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नक्सलियों के क्रूर कारनामे देखकर सरकार की आंखें खुल गई । उसने नक्सली समस्या के समाधान के लिए कमर कस ले । कठोरता से आतंकवादियों, अलगाववादियों एवं नक्सलवादियों के खिलाफ आक्रामक रुख अखित्यार कर लिया । गृहमंत्री का कहना था नक्सलवाद की तुलना कश्मीरी आतंकवाद या उत्तर पूर्व कि विद्रोही घटनाओं से नहीं की जा सकती । उन्होंने सुझाव दिया, इन माओवादियों से अलग तरह से पेश आने की जरूरत है । प्रधानमंत्री की अंतरंग परिषद का काफी चिंतन मनन चला । नक्सल वाज को सशक्ति समूल नष्ट करने के अभियान प्रारंभ करने से पूर्व उन्हें समझौते का एक मौका और देने के लिए कूटनीति का निर्णय लिए गए । कटाह प्रधानमंत्री ने एक बार फिर अपील की कि माओवादी हिंसा का रास्ता छोडकर सरकार से बातचीत के लिए आगे आएं । संवैधानिक प्रक्रिया से समस्या का समाधान निकाले । माओवादियों तक सरकार की युद्ध स्तर की तैयारियाँ की बनक पहुंच चुकी थी । बता खोट नहीं थी, के तहत उन्होंने सोचा कि अगर बातचीत के जरिये ही सत्ता में भागीदारी प्राप्त हो जाए तो खून खराबा करेंगे क्यूँ? इस प्रकार अगर हम सरकार का वार्ता का न्योता स्वीकार कर लेते हैं तो हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा और सम्मान भी बना रहेगा लेकिन हमारी मध्यस्थता करेगा कौन? वार्ता मध्यस्थता बिन्दु पर चर्चा करने से घूम फिर कर एक ही नाम ध्यान आया । सोमेश चटर्जी, सामाजिक कार्यकर्ता कोलकाता वाला छत्तीसगढ न्यायालय ने उसे नक्सली संबंध के कारण कैद की सजा सुनाई नहीं । सुप्रीम कोर्ट ने अभी कुछ दिनों पूर्व से जमानत पर यहाँ कर दिया था । बता हम दोनों पक्षों को वह स्वीकार था । वार्ता हेतु समय, स्थान दिन सब कुछ तय हो गया । दोनों तरफ से कूटनीति की तैयारियाँ हो गई । वार्ता के लिए निश्चित देना आ गया । प्रशासन में शांति वार्ता के लिए पूरी तैयारियां । बस कुछ पलों में नक्सली नेता पहुंचने ही वाले थे । कितने में तेज धमाकों की आवाज सुनाई पडने लगे । पता चला नक्सली नेता मुखिया चंदनसिंह एवं उनका सहायक श्याम वार्ता स्थल से मात्र सौ कदम की दूरी पर थे कि उनकी गाडी में बम विस्फोट हो गया । गाडी और उनके शरीर के परखच्चे उड गए । दूसरों को धमाकों से ठहराने वाले आज स्वयं धमाकों में समाप्त हो गए । ये साजिश किसने रची? पुलिस और प्रशासन तो वार्ता से समाधान चाहते थे । उधर नक्सली स्वयं भी वार्ता में रूचि दिखा रहे थे तो क्या मास्टरमाइंड नहीं है । सब राजा मुखिया से करवाया किन्तु उसे शिक्षा मिलने वाला था । विभिन्न चर्चाएं चलने नहीं । वास्तव में नक्सलियों में ही दो ग्रुप थे । नरम दल और गरम डाल गरम दल वार्ता के पक्ष में नहीं था । चंदनसिंह नरम दल काम किया था । किसी ने उसे मारा तथा दोष किस पर डाल दिया । जिसपर दोष डाला उसे नक्सली कैद में डलवा दिया ताकि पुलिस को सच्चाई पटाना चले । एक घंटे में सारा परिद्रश्य ही पलट गया । प्रशासन वार्ता की मेज पर इंतजार करता रहेंगे । सरकार की ओर से आई शांति वार्ता के प्रस्ताव का हिंसात्मक उत्तर देते हुए उन्होंने नागरिकों से भरी एक बस को जिसमें दस सुरक्षाकर्मी भी थे, हम से दर्शन स्टाफ पूर्वक उडा दिया । अब तो धैर्य की इम्तिहां हो गई । गृहमंत्री ने नक्सल वाज के विरुद्ध बिगुल बजा दिया । उन्होंने कडा रवैया अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया इन देशद्रोहियों ताकत के विरुद्ध लडाई में जो निर्णायक ढंग से पूरी तरह देश के साथ नहीं, उसका सीधा सीधा अर्थ माना जाएगा कि वे भारत के दुश्मनों के साथ हैं । गृहमंत्री ने पूरा दृढता से स्पष्ट कर दिया की अघोषित युद्ध का सामना दृढ इच्छाशक्ति द्वारा ही हो सकता है । बता वर्तमान में राष्ट्रहित है तो राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठने की आवश्यकता है । सरकार की ओर से गृहमंत्री की इस अपील पर आश्चर्यजनक रूप से सभी प्रमुख राजनीतिक दल एवं राष्ट्रवादी संगठन उनके साथ खडे हो गए । संकटकाल में ही एकजुटता और राष्ट्रपति सफलता का मूलभूत र सूत्र बनती है । इसलिए किनी अर्थों में संकटकाल भी उपयोगी होता है जिसके दौरान परिवारों में, समाजों में राष्ट्रों में एक सूत्रबद्ध होने की लहर उठती है । ये एक कल भाव उनके संगठन पक्ष है तो संजीवनी का कार्य करता है । नक्सलविरोधी अभियान में लगे पुलिस बल तथा अर्धसैनिक बलों को रणनीतिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा । उन्हें जंगल और गुरिल्ला युद्ध नीति के गुर सिखाए जाने लगे । नक्सलवादियों की शक्ति को अब कम नहीं आंका जा रहा था । सरकार अपना एक भी जवान खोना नहीं चाहती थी । कटाह पूरी तरह से कूटनीतिक तैयारियाँ प्रारंभ हो गई । प्रधानमंत्री की अगुआई में सुरक्षा तंत्र की सर्वोच्च मंत्रणा समिति की बैठक आयोजित की गई । गृहमंत्री, रक्षामंत्री, थलसेनाध्यक्ष, वायुसेनाध्यक्ष, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी उस बैठक में उपस् थित थे । सर्वप्रथम यही निर्णय लिया गया कि नक्सलवाद से सख्ती से निपटने के अलावा और कोई चारा नहीं था । नक्सलियों की कमर तोडने के लिए सेना की भूमिका पर भी अनौपचारिक बातचीत हुई है । सरकार के सभी आला ओहदेदार सेना के सीधे उपयोग पर सख्त पा रहे थे तो एक मत है । अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ सेना के उपयोग से बचना चाहते थे । कितने ही बिगडैल हूँ आखिर थे तो आपने ही भाई, वायुसेना, नौसेना एवं थलसेना का की परेड भूमिका पर आम सहमति थी । जैसे राहत एवं बचाव कार्यों के अलावा आपूर्ति मिशन में वायुसेना का सहयोग स्वीकार रहे । सुरक्षा परिषद के विशेषज्ञों ने नक्सली समस्या के समाधान है तो स्वतंत्र रणनीति द्वारा बनाई गई योजना का स्थिति, पिछले आक्रमणों के सबका लेते हुए सैन्य रणनीतिकारों के मार्गदर्शन एवं साधन वा संस्थानों का प्रयोग बढाने की जरूरत पर भी चर्चा हूँ । हथियारों के साथ सर्विलांस उपकरणों की खरीद एवं इस्तेमाल, साउंड सेंसर, नाइटविजन उपकरण इन फॅस जैसे साजोसामान की आवश्यकता पर विशेष बल देते हुए उन्हें सुरक्षा बलों के लिए शीघ्र उपलब्ध कराने का निर्णय हुआ । उच्च कोटि की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए कुछ अलग प्रकार के नियम तय हुआ है । अपने खुफिया टेंटर को सूचना और संचार माध्यमों से विशेष रूप लैस करके बेहतर कार्यक्षमता है तो विलक्षण पर एक्शन देते हुए मुखबिर थी । विश्वसनीयता की परख को प्रमुखता दी गई । इस प्रकार सुनियोजित कुशल रणनीति, फौलादी हौसले, मजबूत मनोबल, डर, संकल्प एवं प्रबल आठ सवाल के साथ समूचा देश एक साथ खडा हो गया । सत्ता प्रतिष्ठानों ने संपूर्ण संसाधन उपलब्ध करवा दिए । ऑपरेशन चाहे हिंद प्रारंभ हो
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