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आप संग्रह है तो वो किताब का नाम है । समय सारा कॅश लिखा है । मनु शर्मा रहे और आवाज नहीं है आपके ऍम यू तो गंगा राम का नवजात शिशु मर गया पर पियरी नहीं उसे बचाने के लिए कुछ भी उठा नहीं रखा था । वो कई आठ अस्पताल में जाती रही हूँ और जब हमारे गया तो कुमारी से गाने लंका फूट फूटकर रो रीडिंग । उसी अश्रुधारा में पियारी का पुराना इतिहास भी पहले गया । अब कुमारी के लिए एक नई पी आई थी, नए संदर्भ में नहीं । जगह पर और नए पडोस में पहले तो माँ के कोठी चले जाने के बाद फॅारेन भर वहाँ रहे जाती है । रात को सोने भर को आती थी, पर सहयोग ऐसा हुआ कि शाम के धुन लगे में गंगा राम के स्त्री फिसल कर गिर गई । उसे चोट तो अधिक नहीं लगी, पर अम्बा हड्डी चोट मुसब्बर लगाने के बहाने जो वहाँ रुकी कि रात में भी रहने का उसके लिए एक बार खुल गया । बिहारी के लिए एक से दो घर हो गए । उधर सोमारू भी बनावटी जी के केस में जेल में डाल दिया गया । अब भी आ रही है । पहले की अपेक्षा अधिक पसर और पदक सकती थी । तो मैं वहाँ से संतुष्ट थी क्योंकि वह उससे पेंट छुडवाना चाहती थी । इतना सात महीने के बाद भी बीआरई उनके मन में चिपक नहीं पाई थी । फिर भी दुनिया यही जानती थी कि पीआर ही हमारे यहाँ ही रहती है । उसे खोजने वाले लोग भी मेरे यहाँ ही आते थे । तब वह बगल से बुला ली जाती थी क्योंकि रामनाथ के घर में बाहर ही लोगों के कहीं बैठने की जगह नहीं थी । मेरे नीचे का दालान उन्हें अधिक उपयुक्त पडता था । रामनाथ आजकल एक दैनिक में पेश का कम देखता था । गंगा राम भी वहीं काम तोजिंग सीखता था । उसी से मुझे देश विदेश की खबरें मालूम हो जाती थी । मेरी सामाजिक जागरूकता को इससे बडी तृप्ति मिलती थी । दिसंबर का महीना था । सांझ बहुत जल्दी अपना चल समेट लेती थी । पांच बजते बजते पीपा सरकारी पत्तियों में तेल भरने आ जाता था । आज दुकान के सामने की लालटेन पर सी लगाते हैं । पीपा चलाया । अरे साहब जी आपने कुछ सुना उसकी आवाज में ऐसा हो तो हाल था कि सौदा बेचते बेचते तो मेरे चाचा एकदम छोटा गया । उसकी खान खडे हुए । बोलता ने बताया जापान में हमला कर दिया । उधर से जर्मनी चढता चला रहे हैं । अब अंग्रेज ॅ वहाँ करें । मुझे तो लगा कि तुम कोई विशेष खबर लाए हो । खरे लडाई में हमें क्या लेना देना है? चाचा बोला और अपने ग्राहक को सौदा देने में पूर्वोत्तर लग गया । क्यों नहीं लेना देना है? उसने लैंप चलाकर सीढी कंधे पर रखते हुए कहा हूँ देखना हर चीज का बंदा आसमान होने लगेगा और विदेशी चीजें तो मिलेंगे नहीं । गांधीजी ने पहले ही विदेशी समानों का इस्तेमाल बंद करने का काम दे दिया है । ये आवाज दुकान पर बैठे और बीडी पीते हुए रमजान की थी । अरे विदेशी सामानों का इस्तेमाल अगर बंद कर दोगे तो मिट्टी का तेल कैसे चलाओगे? टीपा बोला तो अब समझा है सारी महंगाई मैच तुम्हारे तेल के लिए ये होगी । चाचा बोला और उसकी हसीम है । अपनी हंसी भी मिलाई । मेरे तेल के लिए नहीं बल्कि देश के तेल के लिए है । पी पानी कहा ऑर्डर आया है कि लालटेन की रोशनी मध्यम रखी जाए तो तब तो तुम काफी तेल बचा हो गए । ऍम नहीं भाई ऍम जितना तेल मिलता था, अब उसका आधा ही मिलेगा । अब तक रामकिशन भी आ गया था तो मैं सरकारी बिजली के बल्बों पर काला चोंगा भी पहनाया जाएगा । उसने कहा और ये भी बताया कि यह सब हवाई हमले से बचाव के लिए किया जा रहा है । रात में यदि दुश्मन के हवाई जहाज आए तो मैं धोखा खा जाएं । उन्हें बस्ती और उजाडता भाई हूँ । फिर रामकिशन ने हवाई हमले और अंग्रेजों की स्थिति की सिस्टर चर्चा की । रूस के ग्राहक भी दुकान पर आते गए बातों का सिलसिला जाॅब भारत को आजाद करने के शिवम अब अंग्रेजों के पास कोई ध्यान में चारा नहीं है । हम जान बोला ॅ तो ऐसी ही है । रामकिशन ने कहा ऍम सोने की चिडिया को ऐसे ही छोडने वाले नहीं है । इसके लिए तो हमें कुछ करना ही पडेगा । फिर उसने बताया कि हमारे मीटिंग हो रही हो सकता है आंदोलन और देख हो जायेगा । बडा आदमी इन करके करेंगे क्या? आप को तो करना वही होगा जो गांधीजी कहेंगे । फॅमिली नेता साफ गए दिया है कि हम नाजीवादी शासन और ब्रिटानी शासन में फर्क नहीं करता हूँ और फिर बिना देशवासियों की राय लिये भारत को यह मैच रोकने के वॅाक खिलाफ है । जहाँ केशन बोला माहौल अंग्रेज के प्रति घृणा से काफी बहुत दिन हो गया था । दुकान का वातावरण कितना गंभीर लगा कि जैसे अभी ही कुछ होने जा रहा है । मैंने गली के मोड पर देखा । गंगा राम इशारे से मुझे बुला रहा था । वो तो तुम को चुना । वह बोला मेरे मन में जापानी आक्रमण से उसके प्रश्न का संबंध जोडना आरंभ किया । किंतु उसने स्वयं बताया आज लाल को आखिर जेल जाना ही पडा हूँ । मेरा आश्चर्य प्रसन्नता नहीं डूबता गया तो बोलता रहा है । आज काशी समाचार कम । मुख्य समाचार यही है । लाला ने मजिस्ट्रेट के सामने आत्मसमर्पण किया और उस की ओर से जमानत की अर्जी दी गई है । फॅमिली इसका विरोध किया । वैसे चलती रही कि कोर्ट उठ गए । लाला को लाचार होकर जेल जाना पडा डाल इसके वकील ने विरोध किया । मुझे आशा था देखो साहब और नेवले की लडाई का अंत कहाँ होता है । मैं बोला मुझे क्या नहीं था । नहीं तो मैं पूछता हूँ कि पुलिस केस में डाल । इसको विरोध करने का क्या हक है? वास्तव में मैं कार्रवाई से बिल्कुल अनभिज्ञ था । असलियत यह थी कि पुलिस केस के अतिरिक्त डाल इसने लाला पर पांच मुकदमे और दायर किए थे । उसके वकील का कहना है कि मामले बडे संगीन हैं और लाला पैसे वाला बासवराज नहीं है । यदि उसे जमानत पर रिहा किया गया तो वे गवाहों को फोन लेगा । इतना सुनते ही मैं गंगा राम को छोडकर एकदम मोटे चला और था । लडाता हुआ समय चाचा के घर के भीतर पहुंचा हूँ । उस की दुकान पर बहस अभी चल रही थी और चल तो कान लगाए सुन रही थी तो अरे तो मैं कुछ कभी सुनी । मैंने प्रशन्नता में उनके दोनों कंधे पकडकर झकझोर दिया । उसने मुझे एकदम झटक दिया और चारों ओर शंकित नेत्रों से देखा । फिर बोली तो फॅमिली लेते तो तो क्या होता? जंबो की परिस्थिति की गंभीरता को नकारते हुए मैंने उसे समाचार से अवगत कराया । उसकी कल्पना में भी नहीं था वो की लाला कभी जेल जा सकता है । उसके चेहरे पर प्रसन्नता का सन्नाटा घर नहीं लगा हूँ । इसके आगे कुछ और बातें हुई ऍम इसकी आवाज है । वो मेरे आश्चर्य का बाहर आ एकदम चढ गया तब कि उन दिनों चलने वाला एक प्रकार का लाॅक उसकी रोशनी में उसकी मुस्कुराहट में विजय का उन्माद दिखाई दिया । हम तो भी उसे देखती रह गई । आपको खबर तो मिलेगा । योगी धानी बोला पूरा माहौल प्रश्न वाजी हो गया वो लगता है आपको करने आज का एक बार नहीं पडा । तब उसने लाला के जेल जाने की खबर और उस संदर्भ में अपने करतब का विस्तार से वर्णन किया । कुछ रुककर उसने रामकिशुन से कहा मुझे आपसे कुछ बाते करनी है और उसे लेकर ऍम के नीचे चला गया । मेरे मन में आ रहा था कि मैं दाने से जाकर लिपट जाऊँ और उसे इस विजयी पर बधाई । दो बसों में जा जा । उम्र थी धारा के बीच एक बडे शिलाखंड की तरह था । मैं डांस की वहां से हटने की प्रतीक्षा करने लगा । वो जो हीरो रामकृष्ण के साथ मेरे घर की ओर चला । तीसरा इसके पीछे छोटा और खेलने कटाकर बोला यहाँ तो मैं कमाल कर दिया वो पर उसकी प्रसन्न मुद्रा में अंतर नहीं आया । मेरी बधाई सागर में एक नदी की तरह हो, कहीं जाना है । अब मेरे द्वार पर आ चुका था ही नहीं, खराब आती होंगी । अभी समय हो गया । मैंने कहा कि तू घर में दिया तो चल रहा है । हाँ बिहारी होगी दो उसी को बुलाओ । मुझे उसी से बातें करनी है और नीचे के दालान में ही हम चारों की बैठक चल गई । बात का मुख्य विषय लाला की गिरफ्तारी था । दानिश का कहना है कि पुलिस लाला की जमानत का विरोध नहीं कर रही है तो मेरे वकील ने जी तोड बहस कि मजिस्ट्रेट आज इतनी दुविधा में पडा कि वह कोई निर्णय दे ही नहीं पाया तो अभी उसकी जमानत की अर्जी खारिज नहीं हुई । धाम केशवन बोला नए लोगों के चेहरे पर छाई कोई हम मुरझाने लगी पर दानिस के उत्साह में कोई कमी नहीं । इसका मतलब है कि कल उसकी जमानत मंजूर भी हो सकती है तो राम किशन ने का हो सकता है । दानिश ने कहा तो जरूर पर शीघ्र ही उसके उत्साह ने एक तूफान और लिया वो बार होगा । कहते हैं तो वाले को जेल के रोटी खिला करीब हम लूंगा । जब पुलिस विरोध नहीं कर रही है तब तुम क्या कर सकते हो? रामकिशन बोला और सर पर हाथ रखकर कुछ सोचने लगा हूँ । देखना याला के आज में लगे होंगे । ॅ को भी किसी न किसी तरह मिला लेंगे । पर ऐसा होगा नहीं । क्यों नहीं हो सकता पैसे से क्या नहीं हो सकता । रामकिशुन के इसका धन से डाल इसको हल्का सा धक्का लगा ऍम किन्तु शीघ्र ही बच्चों के खेल के मतवाले की तरह मैं धक्का खाकर भी जो उनका हूँ, पहले की तरह वो बैठा हूँ । मैं फिर से मिल चुका हूँ । उस ने कहा है कि जस्टिस होगी अब मजिस्ट्रेट का क्या मजाल है कि कलेक्टर की इच्छा के बडे हो जाए । पार्टी ऍम अल और दाल इसके बीच हो रही थी । मैं और प्यारी तो मुख्य होता थे और दान इसके व्यक्तित्व उस अन्नी सी चिंगारी पर चकित थे जो लाला के जंगल को भाषण करने के लिए बाहर ही हो चुकी थी । क्या हिम्मत ही उसमें इसके सामने कोई खडा नहीं हो सकता था? हाँ, हम तो काम जिसकी बुद्धि में हैं, उसी लाला के खिलाफ उसने पांच ऍसे दाखिल किए थे और उसका विश्वास था कि अगर न्याय हुआ तो लाला जरूर जेल की हवा खायेगा । वो दिन तो यही अगर मैं बिंदु था जिसका वहाँ विश्वास थोडा कहाँ छोटा था । पिछले कुछ करना चाहिए । उसने सोचा और उसके वकील ने भी राय दी । मजिस्ट्रेट के सामने यदि प्रदर्शन करा सको तो अच्छा हूँ किस तरह का प्रदर्शन? रामकिशन ने पूछा हो सकता है कि प्रदर्शन से मजिस्ट्रेट और चढ जाएँ तो अरे हम मजिस्ट्रेट के खिलाफ प्रदर्शन करने को कहाँ कहते हैं? हमें तो न्याय के लिए प्रदर्शन करना है । दानिश बोला फिर अपनी योजना को उसने विस्तार से बताया कि ज्यादा नहीं बीस तीस आदमियों को कल सुबह दस बजे के करीब हकीम के अन्य के पहले ही अदालत के सामने इकट्ठा हो जाना चाहिए । हमने आये चाहते हैं या शांतिपूर्वक नारा लगाना चाहिए और जोर देकर कहना चाहिए कि इन सफेद पोश मुल्जिमों पर कोई रियायत ना की जाए । सारी बातें सुन लेने के बाद रामकिशन एकदम गंभीर हो गया हूँ । ऍम यहाँ के मरीज के सामने धोने का पहाड खडा करने से ग्याल हब आश्चर्य हैं कि तुम्हारे वकील ने भी यही राय दी है । मैं बोला उसे तो कानूनी लडाई लडनी चाहिए थी ऍम पर क्यों कराया? बात ये है कि जापान के युद्ध में कूद पडने से अंग्रेज काफी परेशान हो गए हैं । मैं किसी भी वजह से हिन्दुस्तानियों को नाराज करना नहीं चाहते हैं । धान इसने बताया हूँ । हमारे वकील का कहना है कि इस प्रदर्शन से मजिस्ट्रेट पर नैतिक दबाव बढेगा कि यदि मुजरिम को जमानत पर रिहा किया जाता है तो जनता नाराज हो जाएगी । यो ही गांधी जी ने भारत को युद्ध में झोंकने का विरोध कारण अंग्रेजों के खिलाफ पलीते में आग लगा दी है । बस होने वाले की दे रहे बात को समझ में आई रामके शून्य बिहारी की ओर देखा जैसे पूछ रहा हूँ कि तुम्हारी राय क्या है? हमें ऐतराज नहीं है पर हमे ला अलग का नाम नहीं लेना चाहिए । टिहरी बोली ऐसा लगा कि वह नरपिशाच की कुटिल चालों से काफी डरी हुई है । वो नाम लेने की जरूरत क्या है? यानी बहुत कह रही थी कि हमें मौन प्रदर्शन करना चाहिए । तो क्या तुम रानी बहु के यहाँ भी गए थे? जैकिट होते हुए हैं । बिहारी बोली उसके विस्फारित हुए और इस तरह डालने से चिपक गए गोयात है किसी लंगडे को पहाड की चोटी पर देख रही हूँ । आ गया था इसमें ऍम क्योंकि मैं तो रानी बहु की नजरों में एक गिरा हुआ आदमी हूँ । दानिश थोडे आदेश में आया उसकी आवाज तेज हुई हूँ । मैं उन्हें बताने गया था कि जिस आधुनिक के कुचक्र ने मुझे गिरा हुआ आदमी साबित करने में कुछ भी नहीं उठा रखा था, वो आदमी खुद कितना गिरा हुआ है । इससे वह खूब अच्छी तरह जानते हैं । अचानक छोटी है आवाज मेरी माँ के थे, जो अभी अभी कोठी से आई थी और तन तन आती हुई बगल से निकल कर सीढियाँ चढने लगी थी ना तो उन्होंने किसी के अभिवादन का ठीक जवाब भी दिया और न किसी की और वो खाते हुई उनके व्यवहार से साफ जाहिर ता हूँ कि यह सब उन्हें पसंद नहीं दान इसकी आवाज धीमी पडी । मैं वहाँ के रुख को पहले से पहचानता था फिर भी उमडती धारा किसी बडे चट्टान के पडने से बहाना थोडे ही बंद कर देती है । भले ही रास्ता बदल दें । डांस की बातों ने रास्ता बदल दिया । अब उसने रानी बहुत से हुई बातों का ब्यौरा दिया । उसने कहा कि जाला के काले कारनामे मैंने बतायें और कहा कि एक समाजसेविका के नाते आपका भी कुछ करता है और आप सोचे ऐसे लोगों को जब तक सजा नहीं मिलेगी दब तक समाज का कोड कैसे दूर होगा । तब रानी बहु ने क्या कहा? बिहारी बोली पहले तो उन्होंने बडा आगा पीछा सोचा हूँ प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हुई हूँ । इन तो उन्होंने कहा हमें अपनी गरिमा और शालीनता का ध्यान रखना चाहिए । हम लोग अदालत के सामने नारे नहीं लगाएंगे बल्कि एक संगती में खडे हो जायेंगे । हमारे हाथों में तख्तियां रहेंगी जिन पर लिखा रहेगा कि हम न्याय चाहते हैं । बच्चों और मेरी अबलाओं की जिंदगी है । खिलवाड करने वाले को दंड दो आदि हो । अब हम लोगों का ध्यान बनियान के उन टूटे दबती के डब्बों की ओर गया जिन्हें दानिस बगल में दबाया था और बातों के दरमियान जमीन पर रख दिया था । इसलिए इन डाॅन ने मुस्कुराते हुए पूछा और क्या उसकी बात ही खेल गई? इन्हें छोटे सरकार की होजरी से ही इकट्ठा किया है । जाकर बोला रानी बहु ने भेजा ऍम तो दे दीजिए है किसकी मजाल थी जो ना देता हूँ क्या? छोटे सरकार वहाँ थे, उस साले हो जाउँगा । मतलब कटियानी देखकर वह नहीं कर रहा होगा या किसी अफसर को मक्खन लगा रहा होगा? बितना कहते कहते उसकी मुद्रा बाॅर चबाते हुए बोला वो कमीने हम गरीबों की मेहनत पर रंगरेलियां करते होने दो । स्वराज सालों को मुझे खाडका यदि शंकर पर गंगा ना काम आया ना तो मेरा नाम नहीं गजब के आदमी हो भाई । रामकेश उनके मुंह से निकल पडा । तुम्हारी हिम्मत की मिसाल नहीं चौरासी प्रशंसा पाते । ॅ और खुला क्या समझते हो? मैं तो अखबार के दफ्तर में भी गया था । वो संपादक से मिलावट मैंने साफ साफ कह दिया था कि सच्चाई को जनता के सामने लाना का धर्म है तो यकीन है कि आप लाला के मामले में अपने कर्तव्य का पालन अवश्य करेंगे । फिर क्या बोले संपादक मुलगांवकर उस कराने लगे और गोले आप विश्वास रखिए । ऐसा ही होगा प्लान । इसने कहा और पूछा आज शाम का अखबार आपने नहीं देखा । बडे विस्तार से खबर छपी है । इसके बाद बहुत देर नहीं रोका वो उसने कल की तैयारी करनी नहीं । कल सुबह आठ बजे तक जे बी मैं आता । स्कूल के फाटक पर पहुंचने का निमंत्रण देकर वो चला गया । फिर भी उसकी चर्चा चलती रहे हैं । सच मुझे हमारी जानकारी में ऐसा संघर्षशील व्यक्तित्व नहीं था । चट्टान की तरह अपने सिद्धांत पर अधिक विषम परिस्थितियों की लहरें आती हैं और अपना सिर फोडकर जॉब चाहती हैं । फॅमिली क्या उसका व्यक्तित्व मेरे सामने बादल की तरह पर करने लगा था । उस ॅ जिससे लाला तथा उसके गुंडों ने निचोड डालने की कोशिश में कुछ भी उठा नहीं रखा था, उससे पदनाम किया गया, फसाया गया पडता ऍम था । उसने अकेले ही उसकी बखियां उधेड दी । उसके बाद का भांडाफोड कर दे दिया । एक और लाला के दल का बाल और दूसरी ओर अकेला डाले एक और भाडे के टट्टुओं का गिरोह और दूसरी ओर महज एक जल्दी घोडा दूसरे दिन में सुबह से ही परेशान था । माँ से पूछो तो कैसे पूछूँ? मैंने बिहारी से कहा भी दिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए तैयार नहीं नहीं जाना चाहते हैं । जब माँ कोठी जाने लगीं । मैं उनके सामने खडा हो गया हूँ । क्या बात है उनकी आंखों से एक बाहर चिनगारी, फोर्टी और फिर बोझ नहीं तो उन्होंने मुझे बडे गौर से देखा था । मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था । उन्होंने सब कुछ समझ लिया और एक्शन तक मौन खडी नहीं लगा । जैसे वह परिस्थिति से समझौता कर रही हूँ । तुम जाना चाहते हैं फॅमिली के साथ चले जाना । फिर वह सीढियाँ करने लगी । अचानक रखते हुए उन्होंने मुझे पुकारा । देखो बहुत इधर उधर मत करना । रानी बहु के पास ही रहना, बस्ता लेकर जाना और काम खत्म होते ही स्कूल चले जाना । चलते चलते उन्होंने संदूक में रखे ऐसे मौके खेली है । पुराने खण्डार के कुर्ते और पहचान में कभी निकालने का संकेत क्या ऍम खेलो था? मुझे लगा माँ स्वयं यूनिफॉर्म पहनाकर मुझे विदा कर रहे हैं । जब हम लोग कह रही मैं पहुंचे तो हमारे साथ मुश्किल से साठ सत्तर आदमी रहे होंगे । ये भी कितनी कठिनाई से जुटाए गए थे, इसे तो ढाणी से बता सकता है, पर का चाहे डी के भीतर पहुंचते ही वह लोग वहाँ के लोगों का हुजूम हमारे साथ हो गया । इनमें अधिकांश टाॅपर कचेहरी के भीतर पहुंचने ही वहाँ के लोगों का एक हूँ हमारे साथ हो गया । इनमें अधिकांश तामाशा भी नहीं थे । पूरी कचहरी में कच्छ सनसनाहट ही फैल गई । कोई शोर नहीं, कोई नारेबाजी नहीं, आपसी बातचीत की नहीं जो आप मौन दो दो की पंक्ति में लोग बडे चले जा रहे थे । आगे आगे रानी, बहु तथा पीआरआई और उनके बीच में मैं मेरे हाथ में बांस की खपाती में लगी तख्ती जिस पर लिखा था हमें न्याय चाहिए । मेरे पीछे भी लोगों के हाथों में कई तख्तियां थीं जिन पर भिन्न भिन्न वहाँ के लिखेंगे तो उसके पहले शायद ही कचहरी में ऐसा मोहन हंगामा गुजरा हूँ । हर व्यक्ति के लिए यह जी था, विलक्षण था ऍफ का काम महज जुलूस को भीड से अलग करना था । वो आदमियों के जंगल में गुजरती आदमियों की दो शांत लकीरें आगे बढती चली जा रहे नहीं मजिस्ट्रेट के कमरे के सामने आकर हम लोग चुपचाप खडे हो गए हो किंतु भीड का सब वो तब तक हमारे ॅ, अचानक पीछे से आवाज, छोटे ऍम इन्कलाब और फिर गूंज उठा जिंदाबाद हो रहिये, चुप रहिए हमें एक भी नारा नहीं लगाना है । दानेश चलाया और भाग दौड करके भीड का मुख्य उधर दबाया हूँ । ये नारा इतना तेज था कि गोरा मजिस्ट्रेट एकदम अदालत से बाहर आ गया । मैं चाहता तो पुलिस को आर्डर देकर भीड को तितर बितर करा सकता था । पर उसने ऐसा नहीं किया । तो सब क्या चाहता है साहब भी रॉक में वो मुझे लेते हुए घर जाओ वैसे ही शांत भाव से रानी बहु ने उत्तर दिया हम चाहते हैं हमारी तख्तियों पर लिखा है डाॅन जाने में हो गए स्कूल के लिए हमें शमा कीजिए । बेरानी बहु ने हाँ जोडते हुए अपना सिर झुका दिया । एक अजीब खामोशी उभर आई । जानी बहु के मध्यम से संपूर्ण भीड नया बना हो गई यानी बहुत बोलती रहीं हूँ । हमारा कार्यक्रम कोई भी नारा लगाना नहीं था और न तो हम आपको डिस्टर्ब करना चाहते हैं । अनजान में हमने से किसी के मुझसे इन्कलाब निकल आया । हम उसके लिए फिर से माफी मांगते हैं । हमने देखा हूँ जानी बहु ने बडी होशियारी से उस भीड को अपना ही अंग बना लिया । अच्छा काम आप चुपचाप बैठ चाहिए । मजिस्ट्रेट बोला और सब वहीं जमीन पर बैठ गए । कुछ लोग किनारे किनारों पर भी खडे थे । तब तक शांति ढंग की आशंका से पुलिस की एक टुकडी भी वहां पहुंच गई और सुरक्षा की दृष्टि से पोजीशन लेकर खडी हो गई ऍम बडे गौर से तख्तियों पर लिखे वाकी पडता रहा हूँ और एक स्थान पर आकर फॅसा गया । इसका क्या मतलब है? वो बोला उसने एक विशेष व्यक्ति की ओर संकेत क्या वो साहब गाल आठ तारीख को सजा देने में कानून की बक्कड कहीं ढीली ना पड जाए । इतना लम्बा बाकी पढ सकती छोटी सी अक्सर अपनी हैसियत है । छोटे और बात अपनी है जैसे बडे मजिस्ट्रेट का समझना पाना संभावित था । उसने फिर पूछा क्या मतलब का आपको नहीं पडने की कृपा करें । बात खुद अपना मतलब बता देंगे । यानी बहुत है । मुस्कुराते हुए निवेदन किया उसने एक बार फिर रानी बहु को देखा मानो उसकी अफसरी धंधा करना चाहती हो । पर रानी बहु के शांत भाव के समक्ष पे चुकी रह गया । उसने शेयर खुजलाते हुए उस वाक्य को पूना पढा और बोला वो समझा हूँ उसके संदर्भ के जाल में व्यस्तता समझ की मछली फंस चुकी थी । आप यकीन करेगा कानून का पाक अड कभी ढीला नहीं होता । कानून थोडा है । इस की निगाह में हर एक बराबर है और आप परेशान ना हो, अपने घर जाओ । अंग्रेजी गोचारण में उसकी हिंदी बडी अच्छी लगी । मजिस्ट्रेट अब अदालत की ओर घूमा और बुदबुदाता हुआ आगे बढा ही पार्ट है लोग कैसे समझता है कि हमारा यहाँ जस्टिस नहीं होगा । बेटी हुई भी उठते ही विसर्जित होने लगी । फॅसने सबके हाथों से तख्तियां इकट्ठी कर ली और मुझे बुलाकर बोला वो वहाँ से एक पर ऍम घर लेकर जाऊँ शाम तक मैं आकर है ले लूंगा पर मैं तो उसको जाऊंगा । मैंने बस था दिखाया यदि एक दिन नहीं जाओगे तो क्या होगा? महान बिगडेगी दानिश कुछ बन बनाया । फिर उसने सारी तख्तियां बिहारी को सौंप दी और बोला और अदालत में चला गया । मैं रानी बहु के साथ पीछे पी आ रही थी । कुछ सकती है उसके हाथ में थी और कुछ रामकृष्णन के हाथ में वो वो लोग बडे कुतूहल है उन्हें देख रहे थे । एक कॉन्स्टेबल ने तीखी दृष्टि बिहारी पर डाली अरे वही पि ऍफ अब चिनाब नहीं हूँ, सुराजी होगा इलोना दूसरा बोला वो युवा खाए के पिलाई बगैरह तेल दोनों हंस पडे, निश्चित ही है कोई और नहीं पी आ रही का अधिक ही उस पर खिलखिला रहा था । तो ये पहला अवसर था जब रानी बहो खुलकर राजनीति में आई थी । शायद पहली बार लोगों ने मोटर छोडकर उन्हें एक के ऊपर चढते देखा था । इस की गंभीर प्रतिक्रिया हुई । जहाँ बनारस की जनता ने राजनीति के सिटिज पर एक नए नश्रत्र का दर्शन किया वहीं खुद उनकी प्रतिष्ठा का सिंधु आलोकित था । उठा था छोटे सरकार ने तो आसमान सिर पर उठा लिया था वो मैंने सुना कि उस दिन की घटना पर उसने रानी बहु को बहुत कुछ बुरा भला कहा था । पर रानी बहु का शिव साहब व्यक्तित्व सारा गाल पे क्या? दिन तू मैं झुकने की स्थिति में नहीं था । जमानी संदर्भ में उन्हें छेडा भी बडे शांत भाव से उबल पडी । जब सिर्फ दर्शाया भगवान नहीं खेली तब जी जी इस संसार में मेरा रही किया गया है । कभी मेरी वजह से लोगों की इज्जत पर बट्टा लगता है । तब क्यों नहीं मैं कोठी कोई छोड दो । महम में ये साहस नहीं था कि वह पूछे कि आखिर आप छोडकर कहाँ जायेंगे? फिर भी रानी बहुत शांत भाव से व्यक्ति नहीं क्यों नहीं मैं अनाथालय में चली जाऊं । आखिर इतनी अनाज स्त्रियाँ बाहर ही रह गए । बच्चे मैं तो मर्यादित की है । उन्हें तो इस कोठी की छाया मिलनी चाहिए और यदि नहीं नहीं मिलेगी तो भाग्य में जो लिखा होगा होगा । मैं बता रही थी की रानी बहुत को इतनी विद्रोही मना स्थिति में मैंने कभी नहीं देखा था । वो एकदम कागार पर थीं । जरा सा पैर आगे बढा थी । उन्होंने स्वयं को राष्ट्रीय भावधारा में समर्पित किया । जहाँ से लौटना फिर असम दाद होता हूँ । उनकी इस मानसिक स्थिति से पूरी कोटी ठहराव थी थी । उसी थरथराहट ने उनकी आवाज ही नहीं थी । अब वह मौन हो गए । नहीं छोटे सरकार अपनी जिंदगी जी रहे थे । बढानी बहु अपनी युवरानी बहू और छोटे सरकार ने दूरी पहले से ही थी बराबर उसका फैसला बहुत बढ गया था । कोठी का वातावरण पहले से बहुत भोजन हो गया था । छोटे सरकार की सारी फिर अगले बता सिमट गई थी । अब उनकी आईआईसी कोठी की थोडी नहीं लांघ नहीं अब उसके दिलफेंक दोस्तों की मैं मिलें बगीचे में ही जमती थी । अब रानी बहु भी लोगों से बहुत कम बोलती थी तो माँ के सामने वो अपने मन का हर राष्ट्र खोल देती थी । उस दिन कचहरी से लौटते समय मैं अपने स्कूल के सामने उनके से उतर गया था । उन्होंने पूछा ताॅबे बेटा उसको जाऊंगा । मैंने अपना बचता दिखाकर कहा पर तो बडी देर हो गयी है । फॅमिली के मास्टर तीर होने पर बहुत ऍम लूंगा । मैंने से नहीं चाहिए हाँ वही कहा मेरी ये बहुत उन्हें प्रभावित कर गई थी । मन का शिक्षा भी बडा अजीब होता है । कभी कभी मैं भावुकता की मामूली कंकडी से भी हो जाता है और कभी कभी गंभीर विचारों के हथौडे भी बेकार साबित होते हैं । शायद इसीलिए एक दिन बातों के सिलसिले में उन्होंने माँ से कहा जी तुम्हारा जब भी बडा होना लडका है भगवान उसकी रक्षा करें । फिर पता नहीं क्या है सोचते हुए चुप हो गयी वो लगाके हजारों अपाहिज लडकें उनकी आंखों के सामने कहने लगे क्षण भर में है उन की मुद्रा बोली उसके दिल में एक चिंगारी है जी जी जो निश्चित ही एक ना एक दिन जरूर आप बन जाएगी । आग से हमें क्या लेना देना हम तो गरीब लोग हैं, तमिल रोटी चाहिए हम आजादी लेकर क्या करेंगे माँ के विचार से ये आजादी का नारा उनके लिए ये है जिनका पेट भरा है गरीब को तो फिकर है पहले अपने बेटे की माँ की बात है और समय रानी बहु हंस पडी थी तो ऐसा बचती है की आजादी की लडाई और रोटी की लडाई अलग अलग है । पहले बदली आजादी के बाद रोटी की समस्या आपसे आप फल हो जाएगी । आजाद हिंदुस्तान में मैं कोई भूखा रहेगा और न लहंगा । फिर जब तू ऐसे बच्चों का भविष्य ही तो इस देश का भविष्य हैं । हमारे हमारे लिए क्या ऍम जाने हमारी जिंदगी में आजादी मिले या ना मिले पर ये बच्चे तो उसका फल भोगेंगे । आज सोचता हूँ तो लगता है की रानी बहुत जितने भी हम नहीं थी यदि वे आज होती तो मरीचिका के पीछे दौडने वाली उन हरिनी से लिपट घर में पूछता हूँ की क्या बात है की आजादी की लडाई जीतने के बाद भी भ्रम रोटी की लडाई हार गए पर मैं तो उस समय की बात कर रहा हूँ । था तो रानी बहु ने मुझे बुलाया था । बडे प्रेम से बोला हूँ पर कोठी में नहीं अनाथालय में और कहा हूँ किसी दिन शाम को उसे अनाथालय में भेज देना ऍम जाती हूँ गिन तू हमको तो यहाँ से छुटकारा नहीं मिल सकता हूँ । पर मैंने तो मैं तो बुलाया नहीं है । हसी किया हूँ क्योंकि तो तो मैं रोटी की लडाई लडना जानती हूँ । इस बाहर रानी बहू और जोर से हंसी महामुने देखती नहीं गई । शायद मैं उस हसी को समझ नहीं पाई । उन्होंने मैच इतना समझा की जान को काफी समझदार है । वो अकेला ही मेरे पास आ सकता है । चार से कुछ अधिक ही हुआ होगा । जाडे की संध्या धर थर्राहट में डूबने लगी थी । मैं अपना बस तालियाँ लाहूर आबीर की ओर बढा चला जा रहा था । एक बिजली के खंबे की नहीं दिए । क्रिश्चियन लाइब्रेरी के सामने कुछ भीड दिखाई थी । समझा कोई पादरी उपदेश कर रहा होगा पर निकट आकर देखा तो मेरे अनुमान को धक्का लगा । ये बनारस का उस समय का मजबूत कैरेक्टर था । नाम तो मैं तब भी नहीं जानता था और आज भी नहीं जानता हूँ । कुर्ते पर करता हूँ । कई करते एक साथ पहले माथे पर टिकुली लगाए अधिपत्य बालों के बीच महानगर कुछ सामान्य से अधिक गाडी भरी हुई थी । दोनों हाथों में खनन थी । हुई बहुत सारी रंगीन जोडियां और दाहिने हाथ में एक मोटा सा रोल लिया । मैं अर्धनारीश्वर सी सबके आकर्षण का केंद्र था । उसकी वेशभूषा और चार ढल से अधिक उसका ही व्यवहार भीड जुटा लेता था । मैं जहाँ खडा होता हूँ वहीं हाला अफसरों को गालियां देने लगता था हूँ । इस समय भी वह अंग्रेजों की फोर आलोचना कर रहा था और कलक्टर तथा गोथवाल के लिए हजार हजार गालियाँ निकाले जा रहा था । कभी कभी उन गालियों की बौछार लाटसाहब तक चली जाती थी । साथ ही में शहर की हाल की घटनाओं की चर्चा कर रहा था । रसाली अंग्रेजों का अब हालत खराब है । कुछ दिनों के मेहमान है । लाला जगजीवन दास के मामले में कलेक्टर की भी पड गए । उसे जेल जाने से वे बिना रुक सका । साला बडी डाॅ पहुंचाता था । वो सोचता था कि कलेक्टर हमारा बात है, जो चाहूंगा करा लूंगा । पर मादर को आखिर जेल हो ही गए । क्यों नहीं उसके बाप ने उसे रोक लिया । एक और गलत काम करोगे और बेचोगे नादान बच्चों की जिंदगी से खिलवाड करोगे और अफसरों को डलिया पहुंचाओगे । अरे कमीनो तुम्हारे शरीर में धीरे बढेंगे की भूलता रहा हूँ । मैं भी चुपचाप खडा होकर हूँ । कितना विलक्षण राज्यों को भी बुरा भला कहता था तो उन्हें का जरूर नहीं और चले स्वराज लेने । आखिर ये हैं तो इस तरह की विचित्र वेशभूषा में चौराहे चौराहे पर जो मन में आए लगता हुआ हूँ तो बनारस के हर व्यक्ति के लिए रहते मेरे मस्तिष्क के संदूक में वो आज भी रहस्य के पुतले की तरह बनने एकांत में या किसी अनमने शहरों में पुराने दस्तावेजों को देखने के लिए जब भी रह संधू खोलता हूँ, पुतला जहाँ घुटता है और आज भी अनर्गल प्रलाप करता दिखाई देता है, उस समय भी उस रहस्य को समझने की कोशिश कर रहा था । उसका आकर्षण मुझे खींच के लिए जा रहा था तो भीड में काफी ढाई चुका था । पर गरीब करीब उसके निकट आ गया था की किसी ने पीछे से मेरा कांदा झकझोरा और हाथ पकडकर खींचते हुए बोला चलो क्या क्यों खडे हो यहाँ राजधानी की थी मैं यहाँ कहाँ और कोई बात होगी? मैं बाहर निकल आया तो मैं मुझे लेकर भेड से आगे बढा ऍम इसकी भीड में मत खडे हुआ करो । फॅसने कहा क्यूँ ये ऐसी आईडी है । उसने इतनी गंभीरता से कहा जैसे बहुत बडा रहस्य बता रहा हूँ । पर यह तो बुजुर्गों को भी गालियाँ दे रहा था इसके लिए कि लोग इसकी असलियत जानना सकें । उसने कहा इसलिए देखते नहीं हो कैसे विकेट ढंग का वेश बनाए रखता है ध्यान इस पर विश्वास करने के अॅान कोई चारा नहीं था । बहुत से लोग उसे सीआईडी समझते थे पर मैं आज तक जा नहीं पाया की वाॅल मैं तो दिया लगते लगते । स्कूल से छोटा था और आज क्यों जल्दी चला आया ऍम इसको आशा था और फिर घर ना जाकर लहुराबीर की ओर क्यों जा रहा हूँ । जब मैंने उसे सारी बात बताई और कहा की रानी बहु ने मुझे अनाथालय में मिलने के लिए बुलाया है तब उसकी बात है खेल नहीं । और मेरी पीठ पर हाथ ठोकते हुए बोला ॅ अब तुम भी रास्ते पर आ रहे हो । नानी भी नहीं जा रहा था । एक ही जगह हम दोनों साथ ही अनाथालय पहुंचे तो जिस कमरे को दान इसने गगरानी बहु का कमरा बताया वह वहाँ नहीं पता लगा की किसी बच्चे को वह भी डर दवाई लगा रही थी । मैं पहली बार अनाथालय में आया था । उत्कंठा स्वाभाविक थी । दानिश को वहीं बैठा छोडकर मैं जहाँ ताक करता हुआ गलियारे में आगे बढाऊं पर सब के सब बिहारी की हथेली की तरह खाली थे । कुछ कमरों में बिखरे सामान वहाँ किसी के रहे चुकने का बहुत करा रहे थे । कुछ और आगे बढने पर बाप और मुडते ही एक बडा कमरा दिखाई दिया । छोटा मोटा हॉल भी कहा जा सकता है । इसी में दस पंद्रह बच्चे और लगभग इतनी ही स्त्रियां रानी बहु को घेरकर खडी नहीं । बीच में एक बडी बोरसी में आप चल रही थी वो मेरी उम्र के एक नंग धडंग लडके के शरीर पर जानी बहू अपने हाथ से गर्म हल्दी चूना लगा रहे थे । देखने में लग रहा था जैसे लडके को किसी ने खूब पीटा हो । पीठ पर भेद की साढे उपर नहीं पूरा सोच किया था । फटे हुए हॉट से रक्त बह रहा था । वह रोता हुआ कहना चाह रहा था पर बोल नहीं पा रहा था । मैं सिस्टर और रोना ही मेरे पल्ले पड रही थी । खरीदना उसके मुख्य अवश्य निकला । ऍम नहीं पाएगा । रानी बहुत है । उसे आश्वस्त किया । मैं एकदम उनके पैरों पर गिर पडा । उसकी काटरड दृष्टि एक बार फिर रानी बहू पर बडी मानो है । उनसे पूछ रहा हूँ टीवी खोजते हो जाएगा तो क्या होगा? कुछ नहीं होगा । घबराओ नहीं काम यही रहोगे । ममता भी उनके स्वर में । उन्होंने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया । एक्शन के लिए शायद भूल गई कि इससे हल्दी चूना लगा है । याद आते ही उन्होंने उसे दूर हटाया और उनकी शवल पर उस बाला की पीडा की छाप उभर आई थी । उन्होंने एक बार अपनी शवाल की ओर देखा । फिर उस बाला के घावों को देखती रहे गए । आज मिठाई ऍम का उनके मुख से निकला । शेष शब्द वैकया बात ही रह गई । फिटकरी मिला दूध भी कर खूब अच्छी तरह कंबल उढाकर सुनने का निर्देश दे । वह वहाँ से उठी । अब उन्होंने मुझे देखा तो कब से आए थे और चार एक ढंग है । मुझसे बोझ कर वो अपने बाहरी कमरे की ओर बढे । निश्चित ही उनका चिंतन उस बालक से उन ही था । ऍम था उनकी ममता मुझे इतनी जल्दी नहीं छोडती हूँ । मैं भी उनके पीछे पीछे चला । कमरे में आते ही तारें कुर्सी पर से खडा हो गया और बिना किसी अभिवादन के ध्यानी बहु का गुबार निकलने लगा हूँ । आखिर क्या हो गया? आदमी को लगता है उसके स्वार्थ ने उसकी संवेदनशीलता को मार डाला है । ये निर्मोही हो गया है । एक दार्शनिक की मुद्रा में मैं बोलती नहीं हूँ और इसी क्रम में उन्होंने बताया कि जब क्यूँकि उम्र से छोटा ही एक लडका भागा हुआ आया है । वो ॅ स्टेशन के पास किसी होटल में काम करता था । पैसा देना तो दूर रहा हूँ । मालिक खाने को भी नहीं देता था और दिन रात काम लेता था । रोक लगी थी तो उसमें कुछ खा लिया । बस इसी पर मालिक ने इतना मारा कि उसकी सारी देर सोच कहीं कितना होने पर भी उसमें खाने के लिए चोरी नहीं की पराजित व्यक्ति की जीवित नैतिकता की । आप हाँ उनकी भागती पर खेलने लगी । ग्राहकों पर उसके समय उसने एक रोटी टेबल के नीचे की राजीव और मौका पाकर उसे उठाकर खाने लगा । ऍम पूरी कहानी सुनने के बाद दानिस उत्तेजित होने लगा । उसका बारूदी व्यक्तित्व, जरा सी चिंगारी, बातें ही विस्फोटक होता था । उसने बडी उत्तेजना में हूँ उसे होटल वाले को तो चल कर कल ही खेल लेना चाहिए और वहीं धरना देना चाहिए । इससे क्या होगा और किस किस के खिलाफ धरना देते तो प्रदर्शन करते फिर होगी । यहाँ तो कोई में ही भाग पडी है । हम तो सारे सामाजिक व्यवस्था बदलनी पडेगी और ये तभी होगा जब अपने देश में अपना राजू आज बदलने से क्या आदमी बदल जाएगा । वो राज को इस मर्जी की दवा समझने वाले दानिस आज कैसी बातें कर रहा है? या तो वह रानी बहूऍ बोल रहा था या उसकी दमित शंकाएं स्वयं मुखरित हो रही थीं । आदमी बदलेगा नहीं, पर उसके बदलने का उपक्रम किया जा सकता है । यानी बहुत बोली ऍम और लोग की अधिकता आदमी को जानवर बना देते हैं । धन्य लो, लो पता की धरती ही तोषण के तौर को जन्म देती है । मनुष्य की है प्रवत्ति तो स्वराज्य के बाद भी रहेगी । अरे प्रवर्ति भले ही रहे, पर उस पर नियंत्रण तो राज्य करेगा । यानी बहु ने कहा आजादी के बाद ये नहीं होगा कि देश के धन पर मुठ्ठी भर लोगों का ही अधिकार हो । अगर ऐसा हो गई नहीं की कोई खास खाकर मारे यशी करें और कोई एक रोटी के लिए भी मारा जाएंॅगी । बहु के कहने का ढंग ऐसा था कि मेरी आंखों के सामने सॉल्यूशन लगा कर अपनी मुझे घंटा हुआ । छोटा सरकार आ गया, उसकी रंगरेलियां गईं और उन्हें चित्रों के बीच से उभर आईं । उस बाला की पीठ पर बनी बोली फोन ही नहीं रहे । बेट की साठ और खींचकर मारे गए । थप्पड से सोचा हुआ कलॅर एक दूसरे के पेट पर मार रहा था । दूसरा अपने बेड द्वारा ही मारा जा रहा था । एक की विलासिता वैभव के विशाल भवन पर खडी मुझे नहीं थी और दूसरा उसी भवन की नींव में पडा । ठीक रहा था । डाॅन इस और रानी बहु में वादों का सिलसिला अब भी जारी था । पर मैं कुछ अधिक समझ नहीं रहा था । मैं भावना में बाहर जा रहा था । मेरी विचार सडनी तो उस समय छोटी जब धान इस ने पूछा आखिर उस लडके को यहाँ लेकर कौन आया हूँ उसका तो कहना है वे विद्यापीठ के मैदान में बैठ कर रो रहा था । वहाँ उस एक लंगडा भी मिला । वहीं यहाँ लेकर आया फॅमिली बहु ने बताया हूँ उस लंगडे ने लडके से यही कहा कि इस घर में चले जाओ सारा जो दूर हो जायेगा कभी बाहर मत निकालना नहीं तो फिर पकड लिया जाओगे । इतना कहकर लंगडा सामने के बगीचे में चला गया । मुझे लगा कि वही लंगडा मृत्यूंजय के हनुमान मंदिर में लाला के पीछे खडा हुआ है और उसकी विद्रोह ही मुझसे कह रही है इसका महीने के चक्कर में मत पडना भरना ये चला जाएगा । धीरे धीरे आदेश नाम पर आया । अब मेरी ओर मुखातिब हुईं । कौन से सीधे चले आए । मैंने मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर स्वीकार किया तब तो भूक लगी होगी । उन्होंने कहा और टेबल पर रखी घंटे बजाए वो ये घंटे आज जैसे हॉल में नहीं थी । वो मरन पूजा की घंटी थी । उसको बजाते ही एक नौकरानी कमरे में दाखिल हुई हो । जरा भंडार में जाकर देखो जलपान के लिए कुछ है रानी बहु ने कहा पलक झपकते ही वो लौट कर आई हूँ और बडे संकोच के साथ सूचित किया हूँ और कुछ नहीं है । हाँ हम दही के गांव से आई ढूंढी जरूर है तो वो ले आओ । धूंधी के टुकडों से भरी एक छोटी सी थाली आ गई है और शीघ्र ही तीन गिलासों में पानी भी । हाँ लोग ॅ तो उन्होंने ढाली को मेरी ओर बढाया और स्वयं एक बडा उठाकर खाने लग रहीं हूँ । मैं तो उनका मूवी देखता ही रह गया । क्या वह वही कोठी की रानी हुए हैं जो मेरे और पकवानों की ओर ताकती तक नहीं? और जिनके जलपान में राम भंडार कि गंगा जल से बनी मिठाइयां रखी जाती है उनमें भी वह दो एक को छोडी देती हैं तो मुझे लगता है कृष्ण सुदामा के तंदुल जरूर बडे चाव सिखाए होंगे । मास्टर ने मुझे गलत नहीं पढाया है । मैं ढूंढ तो कम खाता रहा हूँ और रानी बहुत कम अधिक देखता रहा हूँ । एक बार उन्होंने टोका भी क्या देखते हो खाओ हिंदुस्तान की असली मिठाई यही है मेरे रहा एक टुकडा उठाने के लिए आगे बढा ही था की उन्होंने दूसरा टुकडा उठाकर वो मैं डाल लिया और हसते हुए बोली खाने में जिसमें संकोच क्या वो इस देश में भूखा ही रह जाएगा । उनकी हंसी के साथ ही हमारी भी हस्तियां शामिल हो कहीं स्पष्ट लगा की रानी बहुत से दूर चला जाने वाला डालें । अब लौट आया है उसके माथे पर लाला द्वारा गया कलंक काटी का मैं है आपका इतना निकट चला आया है कि एक ही थाली में बैठकर खा रहा है हिंदू और मुसलमान एक ही थाली में ये भारत का स्वप्न है यथार्थ मेरा भावुक मन तो यहाँ सोचने लगा मेरे मानस में तो दो रानी बहुत ही एक कोठे की रानी बहुत और दूसरी अनाथालय की मुझे यही दो हैं । इसमें असली कौन है नकली कौन? इसी बीच दरबान ने सूचना दी कि एक आदमी रानी उसे महिला जाता है । अभी थोडी देर से रोगों, उसका नाम और काम पूछो । रानी बहुत नहीं कहा मैंने पूछा था उसने कहा कि मैं मिलना चाहता हूँ नाम और काम उन्हीं को बताऊंगा क्योंकि मैं मुझे जानती नहीं । अच्छा जाओ मैं भी बुलवाती हूँ । धर्माण चला गया जल्दी जल्दी हम लोगों ने ढोढी खतम कर डालें । जानी बाहुल है वही पूजा की घंटी । फिर बजाए वही नौकरानी भी गाडी हुई आई यहाँ से ये सब हटाओ ऍफ करूँ । ढाई और गिलास की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा और ऍम से कहो कि उस आदमी को भेजते पल भर में ही एक लंबा तगडा व्यक्ति धोती कुर्ता पहने कमरे में दाखिल हुआ । रानी बहु ने एक दृष्टि उस पर डाली जाॅब को समझ लिया हूँ । ॅ के सामने वाले होटल के मालिक तो नहीं हूँ । हाँ व्यक्ति सकपकाया कैसे? उन्होंने पहचान लिया बैठिए यानी बहु ने सामने की कुर्सी की ओर संकेत क्या कई है जैसे आपने तकलीफ की मेरे यहाँ से एक लडका भाग कर आपके यहाँ आया है । उसने कहा मैं मेरे यहाँ नौका है । होगा यहाँ का नौकर यानी बहु का स्वर्ग अप्रत्याशित रूप से शांत था हूँ । घंटों की मानसिकता इतनी शांत का सामना करने की नहीं थी रे थोडा असंतुलित हुआ । वह मेरे यहाँ से चोरी करके भाग जाएँ । भागा होगा चोरी करके उनकी आवाज में पहले जैसे ही शांति थी, मैं उस से मिलना चाहता हूँ । हाँ, जोर से मिलना तो जरूरी हो गई । एकदम गुरु गंभीर यानी बहुत पुनः पूछा हूँ । वह चोरी करके आया है या आपने उसे कुछ दिया है, मैं उसे लेकर जाता है । व्यक्ति कुछ बोल नहीं पाया । लगता है आपने उसे कुछ दिया है और वह उसे लेकर भाग आया । बस खडे गए जोर की तरह मैं फिर नीचे क्या ही बोल पडा हूँ? हाँ, बात को जैसे ही वो बडी कृपा होती यदि आप मुझे उससे मिला देती हैं, अवश्य मिली है । यदि आप की कोई वस्तु लाया है तो वे आपको मिलने ही चाहिए । इतना कहकर उन्होंने पूजा की घंटी बजाई और दाई को उस बच्चे को लाने का आदेश देकर वे एकदम मोहन हो गई । इस बीच धन इसमें कई बार उस व्यक्ति को खोलकर देखा तो ऐसा लगा कि वह उसे अच्छा जब आ जाएगा और रानी बहु की शांत मुद्रा ने उसके हाथ पैर कैसे पांधी । कम्बल से लिपटा है । लडका आया यहाँ भी उसे चला नहीं जा रहा था । अपने मालिक को देखते ही तो चिंघाड मारकर रो बडा मानव अप्रत्याशित मौत के सामने लाख खडा कर दिया गया हूँ हूँ । हो जाओ होने की कोई जरूरत नहीं । ॅ नहीं नहीं जा सकते । रानी बहु के स्वर में अधिकार की इतनी गंभीरता थी कि वह होटल का मालिक होने देखता रह गया । उसके मुख्य ये भी नहीं निकला कि मैं क्यों नहीं ले जा सकता हूँ । फिर भी लडका होता रहा हूँ । मैं तुमसे कहा ना कि डाॅ हो जाओ यानी बहुत है । लडके को फिर चुप कराया । इनका कहना है कि इन्होंने तो मैं कुछ दिया है और तुम उस से लेकर भाग आए हूँ लडका चकित साहब ने देखता रह गया बोलते क्यों नहीं चुप क्यों लडका अब भी मौन था पर लाए तो जरूर मुझे मालूम में एक रहस्यमयी मुस्कुराहट उनके अधरों पर उभरी पर जो तुम लाई हूँ उसी के लौटा सकते हो जब छोटे बालक का चेहरा भय से काला पडता जा रहा था वो दबाये गढती आवाज बडे नाटकीय ढंग से ज्ञानी बहुत से छोटे इसका नंबर हटाओ और जो ये लाया है उसे इसके मालिक को लौटा दो कम्बल हटा दिया गया की बाल के पत्ते सा बालक कम बता रहा हूँ उसके धन पर पडी मार के निशान की ओर संकेत करते हुए यानी बहु ने कहा यही है तुम्हारे यहाँ से लाया है क्या? ये तो मैं लौटाए जा सकता है, जरूर लौटाया जा सकता है । डालें एकदम बाहें चढा था हुआ खडा हो गया । इस साले को जब इसी तरह पटाकर माना जाएगा तब ये समझेगा कि दर्द कैसा होता है । यानी जितने आवेश में था कि यदि रानी राहुल ने बैठ जाने का संकेत नादिया होता तो मैं सोचा रहा तो जरूर देता हूँ । किन्तु नाम हुई आतिशबाजी की तरह भी मात्र फुरफुरा कर रहे गया । उस बच्चे को कम्बल बढाकर रानी बहु ने भीतर भेज दिया और बडी बेरुखी से उस होटल वाले से बोली आप आज नहीं है । जानवर बनने की कोशिश मत कीजिएगा । फिर आज का अखबार देखने लगी हूँ । इस उपेक्षा का मतलब था आप यहाँ से चलते बनी । वो भी होटल वाला बैठा ही रहा हूँ और उस मौन के घुटन भरे खूब पीटे ऍफ से लाया था । मैं एकदम भूल चुका था । फिर भी पता नहीं कैसे नहीं सहारा साहस बटोरकर बोला ॅ अब मैं ऐसी करती नहीं करूंगा या तो नहीं हो सकता । यानी बहु ने वैसे ही दीर गंभीर स्वर में कहा अब मैं तो तुम्हारे यहाँ नहीं जा सकता हूँ । फॅमिली जवान है, बोलता रहा हूँ पर नहीं जमता तो उसे मेरे यहाँ जाना ही चाहिए । उसने धीरे धीरे बताया उस लडके का बाद स्थानीय मवैया गांव का रहने वाला है । उसने अपनी माँ के मरने पर दो सौ रुपये उधार लिये थे । उसी के प्याज के एवज में लडके को मेरे यहाँ रखा गया है । जब रुपया लौट आएगा तब अपना लडका ले जाएगा । यानी बहुत सामने रहे गई उनकी खामोशी मानो सोनीजी नहीं हूँ । क्या आदमी के बच्चे को भी बंधक रखा जा सकता है । डालने शूट था बंद ज्वालामुखी की तरह किसी भी लैंप जलाकर दारी किनारे के डाकपत्थर गयी । वो आप को कैसे मालूम हुआ कि वे लडका मेरे यहाँ रानी बहु ने बातों का नया काम आरंभ किया । मुझे नरेंद्र बहादुर ने बताया है तो नरेंद्र बहादुर यही सामने वाले बगीचे में रहते हैं । मानने शर्ट भर के लिए सोच लिया वही लाला जगजीवन दास का नौकर नरेंद्र बहादुर डान इसकी मुख् सक्रियता से रहा । नहीं किया तो लिए उठा । मुझे लगा तो जेल की हवा खा रहे हैं । होटल वाले ने धानी की ओर गौर से देखा पर कुछ कहा नहीं पर जबानी कहने से कुछ नहीं होगा । रानी बहुल है बातों के छोटे सिलसिले को पुनः पकडा तो क्या प्रमाण है इसके पिता नें रुपया लिया था मैं लिखा का अगर दिखा सकता हूँ तब आप इसी समय उस कागज को लेकर पधारे व्यक्ति चला गया धान इसको देखती हुई रानी बहुत बडा पढी क्या हो गया? इस देश को विश्वास नहीं होता था कि देश बुद्ध और गांधी का है, राम और कृष्ण का है । जहाँ आदमी इतना स्वार्थी और खुदगर्ज हो गया है । वो खूंखार जानवरों से भी बदतर है । यह संदर्भ ही ऐसा झड गया था । उन की रानी बहुत है । मेरी ओवर बहुत ध्यान नहीं दिया । फिर भी मेरी उपस् थिति से प्रसन्न नहीं । मैं चाहती तो थी ऍम है । वह मुझे अपने सिक्के पर ही बैठा लें, पर उन्हें अभी देख थी । वह मुझे अकेला छोडते हुए भी डर रही थीं । उन्होंने कहा बेटा आज तो तुम से कोई बात नहीं हो सकी, पर अब तुम सीधे घर चले जाओ । मैं चल पडा । नहीं रुखों । उन्होंने एक आना देते हुए डाॅ । इसे किसी विश्वस्त इक्के पर बैठा तो मैं डाकिन उतारकर सीधे घर चला जाएगा । मैदागिन हो तरकर सीधे घर चला जाएगा । इसकी महत्व आ गई होगी । प्रचारिका बना रही होगी । मैं मुझे समझाते हुए बाहर तक नहीं देखो । बेटा बढना सबसे जरूरी है । खुद अच्छी तरह पढो । अच्छे से पास हो । हमारे जीवन का यही लक्ष्य होना चाहिए । यदि इस समय मिले तो कभी कभी यहाँ चले आना । लेकिन सावधान रहना, भेदना सचेत कर दी जा रही थी की लग रहा था । मुझे आदमियों के खूंखार जंगल से गुजरना है । दूसरे दिन का हाल मुझे दाने से मालूम हुआ । वहाँ होटल वाला कागज लेकर आया था और सच मुझे उसमें वहीं बात लिखी थी । इसकी चर्चा उसने की थी । फिर भी रानी बहु को विश्वास नहीं हुआ । उन्होंने कागज पर लेने के बाद उस लडके के बाद का नाम, गांव पता आदि नोट किया और बॉलिंग आप दो चार दिन और रुक इसमें रोकने की क्या बात है? आज उसकी आवाज में एंठन थी । इस बीच मेरे काम का जो हर्जा होगा उसे कौन देगा? बोस्ट होटल वाला तैयारी से आया था हूँ । अनाथालय के बाहर भी उसके कुछ आज भी टहल रहे हैं । सोचा हडकाकर कम निकालूंगा पर उसे क्या मालूम था कि स्वामिता की इस मूर्ति के भीतर एक कराना काली भी निवास करती है । उसकी बातें सुनते हैं । उन्होंने कागज मॉल मारकर बाहर फेक दिया और एकदम बरस पडी तो ले जाओ कागज पडता है तुम्हारे काम का मेरे ठेका थोडी लिया है, चले जा रहे हैं अब लडका तो मैं वापस नहीं मिलेगा । वो वहाँ से उठा लूँ और कागज पत्तर बटोरकर यानी बहुत खोलता हुआ चला गया सुना । उसी दिन उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई कि लालू नाम का एक लडका जो मेरे यहाँ काम करता था, कल ले से रुपए पौने तीन आना लिखा भागा है । अर्थ है अनाथालय में छुपा हुआ है । दूसरे दिन अनाथालय के मैनेजर रामकिशोर को खोजती हुई पुलिस अनाथालय आधुनकि पर रामकिशोर तो इधर महीनों से छुट्टी लेकर गांव गया था । रानी बहुत ही दो एक दिनों पर आज आती थी और लिखा पढी का काम को देख लेती थीं । किंतु इस पुलिस रिपोर्ट की सूचनाओं ने तुरंत ही गई मध्यान था । वसंत की तेज धूप अब काटने दौडती थी । जलपान की छुट्टी के बाद पांचवा घंटा खुले मैदान में नहीं लगता था । मास्टर बद्रीप्रसाद अब नींद की छाया में ही दो गोल पढा रहे थे कि चपरासी ने आकर मेरे लिए सूचना दी कि हेड मास्टर के कमरे में बुला हट है । उसकी मामी आई हैं मैं इमामी कुछ समझ नहीं पाया । वो दौडता हुआ जब हेड मास्टर के कमरे में पहुंचा तो रानी बहु को देखकर चकित रह गया हूँ । मैं मुझे देखते ही कमरे से निकल आई हूँ । तुम्हारा अवस्था कहा है । बोली मैं तो उसे कक्षा में ही छोड आया, उसे ले लो और मेरे साथ चलो । मैं समझ गया कि उन्होंने मेरे लिए हेड मास्टर साहब से अनुमति ले ली है । जब मैं बस्ता लेकर आया, उन्होंने तुरंत पूछा तो रामकिशन और दानिश का घर तो जानते ही होंगे । उनकी आवाज में ग्यारह सत्तर से अधिक शीघ्रता थी । मैंने श्री क्राफ्ट वक्त ढंग से उत्तर दिया । तब उनसे जाकर अभी कहूँ कि मैंने अनाथालय तुरंत बुलाया है और यदि उनमें से कोई ना मिला तो तब तुम बिहारी कोई भेज देना फिर मौन हो । कुछ सोचने लगी यदि फॅमिली तब क्या करोगी मैं क्यों? क्या उन कम हो देखता रह गया वो, तब तो मत आना किसी भी हालत में मतदाना चलो अच्छा जाओ हम दोनों । साथ ही स्कूल से बाहर निकले । बुद्ध बताती रही ही मुसीबत है रह उनकी शुरू हो गया । हो गया आज तक गोरा काला कभी नहीं हुआ । मैं घर की ओर चला जा रहा था । बडा प्रसन्न था मैं नहीं मैं सोचने लगा की जानी बहु कितना मानती है मुझे । मैं किसी नौकर से बुलवा सकती थी फिर स्कूल में आई थी तो हेड मास्टर से कहा की मैं उसकी माँ क्यूँ शाहब सुथरी धुली हुई खाती हूँ । सिल्क की साडी में उनका गौरव साइड कितना आकर्षण लगा होगा? एक मास्टर साहब को उनके अभी झाकते व्यक्तित्व का ही प्रभाव था की उन्होंने चलते समय उन्हें अपनी कुर्सी से उठकर विदाई दी हूँ । ऐसी महिला मेरी मामी क्या सोचा होगा हेड मास्टर साहब ने मेरे संबंध में मेरी माँ तो छब्बीस को नहीं नहीं उस बेचारी को समय ही कहा है । और फिर महिलाएं उन दिनों लडकों के स्कूल में नहीं आती थी । या तो छोटी जातियों की महिलाएं आती थी या प्रगतीशील एंट्री हूँ तो एक विपन्न के लिए संपन्नता का स्वाद नहीं, कितना मोहक होता है । मैं तो सपनों की नहीं वरन यथार्थ के अति निकट था । राजा की गोद गए भिखारी के पुत्र की तरह पहले ही में दत्तकपुत्र ना हूँ पर तब तक भांजा तो था ही । प्रसन्नता और उत्साह है । मेरे पक धरती पर नहीं थे । यू मैं दौड नहीं रहा था । गति बडी तेज थी । अपने में ही खोया चला जा रहा था कि लोहटिया के कुछ आगे बढने पर मुझे सुनाई पडा क्यों रे जब वो आज कल से भाग चला है । क्या मैंने मुडकर देखा? साइकिल से रामकेश्वर चला जा रहा था कि आप सहयोग था जिससे ना मिलने की संभावना थी, वो रास्ते में ही मिल गया । मैंने उसे रोका और जानी बहु का संदेश सुनाया । फिर अनाथालय के लिए रवाना तो हुआ पर इस बुला हाथ का कारण जानने की उसकी इच्छा का समाधान में नहीं कर सका तो मुझे डालने से भी संदेश कहना था । उसके चलते हुए मैंने बोला अभी अभी तो मेरे साथ ही था । मैं गौदौलिया की ओर गया है । शायद गांगुली के हाँ मिलने उसने कहा, और साइकिल पर सवार हो गये । जाने लगा । उन दिनों बनारस में रमा गति गांगुली नाम के एक सज्जन थे जो बडे क्रांतिकारी थे और सुभाष बापू है । उनका निकट का संबंध था । दानिस बहुदा के यहाँ जाता था । मैं गोदौलिया के पार्टी कहीं रहते थे पर मैं उनका घर नहीं जानता था । मान ने कहा कि अब डाल इसको छोडो रामकिशन चाचा तो जा ही रहे हैं । मैंने उनकी साइकिल रुकवाई और कहा आप मुझे बता दीजिए हूँ, स्कूल के सामने उतार दीजिएगा तो फिर कोई चलना चाहते हो । लगता है आजकल पढाई पर काफी जोर दे रहे हो । तेजी से पैडल मारते हुए रामकृष्ण बोला तो पढना ही मेरे लिए सबसे जरूरी है । मैंने कहा हूँ । मामी जी ने कहा है कि खूब अच्छी तरह पढो और अच्छे से पास हो । मामी जी ने किस माने जी ने हारे जैसे उसे विश्वास हो कि मेरी कोई मामी जीती हैं । यानी बहु ने मैंने स्पष्ट किया मैं तुम्हारी माँ है तो फॅमिली जोर से ऐसा कि क्या बताऊँ । दानिस का विचार था कि जब होटल वाला कागज लाया था तभी उसे फाडकर फेंक देना चाहिए था । ऍम और ना बजती बांसुरी साला क्या करता हूँ चलने दो करके चुप हो जाता हूँ । जड तो खत्म हो जाती है जिस पर आज इतना वितंडा खडा हो रहा है किंतु रानी बहु किस्मत की नहीं थी । कागज पाने का मतलब है विश्वासघात करना और विश्वास खाद सबसे बडा पाव है वो लेकिन बाबरी को परास्त करने के लिए अभी आप भी करना पडे तो करना चाहिए ध्यान इसका डर खता हूँ । आपसे पास सामान नहीं किया जाता हूँ मैं कल से मैं नहीं किया जा सकता । रानी बहु का कहना था साधन की अपवित्र साधे को भी अपवित्र कर देती है । जाने शुभ ही रह गया । मैं समझता था की रानी बहुत दिमाग पर गांधी जी का भूत सवार है । पर इस भूत से हिंदुस्तान का कुछ होने वाला नहीं । खैरुन्निशा ये हुआ कि उस बच्चे की डॉक्टरी करा ली जाए और उस की ओर से पुलिस में रिपोर्ट लिखाई जाएगा । उधर उसके बाद को भी गांव से बुलाया जाए । शाम तो मुझे आज तक नहीं बोली है । मैं स्कूल से सीधे उधर चलाया था । मुझे किसी ने बुलाया नहीं था पर पता चल गया था कि आज मैं आने वाला है । वासंती संध्या अनाथालय के लॉन में खेले गुलाबों पर मुस्कुरा रही थी । एक व्यक्ति तारतार हुई धोती पहने और भेड के पुराने कम्बल से उस स्वयं को लपेटे कमरे में आया । एक उदास सुनसान पडी किसी सूखी गाडी में आपसे आप जमाई घासों के जंगल की तरह उसकी झुर्रियों पर होगी । खिचडी दार ही से स्पष्ट लगा कि भरी जवानी में ही उसे बुढापे ने धर दबोचा है । ताइवान उसे पहुंचाकर चला गया । वो दरवाजे पर चुपचाप खडा तो मारा ही । नाम दशमी है । उसने सिर हिलाकर स्वीकार किया तो भी लालू के बात हूँ उसकी प्रतिक्रिया पूर्व रही हूँ वो मैं क्या? वो बडे संकोच पूर्वक जमीन पर बैठे लगा जमीन पर नहीं, कुर्सी पर बैठो, पर वह खडा ही रहा है उसकी आकृति प्रतिक्रिया शून्य थी । दृष्टि ऐसी सूखी सूखी सी जैसे आंखों कि घाटी ने बहुत दिनों से बादल देखा ही नहीं । संकोच बात करो बैठो । मुझे तुमसे कुछ जानकारी हासिल करनी है । फिर भी मैं कुर्सी पर नहीं बैठे । ऍम देखता रहा हूँ, मानो कुर्सी का विकल्प खोज रहा हूँ और वह उसे मिल भी क्या सामने की ओर ही पीछे बडी बेंच पर है । दुबक कर बैठ गया तो मैंने उस होटल वाले रामलाल से कुछ रुपये उधार लिये हैं । वहाँ सरकार फिर बिना किसी संदर्भ के गिर खिलाते हुए मैं बोल पडा हो सरकार हूँ हमारे ललित कुमार कर देगा यानी बहुत हंस पडीं मैं हमारे लडकी को क्या छोडे? क्या है मैं तो तुम्हारा ही है फॅमिली सरकार नहीं । रामलाल बात तो हमारी जान मार डाली है तो क्या तो फिर उसी होटल वाले को अपने लालू को सौंप दोगे । ऍम था वो पहला जारीकी उस शिखर पर दिखाई दिया जहां से लौटने का मतलब खाई में गिरकर चूर चूर हो जाना था । तो वे अपनी जान इतनी प्यारी है और आपने घायलों की नहीं । यानी बहु ने कहा पर वह कुछ समझ नहीं पाया हूँ । यानी बहुत तो उसकी अनदेखी टका अनुमान लग गया । उन्होंने घंटी बजाई हूँ और डाई को बुलाकर जोशपूर्ण सफर में बोली बोल ले आओ । लालू और सॉफ्टवेर बूढे को यदि है चाहता है तो ले जाए और उसे भाड में छोड दे । ऍम स्थिति थी जहाँ वेकेशन में था, डांस भी था और मैं भी और हम में से कोई कुछ बोल नहीं रहा था । सब निरपेक्ष तमाशबीन थे । देखो क्या होता है? लालू लंगडाता हुआ आया और अपने पिता को देखते ही दहाड मारकर रो पडा लिपट गया । अपने बाप से हैं, ये है उसका अप्रत्याशित मिला था आकास्मिक सहानुभूति की संभावना भाषओं की भाई को और अधिक बढा देती है । दस नहीं की आंखें भर आई हूँ वो तो नहीं बल्कि कपडा हटाकर लडकी के शरीर को देखो तो यानी बहुत बोली हो । अब बोले ने लालू के शरीर पर से कपडा हटाया और अपरिमित देखना शेष रखने लगा क्या ये तुम्हारे कर्मों का फल नहीं है? ध्यानी बहुत पूछा जरूर है । साहब कहते थे उसकी जुलाई चोट पडी । लडका आप भी उसकी छाती से लगता रहा । दोनों की ऍम भेद हो गए तो जानवर के पास ले जाओगे का आकार उनका साहब ऍम रूप से मुख्य हो । इसके पहले ही बालक ठीक उठा नहीं बापू अब हम नौकरियाँ नहीं जाओ, नहीं जाओ तुम्हारा बात जब तो भूखे भेडिये की मांद में ही छोडना चाहता है तो हम क्या करेंगे? हमारे पास तुम्हारे लिए जगह भी नहीं । रानी बहुत बोल रहीं हूँ । अब लालू पिता को छोडकर एकदम रानी बहु के चरणों में गिर पडा । ऐसा क्यों कहती है? मालकिन आपने तो कहा था कि अब तो मैं कहीं नहीं जाने दूंगी । पर जब तुम्हारा बाप भी कहता है तो मैं क्या कर सकती हूँ? बलि के रखने की तरह एक काटर दृष्टि लालू के पिता पर डाली हूँ । फॅमिली इतना लाचार इतना बेवस, इतना असहाय अपने जीवन में कभी ना हुआ हूँ । मैं अपना सिर थामकर होने लगा क्योंकि वो इतने परेशान क्यों का? कहीं मालकिन रुपया जो नहीं नहीं हुईं । रुपया लेने का क्या मतलब है तो अपने लडके को बंधक रख दोगे? रारह खित्ता काकर मैंने देखा ऐसा आज नहीं को कितना लाचार बना रहता है । उसने सकते हुए ही बताया हूँ । नहीं नहीं उस सौ रुपया मई की मौज पर लिया था । दस रुपये महीने तो उसका ब्याज हो जाता । इसी से तय हुआ कि जब तक रूपया लौटाउंगा नहीं लालू तुम्हारे यहाँ काम करता रहेगा । इसका मतलब है कि तुम ने दस रुपये महीने पर अपने लालू को उसका दास बना दिया तो चाहे जो कुछ भी करे उसके साथ बीच था हूँ । यदि रूपया उधार ना लेते तो क्या होता है? मैं तो मर ही गई थी उसका क्रिया कर्म कैसे होता? सर का दस नहीं कराया बिरादरी बोझ कैसे होता सरकार उसकी आत्मा कैसे तिरुपति सरकार तो डर गई । उसकी आत्मा शानू बहूऍ थी अपने लडके को बेचकर माफ की आत्मा को तार दिया तुमने कैसे लायक सबूत हो? फिर कुछ समय के लिए एक अजीब खामोशी पर, उसके कागज पर तो दो सौ रुपये लिखे । फॅसने छुट्टी हुई बात को पकडा । हाँ सरकार का अच्छा दो सौ रुपए का लिखवाया है पढ दिया है सौ रुपये ऐसा क्यों किया तुमने तो यानी बहु का प्रश्न था । यदि ऐसा न करता तो वह रुपया देता ही नहीं किया । ये बात तुम पुलिस के सामने कह सकते हो । पुलिस का नाम सुनते ही उसकी धोखा होती तो मैं कुछ बोल नहीं पाया । लगता है तो डर रहे हो यानी बहुत हैं । कहा पुलिस करने की कोई जरूरत नहीं है तो मैं कैसे कहें कि मैं पुलिस से नहीं बल्कि उससे डर रहा हूँ । उसके विस्फारित नेत्रों के सामने तो राम लाल कर रखा से रहना हिंसक पंजाब था । फिर भी दूसरे दिन किसी प्रकार पुलिस के सामने दसवीं द्वारा बयान दिलाया गया । रामलाल को भी थानेदार ने बुलवाया । यदि तुम सही सही कबूल नहीं करते तो मैं अभी डीएम को फोन करती हूँ । खानी बहु की एक धौंस ने रामलाल की सारी एकडी बुलवा नहीं हूँ । उसे स्वीकार करा लिया कि मैंने मास्टर्स और वही दिए थे तो इतने बडे अपराधी हो । दूसरों को डरा धमकाकर जो उठा का अगर बनवाते हो लाचारी करना जाए, फायदा उठाते हो तो शर्म नहीं आती । यानी बहुत है उसे फटकारना शुरू किया । उन दिनों एक संभ्रांत महिला का इस प्रकार खाने पर पहुंचाया और ऐसी बातें करना वो भी मामूली आदमी से नहीं बल्कि गैरमामूली शातिर बदमाश है । एक होनी बातें अपराधी मन स्वयं है और आशंकाओं का घर होता है । रामलाल को लगा की आवश्यक हीरानी बहुत ऊपर तक पहुंच है । मैं कुछ भी करा सकती है । उसका भाई अब बाहर निकल चुका था । मैं लगभग समर्पण करने स्थिति में आ गया हूँ । पहले आप उस कागज को मंगाई जानी बहु ने कहा और कुछ ही मिनटों में कागज था पर आ गया तो सौ का एक बडा सा कानून उन दिनों सौ का नोट आज के नोट से बडा होता था देकर यानी बहुत ने स्वयं उस कागज को लेकर फाड दिया । चिंदियां वर्षभर दिखाई नहीं । फिर लोग चलने को हुए हैं । अब उस मुकदमे का क्या होगा जो लालू की और उससे मुझ पर दायर हुआ है । तो हम लाल बोला वो कानून के अनुसार कार्रवाई होती रहेगी डाल इसने कहा जानी बहुत कुर्सी से उठ चुकी थी । उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं हूँ । हम लाल पहले से ही आतंकी था । वो मैं दरोगाजी की और भी बार बार देखता रहा हूँ पर वह भी प्रतिक्रिया शुरू नहीं था । धर महीने पूजा पहुंचाने पर ये हाल है आपसी ये बहुत बडी पहुंच वाली हैं । राम लाल अब और अधिक सके में आ गया । वह रानी बहु को रोकते हुए गडबडाया आप चाहेंगे तो मामला रफा दफा हो जाएगा । क्या रफा दफा होगा । यानी बहुत रहते हुए बोली लालू को पहुंचाए गए छोटों से कैसा समझौता दो हो जोर आप थानेदार साहब की बेटी उठाएंगे और उतना ही मुझे भी घायल कर दीजिए । इससे क्या होगा? क्या तो मैं घायल करने से लालू की चोट अच्छी हो जाएगी । यानी बहुत की आवाज में एक नेता का हम और एक दार्शनिक की गंभीरता थी । तो हम तुम्हें घायल करके लालू को अच्छा नहीं कर सकते । फॅालो तो अच्छा होगा । तुम्हारे सहयोग और दवा दारू से रामलाल मौन हो और समझने की कोशिश करने लगा । पुरानी बहुत बोलती नहीं जानते हो । रामलाल कितना तक लग गया है उस बच्चे के चिकित्सा पर हम लाल कुछ बोला नहीं । रानी बहु की तेज व्यवस्था के समक्ष उस हिंसक पशु के नक् घंटे जैसे गलकर गिर गई हूँ । जर्नी चाहिए । उसी सौ के नोट को उसने धानी बहु की ओर बढाया । जैसे मैं कहना चाहता हूँ मैं और क्या सहयोग कर सकता हूँ । यानी बहुत से लेकर दशमी की ओर देते हुए बोली वो लोग अपने बेटे के पीटे जाने का मुआवजा और ले जाकर इसे फिर लगा तो अपनी माँ को उतारने में रानी बहु बाहर आ जगह नहीं । दशमी के हाथ में नोट था और आंखों के सामने नहीं उसके कागज की फटी हुई चिंदियां और मन में थी गांव का पहुंच पकडकर वैतरणी पार होती हुई माँ की शांत आत्मा ।
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