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Part 45 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भारत ऍम बकौल फौरन टपूकडा के पास जाकर उन्हें सारा किस्सा बताता है और फिर तब तो कडवा से पंद्रह हजार रुपये मांगता है । पंद्रह हजार रुपये को पहल पर खर्च करने से अच्छा है मैं नया गाने वाला ना ढुल्लू पैसे आसमान से नहीं गिरते अब तू कडवा बखपुर को नजर अंदाज करते हुए बोला । बकोरिया सुनते ही सेठ को गुस्से में देखते हुए वहाँ से नहीं करता है और बाहर निकलते ही वह खम्बे पर बडा सा पोस्टर लगा देखता है जिस पर लिखा है ऊषाराजे मैदान में आज से तीन दिन कुश्ती का आयोजन है । इनामी राशि बीस हजार रुपये की है । बहुत वहाँ से निकल जाता है और जान पहचान वाले दूसरे कुछ लोगों के पास जाकर भी मदद मांगता है और खुद के पास के सारे पैसे घटा करता है तो भी चार हजार रुपए ही होते हैं । सिर पकडकर बैठ जाता है और मान लेता है कि अब उसके हाथ में कुछ भी नहीं लगेगा । वो कुछ नहीं कर सकता । गोपाल के लिए निराशा इतनी हावी हो जाती है कि आंखें पूरी तरह भर आती हैं और सूखने लगते हैं । बाकी और के दिमाग में कुश्ती रहा है । पोस्टर भी बार बार दस्तक दे रहा था जिसमें ईनामी राशि बीस हजार लिखा था । लेकिन बाकी और ये सोचने भर से डर रहा था कि अगर गलती से कुश्ती मैदान में गया तो लोग उस पर हंसेंगे । उसके बेडोल शरीर का बेबाकी से मजाक बनाएंगे । जो चार लोग के बीच पूरे कपडे पहना हो तो जाने से डरता है । वे नंगे बदन चार सौ लोगों के बीच कैसे जा सकता है । थोडी देर तक अपने अंतर्द्वंद्व और अंतर विचारों से लडने के बाद बस और अपने साइकिल उठाता है और सीधा कुश्ती मैदान में पहुंचता है । अपना नाम कुश्ती लडने वालों ने लिखा देता है और कुछ देर बाद नकुर को कुश्ती के लिए तैयार रहने को कहा जाता है । बस और अपने शरीर की सारी हिमा जुटाकर अपने कपडे उतारने लगता है । लोगों के देखने भर से डरता भी है, कभी फिर से शर्ट पहन लेता है । कभी खुद ही अपने आप को देखकर असुखद महसूस करता है । लेकिन तभी बखपुर के नाम की घोषणा होती है और उसके साथ में लडने वाले के नाम की भी घोषणा होती है जिसका नाम सुनकर बक और काम हो खुला का खुला रह जाता है । घाट, पैर, गर्दन सब एक ही जगह पर अटक जाते हैं । क्योंकि जो बाहर से कुश्ती लडने वाला था उसका नाम है पप्पू कडवा । बकौल और पप्पू कडवा मैदान में आ चुके थे । बखपुर मैदान में बैठे सैकडों लोगों की आवाजें उन का सामना करने में बहुत असहज महसूस कर रहा था । बस कुरका लटकता, पेट लटकती छाती, हवा में हिलने वाले कपडों की तरह उसके शरीर में झूलती चमडियां मासके लोथडों से भरी मुक्केबाजी बाहर के समान मोटे मोटे पर मैदान में बैठे लोग अंकुर को इसी नजर से देखते हुए अलग अलग भद्दे नामों से तो कहार कर उसका मजाक बना रहे थे । ऍफ नहीं सीटी बजाकर कुश्ती शुरू करा देता है । हर पप्पू करवा नागपुर के साथ बच्चों की तरह लडता है । उसे टांग अडाकर छुट्टियों में बार बाहर नीचे गिर आता है बाकी और तब तू करेगा तो ठीक से पकडे भी नहीं पा रहा था । उसका चेहरा देखकर साफ पता लगाया जा सकता था कि लोगों के शब्दों से रह अंतर्मन थक चोटिल हो चुका है । जीतने के भाव से कई गुना चाहता उसके मन में शर्म का भुगतान माइक पर कमेंट्री चल रही है जिसमें बार बार कहा जा रहा है कि जीतने वाले को बीस हजार का इनाम थोडी देर में तब तू कडवा बकर को फाइनल पटक नहीं देकर कुश्ती जीत लेता है । लेकिन मैं बात कर के चेहरे कि असहज भाव को देखता रह जाता है । बस और फिर से कपडे पहनकर जल्दी से उस जगह से निकलता है और अपना लटका हुआ चेहरा लेकर अस्पताल पहुंचता है । डॉक्टर को चार हजार रुपये देकर ही भोपाल का इलाज शुरू करने की विनती करता है लेकिन डॉक्टर नहीं मानते । फौरन गोपाल को हॉस्पिटल से निकालकर दूसरे हॉस्पिटल में ले जाने के लिए कहते हैं । गोपाल की हालत इस हद तक गंभीर है कि देख कर लगता है जैसे मान लो बस कुछ ही पल का मेहमान हूँ । मकुर आपने कुछ न कर पाने और गोपाल की हालत देखकर स्ट्रेचर पर सर रखकर होने लगता है । तो तभी बखपुर के हाथ में एक आदमी दस हजार रुपये रखता है । हाँ और पैसे देकर अच्छा में पडता है । मैं पलट कर देखता है तो पैसे देने वाला कोई और नहीं । सेट पप्पू कडवा है तो नहीं नहीं गोपाल पर तरस खाकर यह मेरा मन खिल गया इसीलिए नहीं दे रहा हूँ बल्कि ये पैसे तुम्हारी हिम्मत का आएगा । कुछ कुश्ती के मैदान में तुमने इतनी असहजता इतने डर के बाद भी आने की हिम्मत दिखाई इतनी शर्म करने वाला इंसान मंगा बदन इतने सारे लोगों के सामने आ गया । मुझे बाद में अहसास हुआ तो मुझ से लडने में जरूर आ रहे हैं । लेकिन इतने सारे लोग जो तुम्हारी भली बुरी आलोचना कर रहे थे उन सारे लोगों से लडाई में तुम जीत गए और ये उसी की इनाम राशि है । वक्त तू करवा बकुल को कंधे पर शाबाशी देते हुए कहते हैं । बकौल दौडते हुए गोपाल का स्ट्रेचर अंडर हॉस्पिटल में लेकर जाता है, पैसे जमा करवाता है और फौरन गोपाल को अंडर एडमिट करके इलाज शुरू कर दिया जाता है । तीन चार दिन भी लेते हैं । गोपाल की हालत में सुधार आता है वो सेट पख्तू करवा गोपाल को सब कुछ बताते हैं कि कैसे बात कर के कारण उसकी जान बची है । ठाकुर ने उसके लिए कितनी बडी हिम्मत की सारी बातें सुनते सुनते गोपाल की आंखों में आंसू आ जाते हैं । मैं सेट पक्कू करना के कान में कुछ बोलता है और सीट जी फौरन फोन लगाते हैं और अपने बहन के सारे उपकरणों और बैंड वालों को हॉस्पिटल में बुला रहते हैं । सब अपना बजा लेकर भोपाल के बैठ के आसपास बजाना शुरू करने वाली स्थिति में बैठे और गोपाल के हाथ में माइक है । शायद मैं अपने दोस्त का शुक्रिया इस अंदाज में करना चाहता है । बाकी जो नीचे दवाई लेने गया है सब उसके आने का इंतजार कर रहे हैं । हाँ,

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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