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Part 12 in Hindi

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Authorउमेश पंडित 'उत्पल'
किसी भी लड़की के लिए बहुत जरूरी होता है कि शादी के बाद उसे एक अच्छा वर और एक अच्छा घर दोनों मिलें। Script Writer : Mohil Author : Umesh Pandit "Utpal"
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फॅर किरण को तब बन के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त थी । डॉक्टर कण से पूर्व परिचित थी । घर में किसी तरह के लोग उत्पन्न होने पर डॉक्टर करन की देख रेख में ही उसके परिवार के सदस्यों का इलाज होता था । मैं कई बार उनकी डिस्पेंसरी भी गई थी । मैं चाचा कहकर पुकारती थी । डॉक्टर कंट्री उससे बहुत प्यार करते थे और उसे बेटी जैसा प्यार देते थे । उसके बारे में लीलू के कहने के पहले तपन को वह अपने पिता जी के साथ डिस्पेंसरी में काम करते देखी थी । यही सोचकर बहुत अपन के घर न जाकर सीधे डॉक्टर करण के डिस्पेंसरी की ओर लीलू के साथ चल दी । राम चाचा जी हाँ जोडकर प्रणाम करती हुई किरण बोली, डॉक्टर करण उस समय इजी चेयर पर बैठे थे । आसपास रोगियों की भीड थी । किरण को पहचानकर मैं बोले खुशियाॅ हूँ कैसे? आॅल तब नया से मिलने चलते हैं । आज कल डॉक्टरी की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं इसलिए भाव बहुत बढ गया है । मिलते भी नहीं की हैं खुली दिल से टोन डस्टी हुई बोली नहीं किरन ऍम पुत्र पहले की अपेक्षा लडकियों से मेलजोल और भी ज्यादा करने लग गया है । थोडी देर के बाद आ जाएगा तब तक बैठो मैं फोन कर देता हूँ । डॉक्टर का अपने बेटे की हरकतों को उभरते हुए बोले जी, ये तो है । खेर बगल के साधारण कुर्सी पर बैठ गई । लीलू को भी बैठने के लिए संकेत कर दी । लीलू भी उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई । डॉक्टर कर्ण रोगियों को देखने में लगे थे । लीलू और किरण कभी रोगी को देखती तो कभी डॉक्टर करन के चेहरे को पडती । फिर फुसफुसाकर आपस में बातें करती । पिता जी आपने मुझे याद किया । व्याकुलता से तपन अपने पिता डॉक्टर करण से पूछा, हाँ हाँ भेजा । तुमसे मिलने के लिए देख किरण बेदी आई है । किरण की ओर संकेत कर डॉक्टर करण बोल है । किरण सिर्फ तपन के बारे में जानती थी, लेकिन उससे परिचय थी । वह उसके पिता को चाचा कहकर पुकारती थी । वह उसे भैया कहना उचित समझे । आदर के भाव में वह खडी होकर बोली नमस्कार भैया, अपन बौखला दिया । किसी परिचित लडकी से भैया का संबोधन उसे अच्छा नहीं लगा । फिर भी अपनी बौखलाहट पर काबू बाकर मुस्कुराकर सिर हिलाते हुए उसने नमस्कार क्या? किरण के खडी हो जाने के बाद लीलो भी खडी हो गई, लेकिन वैन नमस्कार न की वो अपने मुख्य को तापन के मुख्य के विपरीत दिशा में कर ली थी । शरण भर सभी मौन रहे । एक दूसरे को देखते रहेंगे । अपन ने अपने पुरुषार्थ का परिचय देते हुए बोला बैठिये, आपकी क्या सेवा करूँ जी, मेरी सेवा की कोई आवश्यकता नहीं है । दरअसल भाारतीय है कि लीलू के विशेष अनुरोध परात के पास में मिलने के लिए आई हूँ । आपके पिताजी से मैं अच्छी तरह परिचित हूँ । आप के बारे में मुझे उन्हीं से जानकारी प्राप्त हुई है । मैंने आपको कई बार देखा, पर मिलना सकी आपको उस दिन की घटना तो याद होगी । लीलू आपको कुछ कह कर बुरी तरह पछता रही ये कभी उसके कहने का भाव कुछ बुरा ना था । फिर भी आप उसकी बात को बुरा मानकर बिना कुछ कहे अपने घर लौट गए । ठीक है और जो तीन कई सौ बात कर लू आपसे मिलने के लिए आई । बिचारी उस दिन से खोई खोई रहती हैं । आपका मान पता भी मालूम नहीं था । मुझे सारी बात कहीं तो मैंने आपके बारे में उसका बताया । आज से कर आपसे मिलने के लिए उसने मुझे कहा केरन मिलने की राम कहानी सुना दी । लीलों का नाम सुनते ही तपन का दिल धौंकनी की सामान जोरों से धडकने लगा । उसके मानस पटल पर लेलो की स्मृति काउंट गई । एक वह लीलू थी जो बिना झिझक के साथ हॉस्टल में उससे मिला करती थी । एक यही लू उसके सामने खडी है जो पहले मेलन में ही उसके बिहार के दामन को तोड दी और फिर अपराधी नहीं बन उसके सामने आई जगह भी उस लियो के बारे में उसे जानकारी नहीं थी लेकिन इसका चेहरा चलने का ढंग आधे किलो से मिलता था इसलिए उस देने से ले लो समझकर रहे तो करा था मनुष्य के नाम और रूप में बहुत अधिक समानता हो सकती है । लेकिन हर मनुष्य के पास कुछ ऐसे गुण होते हैं जिसके कारण समान रूप और नाम रहते हुए भी कुछ ना कुछ भिन्नता ही जाती है । लगे इसलिए लोगों का आकर्षण उस लेलो की उपेक्षा अधिक था । वह एक असम भी ली थी लेकिन यह सब था की प्रतिमा थी ये अपनी भूल को भूलना समझती थी लेकिन ये है अपनी एक छोटी सी भूल इसका कारण स्वयं नहीं था फिर भी शमा प्रार्थी के रूप में याचना करने आई थी । हर प्रेमी प्रेमिका हूँ । बिहार में बिगडे ना हो इसके लिए सादा सावधान रहने का प्रयास क्या करते हैं हूँ अपन अपनी भूल पर खुद पछता रहा था । सोच लिया कि लीलो बोल के लिए जो धन दे देगी तो स्वीकार कर लेगा । लीलो उस दिन मत से भूल हो गई थी । मुझे माफ कर दूँ । अपन ने लू के समीप आकर अपनी भूल को स्वीकारते हुए बोला ऍम भूल तुमसे नहीं बल्कि मुझसे हुई थी । लेलो एस अंदाज में बोली जैसे कि वर्षों से अपने प्रेमी के वियोग में चलती हुई प्रेमिका अपनी भूल स्वीकार थी । हुई फिर से प्रेम का नवनिर्माण करना चाहती है । लीलू की बात सुनकर ऍन उसको अपने बाहर में समेट लेता है हूँ जैसे अपना से नीचे जुगाली । पहली बार ही उसे किसी पुरुष का स्पर्श महसूस हुआ था । उसके बाद में बिजली को बंद नहीं झटके सीट है उससे अलग हो गई । डॉक्टर कार रोगी को देखने में इतने व्यस्त थे कि इन समूह का खयाल, उनके मानस पटल रूपी श्यामपट साॅस डॉक्टर कारण और इन तीनों के बीच हरदा दीवार का काम कर रहा था । किरण इन दोनों प्रेमी प्रेमिका के रहस्यपूर्ण लीला को देखकर मन ही मन मुस्करा रही थी की हूँ तुम सच में प्यार की मूर्ति हूँ । मनुष्य का जीवन बिना बिहार की अधूरा रहता है । मुझे मालूम नहीं था प्यार की डगर पर चलने वाले दीवानी धोखा नहीं खाते हैं । आज ही मुझे प्यार की वास्तविकता का पता चला हूँ । उस दिन की घटना बार बार मेरे मानस पटल पर कम हो जाती है । मैं अपने को कच्चा प्यार करने वाला समझता हूँ । जब किसी से प्यार करता है है उसकी रह भी देखता है । इतना कर ली जो मैं अपनी मूर्खता पर स्वयं रचित हो हो । धीरे धीरे अपने मन की व्यथा को भरना शुरू किया, पर उभारने का क्रम चल ही रहा था कि ले लो चाहे छुट्टी । ऐसी बात कहकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए । अच्छा से सिर झुकाती हुई लेकिन अपनी नजर को उसकी नजर से टकराती हुई लीडो बोली । दोनों की प्यार भरी बातों को सुनकर खेल को मजा आ रहा था । पर उनके बातचीत में सहयोग न देने के कारण स्वयं बोर हो रही थी । मैं अपने अकेले मन को बर्दाश्त ना कर सकूँ । दोनों की बातचीत में हस्तक्षेप करती हुई लीलों को संबोधित कर मैं बोली लीलू शाम हो गई है, घर भी चलना है ना? किरन की बात सुनकर लीलू सावधान हो गई । अपनी मिसरों से मजबूरी को प्रदर्शित करती हुई है । खट्टापन सुविधा मांगना चाहिए और उसकी बोली घंट नहीं तक की मैं अपनी नजर को तपन की ओर से फेरती हुई किरण को देखकर बोली हाँ चलना है तो चलो बाबा फिर दूसरे दिन मिलना अब तो जिंदगी भर मिलती है होगी । किरण टोन कस्ती हुई बोली विज्ञापन का मन कह रहा था हेलो अभी ना जाओ । किरण की बात सुनकर तपन साहस कर बोला कि एन बहन क्या तो मत से नाराज हो गई हूँ । भैया जी भला मैं तुमसे नाराज के हूँ । सच पूछो तुम दोनों की बातें सुनकर मुझे बडा मजा आ जाता है । पर क्या करूँ समय कम वक्त बडता ही रहता है और माँ बाप की चिंता बढती जाती । लीलू की बात मानकर मैं किसी तरह माजी से बहाना कर के चली आयी हूँ । आशा देख रही होगी अब जाने दो । टफन की बात सुनकर किरण झट से अपनी सफाई देती । केरल तुम्हारी जैसी बहन को पाकर में बहुत खुश हूँ । भगवान करे हम दोनों का भी भी जोधाणा हूँ । तब फल नहीं कहा । लीलों को समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वास्तव में दोनों सगे भाई बहन हूँ । समय अधिक हो जाने के कारण उसका मन भी हो रहा था । मिला इनकी रेला भी देना बीती है । हर प्रेमी प्रेमिका अपने अपने मधुर बातों में ही खोये रहने का प्रयास करते हैं । तीनों चुके थे । ऐसा मालूम पडता है कि बात के खजाने पर डाका पड गया हूँ । चुप्पी छाई हुई थी । शाम ढल चुकी थी । अंधकार की सेना धीरे धीरे चढाई करना शुरू कर दी थी । क्षण भर में ही शहर में बल्कि ज्योति प्रस्फुटित होने लगे हैं । डॉक्टर कारण रोकी को देखने में तल्लीन थे । धीरे धीरे भीड समाप्त हो रही थी । उनका मन स्मृति में हो रहा था । डाॅ । लीजिए भगवान के लिए बचा लीजिए मैं आपका गोल्ड सिद्दीकी फिर का होंगी । सहसा एक बुढिया अपने पांच वर्षीय लडके को कंधे से चिपका है । डॉक्टर कर्ण के सामने गिडगिडाकर होने लगी । डॉक्टर कर डिप्रेशन की मजबूरी को समझते हैं, लेकिन किसी समस्या को कहे बिना मनुष्य का रोना धोना उन्हें अच्छा नहीं लगता था । एक दो पेशंट को उन्हें और देखना था । शाम के साढे सात बज रहे थे उसका रोना ॅ अगर रोना धोना है तो घर चले जाओ । मैं पेशंट को देखने के लिए यहाँ बैठा हूँ । किसी का रोना धोना सुनने के लिए नहीं ॅ बचा लीजिए । धोडिया फिर लडखडाकर बोली मैं पूछता हूँ तुम रोगी को देख लाने के लिए आई हो । यहाँ अपना रोना सुनने के लिए अगर मुझे को दिखाना है तो बैठो, अगर होना है तो घर जाओ । डॉक्टर कार्ड बोले बुढिया को डॉक्टर करने की बात समझ में आ गई मैं चुप जहाँ अपने मुन्नू को गोद में लिए बैठ गई । डॉक्टर कर पूर्व था आपने पहले बेशन को देखने में तल्लीन हो गए । बढिया की बात उनके सिर खाया जा रही थी हूँ समय बीत रहा था बुढिया बेचैन थी हूँ वो मन ही मन डॉक्टर करण पढ पढ रही थी । मुन्ना का चेहरा पीना पड रहा था और बढिया कटिंग जोरों से धडक रहा था । मन में मैं सोच रही थी डॉक्टर के ध्यान नेरदा ही होते हैं किसी की जान क्यों न चली जाए और किसी की व्यथा को सुनते नहीं । बढिया चीख उठी मेरा मुन्ना ऍम ना डॉक्टर बाबू को धनी भी दया नहीं असली चीख सुनकर डॉक्टर काॅल रहे लगभग कर बढिया । केवल बढे और झल्ला उठे । चले जाओ यहाँ से बोलती है आवाज कौन थी तीनों चौंक पडे हैं । अपन पढते को हटाते हुए अपने पिता जी के पास आया । किरण और लियो भी उसके पीछे चल पडे क्या बात है पिताजी ऊँट अपन ने पूछा कुछ नहीं । दरअसल बात ये है कि आज से दस साल पहले की घटना मुझे आता नहीं । मेरे मानस पटल पर क्षेत्र उभरने लगा मैं उसकी स्मृति कर अनानास ही ठीक होता है । ऍम आसपास बैठे बेशन के कहने लगे । तब अपन अपने पिता जी की स्थिति देखा घोषणा है पर किरण और लेलो से रहे नहीं । बहस पडी डॉक्टर कार्ड खुशमिजाज प्रकृति के व्यक्ति थे, वो भी अपनी भूल परासने लगे । बेटी क्या करूँ मेरी जिंदगी ये पहली है अस्सी रोकते हुए डॉक्टर कर्ण बोले मुझे तो समझ में ही नहीं आता । किरण बोली समझ में कैसे आएगा? तो मैं टिक देख भैया का सूरत उतर गया है । जैसे लगता है प्रेमिका से हार खाकर आया है । तपन की ओर इशारा गर्व है । बोला तपन तिलमिला उठा । प्रेमिका की सच्ची बात जानकार मैं संकोच से निरुत्तर वहां से चल दिया । भागने की कोशिश मत कीजिए भैया जी, अभी तो आपके प्यार का खेल शुरू हुआ है । किरण टून कस्ती हुई बोली शायद डॉक्टर करनी पूछा चाचा जी, प्यार की सच्चाई भी पहेली है । किरण बोली शायद तुम्हारी सहेली है तो उनका स्टे हुए । डॉक्टर खंड बोले समझे अपने मन में भी चली अपने घर में इतना के हैं मुस्कुराती हुई किरण लीलों के साथ घर चलती है

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किसी भी लड़की के लिए बहुत जरूरी होता है कि शादी के बाद उसे एक अच्छा वर और एक अच्छा घर दोनों मिलें। Script Writer : Mohil Author : Umesh Pandit "Utpal"
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