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भाग आॅन पिताजी शादी लडकी के माँ बाप के दौलत पर नहीं की जाती है । चंचल पूरा बोल भी नहीं आ सका की उसके पिता जगह बोल उठे तो बकवास मत क्या करूँ मुझे तुम्हारी अकल की जरूरत नहीं है । पिताजी मैं नहीं चाहता की आपकी बातों में हस्तशिल्प करोड लेकिन शादी की समस्या मेरे व्यक्तिगत में संबंध रखती है । अतः अपने जीवन साथी के चुनाव के लिए मुझे भी कुछ सोचने के लिए मजबूर होना पडता है हूँ सोचने चले हो लगता है आजकल चिंतक हो गए हो पिता जी आप जिस दौलत की लालच में अपने जाल बिछा रहे हैं तो वही दौलत मेरे मौत का एक दिन कारण बनेगी । शादी के दिन मेरा चेहरा शहरा में छुपा नहीं रहेगा बल्कि कफन में लगा रहेगा । याद रख लीजिएगा । अगर मेरी शादी सेट जयचंद की बेटी रूपा से हुई तो मैं जिंदगी भर इस घर के टेलीस् पर पानी रखूंगा तो बोल कर रहे हो । बेटा झक्की भलाई दौलत करती है । हर इंसान दौलत के चक्कर में एडी चौडी की कमाई करता है इसलिए ना की दौलत की मर्यादा है बल्कि इसलिए क्योंकि इस की शान है । अरे एक डॉलर तो हर आदमी के इर्द गिर्द पडी रहती है मनुष्य चाहे तो उसे एकत्र कर सकता है । इसके लिए सिर्फ आपकी की आवश्यकता है । सी चंद को कभी किसी चीज की है अच्छा मकान, अच्छी आमदनी । ये सब तो भाग्य से मिलते हैं । रूपा उनकी इकलौती बेटी है । आज का लडकी के रूपरंग पर थोडे बडे वाले रखते होंगे । ऊपर वाले तो पैसे के बल पर वर वाले के मुंह से भाव तक भी निकलने नहीं देते हैं । उस दिन जयचंद आपने मुझसे बीस हजार रुपये देने की बात कर रहे थे, पर मैंने कुछ नहीं कहा । पिता जी मैं पूछता हूँ फिर आप इतना रेट दौलत के लिए क्यों लगा रहे हैं? अगर आप बहुत चाहते हैं तो गलत का सपना देखना भूल जाएंगे । जिंदगी गुजारने के लिए आपके पास काफी दौलत है । अगर उसमें कमी महसूस हो तो मेहनत कीजिए । मेहनत संचाल तो मेहनत की बात कर रहे हो तो मैं शर्म आनी चाहिए । जिंदगी के बोझ को धोते धोते मेरे पास थक गए । आंखों की रोशनी समाप्त हो गई । सोचा अगर तुम्हारी शादी रूपा से हो जाए तो मुझे काफी रखा भाग लगेंगे । मजे से बुलाते के दिन कट जाएंगे । पिताजी अगर दौलत की चाह रखते हैं तो मेहनत कीजिए, मेहनत करने की शक्ति ना रह गई है तो दौलत की नकाब को उतारकर इत्मीनान से अपने घर के काम में लगे रहते हैं । इतना के हैं जान चल तेजी से अपना पाँच बैंक की ओर बढाने लगा । दस बज रहे थे । ऑफिस जाने का समय हो गया था । घर से निकलते ही उसका पिता उनके सामने शादी की समस्या को रख दिया है । बीकॉम करने के बाद चंचल को पंजाब नेशनल बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद में नियुक्ति हो गई थी । वो इतना अच्छा था जब कभी घर में रहता उसके पिता उसके सामने शादी की समस्या रख देते हैं । सेट जयचंद्र की दौलत की वह भूरी भूरी प्रशंसा करते अपने पिता की बातों से अच्छी नहीं लगती । उसे मेहनत पर विश्वास था । मेहनत की कमाई से उपलब्ध धन से मैं संतुष्ट था । बॅायकॅाट के लिए किसी के आगे अपना सिर झुकाना नहीं चाहता था । रूपा उसके खयाल में एक अच्छी लडकी नहीं थी । देखने में भी वह साधारण लडकी की तरह थी, पर धन के लालच में उसके लिए अनेक दीवाने चक्कर लगाए करते थे । लगती है । चंचल के निगाहों से वैधु थी, फिर भी वह उसके पिता के मन में समाई हुई थी । धनेश्वर बाबू कल आप उपस्तिथ नहीं थे । चंचल ने धनेश्वर से पूछा छुट्टी ली थी । छोटा सा उत्तर धनेश्वर देकर चुप रह गए । बैंक का काम समाप्त होने के बाद मैं दोनों एक सडक होकर घर वापस जा रहे थे । बातचीत के सिलसिले में चंचल उनकी अनुपस्थिति का कारण पूछ बैठा । धनेश्वर का मन उदास था । नीलों की मृत्यु से वह काफी चिंतित है । उनकी अनुपस्थिति का कारण उनकी बेटी की मौत थी । आप उदास दिखाई पड रहे हैं । चंचल ने उनकी उदासी का कारण जानना चाहा । अरे क्या बताओं संचार बाबू परिस्थिति ने मेरी कमर तोड दी है । हर मां बाप अपनी संतान को खुश देखना चाहते हैं, पर समय का चक्र रिश्ता है । चलता है की संतान को खुशी की छाया भी नहीं मिल पाती । जब से नील ओए संसार को छोड कर चली गई, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता । इतना कहते हैं धनेश्वर का स्वर भर रहा गया तो उनकी आंखों में आंसू छलक आए । चंचल उनकी व्यवस्था को समझे बिना नहीं रह सका । मैं कहते गए इन मेरी प्यारी बेटी थी । उस की शादी के लिए मैंने अनिल मुसीबतों को कर लेना है । अरे अपमान का घूंट दिया दर दर की ठोकरे खाई पर जो भारतीय में लिखा रहता है, वही होता आया है । और नहीं होता हूँ । उसके सुख मैं भविष्य के लिए कई घर ढूंढ रहे तो वह नहीं वर्ड अंडा तो घर नहीं । अंत में मेरे पास रामलाल बाबू के दरवाजे पर्यटक गए । बेटी के भविष्य के लिए उनके पास हाथ पैर से रहे । उनका सापुतारा सुनील मिल गया । नीलों की शादी हो गई, लेकिन उसके बर्बादी के दिन भी आते गए । उसे घर वालों से काफी प्यार मिला हो, पर आपने वर्ष तिरस्कार मिला । वह अपने पति के नफरत भरी बातों में घूमती रही । उसकी आत्मा बिहार के लिए तडपती रही । अंत में मेरी मछली जैसी बेटी प्यारभरे झल से निकल कर इस सूखे धरती पर जी भी इतना रह सके । आपने अभागी बात के नाम अपना आखिरी पत्र छोडे संसार से चल पाते हैं । उनकी बात सुनकर चंचल की आंखों में भी आंसू छलक आए । मालूम पडता था कि धनेश्वर बाबू का एक अंग समाप्त नहीं हुआ हूँ, बल्कि उसी का हो गया हूँ, जब मुझे उसकी बातें पूरी होती नहीं । घर की दूरी भी कम होती गई । बीती बातों पर अफसोस करने से कोई लाभ नहीं । धनेश्वर बाबू बिचारी को अगर यही दीदी जाना था तो हम रोगियों से कैसे सकते थे? धार सैनिक भाव में अपना मत प्रकट करते हुए चंचल बोला आप की भावना का मैं कदर करता हूँ । चंचल बाबू लेकिन क्या करूँ? एक तो उसके कारण कम है । दूसरी ओर पीलू की चिंता संभाल हुई है । सी लो हाँ, तीनों मेरी बेटी है । मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास कर वे घर पर सिलाई का काम करती है । वो आर्थिक स्थिति नाजुक होने के कारण उसे कॉलेज में दाखिल नहीं करा सका । सयानी हो गई है, लेकिन वह जैसा भागी पाप उसके लिए अभी तक वरना ठूंसकर धनेश्वर ने कहा, शाम हो चली थी । सुबह अस्ताचल कि वोट में छिप रहा था । दोनों समांतर पर्थ पर बातचीत करते चल रहे थे । तीनों का नाम सुनते चंचल के मन में झटका लगा । उसके मन में हलचल पैदा हो गयी । उसे पीलू की देखने की इच्छा हुई । मन चाहा कि धनेश्वर के साथ ही चलते हैं लेकिन मेरा हाथ में जाना उचित ना समझा । हेलो की सुंदरता के बारे में वो अपनी बहन कंचन से बहुत को जान गया था । बिलो कंचन की सहेली थी । मजबूरी की दी । बाहर ने एक दूसरे को आगे चलकर अलग कर दिया था । कंचन प्रथम वर्ष की छात्रा थी । अब उन दोनों का महिला अपने स्कूल जीवन की अपेक्षा पांच कम हो गया था । यहाँ भी पीलू कंचन के घर जाया करती थी । फिर भी चंचल उसे एक बार भी नहीं देख सकता था । वो हमेशा कॉलेज के छात्रावास में ही रहता था । छुट्टी मिलने पर भी घर में एक दो दिन था कि ठहरता था । जब घर आया करता था दो कंचन अपनी सहेली की स्थिति स्वभाव अधिक रनों से उसे अवगत करती रहती नहीं । लेकिन उस समय उसकी बातों में वह विशेष अभिरुचि नहीं लेता था । शादी के बारे में उसके पिता कई दिनों से जिक्र कर रहे हैं । अपने पिता से रूपा और उसके पिता जयचंद्र की प्रशंसा साॅस या कुछ कहे घर से सीधा बैंक चला जाता था । वो शादी के लिए सबसे बडा श्रेय लडकी को देता था । जैसे कि वोट में की गई शादी पर उसे विश्वास नहीं था । वहाँ पर उसके पिता शादी की ओर में पैसे प्राप्त करने के लिए अपनी जिद पर अडे थे । धनेश्वर बाबू अच्छा तो मैं चला है । दूसरे दिन फिर मुलाकात होगी । सडक के दायीं ओर की गाली को देख चंचल बोला धनेश्वर के बढते पास रुक गए हैं । कुछ कहना चाह रहे थे कि चंचल उस गली की ओर तेजी से अपने कदम बढाने लगा निरुत्तर वैच चुप चाप उस गली को देखने लगा, जिस गली से होकर चंचल जा रहा है । कुछ छठी तक वह खामोश रहेगी । फिर अपने घर की ओर पास बढाने नहीं । पीरों का नाम सुनकर चंचल का दिल बुरी तरह उसकी खोज करना चाह रहा था । उसके मन में तूफान समझ आ गया था । दिल कह रहा था, चले जाओ धनेश्वर बाद उनके घर चंचन पीलू जरूर मिल जाएगी । पर पिता की बात याद कर उसका दिल था कोटा क्या मेरे पिता अपील को बहू के रूप में स्वीकार करेंगे? क्या उनके मन में सेट जयचंद्र के बीस हजार रुपये पानी की एक शाम मिट सकेगी? नहीं है, ऐसा कभी नहीं कर सकते । उन्हें पैसे चाहिए । बहुत एक फायदा है, जिसके अंदर पैसे का कहाँ जाना? छुपा हुआ ऍम इनके लिए सेट जयचंद्र की लडकी रोपा नाम और काम से रूपा है और मेरी रूपा से शादी कदापि नहीं कर सकता । करीबी की छाया में पाला हूँ और गैर रूपा अमेरिकी पलना में बहुत अंतर है । मुझे और उसमें कहीं अमेरिकी छाया मेरे घर के दीवार के पीछे ना पड जाए । सारी आकांक्षा मेरी दर्पण के तहत टूट जाएगी । बीकाजी अपनी हैसियत भूलकर रुपये के लिए जाल फैलाकर मुझे फंसाने की कोशिश कर रहे हैं । पुलिस नहीं करना चाहिए । दिनेश्वर बाबू को मैं अच्छी तरह जानता हूँ । बहुत भले आदमी शायद टिलू भी बहुत भोली भाली होगी । करें । गैर रुपया की अपेक्षा मेरे जीवन में हमेशा सहयोग दे सकती हूँ । जब दुल्हन बनकर मेरे घर आएगी तो उसके लिए नौकरानी भी साइड की तरह मौजूद होनी चाहिए । फिर क्या बर्बादी का खेल तुरंत शुरू हो जाएगा । रुपया मनुष्य को अंधा बना देता है । उसी के कारण तो पिता जी के मन में हमेशा रुपए ही समय हुई होती है । लेकिन शादी तो मेरी सुरक्षा से ही हो सकती है । अगर मैं नाजी नहीं होंगा तो शादी कदापि नहीं हो सकती है । अरे, मेरे पिता जी को पीलू के बारे में थानेश्वर बाबू से बातचीत करने के लिए कहूंगा । अगर उन्होंने इंकार कर दिया तो मैं भी उनकी बात नहीं मानूंगा । महेश शादी होगी तो पहले से ही होगी । तीनों के बारे में मैं कंचन से पूरी जानकारी प्राप्त कर लूंगा । सेंशुअल के मन में विभिन्न तरह की भावना है । रास्ते में उत्पन्न होने लगी । नहीं । इसी उधेडबुन में घर पहुंचा
Sound Engineer
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