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अध्याय साथ दंगे खत्म हुए चार पांच दिन भी चुके थे । देश के बाकी हिस्सों की तरह राजनगर भी धीरे धीरे वापस से अपनी पटरी पर लौटने लगा था । कुछ संवेदनशील इलाकों को छोडकर शहर में कर्फ्यू पूरी तरह से हटा लिया गया था । पर दंगों के दिए हुए जख्मों के निशान शहर के सीने पर अभी तक मौजूद थे, जो शारीरिक तौर पर हो सकता है । कुछ दिनों में मीट जाने थे पर लोगों के दिलों से वह कब मिटने वाले थे ये कहना फिलहाल मुश्किल था । दुकानें पूरी तरह से खुल चुकी थी । बाजार में चहल पहल पहले जैसे होने लगी थी । परसों तक जो लोग आपस में प्यार से रह रहे थे और कल तक एक दूसरे के जानी दुश्मन बन चुके थे, वो लोग आज फिर से एक दूसरे से हासिल कर बातें कर रहे थे । एक दूसरे के गले मिल रहे थे । हालांकि सिर्फ गले मिलने से ही उनके दिलों में जमी हुई धूल पूरी तरह से साफ हो या नहीं ये पता नहीं चला था । पर वो कहते हैं ना जिंदगी कभी भी अपने अकेले के दम पर नहीं दी जा सकती है । जिंदगी जीने और चलाने के लिए सभी धर्म जातियों के लोगों के साथ की जरूरत पडती है । बस ऐसी सोच को आगे बढाकर लोग फिर से जीने की कोशिश में लगे थे और उनमें शामिल थी ट्रिप पालेगी तिक्री ट्रिप पहले यानी अनिल अजित और अगर की जोडी जो इन दंगों से अपना घर, परिवार सब कुछ हो चुके थे । वो तीनों इत्तफाकन एक दूसरे से मिले थे और फिर जैसे तीन जिस्म और एक जान हो गए थे । उन्होंने एक दूसरे के हमेशा साथ रहने और मरते दम तक दोस्ती निभाने का वादा किया था । इन चार पांच दिनों में उन तीनों दोस्तों के पास जो थोडे बहुत पैसे थे वो सारे उनके खाने पीने में खर्च हो चुके थे । कपडे भी उनके पास सिर्फ वही थे जो उनके बदन पर थे जिन्हें वह रोज रात को सार्वजनिक नल के पानी से अलग अलग हिस्सों में धो कर अपना काम चला रहे थे । दिन में वो लोग कोई काम धंधा तलाशते थे और रात होते ही सडक किनारे किसी फुटपाथ पर अपना आशियाना बना लेते थे । उन्होंने ढाबों में चाय जांच की थडियों पर और भी कई जगह पर काम मांगने की कोशिश की थी और उन लोगों का हुलिया देखकर सबने उन्हें चोर और बेकारी समझ करन का दिया लोगों ने उन्हें भी तो देनी चाहिए और काम नहीं दिया । हर जगह से उन्हें सिर्फ और सिर्फ नफरत और दुत्कार ही मिली । उस कल रात से कुछ नहीं खाया और जेब में पडे हुए सारे पैसे भी खत्म हो गए । अब क्या कर रही है? आज? अनिल ने कहा तुम सही कह रहे हो ये आज भूख के मारे यहाँ जान निकली जा रही है और हमें कोई काम भी देने को तैयार नहीं । साले कैसे लोग हैं? बी तो देने के लिए तैयार हैं पर काम नहीं । क्या अब हमें पेट भरने के लिए भीख मांगनी पडेगी? अगर ने गुस्से से कहा नहीं, आज ये कभी नहीं हो सकता है । हम लोग ठीक नहीं मांगेंगे । अनिल ने ब्रेड स्वर्ण देगा तो फिर क्या करें या हमें कोई काम नहीं दे रहा । अब भीख मांग कर पेट नहीं बडे । तो फिर क्या पेट भरने के लिए हम लोग चोरी करना शुरू करते हैं । दूसरों को लूटना शुरू कर देंगे? अजीत ने हताशा भरे स्वर में कहा मेरे बच्चों का तुम लोगों को ऐसे ही करना होगा । अभी वहाँ एक नई आवाज थी । उन्होंने मुड कर देखा तो पाया सरदार करतार से उनकी तरफ बढा चला था । सरदार करतार से उनकी तरह से बढा चला रहा था । आप क्या कह रहे बाबा आप हम लोगों को चोरी करने के लिए कह रहे हैं । अनिल ने आश्चर्य से पूछा था इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं है । मेरे बच्चों ढंगों में मेरी किराये की टैक्सी जल गई । उसका पैसा लौटाने में मेरे घर का बचा कुचा सामान बिक गया । मैंने कहीं जगह का मारने की कोशिश की । हर मेरी कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई । रिप्लाई नहीं मेरे खुद के रिश्तेदारों ने मेरी इस हालत पर मुझे सहारा देने के बजाय उल्टा मुझसे मोर लिया । जब तक मेरे पास पैसे थे तब तक वो मेरे अपने थे । पर दंगों में जब मेरा सब कुछ लुट गया वो लोग अब मेरी शकल भी पहचानने से इंकार करते हैं । अब मेरे पास भी और कोई रास्ता नहीं बचा । ऐसे भाई चोरी करने पर बाबा चोरी ये तो गलत बात है नहीं इसमें कुछ भी गलत नहीं । मेरे बच्चो, ये दुनिया बडी इस वाले में यहाँ मांगने से सिर्फ और सिर्फ दुत्कार मिलती है । उतना ही और अगर ये दुनिया तो मैं तुम्हारा नहीं देती है तो फिर उसे हासिल करने के लिए झेलना ही पडता है । अब तुम खुद अपने आप को ही देख लो । कल तक तुम लोगों का भी अपना अपना एक घर था, अपना परिवार था जिनके साथ तुम लोग बडी हंसी खुशी के साथ रहा करते थे । पर क्या हुआ है? वक्त के साथ जमाने ने तुमसे तुम्हारा सबको छीन लिया । जो जमाने नहीं तुम्हारे साथ क्या है? वही या तुम लोगों को जमाने के साथ करना होगा? नहीं बाबा, हम लोग नहीं तो अभी ऐसा कर सकते हैं और न ही कभी आगे ऐसा करेंगे । अगर हम भी उन लोगों की तरह करने लग गए तो उनमें और हमें क्या फर्क रह जायेगा? अजित ने कहा हाँ बाबा अजीत सही कह रहे हैं । वैसे अभी तो हम लोगों की अब मजबूरी है जिसकी वजह से हम लोग स्कूल नहीं जा पा रहे पर बाबा में स्कूल गए और वहाँ पर यही पढाई सीखा है कि हम बच्चे इस देश का भविष्य है । अगर हम लोग ही गलत रास्ते पर चल पडे तो देश का भविष्य भी गलत हाथों में ही जाएगा । अनिल ने अजित की बात को आगे बढाते हुए कहा हाँ बाबा चाहे जो भी हो जाए पर हम गलत राह पर कभी नहीं चल सकते हैं । अगर ने दोनों का साथ दिया तो फिर क्या करोगे तो लोग पेट भरने के लिए जब कोई तो मैं काम नहीं मिल रहा है तो जिंदा रहने के लिए फिर लोगों से भीख मांग होगे । करतारसिंह ने पूछा नहीं बाबा बेशक हमें कोई काम नहीं मिल रहा है पेट भरने के लिए हम भी कभी नहीं मांगेंगे । एक मांगने से अच्छा है हम लोग अभी मर जाए । वैसे भी अगर हमें कोई काम नहीं दे रहा है तो काम करने के मेहनत करके पैसे कमाने के और भी कई रास्ते हम चौराहे पर रुकने वाले लोगों की गाडियां साहब क्या करेंगे? कहीं सडक किनारे पर बैठकर लोगों के जूते पॉलिश क्या करेंगे? पर भी कभी नहीं मांगेंगे और नहीं कभी चोरी करेंगे । अनिल ने जवाब दिया हाँ बाबा, हम लोग अनिल के साथ है और ऐसा ही करेंगे । अजीत और अजगर ने अनिल की हाँ में हाँ मिलाते हुए का शाहबाज मेरे बच्चों मुझे इस बात की दिल से खुशी हो रही है कि इस मुश्किल घडी में भी तुम लोगों ने सच्चाई और ईमानदारी का दामन नहीं छोडा है । मैं वाहेगुरु से यही प्रार्थना करूंगा कि वह तो मैं सदाय सच्चाई के रास्ते पर चलाए रखें । मेरे बच्चों आज से तुम लोग फुटपाथ पर नहीं रहोगे । बल्कि मेरे साथ चलकर मेरे टूटे फूटे मकान में रहोगे । वो जैसा भी है पर तुम्हारे सर पर छत रहेगी और तुम लोगों को इस तरह से मेहनत करने की भी कोई जरूरत नहीं है । तुम लोगों के लिए मैं मेहनत करूंगा । बस तुम लोगों को स्कूल में भर्ती होकर चाय सरकारी स्कूल में ही सही पर अपनी पढाई पर ध्यान देना होगा । मुझे पूरी उम्मीद ना । एक दिन बडे होकर तुम लोग जरूर कामयाबी की मंजिल को पाल हो गए और अपने मृत माता पिता के साथ साथ मेरा नाम भी रोशन करूँ । नहीं बाबा, हम लोग बहुत बनकर आपके साथ नहीं रहना चाहते । जीतने का इसमें बहुत की कोई बात नहीं है । मेरे बच्चों नहीं बाबा आप कमाओ और हम लोग बैठ कर खाएँ । इस बात के लिए हमारा जमीन गवाना नहीं करता । अगर निकले बच्चों तो मुझे कुछ समझो या ना समझो पर तो उनमें पर तुम लोग मेरे बच्चों की तरह हूँ । बाबा हम भी आपको बाबा बोलते हैं तो वह दिल से बोलते सिर्फ जबान से नहीं पर फिर भी हम लोग आपका ये ऐसा नहीं ले सकते । हम लोग खुद मेहनत करके अपना पेट पालेंगे । कहते हुए अनिल थोडी देर के लिए रुका फिर उसने अजीत और रोजगार की तरफ देखा और अपनी बात को आगे बढाते हुए कहा वैसे आप अगर चाहे तो हम लोग आपके साथ आप के घर में रह सकते हैं । हम लोग अपना खर्च खुद उठाएंगे । दोस्त हाँ बाबा मिल सही कह रहा है हम लोग आपके साथ रह सकते हैं । इस बहाने से हमारे सर पर छत दिया जाएगी और हमें भी अपने बडे का प्यार नसीब हो जाएगा । अगर नहीं अनिल की बात का जवाब दिया हाँ बाबा ये दोनों सही कह रहे हैं इस प्रकार से आपकी बात भी रह जाएगी और हम लोग आप पर बहुत भी नहीं बनेगी जीतने का तुम लोग मुझ पर कभी भी बोझ नहीं रहोगे मेरे बच्चों पर जैसे तुम लोगों की इच्छा कम से कम । इसी बहाने से तुम लोग मेरे साथ तो रहोगे और मुझे भी एक परिवार का सुख मिल जाएगा । कहते हुए करतारसिंह आँखे छल चलाओ थे । उस दिन के बाद वो तीनों दोस्त करतार सिंह के साथ उसके घर में रहने लग गए । वो तीनों अन्य गरीब और अनाथ बच्चों की तरह राजनगर के चौराहों पर रुकने वाली गाडियों के शीशों को साफ करने के काम में लग गए । एक गाडी साफ करने के कोई पच्चीस देता । एक गाडी साफ करने के कोई पच्चीस पैसे देता तो कोई पचास पैसे दे देता हूँ । अगर कोई कोई दिलदार कार्य वाला होता तो कभी कभी उन्हें इसका एक रुपया भी मिल जाया करता था । दिन में वह फुटपाथ पर काम करते थे और साथ ही साथ रात में अपनी पढाई भी क्या करते हैं । हालांकि इस तरह काम करके उनकी ज्यादा कमाई नहीं होती थी । पर फिर भी वो इस काम से इतना तो कमा ही लेते थे कि उन्हें खाने पीने के मामले में करतारसिंह पर निर्भर नहीं होना पडता था और उनका काम चल जाता था । धीरे धीरे दिन यु ही गुजरते चले गए । राजनगर में हुए दंगों को चार पांच महीने से ज्यादा बीत चुका था और मई का महीना चल रहा था । राजनगर उन दंगों की कडवी यादों को बुलाकर अब कहीं आगे बढ चुका था । बेशक वक्त ने राजनगर से दंगों के निशान मिटा दिए थे, फिर भी ये वक्त उन तीन मासूमों के दिलों से ये दर्द पूरी तरह से नहीं मिटा पाया था । उन के दिल में कहीं ना कहीं अपने परिवार से बिछडने की एक कसक बाकी रह गई थी । ऐसे एक दिन दोपहर के करीब तीन बज रहे थे और सूरज आसमान में विराज होकर आग बरसा रहा था । गर्मी के मारे सबका बुरा हाल था । ऐसे मौसम में जब लोग अपने घरों और कार्यालयों में बैठकर कूलर और एसी की ठंडी ठंडी हवा खा रहे थे तब वो तीनों दोस्त राज नगर के चौराहों पर रोज की तरह अपना काम कर रहे थे । फर्क सिर्फ इतना सा था कि जहाँ अनिल और अजित चौराहे पर रुकने वाली गाडियों के शीशे साफ किया करते थे वहीं पर आजकल अगल चौराहे के पास सडक के किनारे फुटपाथ पर जूते पॉलिश करने लग गया था । तभी चौराहे की लालबत्ती पर एक लाल रंग की ही जमजम आती हुई कार आकर रुकी । कार के सारे शीशे बंद थे । कार की ड्राइवर सीट पर एक पचास पचपन साल का अधेड आयु का आदमी बैठा हुआ था । जिसके चेहरे से काइयां पंजाब तब पता हुआ महसूस हो रहा था । उसके बगल की सीट पर उसकी उम्र से आधी से भी कम उम्र की एक बीस बाईस साल की बहुत ही सुंदर युवती बैठी हुई थी । तभी ड्राइवर सीट की तरफ से उस बंद शीशे के आगे अनिल अपने एक हाथ से कार साफ करने का कपडा लिये आया और शीशे को ठक तक आने लगा । क्या उस आदमी ने हाथ के इशारे से अनिल से पूछा साहब, मैं आपकी गाडी के शीर्ष साफ कर दूँ क्या? सिर्फ पचास पैसे में अनिल ने अपने हाथ में पकडे हुए कपडे की तरफ इशारा करते हुए कहा ठीक कर दो । पर जल्दी कहते हुए उस आदमी ने अपना सर हमें हिलाया । ये सुनते ही अनिल ने फटाफट हाथ चलाते हुए गाडी के शीशों पर अपने हाथ में पकडा हुआ कपडा फैलाने लगा । थोडी देर बाद उसने ड्राइवर साइड का शीर्षक टक टक आते हुए अपना काम खत्म करने का इशारा किया । आदमी ने पहले सामने रेट व्यक्ति पर नजर दौडाई जिसमें उसकी तरफ के ग्रीन बत्ती होने में कुछ सेकेंड का समय था । फिर उसने अपनी तरफ का शीशा नीचे गिराया । कार के सामने ड्रॉर में से एक सिगरेट का पैकेट निकाला और लाइटर बरामद किया । उसने बडे इत्मीनान से सिगरेट के पैकेट में से एक सिगरेट निकाला और लाइटर से उसे सुलगाया तो आप प्लीज जल्दी करिए ना । इस तरफ की हरी बत्ती होने वाली है । अनिल चौराहे की सिग्नल की तरफ देखता हुआ बडे व्यग्र भाव से बोला अभी देता हूँ इतनी भी क्या जल्दी कहते हुए उस आदमी ने सिगरेट का एक गहरा काट लिया और फिर ढेर सारा दुआ निकालकर अनिल के ऊपर देखिए । मोहम्मद हुआ जाते ही अलेल समझ नहीं पाया और वो जोर जोर से खाते लगे । ये देखकर वहाँ आदमी और उसके साथ में बैठी हुई युवती जोर से हंसने नहीं । पूरा फॅमिली लडकी के मुंह से निकला । उस आदमी ने वो सीक्रेट अपने होटल से निकालकर नियुक्ति को थमा दिया और फिर अपना पर्स खोला पर सौ सौ के नोटों से खचाखच भरा हुआ नहीं । उसने पर्स में से एक सौ का नोट निकाला और अनिल की तरफ बढाये साहब पचास पैसे छूटता दीजिए या फिर पांच दस का कोई छोटा नोट दे दीजिए मेरे पास और में कि छोटे नहीं । अनिल ने सौ किलो को देखते हुए कहा यार छूटता तो नहीं है मेरे पास क्या हो तो तुम मेरा पर देख लो मैं यही लेना पडेगा । उस आदमी ने कहा साहब में गरीब आदमी हो सौ का छोटा कहाँ से दूर आपको? अनिल ने फिर का घर तुम्हारे पास तो का छोटा नहीं तो फिर ठीक है धूम आपने पचास पैसे अगली बार ले लेना । अभी वो देखो बत्ती भी हो गई है हूँ । उस आदमी ने सामने की तरफ देखते हुए हसते हुए अनिल से कहा और अपनी कार को स्टार्ट और अपनी कार को स्टार्ट कर दिया । साहब साहब अनिल कांच में देखते हुए उस आदमी ने अनिल की बात को अनसुना करके अपनी कार का शीशा ऊपर क्या और कार को रेल थी । साथ साथ मैंने पैसे कहते हुए आने उसकी कार के पीछे पीछे दौड पडा । उस आदमी ने रेयर शीशे में अपनी कार के पीछे भागते हुए अनिल को देखकर एक जोरदार था का लगाए पीछे अनिल छोटा समूह बनाए उदास खडा था बेच जा रहा है कार में बैठी हुई युवती के मुँह से निकला है ।
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