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योजना के अनुसार उन्होंने अपना अभियान प्रारंभ कर दिया था । सिर मुंडाते ही ओले पडे आर्य और साथ ही अभी सौ का नाम भी नहीं चले थे की उन्होंने अपने आप को सुरक्षा बलों से गिरा हुआ पाया । कम से कम है नौ सिपाही थे जबकि ये दो ही थी । उनकी लीडर ने कहा लडकियों यहाँ क्या कर रहे हो? ने बडी नजाकत से उत्तर दिया हम तो इवनिंग वॉक के लिए निकली है लेकिन हमसे सवाल जवाब मांगने वाले आपको उन्हें लीडर ने उसका प्रश्न अनसुना कर के पुना प्रश्न किया क्या तो मैं यहाँ के हालत पता नहीं क्यों चली? आई हाँ मरने । आर्या ने संभलकर समझदारी बडा उत्तर देते हुए बताया हम दोनों महीने चाचा के लडके की शादी में शरीक होने आई थी । वहाँ तो घर में कोई था ही नहीं । हमारा मूड खराब हो गया तो इधर घूमने निकल पडीं । लीडर को उसके मासूम चेहरे भोली बातों पर भरोसा हो गया । उसने कहा यहाँ भी स्थिति पूरी तरह से तनाव में हैं । कभी भी कुछ भी हो सकता है या था भला इसी में है कि तुरंत लौट जाओ । आओ तो मैं दो सिपाही संग भेज दू आ रहे हैं । एकदम सकपका गई लेकिन ऊपर से सहज होते हुए बोली हमें भी महसूस नहीं हो रहा है । हम चले जाएंगे । आप किसी प्रकार की चिंता ना करें । इतने अच्छे व्यवहार और मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया कहकर वापस लौट आई । उनसे पांच नौ फलाण दूर एक पेड की ओट में खडे विशाल की ऊपर की सास ऊपर नीचे की नीचे रह गई थी । जब तक उसने दोनों लडकियों को सुरक्षा बल से धीरे देखा, वहीं पर पोजीशन लेकर सतर्कता तो जैसे ही सुरक्षा बलों को पश्चिम की ओर तथा इन्हें पूर्व की ओर मोडते देखा, तब उसने चैन की सांस ली । पहले उन्होंने अपेक्षाकृत साफ सुथरा रास्ता चुना था, लेकिन अब देखा यहाँ सुरक्षा बल चप्पे चप्पे पर तैनात है । इन की नजरों में धूल झोंकना आसान नहीं । तब सदन जंगल वाला रास्ता चुना दिया । आर्या ने सचित्र आंटी वाला नक्शा एक बार पुनः बाहर निकाला । तीनों ने लोकेशंस एकदम सुनिश्चित कर ली । फिर अक्षय को कुना समेटकर अपनी जेब में रख लिया । बीहड जंगल में नक्सलियों का बहुत खत्म तो था ही, जंगली जीव जंतुओं का खतरा भी बहुत ज्यादा था । रास्ता भटक जाना भी बडी बात नहीं थी, किंतु विशाल वहाँ के चप्पे चप्पे से परिचित था क्योंकि उसने सेटेलाइट से अन्वेक्षण करके उस जंगल का गहरा अध्ययन किया था । कहा तीनों ने ब्लैक टाइगर कामांडो वाली अपनी पोशाके पहले जो ऍफ थी हेलमेट दस्ताने नाइटविजन । ग्लासेस लगाने के बाद तीनों ही आपस में एक दूजे को नहीं पहचान पा रहे थे । उन्होंने अपने वॉकीटॉकी सक्रिय कर लिया और बढ चले छती लक्ष्य की और सघन वन में हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था । आगे बढना मुश्किल हो रहा था । इन्होंने एकता मध्यम रोशनी की टॉर्च का उपयोग करने की सोची । साक्षी ने हाथ पीछे क्या अपनी बैक पॉकेट से टॉर्च निकालने के लिए अरे मेरे हाथ किसने पकडा है । मुड कर देखने लगी तो भयंकर जहरीले नाग ने उसकी कलाई पर लपेटा दे रखा था । क्रोध से धडक थी उसकी आंखें जहर उगलती लपलपाती जीत अगले ही क्षण सीधा चेहरे पर रखने को तैयार । घबराहट के मारे साक्षी ने आंखे बंद कर ली । वो नंबर शिवाय को याद करने लगी । बच्चों की आवाज हुई । उस साक्षी ने डरते डरते आंखे खोली तो देखा उस खूंखार सर्व का मुख्य विशाल ने पकड रखा था उसकी कलाई से हटाकर पूरी ताकत से विशाल ने उस जहरीले ना को दोनों देख दिया था । विशाल ने सामना के साथ साक्षी की ओर देखा । साक्षी भी असीम अनुराग भरी आंखों से विशाल को धन्यवाद कह रहे थे । उनसे कुछ दूरी पर खडी आ गया । सारा माजरा देखकर रोमांचित थी । इस जंगल में साधारण आदमी दिन में घुसने की हिम्मत नहीं करेगा । अभी तो रात का अंधकार गहरा रहा है । बताओ अतिरिक्त सावधानी से दायें बायें ऊपर नीचे देखते हुए ये हमें चलना है । आर्य ने कहा जैसे ही यह कहकर उसने अपना कदम उठाया तो पैर ही नही नहीं टॉर्च की चमक में उसने देखा भयंकर मोटे अजगर की पहुंच उसके पैर पर पडी थी इंसान तो क्या साबुत मगर मच को निकल जाए इतना विशालकाय आज कर था आर्य को लगाई है पलटेगा खोलेगा और आर्य अंदर मौत को इस रूप में सामने देकर वह कहाँ उठी और सोचने लगी करने का काम नहीं है लेकिन पिताजी को कहो ना साथ कराएगा । जहाँ इंसानी शक्तियां झुक जाती हैं वहाँ दैवी शक्ति काम करती है । आर्या ने अपने गले में पहले दिव्या मोदी के लॉकेट को चूमा और आंखे बंद करके नमस्कार महामंत्र ता पूरी एकाग्रता से जब करने लगी किस बार जब करके उसने अपनी आंखें खोली तो दूर जाते । अगर की पूछ दिखाई थी वो भी अगले एक्शन ओझल हो गई । इस प्रकार खतरों का सामना करते करते छिपते छिपाते रात के लगभग दो बजे ऐसी जगह पहुंचे जहां से सामने एक बडी पहाडी नजर आ रही थी । सम्भवता इसके ठिकाने में ही उसके पिता गए थे । जब आ रहा तो गुप्त रास्ता तलाशना था । उसने मन ही मन सुचित्रा आंटे वाला मैं तो हराया । उसमें सब कुछ सही सही निर्देश था पश्चिम दिशा की ओर थोडा सा आगे बढते ही रहेगा । दीवार से टकराई उसने नीचे देखा तो कुएं की मुंडेर थी आ गया । इसी को तो खोज रही थी । पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार अब विशाल की ड्यूटी कुएं की मुंडेर के पास तथा साक्षी की पीछे बैकप और चौकसी की थी । आर्या ने कहा विशाल यहाँ कुएं में उतरने की कोई सीरियल तो है नहीं । एक मात्र रास्ता है इस अन्दरकोट में कूदना क्या करें? तब विशाल ने कहा आ गया तुम अपनी कमर पर रस्सी बांधकर मुझे धमाल हो । अगर तुम्हें कहीं ठेका आने का रास्ता मिल जाए तो रस्सी खोलकर अंदर चली जाना । हमें दो बार टॉर्च जलाकर सहमती दे देना । रस्सी वही रहेगी जब वापस आओ तो कमर पर रस्सी बांधकर तीन बार और चला देना । मैं तो मैं ऊपर खींच लूंगा । मामला बेहद खतरनाक था । जंगल का अंधकूप जल से लबालब भरा भी हो सकता था । जाली है, जान तो भी हो सकते हैं । जहरीली वनस्पति भी हो सकती है, लेकिन आर्या के पैर एक्शन भी नहीं । फिट के दिमाग में सावधानी थी । दिल में जुनून था । आपके पिता जी को हर हाल में बचा कर लाना है । आर्या ने अपना अत्यावश्यक सारा सामान शक्तियां कमर पर मजबूती से रस्सी वानी हाँ छोडकर नमस्कार महामंत्र का उच्चारण किया और खुद पडी उस अंधेरी को मैं मैं नीचे की ओर जाती जा रही थी । जाती जा रही थी । बीस तीस ऍम चालीस फीट की गहराई तक में पहुंच चुकी थी । जल का गहरा जवाब था । मैं चारों और हाथ पास मारते हुए रास्ता तलाश नहीं दी । उसे कहीं भी कोई निशान नहीं दिख रहा था । उसे लगा कि वह गला जगह आ गई है । इस कुएं में उसे कहीं कुछ भी नहीं मिलेगा । मैं शेयर करो । ऊपर की ओर आने लगी । आते आते उसने पुनर्विचार किया कि जली तथा प्रारंभ होने से पूर्व की स्थिति काफी अवलोकन किया जाए । हो सकता है कि कोई सुराग मिले । सोचते सोचते पानी के ऊपर आ गई । हुआ की गहराई अब भी पंद्रह बीस थी तो यहाँ भी उसे कुछ भी नहीं देखा वो बेहद परेशान से चारों तरफ हाथ पांव मार रही थी । तभी उसका बूट लोहे के कडे से टकराया । कोई भी एक तरफ की दीवार से लगभग ढाई फीट लंबा दो फीट चौडा रास्ता खुल गया । आर्या ने उसमें शक्तिशाली टॉर्च की रोशनी जलाकर देखा । मैं कोई लंबी सुरंग लग रही थी । विशाल हुए में झांकी रहा था । तभी आर्य ने दो बार टॉर्च की रोशनी मारी । निशान निश्चिंत हो गया कि नक्सल के अनुसार आर्या को रास्ता मिल गया है । आर्या ने अपनी कमर की रस्सी खोलकर उस कडे पर अटका जी पुनः भगवान का स्मरण का सुरंग में दाखिल हुई । सुरंग की ऊंचाई लगभग पांच सीट होगी । अच्छा रह गया को झुककर दौडना पड रहा था । वहाँ घटाटोप अंधकार था । पता आर्या ने एक्स्ट्रा पावर वाले क्लासेज निकले और आपने नाइटविजन चश्मे के अंदर सेट कर दिया । अब उसे एकदम स्पष्ट दिख रहा था । लगभग एक किलोमीटर बात सुरंग का रास्ता बंद था । वहाँ बारह सिंगा के दो सीगेट लगे हुए थे । आर्या ने दोनों को आपस में नब्बे डिग्री पर घुमा दिया । सामने का पट्टा हट गया । रास्ता खुल गया । सामने वही दिखाना था जिसकी जेल में आर्या के पिता थे । आर्यो ने पुना भगवान का स्मरण किया कि उसके पापा यहाँ अवश्य मिल जाए । भंड आंखों में एक जमा को थी । एक दिव्य आजमा वहाँ बस्ती थी । अगले ही शरद भैया तरह हो गई । आर्या का विश्वास हो गया कि वह यहाँ से खाली नहीं जाएगी । आ गया ते खाने में दाखिल हो गई । दोनों तरफ पैर के बडी हुई थी, जिनमें कैदी थे । यही आसपास ही उसके पापा भी होने चाहिए । अंधकार में वह अपने चश्मे से चेहरे पहचानने की कोशिश कर रही थी । अरे ये क्या? बैरक नंबर पांच में तो वही ईमानदार वन अधिकारी था जो कुछ दिन पहले अखबार में जिसकी बडी बडी फोटो छपी थी । नक्सली इलाके में लापता होने की खबर के साथ अब उसने पुनः अपना ध्यान केंद्रित किया । कल्पना में पिताजी का चेहरा साकार किया और कैदियों को देखते हुए आगे बढने लगी । बैरक नंबर सात के कैदी की तरफ देखा तो मैं देखती ही रह गईं । उन्नत ललाट गोरा रंग तेजस्वी चेहरा आंखे मूंदे बैठा था । बडी दानी मुझमें सन्यासी लग रहा था । आर्या के मन में आपने पनकी भाव उठने लगे । दिल मेस नहीं की धारा फट रही थी । आर्या को आभास हुआ कि यही उसके पिता है । उसने प्लास्टिक कतार निकाला । बैठक के टाले में लगाकर घुमाया । तारा खोले की आवाज से सन्यासी चौका फॅमिली रहकर चुप रहने का संकेत क्या बाहर खडे खडे । उसने आगे झुककर कान में कुछ कहा । दोनों आश्वस्त हो गए । उसी पोजीशन में उन के बंधनों को शीघ्रता से काटा और चलने का इशारा किया आ रहे हैं । उन्होंने समझा दिया था की बैरक के गेट या बाउंड्री लाइन किसी को नहीं छोडनी होने से जम्प करके बाहर आ जाएँ । उन्होंने वैसा ही किया । और अब आर्या के पिता जी आचार थे किन्तु अभी बहुत लम्बा सफर बाकी था । आ गया । पिता के पैर छूने झुकी तो शिवानी झिलमिलाती आंखों से गले लगा लिया । उसने संक्षेप में आपको बताया की उसके दादा सोमेश भी पास वाली बैरक में कहती हैं । आर्या के आशा घाटी का नहीं था क्योंकि उसके दादा तो सत्यवान थे । जी मेरे घर पर छोड कर आई थी । यह समय धर कबूतर का या सोचने विचारने का नहीं था । बता एक सेकंड भी न काम आते हुए मैं दोनों बैरक नंबर नौ पर पहुंचे जहाँ सुनेश गए थे । आर्या ने उसे प्लास्टिक के तार से तारा खोला । सुमेश नींद में थे । आर्या ने बंधन काटे, शिवानी सोमेश को वैसे ही झुककर बाहर से सारी स्थिति बताई और निकल चलने को कहा । आश्चर्यचकित सों में हर बढाकर चलने को उधर हुए तो बैरक की चौखट पर पहले दिया और ये क्या, पूरे टाइम खाने में लाल नई टेन चलने लगी । ऍम बचने लगा । हार यहाँ की बकी रही गई ये क्या हो गया । उसने तुरंत अपने पॉकेट से बॉल के आकार एक स्मार्ट बम निकाला और वहाँ धोने का बम छोड दिया । एक सेकंड में वहाँ होम अच्छा गया ।
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