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परिस्थितियों के गलियारों से उठता हुआ धुआ व्यक्ति को आंख मोदी ने को विवश करता है । किंतु जो व्यक्ति उस धुएं में आखिरी खोले रखने का साहस कर लेता है है, बिना किसी अवरोध के आगे बढ जाता है एक सापुतारा के रूप में । सो मैं अपने माता पिता के हत्यारों को खोज रहा था । इसी उद्देश्य से वे आदिवासियों से हेल्थ मिल गया था । किंतु जब वो उसने आदिवासियों की तय नेता दशा देखी तभी से उसका एक लक्ष्य भर बन गया रह था आदिवासियों को न्याय दिलाना, उनका हक दिलाना आकस्मात । एक दिन राजा मजूमदार खबर लेकर आया कि सोमेश के माता पिता की हत्या सरपंच के दम आठ छेदी लाल ने अपने ससुर के इशारे पर की थी । सुमेश को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि साॅस तो हमेशा सोमेश है, मधुर व्यवहार ही रखता था और दुःख के समय संवेदनाएं प्रकट करने भी आया था । राजा की खबर सौ प्रतिशत नहीं नहीं सोमेश चिंतन में डूब गया । क्या अपने माँ बाप के हथियारों को सजा दे भी अच्छा उनको छमा कर दूँ? समाज में छिपे भेडिये जिन्होंने इन देशभक्तों को अकारण असमय मौत की नींद सुला दिया । क्या देशद्रोही नहीं है? क्या इन्हें जीने का हक है । राजा ने सुमेश के दुविधा को उसके मूक्स एमिटी समझा और छेदी लाल को छलपूर्वक जंगल में ले जाकर उसकी हत्या कर दी । सरपंच के आदमियों ने आदिवासियों के चार मासूम बच्चों को मौत के घाट उतार दिया । नन्ने मुन्ने की दर्शन हत्या से आदिवासी भी अपना आपा खो बैठे और पूरे दल बल के साथ राजा के नेतृत्व में उन पर धावा बोल दिया । भयंकर मार्क आठ मच गई । दोनों पक्षों के अनेक लोग मारे गए । जीत किसी की भी नहीं हुई । गी जगह भी सोमेश इन परिस्थितियों में बहुत असहज था । उसके मन और मस्तिष्क में धंधा चल रहा था, हूँ । मान रवि था, दिल कह रहा था कि संन्यास की ओर प्रस्थान करूँ । दिमाग कह रहा था कि यही उपयुक्त समय नेतृत्व का निर्माण करो । उसी गाठ सुमेश के निवास पर एक अत्यंत गोपनीय बैठक हुई, जिसमें गहन विचार विमर्श करने के पश्चात राजा मजूमदार गुम मुखिया प्रधान बनाया दिया गया । धीरे धीरे राजा के नेतृत्व की सीमाएं विस्तृत होती चली गई । दलित वंचित उत्थान है तो एक राष्ट्रीय संगठन के साथ साथ अनेक क्षेत्रीय संगठनों का निर्माण होता गया हूँ । स्थानीय जनजातियों के त्वरित खेत संरक्षण से मैं उनके हितैषी बनते गए ऍम है इस सुधारवादी आंदोलन की दिशाएं परिवर्तित हो रही थीं । माओवादी विचारधारा हिंसा की अजस्त्र धारा ले कर इसमें समाहित हो गई अराजकता का विस्तार हो रहा था । आक्रामक युवाओं को अनुशासित रख पाना टेढीखीर हो गई थी । वो बेसिरपैर की विचारधारा लादना और सिर्फ फ्री हिंसा करना भी प्रारंभ कर दिया । इनका संगठन राष्ट्रीय विकास कार्यों में भयंकर रोडे अटकाने लगा । सडकें नहीं बनने देना बनाने वाली कंपनियों को धमकाना, उनका सामान जला देना, ऍम कामगारों की हत्या जैसे काम होने लगे । दलित वंचित नाम के इस आंदोलन ने हत्या, लूटपाट, बम विस्फोट, फिरौती और अपहरण का बाना पहन लिया । परिस्थितियों के नियंत्रण है तो पुलिस बल की भूमिका बढती जा रही थी । नक्सलियों को पकडने है तो पुलिस दावा बोलती तो वे आदिवासियों को ढाल बना लेते । बहुत भोले भाले आदिवासियों की होती है और असली अपराधी फरार हो जाते हैं । इन नक्सलियों की गतिविधियां बढ रही थी । उधर पुलिस कार्यवाही भी बढ रही थी । रात को बारह बजे भी उनकी तलाश में पुलिस नागरिकों के दरवाजे खटखटा देती । किसी प्रकार से उपजे संघर्ष में नई नई अपराधों की मौत भी हो गई । एक प्रसिद्ध कॉलेज का मेधावी विद्यार्थी जो राष्ट्र का उज्जवल भविष्य हो सकता था । इस संघर्ष की भेंट चढ गया । उसकी स्मृति सभा में उसके प्रोफेसर नहीं जब उस की आज मैं कविता का पार्टियाँ तो सबकी आंखें नम हो गईं । क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप पूरी की पूरी कहानी नक्सली बन गई । निहत्थे नागरिकों की रक्षा करने के लिए । तब फंडा गांधी जी के भक्त थे । पक्के अहिंसा हो पुलिस फायरिंग में एक गोली ने उनके प्राण लिए । कार्यक्रम स्वरूप उनका बुधवार नक्सली बढ गया । एक युवक जिस पर नक्सली होने का संदेह था उसे पुलिस ने इतना पीटा कि हिरासत में उसकी मौत हो गई तो उस की मांग अकेले वजवाना पुलिस थाने के न जाने कितने चक्कर लगाए हिंदू से अपने एकलौते पुत्र की लाश चलाने को भी नहीं मिली । इस तरह के परिस्थितियों से या हिंसक आंदोलन आम जनता की सहानुभूति प्राप्त करते हो गए । गहरे तक पेट भर रहा था । बुद्धिजीवियों का भी खुले आम समर्थन मिल रहा था । ये बुद्धिजीवी वातानुकूलित कमरों में बैठकर योजनाएं बनाते सहानुभूति बटोर कर देश विदेश से इस आंदोलन के लिए धन मुहैया कराते हैं । कुल मिलाकर इस आंदोलन की ताकत बढती जा रही थी । पर्दे के पीछे से मास्टरमाइंड योजनाओं को प्रस्तुत करता और राजा मजूमदार मुखिया प्रधान अपने संगठनों के साथ इनको अमलीजामा पहनाता भारत के विभिन्न प्रांतों के आने की जिलों में या आंदोलन जडे जमा चुका था । ऍम भारतीय आकांक्षाएं और परिस्थितियां उद्दीप्त कर रही थी वो इसलिए हर युग में आन्दोलन आवश्यक हैं । जिन आंदोलनों के साथ आध्यात्मकि शक्ति नहीं वो किसी एक व्यक्ति को भी बदलने में सहायक नहीं होते हैं किंतु आध्यात्मिक शक्ति के साथ उपस् थित आंदोलन युग धारा को मोडने सकने में समर्थ होते हैं हूँ ।
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Voice Artist