारकर अभिमन्यु ने जसप्रीत को अपने से दूर कर दिया । अब मैं फिर से ट्राय मार सकता हूँ । वो इस बात पर मन ही मन खुश । वो नहीं जानता था कि अभिमन्यु कि स्वाभिमान के कारण अब तो अभिमन्यु जसप्रीत को और अपना सा लगने लगा था । उस दिन के बाद मैं जसप्रीत ने मैं सम्राट नहीं और न ही सुस्ती में कभी अभिमानियों के स्वाभिमान को छोडने की कोशिश । हर किसी ने एक दूसरे को जैसे थे । वैसे स्वीकार अच्छे बुरे गुणों के साथ आर्यन कॉलेज में यात्रियों का एक नया दौर शुरू हो गया । अब अभिमन्यु जसप्रीत सम्राट और विनोद का एक ग्रुप बन गया था । जहाँ भी जाते हैं साथ जाने साथ पढते हैं । शाम को स्पोर्ट्स ग्राउंड पर जसप्रीत का आना जाना भी बढ गया था । अभिमन्यु लंच और डिनर दोनों मैच में ही करता हूँ । उसको कंपनी देने के लिए सम्राट सुस्ती और जसप्रीत रात आठ बजे तक कॉलेज में रुके रहते हैं । फिर रात में चलते चलते तीनों पहले जसप्रीत को उसके घर छोड दे और उसके बाद आपने हवा महल पहुंचाते हैं । अब तो ये उन का रूटीन हो गया था नहीं । जसप्रीत ने किसी से कहा कि वो अभिमन्यु को चाहती है और न ही अभिमन्यु ने कभी अपनी मोहब्बत जाहिर होने दी । अब पूरा कॉलेज जानता था कि अभिमन्यु और जसप्रीत के बीच कुछ चल रहा है । बहुत कम समय में अभिमन्यु अपने कॉलेज में पॉपुलर भी हो गया । वो स्पोर्ट्स, पढाई, स्वभाव सब में अच्छा था । जिस तरह से ब्रिटिश इंग्लिश एक्सेंट में अभिमन्यु अंग्रेजी में गाल उठाकर बात करता था । कॉलेज की अस्सी फीसदी लोकल जनता उस पर फिदा हो चुकी थी । अब तक कॉलेज के छात्रों ने रणदीप के डर के कारण उसे अपना लीडर माना था । पर अब वो सब के सब दिल से अभिमन्यु को अपना लीडर मानने लगे थे । अभिमन्यु अब टीचर्स का भी चहेता बन चुका हूँ । रणदीप को साफ साफ दिख रहा था कि जसप्रीत तो उसके हाथ से चली ही गई है और छात्र भी अब ज्यादा तवज्जो अभिमन्यु को दे रहे हैं तो अपनी पोजिशन फिर से हासिल करने के लिए कोई कांड करना रणदीप के लिए लाजमी था । उस दिन लेक्चर खत्म करके अभिमन्यु सम्राट सुस्ती और जसप्रीत कैंटीन में बैठे थे । अभिमन्यु खुश था । उसे अपनी पहचान वापस मिल रही थी जो वो कश्मीर में छोड आया था । उसके मन में हमेशा आता है कि काश मुख्तार यहाँ होता और इस आजादी को समझता था । समझ पाता कि इस वक्त अभिमन्यु के ठीक पीछे के टेबल पर बैठे परवेश को यहाँ का संग्रामसिंह अलग नहीं समझता हूँ । दरअसल इस हिंदू बहुल देश में परवेज अपने आपको अलग न समझे इसलिए उसकी तो थोडी ज्यादा केयर करते हैं । सेकंड इयर बीए में पढ रही सकीना सेकंड इयर बी ए में पड रही सकीला सिद्दीकी को बिना बुर्के के आने जाने पर कोई बेशर्म नहीं समझता हूँ और कितने भी दंगे हुये हूँ यहाँ मुसलमानों के धर्मस्थलों पर कभी भी किसी ने हमला नहीं किया । सब शादाब हरियाणा की आजादी अब अभिमन्यु हूँ । हर बात नहीं महसूस करता हूँ ।

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‘रिफ्यूजी कैंप’ भारत के लोगों की एक अद्भुत यात्रा है, जो अपनी तकलीफों के अंत के लिए चमत्कार की राह देखते हैं, पर यह नहीं समझ पाते कि वे खुद ही वो चमत्कार हैं। जब तक लोग खुद नहीं जगेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। मुझे पता है, उम्मीद की इस कहानी को लिखने की प्रेणा लेखक को उनकी बेटी से मिली है, जो यह जानना चाहती थी कि क्या वह अपने पुरखों की धरती कश्मीर की घाटी में लौट पाएगी? writer: आशीष कौल Voiceover Artist : ASHUTOSH Author : Ashish Kaul
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