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ढाका ॅ बात पक्की रही ना? वैसे तो बीस हजार रुपये पहले कह चुका हूँ अगर पांच हजार रुपए और आप चाहे तो इसे भी मैं दे दूंगा । से चेटीचंड इतनी धन भाव से बोले । पर्सेंट चीज जगत का स्वर्ग का पानी लगा आप कुछ करेंगे । काम तो दोनों के सहयोग से ही होगा । लेकिन चंचल क्या हुआ चंचल को? दरअसल बात यह है सेठ जी मेरी पार्टी नहीं मान रहा । ऍम नया मानने से क्या मतलब? आपको पैसे चाहिए और उसका डाॅ । लेकिन सेट जी शादी का मामला तो उसके व्यक्तिगत जीवन का है । हम दोनों तो इस संबंध को मेरे स्टाइल बनाने वाले हैं । कहीं ऐसा ना हो कि वह विरोध में कुछ कर बैठ है । बॅालीवुड हाँ समझ गया । जगह बाबू मालूम पडता है कि आपकी लगाम उसी के हाथ में है । नए नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है । मैं उसे समझाने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ । उम्मीद है कि वह शादी करने के लिए राजी हो जाएगा । अक्षय राजीना हुआ तो फिर भी मैं आपको आश्वासन दिलाता हूँ कि उसकी शादी रूपा सहयोगी तो मुझे कुछ संदेह मालूम पडता है । जगह बाबू कहीं ऐसा ना हो कि हमारी सारी योजना फेल कर जाए । आप मुझ पर विश्वास रखिए ऐसा कदापि नहीं हो सकता । विश्वास आजकल तो बेटा बाप पर भी विश्वास नहीं करता, खासकर शादी के मामले में । मैं तो बात की बात मानना पसंद नहीं करता है । अपनी चाहा कि लडकी से शादी करना चाहता है । उसे रुपये पैसे से क्या लेना देना । उसे सिर्फ खूबसूरत लडकी चाहिए । आधुनिक रीति रिवाज के अनुसार सब दे और सुरक्षित लडकी ही उसकी मनपसंद पट नहीं हो सकती है । लेकिन मैं तो उसका बाप हूँ । मैं ये कहाँ कह रहा हूँ? क्या आप उसके बाद नहीं? इसीलिए तो कह रहा हूँ कि आप जो चाहिए गा वही हो जाएगा । अच्छा तो मैं चलता हूँ । इतना कहकर जयचंद्र कुर्सी पर से उठ बडे उनका साथ देने के लिए जगह की ओर पडे । दोनों बराबर की स्थिति में बंगले से बाहर आए । उनकी कार सडक के किनारे लगी हुई थी । घडी को धरती पर देखते हुए वे तेजी से कार की ओर कदम बढाने लगे । पिछली सीट पर बैठते हुए जयचंद्र बोले, ऍम ड्राइवर उन की आज्ञा पाकर का स्टार्ट करता हूँ । एक हल्का धक्के के साथ बाहर सडक पर दौडने लगती है धक्के की आवाज । संकट जयचंद्र चौंक उठे । उन्हें लगा कि उनके दिल को धक्का लगा होगा । या कल उनकी घबराहट समझ गए । कार जब उनकी दृष्टि से होटल हो गई तो वह अपने बंगले की ओर लौट पडेगा । उन्होंने जयचंद्र को शादी के लिए आश्वासन तो दे दिया था लेकिन उन्हें अपने दिए गए आश्वासन पर संदेह हो रहा था ही चंचल इंकार न कर दें । फिर क्या बना बनाया खेल समाप्त हो जायेगा । पच्चीस हजार रुपये हाथ नहीं आएंगे । आजकल तो जिंदगी भर कमाकर भी आदमी पच्चीस हजार रुपए कट नहीं कर पाते । मान जहाँ क्या चंचल से स्पष्ट शादी के लिए कह दो हाँ या ना तो जवाब मिल ही जाएगा । सगाई हो जाने के बाद अगर छलछल इंकार कर देगा तो मेरा सबसे बडा मान होगा ये सोच झट से वह चंचल के कमरे की ओर मुडे । बॅायकॅाट बोले हैं जी पिताजी! काॅमर्शियल तुरंत आदर से खडा हो गया बेटा मैं तुम्हारे पास कुछ आवश्यक काम से आया हूँ तो मालूम ही होगा अभी जय चंद्रबाबू पच्चीस हजार रुपये बोल करके आए हैं । बिजनेस में साथ ही होने का विचार है क्या तो बिजनेस की बात कर रहे हो । मैं तो तुम्हारी शादी के बारे में बोल रहा हूँ । बेटा जिंदगी भर बैंक में काम करते रहे जा होगी लेकिन तनखाह रुपये बचाकर पच्चीस हजार रुपए जमा नहीं कर पाओगे । अगर का हो तो मैं सगाई की बात कर लो, उनसे कर लो । पिताजी यहाँ अपने बेटे का व्यापार करना चाह रहे हैं । अरे मोर बडा कोई बाप अपने बेटे का व्यापार करता है । मैं तो तुम्हारी भलाई की बात कर रहा हूँ । मेरा फर्ज भी पूरा हो जाएगा । पिताजी आप की मैं बहुत कुछ सुन चुका हूँ । कुछ मेरी भी सुनने का कष्ट कीजिए हूँ । क्या कहना चाहती हूँ ऍम देना ना मुझे रूपा पसंद है और न स्टेट जयचंद्र के पच्चीस हजार रुपए जल जल तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है तो नहीं मेरे इशारे पर काम करना पडेगा । याद रख लो तुम्हारी शादी रूपा के सेवा दूसरी किसी लडकी से नहीं होगी । पिता जी आप भी सुन लीजिए रूपा से मैं किसी भी कीमत पर शादी नहीं करूंगा । अगर आप मेरी भलाई चाहते हैं तो आज धनेश्वर बाबू से बातचीत कर लीजिए । रुपये तो पच्चीस हजार क्या पच्चीस सौ भी नहीं दे सकेंगे । लेकिन हाँ बहु पच्चीस हजार क्या पच्चीस लाख से बढकर भी मिल जाएगी । मेरा अंतिम फैसला विश्व लीजिए । मेरी शादी उनकी बेटी पीलू से होगी । चाॅस चिडिया की बात कर रहे हो, पी लो कोई चिडिया नहीं है । पिता जी जहाँ पे एक गरीब बात की आदर्श बेटी है हूँ चल लेना जाने आंगन टेलिकाॅम इतना के हैं आवेश में तमतमाए हुए चंचल के कमरे से निकल गए । चंचल अपने पिता को अपनी पसंद बताकर चुप चाप कुर्सी पर बैठ गया । फॅमिली को पाने के लिए जाता था । चंचल की बात सुनकर जगत सीधे सेट जयचंद्र के घर की ओर चलती है । चंचल के अ स्वीकारात्मक फैसले से उसका मन चिंता में डूब गया था । जयचन्द को क्या कहूंगा उन्हें आश्वासन देकर पीछे हटना ये भी तो मूर्खता ही है क्या समझकर चंचल ने अपनी पसंद धनेश्वर के बेटी के बारे में सुनाया क्या एसिया का धनेश्वर की ऐसा उनके पास रुक गए । सडक के दाईं और जयचंद्र का दो मंजिला मकान कलाकारों ने उनके मकान की नकाशी इस प्रकार की थी कि वह कुछ देर तक देख कर बहुत चक्कों में पड गए । क्या देख रहे हैं जगह बाबू जिंदगी भर की कमाई इसी मकान को बनाने में लगा दिया हूँ हूँ सेट जयचंद्र बोले मैं उन्हें आते देख लिया है मकान पर उनकी नजर जाते ही है । उनके मन के भाव भी पढ लिया । आप से मिलने आया हूँ बाहर ॅ अच्छा हुआ आप चले आए । ॅ आपसे मिलने के लिए जाने वाला था । चलिए बैठ कर बातें करेंगे । इतना कहकर बराबर की स्थिति में जगत के साथ बरामदे ने बडे हूँ । इतना कहकर बराबर की स्थिति में जगत के साथ बरामदे की ओर बढे बरामदा महापुरुषों की तस्वीरों से भरा हुआ था । गांधी जी, जवाहर लाल नेहरू, जयप्रकाश बाबू, राममनोहर रॉयल, सुभाष चंद्र बोस, तुलसी राजी बरामदे में दाखिल होते हैं । जगत एक ट्रक दृष्टि से महापुरुषों की तस्वीरों को देखने लगता मैं ये जगह बाबू ईजी चेयर की ओर इशारा कर बैठने के लिए । जयचंद ने कहा । मेज के आमने सामने पडी कुर्सियों पर गए । दोनों इत्मीनान से बैठ गए । मेज पर रखे फूलदान की शोभा अत्यंत आकर्षक लग रही नहीं, लेकिन उसमें रखे गुलाबी रंग के गुलाबी फोन कुछ मुझे लग रहे थे । ऐसा लग रहा था कि फूल बासी हो गई हूँ । फिर भी फिर एक ही सुगंध उसमें थी । थोडी देर तक पहुँचा बैठे हैं । नौका चाय की छह देकर चला गया । फिर दोनों चाय की चुस्कियां लेने लगे । जगह बाबू शादी के बारे में क्या सोचा है? चाय की चुस्की लेते हुए जयचंद्र बोले कुछ समझ में नहीं आता क्या करूँ से जी हूँ । जगत में लापरवाही से कहा, क्या चंचल राजी नहीं हुआ? उसका मुलाकात का मैंने लाख समझाया, लेकिन मैं साफ इंकार कर दिया । न जाने कैसी बेटी है धनेश्वर की धनेश्वर की बेटी यहाँ से जी, मैं उसी से शादी करना चाहता है । आप अपने बेटे की शादी उस कमीने की बेटी से कीजिएगा, जिसका अपना कुछ नहीं दूसरों की छाया में पालता है । खाने के लिए दोनों समय भरपेट भोजन नहीं मिलता है । वह साला तो मेरा पांच सौ रुपये डकार गया है । अभी सोच छोडूंगा तो रुपए चुकाने में उसका घर दिख जाएगा । आप चुपचाप रहिए । जिस नाटा को वहीं खेलना चाह रहा है, उस नाटक का अंत में पहले ही कर दूंगा । मुझे तो कुछ कहते ना बनता से जी आपकी तरफ से मेरा काम बन सकेगा । कितना के हैं? जगत कुछ भी नहीं बोले । ऐसा लगा कि उनके पास अब शेष बताने के लिए कुछ नहीं रहा । सेठ जी क्या थे? गुस्से में लाल हो गई है और कुछ सुना नहीं चाह रहे थे । जगह चुपचाप बरामदे से बाहर आ गया । समस्या भयंकर रूप धारण कर चुकी थी । कब शोले फूट पडे इसका कोई ठिकाना नहीं था । जयचंद्र बरामदे में इधर उधर चिंता में टहलने लगे । धनेश्वर के पढाई को हटाने के लिए उत्ती सोचने लगे । नहीं ये ऐसा नहीं होता है । आवाज सुनकर मुनीमजी बरामदे में दाखिल हुए । सरकार अभिवादन कर रहे बोला हूँ धनेश्वर मैं भुगतान कर दिया । जी रहे तो जब से रुपये लेकर गया है अभी तक एक बार भी चेहरा नहीं दिखाया है । सोच भी बहुत हो गया लगता है । रुपया डकारने के फेर में हैं आप क्या कर उसका हिसाब कर लीजिए उसे सूट सहित मिलने के लिए दो दिन के अंदर कहिए जो क्या इतना के हैं? मुनीमजी बरामदे से तेजी से निकल गए । धनेश्वर तीनों के लिए लगातार कई दिनों से वर्ल्ड हो रहे थे । घर अच्छा मिलता तो वार नहीं वर अच्छा मिलता तो घर नहीं नीलों की शादी के लिए । वैसे जयचंद्र से दो सौ रुपये ऋण के रूप में लायक है । एक साल गुजर गए, लेकिन आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण नए रुपये भुगतान नहीं कर सकें । मुनीमजी से दो सौ रुपए का स्रोत । एक साल में दो सौ चालीस रुपये सुनकर उनका सिर चकराने लगा भी । इतना रुपया दो दिन में कैसे भुगतान कर सकेगा? से इतना गिरा हुआ आदमी हैं । सोशल से अपना गोदाम भरता है, उसका इसीलिए करते हैं । दिनभर वह सवालों में उलझे रहे उन्हें रुपया भुगतान करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । ऐसा चंचल की याद आई है । उसके घर की ओर चल पडे । पीलो की शादी के बारे में उन्हें कुछ भी मालूम नहीं था । उसके बारे में उन्होंने कुछ भी उससे चर्चा नहीं की थी । लेकिन चंचल अपने मन में पीलू के साथ शादी के लिए निर्णय कर चुका था । हाज परिस्थिति ने धनेश्वर को अपने होने वाले अनजान दामाद के घर सहायता के लिए पहुंचा दिया । चैंचल बाबू धनेश्वर गंभीर आवाज में बोले । अपने अध्ययन कक्ष में कुर्सी पर बैठा चंचल ने उन्हें देख कर तुरंत खडे होकर कहा ऍम सामने की कुर्सी की वह बैठने का इशारा करते हुए बोला, कही है कैसे खाना हुआ? कुछ काम ही ऐसा पड गया । कुर्सी पर बैठे होते हैं । बोले आप से कुछ रुपये की सहायता जाता हूँ । चंचल को बात समझते देर नहीं है । अपने पिताजी से सेट जयचंद्र का व्याख्यान धनेश्वर के संबंध में सुन चुका था । वहाँ धनेश्वर की परिस्थिति से भलीभांति परिचित था । फिर भी उसने पूछा कितने रुपए चाहिए? पांच सौ ऍम बोले सेठ जी को भुगतान करने के लिए पांच सौ धनेश्वर बोले हैं । सेठ जी को भुगतान करने के लिए आपको कैसे मालूम हुआ । मुझे सब कुछ मालूम है । आप चिंता मत कीजिए । मैं अभी आपके साथ रुपये भुगतान करने के लिए चलता हूँ । इतना कर चर्चा लोड किया । दोनों सेठ जी के घर की ओर चल पडे । रास्ते में चंचल ने अपने मन की बाद धनेश्वर को बता दी । भुवनेश्वर का मन गदगद हो था । दोनों से जी के पास पहुंचे । ये लीजिए सेठी आपने रुपये मैं नहीं समझता था की आप इतने गिरे हुए व्यक्ति हैं । भविष्य में किसी दूसरे के साथ ऐसा काम मत कीजियेगा । इतना के हैं रूपया देकर चंचल धनेश्वर के साथ वहाँ से चल पडा । रुपये संभालते हुए सेट जयचंद्र दोनों को फटी आंखों से खोलते रहे गए ।
Sound Engineer
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