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तो भाषा धनेश्वर का मन पूरी तरह घबरा रहा था । अपने दिल पर काबू नहीं पा रहे थे । अपनी बेटी की चिंता उनके मन में समाई हुई थी । पीलू उम्र की सोलवा मंजिल में प्रवेश कर चुके थे । आर्थिक स्थिति कमजोर रहने के कारण मैट्रिक पास करके वे कॉलेज में प्रवेश नहीं कर सकती थी । घर पर सिलाई का काम करने लगी । दो सप्ताह से नीलू का एक भी पत्र धनेश्वर को नहीं मिला था । जब की हर सकता हूँ, कम से कम दो पत्र उन्हें मिल जाते हैं । पिछले पत्र में भी अपने माँ पिताजी से अपने नए घर की प्रशंसा कर दी । अपने बूढे से फिलहाल श्यामला और भोली ननद लीला के चरित्र का तो उस चैनल लाख करती । घर वालों का आदर उसके लिए सराहनीय । लेकिन कभी भी उस ने अपने पत्र में अपने वर्ग का जिक्र नहीं किया था । कई बाहर धनेश्वर सुनील के बारे में पत्राचार भी किए । लेकिन उन्होंने अपने पात्र में सुनील के नाम की चर्चा भी नहीं है । आवाज सुनकर धनेश्वर चौपडे सामने खडे डाकिया को देख फोन समय उन्होंने सोच लिया कि पत्र नीलू का है । डाकिया पत्र देकर चला गया । धनेश्वर उसे एकता देखते रहेगा हूँ । उसके कर्तव्यकी जाल अपने मन में बोलते रहेंगे । जब डाकिया उनकी निगाह से होटल हो गया तब उन की दृष्टि अपने हाथ में रखें । लिफाफे पर पडी ऐसा ॅ उन का वजन कम पानी लगा उनकी वो उसे ठीक निकली है । बेटी लिफाफे पर प्रेषक के स्थान पर लिखा था नीलों का कडी पत्ता उसे पढते ही धनेश्वर का दिल का बडा होता है । सिरवे चक्कर आने लगा । लिफाफा हाथ से छूटकर वर्ष पर गिर पडा पडा कठिन रक्षक ही भर्ती धनेश्वर फर्श पर गिरकर आधे हो गए । उन का सिर फट गया । खून बहने लगा । फर्श पर चलने लगा । देख कर आने लगे । किसी के गिरने की आहट सुनकर पीलो का दिल धडाक उठा ऍम कहानी क्या आवाज सुनकर सिलाई बंद कर बरामदे की ओर दौर पडी है । अपनी बहन को दौडते देख ली वो भी उसके पीछे दौड पडी ऍम चीजें कपडे काट रही थी । पिता जी अपने पिताजी को फर्ज पर गिरे देख बिल्लू से ऐसा चीज होती है । झट से अपना हाथ उस स्थान पर रख दी जहाँ से खून बह रहा था तो फॅमिली हाथ में पत्र हैं । पत्र को हाथ में लेती हुई लीलू तुम जाओ फॅमिली कर रहा हूँ । पिता की हालत पर रोती हुई पुकारी माँ माँ अपनी बेटी की दर्द भरी पुकार सुनकर धर्मा किचन से दौडती हुई बरामदे में दाखिल हुए । अपने पति की स्थिति को देख रोहित बिना वह रहना सके । किस्मत का घडा फूट जाने पर आंसू की बूंदें हमेशा का पकती रहती हैं । अपने पिता की मरहमपट्टी कर ली । लू ने चैन की सांस ली । उसकी आंखों में आंसू आ रहे थे । कुछ बूंदें टपक कर लिफाफे पर भी चटक गए । ले लूँ । दसवीं कक्षा में पढती थी । पढने में उसके तीव्र अभिरुचि को देखकर धनेश्वर ने उसकी पढाई को बंद करना उचित नहीं समझा हो । उसे अपनी पढाई में पीलो से भी कुछ मदद मिल जानी । धनेश्वर खटिया भर बेहोश पडे थे । धर्म से रहने में बैठे उनके सिर दबा रही थी । तीनों पंखा झेल रही थी । जब उसकी नजर चकमक के जगह रख रंजीत पट्टी पर जाती है तो उसकी आठ मासी हर जाते हैं । क्या पत्र मानव के दिल को तोड सकता है? क्या मानव इतना कमजोर होता है कि वह पत्र की बात को ही नहीं सकता? पीलू अपने मन से ये सवाल पूछती उसका दिल बडा होता है । पिता की गंभीर स्थिति को देख आंखों में आंसू छलक चाहते हैं । दी थी । लिफाफे के ऊपर लिखे शब्द नीलों का आखिरी पत्र को बढकर लीलो चीज होती है । वो तेलू पत्र पढकर सुनाओ तीनों विक्रता भरे स्वर में बोले लीलू लिफाफे फाडकर पत्र निकालती हैं अपने दिल पर काबू पार्टी हुई पत्र पडने लगी तो मुझे वहाँ पे था जी सागर पढा हूँ । पिछले सप्ताह मैंने आपको एक भी पत्र नहीं लिखा । कारण मैं कुछ उलझन में फंस गई थी । ये मेरा आपके नाम, आखिरी पत्र हैं । इसमें मेरे जीवन के अंतिम शब्द है पत्र के सेवा आपकी अभागिन बेटी से क्या सेवा हो सकती है? आकाम से कम तो दिल को जरूर संतोष मिल जाएगा । क्या मेरी बेटी है संसार में नहीं है । मुझे संतोष है कि आपने अपना कर्तव्य निभा दिया । आपने मेरे भविष्य के लिए सुनहरा घर की तलाश की पर मुझे जैसी अब आगे इनको अच्छा वरना मिला जिसके कारण मुझे तरह तरह की मुसीबतों का सामना करना पडा । मैंने अपने वर्ग के अंतिम निर्णय का आदर किया । मैंने मृत्यु से समझौता कर लिया । काश मुझे कुछ और सहन करने की शक्ति होती है । पिताजी अपमान की खून पीकर जीने की उपेक्षा मर जाना अच्छा लेकिन मैं आपके सिद्धांत का हमेशा पालन करते रहेंगे । एक दिन जब मेरे स्वामी जी ने मुझको जीने की उपेक्षा मर जाने का आदेश दे दिया तो मुझे बेहद खुशी हुई । उतनी ही जितनी आपको मेरे भविष्य के लिए घर और वार मिल जाने पर हुई थी । पिता जी मैं तो जहाँ नहीं हूँ जिंदगी से ऊब कर नहीं बल्कि खुशी खुशी एक बात कह दिए जाती हूँ । पीलू और लीलू के लिए घर और वर्ग दोनों की तलाश सोच समझकर कीजिएगा ताकि उन बेचारी को मुसीबतों से गला लगाना ना पडे । मांझी को प्रणाम पी लूँ और लेलो बहन को मेरी उम्र लग जाए आपकी आवाज ही नहीं बी जो पत्र पढते हुए हैं लियो पडी हूँ हूँ चली गई मेरी नीलो देती हम छोड कहाँ चली गई किसी अब गेहूँ की उनके सस्त्र चले चाहते कि वहाँ एक बार भी उनका अच्छे रहेगा । ठीक सकी इतना कहते पीलू तिलक पिलाकर होने लगी । आशु पढाती नहीं है । फॅमिली तो अभी खुशी की दहलीज में पापा भी रखा था । किस्सा आपने तो मैं टेस्ट लिया तो पत्र में वायदा करती रहीं । मैं तुम्हारा इंतजार करती रही लेकिन तुम एक बार भी नहीं आई । इसमें तुम्हारा दोष नहीं है । बेटी दोष तो हम दोनों का है । जितना मैं जीवन दिया, तोहरा पालन पोषण किया तुम्हारे सुख मैं जीवन के लिए किस वर्ग के घर की दरवाजे न खटखटाएं, इसके लिए पास में छाले पड गए । पर हमें क्या पता था पहाड को देंगे तो छुआ ही मिलेगा । धर्म आठ आठ आठ सौ पार्टी रहे अगली की तरह फर्ज पर अपना सिर पटकती रही । अपनी किस्मत को कोस टी । आई । भगवान को उगलना देती रही हैं । बोलती रही क्या हुआ? आज ही मुझे यकीन हुआ तो उसके लिए जो रात दिन पाप करता है, अपने पाप पर पश्चताप नहीं करता हूँ तो मुझे देखते हूँ । जिसके दिल में छलकपट है तो उसका रोना सुनते हो जो तुम्हारा नाम भी नहीं लेता । झोपडी में दिन गुजारने वालों को महीनों का राजा कैसे मिल सकता है तो उसके लिए खिलौना बन जाती है । खेलो ना जब जो चाहे उसकी जिंदगी से खेल सकता है । अब भगवान या अन्याय बर्दाश्त नहीं हो सकता । धर्मा रोती रोती फर्श पर गिर पडीं । आंसुओं से उसका मच्छर भी किया, लेकिन उसकी याचिका से भगवान का दिल नहीं सका । ऊपर वाले बाहरी होते हैं । उसे किसी के ठीक नहीं होने से क्या मतलब । भला कोई किसी का सुनता है । उसकी आत्मा चीखकर कह रही हूँ । कर्मा तो होने से कोई फायदा नहीं है । हर आने वाले जाने के लिए ही उत्सुक होते हैं । बला तुम्हारे धोनी से वह लौटकर चली आएगी । माँ धर्मा को फर्श पर लगती देख ली । लूची पडे उसके हाथ से पत्र छूटकर फर्श पर गिर पडा । उसने झट से अपनी माँ की वह को थान लिया । अब तीन और हो रही थी । कोई किसी को सांत्वना देने वाला नहीं था । विधा था । उनकी कमजोरी और मूलकथा भर मुस्कुरा रहे थे । योजना मनुष्य की सबसे बडी कमजोरी है । पर मनुष्य रोककर अपने आंतरिक प्रिया को धो लेना चाहता है । धनेश्वर होश में आ गए थे । रोने की आवाज सुनकर रह चौंक उठे लेकिन उन्हें अपने आंखों के सामने अंधकार मालूम पडा । वाह वाह बैठे हैं । सहसा अपीलों की नजर अपने पिताजी पर पडी पिता जी पिता जी इतना है अगर धनेश्वर के पांच पर गिरकर होने लगी । धनेश्वर को स्थिति समझते देर नाला की तीनों का रोना यह सिद्ध कर रहा था कि कोई अशोक घटना घटी है । ये कभी पत्र से उन्हें आभास हो गया था कि नीलू अमित संसार में नहीं रही । फिर भी उन्होंने रोने का कारण पूछ लेना उचित समझा । तीनों को रोता देख उनकी आंखों में भी आंसू छा लगाए थे । अपने दिल पर काबू रखते हुए भराया, आवाज में बोले ऍम छोड कर चली गई । इतना ऍम होने लगे । नाॅट चली गई । अगर जाना ही था तो मेरा दोष प्रदायक घर क्यों नहीं गए? बेटी मुझे क्या पता था महलों में शैतान का वास होता है फॅार अपने सिर पर हाथ रखकर सुबह सुबह कर होने लगे । ऐसा उनकी दृष्टि फर्श पर गिरी धर्मा की ओर पडे धर्मा आठ आठ आठ सुबह आ रही थी । लीलो अपनी माँ की स्थिति को संभालने की कोशिश कर रही थी । नानी की अपेक्षा पुरुष किसी नाजुक स्थिति का मुकाबला करने में समर्थ समझा जाता है । धोती के पल्लू से आंसू पोछते हुए धनेश्वर ने भराई आवाज में कहा नेहरू कीमां होने से आपके मैं दूर होते हैं । दिल के नहीं गम की दवा पीने से दिल के मैल दूर हो सकते हैं । गर्मा तो मैं इस समय धैर्य से काम लेना है । समझ में नहीं आता क्या करूँ जाने वाला को कोई नहीं रोक सकता । मैं तो इस संसार में चली गई है लेकिन हमें कुछ कहके गए । हम उसके माँ बाप है जो अपने संतान के भविष्य के लिए दर दर की ठोकरे खाते हैं । अच्छे घर और अच्छे वर की तलाश में दरवाजे खटखटाते कृषा मदद करते हैं । इस फ्लैट में वाले मजबूरी का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करते हैं । हम उन अभागे माँ बाप में से हैं, जो अपनी पीटी के भविष्य के लिए अच्छे घर की तलाश किए, लेकिन उसके लिए योग्य वरना ढोल सके । उसकी मौत का कारण उसका ही पर हैं । विधाता ने मेरे साथ मजाक किया । मेलू के साथ गौर अन्याय किया । धर्मा जिस तरह है, परिवार रूपी गाडी को निरंतर गति से चलने के लिए पति और पत्नी रूपी दो पहियों की आवश्यकता होती है, उसी तरह किसी लडकी के जीवन को सुखमय बनाने के लिए घर और बाहर थोडी की आवश्यकता होती है । ऍम किसी एक पक्ष के कमजोर होने से उसका जीवन शुक्र में कदापि नहीं ऍम । कितना क्या कर धनेश्वर वोट गए । आंसू भरी आंखों में धर्मा का धुंधला रूप अब उन्हें दिखाई देने लगा । पीलू और ले लू माँ के आसपास सिसकियां भर रही थीं । आंखों से आंसू बह जाने से धर्मा का चेहरा उदास दिखाई पडने लगा खत्म बेटी की आज मैं तो सुबह नहीं आई, विधाता को कोसती रहीं हैं ।
Sound Engineer
Writer