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बात करें जी तो नंगे घूम रहे हैं, शर्म नहीं आ रही है । मकुर गोपाल से कहता है अबे शर्म का एक लंगोट तो पहन कराई है ना । जब तो उन्होंने पूरी ढकी हुई है । अपनी भोपाल चुटकी रहते हुए कहता है तभी दोनों पहलवानों के बीच रेफरी आता है और सारे बैंक वाले सेठ जी सेठ जी के नाम के नारे लगाने लगते हैं । बिहार चाहे जो भी हो, मुझे छुट्टी तो चाहिए ही चाहिए । तो बकर गोपाल से कहता है तभी उधर मैच शुरू हो जाता है और नितिन हीरा यादव और अब तू कडवा । दोनों एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं और कुश्ती का पहला दम लगाना शुरू करते हैं हूँ । दोनों पहलवान एक दूसरे के दाव फेल करने में कामयाब हो रहे हैं । नितिन ने सेठ जी के खिलाफ चार प्वाइंट बना लिए और सेठ जी से अभी तक एक ही बना था । अचानक अंत में सेठ जी चालाकी से दांव मारकर एक के बाद एक छह पॉइंट रहते हैं और कुश्ती जीत जाते हैं । भोपाल के कहते ही सब तुरंत बैंड बाजे बजाना शुरू कर देते हैं । सेट पप्पू कडवा अपनी बैंड की गलत फुल गाडी पर आगे बोनट पर बैठे हैं । गडे में बहुत सारे हार है । पास में ही का डिब्बा रखा है और मोहल्ले में एक के बाद एक लोग रास्ते में हार पहना रहे हैं और गोपाल गाना गाता चल रहा है । वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है । हारी बाजी को जीतना जिसे आता है इससे शाही स्वागत के साथ से जी घर तक आते हैं और अपने परिवार प्रेम नहीं लग जाते हैं से जी खब लग जाए । गोपाल ने पूछा हाँ हाँ आ जाओ अच्छा सुनो आज सबको बोला छत पे हो मैं फिर मार्च गए तब तू करवाने गोपाल से कहा सब लोग गाडी और आपने वाजे उठाकर जाने लगते हैं और एक और वो मेरी पंद्रह दिन की छुट्टी बहुरने गोपाल से धीरे से कहा तो बोल दिया तो मैं नहीं बोल पाऊंगा । खर एसेंजी तो बस और को पंद्रह दिन की छुट्टी चाहिए थी क्योंकि उसके घर पर अरे जाओ पंद्रह या बीस दिन ऍम अब तू करवाने खुशी के मारे गोपाल की पूरी बात सुने बिना बतौर को छुट्टी दे दी ले होगे तेरह काम तो पंद्रह दिन के लिए जा रहा है ना हाँ और फिर तो मेरी आवाज को वहाँ बहुत ही आठ करेगा । ऍफ गाना अभी सुना देता हूँ मुझे फिर से गोपाल बंद माइक को ही हाथ में ले लेता है और सब अपने अपने घर की ओर चलना शुरू करते हैं । देरे जैसा यार का का ऐसा याराना याद करेंगी दुनिया मेरा ऍम गोपाल रास्ते में बखपुर के कंधे में हार डाले चलते चलते ही गाता है जैसी गोपाल गाना रोकता है तो देखता है सडकों पर चलने वाले बीस पच्चीस लोग रो कारों से घोर कार गुस्से में देख रहे होते हैं । बकुल लोगों को कितनी पसंद आया कि रुक रुककर सुन रहे हैं । बाहर से बडे घर से बोलता है गोपाल लेकिन बकौल समझ जाता है इसलिए उस से वहाँ से ले जाता है अगले दिन की सुबह होती है । बकौल तैयार हो गए गायत्रीदेवी हर जगह नारायण की पहल पडता है और सीधा बस स्टैंड पहुंचकर बचने बैठता है । खिडकी वाली सीट पर बैठा है । उस बंद खिडकी को ठीक से खोलने की कोशिश करता है और उसकी उंगली उसमें थोडी सी दब जाती है तो तुरंत उंगली में फोक मारने लगता है और उसकी कल्पनाओं में भी तू मेरा नाम आ जाती हैं कि कैसे वह कुर्की उंगली में फोक मार रही थीं कि ऐसे उंगली को सहना रही थी कैसे बक और का दर्द सिर्फ इतने में ही गायब हो चुका था । अचानक पास में उसके बगल में ही गुजर का आदमी बैठने आते हैं तो देखते हैं कि बक और एक नहीं डेढ सीट पर बैठा है । दूसरी सीट पर भी उसका शरीर आधा तो आ चुका है लेकिन वो बिना कुछ बोले बची हुई थोडी सी जगह में बैठने की कोशिश करता है । पायेंगे । बस चलने के बाद कम जगह मिलने के कारण वो एक दो बार सीट से नीचे गिर जाता है । बकुल को हर बार खिसकने को बोलता है लेकिन बाकी और उससे ज्यादा के साथ ही नहीं पाता है । बुजुर्ग आदमी उसे देख कर गुस्सा होते हैं और उसके शरीर की ओर इशारा करके बोलते हैं । ऍम इतनी भेजे बढती जा रही है कि वे जारी धरती से उनका वजह नहीं नहीं संभाल रहा है । तुम अकेले इतना वजन लिए कहाँ घूम रहा हूँ इसका कुछ करते क्यों नहीं? टिकट तुमने एक आदमी का लिया है और डेढ आदमी को बिठा रखे हो । तब से ठाकुर थोडा और खिसककर जगह बनाने की कोशिश करता है । लेकिन दोनों देखते हैं जगह नहीं बनती । ऍम कुछ ज्यादा ही खाते पीते घर से तो बेटा थानाें कम से कम खाया कर सलाह ज्यादा से ज्यादा वजन कम होता है उससे मेथी दाने का जो मक्के का शो क्यों, ढोल ते बोलते बुजुर्ग आदमी खडे हो जाते हैं । आपने स्टॉपर उतरने के लिए बकौल उस आदमी को छोडकर देखता है । कुछ देर बाद बकौरी इंदौर पहुंचकर जगत नारायण के द्वारा बताई गई जगह पर भी पहुंच जाता है । वहाँ बाहर एक बडा सा बोर्ड लगा है जिसमें एक तरफ दो मोटे मोटे लोग परेशान चेहरे के साथ खडे होते हैं और वही दोनों दूसरी तरफ पटले होकर मुस्कुराते हुए खडे हैं और बीच में लिखा है मोटापा मुक्ति शिविर पंद्रह दिनों का । बकौल जैसे ही थोडा बढकर उस जगह के मुख्य दरवाजे तक पहुंचा वहाँ दो लोग कॉर्पोरेट ऑफिस वाले कपडे पहनकर कुर्सी में बैठे थे । उन्होंने बकरी को देखते ही फौरन फॉर्म निकाला और स्वाम के हिसाब से सवाल पूछना शुरू कर दी है । नाम पता से लेकर खाने पीने की आदत तक बहुत कुछ पूछा जिससे बखपुर के शरीर के इतना मोटा होने के राजकोष शायद जान सके । फिर वहीं रखी वजन मशीन पर वजन भी करवाया तो बैठे दोनों लोगों की आंखें एक बार के लिए तो पूरी की पूरी खुली रह गई थी क्योंकि वजह ढाई सौ तीस किलो वो जानकारी उन्होंने फॉर्म में भरी और फॉर्म को बखपुर को देकर पंजीयन के पांच सौ रुपये लेकर अंदर जाने की इजाजत दी हूँ । बकौल अंदर की ओर आकर देखता है तो ये एक मैदान है जिससे चारों तरफ से ट्रेंड से लगाए पर्दों की दीवार से कवर किया था और मुख्य दरवाजे से थोडी दूरी पर मैदान के अंदर ही एक धर्मशाला थी जिसके कमरों में शिविर में आये लोगों के ठहरने का इंतजाम किया गया था । आदि धर्मशाला पुरुषों के लिए और आधी महिलाओं के लिए कर दी गई थी । बकौल स्वाम ने दिए अपने रूम नंबर के हिसाब से गया जिसमें पहले से एक बार आया चौदह साल का बच्चा है जिसके सिर पर बंदी पगडी देखकर समझ जाता है कि वे सरदार लेकिन बस कुर्ने शायद पहली बार अपनी जिंदगी में इतना छोटा कितना मोटा बच्चा देखा होगा और उसके साथ उसके मम्मी पापा जिन्होंने हूबहू बच्चे के सिर की पगडी के कलर कि पगडी ही पहनी है तो वो उस बच्चे से भी पांच प्रतिशत ज्यादा मोटे थे । बस एक कमरे में तीन के हिसाब से और इस कमरे में इन तीनों को ही रखा गया था । तो मैं बच्चा जो की जमीन पर बिछे बिस्तर पर चिप्स ओर को रुक रे के चार पांच पैकेट लेकर बैठा था । जिसमें से शायद एक ही बडा लग रहा था और बाकी हवा में इधर से उधर दौड रहे थे । देख कर ही लग रहा था कि है बच्चा इनके प्राण ले चुका है । हरे हरे । आप भी शिविर के लिए आया बच्चे के पापा सरदार जी ने बडा बेटे का सवाल किया । ॅ मकर ने अपना होने में रखते हुए कहा हो जी होना जाना था कुछ भी नहीं है । जो शरीर पंद्रह वर्षों में काम नहीं हुआ पंद्रह दिन में कैसे हो जाएगा तो फ्री थे तो सोचा एक बाहर इनसे मेरे वाला को बेटा आई करने का मौका दे दो । सरदार जी पेट पर हाथ घुमाते हुए बोलते हैं हाँ जी, सही बात है तो कोई चेहरे पर मुस्कान लाकर जवाब देता है और वैसे अब तो पूरे परिवार के साथ आए थे । जैसे की मामी जी भी आई है । वो पांच में महिलाओं वाले डिपार्टमेंट में रुकी है । सुधर जी ने अपने बारे में और बताते हुए कहा अच्छा जी ठाकुर नहीं भी जूते खोलते हुए कहा हो आपको पता है पहले जैसी का नहीं ले रहे थे । कह रहे थे बच्चा है नहीं लेंगे तो मैंने कहा कि ये एक बार मशीन ऍम पश्चिम जैसे ही चला । ॅ ले लिया ऍम पंद्रह साल का ॅ और उत्तर के लोग पहुंच गया बहुत जल्दी अपने मम्मी पापा नो टक्कर देगा यह नब्बे किलो पर आकार अपने बेटे को लाड करते हुए सरदार जी बोलते हैं हाँ आप को अच्छा नहीं लगता बच्चे का इतना वजन है फिर भी बक और जैसी को गंभीरता से देखते हुए पूछता है तो ये खाते पीते घर का बहुत तरह तो वजन तो बढेगा ही और फिर जिन्होंने पैदा किया है वैसा तो दिखेगा ही । सरदार जी ने पहुँच पडता आप देते हुए कहा तो अच्छा अंकल एक बात के जवाब तो ए बी सी डी में सबसे बडा क्या होता है? फॅार से सवाल किया सबसे बडा क्या होता है तुम बताओ थोडा सोचने के बाद बागपुर को जवाब नहीं मिला । सबसे बडा उसको याद करने का टेंशन होता है । हर कुछ नहीं होता जितने चीज खाते हुए चेहरे पर सामान्य भाव रखते हुए जवाब दिया तो जी ये तो ऐसा ही पागल बच्चा है । साॅस सवाल करता रहता है तो बच्चे रहना इसके सवालों से हम मॅाडल कर देता हूँ । इतनी परेशानी में इससे पैदा करने में नहीं हुई । ऍम पायदा होते सवालों के जवाब देने में होती है । सरदार जी ने जीती के बारे में बताया चलो जल्दी से तैयार हो साढे नौ बजे सबको मैं गाने बुलाया है । वैसे जी बंदे नू । सुरेंदर सिंह ढिल्लन कहते हैं तो संडे पुत्तर नो जीते केंद्र हैं और आप जी । उन्होंने खुद का बाॅलिंग बारिश जैसे बेटे का नाम बताकर बखपुर का नाम पूछा । इन बातो नारायण पांडेय बहुरने जवाब दिया वो तो पंडित अवीरा मतलब ये पेड घर पर नहीं श्रद्धा का खाना खा खाकर बनाया है मैं दोस्त भी पंडित है । साल भर की भूमिका आने में लगा रहता है और फिर कहता है समझ नहीं आ रहा ऍम हरे चलो चलते थे मैदान में बोलते हुए अपने बेटे का हाथ पर घटकर उठाते हैं वो बस करा बेटा, अभी नीचे से हो कर आ जाए तब जहाँ ले लेना इन चित्र ते कुरकुरे दी और अपने बेटे जीते को लेकर वो नीचे के लिए चले जाते हैं । हाँ और अपने बैग से पापा के दिए हुए लाल पहचाना और लाल टीशर्ट पहनकर नीचे जाता है और सीढियों से उतरते हुए हैं । नीचे मैदान में जब मैं देखता है तो इस दृश्य को देखकर उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं होता तो फिर में बहुत सारे मोटे लोग आए हुए थे । मकुर ने इतने सारे मोटे लोगों को एक साथ जिंदगी में पहली बार देखा था । मैं सोच रहा था कि इस समय ऊपर आसमान से देखने पर ये मैदान फिर जैसे बारह से भरा रखता हूँ । इतनी मोटे बच्चे, जवान और बूढे बुढियां सब तरह के लोग आए हुए हैं । ऐसा लग रहा था जैसे आज मोटे लोगों का एक नया समुदाय बनाए सब लोग मैदान में बैठ जाते हैं । सामने छोटे से बने स्टेज पर शिविर के मुख्य आयोजक अपना स्पीच दे रहे मोटापे पर ये हमारा मध्यप्रदेश में तीसरा मोटापा मुक्ति शिविर है । लोगों में इस कदर बढता मोटापा बडा चिंता का विषय है । परिशीलन है हम पंद्रह दिनों में व्यायाम हम योगा और खान पान से गारंटी से तीन चार किलो वजन काम करेंगे । लेकिन पंद्रह दिनों तक पूरी तरह से हमारे कहे अनुसार ही चलना होगा और ऐसे ही फिट और स्वस्थ रहना है तो जीवन में आगे भी हर दिन ऐसे ही बिताई आएगा । चलिए शुरू करते हैं पहले दिन लाइट वर्कआउट बेसिक योगा से शुरू करते हैं । कोशिश कीजिएगा जितना ज्यादा से ज्यादा मेरी तरह अपने शरीर को स्ट्रेच कर सको, खींच सको साहब मेरी तरह करो हूँ । गुरु अपने शरीर को कोमलता के साथ चेंज करते हैं । योग गुरु जी सबसे पहले सूर्य नमस्कार करते हैं तो नहीं लचीले शरीर को राहम से मोडकर घुमाकर अच्छे से सूर्य नमस्कार कर जाते हैं । बस उन्होंने देखने के बाद जगह असपास बाकी लोगों को देखता है तो वे बेचारे नमस्कार करना तो दूर ठीक से नीचे ही नहीं झुक पाते और खुद ब खुद भी नहीं हो पाता है । बस कैसे भी सब आधा अधूरा करके पाप काट देते हैं । सूर्य नमस्कार में लोगों के बाद बार उठने और झुकने के बीच थोडी सी दूरी पर नकुर को एक कोई जाना पहचाना था । कुछ धुंधला चेहरा दिखता है । मैं फिर से देखने की कोशिश करता है, लेकिन उसे साफ नहीं दिखता क्योंकि वो थोडा पीछे खडा था । सूर्य नमस्कार के बाद गुरु जी ने जम्पिंग शुरू करवाएं । सब अपनी यही जगह पर खडे खडे जंपिंग करना शुरू करते हैं । बकौल जम्पिंग में भी उसे धुंधले चेहरे को बार बार देखने की कोशिश कर रहा था । पर मैं उसे साफ साफ नहीं पा रहा था । उसके बाद सबको मैदान के तीन चक्कर लगाने को कहा गया । सब लोग मैदान के चक्कर लगाने लगते हैं । बस और भी भागता है और वह थोडा तेजी से भागकर उसके पीछे चला जाता है जिसका चेहरा वो अभी तक साफ साफ देख नहीं पाया । मूड आते ही जैसे ही बकर उसका चेहरा देखता है या अचानक रुकता है जैसे उसे कोई सदमा लगा हूँ । मैं अच्छे से भरे चेहरे के साथ कुछ पाल के लिए वहीं रुक जाता है । उससे बहुत दूरी बनाने लगता है क्योंकि वह धुंधले चेहरे वाला कोई और नहीं बल्कि ऋतु मैडम होती हैं ।
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