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मुख्तार दिनभर भूखा प्यासा भटक रहा था । उसके मन में हम पूरे बुरे विचार आने लगे थे कि कहीं जिहादी सबको उठाकर कहीं ले तो नहीं चले गए । मुख्तार का मन बार बार कह रहा था कि अभिमन्यु के बिना जीना जीना नहीं होगा । सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद वो थाने की तरफ पडा कि शायद वहाँ से कोई खबर मिल जाएंगे । रियाज से हुई हाथापाई में उसके कपडे भी फट हैं । पैर से खून भी बह रहा था और उसे परवाह नहीं थी । अभिमन्यु के न मिलने से अब तो उसे रोना भी आना शुरू हो गया था कि अचानक उसके सामने एक जादू सा हो गया । अभिमानियों की कार को उसने दूर से आता देखा और उसके मन की सारी शंकाएं मिटकर अपने यार से मिलने मुख्तार उसकी कार की तरफ लगता । कार के सामने जाकर उसने गाडी को रोका पर उसमें उसका यार नहीं था । जख्मी मुख्तार को देख माजिद गाडी से उतरा और पूछा तुम्हारा यही हाल कैसे हुआ? वो सब छोडो पापा कहाँ है? मम्मी कहा है और मेरा अभिमन्यु वो कहाँ है? मुख्तार ने पूछा था । माजिद ने कहा वो तो चले गए । अभी अभी उन्हें जम्मू छोडकर आया । मुख्तार को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था । उसके ख्याल दौडने लगे कि ऐसे कैसे जा सकता है वह मुझे छोड कर उसने कहा था कि वो मेरे पास आएगा फिर वो जहाँ कैसे सकता है । उसके बिना मेरा क्या होगा? उसे इस बात का ख्याल नहीं । उसके बिना मेरा क्या होगा? उसे इस बात का ख्याल नहीं आया । माजिद ने दोनों को बचपन से साथ बढते हुए देखा था । अभिमन्यु के जाने से मुख्तार दुखी होगा ये जाहिर सी बात थी और माजिद का इस वक्त अपने घर पहुंचना जरूरी था तो वो निकल गया । पर मुख्तार के दिल के लगे गाओ वो उस वक्त समझ नहीं पाया । मुख्तार के दिल में सौ ख्याल दौड रहे थे । अचानक मुख्तार ने महसूस किया कि उसके अंदर एक खालीपन सा आ गया है जो शायद ही कभी भरा जाएगा । उदास मन से चलते चलते वो अभिमन्यु के चलते घर में दाखिल हुआ और न जाने कितनी देर वहां बैठा रहा । ये सोचते हुए कि मेरे यार ने मुझे बताने की जहमत भी नहीं उठाई की मैं जा रहा हूँ । इसका मतलब की वो मेरे बिना रह सकता है जीने के लिए उसे मेरी दोस्ती की जरूरत नहीं थी । क्या मैं पागल था कि उसके पीछे पीछे रहता था क्या रियाज ठीक कह रहा था कि मुझे दोस्त मानकर वो मुझ पर एहसान कर रहा था? नहीं नहीं मेरा भी मन में ऐसा नहीं था । वो एहसान कैसे कर सकता है । वो तो मेरी मम्मी को अपनी मम्मी मानता था । मेरे घर में बैठकर कितनी अलसाई सी दोपहर हमने साथ गुजारी और मेरी मम्मी खुद से ज्यादा तो उसे प्यार करती थी । मुझसे ज्यादा उसे अपना बेटा मानती थी । मैं भले ही अपनी माँ की न सुनी हो, उन की हर बात हो । वो अपनी माँ को छोडकर कैसे जा सकता है । कहने के लिए सिर्फ में दो अलग घर है । वो अपना घर छोडकर कैसे जा सकता है और मैं अब किसी देखकर जीवन क्या कोई भाई अपने भाई को ऐसे अकेले बिना बताए छोड कर जाता है या फिर परिवेश चाचू ही सही कहते थे कि उन पर इतना विश्वास मत कर तो मेरा फोन है । मेरी बात मान लिया कर । पर शायद मैं ही अभिमन्यु के चक्कर में अपने चाचू से दूर हो गया । कुसाक से सुनते मकान में मुख्तार का मासूम मन सुलग्ना शुरू हुआ था । मुख्तार ने महसूस किया कि वह अंदर से टूट चुका है । मुख्तार के जीवन में भी शायद अंधेरे दस तक दे दी थी और यहाँ जम्मू में भी कुछ ही देर में सूरज डूबने वाला था । अब प्रताप कुछ सोचकर उठकर चलने लगे । उस शाम सहमे सहमे से ये तीन लोग चलते हुए जम्मू के गली से दूसरी गली होते हुए अपनी नई मंजिल शरणार्थी कैंप के नजदीक पहुंचे । उस बस्ती में लोगों की आवाज तो आ रही थी पर ठीक से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । सर्दी के दिन थे तो हर तरफ ही धन नहीं चार फिट पर मुश्किल से कुछ दिख रहा है । तभी सर्दी से कम कपाती छोटी सी बच्ची ने रोते रोते अजय प्रताप का हाथ थामकर पूछ लिया । अच्छा आपको मालूम है क्या कि मेरी मम्मी कहाँ है । वो बच्ची अवैध प्रताप को कुछ जानी पहचानी सी लगी पर इसी देखने वाली उस मासूम कश्मीरी पंडित लडकी को अपनी गोद में उठाते हुए अभयप्रताप उसे शांत करने का प्रयास करते हैं और कहा तो नहीं बेटा यहीं कहीं होंगे । चलो घूमते हैं, तुम रहती कहा हूँ । बच्ची ने कैंप की तरफ इशारा किया । जैसे जैसे अभय प्रताप उस बस्ती की तरफ बडने लगे, लोगों की आवाज है कि ठीक सुनाई देने और बस्ती में चल रहे दियो के कारण वो कैंप पूरी तरह से नजर आने लगा । वो नजारा देख अपने प्रताप करती बैठ सकता । हजारों की तादाद बहुत शरण लीज में लोग दूर दूर तक फैले दिखाई दे रहे थे । निराशा, अवसाद, पश्चाताप, अपना सब को छोड कर भागे हुए लोगों की उथल पुथल और सबसे अहम की अपना कोई भी दोस्त ना होते हुए भी मिलने वाली सजा भुगते । लोगों का वो नजारा किसी भी संवेदनशील इंसान को खिला देने के लिए काफी था । लोगों की उस भीड में इस नन्ही सी जान ने अपने माता पिता को खो दिया था । बिल्कुल वैसे जैसे सामने दिख रहे अपनी मातृभूमि से उखडे हजारों लोगों को यहाँ के राजनेताओं की स्वार्थी राजनीति ने शरणागत शब्द का ठप्पा लगाकर उन्हें लावारिस बना दिया था । वादी के हर कोने से भागने के लिए मजबूर हिंदू श्रीनगर, बारामूला, बडगाम, पुंछ, कुपवाडा, राजौरी, उधमपुर, डोडा या फिर अनंतनाग से निकलकर ऐसे हजारों कैंप में आकर बसने के लिए मजबूर थे । लाखों की उस फील्ड में अभय प्रताप उस बच्ची के मां बाप को ढूंढने चलेंगे । हर तरफ शोर ही शोर था, लोगों के अंदर भी और बाहर भी । बच्ची को गोद में उठाए अभयप्रताप अपनी सोच में थे कि क्या किया जाएगा । तभी किसी ने तकरीबन उस बच्ची को खींचकर उसकी गोदी से अपनी कोर्ट में लिया । उस झटके के कारण अभयप्रताप अपनी सोच से बाहर है । जिसने उस लडकी को खींचा था वो उसकी माँ थी । अभी प्रताप को वहां देखकर उस औरत का गुस्सा फूट पडा और चिल्लाकर बोली हम लोग तुझे ही ढूंढ रहे थे । अभय प्रताप, आरती और अभिमन्यु को बाद जरा भी अच्छी नहीं कि अभय प्रताप से कुछ तू तडाक कर की बात करें । आरती ने गौर किया कि अनंतनाग में जब दंगे हुये थे तो सारी औरतें और बच्चे आठ दिन अभी तक आप के घर में सुरक्षा में थे । उसमें ये बच्ची और उसकी मां कि वहाँ उस औरत के शोर से वहाँ और भी लोग जमा हुए हैं और उसमें से हर एक के मन में अब है प्रताप के लिए गुस्सा था तेरे कारण आज हम इस हालत है, सब कुछ ठीक हो जाएगा । ये कहकर तूने हमें बाहर हो के रखा है । उस औरत का गुस्सा फूट फूटकर बाहर आ रहा था । उस औरत का गुस्सा झूठ फुटकर बाहर आ रहा है । उस औरत का गुस्सा फूट फूटकर बाहर आ रहा था । साथ साथ वो भी रही नहीं देख अब हमारा क्या हाल हुआ है । वक्त रहते तो उन्हें हमें जाने दिया होता तो आज हम यहाँ नहीं होते हैं और होने लगी अपनी बच्ची को भी । अगर पिता आपके सामने करके उसने रोते रोते कहा देख देख मेरी बिटिया को राजकुमारी की तरह रखा था । मैंने अब दूध के एक गिलास के लिए तरस रही है । ये कहते कहते है वो औरत अगर प्रताप पर झपट पडी । आरती ने अपने पति को कुछ सौरभ से अलग किया । भीड में काफी लोग थे जो अपनी इस हालत का जिम्मेदार अभय प्रताप को भी मानते थे । पेड अब अब पिता आपको घेरकर जवाब मांग रही थी । आरती की आंखों से सिर्फ आंसू गए थे रहे और अभिमन्यु बहुत गहरे सदमे में था । भीड में से आवाजें उठने लगी कि हमारी दुनिया नर्क बनाने वाले समय प्रताप को हम यहाँ नहीं रहने देंगे । इस पर विश्वास रखता । हम अपना सब कुछ खो बैठे हैं । भीड अभय प्रताप, अभिमन्यु और आरती को घेरकर कैंप के बाहर रखेंगे । एक तरह से अपमानित करके अब है प्रताप का भी शुरू से निकाल रहे हैं । अभिमन्यु अपने पापा को सुरक्षित करने की नाकाम कोशिश करता था पर लोगों में बहुत खुश हूँ । उसके सामने अभिमन्यु की कोशिशें कम पड रही थी । जिन्हें अभय प्रताप के बारे में मालूम नहीं था वो सिर्फ तमाशबीन बनकर देखते रहे हैं । अभय प्रताप चुप चाप सबसे कर चल रहे थे और मन में सोच रहे थे । मेरे लिए ये सजा जरूरी है क्योंकि मैंने इतिहास को खोलकर कश्मीरियत पर भरोसा किया था । सजा तो मुझे मिल नहीं चाहिए । अभय प्रताप के दुखों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा था । आरती और अभिमन्यु को अपनी आँखों की सुरक्षा में लेकर पे बस अभय प्रताप उस बस्ती से बाहर जाने लगे । तभी उस भीड को चीरती हुई एक बाईस साल की लडकी ने तेजी से अभय प्रताप के सामने आकर अपने हाथ से उनका रास्ता रोककर गहराती हुई आवाज में कहा रुक चाहिए ऐसा अवैध प्रताप अभिमन्यु और आर्थि उस लडकी को देख कर सोचने लगे कि अब क्या नया होने वाला है । उसे देखकर लोगों ने भी अपने आप को थोडा ठोक दिया । अभिमन्यु को समझ में आया कि ये लडकी किस कैंप में अपनी एक अलग जगह रखती है । लडकी ने आगे कहा, इन लोगों को माफ कर दीजिए । ये सब के सब हालात के मारे हैं, बौखलाए हुए हैं । इन्हें खुद समझ में नहीं आ रहा कि कहाँ जाए, क्या करें? सरकार पर गुस्सा दिखाओ तो सरकार डंडे मारती है । किसी पर तो उनका गुस्सा उतरना था ना? इतनी छोटी सी उम्र में वो लडकी ऐसे हालातों में भी समझदारी की बात कर रहे हैं । ये देखकर अभय प्रताप को बडा आश्चर्य हूँ । वो कुछ कहने वाले थे कि वहाँ कैंप का मैंने जरा ये ऍम आहिस्ता से लडकी ने तीनों को बताया । दिखने में ही वह बडा खडूस लग रहा था । उसे देख भीड जिस तरह से बिखर गई । अभिमन्यु को लगा ये बहुत गुस्से वाला इंसान होगा और वह था उनकी तरफ आते आते ही मैनेजर को अंदाजा हो गया था कि अभी यहाँ कुछ हो रहा था और मुझे देखते ही सब वहाँ से भाग गए । मैनेजर ने उस लडकी के पास आकर पूछा जोश नहीं यहाँ क्या हो रहा था? अभी रोशनी ने बिल्कुल स्वच्छता से जवाब दिया, नए मेहमान का स्वागत इनसे मिली है । ये हमारे बाजी की बहुत बडी हस्ती है । मिस्टर अभय प्रताप दक्षिण के डॉक्टर साहब अभिमन्यु आश्चर्य में था । उसने पूछ लिया आप हम लोगों को जानती । लडकी ने तुरंत जवाब दिया, वादी में शायद ही ऐसा कोई हो जो इन्हें ना जानता हूँ । मैंने जब उन लोगों की बात सुनी तो जान गए कि ये वही अभी प्रताप जी हैं । आरती ने शायद मन ही मन उस लडकी की बनाया है । ऐसा अभिमन्यु को महसूस हुआ हूँ । मैंनेजर अभय प्रताप का नाम सुनकर थोडा झेंप सा गया पर अपनी अकड कायम रखते हुए कहा आपको वहाँ अपना नाम लिखवाना पडेगा तभी आप कैंप में रह सकते हैं । अब प्रताप सोच में थे की बस्ती वाले उन्हें यहाँ रहने देना नहीं चाह रहे हैं । ऐसे में यहाँ रुके हैं यह चले जाएंगे । अभयप्रताप रुके से रहे । रोशनी शायद लोगों के दिल की बात पढना जानती थी । उसने अभयप्रताप को देखकर सिर्फ इतना कहा आप इतनी जल्दी हार नहीं मान सकते हो । आप वर्षों से हम जैसों का आदर्श रहे हैं । ये लडाई हम सब मिलकर लडेंगे । ऐसा आपने कहा था ऍम ऐसा आपने कहा था । अभयप्रताप ने महसूस किया कि उनके कदम उठकर मैनेजर के पीछे चलने लगे । बस्ती से गुजरते हुए सब कैंप ऑफिस की तरफ चलकर जाने लगे । अभिमन्यु अपने आसपास का जायजा लेकर लगा । वादी के पक्के मकानों से निकल कर आए । लोग यहाँ जनवरी की ठंड में कपडे से बने ट्रेंट में रहे हैं । अभिमन्यु के परिवार ने ऑफिस कहलाए जाने वाले उस टेंट में कदम रंगा आपको परिवार के सदस्य की संख्या अनुसार महीने में एक बार राशन मिलेगा । मैनेजर ने किसी पिटे लफ्जों में अब तो उसके लिए ये रोज मर्रा की बात हो गई थी । हर एक घंटे में जो दस परिवारों से ये कह रहा हूँ उससे भावनाओं की उम्मीद करना बेकार है । ये बात समझकर अभय पता अपने रजिस्टर खोलने के लिए उठाया । रजिस्टर पर रजिस्टर पर लिखा था मुठी शर्णार्थी कैंप जम्मू शर्णार्थी शब्द पढकर अभय प्रताप के दिल में खलबली मच गई । उनके मन में आवाज उठी की चलो लौट चलते हैं और फिर एक बार उनकी नजर के सामने सुन अतिवादी के सारे दृश्य गुजर गए । आंगन का वह हुआ याद आया जिसमें आरती अपनी जान देने के लिए तैयार बैठी थी और अभिमन्यु क्या वे अभिमन्यु के बदन पर एक भी खरोंच सहपाठी अपने अंदर उमडते तूफान को अब प्रताप ने अंदर ही दवा लिया और अपना नाम रजिस्टर में लिखकर अपने आपको शर्णार्थियों में शामिल कर दिया । अभिमन्यु इस नई दुनिया को अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रहा था । उसे अभी भी दुनिया से थोडी उम्मीद थी तो थोडा डरते डरते ही सही । अभिमन्यु ने मैंने जैसे पूछा कि क्या उन्हें अलग टेलेंट मिल सकता है । मैंने चलने बेरुखी से उसकी बात का जवाब देते हुए कहा तुम्हारे जैसे रोज जहाँ हजारों आते कल भी आएंगे और सभी आएंगे अब तुम ही सोच लो हर किसी के लिए अलग ॅ क्या अभिमन्यु को लगा कि जैसे उस इंसान को हम पर क्या गुजर रही है इसका जरा भी ख्याल नहीं । हम उसके लिए जीते जाते इंसान नहीं बल्कि उसके रजिस्टर में दर्ज सिर्फ कुछ आंकडे हैं जो बढते ही जा रहे हैं और हकीकत थी उससे कुछ अलग नहीं नहीं किसी भी सरकार के लिए किसी भी शरणार्थी कैंप के सिंधा इंसान महज कागज पर कुछ आंकडे ही तो होते हैं । अब प्रताप, अभिमन्यु और भारती को उसका बात करने का अंदाज बेहद बुरा लगा । आरती बोलना चाह रही थी कि हम लोग कृषि से नहीं आ रहे हैं पर बोलना पडेगा । मैंने जब अपने टैलेंट की लिस्ट चेक करने लगा । काफी पन्ने चेक करने के बाद उसने कहा एक टेंट खाली नहीं है और टेंट मंगाए हैं जब तक कि वह लग नहीं जाते तब तक आप अपना कुछ इंतजाम कर दीजिए । कॉल परिवार पर और एक आप पता गिरी बार बार बस ने और उखाडने से वहाँ की जिंदगियां तंग आ चुकी थी मैनेजर की वो बात शंकर नाउम्मीद हुई आरती वहीं पर बैठे अभिमन्यु हूँ अपनी माँ की तरफ ये सोच कर दौडा की शायद उन्हें कुछ हो गया है अपनी माँ का वो हारा हुआ चेहरा देख अभिमन्यु जहां का तहां रुक गया । उसने अपने पेट में जैसे गड्ढा सा बनता महसूस किया तो चेहरा और वही सास अभिमन्यु जिंदगी भर नहीं भूल सकता हूँ । जब तक अभयप्रताप आरती को फिर से आठ देकर उठाते तब तक रोशनी ने उन्हें बडी इज्जत से उठाते हुए मैंने जैसे कहा कि उसके टेटमेंट तीनों के लिए जगह थी और वो अंदाजा लगाने लगी कि मैंने जब क्या कहेगा अपना काम बच गया । ये सोचते हुए मैंने चलने तुरंत का वहाँ ले जाओ । तीनों वहां से निकलकर रोशनी के टेस्ट के लिए चलने लगे । चलते चलते रोशनी ने फिर अपने स्वभाव का परिचय दिया । उसने कहा मैनेजर की बात का जरा भी बुरा मत मानना अंडर प्रेशर है । बेचारा यहाँ रह रहे लोगों की व्यवस्था देखना उसका काम है और उसकी मदद के लिए जितने लोग चाहिए उतने लोग सरकार ने दिए नहीं । ऊपर से शांति बनी रहे इसकी जिम्मेदारी भी उस पर डाल दी है तो थोडा खडा उठा रहे हैं । जब भी देखता है कि जो लोग थोडा आप ऐसे बाहर होने की कोशिश कर रहे हैं तो वो हजार वजहें देकर उन लोगों को राशन काम कर क्या करते हैं तो सब सेट करने लगे । यहाँ पर सब जानते हैं । पेट की भूख सब पर भारी पडती है । मैनेजर का ऐसा करना उसकी मजबूरी है । उसे भी कोई कृषि नहीं मिलती । ऐसा करके और बॉक्स आए हुए लोगों को काबू में रखना जरूरी है वरना हर कोई अपने मन मुताबिक करने लगेगा । तो यहाँ जो अफरा तफरी मचेगी उसमें सब अपने ही जुलस कर रहे जाएंगे । अब प्रताप ने रोशनी के सिर पर हाथ रख दिया ये जुटाने के लिए कि वो उस से मिलकर बडे खुश हैं पर कुछ कहने सुनने का वो मौका नहीं था । ऐसे हालातों में कोई भी इंसान गुमसुम सा हो ही जाता है । बस उसकी आंखे ऐसे बयान करती है । रोशनी ने अपने टेंट का पर्दा सरकाया और अभिमन्यु, आरती और अभय प्रताप को अंदर आने का इशारा करते हुए कहा क्योंकि आपका भी कह रहे हैं
Producer
Sound Engineer