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Part 8 in Hindi

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235 Listens
AuthorRashmi Sharma
आँख मिचौनी writer: रमेश गुप्त Voiceover Artist : Rashmi Sharma Author : Vishwa Books
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शेखर भाई के कॉर्टेज तक पहुंचते पहुंचते मैं पूरी तरह से हम माफी पर पसीने की बूंदें साॅस ये परेशन ईको तो खडी पहाडी चल रहा है ये नहीं कि कहीं रिस्ता नहीं हूँ क्योंकि पता ही गलत हो गया तो मैं क्या करूँ? शेखर भाई घर पर मिले या नहीं मिले नहीं उठाती को लेकर वहाँ चले गए हूँ । चाचा जी ने वर्षों पहले ही है । कॉटेज खरीदी थी ही नहीं । नहीं बनाने का सहयोगी नहीं बना में पहली पारी हूँ वो भी इंडिया । चित्र परिस्थिति हूँ पूरी बनाई पर भी खडी नहीं देखा हो रही थी रात को जो फैन्स किया था किसी के अनुसार साढे पांच बजे उठ बैठ सुनीन ठीक से नहीं सिर भारी भारी हो रहा हूँ । उनकी सारे शरीर पर एक भूत सौ पडा हुआ था । मैं बिना चाहिए तैयार होकर सीधा चल पडा तो विश्वास था की शेखर भाई की यहाँ पहुंचती ही गर्म गर्म चाहिए । कॉफी पीने को मिलेगी । चटपटी मजेदार पाती हंसी कहता हूँ कि पटाखे फूटेंगे तेज करने की क्या तो मेरी जल्दी आने का एक होता है जी शेखर भाई और भाभी के कॉलेज के समय के बारे में कुछ मालूम नहीं था । नहीं सोचा था डेढ होने पर दोनों कहीं कॉलेज रवाना नहीं मुझे तो उसे शाम तक की गई पडे नोटिस की ओर बढते हुए मैंने पलट कर रहे नहीं होती लेनी चीन यानी जैसी लग रही थी भरा के पानी हरी रन का में ही हो रहा है सूरज उसकी कहानी लाने का प्रतिबंध हरी पानी पर पढ रहा हूँ नहीं शेखर की कॉलेज की बहुत पहुंच गया उनकी नींद रेट वहाँ लगी थी मुझे पांच का संतोष की पता ठीक हमें रास्ते में भेंट का नहीं ऍम तक पहुंचकर में खेला था जैसी में काफी जल्दी आ गया ऍम बाकि एक दम से इंसान से पडेंगे । नैनीताल की सुबह चंद्र आधी बातें छोड चुके थे आकाश नियुक्ति सूरज किया हूँ हूँ ब्लॅक तो क्या आप शेखर भाई और भाभी अभी तक सोई पडी कहीं ऐसा तो नहीं की वो नैनीताल से बाहर हूँ । फॅमिली मुख्यद्वार पर स्माॅल कहीं दिखाई नहीं होना शेखर भाई सोई पडेगी नहीं वो हमेशा ये किताबों की की दे रहे हैं अच्छा हैं कल रात तक पडती रहे होंगे क्या करेंगे सभी मुझे कराना है कि कॉटेज की पिछवाडे जाकर देखिए कही शेखर भाई उधर मांगवानी न कर रही हूँ उन्हें फूलों से लगा है ऍम पिछवाडे पहुंच मेरा अनुमान सही नहीं मखमली घास काॅल्स पडी थी बीच में उस पर स्टेनलेस स्टील का तीसरे रखा था । पहले बहुत सूरत सिटी कोनसी चढी थी शेखर भाई कुर्सी पर चुपचाप कम सबसे पहले नहीं एक तमक उनकी पीठ मेरी ओर थी । तेजी से आगे बढाना सीटी बजाता हुआ शेखर भाई के ठीक सामने जाता हूँ । अरे राजू तो! बस शेखर भाई ने इतना हीं ऍम आपको तटस्थता की मूर्ति से लग रही थी मैं उनकी उठने और मुझे आलिंगनबद्ध करने की प्रतीक्षा के बीच बीडी आशा निराशा में बदल गया क्या मैं शेखर भाई ने शांत सामने पडी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए हूँ मैं सेहत क्या? शेखर भाई को क्या हो गया है? कैसा अजनबीपन भरा है उनके आंखों में? क्या वो मुझसे नाराज मैं कुछ भी निर्णय नहीं कर पा रहा था । डाॅन उनके सामने पडी कोई नहीं कर दिया हूँ, समझ भी नहीं था ये वास्तविकता है या मैं स्वाॅट एक और भाई मुझे लगा मुझसे नहीं अपने आप से पूछ रही ऍसे उनकी ओर देखा भीषण परिवर्तन आ गया था । शेखर भाई हूँ यहाँ ऍम चलता नहीं जाने कहाँ कपूर की तरह नहीं वहाँ पर हमेशा छाई रहने वाले इसमें ही की स्निग्धता का पता नहीं कैसे उदासीनता की गहरी करता भरी ऍम शेखर भाई के संपूर्ण व्यक्तित्व पर उल्लास का चुनाव शा चाह रहा था । उसकी जगह एक नाम निष्क्रिय ऍम शेखर खाई का ये है भयावह रूपांतरण कैसी हो गया? इस समय तो कहाँ से आ रहा ऍम दिल्ली से कब आया? चार पाँच दिन हो गए इतने वर्षों बाद भी मिलने पर शेखर भाई के व्यवहार में एक ढक्कन की हुई है । क्या उनके पास घर से कोई सूचना नहीं? क्या उसी के कारण ऍम या फिर तो यहाँ का नहीं? क्या शेखर थाई ता बगल कहीं तो फिर तो मेरे पास नैनीताल बनाने की इतनी गर्म निमंत्रण क्यों भेजते रहे? इस तरह बिना सूचना दिए ही अचानक कैसे आगे शेखर भाई की निगाहें पास ही तैयारी में होंगे? फूलों फॅमिली मैंने कोई उत्तर नहीं दिया । मैं बहुत यूज किया था इसका था की शेखर भाई के पास मेरे घर से भारती की कोई सूचना नहीं, कई के सिख सकते हैं । जब घर वालों ने अखबार तक में विज्ञापन देती हूँ तो क्या नाते रिश्तेदारों को सूचित नहीं किया होगा? फिर क्या शेखर भाई ने अखबार में भी मेरे बारे में नहीं पर ऍम चलो दो चार दिन और नैनीताल नहीं चाहिए । यदि शेखर ढाई को मेरे बारे में सब कुछ पता होता हूँ तो मुझे डांट फटकार थे और पहली बस से दिल्ली के लिए रवाना करती नहीं चाहती हूँ । शेखर घाई नहीं कहा और फैली हुई टांगों को सिकोडकर तो मेरे लिए चाय बनाने लगी थी । कोनसी हटाते ही स्टील की केटली तब तब करने लगी चाहे काॅरीडोर बढाते हुए उन्होंने पूछा कहाँ ॅ होटल किस नहीं? मैंने होटल का नाम बता दिया आपने गलती चाहे की पहली पकडकर मैं सोचती लगा । इंसान कितनी जल्दी रन करना था, कितनी स्वास्थ्य और ग्रुप हो गए हैं । शेखर फॅमिली इतनी भी शराब पर शेष नहीं रहेंगे कि कम से कम औपचारिकता के नाते ही पूछते थे कि घर होते हुए भी तुम होटल में क्यों ढूँढ रही हूँ । यहाँ आई तो सामान क्यों नहीं उठा ले । आज तीन नैनीताल नहीं रहे हो । राज कष्ट फैला रही हूँ । तनी चाय का खून था, चारों देखती लगाओ माहौल में एक अजीब सी वीरानी ऍम साल अच्छा पैसा था । मुझे महसूस हो रहा था कि कुछ जरूर अघटित घट गया है । इसका क्या भाभी मायके चली गई? हो सकता है इसी कारण शेखर भाई ही बैठी हूँ । अभी कहाँ है? मैंने कुछ सकता पूर्व पूछे एक घर खाई ने एक्शन के लिए मेरी ओर ऐसी सोनी अर्धशहरी नाम नहीं था । हाँ सीखा का जैसे कोई अत्यंत ही अप्रत्याशित । यह दुखद समाचार सुनने वाली हूँ । फिर ऍम सो रही हो रही है तो फिर इतना निराश नहीं की क्या बात है मैं एक सांसद के फिर मैं पाँच छे भाई के मुख परछाई तटस्थ था और ज्यादा हो गई । टी कोनसी को हाथ लेकर मैं उस पार कर ही रंग बिरंगे फूलों को निहारती रही । ऍम मैंने गंभीरता, उदासी और आप चार एकता का फोर ऍम । जब शेखर भाई हमारे साथ दिल्ली रहते थे, तब हम दोनों के बीच एक मान समझौता हुआ था । मुझे इसकी यहाँ करेंगे । दोनों ने एक साथ उदास ना होने का फैसला किया था । ये एक अट्ठाईस उदास होते तो मैं एकदम खुशनुमा में हमारे करता हूँ । यदि मैं होता तो शेखर भाई के विहार में खुलासा था । इस तरह आशारानी, राजमा सुख दुख के बीच संतुलन हो जाता हूँ और जिंदगी आंख मिचौली कि खेल बन जाती हूँ । मैं ग्लास भरकर पूरा हूँ । लेकर भाई, ये क्या मोहर्रमी शकल बना रखी है तो भाई शेखर खाई नहीं जैसे कुछ सुना ही नहीं । वो ठीक उसी को बोलते बोलते रहे हो नहीं खाते हुए घर पे तो सब ठीक है ना? अल्का कैसे हैं? पांच दिन पहले सब ठीक थे ऍम शेखर भाई ने अपनी दोनों टांगे तिपाई पर सिर्फ पीछे कुर्सी पर टिका करेंगे तो अधिक मंडी आंखों से सामने लगे घने वृक्षों की फुनगियों को देखती रहेगी । क्या बात है? शेखर भाई एक में क्या हो गया है? मैं खुल नहीं लगा था । अंकल आंटी अच्छे हैं । अभी तक आप की बहने की आदत नहीं गई । शेखर भाई हम कह रहे हैं खेती की आप सुना रहे हैं कल्याण की शेखर भाई कुछ नहीं बोलेंगे । उन्होंने आंखों को खोला और मेरी ओर ता का मुझे लगा सृष्टी में चल रहा है ऍम हूँ शेखर भाई ये क्या मॉर्डन, अमूर्त काला जैसी शक्ल बना रखी है । आप इतने दिनों बाद मिले हैं फिर बिना कोई बातचीत, न कुछ हंसी दिल्लगी ना भावी जी के दर्शन ही कराए हैं । अभी तक उनके ना होने पर अगर आप इतनी परेशान हैं तो मैं नहीं जहाँ पर लाता हूँ । शेखर भाई जैसे घटा उन्होंने काम अपने को खींच लिया भी रहा अकडकर बच्चे रुकने का संकेत करते हुए पुलिस रहनी थी क्यों बेकार में उसे डिस्टर्ब करने से क्या फायदा? क्या भाभी रात भर अखंडपाठ करती रही हैं क्या? जो इतना दिन चढाने परसो रही नहीं तो क्या वहाँ भी वो सिटी देर तक सोती रहती है? नहीं राजकीय बातें उसी कल ठीक से नहीं नहीं ऍम कल की रात के सीमन होती जितनी प्राणी ठीक से नहीं हो पाएगी । मैंने साहस जुटाकर पूछे । आपकी होते भावी क्यों नहीं हो पाई? उसकी तबीयत ठीक नहीं है । क्या हो, क्या शुरू हो गई हैं? पूछ कर में मुस्कुराती शेखर भाई प्रस्तर मूर्ति जैसी शांत तो मेरा अनुमान से ही हैं नहीं । फिर उसी माइग्रेन की शिकायत नहीं । लॉटरी सिर्फ एक पर शुरू हुआ तो तीन चार दिन के लिए अनीता को चौपट कर देता है । रहस्य का उद्घाटन हो चुका था तो शेखर खाई की उदासी का कारण बाहर ही की बीमारी है । मैंने सहज होते हुए कहा शेखर भाई, जिंदगी में ये सब चलता ही रहता है । फिर इसमें इतना उदास होने की क्या बात है? शेखर भाई कुछ नहीं एक तक स्कूलों की तैयारी को देखते थे । कुछ देर तक हम दोनों चुपचाप बैठे रहे । बच्चों का शोर पड गया । हवा की खून की देखी होगी । चाइना पी के पीछे पूरा सूरज पकडा गया था । जहाँ हो गई थी फांसी चीज दिखाई दे देगी चमकीली रोशनी झील के ऊपर छा गई है । चटकीली रुपए लिए हो मुझे वहाँ भी को देखने के उताबले हो रही भाजपा दरवाजे की होती था । मैं उत्सुकतापूर्वक उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब वोट कर बाहर नहीं हमें उन्हें थी कुछ तो वो झेल समता बना हल्का करेंगे । मैं वहाँ भी को देखने की उत्कंठा को दबा पाने में असमर्थ समय सोच कर रहा हूँ देने का शेखर भाई मैं अंदर जाकर भावी को देखा हूँ । नहीं रहा इस ट्रक होने पर वो घट जाती हैं । मैं खुद उखड गया । मैं शेखर भाई का इशारा समझ गया । शायद वो चाहते थे कि मैं उस समय चलना चाहिए । ठीक है मैं ऍम मैं उठ खडा हुआ और स्वर में तल्खी भरकर पूरा अच्छा शेखर भाई चलता हूँ । इतनी जल्दी जाम का फिर कब आएगा? जवाब लोगों को सूट करे तो राज का खाना हम लोगों के साथ भाषा में उस समय तक भावी जान चाहेंगे । कसमसाती से क्रांति छा गई थी शेखर भाई की वहाँ पर कुछ नहीं सिर्फ खडे होंगे । शायद मुझे कि तक छुडाने की औपचारिकता निभानी । मैं चल पडा, मेरे पीछे पीछे शेखर खाएंगे । पानी पलट कर देखा तो भीषण रूप से क्या हुआ? शिखर कुछ खास नहीं । फिर भी आप तो पूरी तरह से लंगडाकर चल रही है । ऍम क्या सच कुछ मैं कोई निर्णय नहीं करना चाहिए क्योंकि से बाहर आकर धनवान पगडंडी पर आ गया । शेखर भाई मुझे क्या तक छोड कर वापस चले गए? मैं पहलवान वाली पट्टी पर से संस्था सजा रहा था । मेरा मन शेखर भाई के पास था, ये आनी चाहिए । ऍम था कैसा? हम सोचा अंतर आया है । शेखर भाई की जिंदगी में इतना ऍम न रुकने के लिए कहा । ना खाने पीने का आग्रह होटल में ठहरा हूँ तो उनकी बल्ला से हाँ पीसी नहीं मिली थी कि सब क्या है? शेखर था है कि जिंदगी की वजह से है इसका कहाँ गई? क्या उनके और खाते के बीच की कि खान खडी हो गई । एक और आश्चर्य की बात हक्कानी शेखर भाई के पास मेरी भाई की कोई सूचना क्यों नहीं दी थी? क्या पापानि अवश्यंभावी से समझौता कर लिया? क्या उन्होंने फैसला कर लिया है? गया तो जाने दो । मेरा मांॅग ज्यादा चिंतित हूं । मैं अपनी मनोदशा की तुलना शेखर भाई की स्थिति से काॅफी शेखर घाई का असंगत बेहवास नहीं, नहीं कुछ भी नहीं समझता है । सिर्फ नीचे और नीचे उतरता चल रहा था मुझे नीचे झील के पास पहुंच करें । बात का ऐसा किसी घर आई हूँ कहीं वो केवल संतुलित में हमारा ही तो नहीं एजेंसी से इंसान बडा होता है वो गंभीर होता चला जाता है इसका बचपना छिछला पर और निरर्थक हास परिहास का स्थान कभी तली नहीं लगती है कहीं में गंभीरता को उधर हसी तो नहीं समझता था हो सकता है शेखर भाई किशन संयंत्र हमार को मेरी मनोदशा नी से ही रूपी देखिये आंखों पर काला चश्मा लगा तो चटकीली धूप की मेल पड जाती है ।

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आँख मिचौनी writer: रमेश गुप्त Voiceover Artist : Rashmi Sharma Author : Vishwa Books
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