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Part 49 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भाग उनचास ऍम मैंने चिंटू को बोला था कि मैडम को लिया । हम दोनों मिलकर पापा को सब कुछ बता देंगे कि हमारा बच्चा ऍम आप तीन राज है कि मुझे इतनी बडी बात भी नहीं बताई । माफ कर दीजिए मुझे । पापा पापा आप ज्यादा बन गए पापा कि हमारा बच्चा है पापा कुछ माफ कर दीजिए, मैं आपको पता नहीं पाया हूँ । ऋतु मैडम और मैं साल भर पहले शादी कर चुके हैं । ठाकुर लगातार बोलता जाता है सारी बीती । बातें एक के बाद एक बिना रुके बोल रहा है । लेकिन सब उसकी बातों से ज्यादा उसके अंदर के उतावलेपन और उत्साह पर ध्यान दे रहे हैं । जैसे ही ऋतु मैडम की गोद में सोये बच्चे को हाथ लगाने जाता है, ऋतु मैडम उसका हाथ बटा देती हैं तो ये क्या फालतू बात कर रहे हैं । तब से लगालो के क्या ऍम अपने बच्चे को थोडा बाहर से और दूर करते हुए बोलती हैं हूँ क्या हुआ तो पीछे से एक आदमी आकार ऋतु मैडम से पूछता है, देखिए ना अगले जैसी बातें कर रहे हैं । इससे अपना बच्चा और मुझे अपनी पत्नी बता रहे हैं । फॅमिली से बोलती हैं अरे भाई साहब ये मेरी पत्नी है और मेरा बचाये ये आदमी ऍम का पति है । ठाकुर के सामने आकर उसकी आंखों में आंखें डालकर कहता है बस और इतना सुनते ही तुरंत उस आदमी का कॉलर बिगाडकर उसे मारने की कोशिश करने लगता है । तेरी जान ले लूंगा मैं कमीने कहीं के मेरी तू मैडम को अपना पति बता रहा है । जगत नारायण और दुल्हन के पिता मिलकर बकुल ताप करते हैं और उन से जाने की विनती करते हैं । तभी गोपाल और चिंटू आ जाते हैं । एक हो पाया लेकिन तू ऍम को ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है? मैंने बता तो दिया हमारे बारे में सब कुछ पापा को फिर किस बात पर गुस्सा है भी है तो दूसरा आदमी उन्हें सबसे ऊपर नहीं बोल रहा है और वह कुछ नहीं बोली । उसे हरी मेरे बच्चे को मुझे नहीं छोडे दे रही है । क्या हुआ उन्हें तो बचाना गोपाल चिंटू बताऊँ क्या हुआ बंगुर जगत नारायण की पाकड है । झूठ नहीं की कोशिश करते हुए बोलता हैं । चिंटू और गोपाल दोनों ऋतु मैडम से हाँ छोडकर उनसे जाने की विनती करते हैं । बकोरिया देकर लगभग पागल हो जाता है जो खुद से आपा खो देता है । चिंटू और गोपाल उसे संभालने की कोशिश करते हैं लेकिन वह ठाकुर को उसके सवालों के कोई जवाब नहीं देते हैं और कोई पानी से निकाल दी गई मछली से भी दोगुनी तेजी से झटपटा रहा था । अभी ऋतु मैडम के बाद मदन लाल जी भी उधर से गुजरते हैं । दो । जगत नारायण जी को वहाँ देकर एकदम रुकते हैं । फिर एक जगह नारायण जी पहचाना लीजिये लड्डू भाई नाना बन गया में अच्छे और हाँ अच्छा हुआ । उस दिन आपने इतना अपमान कर के शादी के लिए मना कर दिया । अगर आप कब मना नहीं करते तो फिर मुझे ना अच्छा वर का बिल दामाद कहाँ मिलता है? इंजीनियर है और आपके बेटे से हर बात में चार गुना है । चलता हूँ जय महाकाल इतना बोलते ही भी निकल जाते हैं । बाकुल को संभालना आवाज से ज्यादा मुश्किल होता जा रहा था । लगभग पागलों की तरह बर्ताव करने लगा था और कैसे भी वर्ष सबसे छोडकर बहरे तो मैडम के पास जाना जाता था । ऍम आखिर ऐसा क्यों बोल रही थी मैं उनके साथ कौन था? ऋतु मैडम ऋतु मैडम के नाम की ठीक और चिल्लाहट पूरे हास्पिटल में होने लगी थी । नागपुर जब किसी की बात नहीं सुनता हूँ किसी के कानों में नहीं आता हूँ तो मजबूरन डॉक्टर उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा देते हैं और पाकर धीरे धीरे शांत होने लगता है । डॉक्टर के साथ सब अंदर जाते हैं जहाँ डॉक्टर और जगत नारायण के मन में पैदा हुए ढेरों सवालों के जवाब चिंटू और गोपाल देते हैं । चिंटू बखपुर के द्वारा बताई गई सारी बार मैडम का शिविर में मिलना, उन से प्रेम होना, उसके बाद शादी कर लेना, घर में साल भर तक मचान पर छुपकर रहना और वह सारी यात्रा जगतनारायण को बताता है । लेकिन ऋतु मैडम के पूछने पर पता लगता है कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं । उनकी तो साल भर पहले एक इंजीनियर से शादी हो चुकी है जो अभी बाहर उसके साथ है । भैया ने जितने भी कहानी बताई ऍम झूठ है । लेकिन भैया ऐसा क्यों कर रहे हैं? चिंटू के सिर पर चिंता की लकीरें बाहर उभर कर आ चुकी थी । डॉक्टर इन सारी बातों को सुनकर बाहर से संबंधित गहराई से बहुत से सवाल करते हैं और सारी बातों को जाने के बाद मैं जगत नारायण को बाकी और का सच बताते हैं । बकौल हम लोगों की तरह साधारण नहीं है उसे हिज्र फेनिया नाम की बीमारी है, एक मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति कल्पना और वास्तविकता में अंतर नहीं कर पाता हूँ । मैं बहुत ही चीजों को देख महसूस सुहार या घंटे से महसूस करने लगता है जो असल में है ही नहीं । मतलब है उस वस्तु या इंसान को उसकी अनुपस् थिति के बिना भी देख सकता है । उस से बात नहीं कर सकता है । कई तरह की तनावपूर्ण स्थितियों के कारण इस बीमारी का जन्म होता है । लेकिन अधिकतर समाज कम स्कूल और रिश्तों में आई समस्याओं के कारण ही होता है । एक प्रकार का पागलपन भी कह सकते हैं और ये आजीवन रहने वाली बीमारी है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता हूँ, सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है । तो इतना सुनते ही दुल्हन का बात वहाँ से चला जाता है । चिंतु हाथों से पूछ पहुंच गए अपने आंखों को आपकी तरह लाल कर चुका है लेकिन फिर भी आंसू एक पल भी रुकने को तैयार नहीं थे । गोपाल की इससे ज्यादा बक और के बारे में सुनने की हिम्मत खत्म हो चुकी थी । बाहर निकालकर आता है और बाकी और को रोते हुए कसकर घालय से लगता है और उसके चेहरे को देखते ही गोपाल के मन में बखपुर का पसंदीदा गाना उतना ही लगता है । मेरे दिल की ये दुआ है कभी दूर हो ना जाए तेरे बिना हो जीना तो दिन का भी नहीं है । गोपाल पूरी तरह टूट चुका था और अचानक फूट फूटकर होने लगता है । वो अपने आप को हद से ज्यादा बेकाबू पाकर भागते हुए बाहर निकल जाता है । जैसा कि मैंने कहा था इस सफर के अंत में मैं बताऊंगा की यह कहानी सुनने वाला मैं कौन हूँ मैं हूँ जो शहीद की सांसें रुकने पर भी जाता हूँ मैं वो जो दिल की धडकनों की रुकने पर भी झगडा रहता हूँ हूँ हूँ हूँ जिसमें इंसान के जीने से लेकर मरने तक का सारा अनुभव, सारी यात्रा किससे यादें, बातें लम्हें सब सुरक्षित रहता है । हाँ मैं बकर का दिमाग हो अभी बेहोशी का इंजेक्शन लगाते ही टक्कर की आंखें तो बंद हुई थी लेकिन दिमाग आपने जीत चुके समय के सफर पर निकल पडा था । बस उस सफर को उस याद को मैंने शब्द लेकर आप तक पहुंचा दी है । कुछ देर में जगह बनाया है । बाहर आकर बखपुर के बैठ पर बैठते हैं । बखपुर के बालों में अपना हाथ फैलाते हैं उसका सेन अपनी गोदी में रखते हैं बस कुर्की चेहरे पहिला का तार आंसू की बूंदें गिरती है आगे चकत् नारायण पूरी तरह स्तब्ध हैं जो बकर कि पहनी हुई शेरवानी किए ऊपर के बटन खोलने लगते हैं । पर शिलानी पर गहराई से देखने पर अचानक उनके दिमाग में वे शब्द होते हैं तेरे तीसरे बेटे की शादी तक । अगर मैं अपने बेटे बा खुद जगतनारायण पांडे के शांति नहीं करा पाया तो मैं जगत बालकृष्ण, नारायण पांडेय, पवन शिप्रा नदी में अपने शरीर को त्याग दूंगा, ये मेरा वचन है ।

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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