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Part 6 in Hindi

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AuthorRashmi Sharma
आँख मिचौनी writer: रमेश गुप्त Voiceover Artist : Rashmi Sharma Author : Vishwa Books
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रात के गहरे सन्नाटे और घनघोर निरव ताकि बीच मुझे किसी के रोने का स्वर सुनाई थी । कॅश क्या हो रहा है आज की मैं सो पाऊंगा या नहीं ये सारी रात यूँही कोरी जातियां हुई निकल जाएंगे ऍम का हल्का सा तीनी थी नहीं हिचकी यहाँ पे उच्छवास के कारण उठते ऍम मैंने कानून को सतर्क किया पूरी तरह से एकाग्रचित होकर में सुन नहीं ये सूरज पडोस की रहस्यमय कमरे तो महिला हो रही है ऍम क्या उसकी तबियत खराब हो गयी है? सिर में तेज दर्द हो रहा है । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । चुकी हो जाओ मन्दाकिनी मैं चौकिया तो पुरुष किया हूँ । ये उसी का स्वस्थ था तो उस महिला का नाम ढूँढा कि नहीं ऍम पता नहीं रंगरूट ने कैसी होगी महिला शाहिद कुछ नहीं बोली । कब तक ऐसी रोती रहोगी । चीन की जिंदगी में रोना लिखा है वो हमेशा होते ही रहेंगे । इसमें लिखा है तुम्हारी जिंदगी में रोना तुम नहीं मैंने और नहीं तो क्या कैसे? क्या तुमने अपनी के सामने ये शपथ नहीं ली थी कि तुम मुझे हमेशा सुखी रखेंगे । फिर उसका थे तो नहीं हुआ कि तुम मेरी जिंदगी पर एकाधिकार का अनुचित दावा कर नहीं नहीं किया । ये ऍम थोडी सी शांति और सुख की कामना करती थी तो क्या तुम्हारी कामना पूर्ण नहीं हुई? महिला शायद मान होंगे पर मंदाकिनी शायद तुम अपनी खुशी के लिए मेरी जिंदगी की खुशियों का मूल्य चुकाना चाहती थी । एक ऐसे संभव होता हूँ नहीं तो कभी नहीं चाहते तेज मैं तुम से याद दिलाना चाहती थी कि मैं भी तुम्हारे प्रेम के हिस्सेदार हूँ । मधुर आपने जानता था तुम क्या जाती हूँ? मैं फिर से अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहता हूँ । सातवां तुम्हारा स्थान कभी नहीं ले सकती । सातवां की मेरी जिंदगी में वो जगह है । उसे तुम कभी नष्ट नहीं कर सकते । इन दो स्थितियों के बीच संतुलन रखना मीरा काम और उससे समझाता करना तो तुम्हारा करता हूँ मैं बहुत इस संतुलन या समझौते का प्रश्न नहीं । वे बहुजन की जटिल समस्या है । विभाजन वो भी बहुत चिंदी जिसका परिणाम होता है कटा अलका और कभी खाती हूँ मैं नहीं समझता तुम कैसे समझो की मधुर सात नौ मेरे क्षेत्र का अतिक्रमण किया है । इसका फैसला करना मेरा काम है, तुम्हारा नहीं । अपने अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण का फैसला करने का हक । फिर मुझे रंगीन चश्में पहनने वाली न्यायाधीश के विदेशी सच्चा निर्णय नहीं नहीं करता मंदाकिनी तुम शालीनता की सारी सीमाएं लांघने की कोशिश कर रही हूँ । फिर से कोशिश करती हूँ पर हम उन्हें पहले ही नाम चुके हैं । मंदाकिनी मधु अपनी स्वर्ण नियंत्रण रखेंगे । वॅार नहीं सकती । हमेशा कडवा होता है । मैं अपनी जिंदगी में कडवाहट नहीं चाहता कि में कई नई बात नहीं सुन रहे हैं । पर मेरे कहने से नंबर कौनसे असर पडता है? हाँ, अब क्या असर पडेगा मत की सीमा की मैं ही किया गया सिर्फ ठंडी पड रही थी मेरी तो सारी खुशियां खर्च की मिटन साथ ही सब कुछ सुन रहा था । पर भर कमान होते ही मुझे अपनी होने का आप हो लगता है इस लम्बे अंतराल से भी तो नहीं कोई अंतर नहीं बढ पुरूष का स्वर्ग हो जाएगा । अंतर क्या पडता है मैं तो जिंदगी में सिर्फ मुक्ति की कामना शीर्ष मुक्ति की कामना हामद मुझे भी बहुत ऍफ का ये पूजा और नहीं लाया जाएगा । ठीक है मैं तो भी सुखी देखना चाहता हूँ ये भी मुक्ति ही तो मैं सुबह सकती है । मैं तुम्हारे ऊपर से अपने सारे अधिकार वापस लेता हूँ । ऍम किस लिए इस मुक्ति की घोषणा के लिए कर इस घोषणा के लिए मेरे सुख की दुहाई क्यों देती हूँ तो फेस किसके सुब की दुहाई दू इसमें तुम्हारा भी तो सुख चुका है मेरा अच्छा आदमी के साथ तुम्हारा में बाद प्रेम मेहता चल सके उसके साथ वो पिक्चर नाटक और संगीत कार्यक्रम देख सकते ऍम खाना इंसान सी रिकॉर्ड खरीद मेरी खरीदे हुए रेडियोग्राम पर उन्हें ऍम करना मेरे बिस्तर पर तुम तो मंदा की नहीं महिला छुट होगी कर उसकी कंट्री से छुट्टी हुई छुट्टी हुई हिचकियों का सर मैं स्पष्ट सुनता रहा कुछ क्षण मौन के बाद तो फिर पूछते हैं टीवी ही पाॅइंट जब साथ ना तुम्हारी प्रदेश बाकियों के मेरे भी बंद कर किसी तो यही मैं जिंदगी के फॅमिली नहीं तब मैं जिंदगी की पतझड के बीच में सूखे पत्तों की खरखरा संकेत अब बस करो मन्दाकिनी नहीं भी जानती हूँ हूँ की रात रात खर्च तुम दोनों आलिंगन पांच में पाँच सुनहरे सपने देखते हो चमकीले भविष्य की योजनाओं में बंद ही रहा हूँ की फिर में फॅमिली तुम लोग गुदगुदी बिस्तर में पडे रीमा लाभ ऍम फॅमिली की भाई को अस्सी हजार से कहा रही हूँ चुप करो मन्दाकिनी ऍम तुम्हारे यहाँ छोटी ऍन बोलो खास इतने दिनों बाद ही बांध टूटा है मुझे के ही लेंगे तो अंतरिम ऍम मैं जाने कब से उमर खुमार कर मुझे भी मार्च हुई थी । हाँ सच में उसे चैट से पकडकर बाहर निकालकर फैंकना चाहती हूँ । शायद मतलब इतने कोई उत्तर नहीं किया । शहीद तुम उसी ऍर के लिए ले जाए तो तुम्हारी गली में बाॅस संगीत की धुन कस थी । रखती हुई हूँ सिंधु की कितना मीठा सपना कि मैंने अब जाना है । मैं खुद करिअॅर संगीत समझे नहीं रहे चलेगा वो तो पागल की चीख बनकर पहुँच है कहीं तो हाँ साथ पीढी । पेट्रोलिंग तो क्योंकि कलॅर कि व्यक्ति की सुप्रीम ऍम सब कुछ नॅशनल करते निभाना होगा । ऍम किसी कुम्हार के हाँ वे से निकलता हुआ क्यों हुआ? कहीं जाओ मन्दाकिनी में सब सुन रहा हूँ नहीं काम सिर्फ सुन रही हूँ मत । भाग से ही तुम दोनों की जिंदगी में वास्ता किया था । झूठे की आज की रोशनी और मधुरिमा का प्रवाह होगा और मेरी ठहरी हुई सिंधु की फॅमिली लिए समा चाहिए । तुम भावुकता की सीमा इलान रही हो । मन्दाकिनी तो खर्च पीडा की केंद्रीय चीज में डूब उतर नहीं शायद ही सोच रही हूँ । नहीं ऐसा नहीं मैं सोच रही हूँ क्यों साधना की संपर्क में तो सुख्खू नहीं मिलेगी हूँ तो सबकुछ मनचाहा पाकर ठीक खाली होगी । साथ ना कभी कभी पूर्णता नहीं दे पाई कि संजय वो मधु सबसे रहेगा । ऍम तुम अपनी भाजपा मैं जीवन की अपूर्ण का की खाने को पहुंॅचे । इस अपूर्णता के प्रति अनभिज्ञता ही संसार के जीवन की सबसे बडी फॅमिली जिसकी शिकार तुम खुद भी हो, मंदा की नहीं । नहीं मतलब फॅमिली का शिकार तुम दोनों हूँ तो उसका ऍम रही । किस बात को हमेशा याद रखना जो दूसरों की सुख पर डाका डालते हैं ना? खून पर कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता हूँ । खुशियों का डाकू अंत में दुख का सीजन कर चले जाते हैं । तुम आवश्यकता से अधिक भावुक हो गई । मैं भावुकता की बात ही नहीं कर रही । सत्य का उद्घाटन कर रही हूँ तो उन्होंने मेरे साथ अन्याय किया । मैंने पीर होगा है, न्याय को सहा । अन्याय को सहने वाला और पीर को भोगने वाला व्यक्ति व्यक्ति को उजागर करते । मंदाकिनी अब बस करो तो उनकी भी चुप हो जाती है । कुछ क्षण का मौन हूँ । मैं तो साॅस तो क्यों ठंड लग रही है हूँ क्या बुखार ही क्यों नहीं सकती? डॉक्टर से दवा क्यों नहीं मिली होता है? फिर कसमसाता साॅस बाहर पडी जोरों से पट पट हो नहीं नहीं शायद वर्ष शुरू हो गई में भी हद परेशानी चुका था तो ये पुरुष नारी पति पति है हूँ मैं वैवाहिक संबंधों की शवयात्रा सेक्टर कर रखा है आपकी मेरे पडोस के कभी भी एक और विवाह संबंध अंतिम सांसे नहीं ऍम हूँ सूखी पत्ती एक भी कहाँ सरे एक्टर पर कचोट भरा ऍम धूल घरे बंगोली बस इन्हीं से घिरा में हूँ वर्ष था मुझे सब फॅमिली सिंचाई के बावजूद मेरी कमर में सरसराहट से बढती जा रही है के अंदर में कुछ ठंडा ठंडा पसीना सकते हो नियांग चालान नहीं लेगी सोने की हर कोशिश भी हो रही है नींद को बुलाने के लिए । जैसे ही मैं काम एक स्वस्थ बनाकर मेरे सर्वस्व कोच अच्छा होता था । रामना अस्फुट सस्वर मेरे कानूनी मुझे मैं हूँ तो भी रोक नहीं का मुझे क्या ठीक है कि तुम्हारा चुनाव तुम्हारी निर्णय को स्वीकार ऍम ठीक है । लगता है खाई काफी चौडी और गहरी हो चुकी है मुझे तो कोर ऊंची दीवार ने सर आ रही है अच्छा मन्दाकिनी ऍम मंदाकिनी नहीं शायद कोई नहीं पल भर के बाद बाहर बरामदे में एक धीमी सी बच्चा सीरियल मुखरित अगले कुछ क्षणों में उस पत्र चार तस्वर रात की निरव तमिल होगी । अच्छा पूरे इस महीना का पति है । फिर भी मैं यहाँ नहीं थे । इसका मतलब है कि और सम्बन्ध तब तो चुके । क्या नहीं करानी थी इस खानपुर कृष्य कि एक दशक शहीद फिर वो कहाँ चली गई कि काॅल किसी की पानी पानी रूनी का स्वस्थ नहीं । मैं अपनी पणकर उठकर पहले क्या हमें क्या करेंगे? मैंने कल सुबह शेखर भाई के पास जाने का पक्का फैसला कर लीजिए ।

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आँख मिचौनी writer: रमेश गुप्त Voiceover Artist : Rashmi Sharma Author : Vishwa Books
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