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Part 11 in Hindi

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3 K Listens
AuthorAditya Bajpai
लक्ष्य की ओर चलने वाले को बीच में विश्राम कहा? सिर्फ चलते जाना है चलते जाना है कहीं भी शिथिलता या आलस्य नहीं ज़रूर सुने, शिखर तक चलो बहुत ही प्रेरणादायक कहनी है। writer: डॉ. कुसुम लूनिया Voiceover Artist : mohil Author : Dr. Kusun Loonia
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सेवा का आज कॉलेज में पहला दिन था । दिल्ली विश्वविद्यालय का ये परिसर क्षेत्र नहीं बल्कि फैशन शो का राम पर नजर आ रहा था । किसी लडकी ने छोटी सी हाॅट गहरे लाल की टी शर्ट के साथ एक कान में बाली पहनी हुई थी तो किसी ने छोटा स्कर्ट छोटा टॉप और बढा सा धूप का चश्मा लगा रखा था हूँ । किसी ने जीन्स शर्ट के साथ एक हाथ में ढेर सारे रंग बिरंगे कपडे डाल रखे थे तो किसी ने स्टाइलिश बैग ले रखा था । रंग बिरंगी हवाई क्या पहले भी नया फैशन लग रहा था? फैशन में लडके भी लडकियों से पीछे नहीं थे । किसी ने चेक के बरमुंडा एवं शर्ट डाल रखी थी तो किसी ने फाॅर्स लोगन की टीचर डाल रखी थी । किसी ने एक कान में बीरसिंह करा रखा था तो किसी ने बाजू पर ड्रैगन का टैटू बनवाया हुआ था । किसी ने बाल के दो लडते ब्राउन करा रखी थी तो किसी लडके ने तीखे लंबे बालों में रबर बैंड लगा रखा था । स्कूल के अनुशासित वातावरण से निकल गए । इस खुली हवा में मानव जी भर के उन्होंने को आतुर हर लडका परिंडा और हर लडकी इटली नजर आ रही थी । वो साधारण तीन बच्चे के शर्ट में सहमा हुआ था । शिवा भी अपनी कक्षा की ओर बढ रहा था । सीनियर्स का एक रूप आया और से घेर लिया । ऍम कांचला विवा चुपचाप वही रोक गया कुछ नहीं बोला हूँ । दूसरा बोला अरे तेरी पारो कहाँ है इतने मैं सामने से सहमी सी सलवार सूट पहने दो पट्टा लगाए । लडकी जाती थी कि उसे भी घेरकर ये घर ले आए । ऍम तो दिखा दे इस बार ओ को दो कैसे गले लगाएगा । शिवा जहां था वहीं खडा रहा हूँ । सीनियर जोर से चिल्लाकर बोले आगे बढता है कि नहीं शिवानी एक नजर चारों तरफ देखा, पंद्रह भी मुझे । डंडे लडके खडे थे । बीच में असहाय भोली भाली लडकी नजर नीचे किए हुए खडी थी शिवा अपनी जगह से टस है । मच नहीं हुआ । तभी एक सीनियर ने लडकी है कहा तेरह देवदास रूठा खडा है तो आधुनिक पा रहे हैं या दो लग गया उसके गले लडकी एक दम घबरा गई । दूसरी दिशा में दो कदम उठाकर चलने लगे । इतने में एक दादा डाइट लडके ने आगे आकर उसके दो पत्ते का एक जोर पकड लिया । लडकी ने अपने हाथ से दुपट्टा पकडे रखा । वो लडका मना नहीं और पूरा खींचते हुए उसे धकेलते हुए बोला ॅ इतनी देर शांत था अब अपना रह सका । आगे बढकर एक हाथ से पूरी ताकत है । सीनियर को धकेलते हुए बोला थोडा ऐसे दूसरे हाथ से लडकी का दुपट्टा छुडवाया और जोर से बोला तुम यहाँ से अपनी क्लास में जाओ । सीनियर बडा कोटे वो लडकी की तरफ झपट्टे । इतने में ही उसने अपने दोनों बाजुओं का फैलाया । सबको रोक लिया । लडकी को निकल जाने दिया । अब तो हालत खतरनाक हो गए । सबके क्रोध का केंद्र बिंदु गया केला हो गया । शिकार को हाथ से निकालता देख तो शिकारियों को तो गुस्सा आना स्वभाविक था । ऊपर से यह लगा कि कल का यह छोरा कॉलेज का फिहर हमें ललकार रहा है । पहले दस दिन तो बडे बडे सूरमा भी संभलकर चलते हैं । ये नाडा दादागिरी दिखा रहा है । बीच में घेर का सब शिला को पीटने लगे । बचाव करते करते शिवा गिर गया । अब तो हाथों से लातों से मारने लगे । इराकी कमी फट गईं । जगह जगह खून आने लगा । लेकिन नरेंद्र को दया का ये भी कोई रैगिंग हुई ऍम है पुराने छात्रों के परिचय का ये कैसा भी ब्रॅान्ज किसी के घर का चिराग हमेशा के लिए बहुत सकता है । देश की कोई बडी भारी प्रतिभा असमय ही समाप्त हो सकती है । किसने प्रारंभ भी है जिन्होंने ऍम प्रथा शिवा को लगा आज मेरी हड्डियां टूटना निश्चित है लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी हूँ । अचानक सामने आक्रमणकारियों को बट करनी देकर पीछे दौडा वहाँ पीपल के पेड का कबूतरा जैसा बना था । उसमें थोडी दूर दो एक पुलिस वाले भी उसे खडे दिख गए । चबूतरे पर खडे होकर उसने जोर से चलाना शुरू किया । मेरे महान अग्रज भाइयों, कुछ लडके आगे बढे । इतने में शिवा बोलना बोला फॅमिली रुक जाओ, आप इतने हो मैं अकेला आप चाहो मुझे अभी जान से मार सकते हो । आज इसी वक्त या कल परसो जब भी मैं कॉलेज में आऊंगा, ॅ ऍप्स में पहला देने हैं । आप तो इसी कॉलेज के सिरमौर लगते हो लेकिन इतने पढे लिखे समझदार पंचनामे प्रतिशत से ज्यादा अंक धारक क्या किसी लडकी का दुपट्टा हटाकर जबरदस्ती गले लगाना हमारी संस्कृति है? क्या ये हमारी सभ्यता का हिस्सा माना कि राइडिंग हसी मजाक द्वारा सीनियर जूनियर परीक्षा का एक नई परंपरा है । पर किसी लडकी की इज्जत का मखौल उडाना कहाँ की गिरता है? कैसे मैं करता है? मैं गलत हूँ तो सौ जूते मार रहे हैं नहीं तो प्लीज आगे से किसी भी लडकी से खिलवाड न करें । कहाँ तो सब लडकों के सिर पर खून सवार था । कहाँ काटो तो खून नहीं ॅ इस बच्चे के साहस पर, इसकी हिम्मत पर इसके बुलंद इरादों पर इतने में ज्यादा टाइप कि लडके ने कहा बडा अच्छा भाषण दे लेता है अपना नाम तो बताओ शिवानी सहजता से संक्षिप्त उत्तर दिया । फिर मंगलसिंह उसमें हाथ बढाते हुए कहा मेरे नाम है राजा मार्च के हमारी दोस्ती पक्की शिवा ने पुणे सतर्कता के साथ हाथ आगे बढा लिया । राजा झटका देकर शिवा को पर रखना चाहता था लेकिन राजा का ऍम अस नहीं हुआ क्योंकि शिवा ने पूरे दम से उसके हाथ को दबा रखा था । हाथ की पकडते शिवा की ताकत का अंदाजा जहाँ जहाँ को हो गया । शिवा दूसरी परीक्षा में भी पास हो गया । शिवानी विनम्रता से कहा हूँ राजाभैया आप अपने दूसरे भाइयों का भी परिचय करवाओ लिए पाॅर्न तुषार रिपोर्ट लोकेश सब के नामों के साथ चेहरों को भी शिवानी अपने जहन मैं अच्छे से बैठा लिया । पुनः पुनः प्रेम प्यार दोस्ताना अंदाज में मिलते रहेंगे के विश्वास के साथ शिवा प्राथमिक चिकित्सा का अगली में चला गया । सब लडके आपस में बात करने लगे । कृष्णाराजा से बोला ऍम बोला हमें से अपनी पार्टी में लाॅस ने कहा हाँ इसको अभी सदस्य बना लेते हैं । ये भविष्य में बहुत काम आएगा । अगर एबीवीपी वालों से बढ गया तो इससे तुरंत अपना लेंगे । इससे हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए । तो इस प्रकार कुल मिलाकर शिवार सबके दिल में बस गया । अपने दोनों अच्छे व्यवहार के कारण शीघ्र ही शिवा कॉलेज में लोकप्रिय हो गया । कॉलेज में इस महीने के आखिरी रविवार को कवि सम्मेलन आयोजित हुआ । बडे बडे प्रतिष्ठित का भी आए । इनके माध्य प्रथम वर्ष के एक लडके व लडकी को भी स्वरचित कविता बात का अवसर मिलना था जिन्होंने सबसे पहले अपना नाम लिखवा दिया हूँ । करीब पच्चीस विद्यार्थियों के नाम आए थे । शुक्रवार को सबका ऑडिशन हुआ हूँ । हिंदी भाषा पर अच्छा अधिकार मधुर कंठ आठ में विश्वास बारी प्रस्तुति से सहज शिवा का चयन कविता पाठ है तू हो गया । रविवार को प्रातः ग्यारह बजे कॉलेज का ग्राउंड खचाखच भर गया । मंच पर एक से एक मंझे हुए कभी गण विराजित हैं । संचालक कभी महोदय ने उद्घोषणा की अब आपके समक्ष कविता पाठ हेतु आमंत्रित कर रहा हूँ आप ही के कॉलेज के उदयीमान कवि शिवमंगलसिंह को जो आपके ही साथी हैं कृप्या इनका जोरदार तालियों से स्वागत करें । आइए आपका स्वागत है शिवमंगलसिंह जी ऍम मंच पर आया हूँ आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय अध्यक्ष महोदय ऍम सभी कौन साड्डा नमस्कार छातियों मैंने अपने दिल की आवाज को शब्दों के साथ साथ दिया है । अगर आपके हृदय तंत्रों के तार जरा भी झंकृत हूँ मैं आपकी तालियों से समर्थन चाहूंगा । मेरी कविता का शीर्षक है बटन के सिपाही, मंदिर मस्जिद, गुरुद्वारों से आती है आवाज यहीं लाल किले की उन दीवारों से आती आवाज यही गंगा यमुना ढल धारों से आती है आवाज यही अमृतसर के गलियारों से आती है । आवाज नहीं अमर शहीदों का लहू बदनाम नहीं होने देंगे । वतन के सिपाही बटन अनिल नाम नहीं होने देंगे जिसके खाते ही प्रताप ने घास की रोटी खाई थी जिसके खाते वीर शिवानी तलवार उठाई थी । जिसके खातिर भगत सिंह ने रंगा बसंती चोला था । फांसी के फंदे को चूम कर बन्दे मातरम बोला था हम अपनी आजादी का कत्लेआम नहीं होने देंगे । गटन कैसे पाहि बटन नीलाम नहीं होने देंगे । जिसके खातिर महावीर ने मैत्री रह दिखाई नहीं बुद्ध शरण नमक अच्छा में संघ संतों की टोली आई थी जिसके खाते टेरेसा करोडों की बेटी दुहाई थीं जिसके खाते बापू गांधी ने सीने पे गोली खाई हूँ । हम उस भारत माँ को बदनाम नहीं होने देंगे । बटन के सिपाही वतन नीलाम नहीं होने देंगे । धन्यवाद जय हिंद । तालियों की गडगडाहट से कॉलेज का ग्राउंड गूंज उठा तो कुछ लोग वन्स मोर वन्स मोर भी चिल्लाने लगे । शिवा ने शालीनता से कहा बहुत बहुत धन्यवाद साथ हूँ आओ आज मिलकर हम संकल्प करें कि जब भी देश को हमारी आवश्यकता होगी हम बटन के लिए ऍम की अंतिम बोन तक हो । अपनी जान लडा देंगे वो लेकिन देश पर आज नहीं आने देंगे । जाहे धन्यवाद धारियों की गडगडाहट ने कॉलेज की सराहना । एलांते संचालक महोदय ने बडे आदर से कहा ब्लॅक आपके कॉलेज के प्रतिभाशाली कभी तो हमें टक्कर दे रहे हैं तो हमें तो अपनी आजीविका खतरे में नजर आती है । सुन कर सभी हंसने लगे । इसके बाद तो शिवा कॉलेज में और प्रसिद्ध हो गया । उसके अनेक मित्र बन गए वो शिवा को हॉस्टल में कमरा नंबर चार सौ पांच मिला । दो विद्यार्थियों के संग रहने की व्यवस्था थी । शिवा का अभिन्न ऍम । उसका कक्ष साथ भी बना । वो भी सर्वागीण व्यक्तित्व का धनी था । यहाँ जहाँ शारीरिक खेलकूद प्रतियोगिताओं में आगे रहता वहीं सुझाई लॉन टेनिस में प्रत्येक चेन्नई जीता स्वदेश की गर्लफ्रेंड सुजाता ने भी राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में खिताब जीता था । पढाई के अतिरिक्त गतिविधियों का शिवा पढाई पर असर आने नहीं देता हूँ । बीकॉम प्रथम वर्ष में उसने बयासी प्रतिशत अंक प्राप्त किए । अंक तालिका लेकर घर आया माँ पिताजी के चरण छूकर उन्हें दिखाई तो पिता जी ने गले लगा लिया और बोले अच्छा ये सबूत होता हूँ । मैं तो देखती देखती भावुक हो गई और बोली भी दाल विश्वास है । एक दिन तो हमारा नाम बहुत ऊंचा करोगे । बस पेटा पूरा घर दोहरे, बिना वीरान और हर कोना सोना लगता है । हम दोनों नेता अकेले रहते हैं । मेरा तो दिन कटना मुश्किल हो जाता है । क्या बना हूँ, किसके लिए बना हूँ तुम जब आते हो तभी हर दिन तो बाहर होता है । आज मैंने तुम्हारी मनपसंद खीर चलेगी बनाई है । आओ पहले मुहार दो कर खालो शिवा बच्चे की तरह की पटकर बोला हूँ वहाँ भावुक की होती तो मैं कहीं दूर थोडी गया हूँ हूँ नहीं तो जब कभी आ जाये बुला लेना आ जाएगा दूंगा । ॅ कैसी रही हूँ घुटनों का कमर का दर्द कैसा है, ऐसे तो ठीक ही रहता है पूरा ठीक तो जब तो बुलाकर देखा तभी होगा माँ बोली बेटा जब पैदा होता है तभी से मां कल्पना करना शुरू कर देती है । मैं क्या आंध्र जैसी कहो लाऊंगी जो लड्डुगोपाल साहब होता । हे माँ आपको बहु के सेवा खुद सोचता ही नहीं किया ऍम बहुत हो गया बहुत का गुणगान अब जरा पिताजी के भी तो हाल बताओ । रक्तचाप ज्यादा बढा तो नहीं हो ऍम पूछा हूँ ये तो अपने नियम से चलने वाले इंसान है । सुबह पार्क इसे दोस्तों से मुलाकात दिन में दुकान संभालना रात को भोजन के पश्चात थोडा टीवी देखना हाँ शाम को घर आते हैं तब तो मैं बहुत याद करते हैं । ऍम भराया वहाँ भी तो छात्रावास में माँ को कितना याद करता है । यहाँ तो माँ उसकी हर चीज तैयार रखती है । ना कपडे धोने देती है, ना जूते साफ करने देती है तो यहाँ तक कि पानी का इलाज भी नहीं उठाने देती । वहाँ तो सब उसे ही करना होता है । वहाँ कहाँ परिवर्तन वाली सुख शांति है । मैं वही माँ के समीप बैठा ही रहा । फॅमिली उसके सर पर हाथ फेरती रहीं उसका मान किया की माँ बाप को छोडकर कहीं ना जाये । विचारों की तरंगों में तरंगित रहे । जब झोले खा रहा था इतने में उसकी नजर दीवार पर टंगी घडी पर गई ऍम ढाई बज गए । खाना खाकर तीन बजे तक तो निकलता हूँ का सुचित्रा ट्यूशन का इंतजार कर रही होगी । वहाँ रोक लगी है । जल्दी खाना दे शिवा चलाया । इन शब्दों को सुनते ही माँ की बात है खेल गई । मैं कब से तरस रही थी । उसका लाल आए और उसे अपने हाथों से भोजन खिलाए । बडे दिनों बाद वो वहाँ के पास में बैठकर उसके हाथों का बना भोजन ग्रहण कर बाकी आता संतुष्ट हो गई । माँ तेरे हाथों जैसा सवाल तो दुनिया में कहीं नहीं है । अभी मैं ट्यूशन बढाने जा रहा हूँ । छह बजे तक ॅ समय पर मंत्री जी के निवास पहुंचाओ । देखा आठ सौ चित्र के लिए बैठे इंतजार कर रही प्रायास चित्र की माँ या छोटी बहन साथ हुआ करती थी । वैसा कुछ आरटीसी बोली ऍम छोटी बहन की सहेली का आज जन्मदिन है । इंडिया के गई हुई है । माँ धार्मिक प्रवचन सुनने गई हैं । ऍम विल मन में ये क्या है? मैं इस विषय में आपका मार्गदर्शन चाहूंगी कि हमें धर्म कब करना चाहिए । माँ को धार्मिक क्रिया कलाप करते थे । एक में सोचती हूँ कि कि आप थोडा व्यवस्था ही इस के तो उपयुक्त व्यवस्था होती है । शिवानी गम्भीरता से उत्तर देना प्रारंभ किया । मेरा मानना है कि धार्मिक होने के लिए कोई उम्र नहीं होती हूँ । इसके लिए कभी भी ऍम की प्रतीक्षा ना करें । जब शरीर में सामर्थ हो, इन्द्रियाँ परिपूर्ण हो और मान ऊर्जा से भर आओ । कभी धर्म को साधना चाहिए क्योंकि वास्तव में धर्म तो उन्हीं की संपदा है जो चिट सही हुआ है । धर्म बुढापे की औषधि नहीं हैं । भरत युवा होने का दुस्साहस फॅार्म और अध्यात्म जीवन की अंतिम चरण नहीं बल्कि मंगला चरण होना चाहिए । धर्म समय की सीमा से आप ही नहीं हाँ रे जीवन के शासन और कण कण में होता है । धर्म कोई क्रिया नहीं अंतर रखती है जो हर क्रिया से संयुक्त होकर उसे नहीं अर्थवत्ता ऍम प्रयोजनीय ता से मंडित कर सकती है । धर्म सादा सूर्य की तरह प्रकार और चान्द्र की तरह शीतलता प्रदान करता है हूँ । सुचित्रा बोली हूँ सर मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ । जानना चाहती हूँ की क्या फ्लैट, पूजा, माला, जप आदि के कर्म कांड के बिना भी धर्म हो सकता है? फॅसा धर्म रूपी पक्षी के दो पर हैं अध्यात्म और नैतिकता तो मैं ऐसे समझो बॅाल आ या जब आदि आध्यात्मिक प्रवृत्तियों से ही सिर्फ धर्म नहीं होते बल्कि धर्म तो व्यक्ति के प्रत्येक रिया कल आपसे दृष्टिगोचर होता है । हम कैसे सोचे, कैसे चले, कैसे उठे, कैसे बैठे, कैसे बोल नहीं । इसी में स्वच्छता हम सावधानी रखकर किसी का आई थी ना का धार्मिक हो सकते हैं । सत्यकि ने व्यक्ति का सत्र की प्रवत्ति का काम ही धर्म है । सुचित्रा ने पुनः अपने जाॅब फिर धर्म के नाम पर दंगे होते हैं । शिवानी समझाया धर्म हमरा भी है और अपील भी । प्रेम और मैत्री के बनियान पर खडा हुआ धर्म अमृत है तो सांप्रदायिक उन्माद से ग्रस्त धर्म अफीम का काम करने लगता है । वो सच कहूँ तो जहाँ विवेक वहाँ धर्म है, जहाँ विवेक नहीं वहाँ धर्म नहीं तो चित्र ने कहा ॅ आज आपने मुझे नहीं देश आती है, वो इस पर चिंता मांॅ अनुसरण करने का मेरा प्रयास रहेगा और अभी वर्तमान भारत विषय पर निबंध लिखना है कर दिया इस विषय पर भी मेरा मार्गदर्शन करें । सुचित्रा ने बोला शिवा ने बोलना प्रारम्भ किया तो चित्र अपनी नाॅट करने लगी । प्राचीन समय के भारत का इतिहास बडा सुनहरा रहा है । सम्पन्नता और समृद्धि की दृष्टि से या देश सोने की चिडिया कहलाता था । अध्यात्म और ज्ञान के क्षेत्र में ये देश सबका गुरु रहा है । ज्ञान की परिपक्वता और अनुभवों कि सर्व खींचता के लिए सभी देशों के लोग यहां आए थे । यहाँ की कला, संस्कृति और शालीनता विश्वविख्यात रही है । अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार यहाँ के खून में वो जीन रहे हैं जो बडों का आदर करना और इज्जत करना सिखाते हैं । लेकिन आज जमाने का विपरीत असर हम पर आ रहा है । यह विज्ञान और विज्ञान तकनीकी में भारत ने आज बहुत प्रगति की है लेकिन जीवन मूल्यों का बडा हाथ हुआ है । आज यहाँ राजनेता, अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, डॉक्टर, वकील यहाँ तक कि न्यायाधीश और सेना पति तक अपना करता भूलकर विलासिता एवं भ्रष्टाचार के अंधीदौड में लगे हैं । जो राॅक है वे भी भक्षक बनते जा रहे हैं । जो आतंकवादी हमारे देश की जडे खोखली कर रहे हैं वो उनके साथ मिलकर देशद्रोहियों का काम कर रहे हैं । विश्व का युवा देश भारत वर्तमान में पुना विश्वगुरु बन सकता है । कुछ सूत्रों पर त्वरित कार्यवाही हूँ । सुदृढ हो, कानून व्यवस्था, राजनीतिक शुद्धिकरण, ॅ, अनुशासन, समय भटकता, पुरुषार्थ, इमानदारी, प्रत्येक क्षेत्र में पारदर्शिता । वर्तमान में देश की अखंडता सर्वोपरि है । राष्ट्रीय एकता के तीन मुख्य घटक हैं राष्ट्रीय चरित्र, सम्प्रादायिक, सद्भाव और अहिंसा । प्रधान जीवन शैली आज राष्ट्र के लिए सर्वाधिक प्राप्त हैं । कोई वस्तु है तो वह राष्ट्रीय चारित, क्योंकि सबसे अधिक बटन इसी का हुआ है । जब तक राष्ट्रीय हरित का उत्थान नहीं होगा, तब तक कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती है । राष्ट्रीय चैरिट को विकासित करने वाली दो शक्तियां हैं कानून और व्यवस्था जिसके द्वारा प्रयत्न, जनहित, जान, जान का विश्वास घनीभूत होकर राष्ट्रीय चरित्र को उजागर कर सकता है । राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के महायज्ञ में समस्त भारतवासियों को अपनी आहुति देनी होगी और इस हेतु आज भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी कर्त्तव्य याद रखने की आवश्यकता है । चाहेंगे सुचित्रा इतनी देर तक मंत्रमुक्त सुन रही थीं । प्रभावित होकर बोली तो गई गजब की विश्लेषण क्षमता है, आपकी उतना ही प्रभावी प्रस्तुतीकरण है । आप राजनीति में आना चाहिए तो पिताजी से चर्चा करूँ । शिवानी उत्तर दिया नहीं । सुचित्रा मैं तो भारत माता का छोटा सा पत्र हूँ और मेरी भावना इसी महाभारती सेवा की है । इससे आगे मेरी और कोई महत्वकांक्षाएं नहीं । इतने में शिवा की नजर घडी पर पडी । ॅ आज तो पांच में पता ही नहीं चला । समय बहुत हो गया । ऍम कर रही होगी, चलता हूँ

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