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महिंद्रा ने डैशबोर्ड की रोशनी में खरीदी । बारह बजे अभी एक घंटे का समय और उसके पास था । उस दिन गाडी की रफ्तार पैंतीस से घटाकर तीस बहुत बुंदेलखंडी चारों की हवा दोनों ओर के जंगलों में से होकर साईं साईं करती तो तेज चल रही है । दूर से आपकी बेतवा की तेज धान की बहने क्या हुआ स्टेशन बैगन की इन जिनकी आवाज की पांचू नहीं थी । अगले मील के पत्थर की पास पहुंचनी पर इस इंकारी को थोडा कुमार कर रोका और सामने के शीशे को रोमांस ही संस्कृति स्तर पर लिख की दूरी पर ढोल नाले की पुलिया महासी कोई पैंतालीस किलोमीटर रखी थी और वहाँ से एक बजे पहुंचती थी । सामने की सीट पर ही बैठी मिर्ची सीधा तीन विजय आने महेंद्र की ओर एक बार प्रश्नवाचक दृष्टि से भी था । महिंद्रा ने ओवर कोट की ऊपरी जीत से स्वीकार निकालकर चलते हैं । फिर अभी एक घंटा हो ऍम अभी मैं आपको वापस रावी छोडकर ढांसा नाले की पुलिया पर एक बजे तक पहुंॅची मेरे पास वापस लौटी की छत इतना इतना ही नहीं मानी जितना घर पिताजी के पास पहुंचने की सूचना मुझे भी लोग एक बार सिर उठाने की तो भी क्या फर्क है ये बहुत ऍम से कह रहे हैं वो एक महीने पहले रायसिंह डाकू का दल उसके पिता के घर डकैती जानकर उसे उठाना है । उसकी शादी अगले महीने ही होने वाली है । पिता आनबान वाले ठाकुर थी यू लडकी को पढाया लिखाया था गुड सवारी की टाॅप बंदूक चलाने की सुविधाएँ थी, लेकिन हूँ इतने दिन । अपनी खानदानी दुश्मन और कुख्यात डाकू रायसिंह की कंपनी में रह कर वापस पिता के पास जाकर उनके लिए एक समस्या नहीं बनना चाहती थी ना उनके लिए जहाँ उसकी शादी देखो । फिर महेंद्र ने एक बार और सेना अपना पर समझा । जारी स्टार्ट करने से पहले उसने एक बार फिर मोटर में लगे चीज हमें अपनी छत्रपति खाकी रंग कर नीला बनाया हुआ ओवर कोट नहीं जिसकी कॉर्नर उठी थी । सिर पर काश्मीरी टोपी और उसके नीचे करीब करीब पूरे चेहरे को देखते हुए मसला है । महेंद्र को रात के अंधेरे में राघव सिंह मानने में किसी को कुछ हो, उस की सोच, उसकी लंबाई चौडाई, राजत सिंह जैसी ऍम सब वही राघव सिंह का पहले सिर्फ उसे अपने क्लीन शेव चेहरे पर राजस् सिंह जैसी छोटी छोटी मुझे लगाने पडेंगे । घर से जैसा बंबईया हिंदी बोलने में भी उसे कोई दिक्कत नहीं मैं जानता हूँ । राघव सिंह ट्राई सिंह चाकू के गिरोह था । फौज में मेडिकल कोर में नरसिंह निर्दली रह चुका हूँ और एक कंपाउंडर को मार कर फरार हो गया था । मैं दो साल से मुंबई में टैक्सी चलता था और अब जाहिरा किशनगढ के ठाकुर जंगबहादुर का नहीं आना चाहिए था हूँ उसका काम था या को रायसिंह द्वारा लूटे हुई मांग जंगबहादुर के जरिए इधर से उधर पास करना और जरूरत पडने पर चोट खाई डाकुओं की मरहमपट्टी करता हूँ उसकी सेवाओं के लिए रागर सिंह को विजया कुछ दिन के लिए इनाम नहीं दी गई हूँ जिसे उसने अपनी बहन के पास राबी में रख छोडा था । आज राहत सिंह रावी से विजय को लेकर किशनगढ जाने वाला था । रास्ते में ढांसा नाले पर रायसिंह और उसके दल के खास खास चार पांच लाख को मिलेगी ताकि मामूली लोगों को कुछ दिन के लिए पीटर पीटर कर दिया गया था । दलके, खासम खास लोग और सरगना कुछ दिन के लिए रावी के जंगल और खो हक्का छोडकर किशनगढ के जंग बहादुर सिंह की छत्रछाया में विश्राम लेंगे । इधर तीन चार महीनों से रायसिंह नेरावी और आसपास के कई जिलों को छलनी कर रखा था तो दिन दहाडे डकैती डालता और बडे जमींदारों और साहूकारों के बच्चों को उठा ले जाता हूँ । फिर फिरौती की लंबी लंबी रखने लेकर उन्हें छोड था कच्ची हिम्मत वाला पीस को राघव सिंह रावी के एक सस्ती होटल में शराब पीकर बता छत्ता जंगबहादुर कि स्टेशन बैगन सहित पुलिस के हाथ पकडा गया । हाँ और बढिया शराब की जोर से पुलिस ने उससे सारी बातें बाल भरी । महेंद्र की गाडी अब कोई पच्चीस किलोमीटर की रफ्तार से चल रही है । बिल्कुल खानी हो डाकू रायसिंह के मारे दिन छिपे बात सडक पर निकलने में पुलिस भी सबको जाती थी । विजय बिल्कुल चुप चाहते हैं कि बाहर कुंदेर ठंडी हवा तेज होती मालूम देती हूँ । अकसर जब हमें कोई काम होता है तो ऐसे ही हो जाता है । महेंद्र सोचता हूँ अपनी पुरानी सहपाठी पुलिस कप्तान आनंद के निमंत्रण पर तो कल ही तो ॅ तुम शिकार की शौकीन आनंद से लिखा था पर यहाँ शिकार की रात है । फिर आजकल तो यहाँ जंगलों में एक बढ का बाग घूम रहा है जिस का दूसरा नाम है राइस । कई बार मुझ से करवा चुका है कि कप्तान साहब अभी लांडे हैं, भडका बाद जिस दिन सामने आएगा सिट्टी पिट्टी भूल जाएंगे तो माँ तो एक साथ बढ के बाग का शिकार खेलेंगे । लेकिन महेंद्र जब पहुंचे तो पाया आनंद । इस बीच एक छोटा बाघमार कर लौटी हुई जी तो पेड से टकराकर हाथ का फ्रैक्चर लिए बैठे । अगले दिन राघव सिंह पुलिस के हाथ पड के कई स्कीमों पर खूब सोच विचार करने के बाद आखिर यही तय हो महेंद्र नागर सिंह बनकर उसी की स्टेशन मैं नहीं मीडिया को साथ बैठाकर चलेगा । ढांसा नाले पर राय सिंह और उसके साथियों को मिलेगा आगे रावी और किशनगढ की सीमा के पास सडक के किनारे एक टूटी मंदिर तक पहुंचने पहुंचती दारी खराब है और उतनी पडेगी । मंदिर में किशनगढ से आई काफी पुलिस चुकी हूँ जिसका बंदोबस् आनंद करती हूँ । उसके बाद महेंद्र को राघव सिंह बने रहने की कोई जरूरत नहीं है । ये भी सुझाव दिया क्या बेटियाँ साथ मुझे और महेंद्र उसको न लाने का कोई अच्छा बहाना रायसिंह से बनाती लेकिन मुझे नहीं मांगी । उसका कहना था की वह साथ हुई तो रायसिंह को बुरा लगेगा । दशक मैं महेंद्र पर बिगडे का तरह तरह की सवाल करेगा । किस से हो सकता है महिंद्रा का राज खुल जाएंगे । ये भी बात थी कि राघव सिंह की जगह तो महेंद्र सिंह मिल गया था लेकिन मैं क्या की जगह किसी और का मिलना संभव है । बीस किलोमीटर और निकल के वहाँ से दस किलोमीटर की पत्थर के पास रायसिंह का पहला स्काउट मिलेगा । फिर दो किलोमीटर आगे जाकर दूसरा दोनों जगह महेंद्र को मोटर रोक नहीं होगी जिससे इत्मीनान किया जा सके की मोटर में पुलिस तो नहीं । जरा सा भी शक होने पर हायर कर के दल को सावधान कर दिया जाएगा । रावी से सैंतालीस किलोमीटर पर गाडी रोकनी से पहले महेंद्र ने मीडिया की तरफ देख मैं वैसे ही निश्चल सी बैठी थी गाडी की धीमा होती है जैसे धरती में से उनका एक लंबा छह पदन का जवान छाया सा आ गया था । देखेंगे टॉर्च की रोशनी ठंड भी मोटर के अंदर का कोना कोना झडते और उसी से आगे बढने का इशारा मिला । गाडी की रफ्तार पढाते हुए महेंद्र ने अब मुझे से सिगार का लम्बा कश्मीर उसने भारी बारी से अपनी ओवर कोट की चेत में पडे दोनों रिवाल्वर छू करती तीसरे किलोमीटर पर वहीं खजूर का फिर हुआ हुआ । इस पर गाडी बढाते हुए महेंद्र ने हाल किसी का सुनकर उसी तरह बैठे बैठे भी जाने का मेरी फॅमिली फिर छोडा तो हूँ । राघव सिंह को मेरे अलावा मेरे पिताजी का यहाँ पर भी मिला था तो उसे भी रागर सिंह ने अपनी बहन के पास छोडी हूँ कहकर उसने पिस्तौल अब कोर्ट की जेब से निकाल के । महिंद्रा ने ये पूछने की जरूरत नहीं समझी की चलाना भी जानती हूँ ना इसके लिए वक्त था हूँ । रावी से पचास किलोमीटर का पत्थर किया था ढांसा नाले की पुलिया एक मिनट तक कुछ नहीं हुआ । तेरह मिनट महेंद्र को बहुत लंबा लगा । जंगलों में साईं साईं बहती हवा के अलावा जीत नीचे ढांसा नाले के बहने की आवाज उसी और लम्बा बना रही थी । उसने कार्य की लाइट बुझा थी पर इंजन बन नहीं किया । राघव सिंह ने बताया था यही करता हूँ एक आई एक पर फेस टॉर्च की तेज रोशनी मोटर में घूम लूँ । फिर उसी रोशनी से सडक की बाई तरफ चलने वाले जंगल की ओर कुछ इशारा हो । फिर वहीं घुप ऍम रागर सिंह ने यह नहीं बताया था कि गाडी रोककर उसी वहाँ उतरना होगा या बैठे रहना । अपनी यात्रा से उस वक्त उतरना ही मुनासिब समझकर महेंद्र उतर के अगर महेंद्र गाडी से मैं होता ही नहीं । क्या होता है ये काम तो ठीक हो पर साथ ही एक बडी भारी गलती भी हो गई । महेंद्र दाहिने हाथ से कुंवर कोर्ट की जीत से भी बोला था और बाईस थोडा बाकी बचा सीधा ऍम सब कुछ करता था । मैं स्वीकृति उस ग्रुप अंधेरी रात में फिगार का जनता हुआ सिर्फ मैं ही काफी तक दिखाई पडता है और इस बढियां स्वीकार चिकन हमा पर समारोह का नहीं जारी कहाँ तक पहुंचती होगी? ये झूठी छोटी बाघों का शिकार नहीं नहीं हो सकता था । लेकिन यह तो बढ की बाग का शिखर सर्दी की मारे उसके अंग अंग करती जाती थी । रिवॉल्वर पर लिपटी उसकी उंगलियां जमीन ही जाती थी । सडक के किनारे एक बडा पीस था जो अंधेरे में ऐसा लगता था महेंद्र रियांग जरा देर बाहर के अंधेरी की अभ्यस्त सके । इसीलिए की बीवियां उसकी सीट पर खिडकी की पांच जाकर बैठ के उसी की होती थी । फिर उसी सडक की भाई ओर बनी चन्दन से निकलकर मोटर की सामने की पांच छह छाया हूँ आती थी हूँ एक छाया जरा की थी मोटर की तीन बार तलाशी हो चुकी थी अच्छाई आई निश्चिंतता से बढ रही थी क्योंकि छोरी बुलाया ना आगे वाली छाया नहीं आगे बढते हुए पूछा हूँ । महिंद्रा से उस छाया का फैसला उस वक्त हुई पंद्रह मीटर होगा इससे पहले की महेंद्र को जवाब था मैं छाया कुछ ठिठकी अरे ये क्या मामला है ये सारा जो रूट छाया की हाथ की टॉर्च ठीक तरह जल्दी नहीं पाई थी कि हवा और बहते पानी की धाराओं की आवाजों को भेजती भेडिया की पिस्तौल चलने क्या हमारे स्कूल थी आगे वाली पीठ पकडते हुई नहीं चाँद घर में महेंद्र पेल की ऊंट हुई हो लिया अब तक गरीबी महेंद्र की बात अच्छी कारी महेंद्र की बारी आई उसके पेड के पीछे पहुंचती पहुंचती यहाँ मैं पहले खडा था वहाँ से होकर कम से कम दो गोलियाँ निकल चुकी ट्राई सिंह और उसके साथियों का ध्यान महेंद्र की तरफ था । चाकू निश्चिंत तो थी पूरी चलाने के लिए तैयार ही नहीं फिर भी पालक मारती एक पिस्तौल और बंदूक फायर करती होंगी तेल कितनी पर तेल गोलियाँ पर चुकी अंधेरे में महेंद्र के चार फायर पे कहाँ जा चुकी थी एक का एक लगा जैसे घटाटोप अंधेरे को चीट कर सूरज निकल आया हूँ । वेज यानी मोटर की रोशनी चलाती साथी बिना निशाना लिए दरवाजे से हाथ निकालकर धराधर तीन खाये पौधे पडा पडता बात और सडक पर जगह जगह पोजीशन लिए दो तीन और डाकू आसमी चली जाती दिखाई थी । एक अपनी स्टेनगन पर मैगजीन लगाने की कोशिश कर रहा था । दूसरा मैग्जीन लगाकर गन को कंधे पर ले जा रहा हूँ । दो खाली हाथ वाले बाई तरफ के जंगल में घुसते दिखेंगे । महेंद्र की एक रिवॉल्वर में दो ही गोलियां बच्ची थी एक मशीनगन वाले की कनपट्टी पर और उसमें से संसदीय दूसरे की लगी दिल से करानी चाहिए रहती लेती है । नवंबर में इतना हुआ और फिर मोटर की रोशनी बंद हो गई । बंद होती रोशनी में बन्दूक की गोली से मोटर कि सामने वाले शीशे का चकनाचूर हो ना! और टुकडों का उठना तो महेंद्र नहीं देखता है । लेकिन आवाज से स्पष्ट था कि ये पहला वार मोटर पर किया गया था । फिर कुछ देर सन्नाटा रहा । आखिर महेंद्र ने कई बार ध्यान से चारों ओर देख कर और कान लगाकर आहट लेने के बाद मोटर पर वापस जाने का नहीं किया । शायद बेटियाँ को गोली लगी हूँ । धीरे ठीक तो मोटर की तरफ पर तब बढ के बाग नहीं । आखिरी बार की मीडिया की गोली उसके पेट में लगी थी पर वह हमारा नहीं था । उसकी पेट में गोली ने लगी होती तो उसका निशाना चूकता नहीं लेकिन मैं चूका भी तो इतना कि ज्यादातर छर्रे महेंद्र की दाहिनी जांघ पर पडेगी । आखिरी फायर दूसरी रिवॉल्वर नहीं । क्या राय सिंह के लिए यह काफी था । काफी देर तक पडी रहने की बात किसी तरह खेल सकते हुए है । मोटर तक पहुंचा । यह तो महेंद्र को ठीक से याद नहीं रहा हूँ । ये जरूर याद रहा की मोटर में घुसकर उसी विजिया को अर्धचेतन अवस्था में पाया । कांच के टुकडों के लगने से उसके सिर पर माथे से खून निकल रहा हूँ । महेंद्र कुछ देर तक उसके बालों के कांच के टुकडे निकालता रहा । एकाएक महेंद्र कोलाका की बेटियाँ पे हो जाती है । फॅमिली खोली उसकी तरफ देख रहे हैं कहीं दूर जंगल में गोलियां चलने की आवासीय कारतूसों की हल्की रोशनी दिखाई थी । अब छुट्टी कितनी आती है । नहीं उतरने धीरे से बीच यानी लेते थे । बिना कुछ बोले अपना कॅरिअर उठाए । उसका चैंबर खुला । उसमें से एक का दोस्त था जैसे प्रयास न घर के । उसे किसी खास मकसद के लिए बचा रखा हूँ । महेंद्र ने रिवाॅल्वर ले लिया आज का तो उस चेंबर से निकालकर खेती डालिए । बीजी यानी सेंसर करने से चौकानी
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