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ऍम पर मैं रश्मि शर्मा और आप सुन रहे हैं । विश्व दुख द्वारा प्रकाशित किताब आंख निचानी कुक ऍम सुनी जो मन चाहे मैं गुमशुदा लोगों को मेरी तलाश है मेरी तलाश में छोटे हैं घर में मुझे अपनी तरह है । शायद इसी तलाश में खोया हूँ । मैंने सोच और कमरे के दरवाजे में ताला लगा दिया है । अच्छी तरह तले को खींचकर किया फिर नीचे लाॅक कम लोग बैठे थे । सतर्क निगाहों से मैंने चारों तरफ देखा । मैं लोगों की निगाहों से बचकर बाहर निकल जाना चाहता था । होटल के दरवाजे के पास पहुंच गए मैंने मोर करते एक काउंटर के पास कोने में बैठे हुए मोटी से व्यक्ति ने अपनी सामने फैले हुए अख्तार को एक तरफ किसका? मुझे हो तो क्या फॅमिली मैं खतरा टांगी का पी लगी मस्तिष्क की नसे, फुल रक्त की शिराओं और उप श्रीराव में रोष भरी उत्तेजना फैल के शहर लखनऊ । उसका चर्चा लगता है मोटा नहीं । मैंने सोचा कोल्को रांखी नुकीली मुझे चेहरे पर वही शिप्टन क्या मेरी पच्चास सुनकर उससे मुझे पहचान लिया था? डगमगाते कदमों और धडकते तेल को संभाल कर में तेजी से भारत क्या पैंट के पीछे वाली जेब से काला चश्मा निकाल कर लगा लिया? आंखिन शिप कहीं मैं फिसलनभरी ढलवान वाली पर ट्वेंटी पर आ गया । ऍम की सांस की । पर मैं पूरी तरह आश्वस्त नहीं होता था कि सोचती नगर लोग मुझे पहचानने लगे हैं । काले चश्में और पडी हुई तारीख के बाद छूट रोक मुझे स्कूल करती थी । कल के अखबार में विज्ञापन निकला था । गुमशुदा कितना मेरी फोटो भी छपी थी । तलाश कर के लाने वाले के लिए इनाम की घोषणा की थी । तब से अब तक मुझे महसूस हो रहा है कि लोगों की सर्च लाये जैसी नहीं ही बराबर मेरा पीछा कर रही हैं । हर आदमी मुझे जनसूचना सराहता, सबकी निगाहें मुझे फराल खूनी समझती है । हर किसी को पता नहीं है तो क्या है कि होटल छोड दिया चाहिए । फिर कहाँ जाऊंगा किसी होटल में उसमें भी क्या अंतर पडेगा? तो क्या शेखर भाई के यहाँ जाना ठीक रहेगा? पर वहाँ जाने से भी क्या पति का हो सकता है उनके पास मेरे को मैं हो जाने की सूचना गई हूँ मैंने ठीक सामने की होती है पूरी नैनीताल का एकमात्र में था । टीवी जैसी इंसानी भीड थी वहाँ मुझे ये फिर लगती थी सागर में एक बूंद विलीन हो जाती है । अपना अस्तित्व खो बैठती है । शायद इसीलिए मुझे भीड भाड में आना जाना अच्छा लगता है मेरे पास से एक सचिन कैसे तथ्य रंग का डबल प्रेस कसूर और सोलह ऍम अखरोट के पेंट को फिसलनभरी पगडंडी पर जमा जमा कर चल रही थी । शायद वो भी मेरे होटल से ही आ रही थी मेरे पास आकर वो एक क्षण के लिए ठिठके मुझ से लटकता सिकार हाथ में पकड लिया कुछ खोल कर देखा फिर मचल करी मैंने कनखियों से उन की ओर देखा उपहार बार पर्यटन मेरी ओर देख लेते थे तीन ऍम क्या इंसान ने भी मुझे पहचान लिया? एक हाहाकारी सहायता का पूछ मुझे छटपटाकर कितनी ने कहा ही मेरा पीछा कर रही है अपने को बदलने की मैंने कितनी कोशिश की पांच दिन से दाढी नहीं बनाई । हर समय काला चश्मा लगाए इसलिए इंसान की आंख ही उसके असली रूप को प्रकट कर देती है । किन को छिपाने में ही सार हैं । आंखें छिपाते ही इंसान का व्यक्तित्व छिप जाता था तो सब कुछ भी कहा एकदम असफर पता नहीं लोग क्यों ऐसा कहती आज का इंसान कितना अकेला अर्चना भी और पे गाना है । मैं अपनी पडोसी तक को नहीं पहचानते । क्या आज के आदमी का ये तथाकथित अकेलापन एक बढत होगा नहीं सुदूर परिचित स्थान पर अपनी को में छिपा पाने में असमर्थ हूं मैं लोगों के लिए अजनबी बन गया हूँ मैंने जीत से सिगरेट का पैकेट नहीं था । एक सिगरेट सुलगाते पडी सावधानी से वर्ष में भी की । पथरीली टाॅपर पाऊँ जमा जमा कर नीचे वाॅकर दाल मान पर चढना आसान होता करना कितना मुश्किल मैंने मैं मेरी जा कर के पास पहुंचा तो फॅमिली खडा हो गया हूँ और एक तक सीमेंट की एक ताकि पेंशन गेस या घर के बाहर में हिंदी की झाडियाँ नहीं आॅक्सी मेंट की बेंच बनी हुई थी । शायद पगडंडी प्रचार होने वालों के लिए बैठकर सुस्तानी ही नहीं किया । रविवार की टीम प्रार्थना करने वालों की पहले की हैं, उस पर भी नहीं नहीं । आज पांचवां नहीं मैं पांच दिन से बार बार इस समय उसे किसी बेंच पर बैठे हुए देखा । मेरा मांॅग क्या मैं बैठी थी काली शिफॉन की सारी उस पर साॅस । वे बेंच पर टुकडे होकर थी । चेहरा घटनाओं के बीच दबाव था सेल के फॅमिली गोनी आपको मैं तो मन साल पॅन था । पहले दिन तो मैंने कोई ध्यान नहीं । दूसरे दिन ध्यान आकर्षित हो । तीसरे दिन मन में कुछ सत्ता चली । चौथे दिन ठिठककर रुका तीस तक उसी देखता था खर्च पानी पानी नहीं । मन में भीषण गंदा सा छिडका पता नहीं कौन है, यहाँ क्यों आती हैं, कैसी एक ही तरीके से बैठी है । उसका मुख्य कैसा है? आज तक नहीं आया हूँ । फॅमिली का है यह परित्यक्ता हुई पागल महिला है । हो सकता है तीनों की तरह जिंदगी से मजाक करने वाली कोई प्रयोगवादी नारी हूँ । वैसे ही बैठी थी शांत तथा नहीं उसे बोलना चालना अथवा उसकी व्यथा कथा के अंतर में झांकना समझती है । मैं पगडंडी पर फिसलता हुआ सनी मॉल रोड पर हट गया । वहाँ काफी भीड भारत महाल की निचली सडक पर होने वाले और घुडसवारों जा रही थी । मैं उससे भी नीचे उतर कर खेल के किनारे किनारे ही निर्मल खास की फॅमिली पर चल नहीं हूँ । कई बार सतर्क होकर मैंने चारों ओर देगा । मुझे खर्च होता था जैसी भीड की आंकी मेरी तलाश में जुटी फॅस मेरे मन में एक विचार आया उस खयाल नहीं मेरे मन के खींचे तारों को छेड फील करती हूँ मैं क्यों कर रहा हूँ मैं कोई खूनी हूँ क्यूँ? उचक्का क्या चाहते हो तो नहीं । मैं घर से भागकर आया हूँ फिर लोग मुझे क्यों खुलकर देखती हो सकता है मेरा विचित्र व्यक्तित्व उन्हें चौंकाता शाम के धुंधलके में भी आंखों निकालना चाहिए दाढी बडे हुए बान लडकियों जैसी की है ड्राॅ ईट पर छूटता गले से बनाकर क्या लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ये अनोखा दूँ? खाफी नहीं सांस डूब रही थी चारों ओर पर्वतों से घिरी नैनीताल की पहले अनुमान चाहिए थी सारा माहौल ऍम था मैंने आकाश की ओर टका भी हट कांता ऍम वहाँ झूल रही थी खाली बात है हमारा आए थे झील में बच्चे हो जैसे नाम ऍम सुप्रीम और रात रंग कि मधुरिमा में नहीं मुझे लगा मेरी जिंदगी भी हूँ बिना तरह की पतवार रहे शून्य में कह रही है ऍम सिर्फ मैं ही सवाल तू दुनिया किनारे लगाओ । ये सब मुझ पर निर्भर करता है । मैं याॅर्क के पास से गुजर रहा था । डाॅन आधुनिक प्रसाधन संयुक्त महिलाओं को देखकर मुझे अपने अंदर एक अजीब सा खालीपन महसूस मैंने अपनी ॅ सच यह खाली पर नहीं एक शाश्वत ऍम गतिहीनता नहीं एक विराट समस्या का ननंद टुकडा मेरी इंटर में बहुत कच्चे कागारौल जैसा झड झडकर ऍम मेरी जहाँ नहीं नहीं होगी मैंने अपने दोनों हाथ फॅमिली फ्लैट में पहुंच गया । हंसी मजाक रंगीन थीं खेलकूद इन सबसे पाॅड अरे एकदम शिथिल साहूकर सोचने लगा कहाँ हो गया हूँ मेरी पीठ के पीछे थी उनकी चाइना भी सामने थी अतल गहराई वाली नहीं थी बीच में था अतीत और भविष्य से था एक लक्ष्यहीन ऍम आपने भाग रहा था पर किस से पीछा छुडाकर ठाकर मैं कहाँ राहत ऍफ कहाँ से ड्राइवर की सीट से बिल्कुल सीट से सटकर में बैठा था बस फॅमिली और वर्तुलाकार पर्वतीय सडक मैं सच मचकुण्ड सून सुबह अच्छा खेडकी की बाहर देखा है हजारों मीटर नीचे मिठाइयाँ मेरी आंखों में चुभ रही थी सडक के किनारे बडी बडे शिलाखंड जान प्रथम नीचे बहती जल्दी ढलानों करोगे वृक्षों पर खेल तीन लंगूर की नहीं सब कुछ सामान्य सकता बस का गढवाली ड्राइवर एक हाथ से स्टीयरिंग पकडकर सिकरी से बस चला रहा है । दूसरी हाथ से वो बराबर रुमानिया खा रहा है । फॅमिली चीज सभी अंतर में विशाल काई शून्य चिंता आशा ऍम कुछ भी शेष नहीं रह गया था । बस की चक्करदार यात्रा के दौरान बस ई की समस्या नहीं मेरे मन कर रहा हूँ । नहीं नहीं, नहीं नहीं किंसी तब तक हो क्या मधुर भैया की यहाँ जाना ठीक है उन का पता मेरे पास मैंने अपना हुआ नहीं था ना उसमें सौ का एक नोट दस दस की छह नोट कुछ चल रहा है कितने दिन चलेंगे ये मुठ्ठीभर पैसे फिर उसके बाद बट हुई से जुडी डायरी में मधुर बढिया का पता लिखा था उसी पत्थर मैं आश्वस्त हूं उस पति में कुछ ऐसा आकर्षण बंद नहीं भारत की सेना का । यही नहीं राजसी पर मैंने सीधे शेखर भाई के यहाँ नहीं जाने का फैसला कर दिया उनके यहाँ जाने का मतलब होता हूँ घटना मैं घर छोड कर रहे हैं हम अपनी तलाश को अधूरा छोडकर घर नहीं लौटना चाहता हूँ सोचते सोचते हैं चाहता हूँ सीट के नीचे रखी अपनी फॅमिली से टकरा एकमात्र ऍम मेरे जीवन निर्वाह का सारा सामान चार मनपसंद किताबी कपडे पूर्ण नहीं बीच खाने की चाहते हैं हवा पहर कर झूठ नहीं मना किया सेवेन का सामान ऍम की कुछ हाँ जी ये बस नैनीताल का पहुंची की मैंने पलट कर दी पिछली सीट पर एक अधेडावस्था के व्यापारी टाइप सचिन मैं ही थे उनकी बगल में एक नवविवाहिता नवयोवना मैं लालकुॅआ उसका चेहरा लगता था पिछले नहीं देखा टाइप का था उसको देखकर मैंने सोचा की महिला इन सचिन की पहली पत्नी कभी नहीं हो सकता पे सचिन बराबर मेरी और प्रश्न सूचक दृष्टि से देखे जा रही थी । मैं गौर से उस युवती देख रहा था और संचय में पडा सोच रहा था क्या? प्रश्न मुझसे पूछा गया था मैं एक फॅमिली लगा । आपने बताया नहीं मुझे उन सचिन का स्वर सुनाई दिया मैं पालता । फिर मैंने ठंडी गर्मी का मुझे नहीं मालूम में सामने देखकर सोचने लगा ये बस नैनीताल कब पहुंचेगी? दिल्ली में बस में सवार होने से पहले मैंने पूछताछ खिडकी पर यह प्रश्न पूछा था और मुझे उत्तर में मिला । शाम छह बजे नहीं । पर फिर पलटा और उस दूसरी महिला की ओर देखते हुए और सचिन से बोला छह बैठी हूँ तो अभी आधा घंटा है वे सचिन बढकर फिर मेरी ओर शंकालु दृष्टि से देखने लगी । शायद इस तरह मेरे आना या सूचना देने का उन्होंने कोई गलत अर्थ निकाल लिया था या फिर मैं ही उनकी दूसरी या तीसरी पत्नी को पार पार खोरकर शालीनता की सीमा को पहले क्या मैं फिर आगे देखती हूँ । मेरी शर्ट की खेत में शिखर ढाई का पत्र पडा था तो उन्होंने इस करने में मुझे नैनीताल आने का निमंत्रण है । लिखा था क्या भावी देखती कतिरा जी नहीं करता हूँ शादी हुई तब तेरी वार्षिक परीक्षाएं हो रही थी इसलिए नहीं आ पाए अब क्या नहीं तेरी यानी शेख मेरी चचेरे भाई मुझसे भडास नहीं रखती । नैनीताल के कॉलेज में लग रहे हैं । पिछले वर्ष उनकी शादी हुई थी । तब मेरे बीए फाइनल के इम्तिहान हो रही थी । घर से सब लोग आई थी सिर्फ मैं ही रह गया । नाॅट कर मम्मी पापा अपनी भाभी की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे । कितनी सुंदर सुशील और सब है । हमारे तो छूट भी नहीं गया है । अलका ने छोटा सा कागज लिख कर मुझे दिया था ही नहीं हूँ । शेखर भैया और भाविनी प्रेम विवाह किया । भारत मैं नाॅन बढिया का आग्रह पूरा होने जा रहा था । किन परिस्थितियों में? अचानक मुझे उस नवविवाहित दंपत्ति के पीछे बैठे कुछ कॉलेज के लडकों का उन्मुक्त एक्टर हाँ सुनाई थी । मन ही मन में उन सज्जन की बहन नहीं है, अवस्था की कल्पना करती हूँ । साथ ही मुझे सहायता का बूथ छटपटा क्या छात्र ही मैं भी छात्र हाँ नहीं, मैं क्यों नहीं था? ऍम की पांच हो गई थी । नहीं उससे ज्यादा ठीक ही मेरी जीतना ऍम मैं पहुंच चक्का सा इधर उधर ऍम
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Sound Engineer
Voice Artist