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दूसरी ओर मन में अपरिमित उत्साह और दिल में मानव सेवा की अस्सी मान ली हैं । अनुव्रत सेवाभारती के सेवावृद्धि आवाज चले जा रहे थे । दिल्ली से गाडी पर आपने लाख की ओर सर्वोदय का शुभ समय सहस्त्र मम्मी की स्वर्णिम रश्मियां सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को अपनी सुनहरी आभा के साथ यू स्पष्ट कर रही थीं । मानव समाज सेवा हैं तो शक्ति प्रदान कर रही हूँ । हवाएं होने वाले ऐसे हिलौरे दे रही थी जैसे सेवार्थ ियों को ज्यादा से ज्यादा प्राणवायु पहुंचाकर उनके हॅूं शक्ति संपन्न बनाना चाह रही हूँ । सडक के दोनों ओर लगे पेडों की डालियां झुक होकर सलाम कर रही थीं और मंगलकामनाएं कर रही नहीं ताकि उनका महल सफर हूँ । इस सुरमय वातावरण में सब खोले थे ढोल मंजीरे वहाँ डफली की थाप पर सब शिवा की सही भजन गा रहे थे । थोडी देर पश्चात फिल्मी गानों पर अंताक्षरी होने लगी । वक्त की सोनिया सडक की गईं । गाडियों के पहिए दोनों गति से किलोमीटर नापते गए बताई नहीं चला । कब मध्यान हो गया । रास्ते में अच्छा सा दावा देखकर वे लोग रुकें । हल्का सा विश्राम करके प्रसन्न मुद्रा में सबने भोजन किया और काफिला पुनः रवाना हो गया । जी ड्राइवर बहुत अच्छी ड्राइविंग कर रहा था । इससे ट्रक को भी बराबर रास्ता मिल रहा था । सायंकालीन भोजन के दौरान पाठक जी ने दोनों ड्राइवरों से पूछा हूँ आपकी क्या इच्छा है? रात्रि में कहीं निशान करेंगे या अपनी यात्रा जारी रखेंगे? दोनों ही ड्राइवर बेहद उत्साहित थे । बोले अब तो गाडी पर पहुंच करी, विश्राम करेंगे । जी अन्य सब भोजन कर रहे थे । उतनी देर ड्राइवरों ने भी झटकी ले ली । फिर हल्का सा चाय नाश्ता लेकर दोनों तरो ताजा हो गए । कारवाँ फिर कंट्रोल की और निकल पडा । चलते चलते अनेक राज्यों की सीमाएं पार हो कहीं बिहार भी निकल गया । अब पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर गए । राजकीय करीब दो तीन बजे का समय होगा । अचानक जी ड्राइवर नहीं देखा । सडक के बीचोंबीच एक लंबा सा ट्रोला टेडा होकर खडा था । सडक के दोनों और घडी झाडियां थीं । उसके बगल से जीत निकालने की भी जगह नहीं थी । रख कैसे निकलता हूँ, माजरा क्या है समझने की कोशिश कर रहे थे तभी चालीस पचास लोगों ने दोनों गाडियों को घेर ही हाँ आठ के धोनी लगे में सब के हाथों में राइफलें वापिस तौर चमक रही थीं । शिवा पाटर जी ऍम सबने अपने पांच रखी हॉकियां मजबूती से पकडनें पाठक जी जोर से बोले कौन है हड्डी हमारे रास्ते से उन का लीडर खिलाया हूँ वो ये रास्ता तुम्हारा नहीं हमारा है । यहाँ लाल कानून की सत्ता चलती है । लाल कानून का नाम सुनते ही सेवाभारती के कार्यकर्ताओं के पैरों तले जमीन खिसक गई । मैं समझ गए कि खून का नक्सलवादियों से कहते हैं । उन्हें संकट का तो देखा भी नहीं था । कहाँ सेवा भारती गई है? गिनेचुने कार्यकर्ता और कहाँ? चालीस पचास हथियारबंद आतंकी समस्या विकराल थी । क्या हाथियों के सहारे गोलियाँ बाद बमों से टक्कर ले जा सकती थी? शिमला नहाना भाई ना तो हम कोई बडे नेता है, ना कोई मालदार आसामी हैं, न कोई अवसर हैं । हम तो समाजसेवी हैं । हम अपनी संस्था की ओर से भूस्खलन की त्रासदी से ट्रस्ट गौरीपुर में आपदा में फंसे लोगों की मदद करने जा रहे हैं । हमारा रास्ता छोड दो । हमें जाने दो । उन मुसीबत के मारो तक ही है । चंदे से घटते राहत सामग्री पहुंचाने दो । उनका नेता चलाया हमारे लोग भी बहुत वंचित दलित हैं । यह सामान तो अपनी तक जाएगा । तो उन सब अपनी जान की सलामती चाहते हो तो चुपचाप बैठे रहो शिवा ने पाठक जी की ओर देगा वास्तुस्थिति समझाते हुए पाठक जी ने उसे शांत रहने का इशारा किया । ऍम जो ऍर लोग टेन जो और उसके साथियों ने सभी से भारतियों की आंखों पर काली पट्टी बांधी । आज पीछे करके बंदा है । ड्राइवरों को भी इसी तरह कैदी बनाकर इनके साथ जीत में बैठा दिया । उनकी आदमियों ने ड्राइविंग सीट संभाल नहीं और जी पर ट्रक का रुख जंगल की ओर रख दिया । इस कॉलेज खाते जीत पर ट्रक चले जा रहे थे । चलते चलते लगभग तीन चार घंटे हो गए । तब एक जगह जाकर चीज होगी लेकिन ट्रक नहीं रोका । मैं उसी दिशा में आगे बढता जा रहा था । पंद्रह बीस आदिवासियों ने तुरंत जीत को घेर लिया । सब कैदियों को जीत से नीचे उतार हाथों हालातों से धकियाते हुए चलने लगे । ऐसी हडका रहे थे । जैसे ही इंसान नहीं कर रहे हैं, ऊबडखाबड रस्ते पर चलते हुए हैं । उन्हें सामने बनी झुग्गी में ले आए । पैरों से धक्का देकर उन्हें वहाँ बदबू भरी एक जगह में पटक दिया । हाँ तो पहले से बांधे ही थे । अब पैरों को और बांदिया दो खूंखार आदिवासी द्वार पर उनकी पहरेदारी पर बैठे थे । दोपहर की धूप चढाई थी । प्यास के मारे सबके गले हो गए थे । शिवानी उन्हें आवाज दी उनकी भाषा ही नहीं समझते थे लेकिन वो उठकर आये तो शिवानी होंटों पर जी फेरकर बताया की प्यास लगी है । न जाने क्या सोचकर पहरेदारों ने सबको बारी बारी से पानी पिला दिया । मिट्टी वाला ठंडा पानी था तो भी एक बार में प्यास तो मुझे फिर वे बाहर जाकर दरवाजे पर बैठ गए । युवा समझ गया कि वे इन की भाषा नहीं समझते हैं । उसमें किसी तरह आंख की पत्ती सरकार ली थी । मैं रखते रखते पाठक जी के करीब आ गया । उनके कान में फुसफुसाया पाठक जी ने श्री को रोकती, मैं करता नहीं राजी ऍम शिवानी धीरे धीरे सबको योजना बता दीजिए की रात को हम यहाँ की पीछे की दीवार से बाहर निकलेंगे । हम लगातार पूर्व दिशा की ओर बढते जायेंगे । सब दो दो की टीम बनाकर चलेंगे और जहाँ भी जोखिम लगे बडी सावधानी से कदम उठाएंगे । संभव तैयार तीन चार घंटे बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर हम पहुंचाएंगे । वहाँ से किसी तरह वाहन की मदद से पुनः दिल्ली लौटने का प्रयास करना है । अगली बाहर हमें पूरी तैयारी से पुनाह गौरीपुर सेवा कार्य के लिए आना होगा । आज तो यहाँ से निकालने की तैयारी करें । शिवानी सबको मानसिक रूप से तैयार करते हुए कहा कि मैं स्काउटिंग में रहा हूँ । इसलिए कंपास के साथ साथ जंगल में उपयोगी सारी सामग्री मेरे शरीर पर बंदी है । बता आप लोग पूरे भरोसे से अपने आप को तैयार कर ले । हम आवश्य सुरक्षित अपने घर लौटेंगे । अभी सब थके मांदे, डरे सहमे एवं सुस्त ढीले होने का अभियान करो ताकि ये पहरेदार निश्चिंत हो जाए । शिवा की बातों में सबको दम लगा और ने उम्मीद की किरण नजर आएगा । सब ने वैसा ही किया जैसा शिवा ने कहा था सभी उन्हीं से हो कार्य घर उधर लुढक गए । पहरेदार दो बार अंदर झांक गए । कैदियों की थकी तेरी हालत देखकर वह लापरवाह हो गए । शिवानी अपनी चौकस निगाहों से देखा कि वे दोनों थोडी थोडी दूर में पास में रखी लकडी के हॉकी को सुनते थे । आठ ग्यारह बजे करीब शिवानी देखा दोनों इधर उधर थे । रखते हुए वह वहां पहुंचा और उस होते में एक नशीला पाउडर उडेलकर पुनः सब कैदियों के मध्य पसर गया । शिवानी चोर नजरों से देखा पहरेदारों ने आकर बारी बारी से होगी को सोऊंगा । शिवानी चैन की सांस ली की सुबह बारह बजे से पहले अब इनकी आंखें नहीं खोलेंगे । रात के लगभग एक बजे शिवानी देखा दोनों बेसूध इधर उधर पडे थे । उसने पूरी तसल्ली कर ली की अभी आस पास कोई नहीं है । फिर उन्होंने योजना को क्रिया बनती करना प्रारंभ कर दिया । शिवा को जब धक्के से झुग्गी में डाला गया था, वहाँ प्रदेश के पास निकली लोहे की एक पट्टी से शिवा के वस्त्र फट गए थे । कुछ सोच कर भी सकते हुए शिवा उस पत्ती तक पहुंचा और उसमें अटकाकर । बहुत सावधानी से विधि पूर्वक धीरे धीरे उसने अपने हाथ पैरों के बंडल खोलेंगे । फिर पाठक जी को आजाद किया । अब हम आधा सबके बंधन खुलते चले गए । घने पेडों और जंगली झाडियों के मध्य घोर अंधकार में रास्ता ढूंढ पाना आसान नहीं था । यह तो शिवा का प्रबल आठ बाल था । उसका अनुभव था उसकी हिम्मत ही और उसकी जाग्रत चेतना नहीं, जिसने इन्हें रास्ता सुझाया । अब बस कोई आधा किलोमीटर की दूरी थी । घना जंगल, सघन अंधकार सबसे आगे से हुआ था । पीछे सब ने एक दूसरे के हाथ पकड रखे थे । एक पंक्ति में सब झुक घर दौड रहे थे । कटीली झाडियां भी राहत कार उडा बन रही थी पर सबने हिम्मत बनाए रखी । लगभग दो तीन घंटे चलने के बाद सब छुपते छुपाते निकले । आप शिवा को सामने राजमार्ग पर वाहनों की बत्तियां देखने लगी थी । अपने पीछे वाले सभी साथियों को तेजी से आगे सडक की तरफ धकेलने लगा । शिवा कहता जा रहा था के सामने सडक पर तो मैं जो भी वाहन मिले दौड कर चढ जाना । एक दूजे के साथ हो सके तो निकल जाना कोई भी रुकना मत सामने बहुत से यातायात के साधन चले जा रहे थे । जो भी तुम्हारा सहयोग करें उसी में सवार हो जाना । ऐसा बोलते हुए उसने एक एकड के लगभग सब को निकाल दिया । वो पाठक जी को निकालने ही वाला था । कितने में तेजी से किराया शिवानी पाठक जी को अपनी और खींच लिया । तीन । उनके आगे चल रहे जी ड्राइवर की वहाँ को छोटा हुआ निकल गया । शिवानी पाठक जी को तेजी से आगे था । खेला सामने बस धीमी गति से निकल रही थीं । शिवा चलाया । पाठक जी जल्दी आवाज तुरंत अपनी जेब से विषरोधी दवा निकाल कर दिए । ड्राइवर को लगाई और उसे भी तेजी से निकाला । इतने में उन्हें अपने ट्रक ड्राइवर की ठीक सुनाई दी । लहूलुहान ट्रक ड्राइवर आकर शिवा के पैरों के पास गिरा । उसकी गर्दन में कटाडी लगने से खून के फव्वारे छोटे हुए थे । उसकी हालत कर शिवा चौंक गया । मैं बोलना चाह रहा था पर बोल नहीं पाया उसके मुझसे अस्पष्ट निकला ऍम तुम्हारे पीछे लुटेरे और गर्दन तरफ भडक गई । ड्राइवर की पीठ में जहर बुझा तीर शिवा को दिखाई दे गया मुख्य सडक की और उस ने देखा सब साथ ही निकल चुके थे । बस पाठक उसे दोनों हाथों से इशारा कर रहे थे । बेताहाशा चला रहे थे शिवा जल्दी आओ मेरे बच्चे जल्दी करो । शिवा आजाओ तुम भी आ जाओ जल्दी जल्दी । इतने में पाटा जी ने देखा । नौ दस खूंखार आदिवासियों ने शिवा को घेर लिया । फिर भी शिवा उनको निकालने का इशारा कर रहा था । पाठक जी किंकर्तव्यविमूढ हो गए । शिवा को अकेला छोडकर में कैसे जा सकते थे पर यहाँ रुकना भी खतरे से खाली ना था । निर्णय की स्थिति में भरे का ले जैसे डबडबाई आंखों से पाठक जीने आखिरी बार शिवा को देखा और पीडित विजय से पीछे से आ रही उस बस में सवार हो गए ।
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Voice Artist