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एक बार तभी आ गई गाॅधी बजा रहा था हूँ हूँ हूँ दौड कर उस की ओर बढ चला और हफ्ता काम था किसी तरह उस पर चढ जाने में सफल हो गया । नोएडा वाली ही बस्ती बस के रफ्तार पकडते पकडते मैंने देखा सडक के उस बार खडा ने आदमी बस की ओर गुस्से से हो रहा था । जिस सीट पर मैं बैठने जा रहा था उस पर पहले ही एक मोटी औरत बैठी थी । मेरे लिए उस पर जगह बहुत कम थी फिर भी किसी तरह में बैठ गया है और थोडी देर तक तो मुझे देखती रही । फिर उसने पूछा तुम्हारी तबियत खराब है क्या? करूँ तो बस रुकवा दूँगा मैं अधेड महिला शायद बहुत दयावान थी । मेरी हालत पर तरस खाकर ऐसा कह रही थी । लेकिन इस वक्त वह अपनी दया भावना के वशीभूत हो बस रुकवाने के लिए गई थी तो मैं उसके साथ बहुत रुखाई से पेश आता और उसने फिर कभी किसी पर दया ना की होती है । बहरहाल उसने कोई ऐसी हरकत नहीं । मैंने कहा जी नहीं मैं ठीक हूँ । दरअसल बस पकडने के लिए दौडने से मेरी हालत ऐसी हो गई । इसके बाद उसने मुझसे कोई बात नहीं नोएडा दिल्ली से करीब आठ किलोमीटर दूर है । लेकिन बस से यह बस्ती कुछ ज्यादा ही दूर पडती है और समय भी अधिक लगता है । थोडी देर बाद मेरी बेचैनी कुछ कम हुई है । ठंडी हवा के झोंके खिडकियों से बस के अंदर आ रहे थे । मेरे ऊपर इनका अच्छा सर हुआ । शहर का इलाका छोडकर बस अब कम आबादी वाले सुनसान इलाकों के बीच से बस गुजर रही थी । शहर का इलाका छोडकर बस अब कम आबादी वाले सुनसान इलाकों के बीच से गुजर रही थी । अब मैं सारी घटना पर शांत मन से विचार करने लगा । आखिर मानसिंह कौन था? मेट्रो से उसका घटना सिर्फ एक सहयोग था, षड्यंत्र हूँ । यदि संयोग था तो ये ताली वाली बात एका एक कहाँ से पैदा हो गयी? मेरे दिमाग में इस घटना का नक्शा इस तरह बना । कोई आदमी उस बूढे आदमी का पीछा कर रहा था । उस से बचते हुए मैं भागा । बिछे करने वाला आदमी वही होगा जिसने बाद में मेरा पीछा किया है । भोडे का मुझसे मदद मांगना और उसके बाद मेट्रो के नीचे आ जाना । सारी घटना उसी ने देखी होगी । इसके बीच उसे ये गलत फहमी हो गई कि बूढे ने मुझे ताली थी थी । अगर ऐसा न होता तो उस ने मेरा पीछा क्यों? क्या होता है? इससे पहले तो उसे देखा नहीं । मुझे अपने यहाँ पर जा लाहट होने लगी । हम अक्सर बगैर जरूरत बहादुर बन जाते हैं और जब सचमुच बहादुरी दिखाने का मौका मिलता है तो उससे पीछे भागते हैं । मैंने क्यों नहीं उसका कॉलर पकडकर दो एक दम से जमा दिए । पर मुझे शायद उसका उतना भय नहीं था जितना इस बात का की कोई मुझे स्टेशन पर पहचान न ले और फिर ये ना समझ बैठे की मैंने ही वह बूढे को गाडी के नीचे धकेला । मेरा पीछा करने वाले आदमी ने तो मुझे यही कहा था एक का एक मैं चौंक पडा । अब सारी बात मेरे सामने स्पष्ट हो गई । दरअसल मेरा पीछा करने वाला आदमी मेरे ऊपर बूढे को धकेलेगा । इल्जाम लगाकर मुझे ब्लैक मेल करना चाहता था । ताली वाली बात तो मुझसे बातचीत शुरू करने का बहाना थी । मैं इस बात पर काफी देर तक सोचता रहा और यही बात सही लग रही थी । वरना ऍन इसके पहले एक दूसरे को देखा तक नहीं । उस बूढे को भी मैंने उसकी जिंदगी के आकृषण में पहली बार देखा । भला है मुझे कौन सी गाली देने लगाया है । मेरा सारा शरीर से हर उठा पर भय के कारण नहीं । ठंड के कारण बस काफी तेज रफ्तार से चल रहे थे । अब उसमें आज भी कम है । सभी खिडकियां खोली हुई थी । मेरे बगल में बैठी हुई अधेड महिला पिछले स्टॉपर उधर गई थी । मैंने अपनी सीट के बगल वाली खिडकी बंद कर दी और कोर्ट जिससे मैं अभी तक अपने कंधे पर लडका आए हुए था, पहन लिया । उसके सारे बटन बंद किए, कॉलर के उठा लिया और हथेलियों को गर्माहट देने के लिए उन्हें कोर्ट के दोनों जेब में डाल दिया । मेरी ताई जी में खाली पडी थी तो उन्होंने मुझे सचमुच डाली थी थी । ताली मैंने जेब से निकाल ली और उसे देखने लगा । वह एक मामूली चपटी सी पीतल की डाली थी और उस पर अंग्रेजी अंकों में कोई संख्या लिखी थी । बस उसके सेवा और मैं कुछ समझना सका । उसके बारे में मेरे मन में कोई दिलचस्पी भी पैदा नहीं हुई । निहायत मामूली सी डाली थी, जिसके लिए मेरी इतनी फजीहत हुई । मैं सोचने लगा जब उस आदमी ने मुझसे ताली मांगी तो क्यों नहीं किसी भले आदमी की तरह मैंने अपनी जेब टटोली और दाली निकालकर उसके हवाले कर दी थी । उसने भी भले आदमी की तरह बात की होती है तो शायद मैं नहीं करता । अगर उस ने मेरा पीछा करने के और अकड दिखाने की बजाय ये कहा होता । जरा देखिए तो बोले ने आपकी जेब में कोई ताली तो नहीं छोड दी । तो मैं जरूर अपनी जेब टटोलकर देखता और उसमें ताली पाकर उसे लौटाते था । चाहे ताली से करूंगा, खा जाना है कि उन्हें मिलता । मैं इसे अपने पास नहीं रखता हूँ । लेकिन अब तो इसके बारे में सोचना ही भी कार है । मैं सडक के दूसरी ओर खडा मुझे देखता रह गया । उसे यह पता नहीं था कि मैं कहाँ रहता हूँ और फिर दिल्ली जैसे शहर में ही इस बात का क्या ठिकाना कि वह मुझे कहीं फिर से मिलेगा । मैंने सोचा कि आवेस ताली को मेरे पास ना रहना ही अच्छा हूँ । अगर मुझे मिलता है और थाली में उसे दे देता हूँ तो वही समझेगा की मैंने जानबूझ कर पहली बार उसे डाली नहीं दी थी । नहीं, अभी सोच सकता था कि इस ताली से जो कुछ भी खुल सकता था उसे खोलकर अपना उल्लू सीधा करने के बाद मैंने उसे ताली लौटा दी । नहीं अकाली अपने पास रखना ठीक नहीं है । मैं इसकी वजह से जिस झंझट में पडा और आगे भी पढ सकता था । उस से पीछा छुडाने का सीधा उपाय यही था की झंझट की जड ही खत्म कर दी जाए । मैंने तय कर लिया कि आपने बस स्टॉप पर उतरकर मैं ताली हवा में उछालकर दूर से दूंगा और एक बार ही ही इससे छुट्टी भी पाऊंगा । फिलहाल मैंने ताली जेब में रख ली पर बस है । जब मैं अपने स्टॉपर उतरा तभी रहा विचार बदल गया था । मैंने अपना हाल जेब में डाला ही नहीं । ताली कुछ हुआ भी नहीं । मैं जिस चक्कर में फस गया था उस से निकलने का एकमात्र रास्ता यही था की ताली जिसकी हो से लौटा दी जाए । मैं जानता था कि मैंने कहाँ से वर्ष ली थी और उसे अगर ताली की बहुत जरूरत होगी तो अगले दिन फिर बस स्टॉप पर या मेट्रो स्टेशन पर मेरा इंतजार करेगा । एक दिन, दो दिन, तीन दिन । जब तक मैं दोबारा उस से नहीं मिल जाऊंगा भी मेरे इंतजार करता रहेगा और मिलते ही मुझसे फिर ताली की मांग करेगा । इस बार शायद वहाँ कोई और तरीका अपनाए और मैं इतनी आसानी से उसे चकमा देकर भाग नाशक हूँ । उस समय मैं तालियों से लौटाकर समझा दूंगा । वही मुझे पता ही नहीं था कि मेरी जेब में बोले नहीं, कोई ताली छोड दी थी । चालीस है मेरा कोई मतलब नहीं है ना । मैं ये जानता हो गई है, किस डाले की डाली है और न जानना चाहता हूँ । बस तुम अब इसे लेकर मेरी छुट्टी करो या फिर यह ताली लेकर मैं पुलिस के पास जा सकता था । लेकिन पुलिस के पास जाकर कहूंगा क्या? फिर तो सारी बात पता नहीं होंगे । बूढा मुझसे कैसे मिला? फिर कैसे गाडी के नीचे आ गया? क्या बोले से इस बात पर यकीन करेगी कि मैं बूढे को बिल्कुल नहीं जानता था और वह मुझ से अनायास सी मदद के लिए कहने लगा । इस बात का क्या सबूत है कि वो दे को मैंने नहीं लगेगा । हो सकता है कि पुलिस को मामले की पूरी छानबीन करने के बाद सच्चाई का पता लग जाए । पर उसके पहले कि सुबह की सोची में ही पहला आदमी रहूंगा, फिर एक बार इस मामले में फसा नहीं कि निकलना मुश्किल बयान, सुबह से गिरफ्तारी, जमाना, दवा कील अदालत नहीं । मैं इन सब में नहीं फंसना चाहता था । मुझे फिर घबराहट होने लगी । ऍफ से घर की ओर आते आते मैंने कई बार पीछे मोडकर देखा कि कहीं कोई मेरे पीछे तो नहीं आ रहा लेकिन कोई नहीं था । एक मोटर साइकिल मेरे पास से निकल गई जब मैं सडक छोडकर अपने घर के सामने पहुंच रहा था । एक टैक्सी उसी सडक से गुजरी । बस इसके सेवा कुछ भी नहीं लेकिन इनमें कोई अनहोनी बात नहीं थी । मैं निश्चिंत हो गया की कोई मेरा पीछा नहीं कर रहा है । आज पहली बार मैं घर इतनी देर से पहुंचा था । पहली मेरा इंतजार करते करते हो गई थी । पुष्पा मेरा इंतजार कर रही थी में देर से आने की खबर नहीं देख पाया था । इसलिए उसका यह पूछना स्वाभाविक ही था कि कहाँ देर लग गई थी । पर मैं इस हालत में नहीं दाके । ब्यौरे के साथ अपने देर से आने की वजह बताता । मैं ये नहीं चाहता था कि अपनी परेशानियों का हाल सुनाकर पुष्पा को चिंता में डाल दूँ । इसलिए उसके पूछने पर बडी रुखाई से मैंने सिर्फ इतना का आज कुछ कम ज्यादा था । मैंने तुम्हें खबर करने की कोशिश की थी पर मोबाइल मिल नहीं रहा था । पुष्कर मेरी ओर अविश्वास की नजरों से देखा पर उसने कुछ कहा नहीं और खाना लगाने चली गई भी मुझसे नहीं खाया गया । किसी तरह दो फुल्के निंगल कर मैंने अपना हाथ खाने से हटा लिया तो उसने पूछा क्यों अच्छा नहीं बताया क्या? यह बात नहीं मुझे हो की नहीं लगी है । उसके अगले प्रश्न का इंतजार किए बिना मैंने उठकर हाथ मत होते हैं और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया हूँ । थोडी देर बाद पुष्पादि आकर अपने बिस्तर पर लेट गई हूँ । हम दोनों के बीच में ही होती है । थोडी देर तक मैं मम्मी के सुनहरे वालों से खेलता रहा । वो अपना प्लास्टिक का कुत्ता साथ लेकर हुई थी । सिराहने चाभी से चलने वाला घोडा रखा हुआ था । ये सब उठाकर मैंने नीचे रख दिया ताकि ड्राइवर बदलने में उसे तकलीफ हो । अब मेरा मन शांत था । मेरे साहब जो कुछ भी हुआ था तो चोट लग रहा था । मेरी इच्छा हुई कि पुष्पा को सारी बात बता दूँ पर वह अपना चेहरा दूसरी ओर फेर कर ली थी । मतलब ये है कि वह जानना तो चाहती थी पर सबको जाने के अधिकार के लिए लडाई करके और लडाई उसने शुरू कर दी थी । थोडी देर बाद करवट बदलकर मेरी ओर मुखातिब हुई और उसने कहा तो तो नहीं बताओगे की क्या बात हुई? क्या करूँ? मैंने आदिया डाल देने में ही खैरियत समझे । दरअसल आज मेरी आंखों के सामने एक आदमी गाडी से कट गया । इसलिए मन अजीब सा हो रहा है । गाडी से कट गया कौन? उसके स्वर में गुस्से का भाग गायब हो गया था । मैंने सब कुछ बता दिया । बड ताली और मेरा पीछा करने वाले आदमी की बातों से नहीं मालूम होने दी । काफी देर तक मैं चुप रही । मैं भी कुछ और कहने की हालत में नहीं था । थोडी देर बाद उसने मुझसे का अच्छा सुनते हो । तुमने क्यों बता दिया ये सब मुझे अजीब अजीब सा हो रहा है । तो मैंने पूछा था कुछ घबराहट हो रही है तो मेरे पास ही क्यों नहीं चले आते है तो नहीं आ जाती हूँ । आजाओ रसोई घर में का एक सारे बर्तन झनझन आउट । हमें लगा कि जैसे ऊपर से नंगे पैर कोई फर्ज पर खुदा हो । फिर दरवाजे खोलने और बंद होने की आवाज आई हूँ । ये करीब करीब रोजी रात को उधम मचाने वाली मिली थी । पर उस रात एक मिनट तक मैं कुछ समझ नहीं पाया । मेरे साथ जो कुछ हुआ था उस से अभी तक मैं बहुत भी था । फिर जब मैं ये समझ गया कि दिल्ली को दी थी तो भी मन को बराबर यही बात बेचैन करती रहेगी । कहीं वो आदमी यहाँ तक तो नहीं आ गया । पुष्पा मेरे पास ही आ गई थी । पर उसकी निकटता के बावजूद मेरा भाई काम नहीं हुआ । मुझे दो ढाई बजे के करीब नींद आई । सुबह सिर काफी हल्का था । पिछली रात की घटनाएं किसी गुजरे हुए तूफान की तरह बीत गई थी । पहले पिनान से चाय पी । अखबार की सुर्खियां देखी । बम्बई के साथ थोडी देर तक गेंद खेली । फिर नौ बजते बजते दफ्तर के लिए तैयार हो गया । रोज की तरह पुष्पा और पम्मी ने घर के बाहर आकर मुझसे विदा ली ।
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Sound Engineer