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फॅस फॅमिली फॅमिली नहीं ऍम नहीं आंकी मून करता था की कल्पना कि रंगीन पटल पर एक नारी का मुख्य उधर रहे आकाश ऍम किस काम उठाई है धंधा की नहीं ऍम ऍम होटल की ओर चल पडे मैं होटल में घुसा था सर्वत्र अंधकार का था ऊपर जाने के लिए सीढियों पर पाओ रखा तो महसूस हुआ अगली सीढियों पर एक आकृति चल रही है ऍम पूंजी तो अकस्मात ऍम नहीं है तो फॅमिली बयान ही रहा है । तब नहीं होटल की पत्ती को क्या हो गया? मैं ऊपर पहुंच गया । मैं उस ही हुई आकृति के समानांतर खाया था ऍम ऍम ये निमंत्रण था क्या? खाती मैं आकृति के पीछे नहीं उसकी कमरे में पहुंचा तो मुझे हुई ऍम ये अंधेरा भाटी ऍम तभी कमरे में भट्टी का किला प्रकाश पहले ना कराने ने मोमबत्ती जलाकर लगती थी । कमरे में कब्रिस्तान शांति थी हल्की हमारा खिडकी के शीशे से बराबर से काॅफी सारा कमला हल्के पीले रंग की अस्पष्ट धुंधलके ऍम हूँ मैं कुर्सी पर बैठा हूँ ऍम तभी बत्तियां सारा कमरा तेज प्रकाश भी नहीं मिला अभी भी कराने के पास खडी थी उसने मारकर मोमबत्ती को बुझा दिए मेरी बेटी पढ रहे हैं हूँ हूँ लेकर मन्दाकिनी नहीं शॅल बारी शुरू हो गई है फॅमिली नहीं चाहेंगे कॅश कभी सोचा नहीं दिल्ली टीटी का बहुत मन करता है कि थी क्यूँ मेरी सारी शरीर में रंजीन सी सरसराहट हो रही है कुछ दिन तक खेला हूँ फिर तीसरे खडी नहीं फिर दरवाजा खोलकर वहाँ चलेंगे दरवाजा खोलती ठेले पालक जैसे प्रतिनिधि हमारा की तीस हो चाॅइस दशक की रंगीन पत्रिकाओं पन्नी ऍम इतनी ठंड भी कहाँ नहीं मैंने पूछना था खाना खाने के तहत ऍम चक्कर लगा कर रहे हैं इतनी सर्दी में अचानक से पति चाहिए अमरान धीरे में तो क्या जरूर मोमबत्ती जलाती से का मैं उठा अच्छे से माचिस निकालकर ही चलता है हवा नहीं थी कमरा पर फिर भी नहीं जानी मोमबत्ती लाभ भाजपा कम जाती थी बाहर हवा की धारा हट नहीं अंदर कसमसाहट हम तभी ऊपर पहाड पर बनी बाॅक्सिंग उसी सैनिक के खाने की आवाज क्योंकि ऍम उसी की की है मैं समझ में नहीं आया कि क्या कहूं ऍम नहीं की लगता है हल्की रूई के सहस्त्र तहों को चीज हो किसी का प्रेमा लाभ वातावरण में पूछ रहा है मैं सेक्रेट भी रहा था करवाता हूँ कमरे में उमर खुमाड एकाद बार मंदाकिनी जी को खांसी का ठसका भी आया था । आपकी समय कुछ ज्यादा ही चिंतित हैं । मैंने मन्दाकिनी जी के अंदर में झटका चाहता था वो एक कम सकता हूँ वहाँ पढाकर पूरी नहीं ऐसी बात नहीं है । मेरे मुख पर अविश्वास की रेखाएं खींची थी । कुछ बोलिए ना आप चुप क्यों हैं? मैं सोच रही थी जिंदगी में सुख ॅ दोनों हाथों से पकडने की कोशिश इंसान कहाँ पहुंच जाता है । चुप इंद्रधनुष साथ नहीं आता तो आपने कहाँ की थीमी ऍम करती थी मंदा कि नीचे जो विकट हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता । हूँ ही नहीं । जीवन में हम लोग जो फैसले देते हैं उनके परिणामों को तो हमें भुगतना ही पडता है । चाहे हम होकर भुक्ति यह किस करता हूँ । शायद मेरे शक्त मन्दाकिनी के अंदर की गहनतम गहराइयों में हाल चलना चाहिए भी कुछ फॅमिली है । आप कुछ कहना चाहती हूँ हाँ, तुम ने ठीक ही कहा तो मैं अपने फैसले के परिणामों को भूल रही दूसरी विगत की दाहक स्मृतियां अबकी मेरे अंतर को हर समय चल साथ ही रहते हैं । कुछ भी सोच कर मैंने आपकी राॅकी इलाज है क्या विमॅन आप हंस क्या रही हैं आप? क्या ऍम मैंने ऐसा क्या क्या है बोलनी की शिक्षा दे रहे हूँ । पता नहीं क्या मालूम है भी कितना मुश्किल काम है । फॅमिली आपका एक थी और छितिज के काॅपियों की होली चलती है मेरे रूम रूम में मधुर की सांसी ऍम तुम ही बताओ मधुर के अस्तित्व के अहसास में कैसे नहीं कर सकती? कॅश बाहर बरामदे में किसी की पदचाप पूंजी मन्दाकिनी एक कम खटा फॅस उसके मुंह से निकल के शीला नहीं फॅमिली आई थी शीला ने पाॅवर रखती है फिर एक तक मंदाकिनी की होती नहीं जहाँ सोने का समय हो गया । मन था कि नहीं, मोमबत्ती की पीली लाख कम कम आ रही है । कुछ काम तो नहीं दी थी । नहीं ये ऍम मंदाकिनी जी कुछ मेरी उमा सुनी सुनी ने कहाँ फिर ऍम भी खेल कर्पूरी ऍम शायद मनना की नहीं जी बातों का प्रसंग करना चाहती थी । इस अपने फॅमिली पे कॉफी के प्याले पर दृष्टियाॅ पूछ रही थी तो मेरे बारे में क्या सोचती हूँ? क्या मैं इस प्रश्न के लिए कई कहीं नहीं है । मैं तुरंत उत्तर भी नहीं दे पाया । मुझे लगा मन्दाकिनी जी प्रश्न पूछकर शाह लज्जित हो गई । उनकी प्रश्न की गूंज अभी भी मेरी चारों लिपटी हुई थी । मेरी सीक्रेट खत्म । मैंने उसे हिस्ट्री में मसल दिया । फिर कुछ गर्मी लेने के लिए हाथों की हथेलियों ऍम हमने बताया नहीं, मैंने कुछ सोचा नहीं है । कुछ भी नहीं अच्छा वैसे ही आपकी मोमबत्ती की तरह कल कल कल रही कहाँ चारों ओर कटु स्मृतियों की सूखी पत्ती खटखटाते हुए मंडराते रहते हैं । आप दिशाहीन सी एक धूरी रहित गरीब ही में काॅपर खाती रहती है । ऍम लेने दीजिए इन ठंडी रात तू मियां मधुर जी के विश्वासघात की याद करके विक्षित सी हो जाती है । जब था का पूछ सही हो जाता है तो मुझे आपके अंतर में चरमराने । किसी आवाज सुनाई देती है ही, चरमराहट टूटने की पहले से ही होती है । नहीं हाॅकी लगभग ठीक पडेगा उनकी तेज स्वर से जैसे सारा माहौल पहल क्या मुझे मंदा की नहीं देखी? माथे पर उभरती फॅमिली का चेहरा वर्षाकालीन आकाश प्रतिबंध रन पता था मैं कुछ और तो नहीं सोचते । मैंने सीक्रेट का आॅक्सी हुआ निकालकर पूरा हो, इससे ज्यादा भी सोच सकता हूँ में सोचना नहीं चाहिए क्यों? फिर मैं अपने जीवन में कुछ भी सोच पाने की स्थिति में नहीं रहे । जमकर हाँ, बस एक कामना है मेरे मन नहीं लेकिन यही की आपको इस कसमसाती पीडा से मुक्ति मिलेगी । मंदाकिनी थी शायद ठंड के कारण धरती बनाने लगी थी । उन्होंने बॉल को कसकर अपनी चारों ॅ और उत्तेजित होकर थोडी और उसको टीका माध्यम बनना चाहते हो तो नहीं मैं पूरी तरह छटपटा क्या ये क्या कहती है बंदा की नहीं निशत पकाकर खडा किया फिर मैं उत्तेजित स्वर्ण धोना ये कब कहाँ मैंने हर पांच कही नहीं चलते हैं । हर बात का इस तरह गलत नहीं लिया जाता हूँ तो मैं तीन तेजित के हो गए हैं क्या करूँ नहीं हूँ बैठ के सर्दी बढ रही हैं । मिलिट्री ब्लॅक से आने मना जीत हम चुका था । मोमबत्ती का पीला प्रकार और कुहासा मिला । चुनाव कर एक विभाग से वातावरण की सृष्टि कर रहे थे तो तुम मुझे सुखी देखना चाहते हो । कुछ तेज भाई मंदा की नहीं जी नहीं पूछा । अनथक के लिए मैं मानता हूँ ना कॉफी पी लीजिए, ठंडी हो रही है । तुम जानती हूँ खुशी का स्रोत कहाँ है? शायद उसी की खोज में लोग अपने जीवन को खंडहर बना डालते हैं । तभी मंदाकिनी जी पवन सिंह कमरे में चहलकदमी करती हूँ । सिर्फ पल भर के लिए मेरे सामने आकर खडी हूँ दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण खोज की है क्या मैंने सुना हूँ काटने के पास ऍम घूम रहे थे । मन था की नहीं चाहिए घर । तभी ऍम और मोमबत्ती फिर से चल रही थी । आपकी स्कूज का जिक्र कर रही है कौन सी खोज? क्या यही समझा नहीं? तब ही पत्तियाँ कमरा दूधिया प्रकाश से भर गया । तुम इस अंधेरी उजाली की आंख मिचौली देख रही हूँ किसी का नाम जिंदगी मुझे लगा मेरी अंतर में भी बत्तीस चली थी मेरे माइंड के सारे अंत अंधेरी जब मंगाई थी विश्वास की सीटी में बंद मनका मोटी विराट सुख की सृष्टि करता हूँ । इंस्टाॅल मंदाकिनी जी की सुख पर एक आने की एक सीट छोटी चल रही थी । पर मंदाकिनी जी हम सब प्रकृति के शमशान में भटक रही । हम चारों ओर खेलना, विश्वासघात, विद्वेष, प्रतिशोध, अविश्वास मांॅ तो अंधेरी की बात कर रही हूँ । मैं तो जाने का जिक्र कर रही थी । अचानक फिर पति चली गई । अंधेरी का विस्फोट हुआ चारों तरफ फॅमिली बिखर के । मैं मोमबत्ती जलाने के लिए उठा तो बोली नहीं, नहीं नहीं वैसे हम मैंने पूछा क्यों मंदाकिनी जी का था बहुत पास मोमबत्ती चलाने से क्या फायदा? इंसान को अंधेरे में रहने की आदत डालनी चाहिए । किस देखने को हँसी कीप रकम पर निशक्त ठंडी हवा की काम कभी और परछाइयों की विप्लब से कमरा भर के अपनी नहीं जाएंगे मैं अंतरिक्ष से नीचे पृथ्वी पर मंदाकिनी चीनी कुछ उत्तर नहीं वर्ष शुरू हो गई । नैनीताल खाली होने लगा है करें जी पर रखा है पचपन सकता हूँ मंदा की नहीं जी जैसे कुछ याद कर रहे हैं क्या तो याद आ के फॅस तो तभी बाहर बरामदे में किसी की पद कम सुनाई थी फिर बाल घर के लिए वो पच्चास ठहर के मुझे लगा वो दरवाजा खटकाने का साहस नहीं जुटा पा रही नहीं आतंक का नहीं मंदाकिनी जी ने काम कपाटिया वास्ते कुछ कौन है नहीं इस समय कोई नहीं आ जाएंगे । बत्तियाँ कमरा प्रकाश से यहाँ है मिस्टर मंडोत्रा को कमरे में आते हुए देखा था ।
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