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Part 6 in Hindi

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316 Listens
AuthorAditya Bajpai
इस उपन्यास में जिस कालखंड की चर्चा है, वह आजादी के पहले का है। उस समय देश के क्षितिज पर आजादी के बदल छाए हुए थे, देश भर में जुलूस और सभाओं का माहौल था writer: मनु शर्मा Voiceover Artist : Mohil Author : Manu Sharma
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भाजपा तेरह अगस्त उन्नीस सौ की रह संध्या अब भी मेरे मन में तहर जाती है । जब इन्कलाब भी जो लूज दशाश्वमेधघाट से निकला था ॅ उसी के पुल तक आते आते गोरी बटन पहुंच गयी थी जो खाती हूँ ट्विटर ट्विटर हो जाऊँ, अंग्रेज अफसर चलाया पर कोई भी नहीं आता था यदि आगे बढे तो गोली मार दी जाएगी । उसकी अंतिम चेतावनी थी पर इन आजादी के दीवानों कर क्या परवाह जो जो उसको बढना ही था वो मैं आगे बढा और गोली चल गई है बता चार व्यक्ति वही देर हो गए मुझे ठीक याद हैं उनमें एक मल्लाह हम जो मेरे पैर के पास ही गिरा था यहाँ तक नहीं नहीं छाती से खून का फव्वारा छूट पडा था पर हाथ है तिरंगा नहीं छोटा हो बल्कि मैं उसी के रखते फिलहाल हो गया था । ऍम में इस देश का झंडा लाल ही होगा । मेरे पीछे से आवाज आई अवश्य ही वो व्यक्ति रूस की क्रांति से प्रभावित रहा होगा क्योंकि इस इन कला भी बाढ में एक लहर समाजवादी विचार वालों की भी भी उनके गिरते ही भगदड मच । कहीं मैं उस लाश की बगल से आगे बढने वाला ही था । किसी ने मेरा हाथ जोरों से की इच्छा और मुझे लेकर काली जी के मंदिर की ओर जाने वाली गली में भागा कुछ नेपाल में मुझे आवाज हो गया हूँ कि हाथ पकडकर खींचने वाला और कोई नहीं हम भी है किंतु मैं उससे स्वयं को छोडा नहीं पाया बल्कि भागता ही चला गया क्योंकि मैं एक भगदड में था । भर्ती हुई भीड का एक अंग हूँ ही नहीं का इस और पत्ते भी भागते जा रहे थे वो अजीब भागम भाग आदमी और पशु दोनों साथ साथ वो कुछ दूर और निकल जाने के बाद हम लोग एक शिव मंदिर में पहुंचे । दब मैं प्राकृतिक होते ही हमीद पर झुंझलाया तो मुझे क्यों नहीं आए हूँ वो तो क्या तो मैं मरने के लिए छोड देता हूँ । हमी बोला जानते हो ॅ देखो और गोली मार दो । सरकार ने आंदोलन को कुचल देने का दृढ निश्चय कर लिया है और होगा भी ऐसा ही । शासन की पाशविकता अपनी चरम पर आ गयी थी । कहीं कहीं दस पंद्रह दिनों तक भारतीयों का ही शासन रहा हूँ की तो शीघ्र ही आंदोलन घायल सर्दी की तरह कुचल दिया गया । हाथ में आई आजादी उंगलियों के बीच बालों की तरह झड गई एक एक सौ राजी बीन बीनकर जेल में ठोस दिया गया । कुछ भूमिगत हो गए । उन्हीं में से एक दाने भी था कहाँ गया, किसके घर है कहीं कुछ पता नहीं पी आ रही तो मेरे यहाँ नहीं । उसने रानी बहुत है कि संपर्क किया पर उन्होंने भी असमर्थता दिखाई । ले देकर अनाथालय ही एक ऐसी जगह है जहाँ मैं तो मैं रख सकती हूँ पर वह सार्वजनिक स्थल है । हर कोई आ जा सकता है । फिर भी सबसे बडी बात ये है कि लाला का बगीचा सामने पडता है । कोई भी बात छिपी नहीं रह सकती । अब मेरे यहाँ रहने के सेवा उसके पास कोई चारा नहीं था । किंतु एकदम गोपनीय किसी को कानोकान खबर नहीं । यहाँ तक कि सुमेर चाचा भी इस तथ्य से अनजान माँ जब भी बाहर निकलती तो बाहरी ताला लटकाकर कौन जानता था कि उस साल के भीतर कोई कैब है । ऍम खाने में सरकारी कैदखाने से ज्यादा न तो सा होली थी और ना जगह थी । फिर भी बिहारी को वहाँ कोटरी अपनी लगती थी । आपने बकाई है, सुख भी मैं और मेरी मारो पी दो बिंदुओं का स्पर्श करता हुआ महज एक रिकॉर्ड बनाता था । इसी रिकॉर्ड में बिहारी का संसार सिमट कर बहुत छोटा हो गया था । एक दिन पता नहीं किस मूड में प्यारी ने माँ से कहा ऍम में एक विपत्ति है क्यो क्योंकि यदि में मर्द होती तो छिपने की ऐसी समस्या मेरे सामने नाती गंभीर हो गई । हाँ, अभी आॅर्ट के लिए खुद कुछ पाने से कहीं ज्यादा खुद को बचाने की समस्या रहती है । सोचती हूँ की अभी भगवान ने हमें औरत बनाया तो गाडी मुझे क्यों नहीं पियारी बोली और वहाँ जोर से हंस पडीं । कुछ सोच कर रहे बडी देर तक हस्ती रही । इसमें खर्च होने वाली क्या बात है? यदि हमें गाडी मुझे होती तो हम छब्बीस जाती और बच जाती । मैं ही रही । पीआईडी बोल दी गईं । यदि कोई आदमी इतने दिनों तक एकांतवास करता तो दाढी मोर्चों का ऐसा जंगल उसके चेहरे पर रुक जाता जो उसे खुद छिपा देता । पर मैं जो की तो हूँ हाँ, इस बार और जोर से हंसी धीरे धीरे समय सरकता गया । परीक्षा बीत गई तो हार भी दम तोड रहा था । ऍम की रामलीला शुरू हो गई थी । एक विचित्र घटना ने पियारी को कोठारी से निकालकर लोगों की आंखों के सामने खडा कर दिया । अपनी चरम सीमा पर जाकर सरकारी सतर्कता भी कुछ ढीली पड गई थी । सुराजी लोग भी लोगे चीज पे इधर उधर दिखाई पड जाते थे । रात बिरात घूंघट निकालकर बिहारी गली में निकलने लगी थी । कभी सुमेर चाचा के यहाँ जाती और कभी गंगा राम क्या जी आनुमान हो जाता हूँ । शाम एक अच्छी पाठ हूँ । एक अपरिचित और अपने पता नहीं कैसे बिहारी को देख लिया भी उससे लिपट कर रोने लगी । बहुत दिनों के फॅमिली आॅउट गए । तीन देखे बॅाल मुझे लेकर बात क्या होती जा रही थी । पी आ रही उससे अपने को छोटा भी नहीं सकीं और कुछ बोलना पाई हूँ । मोहल्ले के कुछ लोग इकट्ठा होगा । बिहारी ने बडी होशियारी की की उस भारत को लेकर घर में चली आई । फिर भी देखने वालों ने देख लिया चार चाहे वो भागने लगी हूँ । जिस औरत को लेकर प्यारी आई थी उसके संबंध में उस समय तो कुछ विशेष समझ नहीं पाया । पर आज उसकी हारे बात स्पष्ट होती जा रही थी । अब मैं समझता हूँ कि प्यारी के साथ उस समय उसका इतिहास ही लिपट कर मेरे घर में आया था और अब तो एक मात्र उसका प्रतीक थी । उस औरत का नाम आज तक मुझे नहीं मालूम । इतना समझ पाया था कि वह दालमंडी की एक वैश्या थी । आवश्यक ही संपन्न रही होगी । बचपन बिहार के किसी गांव में बीता था । माता पिता चंद्रगहण नहाने बनारस गए थे । लाला के लोगों को सुन्दर देखी । मैंने कहा पर चढ गई और मध्यरात्रि में ही भीड से उठा ली गयी । फिर शायद इलाहाबाद के मीरगंज की कोठी वालियों को सौंप दी गई । यही वह पेशे में उतनी रात को ग्राहक की और दिन में अपने मालकिन की गुलामी करती रही । पेशाब तो जिंदगी से चिपक गया था जबकि मालकिन की गुलामी वक्त आने पर वो ही गए । रजाई की तरह उतारकर की जा सकती थी संयोग कुछ ऐसा हुआ कि चंद्र उन्हीं दिनों लाला के काम है । इलाहाबाद आया था । अपनी प्रकृति के अनुसार वीरगंज के संगम में गोता लगाने पहुंच गया उस औरत से वहीं उसके मुलाकात हुई । नदी नाव संयोग हुआ और नाम बहती हुई बनारस चली आई । मैं कुछ दिनों चंद्र के साथ ही रहीं । यहीं उसका बिहारी से भी परिचय हुआ पर एक म्यान में दो तलवार कैसे रह सकती थी? पियारी की जवानी के तीखे देवर ने उसे फिर घर के कोठे पर भेज दिया । समय और परिस्थितियों की ते पर तह जमती चली गई और स्मृतियां धुंधली होती चली गई । किंतु इस समय उसे देखते ही प्यारी के मस्तिष्क में पारत दर परत खुलने लगी थी और वह अपने अतीत से ही डरती दिखाई दी । ऍसे जल्दी से जल्दी मुक्त होना चाहती थीं । पर्व है उसे छोडना नहीं चाहती थी, होती जा रही थी अब क्या होगा? मैं तो लूट गई । तब आशा ये है की पी आ रही उससे यह भी नहीं पूछ पा रही थी क्या लुट गई, क्यों लुट गई? कहाँ टूट गई मैं महज धीरज पांच रही थी और कह रही थी तो धीरज रखो अपने काम देखो । भगवान सब की करते का ऍम भगवान बनकर तो आया था । मैं कुछ तेज बोली पीटीआर्इ ने उसे चुप रहने का संकेत क्या? और जो जब उसे दालान में बैठी चौकी की ओर ले गईं । मुझे भी यह कहकर हटाया की तुम यहाँ खडे क्या कर रहे हो तो मैं पढना लिखना नहीं है हूँ । जिज्ञासा और सर पद को जितना काटी है बहुत नहीं तेजी से बढते हैं । मैं यहाँ से कटने के बाद दरवाजे के पीछे से सुनने लगा था । बिहारी ने कहा कि है भले लोगों का घर है, यही तुम जोर से बोलोगे तो मेरे ऊपर भी आप हटा जाएगी । निश्चित था कि प्यार ये नहीं चाहती थी कि इस संदर्भ मम्मा कुछ भी जाने ॅ और उसका गंदा दी थी और दूसरी और धुल धुल कर कुछ फल होता उसका वर्तमान कहाँ से? उस उज्ज्वलता में एक जिन्होंने डब्बे की तरह ये और अ चली आई । पी । आई की मानसिकता सच मुझे एक अप्रत्याशित उलझन का सामना कर रहे नहीं । दोनों के फुसफुसाहट से चलके शब्द मेरे कानों में पढते रहे, पर वह समझ के बाहर थे । हाथ सोचता हूँ तो बात हर बार साफ हो रही थी । कह रही थी मेरे कोठे पर एक ग्राहक आया, खूब खाया, खर्चा नहीं । उसने मुझे हार भी पहनाया रहे घिरेगा था कह रहा था अब तो लगता है वह कांच का ही रह गया होगा । इतना फॅसने लगी । फिर क्या हुआ? तैयारी बोल पडी क्योंकि वो जल्दी से जल्दी के साथ खत्म करना चाहती थी तो क्या तो छूट गई तो उसने औरत की सबसे बडी कमजोरी को पकडा और ऐसा नाटक फैलाया की मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकता । मैं उसकी ज्यादा वो मेरा कृष्ण है । कहने लगा हमारे ब्रांड तुम्हारी मुट्ठी में है । फिर क्या हुआ? बीआर इन दिनों से बुनो हारों का क्योंकि उसे लगा जैसे बात बढने लगी है लेकिन उसने खुद का आया तो आधे बहनों पे शाम मनमोहन ठुमरी शैली में उसने बडी अदा सिखाया था । गला तो उसका अच्छा थाई सौरभ ने फिर विस्तार लेना आरंभ किया और फिर बिहारी ने तो काम वो बोली उस ऍम राधा बना । मैंने उसके कपडे पहने और उसने मेरे मेरे सारे गहने भी उसने धारण कर लिए और एक एक सेट नहीं दो दो तीन तीन सेट क्या कहूँ बहन मैं अपने वर्ष में नहीं था । उसने ऐसा जादू मारा कि मैंने अपने सारे के सारे जेवर उतार कर देती है । मैंने देखा बिहारी बडी जी की आशा से उसे सुन रही थी । शायद मैं शीघ्र अतिशीघ्र इस रहस्यमई कहानी का अंतिम की ओर पकडना चाह रही थी और कह रही थी उस रात हम दोनों साथ साथ सोए थे । सब कुछ बडा अजीब सा लग रहा था राज्य में उसने मुझे अपने हाथ से पांच चलाया हूँ । बस इसके बाद ही मैं सो गई । फिर क्या हुआ मुझे नहीं मालूम । सुबह आठ बजे मेरी ने आकर दरवाजा खटखटाया तब कहीं जाकर आंखें खोलीं । देखा तो वह नदारद था । उसकी रोहतक का पता नहीं । तब से मैं पागल हो कर उसे खोज नहीं हूँ । उसने अपना कुछ अता पता बताया था या ये बताया था कि मध्यमेश्वर के डिप्टी साहब का रिश्तेदार हूँ । मेरे घर के लोग वहीं कह रहे तो उनके यहाँ पता लगाया था हाँ, उन्हीं की आवाज तो आ रही हूँ मैं बोली हूँ । उन्होंने कहा कि ऐसा कोई व्यक्ति मेरा रिश्तेदार नहीं है । इधर महीनों से कोई मेरे यहाँ मैं मान भी नहीं आया । ॅ की हाँ पुलिस का भी दरवाजा खटखटाया पर जो भी सुनता है वही मजाक उडाता है । दरोगाजी कहने लगे जब तुम्हारी राधा ही थी तो जो लेकर इसको ले गए उसका दिल तो तुम्हारी मुट्ठी में है । कभी न कभी देखा बचाकर फिर तुम्हारे यहाँ आ जाएगा । तब मुझे खबर करना उसे गिरफ्तार किया जाएगा । ऐसे बिना आता पता कि कहाँ पर हमारा जाए जो सरसरी तौर पर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर लीजिए । फिर मैं अपने किए पर पछताने नहीं । डर भागी है कि तब तक मान नीचे आ गई हूँ । फॅसा रही हो आप लोग का तो कोई काम नहीं है क्या माँ का तेवर और झनझन आती आवाज है । दोनों सहम गईं । बिहारी घडी हो गई और उसे लेकर बाहर आई । विदा कर दरवाजा बंद कर लिया । गीजर से निकल कर कमल फिर कभी की छह से होने लगा था । माँ का गुस्सा अप्रत्यक्ष रूप से बिहारी पर उतरा । पीआरआई चुकी रह गई तो मैं ये नहीं पाई की झडी अधिक खुद कमाल की ओर जाए तो कमल क्या करेगा? तैयारी का ऑफर लगा कि अपने को बदलकर उसने क्या किया पर वह अपने इतिहास को बदलना सके । पियारी के ऊपर आते ही माने कहा देखो प्यारी रैंडी पर तोरिया घर में आए । ये मुझे बिलकुल पसंद नहीं है । माँ बोल रही थीं । अब तुम्हारी उपस् थिति की चारों ओर चर्चा करेगी और फिर पुलिस का छापा पडेगा । मैं खुद ही आनी होंगी । भरी भरी आवाज में प्यारी बोली मैं रहने लायक नहीं हूँ और फिर रखने लगी उसकी हर सिटकनी मानो कह रही हो की कमल को दो मूर्ति पर चढने का हक है पर चढ से मूर्ति आप पवित्र करने का किसी को आग नहीं । रामलीला देखने जाते समय चंपुओं में नहीं अपनी माँ के साथ जा रही थी । उसके साथ मोहल्ले के दो तीन और देवी थी । मुझे देखते ही चंपुओं की गति मंदिर पडी वो पीछे रह गई । सुना है तुम्हारे यहाँ बिहारी चाहती थी । जानते हुए भी उसने पूछा हूँ हाँ थी तो तब तुम ने मुझे बताया नहीं माने मना किया था । जैसे लगता है की तो माँ की हर बात मानती हूँ जम्प नाराजगी दिखाई जब तो मुझे इतना नहीं पाते हो तब मैं भी तो उसे कुछ नहीं बताउंगी हूँ । है हमको नहीं उसकी आत्मीयता का अधिकार बोल रहा था जिसके समक्ष में लगभग निरुत्तर था मैंने बात दूसरी ओर मोडी लेकिन मैं चली गई हूँ । कब गए अभी अभी अभी कुछ देर पहले ही तो मोहल्ले वालों को सूचना मिली और अभी चली गई । सूचना मिलने के कारण तो उसे जाना पडा अन्यथा पुलिसा चाहती वर्ग गए कहा होगी ये तो मुझे नहीं मालूम हूँ । हमारे यहाँ तो प्यारी मजे में थी । हमको सोचने लगी आखिर क्या बात हो गई कि उसे जाना पडा उस है उसकी एक पुरानी दोस्ती में लाये तो इससे क्या हुआ? ऍम थी हूँ तुम कैसी बातें करते हो? जानते हो रंडी किसी कहते हैं नहीं, कुछ तो जानता था । मैंने नकारात्मक उत्तर दिया और उसे से पूछा अच्छा तुम ही बताओ रंडी किसे कहते हैं मैं नहीं जानती है । झटके से बोली सरकार की खूब जानती है । खेल तो बताना नहीं चाहती हूँ । अच्छा जी तो मुझे छुपा रही हूँ और कहती हूँ कि तुम से कुछ नहीं पाती तो उन्हें भी तो मुझे प्यारी चाची की खबर छिपाई तो तुम मुझे उसका बदला निकाल रही हो । यही समझ लो, मैं मुस्कराई और एक लाती हुई औरतों के झंडे में चली गई । तारा नगर से मैदागिन जाते समय डांगी तरफ की पटरी पर करते बैठी थी और बाकी और मारते तथा बीज खुली । धरती पर रामलीला होती थी । पानी और टैक्सियां और बसें खडी होती थी । एक तरह से मैं उन दिनों का बजट था । कुछ रामलीला दर्शक उन बसों की छत पर भी सुविधा अनुसार बैठ जाते थे । हम तो सामने जमीन पर बैठी हूँ और तो कि अगली पंक्ति में थी और मैं एक बस की छत पर रह रहे कर मुझे देख लेती थी और मेरी भी नहीं कहा उस पर पड जाती थी । यह स्वभाविक था सहजता पर इससे मेरे ही आगे बैठे कुछ मनचले छोकरों को गलत फैमी हुई हूँ और मैं ऐसे एक ने अपने साथ में से कहा जहाँ तो तजबीज हो आओ चालू जरूर माल भी और राम है । दूसरा बोला गया यार वो बडी करारी ऍम, करारा माल, हाथ से चाइना देर चाहिए । उन सभी की बातें चल रही थी पर मुझे बडी घबराहट हो रही थी तो मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था । एक हमला चाहे एक दो अकेला फिर उन गुंडों के मुंह कौन लगेगा? सुनता रहा, सुनता रहा और जब सहन के बाहर हो गया तब धीरे से वहाँ से उतर आया ॅ मैंने रामलीला के भेज से निकल कर देखा है । तीन अब भी चलता हो रहे थे । मुझे लगा जैसे कोई चीज उनकी आंखों से छूटकर चल तो का स्पर्श करती हुई मुझे भेजती चली जा रही थीं । मैं बिजली था उठा मैंने सोचा हूँ मैं भीड में उस और घुस हूँ जिधर करते हैं और राम लीला के कार्यकर्ताओं से चल तो को दिखाकर कहूँ कि उस लडकी और उसकी माँ को बाहर भेजते । उनके घर से बुलावा आया है । मैं आगे बढा भी किसी बीच लक्ष्मण की शक्ति लग गई । राम खिलाफ करने लगे । बेड ही हलचल थम गईं । तब तक शक्ति नहीं छोटी कोई भी और मजबूत नहीं सकती हूँ । किसी भी कार्यकर्ता से कुछ कहना व्यर्थ था । मैं ऐसे स्थान पर चुपचाप खडा हो गया जहां से चंपत दिखाई पड रही थी । पर मैं मुझे नहीं दिख रही थी । उसकी दृष्टि अभी सामने बस की छत पर भटक रही थी । अवश्य ही वैध खोज रही थी कि मैं कहाँ चला गया । निराश होकर चंपुओं की आंखें अब रामविलास आपकी ओर लगी थी । सामने उनके संघर्ष शून्य लक्ष्मण का शरीर पडा था । ध्यान के इलाके साथ साथ अधिकांश और दो के नेत्र नाम हो गए थे । शक्ति छोटे ही फिर में हाल चाल हो ही बहुत से लोग उठ खडे हुए हैं । मैं एक झटके में चैंपियन के पास पहुंच गया । चलो अब काफी देर हो चुकी है । मैंने कहा और मेरे कहते ही चाची और पडीं । उनके साथ मोहल्ले की और औरते भी नहीं तो मैं को लेकर थोडा आगे हो गया । मुझे डर था कि कहीं पे लफंगे मेरा पीछा ना कर रहे हूँ । मैंने कई बार पीछे मोडकर देखा नहीं था । हम अपनी बदमाशी से बाज नहीं आते हैं । ऍम पर चढकर क्यों बैठ गए थे । मैंने उसका कोई उत्तर नहीं दिया । वाराणसी सीधे आरोप लगाया दुम्बी शराब से बाज नहीं आती । आखिर मैंने क्या किया? ॅ और क्यों ताक रहे थी? मैंने पूछा कि लखनऊ की ओर उसकी खानी मैं चला गया था । तब मैंने रफ्तार से उन के बारे में बताया । धुएंॅ चुप रह गईं । उसका संकोच ऍम स्वीकार कर पाया कि मैं तो मैं देख रही थी । उन सब को गलत फहमी थी । मैंने कुछ शब्दों और संकेतों का सहारा लेते हुए बताया कि मुझे बहुत बुरा लग रहा है उन का बोली बोलना । इसलिए मैं अगर उधर आया हूँ और मैं सोचा कि तुम कहाँ चले गए । हम तो बोली मैं बोला तो मैं छोड कर कैसे जाता? इतना कहते ही मैंने हाथ में चिकोडी गाडी निश्चित ही उसके चेहरे पर ललाई गोबर आई होगी लेकिन अंधेरे में मैं देख नहीं पाया मैंने पीछे का जहाँ जी अपनी सहेलियों से बात करने में मगर नहीं हूँ । बृहस्पति भगवान को भी नहीं छोडती कैसे बिलख बिलख कर राम जी रो रहे थे तो मेरा ख्याल है कि अब तो मैं घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए । मैंने गंभीर होते हुए कहा क्यों क्योंकि अब तुम बडी हो गए हो तुम भी तो बडे हो गए तो लडका जितना बडा होता है उसे उतना ही घर से बाहर रहना चाहिए और लडकी जितनी बडी होती है उतनी ही घर के भीतर मेरी आवाज मुस्कुरा रही थी । चलो चलो अब तुम बडे बकवादी हो गए ऍम भी क्या सकती हूँ । उसके बाद हम गली में बडे और एक आवाज बडी बेरहमी से हमें डाॅट मालिक इतने भाग में ई माल बताओ हम अब आग्रह गए एक अप्रत्याशित भरेंगे हमारी गति बंद कर दी और जांच जी की और दोनों का समूह जब तक नहीं आ गया हम निश्चित नहीं हुए । ऐसा लगा कि कुछ समय के लिए राष्ट्रीय आंदोलन खोटी बार टांग दिया गया है । अब शाम को जब गंगा राम अखबार लाता तो उसके पडने में कोई मजा नहीं रहता हूँ क्योंकि खबरों पर सेंसर था । सरकार जो जाती थी वही झट्टा था । वो लडाई के समाचारों में भी हर जगह मित्र राष्ट्रों की जीत ही दिखाई देती थी और कहीं कहीं बडी बहादुरी से उनकी सेनाएं पीछे हट गई । मालूम पडती थी किंतु राष्ट्रीय आंदोलन तो वन दिनों अखबारों में दफना दिया गया था । सभी नेता जेल में थे । कौन कहाँ है इसका भी पता नहीं था । ऊं हाँ मुझ पर अब काफी नियंत्रन रखती हूँ क्योंकि मैं अखबारों की सुर्खियों में आ चुका था । अब किसी की नजर में था । एक दिन वचित्र घटना घट गई । मैं हो जा रहा था आज कार्यालय के कुछ पहले लोहटिया चौराहे पर पुलिस की एक लॉरी खडी थी । बता नहीं क्यों? मेरे मन में आया कि मैं वंदे मातरम लाकर देखो की क्या होता है । वो वंदे मातरम, वंदे मातरम मैं दो बार जोर से चलाया हूँ । इस चिल्लाहट के मूल में जगह भी राष्ट्रीयता का ब्रेक नहीं था और न जाना । मेरे मन में देशभक्ति जात पडी थी । ये महज मेरे बाल सभास् का चाट बल्ले था । सिपाहियों में से कुछ ने मुझे पहचान लिया कि कचहरी पर झंडा फहराने वाला यही था और पकडकर लॉटरी में बैठा लिया गया । किसी ने मुझे कुछ पूछा नहीं और न किसी प्रकार का मुझे कष्ट दिया गया । पर उन्होंने समझ लिया था कि मैं व्यक्तिगत सत्याग्रह कर रहा था । मैंने भी मान लिया क्या मैं जेल में डाल दिया जाऊंगा तो मेरी माँ का क्या होगा? वो एक दम अकेली हो जाएगी । उनकी बस्ती आंखों वाला चेहरा मेरे सामने आया और मत से कहने लगा मैंने मना किया था ना तो मैं झंझट में मत पडना फिर तुम नहीं है क्या किया हूँ । मन की गति बडी चंचल होती है । ऐसे अवसरों पर हर कोने खतरे में झांकने लगता है । मुझे लगा मेरे पिता की लाश पडी है । माँ का हाथ मारकर हो रही हैं जहां गाली दादी उन्हें समझा रही हैं । कुछ भरोसा रखो बहू जग्गू की और देखो ऍम किसी देखेंगे । मैं तो खेल जा रहा हूँ । शायद वो दहाड मारकर वैसे ही लोग पडेंगे । लॉटरी चली जा रही थी मेरे सामने मेरी माँ की जीत भी मासूमा करती थी तो मैंने बहुत कोशिश की उनसे मुक्त होने की । पर वह बने मुद्राओं में बार बार आती नहीं । आप स्वयं को संभाल पाना मेरे लिए असंभव हो गया था । मैं बिजली का उठा इस से तो अच्छा कि मैं माफी मांग कर मुक्त हो जाऊँ । मैं अपनी माँ को दुख नहीं दे सकता हूँ । मौका मिलते ही माफी मांगूंगा और दौड कर उनकी छाती से लग जाऊंगा । लगभग इस लडता की ओर बढता मेरा निश्चय उस समय धराशाई हो गया जब मेरी लॉटरी कचेहरी के परिसर में प्रवेश हुई हूँ । सामने दीवानी कचहरी थीं तो वहीं विशाल इमारत है । इस बार मैंने तिरंगा लगाया था । कितनी बहादुरी और कितने उत्साह से ऊपर चढा था । अब तो वहाँ फिर यूनियन जैक लहरा दिया गया । उस समय नीचे खडी भी मेरे अभिवादन मैं चला रही थीं । मेरे चित्र अखबारों में छपे थे । मेरा अहम ही मुझे दुत्कार नहीं । लगा ही नहीं तो मैं माफी नहीं मांगूंगा । फिर मेरी माँ का क्या होगा? भारत माँ की वंदना करने वाले लोग अपनी माँ की चिंता नहीं करते हैं । यहाँ आज कहीं से नहीं आई थी । मेरे ही भीतर उठी थी और भीतर ही घूमती रही । लॉरी से उधर कर मैं कलेक्टर साहब के सामने पेश किया गया हूँ । उसने घोलकर मेरी ओर देखा फिर उसे जैसे कुछ याद आया हूँ । हमने वनडे मातरम का नारा लगाया था । मैं मौनी रहा और स्वीकारात्मक ढंग से से लाया क्यों लगाया था ये मैं नहीं जानता हूँ । मैंने धीरे से कहा ॅ आया । मुझे लगा कि मुझे सत्य कह देना चाहिए । बात ये हुई कि पुलिस की लॉटरी देखकर मेरे मन में आया कि वंदे मातरम का नारा लगा हूँ । आखिर किसलिए? यही तो मैं नहीं जानता हूँ । हमने पुलिस का चिढाने के लिए नारा नहीं लगाया । नहीं ॅ राज्यों की तरह ब्रिटिश हुकूमत को ललकारने के लिए नारा नहीं लगाया तो नहीं हो तुम ने व्यक्तिगत सत्याग्रह नहीं किया । नहीं । डॉक्टर ने नारा क्यों लगाया? उसकी आवाज तेज थी । ठीक से बडी थी सहमत । अब यदि सत्य नहीं कहा जाएगा तो परिस्थिति विषम हो सकती है । तो मैं बोला केवल यह देखने के लिए मैंने वंदे मातरम कहा की देखिए क्या होता हूँ या तो तुम्हारी महज एक बचकानी हरकत है । उसने कागज पाॅवर उठकर भीतर चला गया । लंच का समय हो गया था । बाद में पता चला कि मुझे अदालत उठने तक की सजा हुई है । मुझे इसी अदालत में चुपचाप शाम तक खडे रहना है । और ये भी बताया गया की अभी फिर कभी ऐसी हरकत महीने की तो मुझे कडी सजा दी जाएगी । फिल्में मुझे जानता था यह भी वह वाला आदमी था वरना और कोई कलेक्टर होता तो मैं जरूर जेल भेज दिया जाता हूँ । मेरे पास केवल जलपान के लिए एक पैसा तो भूक लगी थी । कचहरी के बाहर पटरी पर एक खोंचेवाला प्याज की गरम गरम पकौडियां निकाल रहा था । मैंने अपने पैसे का सदुपयोग किया और पकौडियां खाकर भरपेट पानी दिया । जेब खाली हो गई । कचहरी से पैदल ही चल पडा वो दिन भर खडे रहने के बाद चलना भारी पड रहा था फिर भी लाचार था । धीरे धीरे संध्या से मर चुकी थी और घर आते आते अंधेरा हो चला था । यदि मेरी माँ को जगह दी इस विषय में स्थिति का आवाज होता तो मैं पूजा कर बैठी मिलती । फॅमिली कोठी से आई थी । उन्होंने मुझे देखते ही पूछा आज बडी देर हो गयी जब वो वो गोल के मास्टर साहब ने रोक लिया था । हाँ नहीं धीरे से का समय वक्त कैसा है फॅमिली का हो । जल्दी छुट्टी दे दिया करें । कुछ बोला नहीं क्योंकि चोट को विस्तार देना स्वयं को खतरे में डालना था । जो आप जी लगेगी चारपाई पर लेट गया । बहुत धक् किया था । मैंने कई बार खाने के लिए कहा फिर भी उठने की हिम्मत ना हुई । मुश्किल से आधा घंटा पीता था । अभी अंधेरा नहीं हुआ था । किसी ने दरवाजा खटखटाया हूँ वो जबकि सांकल बंद नहीं था । दूसरी गोठी में माँ कपडे बदल रही थी । मैं पढा था कोई बोला नहीं । आहट लगी की आगंतुक दरवाजा खोलकर चौक में आ गया । जब हुआ हूँ एक महीना और जानी पहचानी आवास मुझे छूती हुई निकल गई हूँ मैं था उधर से माँ भी आईं जाॅब एक महीना और जानी पहचानी सी आवाज मुझे छोटी हुई निकल गई मैं उठा उधर से माँ भी आई मैंने देखा नीचे जॉब में बोर खाओ रहे कोई खडी है माने मेरी और देखा वार बोली का क्या बात है उसने बुर्का हटाया ऍम अरे ये तो सही है अम्मी जानने जब तो भाई को बुलाया है और मैं बोली और अनासक्त भाव से मेरी ओर देखा हूँ । उसके बाद माँ ने अपनी जिज्ञासा शांत की और जान लिया कि है दान इसकी बहन है । मैंने कई बाहर मेरी और भी देखा मुझे पढ नहीं की कोशिश की मैं नहीं चाहती दीजिए मैदान इसके यहाँ हूँ किन्तु रात होते होते एक मासूम लडकी द्वारा बुलाया जाना किसी गंभीर समस्या का संदेह दे रहा था । असमंजस में उलझी उनकी मानसिकता बहुत देर तक मान रही । अंत में उन्हें कहना ही बडा अच्छा तुम चलो में जब दुख बेचती हूँ चली गयी । खाना खाकर मैं चलने को हुआ हूँ । इस बार उन्होंने मुझे कुछ विशेष सावधान नहीं किया । मैं स्वयं अनुभव कर रही थी की नियति की डोर मुझे अन चीन है और अनजाने नगर की ओर खींचती चली जा रहे हैं जिस पर उनका कोई वर्ष नहीं है । वो मात्र इतना बोली हूँ देखो बेटा जल्दी आ जाना डायलान के पुरानी तक पर बडी अपनी जेईसी में तार तार हुई दरी पर अम्मीजान पडी करा रही नहीं रहाने कि ओ डोरी पर जल रहा दिया रोशनी है कहीं अधिक धुआँ कर रहा था यार हमें जन का सर्दी आ रही थी ऍम यहाँ मैंने आश्चर्य से जिज्ञासा को धर दबाया तो मैंने उसे नमस्कार किया और उसने अपनी जान को छोडकर मुझे अपने साॅस ऍफ प्रकार की अनुभूति हुई हूँ ऍम कब से तो मैं याद कर रही थी सलमा बोली बर अम्मी जान अब भी करा हाथ ही नहीं । बाद में पता चला कि वह हफ्तों से बीमार हैं । बुखार छोडने का नाम ही नहीं लेता हूँ । आॅटो अम्मी जानने कराते हुए मुझे अपने पास बुलाया तथा मुझे और निकट खींचते हुए बोली बेटा ऍम कि ज्यादा दिन नहीं चलेगी । पता नहीं था इसका क्या हाल है । इतना कहते कहते उन्होंने गहरी सांस ली और कुछ दिनों के लिए चुप हो गई । फिर बोली सुना है मैं सारनाथ के आगे कादीपुर स्टेशन पडता है । वहीं किसी गांव में रमजान मियां यहाँ रहता है फिर चुप हो गईं । मानो मुझे पूछने का अवसर दे रही हूँ की आपको ये कैसे मालूम हूँ । एक दिन उसके आदमी से अपनी खैरियत उसने भेजी थी । बात इस बार भी एक टूटी हुई रह के साथ खत्म हो गयी । वो बोली तो कम ही पर जो कुछ मैंने समझा उसका अर्थ साफ था की घर की हर चीज चुप चुकी है । यहाँ तक की बकरी के लिए चारा भी नहीं है । लाये तो ऑनलाइन बिहारी बाहर निकाल नहीं सकती और पैसे भी कहाँ से आएगा । जब तक चांगर चलता रहा नसीर के कारखाने से मोजा चलने को लाती रहीं तो उन दिनों मुझे के पंजे पर एडी की सिलाई उसी का ताजा निकालकर हाथ से होती थी । अम्मी जानने बिहारी को भी सिखा दिया था तो बोलती नहीं हम दोनो उसी की बदौलत अपनी जिंदगी आपकी चल रहे थे । पर खुदा कोई बिना सुहाया । बितना कहने के बाद उन्होंने या लाख कहते हुए ऊपर खपरैल की ओर देखा और आंखे बंद कर नहीं जैसे अल्लाह से दुआ मांग रही हूँ । मैंने अनुभव किया कि उन्होंने कितनी व्यवस्था से सलमा को मेरे पास पहुँचा होगा, पर मैं क्या कर सकता हूँ । विषम परिस्थिति में सागर के किनारे मेरी ऐसा खडा उसकी उत्ताल तरंगे देखता रहूँ । अचानक मैंने कहा कहीं है तो कल मैदान इसका पता लगा हूँ क्या करोगे उसका पता लगाकर मुझे लगता था जो अम्मीजान अभी दान इसके लिए बॅाडी मैं क्या कह रही हैं? खुदा उसकी खैर करें । अम्मीजान की लडखडाती आवास भागे बढती गई । अगर सुनेगा तो घबरा उठेगा जरूर आएगा और मैं उस से खतरे में डालना नहीं चाहती हूँ क्योंकि हमारी जिंदगी से देश की आजादी कहीं ज्यादा जरूरी है । ऐसा है बोली मैं दम झनझना उठा मेरी रगों में यह है कोई चीज अचानक पिघल कर दौडने लगी । क्या कह रही है बूढी उनकी काफी और गंभीर आवास अब तक मेरे कानों में गूंज नहीं । आगे यही जज्बा तो डाल । इसको हिरासत में मिला था । बे हर मुसीबत झेल सकता था पर अन्याय और गुलामी नहीं कह सकता हूँ । थोडी देर बाद ऍम ने सलमा को बुलाया और संकेत से कहा कि अपनी दोनों बालियां उतारकर जगह को दे तो जैसे बातें पहले से ही निश्चित थी । उसे उतारते और देखते देर नाला की पीआरवी हथकढ ही देखती रह गई । बालियां मेरे हाथ में थीं तो सामने सलमा कम मासूम चेहरा था । उसकी बधाई आगे टपकने लगी थी मानव परिस्थितियों ने पत्थर ने छोडा हूँ, ले जाओ बेटा और माँ से कहना कहीं गिरवी रखकर या इसे बेचकर हमारा काम चला जाए । आगे अल्लाह मालिक हैं । अम्मी जान बोल नहीं अब मैं क्या करूँ? जी में आया की बालियों से लौटा दूं । सलमा के सोने सोने कान मुझे खोलने लगे थे । पियारी मेरी निस्सहाय से मुझे देख रही थी । इसी बीच बकडी भी नहीं आई । पारिजनों धीरे से जैसे उसने मम्मी आने की ताकत भी खोदी हो । जल्दी करो जागू नहीं तो रात अधिक हो जाएगी । कराहा में लिपटी हमें जानकी आवाज फिर मच्छर टकराई और ऐसा लगा जैसे कोई मुझे खेल रहा हूँ । विचल पडा सलमान द्वार तक मुझे पहुंचाने आई । मैं जो ही द्वार से निकला । सलमान ने मेरा हाथ दबाया । भैया इतना कहते है देखने लगी । मैं आज तक समझ नहीं पाया कि उसकी सिस्टम में दान इसके प्रति मोहम्मद जिज्ञासा थी या पराजित मन की हटाऊं अथवा मेरे प्रति कोई और भाग मैं गली में चला रहा था । सलमा किस किस क्या अब भी मेरा पीछा कर रही थीं । माने पहुंचते ही पूछा क्या बाद ही मैंने दोनों वालियों ने दिखाई और सारी स्थिति के उठाई । माँ आंध्र होती लगा । उन्हें अपने दिन याद आ गए जब उन्होंने अपनी बालियां बेचकर पिताजी की चिकित्सा की थी । मैं बहुत देर तक उन बालियों को देखती और कुछ भी नहीं । फिर उन्होंने मिनिस्टर से एक मोटे झोले में आता पडेगा । दूसरे कपडे में चावल की गठरी बांधी पर डाल की मंत्री तो खाली थी जब मेरे चाचा से कहते की माँ ने शेर वरदान और दो बोडिया जोशांदा का काढा मंगाई । उन्होंने कहा मैं चाचा के हाँ तो वो ही बात है इस समय तेरी माँ को दाल और जो शांति की क्या जरूरत आ पडी । अभी शाम को तो वैदर चाहिए गई थी तब तो उन्होंने कुछ नहीं कहा । जा अच्छा ने शंका व्यक्त की वो मुझे खोलना था । नहीं मैंने सब बता दिया मैं गंभीर हो गया । कुछ बोला नहीं वो कागज के होंगे में बिना ना पेजों के वैताल भरने लगा और अच्छी तरह भर कर दो जगह चार पहन के जो शान देंगे दे दी है । देखो ऍसे बुखार ना होता तो हमें बताना । चाचा की मुद्रा मुझे हर तरह की सहायता के लिए तक बढेगी और मैं कुछ कुछ उपयुक्त भी लगा हूँ । क्यों नहीं लगता कभी रहे दूसरों का घर फूंकने के लिए मिट्टी का तेल देने के लिए मजबूर किया गया था । आज दो से बेवस और मजबूर लोगों की पेट की ज्वाला बुझने का अवसर मिल रहा था । जांचे कुश्ती पियारी के संबंध में जन का अच्छा हुआ की आ रही वहीं है और उन लोगों के साथ रहकर खान पान करके उसका धर्म तो चला नहीं जाएगा है वही जहाँ जा कुछ बोला नहीं, उसको गंभीरता मानव कह रही थीं । अगली आजादी के बाद धर्म की ये चोंचले नहीं रहेंगे तब ना कोई हिंदू रहेगा । मैं मुसलमान आदमी मैच आदमी रहेगा हूँ । आते ही माने दाल और जो शांति के साथ आटे के झोले और चावल की पोटली कर रख कर एक बडी गठरी बांधी । मझोले काम पहले से ही बांध कर बैठी थी । फिर उसे उठाकार अंदाजा गठरी तो वह नहीं हो गई है, तुमसे चली जाएगी । मैंने उसे एक झटके से उठाकर सर पर रख लिया हो या ये क्या है इससे भी अधिक उठा सकता हूँ । फिर मान्य बालियां मुझे थमा दी । बोली इसे लौटा देना । अचानक बैठ की बालियां लौटा लेते हुए मैं बोली कह देना की बालियां माँ के पास है और उनकी भंगिमा बता रही थी की सुराजी लोग बडे स्वाभिमानी होते हैं । कहीं बालियां लौटा देने से मैं यह कट रही स्वीकार ना करें । एक बार माँ की राय हुए हैं कि मैं गंगा राम को भी साथ ले लूँ किंतु शीघ्र ही उन्होंने रायबरेली पीआईडी वही है गंगा राम है, बडा बडा बढिया हो सकता है उससे बात हो जाए । जिंदगी के इतने अंजील है और अनजाने रस्तों पर माँ चली थी । बिकनी अनिश्चतता हूँ के बीच से गुजर रही थी कि हर बात में आगाह पीछा सोचना उनका स्वभाव हो गया था । मेरे साथ सडक तक आई । गठरी तो मेरे सिर पर थी पर वह है उसको अपने हाथ से पकडे हुए उसका बोझ बता रही थी तो सडक पर आकर उन्होंने उसे छोड दिया । देखो जल्दी आना ऍम लौट गईं । जो ही दानिस घर मैं गुस्सा बकरी में भी आई है । उसकी प्रकृति थी । किसी भी आगंतुक को देखते हुए बोल पडती थी पर मुझे लगा महीनों में मुझसे कह रही हूँ कि सब के लिए तुम ले । आयोग पर मेरे लिए कहलाये हूँ । मेरी शीघ्रता पर लोगों को आश्चर्य था । उस बुखार में भी अम्मी झान उठकर बैठ नहीं और मुझे सीने से लगा लिया । जरूर उनकी धडक थी । घर समझाती के भीतर मेरी छवि उठाने से मिलकर एक हो गई होगी । मुझे ऐसा लगा उन्होंने जो शांति के पैकेटों को बार बार देखा हूँ और उन को भी दिखाया हूँ । देखो मेरे लिए दवाई लाया है । वो कितनी खुश थी, मुझ पर कैसे बताऊँ? बिहारी तो कंट्री खोलने में लगी थी, पर सलमान एक डाक मुझे देख रही थी । उसकी आंखों से कहीं अधिक उसके लगे गण बोलने लगे थे । जब मैं खाली झोला लेकर चलने लगा । अम्मीजान चल नहीं आ रहे हैं । हाल ही झोला नहीं लौटाया जाता पगली उसमें दो चार चार वाली डाल दें । सलमान मेरे लिए चावलों में है । एक मुट्ठी ले आई और झोले में डालते हुए भी मेरी ओर देखती रही हूँ । उस की दृष्टि में अभावा जन ने अब एक था । दरवाजे तक आते आते वह बोली पडी तुम्हारी माने मेरे संबंध में तो कुछ नहीं कहा नहीं आखिर मेरी माँ से क्या कहने की उपेक्षा थी बालियों का क्या हुआ? उसने पूछा हूँ अब उसकी पीडा का संदर्भ मेरी समझ में आया ऍम के पास है तो मैंने बताया ऍम कहते हुए उसने द्वार बंद कर लिया । फॅमिली में चला रहा था जहाँ के बढते हुए अंधेरे पर सलमा के कानों का सोना पाँच पिघल कर पसर गया था । स्कूल से लौट रहा था । आकाश बादलों से ढक गया था । घोर बारिश की आशंका थी इसीलिए छुट्टी को जल्दी हो गई थीं । तेजी से पैर बढाए चला रहा था की कोठी का नौकर नगीना आगे जाता दिखाई दिया हूँ । मैं दो गठिया लिए था । एक में पुराने कपडे बंद है, मालूम पड रहे थे और दूसरे मैं कुछ सामान लग रहा था कहाँ जा रहे हो नगीना पीछे से उसके निकट आकर मैंने पूछा तो रही है चलता ही माँ कहाँ है? आॅल नगीना बोला हम से पहले नहीं के घर पहुंचा अच्छा मोबाइल की तो मिल गए नहीं तो मेरे ऍम चला जाए तो शायद माने दान इसके परिवार की हालत गगरानी बहुत से बताई होगी । तभी उन्होंने धरना सामान भिजवा दिया था । मैं कपडे की गठरी खोलने का लोग संबंध नहीं कर सका । मैंने देखा कुछ मेरे लायक कपडे हैं, कुछ बडे बडे फ्रॉक और छोटे छोटे जंफर है । आवश्यक ईरानी बहु ने अपने बच्चों के कपडे भेजे हैं पर जम्प तो फ्रॉक नहीं पहनती, जरूर ये सलमा के लिए होंगे । फटी ना होने पर भी उम्र की समाप्ति कि झवर पर बडी कुछ गाडियां भी थी । थोडी देर बाद माँ नहीं और मुझे कपडे उधेडते देखकर झिडकी मैं जानती थी तो मैं ऐसे खोलकर देखे होंगे । नहीं नहीं हूँ मैं तो सही लगा कर रखता जा रहा हूँ । मैंने कहा हूँ मैं मैच कपडों की स्थिति देख रहा था और प्रसन्न हो रहा था । इस बार मिले कपडे फटे नहीं थे । केवल कुछ बटन छोटे थे और कुछ की कहीं कहीं सिलाई उधड गई थी तो अपने कपडे अलग कर लोग और बाकी को बांध कर रख दो । माँ बोली हूँ ये सब गाने के घर वालों के लिए है । इतने सारे कपडे वहाँ चले जाएंगे ये मैं नहीं मेरे भीतर से चंपा बोली थी माने जैसे सुना ही ना हूँ । मैं साडी बदलकर आई और उन कपडों को देखने लगी । निश्चित ही उन्होंने इसके पहले देखा नहीं था वो जो जो वह देखती जाती उनका लोग बढता जाता था हूँ । मैं उनकी मुख्यमंत्रा ही देख रहा था । अंत में साढे को देखते देखते उसके मुंह से निकल ही बढा हूँ । इनमें से तो सभी पहनने लायक है । उसने कुछ को छोडकर लगभग सभी साडिया को हटा लिया और मुझे चंदों को बुलाने के लिए कहा । मैं जरूर कुछ नाम तो के लिए भी निकाल देना चाहती थी । आज मेरे मन की थी मैं उसके घर की और लडका घाटा और घनी हो गई थी । वो अंधेरा बढ रहा था । कोई दूसरी स्थिति होती तो चाची कभी भी इस समय जनता को घर से बाहर नहीं निकलने देती हूँ पर मसला कपडों का था । अपनी बेटी की ललक को दवा नहीं पाई । चल तो मेरे साथ चली पर जल्दी आने का आश्वासन देकर उसमें सारे जंपर झाडली है और फ्रॉक छोड दिए वो तो उसने एक समीर एक तरह की मैक्सी भी अपने लिए ले ली या क्या करोगी? मैंने पूछा ऍम पुणे विस्तार से बताया कि इसे बहन कर रहे साडी पहनेगी उसके नीचे का हिस्सा साया का काम करेगा और ऊपर का जंफर का महास पानी क्षमताओं के लोग पर नहीं वरन उसके सोचने के ढंग पर इसे रहने दो । मैं तो मैं साया अलग से लाभ होंगी हूँ । माँ की दृष्टि में सलमा की नहीं रही । आकृतियों भरा ही उन्होंने समीर उसके हाथ से ले लेंगे । अब बारिश शुरू हो गई नहीं, वो भी काफी तेज लगता था । आसमान फट पडेगा, अप्रैल तक नहीं लगेंगे । माने आवश्यक चीजें उठाकर चारपाई पर खडे आदि पूछे स्थानों पर अपना आरंभ किया । अनुमान हो गया था कि इस बरसात को हमारा टूटा खड पहल संभाल नहीं पाएगा और कोठारी देखते देखते झील में बदल जाएगी । हम लोग भी कपडे की गठरी उठाकर चारपाई पर बैठ गए और ऊपर से दो छात्रों की नीचे उस चारपाई को ढकने की असफल चेष्टा करने लगे । घरे में दो ही चाहते थे । एक पिताजी के समय का एकदम पुराना लगभग छलनी समझे । दूसरा कुछ नया था । किसी के त्रयोदशाह में माँ को बढनी में मिला था हूँ । मैं दूसरी कोठरी में बिस्तर और अनाज को बचाने में लगी थी । इधर कमरे में पानी भरने लगा था, पर हमें कोई चिंता नहीं थी । हमें ऐसी जिंदगी जीने के आदी हो चुके थे । ऐसी अनेक बरसात ही रहते हमने चार पाएगी टापू में सिमट कर बताई थी । वर्क यही था कि आज संपत्ति और दूसरी ओर हमारे लोग की अरगनी से लटक रही उन कपडों की गठरी हमारी मानसिकता उन्हीं से लिपटी रही । यहाँ नहीं आपको अपने बच्चों के लिए कितने सारे कपडे सिलवा दी होंगी । हमको बॉलिंग ऍम इतना हम लोगों को देती हैं तब कितना भी उनके पास होंगे । ऍन में कई बार कपडे बदलते हैं । मैंने कहा हो जम्प हो चुकी थी उसकी मुखाकृति से लगा उसका मन बोल रहा है और हम लोग तो एक कपडा पहने रहते हैं जब तक फॅर ना हो जाये हूँ । दानिश कह रहा था कि स्वराज के बाद ऐसा नहीं होगा । मैंने कहा तो क्या सारे कपडे घाटा करके देश के हर व्यक्ति में बराबर बराबर बांट दिया जाएगा । हमको हंस पडी उसकी हाल ही में दान इसका विश्वास फडफडाता भी बडा हो तो हम तो एकदम हमीद की तरह सोचने लगी हो । तुम्हारा मतलब अमीर कह रहा था कि स्वराज ऐसे कुछ नहीं होता जब तक देश लाल झंडे के नीचे नहीं आता हूँ । ये लाल झंडा क्या है वो मैं उसे कैसे बताऊँ? मैंने हमीद के संबंध में कहना शुरू किया आजकल वह रूसी पार्टी का सादा से हो गया है । मैंने उसे बताया कि रूस में कम्युनिस्ट पार्टी है । उसने वहाँ के राजा को मार कर सकता, छीन ली तो वहाँ दूसरा राजा हो गया होगा वो बडे ही सहज बाहर से बोलिंग जो कहते हैं जनता ही राजा है भी । मैंने कहा जनता ने अमीरों की संपत्ति छीनकर गरीबों में बांटते हैं । हमीद कहता है, जब यहाँ भी लाल झंडे का राज होगा तो ऐसा ही होगा । जब हो चुकी थी पानी और तेज हो गया था वो घर पे हल्की टपकन के परिवर्तन के साथ ही साथ छाते को इधर उधर करती रही और उसका टन मेरे तन से टकराता रहा हूँ । तिरंगे झंडे से जुडा उसका मन निश्चित रूप से लाल झंडे के संदर्भ में बहुत दूर था । वो उसने निकट आने का कोई प्रयास भी नहीं किया क्योंकि हम ईद के संबंध में उसकी धारणा ही नहीं थी । तो मैं उसे आवारा और पुलिस का खुफिया से अधिक कुछ नहीं समझती थी । हमीद के कथन में उसे सरकारी चालकी ही कंधाई मेरे चाचा की दुकान पर शाम को बैठने वाले लोगों की बातें सुनते सुनते चल तो देश की गतिविधि से बहुत कुछ बाकी थी । वो स्वराज, गांधीजी आदि के बारे में थोडा बहुत जानती थीं । ऍम मानने को तैयार नहीं थी कि तिरंगे की अतिरिक्त कोई लाल झंडा विदेश में होगा । यदि मैं उससे ये कहता हूँ कि हम ईद अब सुभाष बाबू का भी गाली देता है । उन्हें फार्मासिस्टों का दलाल कहता है तो निश्चित ही बडा कुछ थी । भले ही मैं फास्ट शब्द का अर्थ ना समझती हूँ । इसी बीच बौछार के साथ ही देख हवा का झोंका आया और आने में किताब की आड में जल रही थी । वहीं काम कर बुझ गई । अब नहीं । अब बना बगल की कंट्री से माँ की आवाज सुनाई थी देखो खाडके नहीं कीमत उतरना जमीन की मिट्टी फूल गई होगी । फिसलकर गिर जाओगे । यही तो हम चाहते थे प्रकाश के अभाव में हमारे निकटता और बडी मेरा हाथ उसके तन के अनेक स्थलों पर आता जा रहा हूँ । मुझे रोका तो नहीं तो इतना वश्य बोली तुम बडे दुष्ट होते जा रहे हो हूँ । अचानक बडी तेज की चमक हुई और उसका पीछा करती दिल दहला देने वाली कडकडाहट ॅ एकदम मेरे बदन से चिपक गई । छाता हाथ से छोड दिया । ऐसा लगा आकाश के बिजली फडफडाती हुई मेरी नजरों में दौड गए हैं । मुझे एक अकल्पनीय अनुभूति हुए पर शीघ्र ही वॅार टेस्ट होते हुए सिमट गई । क्या हुआ कुछ नहीं लगता है । कहीं बिजली गिरी है । छाता ठीक करते हुए बोली थोडी देर बाद पानी कुछ कम हुआ हूँ वहाँ पे ही कोठरी में आएँ हम दोनों की सजगता ने अपनी बीच की दूरी ठीक नहीं माने दिया जलाया और मुझे बोली तुम चल तो को पहुंचा दो पानी कुछ धमा है, हो सकता है फिर हो जाये विलन और चौक में लगे पानी को बाहर करते हम किसी तरह समझाते में घर से बाहर निकले । छाता पकडे थी और मेरा हाथ उसके कंधे पडता हूँ । कमर तक जाते जाते नहीं धीरे से मेरा हाथ बटा दे दी थी तो ही नहीं कुछ आगे बढने पर हम लोगों ने देखा की गली के मौके पर एक आजमी छाटा लगाएँ । ऐसे किसी की प्रतीक्षा कर रहा है । सारे ये आदमी तो तब भी यही दिखाई दिया था जब मैं आ रही थी तो मैं से जानते हूँ । बन्दों ने पूछा नहीं मैं उसे कौर से देखता रहा हूँ । उसने अपनी कमर से कोई चीज निकली और उसे खोलने लगा हूँ । पहले ही वहाँ कोई दूसरा चीज रहा हूँ । पर मेरे भाई को मैं चाहता हूँ जैसा ही दिखाई दिया ना हो तो हम लोग और चले इस अंधेरे में आगे बढना ठीक नहीं । हम तो भी निश्चित रूप से डर गई थी । पर मैं कुछ बोली नहीं । उसकी जहाँ बहुत धीमी पड गई थी लगा कि वो लौट चलने का ही निर्णय लेने वाली है । तब तक पीछे से आदमी एक और आता दिखाई दिया जिसको देखते ही पहले वाला आदमी घर से गली में थोडा और कैसा क्या आप स्पष्ट हुआ कि सुमेर चाचा ही आ रहे हैं । पहचान में जाना नहीं जमता को ले नहीं आ रहे थे वो ।

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इस उपन्यास में जिस कालखंड की चर्चा है, वह आजादी के पहले का है। उस समय देश के क्षितिज पर आजादी के बदल छाए हुए थे, देश भर में जुलूस और सभाओं का माहौल था writer: मनु शर्मा Voiceover Artist : Mohil Author : Manu Sharma
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