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Part 12B in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
अंधेरी रात में, धमाकों के बीच, अपने ही साथियों की आंख में धूल झोंक कर गंथर भाग निकला… चलने-चलते उस ने पे-मास्‍टर सार्जेंट को घायल कर दिया और रूपयों की तिजोरी अपने साथ ले ली। लेकिन गंथर ने ऐसा क्‍यों किया? एम जर्मन सैनिक की सच्‍ची कहानी जिस ने अपनी सेना के विरूद्ध जिहाद छेड़ा। Publisher - Vishv Books Writer - Ganther Bahneman
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हवाई अड्डे पर बहुत चहल पहल थी । मैं सैनिकों से भरा हुआ था । घायलों से भरी हुई गाडियां दर्जनों की संख्या में खडी हुई थीं । ग्रीस तथा तेल में लगभग मकैनिक विमानों पर कार्य कर रहे थे । हवाईपट्टी पर कुछ ऐसे विमान थे जो कि बिना पार्टियों के नीचे उतरने पर भारतीय हो गए थे । जितने भी मरम्मत योग्य विमान होते वो बनी ना के हवाई अड्डे पर ही मरम्मत के लिए भेजे जाते थे । मैं एक वर्क शॉप के पास खडा होकर चारों तरफ सावधानी से देख रहे लगा हूँ । यहाँ मुझे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी तो ठीक व्यक्ति इतना व्यस्त था की किसी ने भी मेरी ओर ध्यान नहीं दिया । मैंने एक जर्मन को जिसने की अपनी वहाँ पर रेड क्रॉस की पट्टी बांधी हुई थी, बुलाया और से पूछा कि इटली जाने वाला विमान यहाँ से कब चलेगा । उसका उत्तर निराशाजनक था । ये इस बात पर निर्भर है कि अगले कुछ घंटों में यहाँ कितने विमान पहुंचते हैं । उसने बताया, बहुत से विमान यहां पहुंचने से पहले ही मार गिराया जाते हैं । यहाँ पर केवल सिसली से आने वाले विमान सुरक्षित पहुंच पाते हैं । अभी अभी सूचित किया गया है कि अंग्रेज विमानों ने हमारे विमानों पर भयंकर आक्रमण कर दिया है । उस व्यक्ति की बातों में मुझे उत्साह लेशमात्र भी नहीं दिखाई दिया । परंतु घायलों का क्या होगा? क्या रेड क्रॉस के विमान नहीं होते हैं? मैंने पूछा वो तो समय पर पहुंच जाते होंगे । हमेशा नहीं । उसने उत्तर दिया । इससे मेरा उत्साह और भी ठंडा पड गया । उसने जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और मेरी और बढा दिया । नहीं नहीं धन्यवाद मैं से छोटा तक नहीं । मैंने कहा उसने सिगरेट सुलगा ली और एक एंबुलेंस की तरफ संकेत करते हुए कहा हम यहाँ छह घंटे से खडे हैं ताकि घायलों को विमान पर चढा देते हैं और हमें अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि विमान यहाँ कब पहुंचेंगे । अच्छा तो इससे यह प्रतीत होता है कि मुझे भी पता नहीं कब तक रुकना पडेगा । मैंने कहा तो मैं यहाँ किसलिए आया हूँ? क्या घर से तुम्हारा कुछ सामान आ रहा है? उसने पूछा और मेरी गाडी की तरफ देखा । नहीं नहीं मेरे पास ये पार्सल हैं क्योंकि मुझे जर्मनी भेजना है । मैंने उसे बताया हूँ । उसने कहा सामने डाका तंबू है । उसको वहाँ डाल दो नहीं है, ठीक नहीं है । मैंने कहा की है एक महत्वपूर्ण पार्सल है जो की डेरना के हेडक्वार्टर का एक कर्नल भेज रहा है । वैसे इसको सीधा विमान से भेजना चाहता है ताकि इसके पहुंचने में बिलकुल देरी न हूँ । कुछ मिलिट्री पुलिस के सैनिक जा रहे थे परन्तु उन्होंने हमारी ओर ध्यान नहीं दिया । क्या तो मैं इतनी दूर देर से यह पार्सल पहुंचाने आया हूँ । उसने हैरान होकर बोझ हूँ । मैंने भी हस्कर कहा । हाँ देर से इतनी दूर पहुंचा हूँ । मैं मालूम है कि बडे अफसरों को इसकी क्या चिंता । उनका तो काम चलता है और अब मुझे ये पता नहीं कब तक यहाँ ठहरना पडेगा । ये सुनकर बहस पडा अगर तुम चाहो तो पार्सल मुझे तो मैं उसको विमानचालकों के पास रख दूंगा । इससे तुम्हारा यहाँ ठहरने में समय नष्ट नहीं होगा । उस नहीं है । इतनी सरलता से कहा की मैं चम्बा में पड गया । यह सरल उपाय तो अपने आप ही नहीं कराया था मैंने ये कभी सोचा भी नहीं था । अब मुझे ये कार्य शीघ्र कर लेना चाहिए । ये अवसर हाथ से नहीं निकलना चाहिए । मैंने सोचा हूँ मुझे पता नहीं क्या तो मैं यकीन है कि तुम पार्सल विमान में रख दोगे । मैंने पूछा मेरा मतलब ये है कि विमानचालक इसको स्वीकार कर लेगा और ये सेंसर नहीं होगा । मैंने कुछ संदेह प्रदर्शन किया तो तुम जानते हो कि मैं डाकवाला सैनिक हूँ । ये पार्सल ना पहुंचने पर मेरी मिट्टी खराब कर देंगे । यह सुन कर इतिहास पडा । यदि मैं बडा पार्सल न हो तो तो मुझे तो मैं एक घायल सैनिक के पास उसको रख दूंगा जो की जर्मनी जा रहा है । हम हमेशा अपनी डाटा पार्सल ऐसे ही बेचते हैं । मैं सीट के नीचे से पार्सल निकाल कर उस को दिखाते हुए पूछा ये बहुत बडा तो नहीं । मैं खिलखिलाकर हॅाल कहते हो, यह तो बहुत छोटा है । ये बडी सरलता से भेज दिया जाएगा । हम तो इस से पांच गुना भारी पार्सल बेचते हैं । उसने मुझे विश्वास दिलाते हुए कहा मैंने पार्सल उसके हाथ में थमा दिया और उसने उसको अपनी बगल के नीचे लगा लिया । अच्छा तो मैं ठहरने से बच गया । मैंने निश्चिंत होकर कहा कोई बात नहीं यहाँ इस भीषण गर्मी में ठहरने से कोई लाभ नहीं । अच्छा तो तुम्हारा पार्सल अभी एक घायल के पास रख रहा हूँ । उसने कहा फिर कभी मिलेंगे । ये ऍम की तरफ चला गया हूँ । धन्यवाद । मैंने पीछे से चलाकर कहा उसने बगैर मुडेगी हाथ हिलाकर उत्तर दिया और गाडियों के बीच में ओझल हो गया । मैंने गाडी स्टार्ट कर दी और उसी गेट पर आ गया जिससे मैं आधे घंटे पहले अंडर आया था । मंत्री ने मुझ तक पहुंचने में कुछ देर की । मेरा मन बहुत हल्का हो गया था । मैंने प्रसन्नतापूर्वक उसका अभिवादन किया और मेरी गाडी तेजी से आगे बढ गई ।

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अंधेरी रात में, धमाकों के बीच, अपने ही साथियों की आंख में धूल झोंक कर गंथर भाग निकला… चलने-चलते उस ने पे-मास्‍टर सार्जेंट को घायल कर दिया और रूपयों की तिजोरी अपने साथ ले ली। लेकिन गंथर ने ऐसा क्‍यों किया? एम जर्मन सैनिक की सच्‍ची कहानी जिस ने अपनी सेना के विरूद्ध जिहाद छेड़ा। Publisher - Vishv Books Writer - Ganther Bahneman
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