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18. Avishwas ka Fal in Hindi

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636 Listens
AuthorRashmi Sharma
Collection of Stories writer: विश्व बुक्स Voiceover Artist : Rashmi Sharma Script Writer : VISHVA BOOKS
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सुमन का पत्र ही लिखा है लिखित बहुत सी बातें हैं किन्तु में नहीं पडता है जिस पर मेरी आंख बार बाहर जाकर अटक जाती है । एक अव्यक्त वेदना से मेरा मन भर भर जाता है फिर पढ नहीं लगती नमः अपनी एक पुत्ररत्न को जन्म दिया है तो वहीं बधाई तुम्हारी एक साडी पक्की हो गई तो दूसरी आज तक तो है लेकिन बाहर ही नहीं तो क्या लिखा होकर पांच सोचती हूँ तो नहीं तो नहीं भी साझेदार बना लूँ उसके ऍम भाभी को देख देख कर मुझे हो रही थी तुम्हारा सी तो वहाँ भी प्रथमत से कही थी ही तो अपने भाई साहब की प्रवृत्ति को जानती हूँ । आजकल रह मुक्त पाँच छे की भांति खुले आकाश में हो रही हैं । इतना ऊँचा हो रही हैं की भावी विवश होती है । जैसे आपने कटे पंखों को देख कर कोई पंचर हो थे । होना नहीं चाहिए तो भाई साहब को अपनी पहुंच से दूर करना भी नहीं चाहिए । मानसिक और शारीरिक दोनों वेदनाओं के बीच आजकल उनका शरीर तिल तिल खुल रहा हूँ । फॅमिली होता है । मुझे जितना खुल रहा है तो मुख् पर उतनी यहाँ वहाँ बढती जा रही है । उन का सामान थे और भी नहीं कर रहा है जिसमें आत्मविश्वास की ज्योति चकमक आती रहेगी कि तीन दिन जानी कैसे तीन हुई थी सुनील तुम्हारे भाई साहब तो कम देखती हूँ मैं दुकान की सारी आमदनी थी बाहर हवा में उड जाती है सकता है दुकान डूब जाएगी साथ ही हमारा घर भी पत्र पढकर जानी कैसी घुटन से हुई है आंखों के सामने को हसा छानी रखा को जैसे मेरे वर्तमान को से आवृत करलिया हूँ रहती है कभी कभी हम भी हंस था कमल जैसा मुख्य स्पष्ट हो गया थापी तेरी पडोसन सुमन मेरी सहपाठी तीनों बडा सेहत की तो भारतीय पे सागर से भी अधिक प्रिय हर बात सभी भाभी का आभाव मुझे कभी नहीं खटका युद्धादि को बात सभी वहाँ भी शायद से अधिक मुझे कदापि नदी पार्टी कुछ भी खाने के लिए बना दूँ मिठाई खीर कोई भी बडी अच्छी है । जब तक मुझे बुलाकर मैं खिला दी थी स्वयं खा ही ना पार्टी मुझे पास बिठाकर खिलानी । उन्हें किस आनंद की अनुभूति होती? मैं आज तक समय से नहीं छपने ठीक हो गई और सारा का सारा स्वयं भारत लेती हूँ तो बहुत होती नीति चोटी पकडकर खींचती, गुस्सा जमाती मेरे हाथ सेक्रेट चीन चीन लेती पीना पूछे कराई जा रही जानती है वहाँ भी तेरे बिना खा नहीं बात ही कुछ कल से बना के रखा है । पर तो ऐसे खाओ है कि ससुराल जाएगी तो कैसे चलेगा खाओ बनेसिंह और घाटी का यह क्रोध था कि ये हमारा भावी का ये तरफ ना मुझे पडा था मैं खाती चाहती हॅू पहले भी स्वयं खाती नहीं खानी के स्वाद से अधिक मुझे खाफी केस ऍम बीस सच मुझे भोर हो जाएंगे, वहाँ भी नहीं खाती हूँ । पर उस समय नहीं उस समय तक तो भाईसाहब से उनका पुनर्विवाह खोजकर्ता इसी कारण मोहल्ले की स्त्रियां से ऐसे घबराती थी जैसे कोई डसने वाली हो । पता नहीं क्यूँ मेरी और सुमन की माननी एक दिन भी हमें भाभी के घर जाने से नहीं होगा मोहल्ले की कई स्त्रियों ने कई बार मासी का बहन जी आपसे आनी लडकी को वहाँ क्यों जाने देती हैं? भारत चार चरण की अच्छी नहीं उस समय मेरा मेन काम चाहते हैं । नहीं कैसे जिएंगे । ऐसा ही प्रतीत होता था कि सोमन और भाभी के बिना जीवित रहे ही नहीं । पाओंगे एक आध दिन नहीं भी जाती । तीसरे दिन वहाँ भी बोला ही भेज कब भागी की कहानी कहने के लिए उनके पति राजा बाबू का जिक्र जरूरी है । भावी की कहानी की धुरी तो भाईसाहब भी थी ना । भाई साहब छह वर्ष की थी जबकि ताकि प्यार और माँ की ममता की बेडियों से मुक्त हो गए । एक बडे भाई थे । केवल सोलह वर्ष की फॅमिली लगा पाई । यहाँ किसी भी तरह दो जून की रोटी जुटा दी थी । चार वर्ष किसी तरह भी ठीक है । बडे भाई कहीं क्लर्क होकर अपने भविष्य की सुनहरी तनी बनी बनने में उलझ गए । भाई राजकुमार दिनभर सडकों पर आवारा लडकों के साथ खेलते थे । हुए के लिए एक दिन लोटा बेच दिया तो शाम को बडे भाई ने खूब मारपीट कल बाहर धकेल दिया । राजा पापु के शब्दकोश में लग जा लानी जैसे शब्द से ही लिखित करना जानी । किस प्रेरणा सी है आगरा भाग गई और वहाँ किनारे बाजार में एक सेट के यहाँ बर्तन मांजने की नौकरी कर ली । दोनों जून रुखा सूखा भोजन में नहीं जाता । फेट की कपडे की दुकान थी । राजा परिश्रमी थी । धीरे धीरे ते दुकान के एक आवश्यक अंग बन भेज सेठ को वह जो राई देती उससे सेट को दुगना लाभ होता है । हम मानती तो उन्हें पछताना पडता । सीट के हृदय और उनके घर दोनों जगह राजा पापों का मान बस था क्या मैं भूल के यही छोकरा कभी दो रुपये महीने पर पतन मांजकर तथा सीट उनका जूठा तक खाते थे । ऐसे भक्त हो गए पर इन्होंने सेटको बनाकर अपनी ओर से आंखें नहीं मूंद जब तक क्योंकि बाद सीट पूरी तरह हो गई । जब सीट पूरी तरह सो गए तो उन्होंने कम्बल डालकर लोग क्या क्यूटा? पर ऐसा नहीं की । सेट समझ लेते पे जागने पर भी लूट से अनभिज्ञ ही रही । इधर सुनते हैं कुछ डाकुओं से भाई साहब का संबंध हो गया । सीट की दुकान की अलग थी । उनकी कई धंधे दी लक्ष्मी उन पर हर हराकर पहुँच रही है । लक्ष्मी की कृपा हूँ और बडों की छत्रछाया न हो तो नाम आप बे मुल्क साथ ही जुट ही जाते हैं । भाईसाहब होनी लगी है । उनके लिए संसार रंगीन सपने की भांति सुन्दर था । जैसे जैसे छप्पर फाडकर धन प्रस्तान । वैसे वैसे वह छप्पर फाडकर पूछे और ऊंचे उन नहीं नहीं । फिर भी उन्होंने एक पैर हमेशा जमीन पर जमा था । लक्ष्मी की चमक देखी तो बडे भाई चम्पक कि भारतीय किस से चले आए । पर राजा की यह दशा देखकर उन्होंने उनके लिए एक पिंजरा घोषणा शुरू कर दिया । उधर वहाँ भी अपनी सुशिक्षित अवसर पति को गाने से पहले खुद बैठी थी । आठ बच्चों के पिता अपनी सत्रह वर्षीय लाडली मुरली पर वह वज्रपात सहन ना करता है उन राजा पापु और मुरली का एक दिन एक दूसरे से बाँध के इस विवाह के पश्चात वहाँ भी हमारे पडोस में फंसी आपने सातवीं कक्षा में थी था अत्यंत रूपसी थी फिर उन के रूप में को मिलता नहीं थी एक ज्योत्स्ना की शीतलता नहीं थी ना उसमें मध्यान् की सूरज की दाहक जा रही थी उनका साम्थर्य तू हजारों की प्राथमिकी सुनी सुनी धूप और बहुत उनका रूप गांव की स्वच्छंदता अलग हर युवती की भर्ती था जिसके अंग अंग से कठोर परिश्रम एवं दृढ चरित्र का आभास था तो भाईसाहब उडनी बने पच्चीस खींचने का आकर्षण तीन ही वर्षों में काम हो नहीं सकता था । अभी दो शिशुओं की माँ बनकर पुरानी से लगने लगे अट्ठाईस आह अपनी फिर से उठना आरंभ कर दिया । एक दिन भाभी के गहराई तो देखा खूब सच रही मैं पदों की तरह पाउडर कॅश लिप्स्टिक बहनों का अंबार ऍम भी कुछ कमी नहीं थी । मैं समझी की शादी में जा रही है । किसी के यहाँ तो अच्छा तो बोली सिनेमा जा रही ऍम मन को तो हाल और भी रख दी से भरो हूँ कितना सच कर सिनेमा पर मन को दो हाल पर्चे क्या सफर पे रखती पर मुस्कान का आवरण डाल दिया मैंने पूछा किस पर बिजली गिरी क्या लगता है कल पेपर में निकले का हूँ । सिनेमा हॉल भस्म हो गया बिजली गिरते ही हूँ बिना रानी किसी यानी से हंसी हस्ती रहती हूँ जिस पर पिछले की रानी चाहिए किसी पर गिरा सकते तो बहुत है चढ सिनेमा हॉल को भस्म करके क्या मिलेगा मुझे थोडा ठहरकर फोर्टी पिछले किराने वाली को देखना चाहूँ तो उस कमरे में चाहूँ जिसकी वाला में आज हमारा सारा घर धू धूकर की जाए । अभी क्या कह रही हूँ ऍम ठीक कह रही हूँ हूँ जाऊ ना देखो उत्सुक्ता वर्ष चली गई तो उसे कहते हैं ठीक है एक बहुत साधारण कुछ अनाकर्षक सी स्त्री थापी के पलंग पर पडे आराम से लेती है खोलकर देखा अगर बट पता है मुझे जाने क्यूँ आपका या नहीं लगी ऍम ऍम कैसी बातें कर रही हूँ तो मैं इतनी हंसी का ही आ रही है । अभी कुछ रुष्ट हो गई । मीना रानी मेरे दोनों कंधी कसकर पकडेंगे भाभी और हम खमियां की धान करता हूँ कभी कभी हम जाते हैं इसलिए नहीं रोना पडे देखती रहेगी लगा जैसे तूफान उठा हूँ पूछता हूँ किसी भी सब कुछ दिन की की भांति हो खाते हैं बुरी तरह चक्कर खा रही हूँ जैसी समझने के लिए अपने कंधे पर रखिए पहाडी के दोनों हाथों पर मैंने अपनी हाँ भावी कि सुनिये हूँ हंसते अधरों को देख कर वहाँ भी मुरझाया गुलाब यदि सुंदर कमरे में सजा दी तो ये सुंदर नहीं लगता है ये तुम्हारे कहने की साढे मेरे हाथ के नीचे से धीरे से अपनी हाथ सरकारी कुछ लोग कमरों से ही प्यार करती खोला हूँ गुलाब बन नहीं जा सकते हैं ना । अरे वही तैयार हो गई भाई साहब का मीठा स्वर्ण मेरी कानूनी पढा ही नहीं देखा भाई साहब उस के कमरे में घुसकर देखा थापिनी मुस्कुरा कर रखना चाहिए तो सी ओर क्या फॅमिली घर चलिये उस दिन तो महान ईरान था तुम लोग कई क्यूँ मुझसे पूछे बिना कहीं जाने की जरूरत नहीं पूरी पांच हमें धीरे धीरे कई दिनों में मालूम राजाबाबू तीन दिन से घर ना ना दुकान के नौकर चाकर कम देखते रही हूँ । एक बात हो गई भाई साहब भी पहला लडका होने के बाद ही अपनी दुकान खोली थी । पूरी नौकरों से जो खर्चा भी देने आया करती थी । भाभी ने पता लगाया कि राजूबाबू का कोई मित्र कहीं से एक स्त्री लाकर उन्हें साफ किया है । हर कुछ चंपत हो गया । भाई साहब तीन दिन से उसी के साथ होटल में पडी । तीसरे रोज रात के अंधेरे में ही तो कान से एक नौकर को साथ लेकर धाबी सीधा होटल पहुंची हूँ । बडी शांति बडे इसमें ही से फॅमिली बडी खातेदारी की भावी नहीं क्यों दाॅये देखकर भाईसाहब कट कट हो तो अच्छी थी । हुई हूँ ऐसा तो नहीं लगता हूँ । दिन भर के आवभगत के बाद शाम को सिनेमा का प्रोग्राम हूँ । खाफी बिल्कुल नई नवेली बन गई । सिनेमा हॉल में ही दोनों में नहीं जाने क्या क्या सलाह हो गई । मैं जाने कैसे पटाया भाविनी भाई को क्यों उसी रात उन श्रीमती की को गाडी पर सवार करा दिया । धामिनी चैन की सांस तीन चार दिन में उन्होंने घर की उस विषाक्त हवा को मिटाने के लिए समस्त घर का काया काल करता हूँ । फिर एक दिन स्कूल से लौटते वक्त मुझे रोकती फॅमिली लड्डू निकालते निकालते बोली बिल्कुल हवा हो गई तो पांच छह दिन हो गए । एक बार भी सुन नहीं आई तो छब्बीस मुझे भावी की अपनी वेदना को छिपाकर में हस्ती ऍम देखे । हम तो सुंदर सुंदर लोगों का मुंह देखते हैं । तुम्हारी वह सौ धापी कि निर्मल हंसी झंड पडी भोली सात को तलाक दिलवा दिया । सौ रुपये भी दिलवा कर भाभी के हंसी देखकर पडी हूँ था कि नहीं बुरा नहीं लगता है सर तुम नहीं तो सीता सावित्री को भी मात कर दिया । शहरों ठीक है तो वहाँ छोटी उन्होंने पीना मेरे साथ सती सावित्री की तुलना करके उन्हें कलंकित मत करो । फिर एक्शन बाद प्रवित होकर पूरी मीना चोरी तो पहले से ही पत्थर बना दिया गया । होना इतनी साधारण करने से भी घर नहीं सकता हूँ । हाँ, थोडी गर्मी जरूर आ जाती है आप की कैसी बातों से? जहाँ एक ओर मेरी उलझन बस्ती भी, दूसरी ओर उनमें श्रद्धा पडती जाती । क्षण क्षण सकता जा रहा था, खास बन सकता है, मिल जाए तो बांधूं उन क्षणों को फिल्म ठीक है की को भी नहीं करनी थी । एक को भी मिल सकती है उन क्षणों को जिनमें मेरी भाभी की होती थी । इतिहास सुमन और मधुर साथ मैं और सुमन इंटर पास हो गए । एक बार फिर आनन हमारे चारों ओर हिलोरी दे नहीं लगा फिर एक दिन भी नहीं हुई थी कि हमारी यह प्रसन्नता आंसू में खो गई । पापा की पिछली दिल्ली होकर हमें दस दिन बाद आगरा छोटी था । सुमन थके वेदना और रूदन के अथाह सागर कि डूब गए हमें दिल्ली आना हो सुमन बी ए मिनाखेल हो गई थी मेरी पढाई छूट सुमन के लिए कॉलेज जाती रोती घर पडे पडे होती हद पत्रों का सहारा है हमारे मिलन सेतु । हमारे पत्र ही आश्चर्य होता है । धापी मुझे यह सब क्यों छिपाया? क्या इन आठ महीनों में ही में इतनी पढाई हो गई हूँ । आखिर भागने मुझसे ये सब क्यों छुपाया है का जैसे दुकान के स्थानी का कारण ही हूँ । इतना भाभी साढे देने को कहती थी तो काम को हानि पहुंचती । वहाँ भाभी मुसीबत में पढा था किंतु अपने पत्र में ही में भर्ती को कुछ नहीं देख सकी । मैंने केवल पुत्र होने की बधाई दी थी । हमारी किसान मैं लिख कर सके, खाफी का पत्र है । छोटे लिखा था मीना हूँ तो उन्हें भतीजे की बधाई मुझे भेजी है पर ये बधाई मेरी तेरी दोनों की ये है ना तो किस बात का है कि तो वहाँ भी को एक काम पर आया । समझ थी साढे की बात आखिर क्या सोचकर नहीं देखी? क्या बाहर ही एक साडी भी तुझे नहीं दे सके की ऐसा समझ लिया कृषि देखने को मन था रखता है देखो तुम आओगी क्या कभी क्या तुम्हारी साडी नहीं भेजता हूँ तेरे अनुसार शिशु का नाम ज्योति ही रखा है शायद अंधेरे होती ही बनी पत्र सादा सा था उत्तर में पढकर बहुत हुई आजकल ना जाने क्या पागलपन चाय रहता है कभी एक्शन को भी फॅमिली को नहीं बना पाती । सब भूमि में बैठक थी । बैठक थी आगरा पहुंचाती सुबह फिर वही वेदना, कहीं छटपटा किसी तरह पांच महीने पीते होगी कि सुमन का छोटा सा था ना किसी भी प्रकार आ जाओ एक बार नहीं जानी क्या होने वाला है । लगता है वहाँ भी कहीं चले जाएंगे आपको देखा नहीं चाहता हूँ । किसी भी तरह हूँ एक पाकिस् खाफी का हम दोनों के सिवा कोई नहीं ऐसा ही समझो हाँ हूँ माँ पापा सी मेरी ओर से प्रार्थना कर लेना लेकिन आना हूँ मैं ही मुश्किल से मैंने मैं अकेले ही आगरा गयी । आप ही का बडा मुन्ना गलत कर पांच वर्ष का एक छुट्टी मिली सी बनियान पहनी चबूतरे पर खेल रहा था । कुछ आया देख कर भाग दौड हैं खाली और काला ब्लाॅक था । बिल्कुल वनदेवी जैसी लग रही थी ना पिलांकर पैरों में चांदी के पीछे की अतिरिक्त उनके तन पर कोई भी कहता नहीं था । था भी नहीं । मुझे चिपटा किया तो नहीं । पहले से बोली पिछले लगता था मीनू तो अवश्य की कुछ पूरी हो गई । आप की कारण अभी चली गई तो धीरे धीरे सुमन और उसकी ओमानी सारी बातें बताई । भाजपा अपनी दुकान से केवल पैसा लेने भर का सरकार रखा है । मैं कभी भी दुकान पर नहीं बैठे । तीन तीन दिन घर नहीं आती । अभी दुकान के नौकरों के सहारे जासूसी करके उन्हें पकड पकडकर नाती तो घर आकर मारपीट करते हैं । कभी कभी काम आते हैं की भावी बेहोश हो जाती है । तब बच्चे इधर उधर खाना खाती हूँ । वहाँ भी नहीं । दुकान का हिसाब किताब देखा तो पता चला की दुकान पर बहुत सारा कर चढ गया है । भाई साहब के साथ अब रही नहीं । किसी भी तीन दुकान और घर की कुर्की हो सकती है । सबको जानकर थापिनी सारा सामान घर से हटवा दिया ऍम थापी पर आफत का पहाड टूट पढाई क्या होगा तीसरे दिन भाभी के हम बैठे हैं कि भाई साहब आ गए, हाथ हुई और कपडे पता नहीं नहीं मेरी कमी सुधार कर भावी की ओर होनी चाहिए । कमी इसके गिरने से पहले जमीन पर कुछ कांग्रेस की पडी आप ही नहीं था कहाँ है और कुछ नहीं पीना पाने सी थी । किसी मोड मारकर भाईसाहब भी जीतने धोखा दिया था । पालिसी देखकर वहाँ भी चौपट । ये क्या है? भाभी नहीं कुछ दुकान का बीमा करा लिया । भाई साहब धाबीः फ्लिपकार्ट थी इस साडी दुकान के लिए तो मैं बीमा कराने की क्या जरूरत है? कहाँ है कि बीमा कराने में से दुकान में आग वार लग जाए तो उसका हर्जाना मिलता है । फॅमिली जोश में आकर अपनी छाती ठोककर पूरे देखो ये है राजाबाबू । कहाँ ऐसा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे? हाँ एक काम कर रहे हो । देखो अब कि सांप मारेगा नहीं और लाठी के भी टुकडे हो जाएंगे । इतनी सी बात कहने में वहाँ पे लगी मैं नहीं दे रही हूँ कि अब मेरे बच्चों की जिंदगी बर्बाद मत करो क्या क्या कहा भाई साहब एकदम अंगार होती थी । मैं तेरे बच्चों के लिए ही सब कुछ कर रहा हूँ । बच्चों के लिए जो कुछ करना था कर चुके । अभी ऐसा मत करो । मैं बस यही कर रही हूँ तुम से मैं और कुछ नहीं चाहती तेरे चाहने न चाहने से क्या होगा । मेरे मन में जो आएगा करूंगा तो तो तो सुनो तुम्हारी मन की अब मैं नहीं होने दूंगी । मैं तुम्हें क्या नहीं होने देगी । कहकर भाईसाहब ने सिल्का लोढा उठाकर भाभी पलटीमार एक चीज के साथ धाबी बेहोश हो गए । अस्थाई साहब घर से बाहर उन्हें शायद मेरा खयाल है मीटर के मारे डुबकी खडी रही । वस्तुतः मुझे भारी पर ही क्रोध आ रहा था की क्यो यह सोती बाप को छुट्टी हाँ अभी की चीज के साथ में दौड कर रहा । अभी से घट गई । फिर सुमन के अम्मा को बुलाया नहीं कराया । लगभग दो घंटे बाद भाभी को वो शायद छोटे अधिक नहीं लगी थी । दिल पर पडा कहा हो गया था राहत को नौ बजे दुकान का मुनि घनशाम आया । बहुत खबरें हाँ अभी क्या क्या पाकर मेरे ही सामने फुसफुसाते हुए क्या है? क्या आज दुकान का क्रिया कर्म होगा? रात को बारह बजे तक सारा सामान आपके भाई के ट्रक पर मथुरा चला जाएगा । प्रसाद के दिन है अधिक परेशानी होगी नहीं कौन देखता रहेगा । सुबह तीन बजे तक सब समझ अभी एकदम से उठ गई थी । क्या कह रहा है नहीं । कल शाम में भाभी की पैर छू खाती बाल बच्चेदार रात में हूँ तुम्हारा नमक खाया है तो बतानी चलाए आज काम पर साहब पिस्तौल जेब में डाले हैं कह रहे थे अगर किसी ने दादा की तो जाते जाते उसे भी साफ कर चुका चाहता हूँ भाभी बाबू साहब को नाम मालूम पडेगा बिरयानी की बात इन शाम की बातें सुनकर मेरा दिल जोर से धडकने लगा थापी प्रभावी को इतनी शांत थाउसी लेटी में कुछ आश्वस्त होते हैं । अच्छा भाभी ने परिस्थिति से समझौता करने का निश्चय कर ही कि आखिर कर क्या सकती ऍम हुई हूँ अभी उठकर सुमन के घर चले की मैं उठी तो पूरी तो बच्चों की फॅमिली लगभग सात मिनट पांच । हाँ! बीस उनके साथ हाथ में कुछ करते थे । उनमें से कश्मीरी सिल्की, नई साडी तथा प्राउड तीन दिन चाहिए साढे तो तुझे नहीं पहले पर पर अबे हल्की सी ही से ऍम हूँ भावी तुमने मुझे तकनीक समझ लिया है । मैं साडी नहीं होंगी । अच्छी पागल हुई हो गया । हाथ ने मुझे निपटा लिया साढे तुम्हें ज्योति की दे रही हूँ दुकान को क्या एक वर्ष लाभ होता है तो अगले वर्ष वही होता है । तो आज हो रहा है नहीं ज्योति को छू अच्छा ये साडी पहनकर तो दिखाओ कैसी लगती है खाती नहीं आदेश दिया नहीं होती रही ऍम तय ही नहीं थी कितना क्रूर उपहास इस दुकान के लिए भाभी ने साढे देने को कहा था आज आपकी लब्धियों से निकल चाहिए मैं साडी पहनकर पेट हूँ भाभी के बहुत कहने पर ये साडी पहन सकते पडोस की घडी नहीं दस बज जाएंगे कहाँ फॅमिली जैसे स्वयं तो दादा उठो चलना चाहिए कहाँ ऍम लाल तीन की मध्यम रोशनी में उनका मुख गुणकारी की तरह चमक रहे नेत्रों उमेंद्र नीचे था सुनु तुम दोनों आज रात ही सोलह ये बच्चों को धरे ले जा । मैं अभी आधे घंटे में आई जाती हूँ । हाँ ज्योति रोई तो अलमारी में दूध रखा है दिला देना मैंने बहुत ही फोकस करता हूँ । नहीं इस समय नहीं कहीं नहीं जाने दो सागर हुई हूँ मैं चाहूँ तो कुछ नहीं होगा जाओगी तो मैं भी तुम्हारे साथ हूँ तो कैसे जा सकती हूँ । मेरे भैया को बुलाती हूँ । उनके साथ जाना सुनने का जानती थी कि भाग्य अटल नहीं, सुमन नहीं किसी और को भी साथ लेकर नहीं होंगे । फिर कुछ रुककर बोली हाँ यदि कोई कुछ पूछे तो कहती है कि भाभी कहीं काम से कहीं कुछ भी कहने की जरूरत थी । हम देखते रहेंगे आप तीन की तरह नहीं मिलते हैं । झूले में भाई साहब की जरूरी कपडे लेंगे नहीं । सुन के घर से नहीं मैं और सुमन बैटिंग फॅमिली कब सुबह पता भी नहीं चलता हूँ तो छोटी चीज की हो रहा था तो लूट, दूध कर्म किया और ज्योति को खिलाती । अब घोषणाएं अभी नहीं आई । अब तक घडी देखी तो चार बच्चे हैं । हम दोनों ढक सीरियल मन चीज ठीक कर हो रहा था । तकलीफ सुनना ली इस तरह से खुलकर रोज ही नहीं सकती । तभी बहुत धीरे से किसी ने कुछ भी घटकर ऍम प्रमाण भाभी के स्थान पर घनशाम को देखकर ऐसी चंपई मानव सात पाँच पैसा क्या खर्चा से चुका था वहाँ? अंदर नहीं तो सुमन से अंदर बुलाया तो धीरे से आया और एक ही सूरसेन उन लोगों के मिलते हैं जैसे उनकी रूनी से ही समझ के घनशाम क्या कहना चाहता है? क्या कह रही हूँ? कहाँ गई वहाँ भी मैं और सुमन दोनों ही अपनी सुख्खू होना तो कल शाम में हमें जो कुछ पता है उसे सुनकर रोंगटे खडे हो गए । पेन चीज उसी नहीं हूँ । बहन की यहाँ किसी तो कहीं ये भेज है सिर्फ आप दोनों को बता सकता हूँ आप से बढकर उनका कोई नहीं था । वहाँ भी दुकान पर पहुंची तो हम लोग कपडे बान नहीं जा रही थी मैं आपको साहब और भाभी के भाई शंकर आपने पिछला दरवाजा ही काॅल अंतर नहीं तो बडी शांति से बोल शंकर तो मैं इस समय यहाँ क्या कर रहे हो? चलो चलो शंकर एकदम चौंक पडा । उससे कुछ भी उत्तर देते हैं । बना ऍम काम किस किया गया से आई हूँ चलो घर जा अभी इसी दम बडी फॅमिली हाॅल पी तबियत घबरा रही थी मैं चली आई नहीं थी आज दोपहर तुम सुमन के घर से पिस्तौल लाई थी । नाम पिस्तौर मुझे देखो घर चली जाऊँ हाँ टीका संशययुक्त भरा हुआ था । मोटी भी कहता हूँ ये क्या बक बक लगा रखी है नहीं काम कर दी थी । फॅमिली तो कुछ अभी था । फॅमिली जल्दी कर मैंने कपडे उपर से उठाने के लिए स्टोर लगाए तो भारतीय स्तर फॅमिली क्या काम हो रहा है । इस समय ऍम मुरली बाबू साहब ने बडी कठोर पर था तो निकलो यहाँ से हमें देर हो रही है । मैं तो साहब विचलित होती थी । तो क्या तोहरा प्रोग्राम आज ही का है । तभी शंकर का चका है होगा क्यों देखो अपना हाथ छोड दो होगा कभी नहीं चुकता यही काम पुलिस की तो तो मुझे पुलिस में देखिए बाबू साहब डीजीसी मानो भाभी की गणतंत्र पूछ लेंगे । मैं तो पुलिस में क्यों कि ऐसे ही हूँ मैं । मैं तो पुलिस से बचाने आई हूँ । फिर हम भी शांत गर्मी का तुम जाओ मुरली नहीं तो मैं नहीं तो तुम क्या करोगी था? फॅमिली बाबू साहब छिटके नहीं, मैं सारा जगह खत्म कर दूंगा । समझे गुरुर आकर बाबू साहब ने पाकिस्तान निकलेगी मुझे मार्केट झगडा समाप्त नहीं होगा, शुरू हो जाएगा । समझे वहाँ भी निर्भीकता से ना पिस्तौल मुझे मुरली बाबू साहब बडी शक्ति से कुछ नहीं तो नहीं होगी नहीं दृढ स्वर में भाग लेने का मेरे जीते ही है । आपको कर्म तो नहीं कर सकते । मैं तो लेंगे चक्कर । बाबू साहब ने पिस्तौल था पर शंकर ने उनका पिस्तौल वाला हाथ पकडकर खींच दिया । किस्तम झूठ पर हाथ खींचने के कारण उसकी नली नीचे हो गई । पूरी धाबी के पहले ही चलेगी । आपकी स्टोर से नीचे गिर पडीं पर नहीं कमाल की हिम्मत है सोच से किसी की भी नहीं परंतु संभलकर थोडी शंकर ऍम कह देना दस बजे से पहले ही मथुरा चले गए थे । हाँ तो सबको भूषण मुरली किसकर उन्होंने भाभी को पकडेंगे ऍम खून के पास साहब चाहूँ मेरी बात बच्चों को देख कर बस आओ जल्दी हाँ संकर जाऊँ नहीं तो तुम दोनों होगे । शंकर तेजी से बाबू साहब को खींचता हुआ बाहर निकल गया । घनशाम तुम पुलिस को बुला फौरन ध्यान दे दिया । विभाग का पुलिस उन्होंने उस समय में सोच भी नहीं पाया । मैं कर सकता हूँ थोडी दूर भर्ती पर एक पुलिस कांस्टेबल मिल गया । उसी को लेकर वापस आएगा । उसी को भाभी ने बताया कि आपको साहब मथुरा जाने वाली थी नहीं देने के लिए कपडे लाएंगे । पाकिस्तान पहले ही जा चुकी थी । अपनी पिस्तौल में है । घर पहुंचाने के लिए घनशाम को दे आए थे । उसे पिस्तौर वहाँ भी को सौंप थी । उसकी पूरी भी है क्या? फॅमिली कैसे गुंडा तब क्या हाॅल? फोन बहुत जा चुका हूँ । दुकान में खून ही खून दिखाई देता है । इसी तरह उन्हें अस्पताल पहुंचाया की डॉक्टर आई और उन्हें ठीक करने और खून चढाने की तैयारी करते हैं । ऍम खाॅ फूट फूटकर रुपए मथुरा बता दिया है । वहाँ भी बेहोशी में पड बना रहे नहीं ना, अभी नहीं पहन के दिखा देंगे । फिर तुझे बढिया सी साडी जरूर बैठा हूँ । नहीं फूट फूटकर

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