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Part 15 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भारत पंद्रह सुबह होती है । बाहर से मामा जी और मामी जी जगत नारायण के घर आ रहे होते हैं । तभी पडोसी रवि मंगल भी तैयार होकर कहीं बाहर के लिए निकलता है । क्या है आज फिर नागपुर के लिए लडकी देखने जाना है । लगता है रही मंगल ने मामाजी को देखकर कहा बिहारी बात बोलूँ । मैंने अपने जीवन में बहुत तरह के इंसान देखें पर तुम्हारी तरह ली चार आदमी नहीं देखा कभी मामा इतना बोलकर सीधे जगह नारायण की घर में चले जाते हैं । घर में जगह नारायण पार्ट कर रहे हैं । गायत्रीदेवी घर को व्यवस्थित कर रही हैं । अरे क्या बात है अभी तक साफ सफाई चल रही है । मामा घर में घुसते ही बोला था भैया, लडकी वाले बस आते होंगे और बाकी और अभी तक नहाई नहीं । तब से बातों में ही है और चिंटू का पता नहीं कहाँ गया? गायत्रीदेवी ने कहा जगत नारायण अपना पाठ करके उठते हैं तभी देखते हैं दरवाजे पर लडकी वाले आ गए हैं जगत नारायण जी जो लडकी के पिता ने दरवाजे से ही आवाज आएगी हरे आइए आइए मदन लाल जी आई आई जगत नारायण उनका स्वागत करते हुए बोलते हैं हमारे चचेरे भाई हैं मदन लाल जी ने अपने साथ आय साजन का परिचय करवाया । नमस्कार जी और ये हमारे साले साहब, वो उनकी पत्नी और ये हमारी धर्म पत्नी है । जगत नारायण सबका परिचय कराते हुए बोले मदन लाल जी ने भी सबसे मुस्कुराकर नमस्कार किया और फिर जगत नारायण और मदन लाल जी की दूर के रिश्ते तो हर वर्ष वन्स अपना गांव बताने वाली बातें शुरू कर दी थी । बाकुल अभी बाथरूम नहीं है और ये लोग तो हम आकर बैठ गए तो उसे तो इनके सामने ही बाहर आना पडेगा । हजार बार बुलाई ने की बात उनके पास दीवार उठवा दो तो अलग हो जाएं पर नहीं । हॉल, किचन, बाथरूम सब एक साथ बनवाए हुए हैं । मामा बाथरूम के गेट के पास जाकर खडे होते हैं और धीरे से गेट बजाते हुए बोलते हैं । भांजे कितना समय लगेगा तुझे दरवाजे से कान सटाकर बोले मामा मैं तो तैयार हूँ पर भी लोग आकर बैठ गए । इसीलिए नहीं निकला बकुल नहीं भी दरवाजे से कान लगाकर धीरे धीरे बोलते हुए का ठीक है तो जल्दी से बाहर आजा और अपने कमरे में चले जाना सीधा वो देखेंगे नहीं । बकुल फौरन बाथरूम का दरवाजा खोलकर नहीं करता है और अपना एक हाथ छुपाए हुए जल्दी से अपने कमरे में जाता है और जल्दी जल्दी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आता है । सबके पैर होता है और अपने एक हाथ को पीछे ही छुपा कर रखता है । भैया ये कैसे आ गया? गायत्रीदेवी त्रिभुवन डांस के गान में चिंता करते हुए बोली लडकी वाले जगह नरायन मानी मामा सब ठाकुर को अब आश्चर्य से देख रहे हैं । बस और सब को देखकर मुस्कुरा रहा है । उसे ध्यान ही नहीं है कि जल्दी जल्दी में नीचे पैंट पहनना ही भूल गया । मैं खुल दो । माॅक नाना उसे उसके कमरे की तरह बुलाते हैं । बस और मामा के पीछे पीछे अपने कमरे में जाता है ही क्या कर रहा है तो लडकी वालों के सामने नंगा बैठ गया । मामा जी ने बकौल को कहा, बकुल जैसे ही नीचे देखता है तो आश्चर्यचकित होता है । हाँ, फौरन अपनी लाल पैंट उठाकर पहने लगता है पर एक हाथ में तो मंगा फसाए मामा उसे निकालने की कोशिश करते हैं, लेकिन नहीं नहीं निकलता हूँ । आखिर में मैं खुद पैंट पहनाकर बेचते हैं और हाथ में फंसे मग्गे को एक कपडे से ढक देते हैं । बकौल फिर से बाहर जाकर बैठा है । जगह नहीं है उसे गुस्सा वाला लोग देते हैं । लडकी वाले कुछ देर बाहर से बात करते हैं और फिर चले जाते हैं तो वहाँ पे भी माँ होती है । भोसा अर्द्धनग्नावस्था में लडकी वालों के सामने आ कर बैठ गए । उसकी जाते ही जगह मेरा है । अपना गुस्सा निकालते हुए बोले तो फिर वो जल्दबाजी में भूल गया । कोई बात नहीं और आगे से ध्यान रखना । कभी गुस्से में और जल्दबाजी में काम नहीं करना चाहिए । सहसा वृद्धि थी न क्रिया नाम विवेक कहा पर माँ बदाम, पदम ऋण तय ही विमर्श कार्य नाम गुन लोग रह स्वयं ईव संपदा क्या वाकई भैया इसका अर्थ क्या हुआ? गायत्री टीवी ने तुरंत भाई पर गर्व करते हुए पूछा । मतलब बिना सोचे समझे आवेश में कोई काम नहीं करना चाहिए क्योंकि विवेक में ना रहना सबसे बडा दुर्भाग्य है । वहीं जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है वो महालक्ष्मी उनका चुनाव खुद करती हैं । मामा ने बखपुर के कंधे पर हाथ रखते हुए और जगत नारायण की ओर एक लुक देते हुए श्लोक पूरा किया । वो भैया हुआ सच कहूँ तो आपको देखकर लगता है कि आप पीने गहराई से पंडिताई को सीखा है । गायत्रीदेवी भी जगह लगाये को सुनते हुए कहती हैं तुम ये क्या तब से एक हाथ पीछे बांधे हुए खडे हो क्या हो गया तुम्हारे हाथ में? जगत नारायण ने उस बात से सबका ध्यान हटाते हुए बहकर से सवाल खडा किया वो नहाते हुए मघा फस गया था हाथ में मैं कुछ हाथ सामने लाते हुए कहता है भगवान दुनिया के तमाम उल्टे अटपटे काम तो चाहिए होते हैं । कभी कुछ तोड फोड करता है, कभी कुछ गिराता है आज मध्य हाथ में फसा लिया गायत्रीदेवी बाकुल को देखकर खुद का सिर पकड लेती हैं । अरे लाओ में अभी निकाल देता हूँ मामा जी पूरी ताकत से खींच कर देखते हैं पर रह नहीं निकलता थी से बल्लू लुहार के पास जाकर कटवाना पडेगा क्योंकि ये मर का बहुत शक्ति से फसा हुआ है और लोहे का है, बल्लू कार्ड देगा और दर्द भी नहीं होगा । मामा जी हफ्ते हफ्ते बोलते हैं चलो मैं चलता हूँ दीदी जीजा जी मामा ने जाने की तैयारी की रविवार को आ जाना । बारह बजे तक लडकी देखने चलना है जगह नारायण ने मामा से कहा है जी जी मैं कहता हूँ अभी थोडे समय रहने देते हैं फिर कुछ समय बाद देखेंगे । लगभग जहाँ भी जाते हैं मनाई होती है अभी बकौल का कुंडली योग ठीक नहीं चल रहा है । दो महीने बाद राहुल बदलेगा । कुछ अच्छा हो सकता है । मामा जी ने कहा हाँ मुझे भी लगता है राहु बदल जाए तब देखते हैं । गायत्रीदेवी ने भी भाई की बात पर सहमती जताई । अरे मदन लाल जी ने बुलाया अगले रवि राय उन्हें तो बहुत पसंद है । क्रिकेट नारायण चेहरे पर खुशी लिए बताते हैं सब लोग ऐसे आश्चर्यचकित होते हैं जैसे किसी ने रेगिस्तान में पानी देखने की बात कर दी हो । क्योंकि सब ने लगभग माना हुआ था की मदन लाल जी भी और उनकी तरह हम फोन पर बताएंगे । या भी हमें दो साल और शादी नहीं करनी है जैसा कोई भी बहाना बनाकर चले गए होंगे । लेकिन ये बात सुन की सबके चेहरे पर थोडी खुशी थी । बडकुर के पहरों के नीचे से एक बार फिर जमीन खीसक चुकी थी पर बिना किसी भाव के वो सिर्फ एक पुतले के सामान खडा रह गया था ।

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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