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Part 28 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भाग अट्ठाईस रास्ता एकदम छुट्टी के माहौल में काटकर पांडे परिवार घर पहुंचता है । मिनीट्रक से धीरे धीरे सबूत रहते हैं । जगत नरायन अभी भी गुस्से में हैं । तभी रवि मंगल के घर से कुछ लोग निकलते हैं । रवि मंगल भी बाहर आकर उनसे हाथ जोडता है और वे लोग चले जाते हैं । रवि मंगलपांडे परिवार को देखता है वो तो भगवान जी जानते हैं । कॅश पंकज को देखने आए थे । पसंद भी करके चले गए लेकिन हम ने बोल दिया कि इसकी शादी अगले साल ही करेंगे क्योंकि अभी तो दूसरे बेटे की कर रहे हैं । धनी मंगल नहीं । मामाजी को बोलते हुए सबको सुनाया तो मुझे क्यों बता रहा हूँ । मैंने तुमसे पूछा हूँ । मामा जी ने भी नाराजगी के साथ जवाब दिया फॅमिली है । बता रहा था कि मेरे तो तीसरे बेटे का भी टेंशन खत्म हो गया । आप बताइए क्या हुआ बगोर का कोई बात बनी? रवि मंगल ने चुटकी लेना शुरू किया । कोई कुछ जवाब नहीं देता । एक सच्ची बात बताऊँ तो अपना परेशान होना बंद कर दो । शायद उसके जीवन में तुम्हारा ही रहना लिखाओ क्योंकि उज्जैन के लगभग सारे ही घरों की लडकियाँ तो आप लोग देख आएँ और सबके अस्वीकारने के बाद भी आप लोग फिर नहीं घर पहुंच जाते हैं भाई हमें तो कोई दो लोग भी मना करते तो बडी शरम आती है जितना आपने लडकियाँ देखने में समय खराब किया अरे उस से आदमी भरतपुर के बेड फॅमिली को ठीक करने में लगाया होता तो शायद कुछ हो जाता है तक ॅ उम्र में कम ही संभावना नजर आती हैं । जल्दी मंडल ने कहा जगह नारायण फौरन आकर तेज गुस्से नहीं रवि मंगल का कॉलर पकडता है जो चाहत अंदर चले जा नहीं तो तेरी जुबान काट के आज शिप्रा में भेज आऊंगा हूँ । जभी मंगल भी झटके से उसका हाथ हटाता है और बोलता है थोडी या नहीं पहले तो मैंने भी एक मार के अक्कल ठिकाने आ जाएगी तेरी समझा जगत नारायण का गुस्सा और बढता है और दौडते हुए घर में जाते हैं और वो टाका डंडा लेकर रहते हैं । रवि मंगल भी फौरन अपने घर में जाकर डंडा निकालकर लाता है और दोनों के चिल्लाचोट शुरू होती है और पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो जाता है । जगह नारायण जोर से एक डंडा घुमाकर रवि मंगल के पैर पर मार देते हैं । रवि मंगल भी अपना ठंडा जोर से जगत नारायण की पीठ पर मार देता है । फिर जगत नारायण उसके सिर पर वार करते हैं तो रवि मंगल उसे अपना डंडा अडाकर रोक लेता है और रवि मंगल भी सिर पर मानने लगता है तो जगत नारायण हाथ से रोक लेता है । इतने में लोग दोनों को पका लेते हैं और उन्हें लडने से रोकने की कोशिश करते हैं । छोड दो मुझे इसकी आज एक घंटे तोड दूंगा । जगत नारायण लोगों की पकड से छूटने की कोशिश करते हुए बोला अरे जांच है मार दूंगा वैसे भी तेरे बेटे की शादी न होकर तेरह वंश तो यही खत्म हो जाएगा तो मैं खतम कर देता हूँ । ऍम रवि मंगल भी लोगों से छूटने की कोशिश करता है । तेरे कुत्ते की मौत हरामजादे अपनी जुबान को लगाम दें । जगत नारायण जैसे रवि मंगल की उस बात को बिलकुल नहीं सही पा रहे थे इसीलिए गंदे शब्दों का प्रयोग कर गए । इसके बेटे को वर्षों से कोई लडकी नहीं मिल रही तो पागल हो गया । ये दूसरों पर उसका गुस्सा निकाल रहा है । अरे ऍम हमने बोला था क्या धरी मंगल है? बकुल को खोजते हुए बोला । इस बात पर तो गायत्रीदेवी और मामा भी रवि मंगल की तरफ बडने लगते हैं कि मोहल्ले के लोग उन्हें भी पकडकर रोक लेते हैं कभी थोडा मुझे इसे मैं अभी बताता हूँ जगत नारायण छूट नहीं पाने के कारण छटपटाते हुए बोलते हैं । जलता ये मुझ से क्योंकि मेरे तीसरे बेटे की शादी भी आज तय हो गई और दस दिन बाद दूसरे बेटे की शादी है । मैं यह बातें सोच सोच कर चलता है कि इसके एक बेटे की भी नहीं हुई अभी तक और इनके तीनों की हो गई है । अरे तू मेरे बेटों की तुलना अपने इस मोटे बेडोल बेटे से करेगा एक बार ऍम जब जानते हैं तेरे बेटे को कोयले की नहीं मिलने वाली जगह नरायन ये बात सुनकर अपने आक्रोश को काम करते हैं । यहाँ से डंडा छोडते हैं लोगों ने छोड देते हैं । रवि मंगल के थोडे और नजदीक आते हैं तेरे तीसरे बेटे की शादी तक अगर में अपने बेटे बखपुर जगह ना पांडेय की शादी नहीं करा पाया तो मैं जगत बालकृष्ण, नारायण पांडे, पवन मिश्रा, पवन शिप्रा नदी में अपने शरीर को त्याग दूंगा । ये मेरा बचने साक्षात भगवान महाकाल और ये पूरा मोहल्ला इस बचन का साक्षी रहेगा अच्छा ही महाकाल । इतना बोलते ही जगह नारायण जैसे चेहरे पर भोलेनाथ की तीसरी आंख खुलने का प्रकट होने वाले गुस्से को लेकर और अपमान को दबाते हुए हैं । अपने घर की ओर बढते हैं तो ठीक है मैं आज अपने तीसरे बेटे की शादी की तारीख भी तय करता हूँ । अगले साल के आखा तीज पर यानि तुम्हारे पास अब ग्यारह महीने अपने इस असंभव वचन को पूरा कर लेने के रवि मंगल ने बाद को और धूल देते हुए कहा जगतनारायण इतना सुनते ही घर के अंदर चले जाते हैं और गायत्रीदेवी, मामा, जी बस और सब लोग लगभग सेंटर और निशब्द थे कि जगत नारायण नहीं ये क्या वचन लिया हूँ । माहौल लेके सभी लोग भी आश्चर्यचकित हैं क्योंकि इस बात को सब बहुत अच्छे से जानते हैं की जगह नारायण अपनी जुबान के बहुत पक्की व्यक्ति हैं क्योंकि वो महाकाल के सच्चे भक्त हैं । जितना महाकाल को मानते हैं उतना अपने वचनों को भी हूँ । लेकिन एक बार सोच कर मोहल्ले वाले जगतनारायण को दूसरे नजरिये से देख रहे थे । उनका सोचना था कि बखपुर के लिए वर्षों से लडकी देख चुके हैं । इतने वर्षों में कुछ नहीं हुआ तो आप कैसे हूँ ये वचन लेकर तो जगत नारायण ने अपनी मूर्खता का प्रमाण ही दे दिया

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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