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Part 33 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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ऍम चक्कर लगाते लगाते बकुल को एक बात का एहसास होता है कि जो डर उसके अंदर मैडम को देखते ही पहले दिन था, नया अब धीरे धीरे कम हो गया है । ऍम के बाद एक कसरत आती है जो बागपुर को बडी अच्छी लगने लगी है जिसमें हैं कोई भी गाना बजाया जाता है फिर उस पर सब लोग नाचते हैं । आ रही तेरी तिरछी कमर पर पैर हिलाकर अपनी बेड शरीर से डांस की नाकाम कोशिश करवाते हैं । आज गाना लगाया था खाई चिकनी चमेली और सब गुरु जी को देखकर करने की कोशिश कर रहे थे । जितना जैसे वे गाने पर अपने शरीर को घुमा रहे थे उतना ही खराब तरीके से बाकी सब कर रहे थे । सिर्फ तो मैडम को छोड कर दे तो मैडम के पास खडी बूढी महिला चिकनी चमेली गाने पर इतने उत्साह से डांस कर रही थी । मानो जैसे जवानी लौट आयोग दस पंद्रह मिनट क्या ऍम सब लोग पसीने में भी चुके थे । बकुल काफी थक चुका था लेकिन भी आया है हमका यह वाला हिस्सा करने में उसे बहुत अच्छा लगता था । अंडर से बडा खुश था । अरे तू मैडम को इतनी पास देखकर तो और ज्यादा खुश था । इसी तरह से नीतू मैडम से छिपते छिपाते कुछ तीन चार दिन भी चुके थे और हर उस की तरह कभी कसरत के समय तो कभी जीतते को छोडने के बहानी तो कभी नीचे हाल में खाने पीने के समय बगैर जबकि चुपके थी तो मैडम का देखता रहता हूँ । एक दिन सुबह की सारी कसरत के बाद खाने के समय जब बकौल ने जीते की मम्मी और बूढी महिला को बिना तो मैडम के आते देखा तो उसके मन में सवाल खडा हुआ कि आॅफ क्यों नहीं आई और वह जीते की मम्मी के थोडा खरीद जाकर खाना खाने लगा ताकि उनके बाद सुन सकें और उन दोनों की बात से सबसे पहले तो बाकी और कोई है । पता लगेगा कि जो गए साहब की उम्र वाली बूढी महिला है जिनका नाम नहीं तो वॅाक कुमारी है । उन्होंने कभी शादी नहीं की, पढाई लिखाई के चक्कर में और जीते की मम्मी को कहती है जिंदगी जीने के सिर्फ तीन तरीके हैं खुले विचार, मस्ती और प्रेम । लेकिन इन बातों में बस कुर्की रूचि नहीं थी । मैं तो मैडम के बारे में सुना जा रहा था । जब उसे थोडी देर तक उन के बारे में सुनने को नहीं मिला तो उसने खुद ऊपर मैडम के कमरे में जाकर देखने की ठानी । तभी सरदार जी ने आकर जितने की मम्मी से कहा ही कमरे में है, किसकी तब खराब हुई है, किसका सिर दर्द कर रहा है । दवाई लाने हो तो ले आओ । मेडिकल स्टोर से सरदार जी ने खाते खाते पूछा । मकर समा जाता है की ऋतु मैडम के बारे में ही बात हो रही है । नहीं जाने के लिए बाहर निकलता है फिर मन में आता है नहीं मैं ऐसे नहीं जा सकता । मैं सोचता है तो कैसे उनके बारे में जान पाऊंगा की आपको क्या हुआ है, कितनी तबियत खराब हुई है, थोडी सी ज्यादा थोडी तो कितनी थोडी और ज्यादा तो कितनी ज्यादा? और अगर कोई खास बात नहीं है तो चलो फिर खाना खालो । इन सारे सवालों की आग बिना उनसे मिले कैसे मुझे थोडी देर तक बक्कर जेतू मैडम के कमरे के बाहर असमंजस में टहलता रहा । कभी आगे बढने की है । मैं जुटाकर दरवाजे तक चला जाता तो कभी डर के मारे बहुत पीछे आ जाता हूँ । कभी दिमाग में आता है कि सीधे जाकर उस बीते दिन के लिए माफी भाग लें और अभी जिद करके कैसे भी तबियत के बारे में जान लें । कि इस दुष्ट तक्लीफ को जल्दी से कैसे दूर कर सकते हैं । तभी उसके दिमाग में सरदार जी की बहुत याद आती है और उन्होंने कहा था सर दर्द हो रहा है । वह फौरन जाकर सिर दर्द की दवा लाने की सोचता है । कोई शिविर के मुख्य दरवाजे पर आता है जहां दरवाजा लगा हुआ है । बकौल ने गार्ड से पांच मिनट के लिए बाहर जाने का कहा तो दहाडने अंदर से किसी से अनुमति लेकर आने को कहा । बकुल गार्ड से थोडा निवेदन भी किया लेकिन उसने नहीं सुना । बात को समझ नहीं आ रहा था । अंदर किसी से क्या बोल कर अनुमति लूंगा । लेकिन हेतु मैडम की तकलीफ के सामने सारे के चार साल के थे । ऍन उस कमरे में गया जो शिविर संभालने वाले लोगों का था । वहाँ योग गुरु जी के दो तीन चले देंगे । नकुल नहीं । फौरन थोडा ड्रामा करके उनसे कहा रह सर, मेरा सिर दर्द कर रहा है । बाहर मेडिकल से दवाई लाना है । शहर ने भी फौरन एक कागज की पर चली उस पर अपने हस्ताक्षर और आज की तारीख डालके लिखा । अनुमति प्रदान बकुल ने बाहर गार्ड को मैं पर्ची दिखाकर जिम में रखी और बाहर जाकर आज पास मेडिकल ढूंढकर फौरन दवाई लेकर आया और जैसे ही मैडम के कमरे तक पहुंचा उससे यहाँ जाया कि वह मैडम के पास नहीं जा सकता हूँ । तब तक बूढी महिला और अजित थे कि मम्मी भी कमरे में आ चुके थे । कोई उसे वहाँ बेवजह घूमता न देख लें इसलिए मैं अपने कमरे के पास आ जाता है और इधर उधर टहलकर सोचने लगता है कि मैं जनता की ये दवाई कैसे पहुंचाई जाए । तभी जीते । अपने पापा से कहता है पापा कुछ मम्मी के पास जाना है । यह सुनते ही बखपुर के अंदर उत्साह की लहर दौर पडती है । चलो मैं छोड आता हूँ झेलते के बोलने के तुरंत बाद बकुल बोल पडता है । बकौल को आज जीते पर पहली बार इतना बाहर आया था कि नीचे बैठकर उसने भी उसके फूले फूले गाल खींच के लिए बदले में जीते ने भी देर नहीं की और बात करके फूले फूले गाल । उसने वे हिंजली बहुरने जल्दी से जीते का हाथ पकडा । फिर निकल गया मैडम के कमरे की तरह रास्ते में ब कुर्ने जीतते को हाथ में दवाएं देते हुए कहा कि यह तुम्हारी मामले के कमरे में जो बीमार आंटी है, उन्हें दे देना और बोलना तुम्हारे पापा ने दी जीते में हाथ में से मिलाया । अच्छा अंकल बताओ कि हम जिस स्कूल में पढने जाते हैं, होता है नॉनवेज जीतेने आज तक अपना सवाल पूछ डाला । मुझे नहीं पता तो मतलब क्या होता है । बकौल ने भी फौरन बिना जवाब सोचे बोला स्कूल नॉलेज होता है क्योंकि वहाँ हर दिन कोई न कोई मुर्गा बनता रहता है, बोलते हुए हैं और फॅमिली कमरे में चला जाता है और अपने कमरे की तरह वापस लेना चाहता है । जीते दवाई उस बूढी महिला नहीं तू आंटी का दे देता है और कहता है आपके लिए ये दवाई मेरे रूम वाले अंकल नहीं भेजी हैं । लेलो इससे आपका सेंडर बंद हो जाएगा और नीतू आंटी का विषय कल बहुत दर्द कर रहा था, नहीं देख कर बहुत खुश होती हैं और उन्हें बखपुर के बारे में सोच कर अच्छा लगता है ।

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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