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मुझे छोडने मदन बाबू मेरे भैया कहाँ है? तकलीफ की तरह रोती हुई विभाग बोली भैया भैया दम पतली हो गई हो तो होश नहीं है । मदन बाबू बोले मुझे काफी होशियार मदन बाबू पर आपको नहीं है । विभाग बोली भैया भैया भैया ब्रिज किशोर को काफी चोट लग गई । पीडा बढती ही जा रही थी एक कदम तक चलने का । उसमें सामर्थ्य नहीं था । कुछ साहस कर आगे बढा पर गिर पडा । पुनः उठाओ और आगे की ओर बढा भैया भैया भैया की आवाज उसे सुनाई पडी । कुछ क्षण के लिए वह रुक गया । फिर धीरे धीरे आगे की ओर बढता है । आवाज तेजी से आने लगी । वह सोचने लगा शायद वन विभाग को मार रहा है । धीरे धीरे उसमें कुछ शक्ति आ गई । तेजी से आगे की ओर बढा हुआ । कुछ ही क्षण में वह मदन बाबू के घर की गेट के निकट पहुंच गया । गेट पर सिपाही युगल सिंह खडा था । उसके हाथ में लाठी थी । सिर पर पगडी ब्रिटिश कुत्ते की टोपी की तरह था । ब्रिज किशोर को उसने अंदर नहीं जाने दिया । ब्रजकिशोर ने उसके गाल पर एक चपट कसकर जमा दिया । वो जमीन पर लुढक गया । ब्रजकिशोर अंदर प्रवेश कर गया । भैया भैया रोती हुई विभाग ब्रजकिशोर को देखकर उसके गले से लिपट हर जो यहाँ से ब्रजकिशोर मदन बाबू आवेश में बोले वरना अंजाम बुरा होगा । गुद्दे चुपचाप रहो बुरे अंजाम की मुझे कुछ भी परवाह नहीं है । लाल लाल आंखें दिखाते हुए ब्रजकिशोर बोला मदन बाबू दंग रह गए । ब्रजकिशोर विभाग को वहाँ से लेकर भाग गया । अब वे दोनों सडक पर आ गए । दोनों भाई बहन खुशीपूर्वक घर की ओर बढे कहाँ थी इतने दिनों से भैया रास्ते में विभाग बोली था । दुख की कहानी बहुत बडी है । समय मिलने पर कहूंगा गंभीर सफर में ब्रजकिशोर खोला भैया तो भैया के कर विभाग होने लगी । चुप रहो विभाग यहाँ तो प्रकृति की लीला है, कभी रात तो कभी दिन होता ही है । विभाग को ढांढस दिलाते हुए ब्रजकिशोर बोला यह सच है कि आज की दुनिया जुल्मी है । भैया विभाग बोली विभाग हमें घर की ओर चलना है । बहुत दिन बीत गए । संजीव कैसा है? माँ कैसी है? पिताजी कैसे हैं हमें कोई पता नहीं । शीघ्र ही चलो । विभाग विभाग की बात को टालते हुए ब्रजकिशोर बोलो और घर की ओर तेजी से बढा माँ दरवाजा खटखटाते हुए ब्रजकिशोर बोला बेटा इतने दिनों से कहा था व्यग्र होकर मानी । पूछा हाँ दुख की कहानी ब्रजकिशोर की अधूरे बोलते ही माहर बढाकर बोली क्या हुआ? बेटा कुछ नहीं । ब्रजकिशोर बोला साइड भगवान तूने मेरे भाग्य में क्या लिखा है? एक ओर पेट निजवाला और दूसरी ओर दर दर की ठोकरें बिहार होकर उसकी माँ बोली इस समय धैर्य से काम लो । बेटा ईश्वर सब अच्छा करेंगे । भैया मुझे छोडकर कहाँ चले गए थे? संजीव बोला तुम्हारे लिए अन्य की खोज में दीनता से ब्रजकिशोर बोला भैया, मैंने तो अपनी माँ के आंसू से पेट की ज्वाला को बुझा दिया । ऊंचे स्वर में संजीव बोला धन्य हो तुम । संजीव ब्रजकिशोर बोला बता आगे वृद्ध पिता एक चारपाई पर लेते थे । उनको खांसी की शिकायत थी । उतना चल फिर नहीं सकते थे । ब्रजकिशोर उसके पास गया और सविनय प्रणाम किया । पुत्र की दशा को देखकर भी रो पडी । पिता जी रोते क्यों? क्या हुआ? पिताजी? ब्रजकिशोर ने पूछा । कुछ नहीं बेटा रोते हुए स्वर्ग में उन्होंने जवाब दिया ब्रजकिशोर घर की दशा को समझ गया । वह पिताजी के रोने की बात जान गया । अफसोस करते हुए वहाँ चला बेटा आज भगवान कृष्ण के मंदिर की ओर चलोगे । ब्रजकिशोर के पास जाकर माने । उत्सुक होकर पूछा चलेंगे क्यों नहीं चलो ना? ब्रिज किशोर बोला मैं भी जाऊंगी । मैं विभागों ली मैं मैं भी जाऊंगा । संजीव बोला चलो हम सब चली । माँ बोली
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Sound Engineer