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जिस रास्ते से मैं उसी से वापस ॅ किसानी और इस लॉटरी में जमीन आसमान का अंतर बस से आया था । हॅूं अकेला आया था पर अब तो इंसान के साथ पिछली सीट पर मेरे बगल में बैठी हूँ । अगली सीट पर ड्राइवर के साथ नहीं था । धनवान पर टैक्सी बढती जा रही है । भयंकर मोर ओवर सर्पाकार कुशमूल सडक पर तीस ऍम कई बार मुझे ऐसा लगा कि जैसे पार पार कोई मुझे सोर्सिग करते छोटी छोटी था । मैं आया था तब उदास दुखी था । असंतुष्ट वहाँ का हुआ एक इंसान था एक गलत पैटर्न का शिखर, ऍम ऍम परिपक्वता ऍम अरे ऍम, मैंने जीवन के सुख के स्रोत की तलाश कर रहे थे । मैंने सफलता की महामंत्र के दर्शन करेंगे । जिंदगी सुख, टुक, सफलता, सफलता, अंधेरे, रोशनी की आंख नहीं चाहिए । ये हमारे हाथ में है कि हम कब की स्थिति को कैसे संभाला । एक ही स्थिति से विभिन्न हूँ । इस तरह से जूझती शेखर और अनीता भाभी को ही ले ली । यदि संतान नहीं होती तो क्या ये ऐसी भयावह स्थिति हैं जिससे पति पत्नी के संबंधों की सारी मधुरिमा नष्ट हो चाहे कदापि नहीं । अल्पसंख्य व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी हम बच्चे नहीं होती हूँ । क्या फर्क पडता है । घर सुना अच्छा है ये शांति इतनी फिर मामा जी नहीं समस्या को सुलझाने का प्रयास किए । अनीता वहाँ भी किसी बच्चे को कोहली है ना, इससे कोई फर्क नहीं पडता था । पति पत्नी संतानहीन होने के बावजूद सुखी रह सकती हूँ । ये सिर्फ सोचने पर निर्भर करता हूँ । इस प्रश्न को लेकर जीवन को विश्वास बना देना कहाँ की थी? मानी मुश्किल है । यदि मैं ऐसी स्थिति में रहूँ तो मुझे बडा सुख नहीं । मुझे तो शांति पसंद है देश की आप पार्टी पहले ही बहुत पड चुकी है । यदि एक परिवार इस वृद्धि में सहयोग नदी क्योंकि तीन अच्छी बात है । ये स्थिति जनहित नहीं नहीं । अनीता भाभी पडी लिखी होकर भी न समझे की बात क्या है? और शेखर भाई इतनी बुद्धिमान होकर भी अनीता भाभी को समझा नहीं पाए । सिर्फ दृष्टिकोण की बात थी मैं हम दोनों के संबंधों में असंतुलन उत्पन्न होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था । मन्दाकिनी तथा मथुरा हूँ मंदाकिनियों एक आधारहीन गलतफहमी का शिकार हो गई । पता नहीं कितनी वैवाहिक संबंध इन छोटी मोटी महत्वहीन गलतियों के कारण तो नहीं हो जाती है । पति यदि परिस्थिति से बात भी कर लेता है या उसके साथ किसी रेस्ट्रों में बैठकर एक रैली कॉफी पी लेता है । कभी कभार पिक्चर देखा था तो नारी क्या सोचती है कि उसके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण हो गया । शायद है संकुचित मनोवृत्ति का परिचायक तंग भी है दफ्तर में से पुरूष साथ साथ काम करेंगे तो ऐसा होना एक दम स्वाभाविक जिंदगी सच मुझे एक पूछ रही थी । जहां शीत ऋतु आती तो फिर बसंत भी आता हैं जिंदगी में पाल घर के लिए निराशा का अंधेरा चाहता हूँ तो शीघ्र ही आशा की चटकीली थूक पिक्चर रहती है । सब हमारे हाथ में है हम चाहिए तो अंधेरे ऍम चाहिए तो मेरे को तीस रोशनी में बदल सकती मैंने पहले छेनी के लोगों को देखा ऍम जो है कुंडली टक्कर नहीं ऍम अपनी आंखों पर चढे काले चश्मा को उतार फेंक ऍम टैक्सी की खिडकी से बाहर है भारी बारिश से सारे चेहरे मेरी मन की आंखों क्या क्या रही थी कॅश भाई की भी छोडने के कारण दुखी है सुख दुख से टाॅक ऍम असंतुष्टि के कारण निराश शेखर भाई, अतिरिक्ति और अपूर्णता की चारदीवारी में कैद, जीवन से कटी फटी अनीथा जीवन की घनीभूत, तेरह का प्रत्येक मन की एक गलत पैटन की शिकार ताकि जीवन को चीनी की अदम्य लालसा सी प्रेरित मथुरा । जीवन के आधारभूत सुखों की सोच भी छुट्टी तीन हर में शायद इन सबका योग पर जीवन के वीरान रेगिस्तान में झटका । एक जैसे चीनी का महामंत्र मिल चुका था । पर अब सब कुछ सामान्य होटल की मालकिन कपील कपील मेंट करके मैं ऊपर अपने कमरे में पहुंचा । सब कुछ डिलीट क्या सलाह नहीं तो वो चार चीजें जो इधर उधर बिखरे थी । इकट्ठी काॅफी में लगाएंगे । एक बच्चे दूसरी बस दिल्ली जाती थी । मैंने उसी में वापस लाइटिंग का फैसला कर लिया । मैंने सोचा क्यों? ऍम इधर से काफी भीड भाड चल रही थी । यदि समय पर टिकट नहीं मिला तो बडी परेशानी हो जाएगी । एक बच्चे वाली बस आंख नहीं । फिर एक दिन नैनीताल में और ठहरना पडेगा । मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया । ताला लगा हूँ और बस स्टैंड की ओर चल दिया । मैं गिरिजाघर कि समीर पहुंच गया । चटकीली धूप में उसका क्रॉस तब तब कर रहा था । मेहंदी की झाड के पास ऍम सुनी थी । दूर चाइना पीठ पर सफेद झंडा फहरा रहा था । मैं नीचे सडक पर हूँ । खेल की सतह एकदम रुपहली से लगते हैं । बस स्टैंड पर पहुंच फॅमिली खेती की ओर जाने ही लगा था कि मेरे जाने कहाँ से भी नहीं निकला है । मेरे सामने आकर उसे हाथ छोडे । फिर अचानक मेरे पाउच होने के लिए छुपके । अरे ये क्या कर रहे हो? कहता हुआ मैं दो कदम पीछे हट के हम तीनों को दोनों कंधों से पकडकर उठा रहे हो । जो हमारी बात है आपके भरोसे पर ये मैंने होटल की नौकरी छोड दूँ । मैं तो आज सुबह बेहद कबरा किया था । तीन क्यों मुझे तो बचाना गायब हो गए थे । मैं तो समझा कि दीनू कुछ नहीं तो सिर्फ मुस्कुराती । पर तुम इस तरह मालिक इनसे बिना कुछ कहीं सुने पहुंॅचा कैदी जेल से भागने के लिए जेलर से इजाजत लेता है । किस टाॅस तो मुझे दिल्ली ले चलेंगे ना । तीनों वहाँ छोड कर गए । नेता की मूर्ति बनकर खडा रहूँ । मन ही मन सोचने लगा आदमी मेहनती, ईमानदार और विश्वासपात्र घर में कोई नौकरी टिकता ही नहीं । शायद तीनों जम जाए । मम्मी पापा को क्या आपत्ति हो सकती है । यदि वे उसे घर पर नाम भी रखना चाहिए तो किसी दफ्तर में दैनिक मजदूरी पर रखा देंगे । वहाँ से भी इसी करीब सौ रुपये महीना मिल ही जाएंगे । मैंने मन ही मन दीनों को दिल्ली ले जाने का फैसला काट दिया । पर तभी मुझे शीला किया था । ग्रोथ की एक लहर है । मुझे हिलाकर देखो तुम झूठी बोलते हो । मैंने पूछा नहीं तो मैं और झूट तीनो कुछ काम करा सकते हो । एक बार से तुम झूठ बोल रहे हो वो जोर आप माई बाप हैं । मैं आपसे झूठ बोलने लगा । तुम्हारी घरवाली गांव में है ना । इस बार तीनों का चेहरा हो गया वहाँ छोडकर पूरा तो क्या वो जो आपको सब मालूम हो गया? हाँ शीला नहीं बताया हूँ हूँ अब आपसे क्या छिपाना? आज से मैं झूठ नहीं बोलना चाहता हूँ । फिर जिंदा रहने की खातिर बोलना पड । होटल में किसी को भी इस बारे में मालूम नहीं है इसलिए मैंने सोचा दीवारों के भी काम होते हैं ना हो चुकी हूँ तो तुम लोग कैसे मैनेज कर लेती थी? हो जो मैं तो यहाँ काम करता ही था । घरवाली को कब तक गांव में अकेला छोड सकता था पर उसी यहाँ बुलाकर अलग भी तो नहीं रख सकता था । बस उसे होटल में बुला लिया । वो अजनबी बन कराएंगे, माल की नहीं होटल में कुछ शर्तों पर रख दिया उसे खाना और रहना मुझे इसके एवज में दोनों वक्त रसोई के बर्तन साफ करना हाॅर्न तो कुछ नहीं पर मालिकिन में एक बात की इजाजत देती होटल में ठहरने वालों को यदि नौकरानी की आवश्यकता हो तो उनका काम करके उनसे वेतन ले सकती थी । कमाल है अब वो जो शीला तो दिल्ली चली गई है तुम्हे चलों की देखो हूँ । तीनों खुशी से नाच उठा । मैंने जेब से पर्स निकाला । अब एक की जगह दो टिकटे नहीं नहीं थी हूँ मैंने पैसे की नहीं मेरे पास पांच रुपए की कमी थी । अब तो हमारे पास कुछ पैसे ही नहीं हूँ । मेरे पास तो हो जूते फूटी कौडी भी नहीं । फिर क्या शेखर भाई के पास जाकर मानना चाहिए मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था । मैं चिंतित हूं । क्या बात है वो टिकट के लिए रुपये कम पड रहे हैं कितनी पांच रुपये? हाँ छुट्टी दिनों की आंखें चौडी हो गयी । वो दृढ स्वर में बोल रहा हूँ जो आप ही ठहरी । मैं जाता हूँ शायद काम बन जाऊँ । तीनो चला गया । झील के तट पर लगी रेलिंग कर कोहनी टेक कर खडा हो गया है । करीब आधा घंटा बाद ऍम हो गया काम मैंने उत्सुकतापूर्वक पूछा कहाँ हूँ क्या जमाना आ गया है आज छह महीने हो गए पांच रुपये उधार लिए साला देता ही नहीं अच्छा दिन तुम बेफिक्र हो । मैं इंतजाम कर का जब तक मैं ना लौटू ही रहा हूँ, बहुत अच्छा हो । मैंने रिजर्वेशन खिडकी से पूछताछ की तो पता चला कि यदि मैं एक घंटे बात यहाँ तो दिल्ली के लिए दो टिकटे मिल जाएंगे । होटल की ओर चाहता हूँ । मैंने मन ही मन होटल की मालकिन से पच्चीस रुपये उधार मांगने का फैसला कर लिया । आज शाम को दिल्ली पहुँच जाऊंगा । कल ये उसे मनी ऑर्डर कर दूंगा । पांच रुपए मांगने में मुझे शर्म आ रही थी । फिर रास्ते में खर्चे के लिए भी तो चाहिए था । होटल हो मालकिन राउंड में मैनेजर की सीट पर जमीन बैठे थे । मैंने उस से अनुरोध किया पैसे देने के लिए फौरन तैयार हो गया । पर शायद आपको पैसों की जरूरत नहीं पडी हो । क्यों ऊपर आपके कमरे में कुछ मेहमान इंतजार कर रहे हैं । मेहमान में चौंकियां बुरी तरह घबरा क्या आखिर समय पर ही फोन किया सर मेरी कमरे में तो साला नहीं था । मैंने इसे खुलवा दिया था । आपने डुप्लीकेट चाबी से हूँ । फटाफट सीढियां चढकर ऊपर अपने कमरे में पहुंचा पहुंचा तो दंग रह गया । मम्मी और शेखर भाई वहाँ मौजूद थी । मुझे देखते ही मम्मी पलंग से उठी और मुझे वक्त से मुझे भेज कर भी के गले में पूरी धीरे बच्चे तो मिल क्या? उन्हें हम सबकी जान ही निकाल कर रही थी । आपको कैसे पता लगा? मुझे सब मालूम होना चाहिए था । भ्रम में जैसे मान काम ही नहीं कर रहा था । कल रात दस बजे शेखर ने फोन किया था । बस सुबह चार बजे टैक्सी लेकर चल पडी । इतनी सुबह इतनी दूर का सफर और अकेली टैक्सी लेकर चलती है हूँ थे । पंत नगर वाली मामा जी भी तो दिल्ली आए थे । वो भी साथ थी । मामा जी पन्द्र नगर उतर के नहीं तो मामा मामी जी से घर के घर है । मैं धीमे धीमे सहज होने लगा । घर पर सब ठीक है । अच्छा ठीक होना है । सब का बुरा हाल हो गया है । अलका कैसी है उसे देखेगा तो तुझे लगेगा । जैसे महीनों से बीमार है वह हूँ । आज तीनों भी रोज करती है । बहुत परेशान थी । परसों तो उसकी आंखों में आंसू आ गए । अच्छा कहकर मैंने कनखियों से शेखर भाई की होते उत्तर ऍसे आराम कुर्सी पर बैठे । अच्छा तमाचा किया तो नहीं रहा । नाक में दम हो गया । सारे जान पहचान वालों में तहलका मच गया । एक आये, दूसरा चाहिए फोन बाहर से आने जाने वालों का तांता लग गया । खोई हूँ के लिए मन नी अभी भी हम करती है जी नहीं ये भागे हुए लोगों की तलाश है । पर शेखर ढाई पहुंचते । अचानक मुझे मामी जी का कहना तो पंत नगर के कृषि विश्वविद्यालय में लेक्चरर मैंने पूछा मामा मामी से कैसे आई ही नहीं । मालूम नहीं तो भैया के पांचवें लडका हुआ है । पांचवां तो लोग लडके के लिए लडकियों की लाइन लगाते चली जाती है और यहाँ मामा जी ने एक लडकी की खाते पूरे पांच छोकरों की लाइन लगती है । शेखर भाई ने भी अपनी चुप्पी जो उसी गलती का प्रयास चित करनी है चाहूँ ऑपरेशन कराने आए हैं । मैं बेवकूफ की तरह पूछना था । शेखर की बिगडी बनाने आए हैं बच्चे मम्मी ऍम कैसी बिक्री मैं कुछ समझा नहीं । मम्मी तेरे मामा मामी शेखर की बहु को समझाने बुझाने में लगी हूँ । यदि वो राजी हो गई तो बस काम बन जाएगा । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । मम्मी तुम तो एकदम गार्डन हो गए । हो रहा शेखर भाई उत्तेजित होकर पूरी मामा जी अपना मातृत्व अनीता को सौंपना चाहती हैं । मतलब वो चाहती है नेता भावी उनके नवजात शिशु को गोद ले ली नहीं पूछ रहा हूँ । हाँ जी हाँ शुक्र है ना । समझ में तो आया करीब के लिए । अभी से मतलब है कि इसके लिए इतनी जल्दी मैंने तुझे बताया था क्या प्रकृति ने अनीता को मातृत्व का वरदान नहीं दिया । कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा की । तुमने यहाँ का सब हिसाब किताब कर दिया है । मम्मी ने पूछा हूँ चलिए चलिए आप बेकार परेशान मैं तो आज खुद एक बजे वाली बस से लौट रहे पर हमें क्या मालूम था आपका इसकी जगह टैक्सी क्यों नहीं आई? टैक्सी में तो बहुत पैसा लगा होगा । दोनों तरफ से कर ली थी इसलिए सस्ती पड गई । फिर भी काफी पैसा लग गया होगा । लग जायेंगे पैसा किस लिए । बस में आने से क्या परेशानी थी । पहली बस शाम से पहले नहीं पहुंचती । किसी को सब्र नहीं हो रहा था । मैं तो चाहती थी कि मेरे पंख लग जाएगी और मैं छोडकर नैनीताल पहुंचे । हम लोग उठे ऍम मैंने अपनी एकमात्र अटैची उठाई चल दिया । होटल की मालकिन ने मुझे घूरकर देखा और मुस्कुराती कब नहीं चाहिए । मैंने कहा हूँ उसे मुस्कराती नहीं आपका बहुत बहुत धन्यवाद । यहाँ सब तरह की सुविधा थी मैंने । औपचारिकता नहीं हम तीनो बाहर आएंगे । तब दंडी से उतरते हुए मुझे तीनों की आदत नहीं । मम्मी से उसके विषय में बातें कीं । उन्होंने खुशी खुशी से दिल्ली ले जाना स्वीकार कर लिया । हम रोकने के मालरोड पहुंचे । टैक्सी वहीं खडी हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं की कृष्ण हूँ दिल्ली अभी चल देना चाहिए क्या शेखर भाई के यहाँ दोपहर का खाना खाते हैं? शेखर भाई का अनुरोध था की हम लोग ऍम थी नहीं मेरे लिए नैनीताल एक पढाई जगह बन चुका था । मुझे लग रहा था कि अभी इस जगह में कोई आकर्षण शेष नहीं रहेंगे । हम लोग को नहीं दिल्ली जाने का फैसला नहीं । जैसा भी फैसला हूँ हमें लिखते हैं । मम्मी ने टैक्सी में बैठे हुए शेखर भाई से अच्छा अनीता को समझाते हैं । भारत आधी अधूरी जिंदगी जी कल कभी कुछ नहीं रह सकती है तो दूसरों को खुश रख सकती है । कोशिश करूँगा बिना एक बच्चे के जीवनक्रम भंग हो जाता है । मैं जानता हूँ आंटी जी मैं भी टैक्सी में बैठ गया । मम्मी ऍम शेखर खाई टैक्सी की खिडकी पर ऍम अंदर जहाँ मेरी और देखकर मुस्कराए ऍम इसकी अधूरी जिंदगी को भी पूरा कर दीजिएगा । ये भाग दौड हो जाएगा । किसी काबिल हो जाए ये शेखर घंटी जी कुछ होते हैं जो काबिल होने के बाद ही शादी करते हैं । कुछ ऐसे भी होते हैं, शांति के पास काफी हो जाती है । ठीक है तुम्हारी अंकल से बात करूँ । खेखर खाई ऍम तीनों महान खडा मेरी प्रतीक्षा कर रहा था । हम लोगों की निर्णय को सुनकर वाॅल । पहले पिछला दरवाजा खुला । मम्मी के पांव का स्पर्श की, इंटर फंसा बंद करके अगली सीट पर जाकर पहनेंगे । टैक्सी तेजी से पहाडों से उतरती काठगोदाम कि समीर पहुंच रही थी । इस बीच में वह ख्यानत जिसकी नई कम उम्मीद थी । अभी आपकी तरह मेरे अवचेतन मन को चकली हुए था मेरी अम्मी के बीच जैसे मान का पट्टा टंगा हुआ था । मम्मी बार बार उसे हटाने की कोशिश कर रही थी तो हम कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना रहा नहीं तो शेखर की यहाँ क्यों नहीं? पहले ही होटल में अकेले रहने से मुझे डर तो नहीं लगा । मैंने कोई उत्तर नहीं दिया । सिर्फ भेज दिया । मुझे पैसों की तंगी तो नहीं हुई नहीं फिर मन कैसे लगता था? पी कुछ विमान का एक बहुत लंबा तरह मेरे ख्याल से तो उस बात का अभी तक नहीं भूला है । मुझे लगा मम्मी ने बडा साहस जुटाकर ये प्रश्न पूछा ही मैंने कनखियों से देखा तो मेरी ओर नहीं हाथ नहीं मैं मानता हूँ आंखों से दिखाई देने वाली स्थिति भी अक्सर जिंदगी की सच्चाई नहीं । अब कहना क्या चाहती है । जिस पथरीली सडक पर टैक्सी दौड रहे हैं ना? कौन जाने इसके अंदर में एक मीठी चल कीधारा चुपचाप रह रही हूँ तो क्या वो सब छूट था? हाँ, मेरी बेटी तो सिर्फ एक नाटक था, एक साथ थे । साथ ही नहीं वो तो एक सीढी थी जिसपर पहुंॅची हाँ नीचे उठना चाहती हूँ । सोचती हूँ वो सब कहाँ तक उचित था । मम्मी हूँ मैं दिल्ली लौट रहा था बडी खुशनुमा अनुभूति हो रही थी मुझे लौटना हमेशा स्टेशन का श्रृंगार होता है हूँ हूँ सबको मेरे बच्ची हूँ हूँ । मैं महसूस कर रहा था मेरा पुनर्जन्म हो रहा है । जिंदगी की आंख नहीं जानी चाहिए थी अंधेरे के पास रोशनी का सैलाब उमर पडा था ।
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Sound Engineer
Voice Artist