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अपेक्षा और अपराध के तालमेल से समस्याएं बढती है । किसी भी समस्या का तब तक समाधान नहीं होता जब तक की उसका मोल नहीं समझ लिया जाता । जो समस्याओं के सिर पर पैर रखकर चल सकता है, वही समस्याओं को पछाड सकता है । अपने प्रिय शिवा की खोज खबर लेने के लिए प्रतिदिन नक्सली समस्या से जुडी छोटी से छोटी खबर अब्दुल्लाह साहब एवं पाठक जी पूरे ध्यान से पढते हैं । उन्होंने विभिन्न समाचारपत्रों में देखा और अध्ययन किया की दिनों दिन नक्सलियों के हौसले बढते जा रहे थे । उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला किया । उसके बाद कोरापुर जिला मुख्यालय पर हमला किया और हथियार लूट लिया । इस घटना से अभी उभरे नहीं थे । कितने में जहानाबाद में हमला कर के तीन सौ पचहत्तर कैदी छुडा लिया पर इतने भर से इन दुर्दांत दस्त हूँ का जी नहीं भरा । उन्होंने छत्तीसगढ में रानीबोदली में पचपन जवानों की हत्या कर दी । ये आप सूखे भी नहीं थे कि दिन तेवाडा जेल पर हमला बोलकर तीन सौ पांच कैदी छुडवा ले गए । अब सिर्फ सुरक्षाबल ही नहीं आम नागरिकों को भी उन्होंने निशाने पर ले लिया । राजधानी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों को बंधक बनाना उनका खेल हो गया । हिंसा का गहन टांडा रचते हुए हैं । उन्होंने आंध्र प्रदेश पुलिस है । अडतीस कमांडो को उडीसा में मार डाला । गढचिरौली में सोलह पुलिस कर्मियों को उडा दिया । पश्चिम बंगाल के सिल्दा कैंप में चौबीस जवानों को मार गिराया । नक्सली एक के बाद एक हिंसक वारदात कर रहे थे । प्रशासन उन की समाप्ति के लिए सुरक्षा बलों एवं पुलिस को भेजता तेज आवाज जवान शांति स्थापना है तो इन आतंकियों को खत्म करने के लिए जंगलों में अंदर तक घुसते । वहीं योजना बद्ध तरीके से यह जुल्मी जल्लाद देश के रक्षकों को ही भक्षण कर लेते हैं । उनका मूल्यों देश था भाई एवं आतंके वातावरण का निर्माण करना । आम नागरिकों को लगने लगा कि जब हमारे रखवालों का ही है, माओवादी सहार कर रहे हैं तो हम कहाँ तक बचेंगे । इसी विचार से अनेकानेक आदिवासी नक्सली कैंप में शामिल हो रहे थे । फिर अचानक उन्होंने छह सौ नागरिकों को अलग अलग जगहों पर मार डाला । नक्सली सरे आम शिकारी बनकर घूमते और सुरक्षा बलों, पुलिस कर्मियों, वन एरिया नागरिकों का शिकार करते हैं । माओवादी सिर्फ जान माल की दुश्मनी नहीं थे, बल्कि इन क्षेत्रों में सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों को भी बाधित करते हैं । पिछले दिनों बिहार में चंदौली के निकट निर्माण एजेंसी की मशीनों को नक्सलियों ने जला दिया था । इस भाई से बागमती नदी के दाहीने तटबंध का निर्माण भी ठप हो गया । ये बिहार के शिवहर जिले के डुब्बा घाट से लेकर सीतामढी जिले के अडतीस किलोमीटर तक बनना था किन्तु नक्सलियों के आतंक के चलते इसे रोकना पडा । ऐसा इसलिए कर रहे थे क्योंकि उनका सोचना था कि अगर इसी तरह विकासकार्य होते गए तो उन तक सुरक्षा बलों की सीधी पहुंच जाएगी । सैकडों स्कूलों को तो बम से ही उडा दिया था । कॉलेजों के शिक्षकों से विकास के नाम पर उसके रिटर्न से पच्चीस प्रतिशत राशि का सहयोग मांगा गया । इसका कारण एक ही था कॉलेज बंद हो जाएगा । वीडियो को मारने की धमकी, जिला अधिकारी को मारने की धमकी, सीआरपीएफ पर फायरिंग । यह सब तो उनके रोजमर्रा के काम हो गए । उनकी ही मत इतनी बढ गई कि माइंस ग्रुप वाहनों को उडाने की तकनीक है । उन्होंने प्राप्त कर लेंगे । मुख्य बात यह थी उन्होंने खेल से मिलकर जासूसी ऑपरेशन, शैडो नेटवर्क द्वारा भारतीय गोपनीय दस्तावेजों में सेंधमारी और साइबर जासूसी द्वारा अनेक संवेदनशील सूचनाओं के अलावा नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा हालात और माओवादियों एवम नक्सलियों के खुफिया मूल्यांकन भी उन्होंने हासिल कर ली है । इस प्रकार नक्सलियों ने बेहतर खुफिया अटेंड गोरेला रणनीति के साथ ही आधुनिकतम तकनीक के इस्तेमाल में भी महारत हासिल कर दी । अनेक सुरंगों में प्रेशर बम लगती है । नक्सली अपनी ताकत बढा रहे थे । इस सारी कवायद में मैं अनशन हिंसा के द्वारा सत्ता हासिल करना चाह रहे थे । हिंदुस्तान को माओवादी देश के रूप में देखना चाह रहे थे । देश के अंदर ही मुझे इस धमासान से प्रशासन हिल गया । इस घोषित युद्ध को रखवाने की अनेक योजनाएं बनाई गई । सर्वप्रथम सरकार ने इनके बढते कदम रोकने का प्रयास का श्री गणेश करते हो गए वार्ता का रास्ता अपनाने का भी विचार किया हूँ । लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नक्सलियों से अपील की कि वह सरकार के साथ बातचीत करें । पहले तो नक्सली तैयार ही नहीं हुए । उनका कहना था कि कौन जाएगा सरकार से बातचीत करने । फिर सामाजिक कार्यकर्ता सोमेश की मध्यस्थता पर नक्सली राजी हो गए क्योंकि सोमेश के केंद्रीय राजनीति में भी अच्छी पैठ थी । नक्सलियों के प्रति तो उसकी सहानुभूति थी । गृहमंत्री ने चिट्ठी भेजकर सोमेश चटर्जी से अनुरोध किया नक्सलियों से बातचीत में मध्यस्थता करें । सोमेश ने सरकार का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार लिया । उसने नक्सलवादियों के नाम एक पत्र लिखा । उन्हें समझाते हुए वार्ता की मेज पर आने का न्योता दिया । अपने विश्वस्त सूत्रों के साथ उस नहीं है । पत्र माओवादी पार्टी के महासचिव के पास पहुंचा दिया । उच्च शिक्षित बहुत तेज दिमाग के धनी सुमेश के पत्र की शैली बहुत अच्छी थी । सरकारी मुहर लगी थी तो शक की कहीं गुंजाइश ही नहीं थी । महासचिव ने चिट्ठी वार्ता को अपील पार्टी के अध्यक्ष तक पहुंचाना उचित समझा । खुफिया पुलिस निरंतर उसके पीछे थी । फॅमिली मास्टरमाइंट तक पहुंचना चाहती थी । महासचिव पीयूष को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हो गया । उसे सतर्क देख खुफिया पुलिस ने उसका काम तमाम कर दिया क्योंकि यह गोपनीय आता है । जुडा मामला था । पीयूष की मौत के बाद वार्ता का दौर थम गया । संवाददाताओं ने जब सोमेश चटर्जी से वार्ता की प्रगति को पूछा तो उसने साफ साफ बता दिया कि जब तक सरकार अपनी विश्वसनीयता साबित नहीं करेगी तब तक मैं उन्हें वार्ता के लिए राजी नहीं कर सकता । सरकार मुझे माध्यम बनाकर माओवादी नेताओं को निशाना बनाना चाहती है, लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा क्योंकि हिंसा चाहे माओवादियों की ओर से हो या सरकार की ओर से, मैं उसका पक्षधर नहीं हूँ । कहा तो सोमेश सरकार का प्रतिनिधि उसका विश्वासी व्यक्ति था जो उनकी एवं नक्सलियों के मध्य बातचीत करके समझाने की ताकत रखता था और अचानक उसका उल्टा हो गया । नक्सलियों से हमदर्दी रखने के जुर्म में उसे सरकार ने पुना कैद कर लिया । राष्ट्रद्रोह के अपराध में उसके साथ ही सुब्रतो राय एवं उसे दोनों को उम्रकैद की सजा हो गई । अब सारा दारोमदार पुलिस एवं सेना पर ही था । नक्सलवादियों पर नकेल कसने है तो एक विशेष सैन्य अभियान ऑपरेशन टेरर हंट का शुभारंभ किया गया । अर्धसैनिक बलों के अलावा राज्य पुलिस को भी सम्मिलित करके कुल मिलाकर पचास हजार जवानों की फोर्स को तैयार किया गया । प्रारंभिक दौर में ऑपरेशन टैरर हंट को छोटी मोठी सफलताएं हाथ लगने लगी । सुरक्षाबलों में आत्मविश्वास बढा केंद्र सरकार वराज सरकार की एक उच्चस्तरीय समन्वय समिति बन गए । उसी के अनुसार नक्सलियों के खिलाफ आक्रमण है तो साझा अभियान चलाया गया । बडे ऑपरेशन हेतु वायुसेना से प्राप्त टोही विमानों के नक्शे के आधार पर रास्ते तय किए गए । खुफिया तंत्र पूर्ण ताहा गोपनीयत विश्वासी मच चुस्त दुरुस्त हो गया । सुरक्षा बल एवं स्थानीय पुलिस सब चौकन्ने थे । पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार यात्री में लगभग दस चालीस पर कंपनी ने मुझे क्या तीन चार किलोमीटर चलने के बाद सघन जंगलों में बहुत सी झोपडियों की आकृतियां दिखाई देने लगी । तूने सावधानी के साथ सुरक्षा बलों ने संपूर्ण क्षेत्र को घेर लिया । अब एक और झोपडीनुमा घर में घुस कोर्स कर सुरक्षाबलों के जवान नक्सली आतंकियों का खात्मा कर रहे थे । तीन ओवर गोलियों के बाहरी प्रतिरोध की बाहरी चक्र संभाल रहा था । इस प्रकार दो तीन घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग लडाई चलती रही । शिवा की आंख पहली गोली की आवाज से ही खुल गई थी । उसे लगा होना हो भारतीय सुरक्षा बल के जवान आ गए । उसके दिमाग में आया । बाहर जाकर देखो अपना परिचय तो शायद बन जाऊँ । तुरंत ही दूसरा विचार आया । कौन समझेगा उसकी सच्चाई । वह तो मौत के घाट उतार दिया जाएगा । अब क्या किया जाए? धीरे दी है कि सेट कर मैं हाथ कटे बच्चे तक पहुंचा, उसे उठाया । कान में कुछ कहा । बच्चे ने शिवा को बंधनमुक्त कर दिया । झोपडीनुमा घर के अंतिम छोड तक दोनों झकझोरकर दौडते हुए पहुंचे तो देखा सामने उस नक्सली अफसर की लाश पडी थी जिसके बच्चों को शिवा बढा रहा था । पास ही उसके दोनों बच्चे लहूलुआन अंतिम सात से खेल रहे थे । शिवाल एक्शन के लिए थोडा गया । उसके कानों में अवसर की आवाज पहुंचने लगी तो मेरे बच्चों को शिक्षक करो । मैं उन्हें बाहर भेजूंगा । नक्सली नहीं बनाऊंगा । उस आतंकवादी के हृदय में भी एक आम पिता का दिल था । जब आप अपने बच्चों को आधुनिक सभ्य समाज का अंग बनाना चाहता था, नाकि एक हिंसक समाज का । अगर हिंसा का अंतिम सत्य होता तो अफसर बच्चों को अहिंसक बनाने का परीक्षण क्यों दिलवाता? ये ज्यादा सोच विचार का समय नहीं था, न ही भावुक होने का समय था । शिवा बच्चे के कान में पसंद आया । बच्चे ने वापस शिवाय कुछ कहा । दोनों फुर्ती से झोंपडी के बीच बने चोर राष्ट्र की ओर बढे । बच्चा तुरंत शिवा को वहाँ से निकाल ले गया । थोडी दूर पहुंचते ही उन्हें तेज धमाकों की आवाज सुनाई दी । जैसे अनेक शक्तिशाली बम एक साथ फटते हूँ । पांच घंटे तक चली इस कार्यवाही में लगभग पांच दर्जन नक्सलियों को मार गिराया गया । सुरक्षा बल के पांच जवानों को भी अपनी शहादत देनी पडी । प्रातः सूर्योदय से पूर्व नक्सलियों का या क्या पूरी तरह से तबाह हो गया? निस्संदेह सुरक्षाबलों को एक बडी सफलता हासिल हुई थी । इससे उनके खास ले और बुलंद हो गए थे ।
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