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Part 35 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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परोपकार विशाल राजमार्ग हैं जो व्यक्ति को शांति और सुख की उच्च मंजिल तक पहुंचा जाता है । परोपकारी व्यक्ति समाज के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं क्योंकि वो समाज के लिए अपना बलिदान करने का उदास बावन रखते हैं । नक्सली कैसे सबको निकालकर सेवा ने संतोष की सांस ली । अब पाठक जी की ओर से नजर हटाकर है । तेजी से दौडने को अवगत हुआ । तभी उसने देखा कि घंटा सी चाकू ढाला । वापिस तौलिए दस बारह खूंखार लोगों ने उसे चारों ओर से घेर लिया था । मैं कुछ सोचता समझता इतने में एक व्यक्ति ने उसकी कमर बढ चाकू की नोक लगाई । दूसरे ने कनपटी पर पिस्तौल लगा दी । तीसरे नहीं गले पर गंडासी रखती । शिवा का हाथ का पड गया । उसकी माँ द्वारा पहनाया गया जीवन रक्षक होती का ताबीज आज उसके गले में नहीं था । उसका दिल धक कर रह गया । अपनी परिस्थिति समाचार तो कुछ बोलता हूँ । इतने में चौथे ने पीछे से पकडकर नाक में कुछ सुनाया । उसकी आंखों के आ गया अंधेरा छा गया । अगले ही क्षण सेवा भेज सदर जमीन पर गिर पडा जाली का बनायेंगे हो रहा था जिसमें शिवा को ढाल का एक आदिवासी ने कंधे पर घटने की तरह डाला और वह सब सघन जंगल की ओर चल पडे । करीब दो घंटे चलने के बाद घने पेडों के नीचे छिपी हुई तो बढिया सी नजर आएगा । वहाँ उनका सीनियर अफसर इंतजार कर रहा था । दहशत का ठक यहाँ पहले ही पहुंच चुका था । कुछ खाद्य सामग्री उन्होंने अपने यहाँ उतारी । बाकी ट्रक में ही रहने दी और अवसर बोला । बॉस का हुक्म है कि सारा सामान लाल चौकी पर भिजवा दिया जाए । सात वाले एक आदिवासी ने वो बेहोश पडे । शिवा की तरफ इशारा किया । इसको भी ट्रक में डालना है क्या? अफसर पास आया । उसने गहरी नजर सेवा पर डाली । नहीं नहीं क्यों? उसके सौम्य व्यक्तित्व ने उसे प्रभावित किया और बोला इसे ट्रक में नहीं डालना है । यही हमारी सुरक्षा में इसे रखो । जब वो देखा जाए तो मेरे पास लेके आना । करीब पांच छह घंटे बाद शिवा को होश आया । उसने आधे खोली तो पाया कि उसके हाथ पैर बंधे हुए थे । सिर उसका एकदम भारी था । अभी पूरी तरह बेहोशी टूटी नहीं थी । पहरेदार ने अवसर को सोचना दी कि कैथी को हो शादिया सेवा को अवसर के समक्ष उपस् थित किया गया । शिवानी सामने वाले की आंखों में झांका और सीधा सवाल किया भाई तुम कौन हूँ? इन घने जंगलों में क्या कर रहे हो और यहाँ केवल आए हूँ । क्या चाहते हो? मुझसे अवसर बोला आज तक मेरे सामने किसी के जवान खोलने की हिम्मत नहीं हुई । तुम धनाधन बोले जा रहे हो तो मैं डर नहीं लगता । शकल सूरत से तुम अमेरिकी लग रहे हो ना चीनी तुम भी भारत माता के पुत्र मैं भी भारतीय का पुत्र आता । हम दोनों भाई वाई हुए । अरे अपने भाई से डर कैसा । अब तुम अपने बारे में भी कुछ बताओ । नाम हमारा होता है । कांग्रेस हमने पूंजीपति, सामंती वर्ग, वह सूदखोर, बनियों के सोशल से बचने का रास्ता आदिवासियों को दिखाया है । इसलिए जनता हमारे साथ है । हिंदुस्तान में इतने जन आंदोलन होते आए हैं । क्या कभी तुमने माओवादी विरोधी जन आंदोलन देखा या सुना है? सच्चे जनसेवक है हम । हमने सीधे सरल ग्रामीणों को पुलिस एवं प्रशासन के उत्पीडन से बचाया है । पुलिस एवं प्रशासन जनता की सहूलियत के लिए होते हैं । खन्ना के उत्पीडन के लिए तो मैं ऐसा नहीं सोचना चाहिए करवाने का अरे मेरे सोचने से क्या फर्क पडता है । वास्तविकता इससे भी बढकर हैं । कुछ दमनकारी कानूनों और विभिन्न राज्यों में लागू इन की धाराओं जैसे छत्तीसगढ स्पेशल पब्लिक ॅ और महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ॅ की मदद से माओवाद को लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रमुख और चार बना दिया गया । ढाई कम रहे अपना चिंतन व्यापक करो । कानून रक्षक होता है, भक्षक नहीं । कानून जीवन सुधार का हो जा रहे हैं । दला घुटने का हथियार नहीं मैंने करीब से देखा है । सरकार दमनकारी उपायों का विकास की पहल के साथ जोडकर आगे बढाने की बात कहती है । इसी के नाम खुले हाथों फंदे बांटने और प्रशासन को मनमानी की छूट मिल जाती है । ये तो बहुत अच्छी बात है । इसी से आदिवासियों का जीवन स्तर सुधरेगा पर कानून व्यवस्था भी मजबूत होगी । बहुत बोले हो तो इन्हीं कारणों से तमाम जिला प्रशासनों में अपने अपने जिलों को माओवाद प्रभावित घोषित कराने की होड लगी है । उनके निहित स्वार्थों से हमें सीधा फायदा होता है । अरे हम तो आदिवासियों के लिए ऐसा कुछ कर रहे हैं और हम ने स्थानीय जनता को भी अपने हाथ के लिए लडाना सिखाया है । यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन देश विरोधी माओवादी विचारधारा क्यों फैला रहे हो, यह काम तो हमें करने की जरूरत ही नहीं पडी । सत्ता के दलालों ने स्वता ही कर दिया । उन्होंने राष्ट्रवादी संगठन जो वास्तव में आदिवासियों में देश प्रेम की भावना जगह रहे थे, उन्हें पसंद भाग पर ला दिया था तथा चर्च के धर्मांतरण अभियान को पोषण दिया तो इसीलिए ही देश के कई इलाकों में माओवादी, नक्सली एवं चर्च का घालमेल आक्रमण नहीं है । इस साजिश को पहचानने की आवश्यकता है । क्या करोगे पहचानकर प्रशासन वा सत्ता पक्ष की सांठगांठ है । कई जगहों में नेता हमारे कमांडरों की मदद से चुनाव जीते हैं । हमारे पास सत्ता की ताकत है, हथियारों की ताकत है । सोचो भाई सोचो, राजनीतिक दल सिर्फ आपका इस्तेमाल कर रहे हैं । मैं भी जनविरोधी नीतियों को आगे बढाने के लिए हम रेड सिर्फ इन ताकतों से लडाई नहीं जीती जाती तो हम समझते क्या हो हमारे बारे में हम प्रतिवर्ष अठारह सौ करोड की उगाही करते हैं । विदेशी आकाओं से पैसा का प्रशिक्षण मिलता है वो अलग । अभी हमने सिर्फ पच्चीस प्रतिशत पर कब्जा किया है । आने वाले वर्षों में पूरी सत्ता हमारी होगी । ये सपना देखना भूल जाओ । इस तरह से घात लगाकर हमले और अपहरण से तुम अपना कार्यक्षेत्र और शक्ति भले ही बडा लो लेकिन सत्ता नहीं मिलेगी । तो माओवादी नए बदलावों के अनुसार नहीं ढाल होगे तो नायक और बलिदान के निजी कारनामों के बावजूद राज्यव्यवस्था तुम्हारा इस्तेमाल करती रहेगी । हम व्यापक आंदोलन के साथ हिंदुस्तान में क्रांतिकारी बदलाव कर देंगे । आप है इस तरह के आंदोलन कंबोडिया, वियतनाम, रोमानिया आधी जिंदगी देशों में हुए हैं । वहाँ अंतत आह कंगाली ही हाथ लगी । माओ और पोल पाठ ने लाखों लोगों की लाशें गिराकर खुशहाली लाने का छलावा किया, लेकिन वो भी आत्मघाती साबित हुआ । भाई क्या? तो मैं इस अराजकता की पुनरावृत्ति चाहोगे । वंचितो दलितो हूँ, आदिवासियों को उनका हक दिलाना और हम अपना अधिकार पाना चाहते हैं, वो पाकर रहेंगे । इसके लिए मारकाट का रास्ता नहीं । दोस्त वार्ता का रास्ता है तो लोकतांत्रिक तरीके से बात रखो, अपनी शक्ति अपने संस्थानों का उपयोग करो उस समूची नीति प्रणाली को खान फेकने के लिए जो आम लोगों की जिंदगियों से खिलवाड करते हैं । इस भूमिका के लिए जिस वैचारिक साहस और राजनीतिक कल्पनाशीलता की जरूरत है, क्या तो माओवादी उसका परिचय दे पा होगी? शायद नहीं । फिर क्यों इस लाल कानून के चक्कर में तुमने अपना घर परिवार, सुख, शांति, अमन चैन सबको दिया । पता नहीं किस गोली पर तुम्हारा नाम लिखा हूँ । ढाई हिंसा से क्या मिलने वाला है? शांति बहाल संविधान में विश्वास करके ही हो सकती है हूँ । तुम भाषण अच्छा दे लेते हूँ मेरा विचार पहले तो तो मैं अपना मुखिया के पास भेजने का था तो मैं काट के फेंक देता हूँ और तुम बहुत पढे लिखे इंसान नजर आते हो । यहाँ कोई स्कूल नहीं है क्योंकि लगभग तीन सौ स्कूलों को हमारे साथियों ने काम से उडा दिया । उन बच्चों को हमने बन्दों के थमा नक्सली प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया । किंतु मैं अपने बच्चों को नक्सली नहीं बनने देना चाहता हूँ । उन्हें सुख भगवान शिक्षित नागरिक बनाना चाहता हूँ । आता था गोपनीय तरीके से मेरे दो बच्चों को तुम शिक्षित करने का जिम्मा लोग तो तुम्हारी जान बचाने की जिम्मेदारी मेरी हाँ यहाँ भी किसी को कानोकान खबर ना लगे । फिरौती वसूलने तो कैदी बनकर यहाँ रहोगे । बोलो क्या इच्छा है तुम्हारी अंडा क्या चाहे तो आंख शिवानी तुरंत हाँ कर दी । अब उसके हाथ पैर बांधकर कैब रखा जाता है । जब भी समय होता बच्चों को एक साथ बुलाकर उसके सामने बैठा दिया जाता है । दोनों बच्चे एवं दस वर्ष की उम्र के थे शिवा । उन्हें गणित की गिनती, वही साहब किताब हिंदी वह अंग्रेजी का ज्ञान देने लगा । अवसर के दो बच्चे के अलावा एक सफाई कर्मचारी का बच्चा भी बहुत जिज्ञासु था । प्रयास करके बहुत अच्छी हिंदी बोलना भी सीख किया था । फिर एक दिन पास आकर बोला आपको ये लोग बांधकर क्यों रखते हैं? आपको लेना चाहोगी आपके हाथ खोल दू । शिवानी इशारे से हाँ कहा तो बच्चे ने हाथ के रस्सी खोल दी । शिवानी पैर की रस्सी भी खोल नहीं । दोनों गुरु शिष्य थोडी सी दूर भाग कर गए । इतने में खूंखार आदिवासी ने दूर से ही देख लिया । तुरंत निशाना लगाकर तीन मारा । एकदम अचूक निशाना वीरशिवा के पैरों में लगा । वो वहीं गिर गया । आदिवासी तुरंत उस बच्चे के पास आया और बोला, किसान से तुम्हें इसके बंधन बोले । जैसे ही उसने हाथ आगे क्या दाया आठ खर्च दरांती एक बार से ही उंगलियां हथेली से अलग हो गई । खून की धारा होती है । बच्चा डर से बिलग उठा, पर उस अत्याचारी पर बच्चे के रखने का कोई असर नहीं था । शिवा को धमकाते हुए आदिवासी बोला फिर कभी भागने की कोशिश करोगे । तुम तो मरोगे ही नहीं । इस बच्चे को भी झांसे मार दूंगा । शिवा मन मसोसकर रह गया । आदिवासी उन दोनों को घसीटते हुए वापस वही लिया । वहाँ पर उसके दोनों हाथों पैरों को बांध दिया तथा शिवा के पैर पर और लडके के काटे हाथ पर जडीबूटी लगाई । फिर धमकाया । आगे से कभी भागने की चेष्टा के तो दोनों की मौत निश्चित है ।

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लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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