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Part 12 in Hindi

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AuthorAditya Bajpai
यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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भाग बारह इसके बाद कुछ रविवार और आए तथा हर रविवार पर हमेशा की तरह सब लोग श्यामलाल के मिनी ट्रक में बैठकर लडकी देखने के लिए निकलते । रवि मंगल आकर अपना टोकने का काम करते हैं । मामा जी गायत्रीदेवी एक दो बातें उसे सुनाते हैं और फिर सब लडकी वालों के यहाँ पहुंचे । वहाँ हर बार की तरह ठाकुर को अस्वीकार किया जाता है और भक्त और अधिक डर निराशा में भरा भरा ही रहता हूँ । समाज और लोगों की निरंतर अस्वीकार्यता ने बडे बडे लोगों को उदासी और घमकी दुनिया में भेजा है । बकौल खराबी स्वयं से मानसिक और शारीरिक द्वंद हमेशा चलता ही रहा हूँ । कभी वास्तविकता में तो कभी कल्पनाओं में । लेकिन कुछ समय बाद फिर कोई रविवार आता । फिर से सब लोग जाते । फिर कभी बकर के साथ कुछ चटपटा हो जाता हूँ । किसी के घर में तो लडकी वालों ने सात आठ प्रकार की स्वादिष्ट नाश्ते की चीजें रखी, सपने अच्छे से खाया, बकुल नहीं दिखाया और खाते घाटे उसकी शर्ट की तीन चार बटाने एकदम टूट कर गिर गई । नकोर का पेट तब एकदम ऐसे बाहर आया जैसे किसी बांध का दरवाजा खोलते ही पानी आता है । धार आकर पिताजी की बहुत डांट पडी । फिर किसी लडकी वाले के यहाँ तो बकुल बातों में इस्तेमाल करने जाता है । बहुत छोटा सा बात होने की वजह से बाकी और उसमें फंस जाता है । फिर सब लोग मिलकर उसे निकालते । इसी तरह की अलग अलग परिस्थितियों और परेशानियों के साथ अब तक लगभग चौबीस लडकी वाले ठाकुर को अस्वीकार कर चुके थे । लेकिन आज के अस्वीकार्यता के बाद पहली बार जगत नारायण को व्याकुल और टूटते हुए देखा जिन्होंने अभी तक हार नहीं मानी । प्याज हारे हुए लोगों की तरह बात कर रहे थे । जांच में नकुर अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रहा था और बाहर जगह नारायण भी नींद न पाने के कारण गायत्रीदेवी के सामने बिखर बढते हैं । एक लडकी नहीं ला पा रहा हूँ, अपने बेटे के लिए धिक्कार है मेरे बात होने पे हर एक शादी नहीं करा पाया । उसकी तो लोग जीने नहीं देंगे । उसे अकेले जिंदगी नहीं जी पाएगा । वे बहुत सीधा एवर कुड हर दिन उसे लोग फिर आते है, उल्टा सीधा बोलते हैं । भद्दा मजाक बनाते है उसका तो इसे पता ॅ अभी तो हम है उसके साथ । लेकिन जब हम नहीं होंगे तब क्या होगा उसका । इसीलिए हर दिन, हर सुबह पर रात इसी प्रयास में लगा रहता हूँ । बंगलौर का अकेलापन अब दूर करता हूँ, लेकिन इतने प्रयास के बाद भी कुछ हो ही नहीं रहा है । तीन वर्षों से और सोमवार का व्रत भी रख रहा हूँ । आखिर हमसे ऐसी क्या भूल हो गई की माँ बहन हमारी सुनी नहीं रहना मुझसे कुछ भूल हुई हो तो उसकी सजा मेरे बेटे के हिस्से में मत लिखो । महाकाल और परिवार में भी किसी से भूल हुई हो तो है, सजा भी मुझे मंजूर है । बस इस प्रयास को सफलता तक पहुंचा तो मेरे वहाँ का पहुंचाया तो कुछ देर की बातचीत के बाद गायत्रीदेवी जगत नारायण तो पानी लाकर पिलाती है और दोनों बेचैन मान के साथ सोने की कोशिश करते हैं । एक बरात निकल रही है जिसमें कम ले बैंड का बैंड बज रहा है । अब तू कडवा उर्फ बॉस बैंड की गाडी चला रहा है । गोपाल गा रहा है । उसके पीछे बहुत और अपना बजा बजा रहा है और बाकी बैंड वाले अपने अपने बाजे तथा बराती नाच रहे हैं । छोटे छोटे भाइयों के बडे भैया आज बनेंगे किसी के संया भोपाल गा रहा है भैया काला का हुआ बजवा दो एक बच्चे ने गोपाल के कान में आकर बोला सूरत निकली मन की तो काली हो नखरे वाली फॅसा बदला भैया पल्लो लटके बजाय दो फिर किसी ने आकर फरमाइश की । किसी भी मराठी में सबसे ज्यादा फायदा ब्रैंड सिंगर को होता है । उन दो घंटों में वह खुद को जस्टिन बीबर से कम नहीं समझता हूँ और गोपाल खुद को किशोर कुमार से कम नहीं समझता था । फिर लोग भी मस्ती में इतने मस्त होते हैं कि उस दिन के लिए बैंड सिंगर ही उनका मोहम्मद रफीक, लता मंगेशकर, कुमार शानू, सोनू निगम, श्रेया घोसाल, अरिजीत वही होता है । पल्लो लटके गौरी को पल्लो लटके गोपाल ने गानों की कतार में अगला गाना गाया । जैसे ही कोई पैसा लुटाता है तो गोपाल फौरन उसको पकडकर अपनी तरफ खींचता है और पैसे लूट लेता है तथा जैसे ही गाडी चलाते अपने बॉस को देखता है वह पैसे मांग लेता है । नहीं है । घूमर बजाय दो एक मोटी सी लडकी गोपाल को बोल रही थी लेकिन इतनी देश बैंड की आवाज में उसे साफ सुनाई नहीं दे रहा था । उस मोटी सी लडकी को देखते ही अचानक बस और की धडकने तेज हो जाती हैं । मैं घबरा फौरन अपने बाजे से अपना मुझे पाने की कोशिश करता है । घूमर बच्चा तो भैया घूमर अबकी बार उस लडकी ने यानी ऋतु मैडम ने गोपाल के कान के और नजदीक आकर कहा गुमार घूम । गोपाल बैंड वालों को बताते हुए बोला, और सब ने घूमा, नियोजित देना शुरू कर दिया । बस तुर्की मूल से ठीक से हजार भी नहीं निकल पा रही थी और उसे आप डाल लग रहा है । कहीं ऋतु मैडम उसे देखना लें ।

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यह उपन्यास उन तमाम लोगों के लिए है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी-न-कभी किसी मोटे आदमी का मजाक उड़ाया है। न पढ़ा, न लिखा, न कुछ सीखा, वो अब खोटा हो गया। उसकी जीभ हर पल लपलपाई, वो बेचारा मोटा हो गया। writer: अभिषेक मनोहरचंदा Script Writer : Mohil Script Writer : Abhishek Manoharchanda
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