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20. Mutha Mai ki Beti in Hindi

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571 Listens
AuthorRashmi Sharma
Collection of Stories writer: विश्व बुक्स Voiceover Artist : Rashmi Sharma Script Writer : VISHVA BOOKS
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तो दोपहर का समय आकाश में धोरे काले पादशाही अब ये भी वर्षा हुई सडकें नहाकर शरीर सुखा रही तो ठंडा पानी गरम सांस छोड रहा है वातावरण में उमस बीजेपी झोपडी में बैठा हूँ हम याद आया ये झोपडी मेरी अपनी नहीं इसी सरकार ने बनाया है । छोटी क्या है छुट्टियों पर बना हुआ एक बडा ही इसलिए मेरा अकेला नहीं मेरे ही जैसे पचास साठ और भी व्यक्ति तो फॅमिली दो बच्चे मेरे भी एक है चार वर्ष का सिथति और दूसरी हैं छह वर्ष की ललिता खनन तो बच्चों की माँ है । माँ नहीं है घर की नहीं । हाँ घर द्वारे रुपये पैसे गृहस्थी अभी कुछ दिन पहले तक सब कुछ खराब नहीं है । आज सरकारी तब तक भर में हाँ बच्चे ही पर उनके नाम सामने थोडी दूरी पर नहीं रह रहे हैं । हम उठाने आगे संगम है मुठा और मुलाकात सिंह मुठा मई और मुलायम आई तो छोटी छोटी नहीं थी । दोनों दो विभिन्न दिशाओं से उछलती को तीन रेट का सोना भी खेती धन जाने कब से बहती चली आ रही है । किनारों पर घने घने जंगल है । आम, कटहल, नींबू जैसे सरस मीठे फलों से लदे ही चाहिए । दोनों दूर दूर तक पहले धान की खेती, उस धान को जो कोंकण का ब्रांड और इन सब के बीच मुठा और मुलायम कि हरे भरे आंगन में अनेक छोटे छोटे का कुछ पहले पहले से कस्बे और एक के दुःख के बडे शहर भी पूरा जैसी तो होना चाहिए । हम ही तो जो मुठा और मुन्ना के संगम पर पैसा हैं और जहाँ ये सरकारी तब पाँच है जिसपर मैं बैठा हूँ । इतने पर पचास साठ हाथ नहीं घर मेरे तो उनकी माँ मेरी ने कहा ही सामने के लम्बे चौडे मैदान पर जहाँ तक है समतल चौरस में था जिसमें आज पेड का नामोनिशान भी नहीं धरन तो वहाँ कुछ दिन पहले विशाल संभाजी पास था । किसमें हरे हरे घनी पूल फलों से लदे पेड पौधे थी हरी हरी नन्नी कोमल दूब थी । हिंदी से बने हुए हाथ ही घोडी गाय और बकरी बच्चों को लुभाया करती थी । कोन कोन ऍम अल टी कोनी क्यारियों खेलते मुस्कुराते हूँ । उछल उछल करते हस्ते खेलते बच्चों को उतने साथ हस्ती बोलने के लिए बुलाया करते एक छोटा सा मत, साल भी मिठाइयाँ सरकारी मत सा नहीं जिसके नीले स्वच्छ पानी में स्कर्ट के कपडे की डिसाइन जैसी रंग बिरंगी मछलियां लहराएं करती थी । सतरंगी मच की छोटी नहीं हूँ ऍम चीन का और न जाने कौन कौन से नहीं जाने की थी । मत्स्यालय के सामने ही मिटटी का बनाया हुआ एक नन्हा सा खिलाना शहर था जिसमें पक्की मारती थी राज था राजा था रजत नौकर चाकर राजकर्मचारी पाक बगीचे पांच शहर में एक रेलगाडी कई पुलों को पार करती हुई शहर भर में घूमा करती पूरा शहर लिलिपुट लगता था ऐसी ही मारती । ऐसे ही अच्छे से देखते खुश होते कुछ खेलते थे । सोचती हम भी बडे होकर ऐसा ही शहर बसाएंगे । कभी कभी कोई बच्चा अपनी मां की गोद से फिसलकर खिलाना गाडी में बैठ की किसी करने लगता है । माँ से पुचकारती चुनती बहलाती और कहती पीट ये गाडी बहुत छोटी इसी तुमसे नहीं बैठा जाएगा । पर हम तो बच्चा नहीं मानता हूँ । हर तक मान झेलना कर बोल छुट्टी चुके हैं नहीं तो मुझे मई वहाँ कर ली जाएगी । बच्चा से हम कर पांच सी बहती हुई मुठा नदी की ओर देखता हूँ, चुप हो जाता था । मुझे नहीं थी जिसके तहत पर कभी बहर लीलीपुट जैसा खिलाना था पर नहीं क्यूँ और भी बहुत सी चीजें नहीं तो केवल मुठा नदी और सरकारी टप्पर जिसपर में बैठा हूँ मैं और पचास साठ आती । हाँ मेरे तो बच्चे तो उनकी मांग पिताजी सुधीर आकर मेरी पीठ पर सवार हो जाता है । पिता जी ललिता आकर मेरी कोठी में बैठ जाती है । माँ कब आएंगे? पिता जी सुधीर कुछ हम घर वापस कब चलेंगे? पिता जी ललिता ललिता करके परन्तु मैं उन्हें कोई जवाब नहीं दे सकता हूँ । जवाब दे ही नहीं सकता । सुधीर और ललिता के प्रश्नों का जवाब देने की शक्ति यदि किसी में है तो वही है, मुठा नहीं । मुठा मई तो सामने कह रही है जहाँ कि गहरे सन्नाटे की तरह बिल्कुल अच्छा घडी के घंटे वाली सुई के समान पडी थी नहीं हूँ जिसकी धीमी धारा के तरह चल मैं चाहता हुआ संगीत कानों को सुनाई नहीं पडता । जो मन कुछ होता है मस्तिष्क को छोड छोड था क्योंकि नहीं भूल रहा हूँ क्या हो? याद नहीं था ठीक है कोई कोई बात केवल इसीलिए भुला दी जाती है कि वह पेश किया था । बहुत सी बातें खुल क्या सरकारी टप्पर कि वो पचास साठ निवासी बहुत सी हो गई । सुधीर जयललिता भी बहुत कुछ हो चुके हैं । फिर सुबह माँ को नहीं हुआ । ललिता घर को नहीं । हाँ खर्च और मुझे मुठा का किनारा हूँ । किनारे का संभाजी पार्क पार्क सी लगी सडक उन दे कम खाना तो जहाँ मेरा खर्चा नहीं जो ललिता को यहाँ हर उसकी माँ और उस घर में ही सुधीर ऍम मेरे प्रति ऍम वह प्रतीक जो भी थी अरब नहीं है पत्ती नहीं बच्चों की माँ नहीं है नहीं ये तो की उठाना है सरकारी था जिस पर मैं बैठा हूँ और पचास साठ हम मेरे तो फिर उनकी हूँ हाँ । सुधीर ऍम हाँ याद आया हूँ कुछ दिन दिन किया था हूँ क्या था उस दिन तो नहीं नहीं दो ही नहीं थी तो वो जुलाई को तो ससून अस्पताल में मेरा ऑपरेशन हुआ था । ऍम उस समय तो मेरी पति थी सुधीर और ललिता की माँ थी क्योंकि इतना ही तब ऍम यहाँ यहाँ शायद मगर या ताज धोखा दे रही है । नहीं । हाँ, ठीक है बारह जुलाई थी उसे । दो नहीं बारह जुलाई दो दिन पहले ही मैं अस्पताल से लौटा था । अस्पताल का कहाँ तो भर चुका था तो सूखा नहीं था ठीक मुठा नदी की तरह जो अब बिलकुल उतली आठ बिजली है, सूखी नहीं मगर ये किसी टीम बहुत कह रही हूँ । इतनी गहरी जितना पहले दिन धीरे ऑपरेशन का घाम, अच्छा का पानी बांध तोडकर पहले क्या था ऐसे ही जैसी खाओ से खून पहले क्या था? हाँ ऑपरेशन सुख चुका है । रक्त बंद हो चुका है । मुठा कर रहे रखते आब एक भी ना जाने कहां समझ आ गया है तो केवल उठाना नहीं । यह सरकारी टप्पर है जिसका ऍम मैं और प्रचार साॅस उनकी मांग पिताजी मांग के बिना हमें बहुत बुरा लगता है । सुधीर सिसक उठता हूँ पिताजी का चलिए हमें अच्छा नहीं लगता । ललिता कर हाँ छुट्टी है अच्छा नहीं था क्यों वो भी पूरा उठता हूँ । माँ नहीं है ना? सुधीर सुबह ही लगता है ऍम माँ भी नहीं फिर भी नहीं है तो पहले ही मेरा अपना नहीं था । जिमखाना रोड संभाजी पार्क के ठीक सामने हरे भरे फूलों से चोट सुंदर तिमंजिला पंद्रह की उतना के साथ रहती कि सुंदर पीला पीने वहीं लगाई थी दांपत्यसुख हीटर, चाय तो सोंचो ही की तेल समय पाकर फूली एक के बाद एक कुश्ती तो फूल लेकिन तो नहीं सुकुमार मोहत सुधीर फॅमिली था । उन्होंने पाकर मानो पिरी जीवन की सारी कामनाएं पूरी हो गई थी और उन तो बच्चों को जन्म देकर ज्योत्स्ना ऍम बांध तोडकर पहले था ऍम तोडके ठीक उठा नहीं था । सरकारी कैंटीन में भोजन की घंटी बज चुकी थी । बच्चे खाना खाने की जिद कर रहे थे परंतु मुझे भूख नहीं एक स्वयंसेवी का आकर बच्चों को ले जा रही है । पीछे मुडकर आरपार मेरी मूंग की ओर देखते हैं तो से अधिक उनकी आंखों में ठीक हूँ । कौन सी भूख है वो उन्हें भागते ही क्या चाहिए? सबसी नहीं नहीं चाहिए पे रोटी की नहीं ममता की भूख ही हैं, स्वयंसेविका पीसती है पर वह उन्हें रोटी दे सकती है क्या नहीं हूॅं माँ का प्यार चाहिए मुझे भूख नहीं मुझे भी रोटी नहीं चाहिए, तुरंत मुझे हूँ । ठीक उसी तरह की भूख हम उठाते थे । मुझे तो जिसमें हजारों का प्यार समेटकर अपने हृदय में सामान लिया है जिससे अपना पेट भर कर पूछे और मेरे बच्चों को धोखे मरने के लिए छोड के किस कितनों को उजाडकर । आज सरकारी टप्पर में रहने के लिए बात कर लो । मैं असली बात फिर भूल गया । बारह जुलाई की बात कर रहा था । मैं दिन का करीब एक बच्चा था, उन्हें बिस्तर पर पडा था । सुधीर और ललिता पडोस में खेलने चले गए । क्यों टाॅपर मेरे पास आ बैठी थी । मेरे ऑपरेशन के कारण वह बहुत परेशान थे । राहत तीन मेरी सेवा से शुरू में जुटे रहकर उसने अपना स्वास्थ्य बिगाड लिया था । ऑपरेशन मेरा हुआ था परंतु उसके समस्त टीडा उस ममता में नारी के विजय में समा गयी थी । शीतल चांदनी जैसे मृदु मुस्कान देखकर चुप मेरे पास आती तो मुझे लगता मानव संसार का सारा सुख भाव ज्योत्स्ना बनकर मेरे घर के कोने कोने में समाचार सुधीर और ललिता की नन्दिनी बाहों में बंदी ज्योत्सना की छवि ठीक कर विश्व के स्तर पर प्रथम माह की कल्पना कर नहीं रखता हूँ क्योंकि मुझे पाकिस् प्रसन्न थी फिर मैं तो उसी पाकिस् ठंड था वो भी पहना नहीं था । टीरा बीच बीच में जहाँ कुछ नहीं मुझे बडी बेचैनी महसूस होती है तभी ज्योत्सना मुस्कानों की नहीं कितने बिखराकर कोई ऐसी बात छेड देती है जिससे भी सारा कृष्ट दूर हो जाता हूँ । उस दिन मेरा मन नहीं जाने क्यों था की थे । जैसी भी आपको लेता के बोझ नहीं दबा जा रहा था जो तनी प्यार से देखते हुए हो देखा आज का मौसम कितना सुहाना हूँ । हल्की हल्की धूप हूँ उदयकालीन, पाटल, वाइॅन् परन्तु यही सुंदर को हार कल अपना तांडव नृत्य करती रही है जो इन उदय काले बादलों ने कुछ घंटे पहले आपने घोर कदम धडकन से कानों की पडती फाड डालेगा वहाँ पे कितनी वर्षा हुई है रात भर पिछले चौबीस घंटों में पंद्रह इंच पानी तो उसमें बुराई कौन सी हुई तो ना की सारी गंदगी कुछ ही देर में साफ हो गई कहते हुए खिलखिला कर सकते हो और उसके इस खेल के हाथ के साथ मेरे विजय का सारा पूछ ठीक मुठा के बाढ की तरह उतर के ज्योत्सना की मुक्त कुर्सी पर उस दिन मेरी उदासी भी शर्मा कर लौट के परन्तु में है उदासी दो ही मिनट के बाद फिर लौट आई मेरी पडोसी खांडेकर ने आकर का आना तुमने सुना कुछ क्या ज्योसना पाँच छह मान टूट गया पांच चीत बांध पिछले किसान उठाने दी पर बांधा गया था सारे पुणे शहर को वहीं से पानी पुरा जा सकता बांध टूटने का पूना का क्या सोमर जाना चिंतित होकर में पूरा परन्तु आज के एक बार में तो ऐसी कोई खबर नहीं तुम कैसी हो वृत्ति जाए तभी ना रात को दस बजे उसमें दरार पड गई । वर्ष नहीं तो कल कमाल कर दिया ना मिट्टी का बांध कोई गोवर्धन वहाँ तो है नहीं जो सिर उठाए और केंद्र का कोर्ट से हटा रही ऍम चल रहे हैं बांध भी कुछ खराबी होती तो शहर की जलापूर्ति पर कुछ तो असर पडता ही है । ज्योत्सना नेशन काउंट असर पडेगा कहाँ सी पूरे तीन सौ आदमी करार बंद करने की कोशिश कर रहे हैं । भाई सारी रात काम चलता रहा तरार पडने से नल को खतरा थोडी है अपना तो शहर को ही मुझे तो पूरी कप मालूम होती थी । शहर को खतरा होता तो कुछ हलचल होती । इतनी बडी बात कैसे जीत सकती हैं मैं बोलता हूँ घर बैठे शहर का हाल थोडी मालूम होता है ना? पूना के हर बूढे बच्चे की जमान पर यही बात है । इस बीच तेजी से छोडना चाहिए । भागो भागो खाण्डेकर ज्योत्सना और में एक दूसरे की ओर प्रश्न सूचित दृष्टि से देखती लगे । खांडेकर तीन की तरह बाहर भागा और पालक मारते आंखों से ओझल हो गया । ज्योत्सना का चेहरा काला पड गया । सुदी ललिता चिल्लाती हुई वो पहाड था । दोनों बच्चे ऊपर से उतर आई । क्या है? हाँ कुछ नहीं । यही बैठो । ज्योत्स्ना दोनों को कमरे में घसीट रहीं उन्हें अपनी छाती से सटाकर उसने कोर्ट में भी । कुछ ही क्षणों में खांडेकर हफ्ता हूँ । मेरी कमरे में आया उसका मुंह पीले पांच की तरह भई से पीला पड गया था । जैसे तैसे उसी का आना ताई बाढ भागों ऍम ऍम ज्योत्सना ने टिक स्वर्णी का पांच सौ और खडकवासला दोनों बार टूट के ताई मुझे मई में तीस तीस फुट ऊंची लहरें उठ रही पुलिस कूल घूम कर लोगों को आगाह कर रही है । यहाँ तक पानी आती ज्यादा देर नहीं लगेगी । जिमखाना से लेकर शिवाजीनगर तक लोग जान बचाने की फिक्र में पागलो की तरह भाग रहे हैं सिंह की और मौत के बीच सिर्फ कुछ कदमों का फांसला है ऍम होती है खांडी कल का अंतिम बाकी सीढियों पर पहुँच गया । ऊपर अपने फ्लैट की और वहाँ का उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा महाराष्ट्र की रानी प्रेरणा की बाढ में डूब जाने की कल्पना मात्र से मेरी फॅमिली ऑपरेशन से अशक्त शरीर को मुझे मई की बाढ के आक्रोश से बचा सकने में मैं अपने आप को बिल्कुल समझ पा रहा था । असहाय होकर मैंने ज्योत्सना को देखा तो तब रहे क्या उसके चेहरे पर नारी की बेहतरीन था । उसका नहीं निश्चेत कहना चाहता हूँ जिसे पहाड से टकराने, तूफान से जूझने और विश्व को चुकाने की क्षमता होती है । फॅर कोर्ट से उठाते हुए उसने कहा ऊपर जाकर छत पर मैं भी नहीं आती हूँ । बच्चों को भी आने वाली विपत्ति का कुछ आभास हो गया था । पी चुपचाप ऊपर चले गए । उनके जाने के साथ ही प्रतिक्षण पास आता हुआ घन खोटकर जनसुनाई क्या सडक पर लोगों की भाग दौड ठीक प्रकार से मुझे समझाते देखना नहीं की भीषण लहरों और मेरे घर में कुछ खत्म कान तक है अपने भाई से सिहर उठा । पर तभी ज्योत्सना के शब्दों ने मुझे चौंका दिया । मकान में पानी भरने लगा है । सभी जगह पर जा रही है । बच्चों को मैंने भेज दिया है तो भी चलेगा । फिर ऊपर नहीं चढ सकूँ । मैं जानती हूँ आप चल फिर नहीं सकती । मैं तो चल सकती हूँ । सीढियाँ चढ सकती हूँ । अब कंधे पर बैठ चाहिए । सोचने का समय नहीं है जल्दी चलिए देखते हुए उसने मेरे दोनों हाथ पकडकर मुझे अपनी कंधे पर चढा बाहर कदम रखते हैं । बाढ के पानी ने ज्योत्स्ना के पैरों को छुआ और तो ही सीढियों की बात । मुझे लगा कि पानी भी हमारे साथ पीछे चलता रहा है । क्रोधित हो उठा मई कच्चे आज बिल्कुल शांत कर उस दिन उस्ती राक्षसी की तरह हम लोगों का पीछा किया था पहुँच उतना मुझे काम के ऊपर उठाएं । सीढियाँ चलती करेगी । चलती पसीने से लगभग हारती हुई ज्योत्स्ना ने मुझे छत्तर पहुंचा का ही था । मकान के सभी लोग छत पर जमा हो गई थी । खांडेकर मुझे छोडकर मकान में उस समय पुरुष तो थी नहीं, सब काम पर गई थी । कुल मिलाकर पंद्रह सोलह व्यक्ति छत्तीस की । अधिकतर स्त्रियां और बच्चे सब के सब चिंतित । स्त्रियाॅ बच्चे को ज्योत्सना ने मुझे छत पर पडी एक कुर्सी पर बिठा दिया । तेजी से जाकर ईधर उधर से बहुत सारी चीजें बटोर लाई हूँ । छत पर से पहले बार मैंने चारों ओर देखा । नागिन से लगता पाते हुई जीत के समान मुठा की लहरी सारे शहर को निकलने के लिए उतावली हो रही थी । पहले अंकर जल बच्चे पूरा ही नी तोश अपराधी का फर्क भूल कर जो भी सामने आता उसे उधर अस्थितरता जा रहा था । चिकन खाना की वैभवशाली बंगले बाढ से ऊपर झांकती हुई छतों द्वारा अपनी मेरी अस्तित्व का परिचय दे रहे थे । गिराई पर तनी अल्का टाकीज की रंग बिरंगी इमारत का कोई पता नहीं था । यदि कुछ शेष रह गया था तो छतों पर खडे हुए थे । वर्ष ब्याकुल बैठी ताकि खंबों के सिर विशाल का इधरिच कुछ दस की फांसी पर स्थित रानी लक्ष्मी पाई कि तुम प्रतिनिधि और उन पर बंद करने वाला पहन निर्मल आकाश किसी पिछले चौबीस घंटों में हूँ के हेल्प बरसाकर पंचेत बांध की अच्छी हो ना खडकवासला बांध की नींव हिला दी थी और मुठा मई की जहरों को सहयात्री की चोटियों पर चढा दिया था । चरण चुंबी बाढ का पानी धीरे धीरे ऊपर चढता रहा हूँ । कुछ देख भी हमारा मकान भी पानी से पूरी तरह घिर किया कि केक काट के सभी मंजिलें पानी में डूब गई । होली होली पानी छत को छूने लगा । सबका धैर्य छूट गया तो अच्छी नहीं लगी हूँ । हम असहाय मृत्यु का इंतजार करती लगी । तभी खांडेकर की दृष्टि कुछ कदम दूर ऊंचे टीले पर सिर उठा बरगद के पेड से लटक गई । उसने देखा तो युवक टेंट पर बैठी हूँ तो उसकी आॅक्सी है है कि नहीं । बहुत सी चीजें बटोर के लाइन कहते हुए ज्योत्सना ने कोने में पडे रस्सी की ओर उंगली उठाती थाई तो में आज में बचा लिया खाण्डेकर ने प्रंशात सात मकसद मीका छत पर रहना खतरे से खाली नहीं । इस भीषण बाढ में कच्छ टूट जाए या मकान ढह चल इसका कोई ठिकाना नहीं तो सामने का बरगद का पेड काफी मुझे और सुरक्षित है । वहाँ पहुंच सके तो जान बच सकती सभी प्रश्न कि पहले किसी पीर पार पहुंचाया जाए । खण्डे करने खतरे की सूचना सबके मुख बन करती थी तो वेज समय पर पात मत करो, पहले अपना पेट तक पहुंचाया जाए । उसने आदेश दिया आना मेरी पीठ पर जमकर बैठ सकती हूँ । उसने मुझसे का इनमें पहुंचाऊंगी ज्योत्स्ना बीच में ही बोल पडे तो सबके मुंह से एक साथ निकल पडा । तुम लोग मुझे समझाते क्या मैं कोंकण की संतान हैं, मुठा बाई की बेटी हूँ । आज मुठा मई से लड कर अपनी सिंदूर की रक्षा करूंगी । मुठा मई मुझे भले ही उजाडते मेरी मांग के सिंदूर को जाने की हिम्मत नहीं, उसके निर्भीक स्वर्ग ने सबको अफवाह कर दिया, जो स्थानी कुछ रस्सियों का फंदा बनाकर कुर्सी समेत मुझे रस्सा पुर में मजबूती से लटका दिया । पांच सुबह ललिता घबराना मैं मैं अभी लौटी कहती हुई वह स्वाॅट एक हाथ से जैसा पकडे दूसरे हाथ से कुसी किसका थी वह अंततः हूँ मुझे बरकत कि पेट तकनीकी तीन काफी बडा था और आरामदेह था । मुझे वहाँ पहुंचाती समय उस पर क्यों कि मैं पता नहीं कि मैं नहीं करने इस सारी टप्पर में जीवित रहते हुए हो । सरकारी में मैं और पचास समझाती हूँ कि तू धर्म की मम क्यूकि मुझे पहुंचाकर क्यों ऍम उसकी भारत की की एक धूम टू करके उसने सब बच्चों को अपनी पीठ पर पांच कर पेट तक पहुंचा दिया । सुधीर ऊॅट अच्छा पार्टी पहुंचाई थी क्यों? स्थानी अपनी जान हथेली पर रखकर सबको जीवन दान किया । मैं इतनी ठंडी कर ऍम मैं भी सांस की नहीं ले पाई थी कि सामने के अनाथ हमने से बच्चों का करुँ क्रंदन सुनाई पडा नहीं देखा छत पर कई बच्चियों सहायता के लिए चिल्लाती हूँ हाथ के इशारे से बना रही हूँ जो टाॅल करोड से भर क्या भाई पीछे ऍम टूट जायेंगे कर रहा हूँ पर हम कर भी क्या सकते हैं जो नहीं नहीं पानी धीरे धीरे आकाश को छूने का प्रयास में कर रहा हूँ मेरे मकान की छत उठा के विध्वंस कार्य क्रूड के सामने नतमस्तक होने को मजबूर हो रहे थे थाने की पुरानी कमजोरी भारत अपनी आज श्री तुमको सर पर उठा उन्हें बचाने की कोशिश ज्योत्स्ना क्या उन्हें किसी तरह बचाना चाहिए? क्यों विपत्ति मूल् लेती हूँ टाइम शहर में हजारों व्यक्ति किसी प्रकार मौत की मुंबई फंसी किस किस को बचाने चाहूँ कि हमारा परिवार पर चाहिए यही गनीमत है पीठ पर बैठ कर हम बच्ची जाएंगे इस्काॅन खांडी करने का प्रयास करना हमारा कर्तव्य हूँ । ज्योत्सना बोली हूँ पर जानबूझ कर आग में कूदना बुद्दिमानी नहीं मौत को आमंत्रण भिंडी तर्क दिया मृत्यु का जीवन को आवाहन नहीं उठा । मई अपनी संतानों के बाल और साहस की परीक्षा नहीं रही है । यदि समय हम मृत्यु से हार गए तो उठा मई हमें कभी क्षमा नहीं करेंगे । ज्योत्सना ने उत्तर दिया अनाथालय की छत से उठती गगन भेदी चीखों से हम पहले उठे पी के नेत्रों से हमने देखा कि एक गुडिया से सुंदर लडकी छत्तीस से फिसलकर मुठा की अनंत चल राशी में बिलियन हो गई । मोठा कॅश चल रहा है उसी मुठा की जो यहाँ से सरकारी टक्कर के सामने छुप छा गई थी जा रही हूँ था और ये सरकारी टप्पर जिसपर में बैठा हूँ मैं और पचास साठ हजार और मेरे तो बच्चे कर उनकी मांग हाँ तो महान ई क्यों नहीं उस बच्ची को फिसलती देखा प्रतीक छाती की जारी पच्चीस में अपनी जान पर खेलकर भी तो नहीं बचा हूँ की कहते हुए उसने कुर्सी की बंधी रस्सियां निकली सुधीर फॅमिली बच्चों का कुछ ख्याल करो, ज्योत्स्ना मच्छरों मांचल हूँ । पीवी मेरी बच्चियाँ हैं कहते हुए ज्योत्स्ना बिजली की गति से रस्सी पर फिसलती हुई हमारे मकान की छत पर हूँ वहाँ से अनाथालय कि छत्तीस कुल पास ज्योत्स्ना नीरस सीखने की । देखते ही देखते अनाथालय के दस पंद्रह मिनट की हमारी छत्तीस हो जो एक के कुर्सी के सहारे बरगद के पेड पर पहुंचानी साथ फॅमिली पांच छह बरस की एक नन्ही बच्ची को अपनी साडी से पीठ पर टाॅस रस्सी के सहारे भेज दिया पानी हमारी मकान की छत पिक्चर चुका था ताकि बच्चे पानी में डूब रही थी ज्योत्सना आपकी पीठ पर लडकी लडकी को लिए रस्सी पर छूट गई थकान उसके चेहरे पर अपना सिक्का जमा चुकी थी । पहुंच और दूसरे ही क्षण चरमराहट के साथ हमारी फॅमिली रहेंगे । ज्योत्सना बच्ची को साथ ये अकाश चाॅस मकान की फॅमिली शेष बच्चियाँ एक विजय विदारक ठीक हिस्सा लहरों पीठ हमारी अपनी फॅमिली गई सैनाथ पहले की मेरी बालिकाओं को लेकर बेटी ने क्रुद्ध मानसी लडते लडते खेल खेल में अपने जीवन का बलिदान देती है नहीं थम बलिदान ही तो ऍम पुरूष की रक्षा करते हैं की नारी का था पीठियों की रक्षा करने की माँ का हो उसकी बहुत सब शामिल हो गया कुछ ही घंटों में उठा मई का क्रोध ऍम उतरना था चलता है सिर्फ करना भी पडता है । मुठा की चलती हुई पाठ्य बाॅन्ड ही सब लोग घट गए तो हो सके मैं उत्तर की खांडेकर होता है सुधीर ऍम प्रिया और अनाथ खाने की पच्चीस थे तीन पर चढा होना शहर हो वहाँ वहाँ जिस सरकारी तब पर पर बैठकर इस शांत मुठा नदी से पूछ ही ज्योत्स्ना तोहरी बाढ में उतरी थी एक पीपल्स सहाई बच्ची को लेकर बताओ मुठा मई तो कहाँ है? कहाँ है मेरी ऍम पर मुठा शांत इस सरकारी टप्पर के लोग भी शांति नकद नहीं उनके हृदय के तहत नी जल प्रवाहित हो रहा है मेरा मन हो रहा है सुधीर और ललिता क्या खेल हो रही हर सूची हुई आंखों से सुधीर अब भी पूछ रहा है पिता जी मांग के बिना हमें अच्छा नहीं रखता हूँ माँ कब आएंगे पिता जी हूँ हूँ जीते कहाँ की फूट पडता है मैं रुंधे हुए कंट्री से उत्तर देता हूँ ऍम बच्चान सौ भरे उदास नए नौ से मुठा की ओर देखता है मानो पूछ रहा हूँ माँ कब आएंगे मुठा मई पर मुठा चाहते हो चुके हैं स्कूल

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Collection of Stories writer: विश्व बुक्स Voiceover Artist : Rashmi Sharma Script Writer : VISHVA BOOKS
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