Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
Part 34 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

Part 34 in Hindi

Share Kukufm
2 K Listens
AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
Read More
Transcript
View transcript

भारत छोटे नकुल लेटे लेटे यही सोचता रहा कि क्या हुआ होगा । उस दल आएगा तो मैडम के पास पहुंची होगी । है नहीं, उन्होंने ले ली होगी नहीं, एक और नहीं सुबह हो चुकी थी । गर्म पानी में शहद और नींबू मिलाकर लिया गया था । बस हरी चाय पीकर मैदान में भी पहुंच चुके थे । पर इन सबसे ज्यादा जरूरी चीज की मैडम कैसी होंगी, वो अभी मैदान में आएगी या नहीं । यही सब चीजें चल रही थी । बकौल के मन में तभी दिखा जी चीज बिल्कुल नहीं देखी । पूरी महिला थोडा आगे बैठी थी । दो बार वहाँ पलट कर बाकुल को देख रही थी और स्माइल कर रही थी । बकौल तो कुछ समझ नहीं आ रहा था तो उसने भी बदले में इस्माइल दीदी जब बाहर बार पलट की स्माइल दे रही थी, तब ठाकुर को एक बात समझ जाएंगे की शायद जीते ने बता दिया होगा के ऋतु मैडम के लिए दवाई उसके पापा ने नहीं मैंने दिए । इसीलिए शायद है हस रही हैं बस और और ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया जब उसने जीते की मम्मी को ही अकेले मैदान में आते देखा ऍम नीचे नहीं आएंगी । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । क्या हुआ हूँ एक पल के लिए उसने बूढी महिला नीतू से या जीतते की मम्मी से पूछना चाहा हूँ लेकिन हिम्मत नहीं हुई और खुद ही आज ऋतु मैडम के कमरे में जाने का पक्का विचार बनाया । जब सबकी मैदान का चक्कर लगाने की बारी आई तो बक और चक्कर लगाते लगाते ही चुपके से धर्मशाला में घुस गया क्योंकि मैदान से बिल्कुल नदी हुई थी इसलिए उसके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं हुई । हम बात कर के पैर उसके दिमाग में बस से डर के मानो खिलाफ हो चुके थे और है ना चाहते हुए भी बकर को बिना रोके ऋतु मैडम के कमरे तक ले जा रहे थे । बकौल के मन में अब अपनी पहचान छिपाने से ज्यादा बढा डाॅॅ ज्यादा ना बिगडने का था पर ना यहाँ ध्यान कौन रखता हूँ । लेकिन मेरे तो मैडम के दरवाजे की दहलीज पर कदम पहुंचने ही रुक गए । धडकने इस कदर तेज हो रही थीं जैसे फांसी की सजा मिली हो और बहस फंदे तक पहुंच गया हो । हिम्मत करके नकुर ने चार कदम दहलीज के अन्दर की तरफ बढा दिया । बकौल वहीं खडा देख रहा था की ऋतु मैडम सच में आराम कर रही थीं । कर आँखे बंद थी । उनकी कुर्की तेज देश चल रही धडकने थोडी कम हुई है जानकर की अभी मैडम ने उसे देखा नहीं मैंने जमीन पर बिछे बिस्तर पर लेटी थी और अपने आधे शरीर को चादर से ढका हुआ था । एक खास मोडकर अपने सिर के नीचे दबाया हुआ था और दूसरा हाथ कमर में होता हुआ नीचे पैरों तक जा रहा था । अभी मैडम ने बिना खोले अपना वही कमर से लगा हाथ कान के ऊपर हवा में हिलाया पहनो । कुछ होती चीज को वहाँ से हटाया हूँ । ऐसे थोडी देर बाद ऐसे ही लाया हूँ । अबकी बाहर मकुर ने देख लिया एक मक्खी मैडम को परेशान कर रही थी । मैडम ने एक दो बार और उसे भागने की कोशिश की लेकिन वह नहीं गई । बखपुर करना तो बहुत को चाहता था लेकिन मैडम के इतने नजदीक जा नहीं सकता था । अगर आज उसे मैडम कुछ पल के लिए नजदीक आने की इजाजत दे दें तो बस क्रिस मक्खी को मसलकर इसकदर खाक करना चाहता है कि उसकी आने वाली सात पीढियों कि मक्खियाँ भी ऍम को परेशान करने से पहले मौत को याद कर लें । अवश्य बार उस मक्खी ने वॅाक उठा दिया ऍम जी की आठ खुल गई खुलते ये उनकी नजर बकर पर पडी ऍम नहीं । जैसे ही बकर को देखा ऍम बैठी हूँ और अपना दुपट्टा अपने कंधों पर सबसे पहले डाला । धक कुर्कीहार मेडल ने दुपट्टा डालकर पूछा । उनके चेहरे पर जरा भी पुरानी बातों को लेकर कोई नकारात्मक भाव नजर नहीं आ रहा था । मैं तो जीते की मम्मी को देखने आया था रे नीचे मैदान में देखी नहीं अपने कमरे में कुछ लेने जा रहा था तो सरदार जी ने कहा कि जीते की मम्मी को भी देखा ना, पर यहाँ तो आप देखी । बकौल हडबडाहट में जो दिमाग में आया है झूठ बोल दिया हाँ, लेकिन वो नीचे गए हैं मैदान में । मैडम ने तुरंत जवाब दिया वैसे आप कितने दिनों से हैं? शिविर में दिखी नहीं । कभी पकुल हिम्मत जुटाकर अपने आपको जीते के मम्मी के विषय से हट किए अपने विषय पर लाया । जब से आता हैं तब से ही मैंने तो आपको पहले दिन से देख लिया था । मैडम ने फिर से उस मक्खी को कान के पास से हटाते हुए बोला हूँ । मैडम के ये बोलते ही पाकुर के मन में फिर बीस नए सवाल खडे हो गए । देख लिया था तो फिर कभी सामने क्यों नहीं? कभी बात क्यों नहीं की? पापा के उस दिन के किए गए अपमान का गुस्सा अब तक मन में है । क्या यह कोई और बात थी? अच्छा आप आज मैदान में नहीं आई उस बात को टाल कॅण्टकी बात की । हाँ थोडी ठण्ड पे ठीक नहीं लग रही थी । बस इसीलिए मार्डल ने कहा क्या हो गया मैडम जी आपको इतनी देर से पूरी अंतरात्मा को तंग करने वाले सवाल को पूछने का मौका फॅमिली गया । कुछ नहीं ॅ हो रहा था अभी ठीक है मैडम नहीं । हल्की ही स्माइल करते हुए कहा । अब अंकुर के पास सवाल कुछ थे नहीं मगर पैर भी पलट के जाने को तैयार नहीं थे । बस यही सोच रहा था की कुछ बातें ऐसी आज है दिमाग में जिससे कुछ बाल और मैडम के साथ बैठने को मिल जाएगा । तभी बकौल नहीं नाश्ते का समय हो गया है । कुछ लिया हूँ आपके लिए । सोचते सोचते बकर नहीं कहा । अरे नहीं नहीं मैं खुद नीचे जाकर खाल होंगी, फाइनल नहीं । तकलीफ न देने वाले भाव से कहा है नहीं नहीं मैडम में ले आता हूँ आपकी तबियत खराब हैं । आज कहाँ नीचे जाएंगे बहुरने बात पर थोडा दवाब बनाते हुआ था । नहीं नहीं आपने नहीं दीजिए ऍर जोर देते हुए मना किया अच्छा ठीक हें तो चाय लाकर दे देता हूँ । बकुल नहीं, नया रास्ता खोजा, अभी रहने दीजिए । उसी ग्रीन टी के कारण तो सिर दर्द कर रहा है । मेरा ऍम पीने की आदत है वो ये लोग देते नहीं हैं । उसी के कारण ज्यादा सिर चलाया नहीं रहा हूँ । मैडम नहीं प्रमुखता आज बताई तो हम बाहर चलकर ॅ खुद का बहुत मन है मकर नहीं कहा । अरे लेकिन ये लोग बाहर जाने का देते हैं देना किसी सर की अनुमति की नई डलने मजबूरी बताते हुए कहा आई आप चलिए हैं मेरे पास अनुमति है पकडने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है आप चलिए मैं पांच मिनट में नहीं चाहती हूँ । ऍम खडे होते हुए कहा बकुल नीचे पहुंच कर मैडम का उत्सुकता से इंतजार कर रहा था और चुपके से उस पर्ची की तारीख सफाई से बदल रहा था जो उसने कल ही बाहर जाने के लिए ली थी । मैंने नीचे आई और दोनों मुख्य दरवाजे पर पहुंचे । हाँ ठाकुर ने कागज ना मैडम को गार्ड को दिखाने के लिए दे दिया और उसने पर्ची देखते ही दरवाजा खोल दिया । अच्छा

Details

Voice Artist

यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
share-icon

00:00
00:00