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चार दिन घर में आराम करने के पश्चात पूरी तैयारी से पांच दिन शिवा और शालो दोनों हनीमून के लिए रवाना हो गए । वे दोनों श्रीनगर एयरपोर्ट से निकल कर बाहर आए तो उन्हें लगा कि एक कदम नहीं दुनिया में आ गए हैं । चारों तरफ दो दिया बर्फी भर । ऐसा लगता था कि बर्फ के ही घर हैं । दोनों तरफ बर्फ के बीच सडक पर उनकी गाडी चल रही थी । आज उनकी बुकिंग एक प्रसिद्ध शिकारा में थी । शिकारा किया था झील में जल पर चलता फिरता घर था । एक बहन का एक बैठाकर है । छोटा सा रसोईघर । दोनों तरफ बरामदे कमरों के दरवाजे पर रेशमी झालर के पार दें । बेड पर कश्मीरी कढाई से सजीव बेडकवर साइड में एक शिकारा के शेप में नई क्लाम । बीच में एक तरफ हीटर लगा था । बेहद आरामदायक था । सब कुछ सामान रखते ही कश्मीरी का न्याय सबसे पहले के हवाले कर आई । दोनों ने अपने कब टकराकर जी एस किया और कहवा का स्वाद लिया । शालू सामान व्यवस्थित कर रही थी । शिवा कक्ष के सामने के बरामदे में खडा होकर बाहर के दृश्यों को निहार रहा था । शिवा के लिए एक एक पल गुजारना भारी हो रहा था । फिर भी मैं प्रतीक्षा करता रहा कि शानू सारा सामान सुव्यवस्थित कर लें । मैं तो एक बार कमरे में झांकिया इस बार झांका तो उसने देखा कि कम रटता से कम संतुलन कर शालू खडी होकर अंगडाई ले रही है । वो अब रुक नहीं पाया तो पाँच कमरे में पहुंच गए । खींच कर दूसरे गले लगा लिया । दोनों दूसरी दुनिया में पहुंच गए । कुछ समय पश्चात दोनों ने आंखे खोली । शालू बोल उठीं वाकई कश्मीर धरती का स्वर्ग हैं । झील के चारों ओर से भूके पेट थे । जिधर देखो उधर हरियाली ही हरियाली पेडों पर लगे से ऐसे लग रहे थे जैसे आसमान में लालकुॅआ हूँ । कश्मीरी सेवों की भीनी खुशबू वातावरण में ताजगी बढ रही थी । झील में थोडी थोडी दूर पर कई शिकायत हैं । शाम के दम इलाके में सब शिकायतें ऐसे लग रहे थे जैसे धरती ने शिकारा छपाई की । सारी पहली हो । शालू दला धडक कैमरे से फोर तक ले कर रही थी । कश्मीर की पल पल बदलती खूबसूरती को कैमरे में कैद कर लेना चाहती थीं । कई दिनों तक प्रकृति की अद्भुत छटा का आस्वादन करने के बाद शिवा बोला चलिए मैडम थोडा विश्राम कर लिया जाए । दिल्ली से इतनी लंबी यात्रा करके आप यहाँ पधारी हैं । पति की रोमांटिक मूड को भांपकर शालू बोली लिए दोनों सहन कक्ष में आ गए । घंटे दो घंटे के विश्राम के पश्चात शाम का भोजन किया । फिर थोडी देर बाद झील की रंगीनी को देखने के लिए बाहर बरामदे में लगी कुर्सियों पर शालू का बैठने का मन था की तो शिवा बोला चलो पहले थोडा चहलकदमी कर ले, फिर बैठेंगे लगभग सौ कदम । चहलकदमी के पश्चात दोनों वहीं आराम कुर्सियों पर बैठ गए । रात्रि के नीरव वातावरण में बाहर की जगमगाती रोशनियां जल ये सतह पर पडती । उनके प्रति छाया आसपास का खुशक बाहर मौसम कुल मिलाकर रोमांटिक महाल पैदा कर रहे थे । दोनों के दिलों में प्रेम का समंदर हिलौरे ले रहा था । शिवा की बेकरारी बढने लगी । चुपके से अपनी मर्जी से उठा और शालू को गौर से उठाया । क्यालू कहती ही रह गई कि क्या कर रहे हो, क्या हो रहा है और वह उसे शहर का कर के बिस्तर पर ले गया । एक शानदार रात के बाद सुबह लगभग आठ बजे उनकी नहीं छोटी आराम से नहीं होकर दोनों तरो ताजा हो गए । धीरे धीरे चलता हुआ शिकारा अभी तक किनारे की ओर बढ रहा था । मैं कहा नौ बजे दोनों ने नाश्ता किया । शिवानी छोटे से पिट्ठू बैग में अपनी पहचान के जरूरी कागज, कश्मीर का नक्शा, प्राथमिक चिकित्सा का सामान, कुछ फल, जेब से पानी की बोतल, छाता, रेनकोट रखा और शालू ने अपने पर्स में कुछ निपाॅल कैमरा रखा । तब तक शिकारा किनारे लग चुका था । कटाह हाथों में हाथ डाले । दोनों पैदल चहलकदमी करते हुए प्रकृति का छठा नहीं हार रहे थे । वास्तव में यहाँ की सुंदरता निराली थी । तभी बाईस तेईस वर्ष का एक कश्मीरी युवक आया । आपको गाय चाहिए, आपका नाम क्या है? राजू शिवा ने पूछा क्या तुम गाइड के रूप में रजिस्टर्ड हो? हाँ, तो शिवानी उसका परिचय पत्र मांगा । राजू वास्तव में कश्मीर सरकार से रजिस्टर्ड गाइड था । सिवानी उसका रजिस्ट्रेशन नंबर नोट कर लिया । ऍम फोन नंबर भी ले लिया । पूरी तरह से संतुष्ट होकर शिवानी श्रीनगर घुमाने हेतु से दो तीन दिनों के लिए वो कर लिया । आज के भ्रमण कार्यक्रम को सुनिश्चित करके आगे बढाने के लिए शिवा ने उसे निर्देश दे दिया । राजू ने सोचते हुए कहा आज हमें काम करते हैं । गुलमार्ग, सोनमार्ग वह पटनीटॉप चलते हैं । तीनों जगह घूमकर आने से दस ग्यारह घंटे लगेंगे । शाम को सात आठ बजे हम लौटाएंगे । कल का कार्यक्रम आज रात को तय कर लेंगे । शिवानी शालू की राय जानी चाहिए । चालू तो पहले ही बहुत ही कॅश साढे थी । बोली आप ने की और पूछ पूछ जहाँ राजूबाई है वहीं के लिए कुछ दूर घूमते हुए हैं । जहाँ पहुंचे बहास लेजिस्लेटिव गाडियाँ थीं क्योंकि ऊपर पहुंचने का बेहतरीन साधन नहीं नहीं था । हटा उन्होंने इस लेट किराये पर ली और रे लोग गुलमर्ग पहुंच गए । नयानाभिराम दृष्टिया वाली अनुपमेय थी । चारों तरफ भर भी भर लेट से उत्तर कारण शिवा और शालू ने आइस बोट और जैकेट किराये पर लिए और वहाँ बर्फ पर मजे से घूमने लगे । लगभग एक डेढ फीट गहरी बर्फ थी । उन्हें पूर्व आनंद की अनुभूति हो रही थी । अचानक चालू जोर से चिल्लाई कुछ आ ओ उसका पहले गड्ढे में पड गया था । लगभग कमर तक गहरी बर्फ में घर चुकी थी । शिवा के मजबूत हाथों ने तुरंत उसे ऊपर खींच लिया । चालू कर रही थी । एक तो ठंड से और दूसरे इस डर से कि अगर शिवा ने उसका हाथ ना पकडा होता तो आज उसकी बर्फ समाधि यहीं हो जाती है । उसने बर्फ पर आधारित एक हॉलीवुड फिल्म देख रखी थी जिसमें ट्रैकिंग के दौरान आएगा, पीछे रह जाती है और भयंकर स्नोफॉल में दब जाती है । नाया को से बहुत हो जाता है किंतु नायगांव से कहीं नहीं मिलती है । अत्यधिक ठोक के कारण मैं आगे की चढाई नहीं कर पाता है और वहीं सिया केलानी चला जाता है । किसी प्रकार उनका एडमिशन अधूरा ही रह जाता है । फिर कुछ वर्षों बाद दोबारा नायक बर्फीली चोटियों पर विजय प्राप्त करने पहुंचता है । चढाई के दौरान एक ऐसी जगह जैसे ही वह हथौडा मारता है, बर्फ वहाँ से हट जाती हैं और उसी खूबसूरती के साथ नायिका का मुर्दा जिस महंगा होता है उस वक्त दर्द भरे एवं भयावह दृश्य को याद करके ही शालू को झंझरी सी आ गई । उसने डरकर शिवा कहाँ तक कर लिया । अब वे लोग पुनास लेट पर बैठकर सोनमर्ग थी और चल पडे वहाँ उन्होंने आइस स्केटिंग बढा अनंद लिया । गाइड राजू उन्हें तरफ ऊंचाई पर ले गया । जहां चारों तरफ बर्फ ही बर्फ देखती थी । वहीं ऊंचाई से नीचे एकदम सपाट बर्फिली सीधी ढलान थी । लालू ने पूछा कि कौन सी जगह है? राज्य ने कहा ये रोलिंग गोइंग है । यह जगह नवविवाहित दंपति को बहुत पसंद आती है । यहाँ ऐसी क्या खास बात है? शिवानी जी की आशा व्यक्त की हाँ ये आपको अभी दिखाता हूँ सर आप दोनों आमने सामने खडे होकर एक दूजे को थाम लीजिए । अब आपको नीचे जाना है । चलते हुए नहीं लेटे लेटे दोनों पोजीशन लोग दोनों ने राज्य के कहे अनुसार क्या हर राजू ने दोनों को धीरे से धकेल दिया । बर्फ पर फैसला सीडी ढलाई एक दूसरे को अच्छी तरह से था । में दोनों गोल गोल घुमाते नीचे लडते गए । दोनों को जीवन में ऐसा रोमांच कार्यनुभव पहली बार हुआ । उन का अंग अंदर स्पंदित हो उठा । इतने में नीचे फिनिश पॉइंट आ गया जहाँ पर लगी रेलिंगों के साथ सोन के गोले । तथ्यों ने उन्हें स्वप्निल दुनिया के यथार्थ मैं लौटा दिया । वो विश्राम करते करते निशाल हूँ ठंड से आपने नहीं उसको जायेगी । तलब हुई तो शिवा ने कहा अभी थोडा टी ब्रेक लेते हैं । पास में ही छोटी दुकान पर राजू है, चाहे मिलने ले गया । तीनों ने चाहे ले लेंगे । राजू ने चाय की चुस्कियों के बीच चाहे वाले की दास्तान बताई कि कभी है खूंखार आतंकवादी हुआ करता था । इसमें सजा भी काटी थी और अब इतना हृदय परिवर्तन हो गया है कि पंद्रह वर्षों से यहाँ चाय की दुकान खोल के चला रहा है । शिवा बोला आतंकवादियों और हिंसकों की कोई जाति नहीं होती । मैं किसी की जाती या किसी वर्ग के हो सकते हैं किन्तु इतना चाहें की आतंकवादी को कभी शांति नहीं मिल सकती है । चरित्र और नीति के प्रति आस्था हीनता से आतंकवाद को प्रश्न मिलता है । मैं किसी निरव रातरानी की हिंसा नहीं करूंगा । इसी अनुव्रत के प्रति आस्था हो जाए तो आतंकवाद की जडें उखाडने में समय नहीं लगता । साथ ही रात रोजगार वा जीवन यापन के अवसर अत्याधिक हो तो शीघ्रता से कोई आतंकवाद की तरफ नहीं झुकेगा । गरीबी कुछ भी अपराध करवा सकती है । इसीलिए आवश्यक है सुदृढ व स्वच्छ प्रशासन में यहाँ पुनः पर्यटन का विकास हो, सुख शांति रहे, युवा वर्ग श्रम के साथ लक्ष्मी का भी वरण करें और हमारा भारत पूर्ण रिक्से देश बनी । जहाँ कहेगी की रेखा से नीचे कोई भी हुई ना देश में कोई भूखा ना सुबह निस्तब्धता को तोड के शिवा की आवाज को सब ध्यान से सुन रहे थे । जैसे ही उसकी बात संपन्न हुई चाहे वाला ताली बजाने लगा । राजू ओवर शालू भी उसके संघ सम्मिलित हो गए । कुछ दिनों के बाद तालियाँ रोककर चाय वाला गोला शायद मैं इंडिया की गहराइयों से आपके विचारों का सम्मान और समर्थन करता हूँ । राजू भी बोला ॅ ऍम अस करती रही उसने चाय वाले को चाय की पैसे देने क्या ही लेकिन चाय वाले ने उन्हें स्वीकारा नहीं । दो लाख आज के चाहे आप हमारी ओर से ग्रहण करें । धन्यवाद । धन्यवाद के साथ चाय समाप्त होने के बाद राजू ने पूछा ऍम शिवा ने शालू की राय जानी चाहिए । आज बस इतना ही स्कूल बाकी कल चलेंगे । लालू ने उत्तर दिया, उन्होंने चारों तरफ देखा । शाम का दिन लगा जाने लगा था । पुनः उसी स्थान पर आ गए जहां से चढाई प्रारंभ की थी । वहाँ से शिवा अपने होटल का रास्ता जानता था । आता था । छुट्टी मानते हुए राज्य बोला शायद कल कितने बढिया हूँ । शिवा ने कहा प्रातः नौ बजे इसी जगह पर आ जाना । हम तैयार मिलेंगे । ओके शहर काजी वहाँ खिलाता हुआ चला गया ।
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