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सातवाँ भाग सेक्स इसका गाजर बीस दिसंबर सुबह का सूरज अपनी मंजिल की और बढ रहा था । उसकी कितने पर्दे चीरती हुई छोटू के चेहरे पर पड रही थी प्राथमिक काल की बेला अपूर्वा लावण्या को बिखेरे दुनिया के कोने कोने में प्रस्थान कर रही थी । चिडियों की चहचहाहट भी सुबह होने का आगाज कर रही थी । छोटू बिस्तर पर पडा पडा । कल शाम को पर इसी हुई बातों के बारे में सोच रहा था । छोटू पलंग से उठा और सामने के पर्दे खोल दिए । उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी कि जैसे अब से सब कुछ सही होने वाला है । बातों में बैठे बैठे फिर से कहीं किसी की यादों में खो गया था । यही वो जगह है जहां खुले विचार आते हैं क्योंकि उस समय आदमी भी खुला रहता है । वहाँ कोई दूसरा ऑप्शन भी नहीं रहता । वहाँ से बाहर जा भी नहीं सकते और वहाँ कोई आप ही नहीं सकता । इसलिए तो उसका नाम संडास रखा है । सुख शांति का वास । उसे कहा संडास खेल बहुत देर हो गई । छोटू अभी तक बाथरूम से बाहर नहीं निकला । दादी का सबर टूट गया । नींद लग गई क्या दादी की नीचे से आवाज आई नहीं, दादी बस दो मिनट छोटू दस मिनट में तैयार हो गया । एकदम जेंटलमैन बनकर नीचे आया और जूते पहनने लगा । भैया को बैठा देख संस्कृति चाय बनाने चली गयी । दादा अखबार पढ रहे थे । उनका ध्यान चोट ऊपर नहीं गया । बस इतना पूछा कहीं जा रहे हो गया आज थोडा कम है । रोहित के साथ जा रहा हूँ । अच्छा चलो दादा ने अपनी जेब से कुछ पैसे निकले । लौटरी से मैं घर का राशन भी आना जी । छोटू ने पैसे लिए और घर के बाहर चला गया । मैं सामने से ही आ रहा था । जल्दी जल हम लेट हो रहे हैं । मैंने बाइक होगी कहाँ जा रहे हो तुम दादी की आवाज आई, मुझे जाना ही आकर बताऊंगा । मैंने बाइक तेजी से आगे बढा ली । कहाँ गए भैया? संस्कृति चाहे लेकर आई वो तो चला गया रोहित के साथ हिन् दादी बोली आपने बताया नहीं आज मुझे गोल्ड मेडल मिलना है । उसने कहा बताती मगर सुनता । तबला जल्दी जाने की पडी थी । दादी अपने काम में लग गई । संस्कृति ने चाहे वही रखी और छत पर कपडे सुखाने चली गई । आज कुछ खास बात है गया । छोटू ने पूछा क्यों आज तेरे बाप ने तुझे बाइक दे दी इसलिए पूछा नहीं आज ये तो मम्मी की कृपा है । पापा तो बुआ को लेने गए हैं । उनके शहर मैं मुस्कराया । कुछ देर बाद हम दोनों एक बडी से ऑडिटोरियम में पहुंचे । वहाँ लोगों की बडी सी भीड किसी का इंतजार कर रही थी । कुछ मिनट गुजारे, स्टेज की लाइट जल उठी । ऑडिटोरियम में जोरों से हूटिंग होने लगी । कोई सीटी बजा रहा था तो कोई तालियाँ । छोटू ने नजरिये घुमाई तो देखा एक सूट बूट पहने आदमी उसी भीड से निकलकर सामने आया और भीड को संबोधित करने लगा । अब आपके सामने आ रहे हैं मोटिवेशनल स्पीकर ऍर मिस्टर जीत सक्सेना । जोरों से अनाउंसमेंट हुई ये सुनने के लिए तो मुझे यहाँ लाया है छोटे ने टोन कैसी भाव बकवास क्यों ऍम चीजें बोलते हैं तेरे हिसाब से लोगों को क्या इंस्पायर करता है जो दिल से निकले अंदर से निकले । दिल से निकली बातें ही लोगों को इंस्पायर करती है और वह तभी निकलेगी जब उस चीज का अनुभव होगा । मैंने उसे घूरकर देखा । ये हुई ना ज्ञानियों वाली बात हमें सक्सेसफुल बनना है । हमें सक्सेसफुल बनना है । हमें सक्सेसफुल बनना है, हमें सक्सेसफुल बनना है । स्टेट से ये बातें बार बार दोहराई जा रही थी । सबसे इसका गाजर दिखा दिखा के इन लोगों ने आम जनता को घाटा बना दिया है । तुम क्या मानते हो सकते इसको? रोहित ने पूछ लिया । दो लाना बकवास बैठे बैठे चालीस मिनट दूसरे थे । रोहित का मोबाइल बज उठा । वहाँ रक्षा बोलो आपके साथ छोटू भैया है क्या? हाँ संस्कृति को बात करनी है । उनसे एक मिनट रुको । मैंने छोटों को मोबाइल दिया । हाँ या मैंने आपसे कहा था ना आपको मेरे साथ कॉलेज चलना है । मुझे गोल्ड मेडल मिलना है, लेकिन बिना बताए चले गए संस्कृति ने डांट लगाई और क्षेत्र मैं तो भूल ही गया । अब तो याद आ गया ना । वहाँ तो कॉलेज पहुंच में आता हूँ । छोटू ने मोबाइल रोहित को वापस दे दिया । अरे सुनो भैया संस्कृति कुछ बोलने वाली थी मगर कॉल डिस्कनेक्ट हो गया । सुना पार्टी चलेगा मेरे साथ । छोटू बोला कहा कहीं भी तो बस बता चलेगा या नहीं देख पैसे लगाकर यहाँ आए हैं । पैसे वसूल हो जाने थे । फिर चलते हैं तो यहाँ पैसे वसूल कर मैं चला । छोटू भीड को चीरते हुए ऑडिटोरियम से बाहर निकला । बस स्टॉप पर बस का इंतजार करते करते बहुत देर हो गई । तभी सामने से एक बाइक आकर रुकी । चल बैठ ये मैं था छोटू मुस्कराया । आॅडी पहले इतना फुटेज के उठा रहा था तो कहते है अर्जेंट और इंपॉर्टेंट चीजों में से अर्जेंट चुनना चाहिए । मैं फुसफुसाया मतलब में अर्जेंट हुआ साटी । हम दोनों हंस पडे । उस दिन में उसे नहीं बता पाया था कि जब मेरे साथ बिना सोचे बिना समझे कहीं भी साथ चल सकता है तो मैं उसके लिए इतना भी नहीं कर सकता हूँ । उस दिन जब हम लोग पहुंचे तो पूरा कार्यक्रम खत्म होने की कगार पर था । हम दोनों पीछे ही कुर्सियों पर बैठ गई । अब अंतिम अध्यक्षीय भाषण के लिए आदरणीय शिक्षा मंत्री जी से निवेदन करता हूँ कि वह आई और हमें मार्गदर्शित करें । सभा के एंटनी घोषणा की सम्मानीय मंच और प्यारी बच्चों समय बहुत हो चुका है । मैं ज्यादा नहीं बोल होगा । पहले तो उन बच्चों को बधाई जी ने आज गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ । आप लोग हमारे देश का भविष्य है । आप हमारे देश की आन बान और शान है । अगर आप पढेंगे तभी तो देश बढेगा । छोटों को नींद आने लगी । दो मिनट कहकर दो घंटे लेंगे । वहीं घिसापिटा भाषण मैंने उनका साथ दिया । मैं थोडे से समय में छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूँ कि जो वास्तविकता पर आधारित है । एक बार में ट्रेन में सफर कर रहा था । एक सज्जन व्यक्ति सूट बूट पहनकर बैठे थे । एक बच्चा चाहे लेकर आया और इत्तेफाक से उन भाई साहब से टकरा गया । चाय से उन सज्जन के कपडे खराब हो गए । वो भाई साहब आप बबूला होते और फिर उस बच्चे को जोर से लात मार दी । सारी सभा टकटकी लगाकर शिक्षा मंत्री महोदय को देख रहे थे तो मैं पता है कितना कीमती सूट है वो चिल्लाएगा उस बच्चे के वो उसे खून आ गया । मेरे पास में बैठ एक सज्जन व्यक्ति सब देख रहे थे । उनके साथ उनका बच्चा भी था । करीब बारह साल का । उन्होंने इस बच्चे को उठाया । कुछ पैसे दिए और जाने के लिए कहा । उस समय सज्जन व्यक्ति ने एक बात कही थी, वो मैं आपको बताना चाहता हूँ । उन्होंने कहा था कि अगर शिक्षित लोग ऐसे होते हैं तो इससे भले हम अनपढ ही सही सोचा था अपने बेटे को पढाऊंगा । मगर अब तो उसका अनपढ होना ही अच्छा लग रहा है । इसके बाद वो अगले स्टेशन पर उतर गए ही दोस्तों के साथ ही हूँ । उस दिन मेरे मन में ये विचार आया था कि हम कितने शिक्षित है । अगर हमारी शिक्षा उन सूट बूट पहने सर्जन की तरह है तो ये शिक्षा किस काम की? आप अपनी जिंदगी के इस मुकाम पर है जहां आप ही निर्णय करेंगे कि आपको क्या करना है । आप भविष्य हो देश का । सभा ने तालियों से उनका स्वागत किया । सभा समाप्त हुई । दो मिनिट लिए थे । सभा के अध्यक्ष ने सबको घर जाने की जल्दी पड रही थी । छोटू ने देखा सामने से संस्कृति आ रही थी । उसकी आंखों में गुस्सा था । मगर छोटों की नजर मगर छोटों की नजर उसके साथ आ रही आयरा पर थी । मुझे कोई आश्चर्य नहीं था भैया आप लेट हो गए थे । संस्कृति ने गुस्सा निकाला, कोई मजबूरी होगी । फायदा बोली वहाँ नहीं नहीं छोटों के बचने के प्रयास व्यर्थ थे क्योंकि अब संस्कृति का साथ देने के लिए उसकी होने वाली भावी जो साथ थी ।