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आप नहीं कुक ऍम आया के साथ सुनी जब मन चाहे जिम्मेदारी किसकी लेखक बालिस्टर सिंह गुर्जर भारत नोटबंदी विशेष दिनांक आठ नवंबर से संपूर्ण भारत में नोटबंदी लागू भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित आज भारत को आजाद हुए लगभग सत्तर साल हो चुके हैं । इन सत्तर सालों में भारत का कितना विकास हुआ और कितना नहीं शायद ही कोई होगा जो कि इसका सटीक जवाब दे पाए । हर कोई ये नहीं बता सकता है कि भारत के आजादी के सत्तर सालों के इतिहास में देश का विकास समान मात्रा और समान अनुपात में सभी जगह हुआ है । वर्तमान में बदलते हुए जमाने के साथ साथ आज हमारा देश भी बदल रहा है । ये हमारे लिए गौरव बढाने वाला कार्य है किन्तु यदि इस बदलती हुई रफ्तार में किसी प्रकार का धोखा हमारे साथ हो रहा हो तो ये जरूर ही हमें चिंता में डाल सकता है । आज के इस भागदौड भरी रफ्तार में हर इंसान इस प्रकार से व्यस्त है कि वह अपना ख्याल भी ठीक तरह से नहीं रख पाता है । फिर वो देश की गतिविधियों पर तो ध्यान ही नहीं दे सकता । यानी कि जब हमें अपना ही खयाल नहीं रखना चाहता हूँ । ऐसी स्थिति में हम अपने देश का खयाल तो किसी भी हालत में नहीं रख सकते हैं । अभी हाल ही में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी लागू की गई थी । उस नोटबंदी पर पूरे देश में बहुत जोरों पर बहस होनी शुरू हो गई थी । कोई प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले को ऊंची ठहरा रहा था तो कोई इस फैसले से असहमत भी नजर आ रहा था । इस फैसले की सबसे बडी कडवी हकीकत यही थी कि इस फैसले से ऐ सहमती जताने वाले लोगों में सबसे ज्यादा वो लोग थे जिन्होंने कालाबाजारी करके धन इकट्ठा किया हुआ था । इसके बाद दूसरे नंबर पर असहमति जताने वालों में कई विपक्षी दलों के नेता थे । तीसरे नंबर पर असहमत लोग वो थे जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव के समय में अपना मत ही नहीं दिया था । जब भारतीय मीडिया ने कई लोगों से नोटबंदी के ऊपर चर्चा की तो ज्यादातर लोग प्रधानमंत्री के फैसले से सहमत ही नजर आए थे । अब ऐसी स्थिति में हम ये कैसे कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला अनुचित था । ये सत्य है कि जब भी किसी देश में कोई उचित फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है तो सबसे पहले उस फैसले को विरोधियों द्वारा नकारा जाता हैं । उसके बाद विरोध किया जाता है और अंत में उसे स्वीकार कर लिया जाता है । ये राजनीति का ही असर है कि कभी भी सभी दल मिलकर देश हित में अपना हाथ नहीं बताते हैं । उन्हें तो सिर्फ एक ही काम आता है वह एक दूसरे पर आरोप लगाना और देश के विकास में बाधा उत्पन्न करना । कई राजनीतिज्ञ ऐसे भी होते हैं जैसे मीडिया के सामने आकर जनता को गुमराह करने के सिवाय और उन्हें कुछ नहीं आता । प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा आज जो नोटबंदी लागू हुई है वह कहीं न कहीं देश हितार्थी मानी जानी चाहिए क्योंकि जब से नोटबंदी लागू हुई है तभी से सभी कालाबाजारियों का भांडाफोड हुआ है और उनकी सारी की सारी काली कमाई देश के सामने उजागर भी हुई है । चाहे फिर वह कालाबाजारी करने वाला आम नागरिक यू नो आम नागरिक ही क्यों न हो या फिर कोई राजनीति यही क्यों ना हो । हमारे देश की अर्थव्यवस्था जिस गति से सन से से आरंभ हुई है और यदि हम अपनी अर्थव्यवस्था की रफ्तार को थोडा बढाना चाहते हैं तथा अपने देश का शीघ्र विकास करना चाहते हैं तो हमारे सामने थोडी बहुत परेशानियों का आनंद मामूली से बात ही मानी जाएगी । हम आज तक ठीक तरह से जानते हैं कि कुछ पाने के लिए थोडा बहुत तो हमें खोना ही पडता है । इसीलिए अगर प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फैसले से हमें थोडी से परेशानी हुई है तो ये हमारे आने वाले भविष्य के लिए उचित ही सिद्ध होगा । भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा कोई भी राजनीति की आज तक नहीं हुआ जोकि एक कडक फैसला देश हितार्थ ले सके तथा ये सिद्ध भी कर सके कि यहीं की यदि एक बार फैसला ले लिया ले लिया नरेंद्र मोदी जी ने जो फैसला देश के हित में ले लिया है उसे वास्तव में ही एक उचित और कडक फैसला मानना चाहिए क्योंकि इस फैसले से कोई भी अछूता नहीं रहा है । चाहे एक आम नागरिक हो चाहे बडे से बडा पैसे वाला ही क्यों न हो । हर कोई पैसे की लाइन में खडा दिखाई दिया है । नोटबंदी और राजनीति पंद्रह अगस्त उन्नीस सौ के पहले भी भारत देश में राजनीति हुआ करती थी और आज भी राजनीति होती रही हैं । हमें वहाँ कोई फर्क नहीं पडता है कि हमारा देश एक राजनीति ये देश रहा है बल्कि फर्क वहाँ पडता है कि जो राजनीति हमारे देश में की जा रही है वह कितनी सही है और कितनी गलत है । वर्तमान राजनीति के संदर्भ में यही कहना उचित होगा कि आज की राजनीति एक विरोधी राजनीति हैं । आज देश में सैंकडों राजनीतिज्ञ दल है और अगर ये सभी दल चाहते तो आज भारत का डंका पूरे विश्व में गूंजने लगता । लेकिन होता क्या है? होता यही है कि उदाहरण के रूप में सफर राजनीतिज्ञ दलों में से एक राजनीतिज्ञ दल की सरकार देश में बनती है और हारे हुए दल जीते हुए एक दल पर पूरे राजनीतिक के समय में आरोप ही लगाते रहते हैं । आज तक की राजनीति में हर दल का नारा देश का विकास करना होता है किंतु जब बात विकास की आती हो तो ज्यादातर राजनीतिज्ञ अपना मूड छिपाए हुए नजर आते हैं । तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में यही कहना उचित होगा कि उन्होंने नोटबंदी का जो फैसला लिया है, ये फैसला हर तरह से देश के हित में है । क्योंकि हर राजनीतिज्ञ दल हर एक बडे से बडे विपक्षी दलों के नेताओं को इस फैसले से नफरत सी हो रही है और जिस जनता से प्रधानमंत्री मोदी जी को अपना मत देकर जीत दिलाई थी वह उससे खुश नजर आ रही है । अब ऐसी स्थिति में हम किसी भी हाल में ये नहीं कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा लिया गया फैसला एक गलत फैसला है । यदि भारत की एक सौ पच्चीस करोड जनता मोदी जी से खुश हो और केवल एक सौ पच्चीस राजनीति ये मोदी जी से खुश न हो तो ऐसी स्थिति में हम नरेंद्र मोदी जी को क्या कहेंगे? सही या गलत? निश्चित ही जब एक सौ पच्चीस करोड भारतीय जनता को नोटबंदी के फैसले से कोई ऐतराज नहीं हो और यदि केवल एक सौ पच्चीस लोग इसका विरोध कर रही हूँ तो जनता का बहुमत ज्यादा होने के कारण प्रधानमंत्रीको ही सही ठहराया जाएगा । न किचन लोगों की वजह से गलत क्योंकि हम ज्यादा से ज्यादा बहुमत वाली चीज को ही सही मानते हैं, सही ठहरा सकते हैं । आज विश्व के सभी देश लगातार विकास की नई नई ऊंचाइयों को छूते जा रहे हैं । इसमें हमारा देश भी शामिल हैं । किन्तु हमें सबसे बडा दुख वह होता है जब भारत के ही लोग भारत के ही विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं । यह आज का कडवा सत्य है कि देश के विकास में सबसे ज्यादा बाधा कई राजनीतिज्ञ ही लगाते हैं जबकि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए । आज अगर हम चाहते हैं कि हमारा देश विश्व के सभी देशों में आगे हो तो देश के हर नागरिक तथा हर राजनीतिज्ञ को देश के विकास में अपना योगदान देना होगा और ये निश्चित ही है कि जिस दिन देश को हर एक व्यक्ति का योगदान मिल जाएगा, उस दिन सारे विश्व में भारत ही प्रथम पायदान पर होगा । आज हमें ये सभी लोग ठीक तरह से जानते हैं कि किसी समय में हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था । किन्तु समय की कुछ गलतियों के कारण हम कहीं न कहीं कुछ गलतियां कर बैठे हैं और हम से हमारा विश्वगुरु का दर्जा ही कई भटक गया । इसलिए ये कहना उचित ही होगा की अगर हम विश्वगुरु कहलानेवाले भारत के नागरिक हैं तो हमारे अंदर उस सारी शक्तियां होंगी जिन के दम पर हम विश्वगुरु कहना है और ये निश्चित की है कि यदि हम चाहे तो भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने में कुछ समय लगेगा । यदि हम सभी देश के विकास में अपना योगदान दे तो इसके लिए जरूरी है तो सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को समझने की, एक जिम्मेदार नागरिक बनने की तथा देश के प्रति समर्पित होने की भावना
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