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कुछ अनकहे अलफ़ाज़ - 05 in  |  Audio book and podcasts

कुछ अनकहे अलफ़ाज़ - 05

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बरसात में जैसे बूंदों का धरती से मिलना, तेरा मिलना मेरे तकदीर में जैसे इंद्रधनुष का खिलना! यही हाल होता है जब सालों बाद अपने बिछुडे हुए प्‍यार का मिलना होता है और फिर ये दिल कहता है-काश हम उस वक़्त बोल देते…. काश वो वक़्त फिर से लौट आता... यह सब बातें कभी-न-कभी हमारी ज़ेहन में एक हलचल-सी करती रहती है। वक़्त गुज़र जाता है और उस दोस्त से कुछ न कह पाने का एक अधूरापन हमें परेशान करता रहता है और कहीं उनसे सालों के बाद अचानक मिल गए तो क्या आलम होगा कभी सोचा है आपने ???
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अच्छा रास्ते में चुपचाप बैठे थे दोनों आयुषी ने किशोर दा के गाने चला दिये का जाना भी ऐसा लग गया क्योंकि उस माहौल को सूट कर रहा था । हम स्टेशन पहुंच गए । आयुषी ने प्लेटफॉर्म टिकट काउंटर से खरीद लिया । आज आयुषी वही नेवी ब्लू का लडकी शिफॉन सारी पहले हुई थी और उस पर हल्का सा गोल्डन कलर का ब्लाउज उसपर बहुत जच रहा था । आज ही पहनने का एक कारण ये भी था कि किसी जमाने में राजीव ने इस साडी उसे तो फिर में दी थी । यादव को समेटे हुए आयुषी ने राजीव की हर एक सौगात संभाल के रखी थी आज तक और दूसरी तरफ राजीव ने भी सब यादव को समझाते हुए रखा था । आज एक फेमस राइटर है तो थोडा दिखावा भी करना होता है । चेहरे पे प्लास्टिक स्माइल, हर किसी से बहुत अपनेपन से बात करना वगैरह मैं कह रहा हूँ । एक और बात है जो आप लोगों से शायद मैं बोलना भूल गई थी । इतने दिन हो गए । राजीव ने अपनी किताब के बारे में कुछ शेयर नहीं किया था आयुषी से और आयुषी ने भी कभी कुछ नहीं पूछा । कभी कभी हम जिस के बहुत करीब होते हैं उनकी हर बाद जाने का मन नहीं करता हूँ कि वो तो आप नहीं है । जब मन करें वो बता देंगे और न बताए तो भी कोई फर्क नहीं पडता नहीं पढना चाहिए यात्रीगण कृपया ध्यान दें । गाडी संख्या फाॅर्म नंबर चार पर आने वाले हैं । प्लेटफॉर्म पे किसी भी अज्ञात व्यक्ति से कुछ खाने पीने की चीज ग्रहण ना करें । अपने सामान की सुरक्षा आपके हाथ में है । ऍम कर दोनों चार नंबर प्लेटफॉर्म पहुंच गए । कुछ देर छुप होने के बाद आयुष ने पूछा तो फिर कब आना होगा? नैनीताल उससे मिलने तो आगे ना दोबारा राजीव की जुबान पर ताला सा लग गया था । मिलने आऊंगा की नहीं है तो नहीं जानता । आयुषी पर हम फिर कभी बुक लॉन्च करना होगा तो जरूर आऊंगा । हाँ, कभी अगर तुमको खुले नहीं तो जरूर आऊंगा । तुम या तो रखोगे ना । मुझे वीडियो पर गुस्सा नहीं करोगे ना । मैंने तुमको बहुत बताया है लेकिन एक ही तो हूँ जिसके साथ मैं और योजना राजीव बन जाता हूँ । वरना एक प्लास्टिक स्माइल को चेहरे पर लेप कर कुछ होने का दिखावा करता हूँ हूँ । आयुषी पांच सौ रही थी उस की बात है । वो भी बिना कुछ बोले दिल में । बहुत बार ये खयाल आया कि बोलते उसे कि वो आज भी बहुत प्यार करती है उस से । लेकिन फिर समाज और बात ने उसके हाथ रहती है । एक ऐसा समाज है जो अक्सर हमारी खुशियों को मस्त चलने को तैयार रहता है और हम भी डर के मारे अपनी हर कुशु का ही करते रहते हैं । जब बडे हो जाते हैं तो बस जिम्मेदारियों के बोझ अलेल तमिल हुई जिंदगी को साथ आजकल की भागदौड भरी जिंदगी में कभी भी खुद के लिए कुछ नहीं नहीं कर पाते हैं । ये सब करने के बाद एक किताब मिलता है हम को समाज और अपने रिश्तेदारों से देखो । फलाना लडका या लडकी कितना अच्छा है लेकिन ये कोई नहीं पूछता सामने वाले को क्या चाहिए उसे वो खुद की जिंदगी से ही की नहीं, शादी कब कर रहे हो? क्या ऐसे ही जिंदगी भर अकेले रहने का इरादा है । अकेला कहाँ हुआ? आयुषी खुद के लिए कहाँ वक्त कहाँ मेरे पास फॅस मेरे चाहने वाले हूँ, हूँ तो ऐसा अकेला हूँ बताऊँ सांथा अब बडे राइटर बन गए हो इसलिए बडी बडी बातें कर रहे हो । ट्रेन को आते देख राजीव ने आयुषी को अपनी किताब गिफ्ट की क्योंकि बहुत अच्छे से पार्टी आप ही मेरे जाने के बाद उसको खोल के पडता जरूरत बहुत कुछ जब तुम को जाना है सबका जवाब मिल जाएगा इस किताब को पढने के बाद और हम ये किताब साथ ही घटनाओं पर आधारित है की नहीं है इसकी पुष्टि करने की कोशिश करता नहीं तो ऍम लगवा तुम्हारे साथ हूँ क्या? अभी आई नहीं अपने पति को बोलना अगली बार दिल्ली आए तो मैं जरूर आएगा । ट्रेन आई और थोडी देर बाद राजीव होगी में प्रवेश किया ऍम देखती रही सुबह आ बंद थी लेकिन आते हैं होती है अच्छा आ रही है थोडी देर बाद हाँ मचाकर आगे चलने लगी । आजीव हैं आय हाय करके हाथ थोडी देर बाद हिलाया फिर वो आयुषी की आंखों से दूर हो गया । अच्छा ऐसा क्या है बुक में ये सोच के आॅफिस को ओपन करने लगे । अच्छा जब कवर पूरा खुल के आया तो बुक कवर पे दो प्रेमियों का पिक्चर था । वो लोग आसमान की तरफ देख रहे थे । बुक का टाइटल देखकर आयुषी दंग रह गए । बुक का टाइटल था हूँ कुछ अंतर ऍम

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बरसात में जैसे बूंदों का धरती से मिलना, तेरा मिलना मेरे तकदीर में जैसे इंद्रधनुष का खिलना! यही हाल होता है जब सालों बाद अपने बिछुडे हुए प्‍यार का मिलना होता है और फिर ये दिल कहता है-काश हम उस वक़्त बोल देते…. काश वो वक़्त फिर से लौट आता... यह सब बातें कभी-न-कभी हमारी ज़ेहन में एक हलचल-सी करती रहती है। वक़्त गुज़र जाता है और उस दोस्त से कुछ न कह पाने का एक अधूरापन हमें परेशान करता रहता है और कहीं उनसे सालों के बाद अचानक मिल गए तो क्या आलम होगा कभी सोचा है आपने ???
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